7 September 2011

ताकि शब्द दर्द न बनें !


आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं। 

सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं। 

शादी के बाद पहली बार अरुणा ने अपने पति विनय को एक स्वेटर गिफ्ट किया। उसकी पैकिंग भी खुद अरुणा ने ही की, जिसे देखकर विनय काफी प्रभावित हुआ। उसने तुरंत अरुणा की रचनात्मकता की तारीफ कर डाली। अभी इस तारीफ से अरुणा के होठों पर मुस्कान आई ही थी कि विनय ने गिफ्ट पैक खोलकर उसमें रखा शर्ट देखा। 

आव देखा न ताव, उसने गुस्से से अरुणा से कहा 'तुम जानती ही हो कि मैं ब्रांडेड कपड़े पहनता हूँ। यह सस्ती शर्ट कहाँ से उठाकर ले आई हो। तुम्हें कपड़े खरीदने का सेंस नहीं है तो मुझसे पूछा होता।' पहली बार बहुत भावनाओं के साथ दिया गया अरुणा का वह गिफ्ट बेरहमी से ठुकरा दिया गया। यह बात अरुणा आज शादी के दो साल बाद भी नहीं भूलती। 

शब्दों के बाण किसी को भी भीतर तक लहूलुहान कर देते हैं। शब्दों की ताकत से हममें से हर कोई वाकिफ है। शब्द हमारे संबंधों को निर्धारित करते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही यह कथा प्रचलित है कि अभिमन्यु ने अपने पिता अर्जुन से गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख ली थी। आज चिकित्सक भी इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि गर्भ में भी बच्चा शब्दों के प्रभाव से अछूता नहीं रहता। 

बोले गए शब्दों के घाव तलवार से भी गंभीर होते हैं। जीवन की जटिल राहों में शब्द धूप-छाँव दोनों का काम करते हैं। इसलिए सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल करके हम अपनी ही नहीं, दूसरों की भी राहों को आसान बना सकते हैं। अक्सर लोग अपनी स्पष्टता और साफगोई को अपने व्यक्तित्व की एक बड़ी खासियत मानते हैं। 

यह अच्छी बात है। लेकिन सीधे व सपाट शब्दों में अगर किसी को उसकी गलती बताई जाए तो वह गलती करने वाले आदमी को बदला लेने के लिए उकसाती है। ऐसे में ऐसी परिस्थितियों से निपटने का एक तरीका है कि उसे उसकी कुछ खासियतों के साथ गलती को इस ढंग से बताएँ कि उसे वह गलती अपमान की तरह न लगे। तो बस मौके को समझें और उस हिसाब से शब्दों का प्रयोग करें।

बेटे-बहू संग माँ का रिश्ता


आज फिर सुबह से ही शिवानी भाभी के रसोईघर से पकवानों की खुशबू आ रही है। लगता है बेटा-बहू बेंगलुरू से आने वाले हैं। बस अब तीन-चार दिन तक यही सिलसिला चलता रहेगा। शिवानी भाभी मेरे बगल वाले फ्लैट में रहती हैं। उनका बड़ा बेटा व बहू दोनों बेंगलुरू में जॉब करते हैं। 

कोई बड़ा त्योहार या अधिक दिन की छुट्टियाँ होते ही माँ से मिलने आ जाते हैं। बेसन के लड्डू, मठरी, पापड़, अचार व अन्य कई तरह की चीजें बनाने लग जाती हैं, शिवानी भाभी- 'ये मेरे बेटे को पसंद है ये मेरी बहू को पसंद है' कहकर। 

जब भाभी से सामना हुआ तो मैं मुस्करा पड़ी, 'क्यों भाभी कब आ रहे हैं रोहित और अन्नू?' भाभी भी मुस्करा पड़ीं, 'बस अगले हफ्ते ही आने वाले हैं। उनके साथ बैठती नहीं हूँ तो दोनों नाराज हो जाते हैं। कहते हैं कि हम इतनी दूर से आए हैं और आपको फुर्सत ही नहीं है!' मैंने कहा- 'सही तो बोलते हैं।' 'अरे! इसलिए ही तो अब उनकी पसंद की सारी चीजें बनाकर, पैक करके चैन से बैठूँगी।' भाभी ने कहा।

