14 September 2011

हमारे दशनाम इस परकार है

(1)-वन, (2)-अरण्य, (3)-गिरि, (4)-सागर, (5)-पर्वत, (6)-तीर्थ, (7)-आश्रम, (8)-पुरि, (9)-भारती, (10)-सरस्वती


हमारे समाज की 52 मढी है जो इस परकार है-


गिरि,पर्वत,सागर की 27 मढी है,,,,, ओर पुरियो की 16 मढी है,...,,,, -ओर गुरू शंकरा चार्य सन्यासी वन की 4 मढी हैI -ओर भारतीयो की 4 मढी है --ओर लामा गुरू की 1 मढी है-----------जिनका विवरण इस परकार है======


{गिरि,पर्वत,सागर की 27 मढी इस परकार है --


1-रामदत़ी, 2-ओंकार लाल नाथी, 3-चन्दनाथी बोदला, 4-व्रहा नाथी, 5-दुर्गा नाथी, 6-व्रहा नाथी, 7-सेज नाथी, 8-जग जीवन नाथी, 9-पाटम्बर नाथी, 10-ज्ञान नाथी- -11-अघोर नाथी, 12-भाव नाथी, 13-ऋदि नाथी, 14-सागर नाथी, 15-चाँद नाथ बोदला, 16-कुसुम नाथी, 17-अपार नाथी, 18-रत्न नाथी, 19-नागेन्द्र नाथी, 20-रूद्र नाथी 21-महेश नाथी, 22-अजरज नाथी, 23-मेघ नाथी, 24-पर्वत नाथी, 25-मान नाथी, 26-पारस नाथी, 27-दरिया नाथी 


 पुरियो की 16 मढी इस परकार है------------- 1-वैकुण्ठ पुरि, 2-केशव पुरि मुलतानी, 3-गंगा पुरि दरिया पुरि, 4-ञिलोक पुरि, 5-वन मेघनाथ पुरि, 6-सेज पुरि, 7-भगवन्त पुरि, 8-पू्रण पुरि 9-भण्डारी हनुमत पुरि, 10-जड भरत पुरि, 11-लदेर दरिया पुरि, 12-संग दरिया पुरि, 13-सोम दरिया पुरि 14-नील कण्ठ पुरि, 15-तामक भियापुरि, 16-मुयापुरिनिरंजनी-



 गुरू शंकरा चार्य सन्यासी वन की 4 मढी इस परकार है---- -1-गंगासनी वन, 2-सिंहासनी वन, 3-वाल वन कुण्डली श्री वन, 4-होड सारी वन-अत्म वन, 


 भारती की 4 मढी इस परकार है----- -1-मन मुकुन्द भारती , 2-नृसिंह भारती, 3-पदम नाथ भारती , 4-बाल किषन भारती ,--


लामा गुरू की 1 मढी इस परकार है--------पाहरी की छाप लामा गुरु की मढी चीन में है॥ 


कृपया इस विवरण को समाज के व्यक्तियो तक पहुचाऎ ताकि सभी हमारे समाज के बारे में जान सके॥


पूजन के वक्त सावधानियां---

(1)कुछ ऎसी गूढ़ बातें हैं जो देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के वक्त ध्यान जरूर दी जानी चाहिए।
घर या व्यावसायिक स्थल में पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा में ही होना चाहिए।

(2)पूजा हमेशा आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करनी चाहिए। दीपक अवश्य जलाएं।

(3)दो शिवलिंग की पूजा एक साथ नहीं करनी चाहिए, लेकिन नर्बदेश्वर, पारदेश्वर शिवलिंग और सालिगराम घर में शुभ होते हैं।

(4)धर्म शास्त्रों के अनुसार तुलसी पत्र ऎसे दिन नहीं तोड़ने चाहिए, जिस दिन सूर्य संक्रांति हो, पूर्णिमा, द्वादशी, अमावस्या तिथि हो, रविवार का दिन हो, व्यतिपात, वैधृति योग हो। रात्रि और संध्याकाल में भी इन्हें नहीं तोड़ना चाहिए।

(5)भगवान गणपति के दूब चढ़ानी चाहिए, जिससे भगवान गणपति प्रसन्न होते हैं। जबकि देवी के दूब चढ़ाना निषेध बताया गया है।

(6)घी का दीपक हमेशा देवताओं के दक्षिण में
तथा तेल का दीपक बाई तरफ रखना चाहिए।

(7)इसी प्रकार धूपबत्ती बाएं और नैवेद्य (भोग)
सन्मुख रखना चाहिए।

(8)दो सालिगराम जी, दो शंख और दो सूर्य भी पूजा में एक साथ नहीं रखें। सालिगराम बिना प्राण प्रतिष्ठा के भी पूजा योग्य है।

(9)तीन गणेश व तीन दुर्गा की भी घर में एक साथ रखकर पूजा नहीं करनी चाहिए। ऎसा करने पर जातक दोष का भागी बनता है।

(10)देवताओं को खंडित फल अर्पण नहीं करने चाहिए। जैसे- आधा केला, आधा सेब आदि।(

(11)पूजा के पश्चात देसी घी से प्रज्वलित दीपक से आरती अवश्य करनी चाहिए। यदि दीपक किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो, तो केवल जल आरती भी की जा सकती है। आरती करने से पूजा में संपूर्णता आ जाती है।

(12)देवताओं पर चढ़े हुए जल और पंचामृत को निर्माल्य कहा जाता है, जिसे पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे बहुत बड़ा पाप लगता है। इसे किसी पेड़ में या बहते हुए जल में विसर्जित कर देना चाहिए।

