25 December 2012

जब गैस या एसीडिटी के कारण हो पेटदर्द तो ये नुस्खे रामबाण हैं....

अपच होने पर पेट भारी होकर फूल जाता है,इससे पेट दर्द और बैचेनी जलन और कभी कभी मितली आने लगती है, खट्टी डकारें आती है,पेट में भारीपन महसूस होता है, पेटदर्द और उल्टी आदि की शिकायतें होती है। पेटदर्द मिटाने के लिए कड़वी दवाईयां ले लेकर आप परेशान हो चूके हैं तो आजमाइए पेट दर्द दूर भगाने वाले कुछ टेस्टी नुस्खे- - दो चम्मच मेथी दाना में नमक मिलाकर सुबह-शाम दो बार गर्म पानी से लें। - सौंफ और सेंधा नमक मिलाकर पीसकर दो चम्मच गर्म पानी से लें। - काली मिर्च, हींग, सौंठ समान मात्रा में पीसकर सुबह शाम गर्म पानी से आधा चम्मच लें। - पिसी लाल मिर्च गुड़ में मिलाकर खाने से पेट दर्द में लाभ होता है। - दो इलायची पीसकर शहद मिलाकर चाटने से लाभ होता है। - अनार के दानों पर काली मिर्च और नमक डाल कर चूसें। - नींबू की फांक पर काला नमक, काली मिर्च व जीरा डालकर गर्म करके चूसें। - 2ग्राम अजवाइन में एक ग्राम नमक मिलाकर गर्म पानी से लें।