समय बदला है, सोच बदली है और बदली-सी भूमिका में है आज की सास-बहू का रिश्ता। मुझे याद आ रहा है ऐसी ही कुछ तैयारियाँ माँ किया करती हैं छुट्टियों में जब मैं मायके जाती हूँ, पर बदलते परिवेश में यह नजारा भी आम हो चला है। 

सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह देखने में आया है कि पुरानी पीढ़ी की सोच पर अब ये बातें हावी नहीं हैं कि हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था या हमने तो वही किया जो घर के बड़े-बुजुर्ग चाहते थे। इस सोच से वे पूर्णतः मुक्त हैं।
अधिकांश परिवार बेटे-बहू अपनी जॉब के सिलसिले में दूसरे शहरों में रह रहे हैं और किन्हीं कारणों से माता-पिता का वहाँ जाना असंभव है। वहाँ सास की भूमिका कुुछ इसी तरह नजर आ रही है। 

समय के साथ रिश्तों का स्वरूप चाहे हर युग में बदलता रहे मगर ममता का स्वरूप नहीं बदला। ऐसी हर स्थिति के लिए लगभग वे तैयार भी हैं। बाकी अपवाद तो हर जगह होते ही हैं। समय के साथ स्वयं को ढाल लेने में ही समझदारी है। यह बात आज की पीढ़ी अच्छी तरह समझती है।

सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह देखने में आया है कि पुरानी पीढ़ी की सोच पर अब ये बातें हावी नहीं हैं कि हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था या हमने तो वही किया जो घर के बड़े-बुजुर्ग चाहते थे। इस सोच से वे पूर्णतः मुक्त हैं। आज पढ़ाई-लिखाई का स्तर बढ़ने के साथ ही जॉब में अच्छे अवसर उपलब्ध हैं, जिन्हें युवा खोना नहीं चाहते हैं। अतः अभिभावकों का पूर्ण सहयोग भी उन्हें प्राप्त है, जिससे वे ऊँचे आयामों को छू लेने में सक्षम हैं। 

पीढ़ियों का अंतर तो है लेकिन वैचारिक मतभेद नहीं है यानी समय के साथ कदमताल बैठाना सबको आ गया है। यही वक्त की माँग भी है कि लकीर का फकीर बनने से अच्छा है, जमाने के साथ चला जाए। इस बात को शिवानी भाभी जैसी सासू माँ अच्छी तरह से जानती हैं। 

यही अपनत्व की डोर है जो रिश्तों को बाँधकर रखती है। तभी तो बेटे-बहू की प्यारभरी आगवानी होती है और वैसी ही बिदाई भी। वे भी गर्व से बताते नहीं चूकते कि 'माँ के हाथ की बनी चीज की बात ही कुछ और है।' कुछ पल अपने के साथ बिताने पर यकीनन भावनात्मक संबल तो मिलता ही है, एक कड़ी से जुड़े रहने का। साथ ही विश्वास भी मजबूत होता है, तभी तो रिश्तों की महक बरकरार रहती है।

खुली रखिए बातचीत की खिड़कियाँ

दोनों सास-बहू का प्रेम लोगों के लिए मिसाल हुआ करता था। सास पीछे बैठती व बहू स्कूटर चलाती। सास के चेहरे पर एक आत्मसंतुष्टि का भाव या यूँ कहिए कि इस बात का घमंड था कि उसकी बहू कितनी अच्छी है। जहाँ आज के समय सास-बहू साथ नहीं रहती हैं वहाँ उन दोनों के बीच इतना अच्छा सामंजस्य सचमुच ईर्ष्या की बात थी। 

दोनों से अकेले में भी मिलने पर एक-दूसरे की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं। चाहे कोई कितना ही उनके मन को टटोले एक-दूसरे की बुराई का एक शब्द नहीं सुन पाता था। परंतु कुछ दिनों से दोनों की एक-दूसरे से बोलचाल बंद है। अब दोनों एक-दूसरे की बुराई करने को आतुर है। घर स्वर्ग से नर्क बन गया है। 

पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। बहुत कुरेदने पर बहू ने बताया कि इस अनबन की शुरुआत तब से हुई जब सास की एक सहेली ने बताया कि तुम्हारी सास मुझसे कह रही थी कि जबसे बहू आई है सुबह के समय उनकी दिनचर्या में परिवर्तन आ गया है। 

पोते के स्कूल जाने की वजह से अब वह सबेरे न तो घूमने जा पाती हैं न ही मंदिर। खाना-पीना भी बहू की पसंद का बनता है और भी न जाने क्या-क्या। बस यही सब सुनकर उसका मन कसैला हो गया। सोचा सास, सास ही होती है। 

ऐसा ही कुछ सास के साथ भी हुआ बहू उनके बारे में क्या कहती है, कोई उल्टी-सीधी कह गया और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। अब स्थिति यह है कि दोनों को एक-दूसरे के किए में खोट नजर आती है। 

ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ भी हुआ। मेरी ऑफिस की एक सहकर्मी, जो एक साल पहले नियुक्त हुई थी, हमेशा जब भी मिलती मुस्करा कर अभिवादन अवश्य करती। काम की व्यस्तता के बीच भी वह नमस्ते तो कर ही लेती। परन्तु पिछले कुछ दिनों से वह मुझे नजरंदाज करने लगी। 

पहले मैंने अपने मन को समझाया कि ऐसा कुछ नहीं है, मैं अत्यधिक संवेदनशील हूँ शायद ऐसा मुझे इसीलिए लगा होगा। किन्तु जब यही क्रम 15-20 दिनों तक जारी रहा तो मेरा मन नहीं माना। मैंने उसे बुलाकर पूछा। पहले तो वह आई नहीं, जब आई तो आवेश में थी। वह भरी हुई थी। उसने मुझे जो बताया वह सुनकर मैं दंग रह गई। उसने कहा- एक अन्य सहकर्मी जो कुछ दिनों पहले ही ट्रांसफर होकर आई थीं, उन्होंने उसे बताया कि मैंने उसके बारे में कुछ बुराई की है और वह बातें जो मैंने कही ही नहीं है वह उसने मुझे बताई। मैं भी आवेश में आ गई। 

मैंने उससे कहा-"चलो, अभी आमने-सामने कर देते हैं। मैंने ऐसा कब कहा? जिससे मैं बात कम ही करती हूँ उससे मैं क्यों कुछ कहूँगी!" यह बात उसे भी समझ आ गई। मैंने कुछ नहीं कहा। परन्तु साथ ही उसे यह समझाया कि यदि किसी ने कुछ कहा तो मुझसे पूछती तो सही कि क्या यह सच है। यूँ हम गलतफहमी का शिकार तो नहीं होते। बातचीत बंद करना किसी समस्या का समाधान तो नहीं। 

ऊपर जो कुछ उदाहरण थे उनमें भी यही हुआ। किसी ने कुछ कह दिया, हमने उसे मान लिया। हमने उस बात की तह तक जाने की कोशिश नहीं की। न ही हमने अपने अंतरंग मित्र से उस बात को कहा जिससे हमने बातचीत बंद की। जिसने भी हमारे रिश्ते में सेंध लगाई, उसने साथ में यह भी अवश्य कहा होगा कि तुम उससे यह बात मत कहना, बेकार में झगड़ा होगा। परंतु यह क्या हुआ? 

झगड़े में कुछ तो साफ होता। यहाँ तो सब कुछ अंदर ही रह गया और बढ़ती गई गलतफहमी की दीवार। दुश्मनों की चाल कामयाब हो गई। वे उनके सगे हो गए और आप दुश्मन! अब जब हमने बातचीत ही बंद कर दी है तो सुलह कैसे हो सकती है? 