संयम विहीन जीवन बेकार

संयम ही जीवन का श्रृंगार है। मनुष्य संयम धारण कर सकता है, इसलिए समस्त जीवों में वह श्रेष्ठ है। जिसके जीवन में संयम नहीं, उसका जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी जैसा है। उक्त उद्‍गार परम पूज्य 108 आचार्यश्री विशुद्घसागरजी महाराज ने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतर्गत उत्तम संयम धर्म आराधना के अवसर पर व्यक्त किए।

संयम बिना प्राणी अधूरा : जीवन रूपी नदी के लिए संयम धर्म का पालन करना जरूरी है। संयम को हम बंधन कह सकते हैं। लेकिन यह बंधन सांसारिक प्राणी के लिए दुखदाई नहीं वरन्‌ दुखों से छुटकारा दिलाने वाला है। नदी बहती है पर तटों का होना जरूरी है।

यदि नदी बिना तटों के बहती है तो वह अपने लक्ष्य से भटककर सागर तक नहीं पहुँचती और सूख जाती। इसी प्रकार संयमी जीवन ही अपने अनंत सुखों को प्राप्त कर सकता है। संयम को धारण करने का हमें पूर्ण अधिकार मिला है लेकिन सांसारिक प्राणी पंचेन्द्रिय विषय के वशीभूत होकर इससे दूर भागते हैं। जिससे वह जीवन रूपी गाड़ी में सफल नहीं हो पाते।

प्राणी और इन्द्रीय संयम के भेद से यह दो प्रकार का है। प्राणियों की रक्षा करना प्राणी संयम है। जबकि पंचेन्द्रिय विषयों से विरक्ति और मन की आकांक्षाओं पर नियंत्रण इन्द्रीय संयम है। इसीलिए सांसारिक प्राणी को संयम का पालन करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जो इंद्रिय पर

विजय प्राप्त कर लेता है, वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने कहा कि संयम के दिन को बंधन का दिन भी कह सकते हैं। पर यह वंदन दुखदायी नहीं, दुःखों से छुटकारा पाने के लिए बंधन अभिनंदन के रूप में है। जीवन में नियंत्रण जरूरी है, अश्व को लगाम, हाथी को अंकुश, ऊँट को नुकील और वाहन के लिए ब्रेक जरूरी है। ब्रेक है तो सुरक्षा नहीं तो दुर्घटना होना पक्का है।

विशेष फलदायी है महामृत्युंजय मंत्र लेकिन...

महामृत्युंजय मंत्र जप में जरूरी है सावधानियां
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विशेष फलदायी है महामृत्युंजय मंत्र लेकिन...
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महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
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अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
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1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
6. माला को गौमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी से बाहर न निकालें।
7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं।
13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
14. मिथ्या बातें न करें।
15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।









महामृत्युंजय मंत्र से करें शिवलिंग पर अभिषेक
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कब और कैसे करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?
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हामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।
दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र से शिवलिंग पर अभिषेक करने से जीवन में कभी सेहत की समस्या नहीं आती। निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रह पीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बंटवारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

Anmol vachan

1. jisane jnyaan ko aacharaN me utaar liya, usane eeshvar ko moortimaan kar liya – vinoba
2. akarmaNyata ka doosara naam martyu hai – musolinee
3. paalane se lekar kabr tak jnyaan praapt karate raho – pavitr kuraan
4. ichchha hee sab du:kho ka mool hai – buddh
5. manushy ka sabase baDa shatru usaka ajnyaan hai – chaaNaky
6. aapaka aaj ka purushaarth aapaka kal ka bhaagy hai – paalashiroo
7. krodh ek kism ka kshaNik paagalapan hai – mahaatma gaandhee
8. Thokar lagatee hai aur dard hota hai tabhee manushy seekh paata hai – mahaatma gaandhee
9. apriy shabd pashuo ko bhee nahee suhaate hai – buddh
10. naram shabdo se sakht dilo ko jeeta ja sakata hai – sukaraat
11. gaharee nadee ka jal pravaah shaant va gambheer hota hai – sheksapeeyar
12. samay aur samudr kee lahare kisee ka intajaar nahee karatee – ajnyaat
13. jis tarah jauharee hee asalee heere kee pahachaan kar sakata hai, usee tarah guNee hee guNavaan kee pahachaan kar sakata hai – kabeer
14. jo aapako kal kar dena chaahie tha, vahee sansaar ka sabase kaThin kaary hai – kanfyooshiyas
15. jnyaanee purusho ka krodh bheetar hee, shaanti se nivaas karata hai, baahar nahee – khaleel jibraan
16. kuber bhee yadi aay se adhik vyay kare to nirdhan ho jaata hai – chaaNaky
17. doob kee tarah chhoTe banakar raho. jab ghaas-paat jal jaate hai tab bhee doob jas kee tas banee rahatee hai – guru naanak dev
18. eeshvar ke haath dene ke lie khule hai. lene ke lie tumhe prayatn karana hoga – guru naanak dev
19. jo doosaro se gharNa karata hai vah svaya patit hota hai – vivekaanand
20. jananee janmabhoomi svarg se bhee baDhakar hai.
21. bhare baadal aur fale varksh neeche zukare hai, sajjan jnyaan aur dhan paakar vinamr banate hai.
22. sochana, kahana va karana sada samaan ho.
23. na kal kee na kaal kee fikar karo, sada harshit mukh raho.
24. sv parivartan se doosaro ka parivartan karo.
25. te te paanv pasaariyo jetee chaadar hoy.
26. mahaan purush kee pahalee pahachaan usakee vinamrata hai.
27. bina anubhav kora shaabdik jnyaan andha hai.
28. krodh sadaiv moorkhata se praarambh hota hai aur pashchaataap par samaapt.
29. naaree kee unnati par hee raashTr kee unnati nirdhaarit hai.
30. dharatee par hai svarg kahaa – chhoTa hai parivaar jahaa.
31. doosaro ka jo aacharaN tumhe pasand nahee, vaisa aacharaN doosaro ke prati na karo.
32. namrata saare guNo ka darDh stambh hai.
33. buddhimaan kisee ka upahaas nahee karate hai.
34. har achchha kaam pahale asambhav najar aata hai.
35. pustak premee sabase dhanavaan va sukhee hota hai.
36. sabase uttam badala kshama karana hai.
37. aaraam haraam hai.
38. do bachcho se khilata upavan, hansate-hansate kaTata jeevan.
39. agar chaahate sukh samarddhi, roko janasankhya varddhi.
40. kaary manorath se nahee, udyam se siddh hote hai. jaise sote hue sinh ke munh me marg apane aap nahee chale jaate – vishNu sharma
41. jo jaisa shubh va ashubh kaary karata hai, vo vaisa hee fal bhogata hai – vedavyaas
42. manushy kee ichchhao ka peT aaj tak koee nahee bhar saka hai – vedavyaas
43. namrata aur meeThe vachan hee manushy ke sachche aabhooshaN hote hai – tiroovalluvar
44. khuda ek daravaaja band karane se pahale doosara khol deta hai, use prayatn kar dekho – shekh saadee
45. bure aadamee ke saath bhee bhalaee karanee chaahie – kutte ko roTee ka ek TukaDa Daalakar usaka munh band karana hee achchha hai – shekh saadee
46. apamaanapoorvak amart peene se to achchha hai sammaanapoorvak vishapaan – raheem
47. thoDe se dhan se dushT jan unmatt ho jaate hai – jaise chhoTee, barasaatee nadee me thoDee see varsha se baaDh aa jaatee hai – gosvaamee tulaseedaas
48. eesh praapti (shaanti) ke lie anta:karaN shuddh hona chaahie – ravidaas
49. jab mai svaya par hansata hoo to mere man ka boz halka ho jaata hai – Taigor
50. janm ke baad martyu, utthaan ke baad patan, sanyog ke baad viyog, sanchay ke baad kshay nishchit hai. jnyaanee in baato ka jnyaan kar harsh aur shok ke vasheebhoot nahee hote – mahaabhaarat