10 चीजें, जो सर्दियों में रखें हेल्दी

विंटर सीजन में मिलने वाले ये फ्रूट्स और वेजीटेबिल्स न केवल हेल्थ के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि आपको सर्दियों की कई प्रॉब्लम्स से भी बचाए रखते हैं। इसलिए रोजाना इनका सेवन आपको कई तरह के फायदे देता है। सर्दियों का मेवा मूंगफली मूंगफली प्रोटीन का अच्छा सोर्स है। यह आपको अंदर से गर्म बनाए रखता है। दरअसल, इसमें विटामिन ई की क्वॉन्टिटी बहुत ज्यादा होती है। अगर आप रोजाना इसके 5 से 6 दाने खाएं, तो आपकी स्किन ड्राई नहीं होगी। इसमें ओमेगा-3 पाया जाता है, जो ब्रेन को ऐक्टिव रखने में हेल्प करता है। अगर आप 200 ग्राम मूंगफली रोजाना लेते हैं, तो इससे आपको 50.5 ग्राम प्रोटीन, 80.6 ग्राम फैट, 55.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 80 ग्राम कैलरीज, 18 मिलीग्राम कैल्शियम और 18. 6 मिलीग्राम आयरन मिलेगा। विटामिन सी से भरपूर आंवला आंवले में कई ऐसे न्यूट्रिशंस पाए जाते हैं, जो सर्दी के मौसम में बेहद फायदा देते हैं। विटामिन सी बॉडी के इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाता है, तो वहीं इसमें पाए जाने वाले ऐंटि-ऑक्सीडेंट बॉडी में मौजूद केमिकल्स को बाहर निकलने में मदद करते हैं। ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के साथ ही यह एनीमिया से भी बचाता है। 50- 50 ग्राम के दो आंवलें अगर आप रोजाना लेंगे, तो आप 0.5 ग्राम प्रोटीन, 13.7 ग्राम कार्बोहाइट्रेट, 58 ग्राम कैलरी, 1.2 मिलीग्राम आयरन पा सकते हैं। कई न्यूट्रिशंस से भरपूर गाजर गाजर विटामिन बी का अच्छा सोर्स है। इसके अलावा, इसमें ए, सी, डी, के, बी-1 और बी-6 काफी क्वॉन्टिटी में पाया जाता है। इसमें नैचरल शुगर पाया जाता है, जो सर्दी के मौसम में शरीर को ठंड से बचाता है। इस मौसम में होने वाले नाक, कान, गले के इन्फेक्शन और साइनस जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए गाजर या इससे बनी चीजों का सेवन फायदेमंद साबित होता है। आप इसे सलाद के तौर पर खाएं या गाजर का हलवा बनाकर, दोनों ही फायदेमंद है। हां, अगर कैलरीज से बचना चाहती हैं, तो गाजर का हलवा अवॉइड करें। 100 ग्राम गाजर में 0.9 प्रोटीन, 10.6 कैलरीज, 80 मिलीग्राम कैल्शियम, 0.03 मिलीग्राम आयरन पा सकते हैं। गर्म रखती है मेथी मेथी के गर्मागर्म पराठे, वो भी अचार के साथ खाने का अपना ही मजा है। इसे सब्जी के फॉर्म में खाएं या पराठे बनाकर, बॉडी के लिए हर तरह से फायदेमंद होती है। इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में लोग इसे खूब खाते हैं। इसमें आयरन, विटामिंस, मिनरल्स और फाइबर्स बेहद क्वॉन्टिटी में होते हैं। यह बॉडी में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को घटाने के साथ डायबिटीज के रोगियों के शरीर से शुगर के लेवल को कम करने में मदद करती है। डाइजेशन को ठीक बनाए रखने में यह बेहद काम आती है। अगर आप रोजाना 200 से 300 ग्राम मेथी इनटेक कर लें, तो आप कई बीमारियों से बचे रहेंगे। 200 ग्राम मेथी में 7 ग्राम प्रोटीन, 6.2 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 185 मिलीग्राम कैल्शियम और 32.8 मिलीग्राम आयरन होता है। स्टमक कैंसर से बचाए मटर इसे पुलाव में मिलाएं या बनाएं मटर पनीर, हर तरह से इसका टेस्ट यमी होता है। कॉटेज चीज ग्रेवी के साथ अगर इसे तैयार किया जाए, तो यह टेस्टी तो होता ही है और चीज डालने से हेल्दी भी हो जाता है। हाल ही में हुए एक रिसर्च के मुताबिक, फलीदार यह सब्जी स्टमक कैंसर के खतरे को भी काफी कम कर देती है। 100 ग्राम मटर से आप केवल 60 कैलरीज इनटेक करते हैं। ऑरेंज विटामिन सी से भरपूर ऑरेज स्किन कलर को तो फेयर बनाता ही है, साथ ही एनर्जेटिक भी होता है। पोटैशियम, मिनरल्स और फाइबर्स का यह अच्छा सोर्स है। यही नहीं, इसमें कैलरीज मात्र 60 होती हैं और प्रोटीन 80 ग्राम। सरसों की पत्तियां सरसों की पत्तियां हाईली न्यूट्रिशंस से भरपूर होती हैं। यह एंटि-ऑक्सिडेंट्स, विटामिंस, मिनरल्स से भरपूर होता है। सर्दियों में पालक और बथुआ के साथ मिलाकर बनाया जाने वाला इसका साग गर्म बनाए रखता है। इसमें न्यूट्रिशंस वैल्यू बहुत ज्यादा हैं और कैलरीज कम। मूली टेस्ट में तीखी और मीठी मूली सदिर्यों में खूब मिलती है। पोटैशियम, फोलिक ऐसिड और एक्रोबिक ऐसिड से भरपूर इस सब्जी को आप कच्चा खाएं या पराठा बनाकर खाएं, बेहद टेस्टी होती है। एक मीडियम साइज मूली से आप केवल 30 कैलरीज पाते हैं और विटामिंस बहुत ज्यादा। ड्राई फ्रूट्स ड्राई फ्रूट्स को सीधे खाएं या या रोस्ट करके, फायदेमंद होता हैं। इवनिंग टी के साथ रोजाना चार से पांच पीस लें। अगर पी-नट्स को सीधे खाना पसंद नहीं, तो एक पीस पी-नट बर्फी लें। ठिठुरन भरी शाम में ये आपको गर्म बनाए रखेंगे। दरअसल, पी-नट्स विटामिंस, पोटैशियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और फैट का अच्छा सोर्स है। ग्रीन टी अगर चाय व कॉफी पीने के शौकीन हैं, तो ग्रीन टी पीएं। यह फ्रेश और लाइट है और आम चाय से एकदम अलग टेस्ट की होती है। ग्रीन टी मेटाबोलिक रेट बढ़ाने में मददगार होती है और कैलरी बर्निंग और फैट को घटाने में मदद करती है। ग्रीन टी कॉलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेबल कम करने में मदद करती है। क्या खाएं और क्या नहीं * पराठे की जगह रोटी खाएं। 1 पराठे में जहां 200 कैलरीज होती हैं, वहीं एक चपाती में 80 कैलरीज। * पुलाव की जगह उबले चावल। 75 ग्राम पुलाव में जहां 170 कैलरीज होती हैं, वहीं 75 ग्राम उबले चावल में 105 ग्राम। * 100 ग्राम तली हुई सब्जियों में 149 कैलरीज, तो 100 ग्राम बेक की हुई सब्जियों में 50 कैलरीज होती हैं। * 150 ग्राम चिकन और फिश करी में 250 कैलरीज, तो ग्रिल किया हुए चिकन और फिश में 160 कैलरीज पाई जाती हैं। * 1 गिलास फुल क्रीम दूध में 170 तो टोंड दूध में 80 कैलरीज होती हैं।