कहने का तात्पर्य यही है कि आपके अपनों से कभी भी किसी भी परिस्थिति में बोलना बंद मत कीजिए। क्योंकि जब अबोला लंबा खिंच जाता है, तो रिश्ते रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाते हैं। समय निकल जाता है, हाथ में कुछ नहीं रहता है। सिर्फ रह जाता है दर्द का अहसास। इस दर्द को सहने से तो बेहतर है कि किसी से कोई असहमति या मन में कोई बात होने पर खुलकर बात कर ली जाए ताकि आपके रिश्तों में 

बच्चों में कैसे भूख जगाएं

ज्यादातर माता-पिता नहीं जानते कि बच्चों में भोजन के प्रति रुचि कैसे जगाएं। वे अकसर इसी दुविधा में रहते हैं कि बच्चे को भोजन में ऐसा क्या दें, जिससे बच्चे को संतुष्टि मिल सके।

माताओं में आम धारणा यह होती है कि यदि शिशु को ज्यादा खिलाएंगी तो वे मोटे हो जाएंगे। ऐसा कदापि न करें, साथ ही बच्चे के मोटापे से भी चिंतित न हों, बच्चे का मोटापा व्यायाम, हिलाने-डुलाने व सक्रियता के जरिये भी कम किया जा सकता है। बच्चे को खेलने के ऐसे खिलौने दें, जिनसे खेलते हुए उसका व्यायाम हो जाए, वह ज्यादा दौड़-भाग करे।

बच्चे के मोटापे को देखकर उसके खाने-पीने में कमी न करें, इससे उसको मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी हो जाएगी। इससे उसके मानसिक व शारीरिक विकास में बाधा आएगी।

नेशनल डेयरी काउंसिल के आहार विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों को खाना खिलाना मां-बाप के लिए बहुत कठिन काम है, मगर माताएं अकसर यही याद रखती हैं कि बच्चे ने कितना खाया और कितनी उपेक्षा की।

बढ़ते बच्चे की भूख का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसमें पाचन क्षमता कमजोर होती है, इसलिए उन्हें एक बार अधिक से अधिक नहीं खिलाना चाहिए, बल्कि दिन में दो-तीन बार भोजन कराना चाहिए।

यह जरूरी नहीं कि बार-बार खाना ही दिया जाए। एक जैसा खाना मिलने पर बच्चा खाने से जी चुराने लगता है। बच्चों को स्नैक्स, मिल्क शेक, फल, मक्खन, किशमिश आदि दिए जा सकते हैं।


मक्खन, अंडे, दूध, फल व सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता होती है, यह ध्यान रखना चाहिए कि आहार बच्चे की खुराक के अनुकूल हो। बच्चे को केक, बिस्कुट दिए जा सकते हैं, मगर अधिक से अधिक विटामिन व प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ देने चाहिए साथ ही वैरायटी भी होना जरूरी है।

* जो बच्चे स्तनपान करते हैं, उन्हें बचपन से लेकर बाद तक कम बीमारियां होती हैं, यानी शुरू से लेकर आखिर तक स्तनपान करने वाले शिशु स्वस्थ रहते हैं।

* स्तनपान छोड़ने पर बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, तब उसे संतुलित व पौष्टिक आहार की जरूरत होती है, अतः स्तनपान छोड़ने पर बच्चे को फल, हरी सब्जियां, मछली पर्याप्त मात्रा में दें।

* बच्चे के स्वास्थ्य के लिए ज्यादा मीठा अच्छा नहीं होता, क्योंकि इसका सीधा संबंध दांत से होता है।

* बच्चों में दांत साफ करने की आदत डालें, मुलायम ब्रश से ही दांत साफ कराएं, बच्चे में व्यायाम करने की भी आदत डालें।

* बच्चे को ताजी हवा में जरूर घुमाएं, खांसी सर्दी, जुकाम या एलर्जी की शिकायत हो तो तुरंत डॉक्टर को संपर्क करें, बच्चे को प्रातः सूर्य की कोमल किरणों का सेवन जरूर कराएं।

सुखी संसार के सुंदर वचन

* मैं तो तुम्हारी पसंद का ध्यान रखूंगी ही पर तुम भी रखना। गृहस्थी की गाड़ी दो पहियों से चलती है। वो भी सोच-समझ में समान होना चाहिए। 