कर्तव्य है जीवन का आधार

कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में उल्लेखित चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सनातनी (हिंदू या आर्य) को कर्तव्यों के प्रति जाग्रत रहना चाहिए ऐसा ज्ञानीजनों का कहना है। कर्तव्यों के पालन करने से चित्त और घर में शांति मिलती है। चित्त और घर में शांति मिलने से मोक्ष व समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

कर्तव्यों के कई मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कारण और लाभ हैं। जो मनुष्य लाभ की दृष्‍टि से भी इन कर्तव्यों का पालन करता है वह भी अच्छाई के रास्ते पर आ ही जाता है। दुख: है तो दुख से मुक्ति का उपाय भी कर्तव्य ही है। तो आओ जानें कि कर्तव्य क्या है और इसके प्रकार क्या हैं।

(1) संध्योपासन : संध्योपासन अर्थात संध्या वंदन। इस संध्या वंदन को कैसे और कब किया जाए, इसका अलग नियम है। संधि पाँच वक्त की होती है जिसमें से प्रात: और संध्या की संधि का महत्व ज्यादा है। संध्या वंदन को छोड़कर जो मनमानी पूजा-आरती आदि करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। संध्या वंदन से सभी तरह का शुभ और लाभ प्राप्त होता है।

(2) व्रत : व्रत ही तप है। यही उपवास है। व्रत दो प्रकार के हैं। इन व्रतों को कैसे और कब किया जाए, इसका अलग नियम है। नियम से हटकर जो मनमाने व्रत या उपवास करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। व्रत से जीवन में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं रहता। व्रत से ही मोक्ष प्राप्त किया जाता है। श्रावण माह को व्रत के लिए नियुक्त किया गया है।


(3) तीर्थ : तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। कौन-सा है एक मात्र तीर्थ? तीर्थाटन का समय क्या है? अयोध्‍या, काशी, मथुरा, चार धाम और कैलाश में कैलाश की महिमा ही अधिक है वही प्रमुख है। ‍जो मनमानें तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

(4) उत्सव : उन त्योहारों, पर्वों या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख धर्मग्रंथों में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। मनमाने त्योहारों को मनाने से धर्म की हानी होती है। ऐसे कई त्योहार है जिन्हें मनमाने तरीकों से मनाया भी जाता है।

(5) सेवा : हिंदू धर्म में सभी कर्तव्यों में श्रेष्ठ 'सेवा' का बहुत महत्व बताया गया है। स्वजनों, अशक्तों, गरीबों, महिला, बच्चों, धर्म रक्षकों, बूढ़ों और मातृभूमि की सेवा करना पुण्य है। यही अतिथि यज्ञ है। सेवा से सभी तरह के संकट दूर होते हैं। इसी से मोक्ष के मार्ग में सरलता आती है।

(6) दान : दान के तीन प्रकार बताए गए है:- उत्तम, मध्यम और निकृष्‍ट। जो धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या, स्वजनों और राष्ट्र की उन्नति के लिए देवे वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए देवे वह मध्यम और जो वेश्‍यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को देवे वह निकृष्‍ट है। दान कब और किसे दें, इसके भी नियम हैं।

(7) यज्ञ : यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं। यज्ञ का अर्थ सिर्फ हवन करना नहीं। यज्ञ भी कब, कैसे, कौन और किस स्थान पर करें, इसके भी नियम हैं। मनमाने और बे-समय किए गए यज्ञों का कोई महत्व नहीं। पाँच यज्ञ निम्न है- ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृयज्ञ (श्राद्ध), वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ।