* जीवन में जितनी भी उलझनें होंगी उन्हें दोनों बाँटेंगे, जरूरत होने पर बच्चों से भी शेयर करेंगे। व मशविरा लेंगे। 

* दोस्तों से (चाहे वे महिला हो या पुरुष) घर व ऑफिस के संबंध अपनी-अपनी जगह रहने देंगे। जरूरत होने पर हम दोनों इन संबंधों को बनाए रखने में सहयोग करेंगे। 


* घर में या बाहर रिश्तेदारों, मित्रों या नौकरों के सामने अपनी ही बात को ऊंचे स्वर में कहने के बजाए मधुरता से रखेंगे। तात्पर्य किसी की तौहीन न हो। 

* हारी बीमारी में मैं तो तुम्हारी सेवा करूंगी ही, क्योंकि तुम मेरे पति, मित्र व प्रेमी हो पर तुम्हारे द्वारा भी ऐसा करने से तुम बच्चों व मेरी नजरों में और भी ऊंचे हो जाओगे। 

* बजाए दूसरों की बात सुनने व मानने के, हम दोनों एक-दूसरे की बात सुनेंगे न कि सिर्फ कहेंगे। 

* कितनी भी उम्र हो जाए 'हम एक दूजे के लिए' वाली भावना को याद रखेंगे। एक दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे जीवन से रिटायरमेंट तक। 

* बहू, दामाद के सामने अपने परिवार की मर्यादा व आदर्श बनाए रखेंगे। उतना ही दखल देंगे जितनी जरूरत होगी। 

* पराई पत्तल का घी नहीं देखकर अपनी ही पत्तल पर ध्यान देंगे हर मामले में।

बालों की नेचुरल ब्यूटी के लिए

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुन्दर काले व चमकदार बाल नारी की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। पुराने समय में बालों के रखरखाव व निखार के लिए नारियां अनेक तरीके इस्तेमाल में लाती थीं, जिनसे बाल वास्तव में ही काले, घने, मजबूत और चमकदार बनते थ

आज के युग में कई तरह के साबुन और अन्य चीजों को बालों की सार-संभाल के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है। इनसे बाल पोषक तत्व हासिल करने के स्थान पर समय से पूर्व टूट कर गिरने लगते हैं, साथ ही सफेद होने लगते हैं। इस लेख में हम अपने पाठकों को बालों के रख रखाव के बारे में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहे हैं, जिन्हें इस्तेमाल में लाकर बालों को सुदृढ़, काले और चमकदार बनाया जा सकता है।

* खट्टी दही में चुटकी भर फिटकरी मिला लें, साथ ही थोड़ी सी हल्दी भी मिला लें। इस मिश्रण को सिर के बालों में लगाने से सिर की गंदगी तो दूर होती ही, साथ ही सिर में फैला संक्रमण भी दूर होता है। इस क्रिया को करने से सिर के बाल निखर उठते हैं।

* बालों को धोने के बाद गोलाकार कंघी से बालों में भली प्रकार से ब्रश करना चाहिए। इसके बाद सिर के बालों की जड़ों में उंगली घुमाते हुए अपना हाथ ऊपर से नीचे की ओर फिराएं। ऐसा करने से आपके बाल हमेशा मुलायम बने रहेंगे।

* हफ्ते में कम से कम एक बार अपने सिर के बालों में जैतून के तेल की मालिश अवश्य करें। ऐसा करने से सिर के बाल सफेद होने बंद होते हैं और मजबूती पाते हैं।

* धूल और प्रदूषण के प्रभाव से सिर के बाल रूखे और बेजान से हो जाते हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए हमेशा अच्छे शैम्पू से बालों को धोना चाहिए और अच्छा हेयर टॉनिक लगाना चाहिए।

* कुदरती साधनों के इस्तेमाल से बालों को सुंदर बनाया जा सकता है। बालों को अच्छी तरह धोने के बाद बालों में ताजी मेहंदी पीसकर लगानी चाहिए। कुछ वक्त बाद बालों को पानी से धो लेना चाहिए। 