(8) संस्कार : संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। यह कब और कैसे करें, इसके भी नियम हैं। इन संस्कारों के नाम है-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि।

उक्त कर्तव्यों में हिंदू धर्म की समस्त विचारधारा के कर्तव्यों का समावेश हो जाता है। वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में इन्हीं कर्तव्यों के अलग-अलग नाम और विस्तार की बातें होने से भ्रम की स्थिति होती है, लेकिन हैं सभी एक ही। जैसे कि वेदों में बताए पाँच यज्ञों में से एक पितृयज्ञ को ही पुराणों में श्राद्ध कहा जाता है।

तो यह है हिंदुओं के मुख्यत: आठ कर्तव्य। आगे हम इन कर्तव्यों का खुलासा करेंगे।

हींग शक्तिशाली घरेलू औषधि

* दांतों में कीड़ा लग जाने पर रात्रि को दांत में हींग दबाकर सोएं। कीड़े खुद-ब-खुद निकल जाएंगे।

* यदि शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभ गया हो तो उस स्थान पर हींग का घोल भर दें। कुछ समय में कांटा स्वतः निकल आएगा।

* हींग में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। दाद, खाज, खुजली व अन्य चर्म रोगों में इसको पानी में घिसकर उन स्थानों पर लगाने से लाभ होता है।

* हींग का लेप बवासीर, तिल्ली व उदरशोथ में लाभप्रद है।

* कब्जियत की शिकायत होने पर हींग के चूर्ण में थोड़ा सा मीठा सोड़ा मिलाकर रात्रि को फांक लें, सबेरे शौच साफ होगा।

* पेट के दर्द, अफारे, ऐंठन आदि में अजवाइन और नमक के साथ हींग का सेवन करें तो लाभ होगा।

* पेट में कीड़े हो जाने पर हींग को पानी में घोलकर एनिमा लेने से पेट के कीड़े शीघ्र निकल आते हैं।

* जख्म यदि कुछ समय तक खुला रहे तो उसमें छोटे-छोटे रोगाणु पनप जाते हैं। जख्म पर हींग का चूर्ण डालने से रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।

* प्रतिदिन के भोजन में दाल, कढ़ी व कुछ सब्जियों में हींग का उपयोग करने से भोजन को पचाने में सहायक होती है।

आपको कैसा लाइफ पार्टनर चाहिए?

लड़की जबसे समझदार मानी जाती है तभी से उसके दिमाग में डाल दिया जाता है कि उसे शादी कर किसी पराए घर की शोभा बढ़ानी है। उसे किसी 'और' की जिंदगी संवारनी है। खैर, सवाल यह नहीं है कि माता-पिता से कैसे निपटा जाए।

सवाल है आखिर इस 'अद्भुत प्राणी' का चयन कैसे किया जाए? शायद ठीक-ठीक इस सवाल का जवाब अब तक किसी लड़की को नहीं मिला है। चलिए आपको कैसा पति चाहिए, यह जानने में हम आपकी मदद करते हैं। नीचे दिए जा रहे सवालों के अपने अनुसार सही जवाब पर टिक कीजिए और जानिए अपने दिल का हाल।

1. आपका जीवनसाथी -
क. गुड लुकिंग होना चाहिए
ख. गुड लुकिंग के साथ इंटेलिजेंट होना चाहिए
ग. जैसा भी हो, मेरी भावनाओं की कद्र करे

2. आपके जीवनसाथी का व्यवहार-
क. सबके साथ सरल होना चाहिए
ख. बिलकुल नारियल जैसा चाहिए
ग. संवेदनशील होना चाहिए

3. स्वास्थ्य के लिहाज से उसका-
क. लंबाई व चौड़ाई के अनुसार वजन चाहिए
ख. 6 पैक्स ऐब होने चाहिए
ग. ओवर वेट चलेगा मगर अंडर वेट नहीं चाहिए

4. आप चाहती हैं शादी के बाद वह-
क. आपको कहीं घुमाने ले जाए
ख. तोहफे लाकर दे
ग. दूसरों के सामने आपसे प्यारी-प्यारी बातें करे

5. शादी के बाद नौकरी के मसले पर आप चाहती हैं-
क. परिस्थिति अनुसार निर्णय लें
ख. पति आप पर निर्णय छोड़ दे
ग. सोचती हैं पति जैसा कहेगा वैसा करेंगी

6. लाइफ इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए आप-
क. कुछ एडवेंचरस आजमाएंगी
ख. कभी कभार घूमने जाना पसंद करेंगी
ग. पति के साथ मायके में वक्त गुजारना चाहेंगी

7. आप चाहती हैं आपके जीवनसाथी से बात करने का तौर तरीका
क. हर आयु वर्ग के साथ फिट होना चाहिए ताकि बच्चों से लेकर बूढ़े तक उसे पसंद करें
ख. तार्किक होना चाहिए
ग. मजाकिया होना चाहिए

8. यदि आप रूठ जाएं तो आप चाहेंगी कि वह-
क. अपना हक जताते हल्की फुल्की डांट लगा दे
ख. रोमांटिक बातें करके आपको मनाए
ग. किसी शायरी या कविता से आपको मनाए

9. जब आप उसे अपने दिल का हाल बताएं तो आप चाहेंगी कि-
क. बिन बोले ही वह सब समझ जाए
ख. आप बोलती जाएं और वह सुनता जाए
ग. कुछ अपनी कहें, कुछ आपकी सुने

10. यदि आप बीमार पड़ जाएं तो वह-
क. देखभाल करे लेकिन 24 घंटे चिपका न रहे
ख. देखभाल किसी बच्चे की तरह करे
ग. बस उसका पास होना ही काफी होगा

निष्कर्ष :

इस क्विज में हर सवाल के तीन जवाब हैं और तीनों जवाब अपने आपमें सही हैं। इन्हें अंकों में विभाजित नहीं किया गया है। इस क्विज के तहत आप तीन किस्म के अलग-अलग प्रकार के व्यक्ति से परिचित होंगी। इसमें एक व्यावहारिक गुणवत्ता लिए होगा तो दूसरे प्रकार का व्यक्ति चंचल मन का होगा। जबकि तीसरे प्रकार का व्यक्ति दिल का साफ होगा। उसकी मासूमियत आपका दिल जीतेगी।

(क) यदि आपके जवाबों में 'क' अधिकतम है तो आपकी चाहत शहजादियों जैसी नहीं है। आप चाहती हैं कि आपका पति आपको सिर्फ प्यार करे, आप पर अपना हक समझे। आपका पूरा जोर होगा कि उसे आप किसी तरह की कमी महसूस होने नहीं देंगी। हर कदम पर उसका साथ देने के लिए तत्पर होंगी। यही कारण है कि आपको एक सीधा-सादा, भोला-भाला वर चाहिए जो ज्यादा चालाक चतुर न हो यानी दिल का साफ हो।

(ख) यदि आपने ज्यादा 'ख' में टिक किए हैं यानी आप बेहद व्यावहारिक हैं। जिंदगी की हकीकत से रूबरू हैं। इसलिए आप चीजों को दिल से नहीं बल्कि दिमाग से सोचती हैं। आपको कोई भी चीज आधी-अधूरी पसंद नहीं आती। आपको हर चीज पूरी चाहिए। इसलिए आपको सिर्फ स्मार्ट नहीं इंटेलिजेंस व्यक्ति की भी तलाश है। आपके इस प्रकार की पसंद का कारण है कि सफलता आपके कदम चूमती है। आपका यही व्यवहार आप दोनों के बीच सामंजस्य बैठाने में सहयोग करेगा।

(ग) यदि आपने ज्यादा से ज्यादा 'ग' में टिक किया है तो मानना पड़ेगा कि आप कितनी भावुक हैं। आप अपनी भावनाएं अपना जीवनसाथी चुनने के दौरान भी छिपा नहीं सकेंगी। आपके लिए प्यार सबसे महत्वपूर्ण है। वह आपको जिस भी स्थिति में रखेगा आप रह लेंगी बशर्ते वह आपको बहुत प्यार करता हो यानी आपको भावुक जीवनसाथी चाहिए।

मौन भाषा प्यार की..

प्यार को शब्दों की जंजीर में नहीं बांधा जा सकता। यह तो वह पंछी है, जो चंचल मन-सा पल में जमीं और पल में आसमां चूमने लगता है। सच तो यह है कि प्यार एक एहसास है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। इसे देखा जा सकता है, आंखों से आंखों में। प्यार की भाषा मौन होती है।

पेड़ के ऊपर की फुनगी पर एक चिड़िया बैठी थी। तभी कहीं दूर से एक दूसरी चिड़िया आई और पेड़ की एक शाख पर बैठ गई। फुनगी पर बैठी चिड़िया झट से फुदककर नीचे वाली चिड़िया के पास आई। दोनों ने पास-पास सरककर, चोंच से चोंच मिलाकर जाने क्या बात की और अगले ही पल दोनों साथ-साथ दूर उड़ चलीं।

दो अपरिचित, अनजान पंछी मौन की जिस भाषा में बात कर हमराही बने, वह थी प्यार की भाषा। प्यार की अबोली बोली के जादू ने दो दिलों के बीच की दूरी को खत्म कर दिया।

यह प्यार क्या है जो दुनिया के तमाम रिश्तों को नाजुक बंधन में बांधे रखता है?

दरअसल प्यार कुदरत का अनमोल तोहफा है। यह ऐसी दौलत है जो हर किसी के पास अथाह होने के बाद भी हर कोई अतृप्त रहता है, प्यार तलाशता रहता है। जीव-जगत के छोटे-बड़े सभी प्राणियों के पास प्यार का अथाह सागर है। फिर भी हर कोई हर किसी से प्यार पाना चाहता है। पोता, दादा से प्यार चाहता है, भाई, बहन से प्यार चाहता है, पड़ोसी पड़ोसी से प्यार चाहता है, छात्र शिक्षक से प्यार चाहता है, जानवर अपने मालिक से प्यार चाहता है यानी हम अपने से संबंधित हर जीव से प्यार की आस रखते हैं।

प्यार देने वाला प्यार के बदले भी प्यार ही चाहता है। प्यार का रिश्ता इस हाथ ले, उस हाथ दे वाला होता है। यदि प्यार एकतरफा हो तो वह रिश्तों को अटूट बंधन में नहीं बांध सकता।

प्यार यादगार होता है। क्षणिक किया हुआ प्यार भी जिंदगी भर की अमानत बन जाता है। और यदि सालों साल किया गया हो तो फिर बात ही क्या! प्यार दिल की गहराइयों से किया जाता है। इसलिए इसे भुला पाना संभव नहीं होता।


प्यार लेना और देना दोनों ही बहुत आसान भी है और बहुत मुश्किल भी। किसी को प्यार देने में कुछ खर्च नहीं होता। बस जरूरत होती है इच्छा की, भावनाओं की, लगाव की। यदि आपकी चाहत है तो चाहे जितना बांटो, लुटाओ यह दौलत खत्म न होगी।