* हफ्ते में एक बार बालों में तेल की मालिश जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से बालों की बेहतर कसरत हो जाती है। और सिर में खून का दौरा भी सुचारु रूप से होता रहता है।

* भूलकर भी अपने सिर के बालों के साथ ज्यादा एक्सपेरिमेंट न करें। ऐसा करने से बाल कमजोर होकर असमय टूटने लगते हैं।


* बालों की साफ-सफाई में लापरवाही न बरतें। याद रखें कि पसीना बालों की जड़ों में पहुंचने पर बालों को नुकसान पहुंचाता है। इससे बचने के लिए हफ्ते में कम से कम दो बार बालों की सफाई जरूर करें।

* बालों में अक्सर रूसी की समस्या उत्पन्न हो जाया करती है जिससे बाल बेजान होकर टूटने लगते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले बालों में अच्छी तरह तेल लगा लें, ‍फिर गर्म पानी में भीगे तौलिए से बालों को भाप दें। ऐसा करने से बालों की रूसी खत्म हो जाएगी।

* प्रयोग में लाई गई चाय की पत्ती को थोड़े से पानी में उबाल लें। इसके ठंडा होने पर इसे बालों में लगाएं। हफ्ते में कम से कम एक बार इस क्रिया को जरूर करें। इस क्रिया को करने से बाल मजबूत हो जाएंगे।

सत्य की राह पर चलकर मिटे संताप सत्य से जन्मती सकारात्मक ऊर्जा


शास्त्रों में आत्मा, परमात्मा, प्रेम और धर्म को सत्य माना गया है। सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। सत्य के साथ रहने से मन हल्का और प्रसन्न चित्त रहता है। मन के हल्का और प्रसंन्न चित्त रहने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। सत्य की उपयोगिता और क्षमता को बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं। सत्य बोलने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है। गति का अर्थ सभी जानते हैं।

योग का प्रथम अंग 'यम' है धर्म का मूल। यम से मन मजबूत और पवित्र होता है। मानसिक शक्ति बढ़ती है। इससे संकल्प और स्वयं के प्रति आस्था का विकास होता है। यम के पांच प्रकार हैं- (1)अहिंसा, (2)सत्य, (3)अस्तेय, (4)ब्रह्मचर्य और (5)अपरिग्रह। यहां प्रस्तुत है सत्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी।

सत्य क्या है : सत्य को जानना कठिन है। ईश्वर ही सत्य है। सत्य बोलना भी सत्य है। सत्य बातों का समर्थन करना भी सत्य है। सत्य समझना, सुनना और सत्य आचरण करना कठिन जरूर है लेकिन अभ्यास से यह सरल हो जाता है। जो भी दिखाई दे रहा है वह सत्य नहीं है, लेकिन उसे समझना सत्य है अर्थात जो-जो असत्य है उसे जान लेना ही सत्य है। असत्य को जानकर ही व्यक्ति सत्य की सच्ची राह पर आ जाता है।

जब व्यक्ति सत्य की राह से दूर रहता है तो वह अपने जीवन में संकट खड़े कर लेता है। असत्यभाषी व्यक्ति के मन में भ्रम और द्वंद्व रहता है, जिसके कारण मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। मानसिक रोगों का शरीर पर घातक असर पड़ता है। ऐसे में सत्य को समझने के लिए एक तार्किक बुद्धि की आवश्यकता होती है। तार्किक‍ बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से।

सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना, लेकिन सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता। रस्सी को देखकर सर्प मान लेना सत्य नहीं है, किंतु उसे देखकर जो प्रतीति और भय उत्पन हुआ, वह सत्य है। अर्थात रस्सी सर्प नहीं है, लेकिन भय का होना सत्य है। दरअसल हमने कोई झूठ नहीं देखा, लेकिन हम गफलत में एक झूठ को सत्य मान बैठे और उससे हमने स्वयं को रोगग्रस्त कर लिया।

तो सत्य को समझने के लिए जरूरी है तार्किक बुद्धि, सत्य वचन बोलना और होशो-हवास में जीना। जीवन के दुख और सुख सत्य नहीं है, लेकिन उनकी प्रतीति होना सत्य है। उनकी प्रतीति अर्थात अनुभव भी तभी तक होता है जब तक कि आप दुख और सुख को सत्य मानकर जी रहे हैं।

सत्य के लाभ : सत्य बोलने और हमेशा सत्य आचरण करते रहने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है। मन स्वस्थ और शक्तिशाली महसूस करता है। डिप्रेशन और टेंडन भरे जीवन से मुक्ति मिलती है। शरीर में किसी भी प्रकार के रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। सुख और दुख में व्यक्ति सम भाव रहकर निश्चिंत और खुशहाल जीवन को आमंत्रित कर लेता है। सभी तरह के रोग और शोक का निदान होता है।

क्या आप जानते हैं उम्र के नौ खास पड़ाव कौन-सा ग्रह कब देता है देगा धोखा

जन्म से लेकर 48 वर्ष की उम्र तक सभी ग्रहों का उम्र के प्रत्येक वर्ष में अलग-अलग प्रभाव होता है। उनमें से नौ ऐसे विशेष वर्ष होते हैं, जो ग्रह से संबंधित वर्ष माने गए हैं जिन पर उस ग्रह का शुभ या अशुभ प्रभाव विशेष रूप से रहता है। लाल किताब अनुसार कौन-सा ग्रह उम्र के किस वर्ष में विशेष फल देता है इससे संबंधित जानकारी प्रस्तुत है।

1) बृहस्पति :- सर्वप्रथम बृहस्पति ग्रह का असर हमारे जीवन में रहता है। उम्र का 16वां साल बृहस्पति का साल माना गया है। यही उम्र बिगड़ने की और यही उम्र सुधरने की है। बृहस्पति यदि चतुर्थ भाव में स्थित है तो 16वें वर्ष में व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में लाभ पाता है और यदि छठे भाव में है तो हानि संभव हो सकती है।

2) सूर्य :- सूर्य ग्रह का असर आयु के 22वें वर्ष में नजर आता है। यदि उच्च का है तो सरकार से संबंधित कार्यों में पूर्ण लाभ मिलेगा और यदि अशुभ है तो सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

3) चंद्रमा :- चंद्र ग्रह का असर आयु के 24वें वर्ष में नजर आता है। उच्च या शुभ स्थिति में होने पर माता एवं अन्य सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। अशुभ या नीच का होने पर माता के विषय में विपरीत फल की प्राप्ति एवं मानसिक तनाव मिल सकता है।

4) शुक्र :- शुक्र का असर आयु के 25वें वर्ष में विशेष रूप से दिखाता है। शुक्र के अच्छा होने पर पत्नी और सांसारिक सुख मिलेगा। यदि शुक्र नीच का है तो सुख में बाधा आएगी।

5) मंगल :- मंगल ग्रह का असर आयु के 28वें वर्ष में दिखता है। मंगल का अच्छा होने पर भाई, मकान, जमीन-जायदाद से संबंधित कार्यों में लाभ मिलने का योग हैं। जबकि खराब होने पर उपरोक्त विषयों में कमी हो सकती है।

6) बुध :- बुध ग्रह का असर आयु के 34वें वर्ष में दिखता है। यदि अच्छा है तो व्यापार आदि में लाभ और खराब है तो हानि की सम्भावना है।

7) शनि :- शनि ग्रह का असर आयु के 36वें वर्ष में नजर आता है। यदि अच्छा है तो मकान, व्यवसाय और राजनीति में लाभ लेकिन यदि अशुभ हो तो हानि देता है।

8) राहु :- राहु ग्रह अपना असर आयु के 42वें वर्ष में प्रदान करता है। यदि शुभ स्थित में हो राजनीति आदि के क्षेत्र में विशेष लाभ, लेकिन यदि अशुभ हो तो व्यक्ति षडयन्त्र का शिकार बनकर मानसिक तनाव झेलता रहता है।

9) केतु :- केतु ग्रह अपना असर आयु के 42वें वर्ष में दिखाता है। यदि शुभ हो तो संतान एवं मामा के संबंध में विशेष लाभ और यदि अशुभ हो तो हानि।

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...