प्यार दीवानगी है। जब प्यार का नशा चढ़ता है तो फिर कोई दूसरी बात नहीं सूझती। इस दीवानगी के कारण ही लोग प्यार में दिलोजान तक देने को तैयार रहते हैं।

प्यार कब, कहां, कैसे, किससे हो जाए, कहा नहीं जा सकता। यह भी कहा जाता है कि 'प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है।' जरूरी नहीं कि प्यार सुंदर व्यक्ति या वस्तु से हो। बस, मन में प्यार की घंटी बजनी चाहिए फिर तो 'दिल लगा मेंढकी से, तो वह भी परी लगती है।'

प्यार भले ही तौलकर न किया जाए, फिर भी अंतरतम से प्यार किसी एक को ही सबसे अधिक किया जाता है। उस एक को प्यार देने के चक्कर में दूसरों पर प्यार कम भी हो जाता है। प्यार अनंत होने के बावजूद हम एक ही सबसे प्यारे पर प्यार लुटाना चाहते हैं। कहा गया है, 'प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो ना समाहिं।'

प्यार में इतनी शक्ति होती है कि वह दो दिलों को एकाकार कर देता है। दोनों एक-दूसरे के प्यार में इतने खो जाते हैं कि उन्हें खुद का भी भान नहीं होता। 'जब वो है तब मैं नहीं, जब मैं हूं तब वो नहीं।'

अच्छी नींद से खूबसूरती बढ़ती है नींद में कंजूसी कभी नहीं करें

एक दिन में 24 घंटे होते हैं। प्रकृति के अनुसार दिन का समय कार्य के लिए एवं रात्रि का समय विश्राम के लिए निर्धारित किया गया है, किंतु कुछ लोग सोचते हैं कि 24 घंटे में जितना काम कर सकें, कर लें। वे 7-8 घंटे सोने को विलासिता मानते हैं, किंतु विभिन्न शोधों के अनुसार वयस्कों का इतने घंटे सोना कतई विलासिता नहीं है, यह तो शारीरिक जरूरत है। बच्चों और बुजुर्गों को तो इससे भी ज्यादा समय के लिए सोने की सलाह दी जाती है। हां, कम सोना शरीर के साथ ज्यादती अवश्य है।

आधुनिक सुख-सुविधाओं के चलते अब लोगों की शारीरिक गतिविधियों का कम होना, खान-पान पर ध्यान न देना, सारे दिन बंद कमरों में बैठे रहना, अवसादग्रस्त रहना, मोटापा बढ़ना आर्थेराइटिस, डायबिटीज जैसी बीमारियां, महिलाओं में हॉट फ्लेशेज (मेनोपॉज के समय हार्मोन में बदलाव की प्रक्रिया), पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना, नींद में चलने की बीमारी होना भी नींद की कमी के लिए जिम्मेदार है।

चिकित्सकों द्वारा किए गए अध्ययनों में भरपूर नींद न लेने के कई दुष्परिणाम सामने आए हैं। यह भी पाया गया है कि कम नींद लेने वाले लोगों का वजन बढ़ने की अधिक संभावना रहती है।

अध्ययनों के अनुसार कम सोने से मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस में सक्रिय न्यूरॉन्स के एक समूह की कार्यशैली गड़बड़ा जाती है। यहीं पर ओरेक्सिन नामक हार्मोन भी सक्रिय होता है, जो खानपान संबंधी व्यवहार को नियंत्रित करता है। कम सोने से आपके कार्य की गुणवत्ता में कमी आ सकती है और यहां तक कि सोचने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है और कोई दुर्घटना भी घटित हो सकती है, जैसे गाड़ी चलाते समय नींद का झोंका आ सकता है।


अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों पर नींद को लेकर किए गए एक अध्ययन में कम नींद लेने वाले लोग अस्वस्थ्य, थके-थके, कम आकर्षक नजर आए, वहीं भरपूर नींद लेने वाले लोगों के परिणाम ठीक इसके उलट पाए गए। शोधों में यह बात सामने आई है कि पर्याप्त नींद लेने से लोग बेहतर काम कर पाते हैं, क्योंकि शरीर और मस्तिष्क दोनों को आराम की सख्त जरूरत होती है।

गहरी नींद से सोकर उठने पर आप स्वयं को तरोताजा तो महसूस करते ही हैं, साथ ही इससे एकाग्रता और याददाश्त भी बढ़ती है। रोग प्रतिरोधक तंत्र भलीभांति काम करता है। आपकी उत्पादकता और संवेदनशीलता बढ़ाने तथा खूबसूरती को निखारने में भी पर्याप्त नींद की अहम भूमिका है।

अच्छी और मीठी नींद के लिए कुछ आसान से टिप्स पेश है :

* नियमित व्यायाम करें एवं सोने के 3 घंटे पूर्व ज्यादा थकाने वाला व्यायाम न करें।

* अपनी दिनचर्या में सोने के लिए समय निर्धारित करें और सप्ताहांत के दौरान भी उसे अमल में लाएं।

* यदि आप दिन में झपकी लेते हैं तो कोशिश करें कि वह 20 से 30 मिनट की हो और दोपहर की शुरुआत में हो।

* यदि सोने के समय आपको कोई विचार परेशान कर रहा है तो उसे कागज पर लिख लें और सुबह तक उसे भूलने की कोशिश करें।

* दिन के 3 बजे बाद कैफीनयुक्त पदार्थों का सेवन न करें।

* सोने के पहले गरिष्ठ भोजन न करें और न ही भूखे पेट सोएँ। कार्बोहाइड्रेट से भरपूर हल्का-फुल्का नाश्ता ले सकते हैं।

* यदि आप धूम्रपान करते हैं तो छोड़ दें। निकोटिन का सेवन भी नींद में बाधक है। अल्कोहल लेना भी नींद खराब करता है।

* यदि रात्रि में आपको बार-बार बाथरूम जाने की जरूरत महसूस होती है तो रात्रि के समय पेय पदार्थ लेने की मात्रा कम कर दें।

सकारात्मक विचारों से सेहत सुधारें

जब भी हम नकारात्मक विचार करते हैं, गुस्से या तनाव में रहते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में स्थित न्यूरोकेमिकल्स सही काम नहीं कर पाते। नतीजा, पाचन क्रिया समेत शरीर की अन्य क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं। आंतों में खून की आपूर्ति घट जाती है और एसिड का रिसाव बढ़ जाता है, जिससे एसिडिटी, पेट दर्द, पेट में गैस बनना, अपच, पतले दस्त, कब्ज आदि समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। 'आईबीएस' या इरीटेबल बॉवेल सिन्ड्रोम इन्हीं सब समस्याओं का मिला-जुला रूप है। सम्मोहन चिकित्सा अपनाकर व अपने खान-पान और रहन-सहन में परिवर्तन लाकर आप 'आईबीएस' समेत पेट की अन्य बीमारियों से भी बच सकते हैं।

आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग एकाएक पेश आने वाली किसी मुसीबत की वजह से या यात्रा आदि के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में सोचकर या फिर किसी जिम्मेदारी से घबराकर नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी पाचन क्रिया बिगड़ जाती है।

कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं, जो हमेशा ही अपने निराशावादी विचारों के कारण पाचन संबंधी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए वे हमेशा कोई न कोई दवा लेते रहते हैं, पर अपनी बीमारी की जड़ यानी अपने सोच-विचार पर वे जरा-भी ध्यान नहीं देते। नतीजा यह होता है कि उनकी बीमारी और भी गंभीर रूप धारण करती चली जाती है। आपको यह जानकार भले ही हैरत हो, पर यह सच है कि ज्यादा तनाव की स्थिति में व्यक्ति पेट के अल्सर तक से पीड़ित हो सकता है और इस बात को आज मेडिकल साइंस भी मान रही है।

किसी इंसान का जीवन भी उन अनुवांशिक तत्वों से कंट्रोल होता है, जो शरीर की 50 करोड़ खरब कोशिकाओं में स्थित हैं। वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन-काल के बारे में कुछ कहने से पहले हमें उन तमाम घटनाओं पर गौर करना चाहिए, जो मनुष्य के शरीर के अंदर घटित होती हैं। उदाहरण के लिए अमाशय के अंदर निर्मित होने वाली उन कोशिकाओं को ले लीजिए, जो कुछ ही दिनों तक जीवित रह पाती हैं। त्वचा-कोशिकाएं (स्किन सेल्स) दो हफ्ते तक जीवित रहती हैं, जबकि लाल रक्त कोशिकाएं शायद दो-तीन महीनों तक जीवित रहती हैं। इसके अलावा हृदय और मस्तिष्क में कुछ ऐसी भी कोशिकाएं मौजूद होती हैं जो मनुष्य में मरते दम तक जीवित रहती हैं। उनके नष्ट होने और फिर से तैयार होने जैसी कोई प्रक्रिया नहीं होती। सबसे हैरत-अंगेज बात तो यह है कि इन तमाम कोशिकाओं के कम-से-कम लेकर लंबे से लंबे समय तक के जीवन-काल को इनमें स्थित डीएनए नामक अनुवांशिक तत्व ही नियंत्रित करता है।


हर किसी के अंदर निगेटिव विचारों का प्रवाह चलता है, मगर आत्मचिंतन की ओर अपने दिल-दिमाग को मोड़कर आप उससे मुक्त हो सकते हैं। यदि आपको शरीर में कहीं दर्द का एहसास होता है या किसी बात को लेकर आप अपने को डिस्टर्ब पाते हैं, तो फिर उस बात पर गौर करने की बजाए आप अपनी आंखें चंद सेकंड के लिए बंद कर सोचें, कि आप अपने शरीर के अंदर झांक रहे हैं। इससे आपका मस्तिष्क तुरंत शरीर के कुछ खास अंगों की ओर आकर्षित होने लगता है।

ये अंग पेट और दिल भी हो सकते हैं। बस, उस समय आप अपने ध्यान को लगभग आधे मिनट तक वहां रहने दें। अच्छी सोच का प्रवाह बनाने की कोशिश कीजिए, आप देखेंगे कि आपके दर्द आदि का एहसास धीरे-धीरे घटने लगा है। फिर, आप जब आंखें खोलेंगे, तो देखेंगे कि मानसिक परेशानी की स्थिति खत्म हो चुकी है यह सब आत्म-सम्मोहन द्वारा या दूसरे शब्दों में कहे कि सकारात्मक सोच से सहज हो जाता है।

अच्छी सोच से तन-मन रहे स्वस्थ

अक्सर बड़े बुजुर्गों सकारात्मक सोच रखने की सलाह देते हैं और मनोचिकित्सकों का भी कहना है कि सकारात्मक सोच रखने वालों को सफलता मिलने की संभावना नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों की तुलना में ज्यादा होती है तथा सकारात्मक सोच तन और मन दोनों को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाती है।

सकारात्मक नजरिए से कई मुश्किलें आसान हो जाती हैं। वास्तव में इससे समस्या भले ही हल न हो लेकिन वह छोटी जरूर हो जाती है। सकारात्मक या नकारात्मक नजरिया लोगों के स्वभाव पर निर्भर करता है। वास्तव में यह नजरिया ही है कि कोई व्यक्ति ग्लास को आधा भरा देखता है तो कोई आधा खाली। कई बार देखने में आता है कि कुछ लोग मुश्किल परिस्थितियों में घबरा जाते हैं जबकि वहीं कुछ सोचते हैं कि जो होगा अच्छा ही होगा यही नजरिए का फर्क है।

सकारात्मक सोच का असर व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर पड़ता है। सकारात्मक सोच रखने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है जबकि इससे उलट नकारात्मक नजरिए से यह प्रणाली कमजोर होती है। इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी सकारात्मक सोच जरूरी है।

सकारात्मक सोच प्रत्येक चीज या किसी भी परिस्थिति के अच्छे पहलुओं को देखने की क्षमता बढ़ाती है। इससे न केवल व्यक्ति खुश रहता है बल्कि सकारात्मक सोच रखकर परिस्थितयों का सामना करने से सफलता की संभावना भी अधिक रहती है।


सकारात्मक या नकारात्मक नजरिया कई बातों पर निर्भर करता है जैसे व्यक्ति विशेष का स्वभाव, उसका मूड, परिस्थितियां आदि। सकारात्मक या नकारात्मक सोच जिंदगी के अनुभवों और परिस्थितियों पर आधारित होती है। सकारात्मक सोच का व्यक्ति के स्वास्थ्य पर व्यापक असर पड़ता है। सकारात्मक सोच रखने वालों की सफलता की संभावना अधिक होती है क्योंकि इस स्थिति में व्यक्ति अपनी क्षमताओं का बखूबी इस्तेमाल कर पाता है जबकि चीजों को नकारात्मक नजरिए से देखने वालों को कई बार नाकामयाबी का सामना करना पड़ता है।

कुछ देशों में ‘थिंक पॉजिटिव डे’ 13 सितंबर को मनाया जाता है। लोगों को सकारात्मक नजरिया रखने के लिए प्रेरित करने और उन्हें इसके फायदों से अवगत कराने के उद्देश्य यह दिन मनाया जाता है। भारत में इस दिन का चलन नहीं है लेकिन सकारात्मक सोच के महत्व से इंकार भी नहीं किया जा सकता।

हाथों की चंद लकीरों में छुपा है आपका प्यार हस्तरेखा से जानिए प्यार के संकेत

- पं. दयानन्द शास्त्री

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अधिकतर लोगों के मुंह से यह सुनने में आता है कि हमारे तो गुण मिल गए थे परन्तु हमारे (पति-पत्नी) विचार नहीं मिल रहे हैं या हम लोगों ने एक-दूसरे को देखकर समझ-बूझकर शादी की थी। परन्तु बाद में दोनों में झगड़े बहुत होने लगे हैं। आप हस्तरेखा के द्वारा होने वाले धोखे, मंगेतर के बारे में या प्रेमी-प्रेमिका के बारे में जान सकते हैं।

किसी भी स्त्री या पुरुष के प्रेम के बारे में पता लगाने के लिए उस जातक के मुख्य रूप से शुक्र पर्वत, हृदय रेखा, विवाह रेखा को विशेष रूप से देखा जाता है। इन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति या स्त्री का चरित्र या स्वभाव जाना जा सकता है।

शुक्र क्षेत्र की स्थिति अंगूठे के निचले भाग में होती है। जिन व्यक्तियों के हाथ में शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ होता है। उन व्यक्तियों का स्वभाव विपरीत सेक्स के प्रति तीव्र आकर्षण रखने वाला तथा वासनात्मक प्रेम की ओर झुकाव वाला होता है। यदि किसी स्त्री या पुरुष के हाथ में पहला पोर बहुत छोटा हो और मस्तिष्क रेखा न हो तो वह जातक बहुत वासनात्मक होता है। वह विपरीत सेक्स के देखते ही अपने मन पर काबू नहीं रख पाता है।


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अच्छे शुक्र क्षेत्र वाले व्यक्ति के अंगूठे का पहला पोर बलिष्ठ हो और मस्तक रेखा लम्बी हो तो ऐसा व्यक्ति संयमी होता है। यदि किसी स्त्री के हाथ में शुक्र का क्षेत्र अधिक उन्नत हो तथा मस्तक रेखा कमजोर और छोटी हो तथा अंगूठे का पहला पर्व छोटा, पतला और कमजोर हो, हृदय रेखा पर द्वीप के चिह्न हों तथा सूर्य और बृहस्पति का क्षेत्र दबा हुआ हो तो वह शीघ्र ही व्याभिचारिणी हो जाती है।

यदि किसी पुरुष के दाएं हाथ में हृदय रेखा गुरू पर्वत तक सीधी जा रही है तथा शुक्र पर्वत अच्छा उठा हुआ है तो वह पुरुष अच्छा व उदार प्रेमी साबित होता है। परन्तु यदि यही दशा स्त्री के हाथ में होती है तथा उसकी तर्जनी अंगुली अनामिका से बड़ी होती है तो वह प्रेम के मामले में वफादार नहीं होती है।

यदि हथेली में विवाह रेखा एवं कनिष्ठा अंगुली के मध्य में दो-तीन स्पष्ट रेखाएं हो तो उस स्त्री या पुरुष के उतने ही प्रेम संबंध होते हैं। यदि किसी पुरुष की केवल एक ही रेखा हो और वह स्पष्ट तथा अंत तक गहरी हो तो ऐसा जातक एक पत्निव्रता होता है और वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम भी करता है।

जैसा कि बताया गया है कि विवाह रेखा अपने उद्गम स्थान पर गहरी तथा चौड़ी हो, परंतु आगे चलकर पतली हो गई हो तो यह समझना चाहिए कि जातक या जातिका प्रारंभ में अपनी पत्नी या पति से अधिक प्रेम करती है, परन्तु बाद में चलकर उस प्रेम में कमी आ गई है।

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