चावल खाने के कुछ ऐसे फायदे जिन्हें कम ही लोग जानते हैं

चावल भारत के कई हिस्सों में मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है। चावल बहुत ही पौष्टिक व गुणों से भरपूर भोजन है। लेकिन कई लोग मोटापा बढऩे के डर से इसका सेवन नहीं करते हैं अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक हैं तो जानिए इसे खाने के फायदों के बारे में.... पेट में जलन हों तो- चावल के औषधीय उपयोग भी हैं, कई रोगों में यह लाभ करता है। सीने में या पेट में जलन, मूत्रविकार में नीबू के रस व नमक रहित चावल का मांड सेवन करने से लाभ होता है। अतिसार की समस्या हो तो- चावल पेट के रोग के लिए बेहतरीन औषधि माना गया है जब भी किसी का हाजमा बिगड़ जाता है तो उन्हें चावल खाने की सलाह दी जाती है। साथ ही ,उन्हें चावल में दही मिलाकर खाने की सलाह भी दी जाती है। अतिसार में यह एक बेहतरीन औषधि की तरह काम करता है। दिमाग के लिए फायदेमंद - चावल खाने से दिमागी विकास होता है और शरीर शक्तिशाली होता है। हेल्थ के लिए फायदेमंद - यह हल्का भोजन होने के कारण स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। कैंसर से लडऩे में - वैज्ञानिकों का मानना है कि चावल में ट्यूमर को दबाने वाले तत्व देखे गए हैं और शायद यही आँतों के कैंसर से बचाव का एक कारण हो अब वैज्ञानिक इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अपने शोध को आगे बढ़ा रहे हैं। पौष्टिक भोजन- जब भी चावल खाएं इस बात का ख्याल रखें कि इसमें मांड की कुछ मात्रा भी होना चाहिए क्योंकि मांड अलग कर देने से चावल के प्रोटीन, खनिज, विटामिन्स निकल जाते हैं और यह बेकार भोजन कहलाता है। मांड यानी चावल पकाते समय बचा हुआ गाढ़ा सफेद पानी होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन्स व खनिज होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। पाचन क्रिया ठीक करने में- चावल, और मूंगदाल की खिचड़ी जिसमें नमक, मिर्च, हींग, अदरक, मसाले मिलाकर बनाई गई हो उसके सेवन से शरीर को बल मिलता है, बुद्धि विकास होता है व पाचन ठीक रहता है। कब्ज होने पर- पेट साफ न हो तो चावल में दूध व शकर मिलाकर सेवन करने से दस्त के साथ पेट साफ हो जाता है।

ठंड में दस दिन तक ऐसे खाएंगे दाख यानी मुनक्का तो मिलेंगे ये BENIFITS

ठंड में ड्रायफ्रूट स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होते हैं। दाख भी ऐसा ही एक ड्रायफ्रूट है। लेकिन बड़ी दाख यानी मुनक्का छोटी दाख से अधिक लाभदायक होती है। घरेलू नुस्खे ठंड में रोजाना दस दिन तक अगर नियमित रूप से मुनक्का खाई जाए तो इसके अनेकों फायदे हैं। आयुर्वेद में मुनक्का को गले संबंधी रोगों की सर्वश्रेष्ठ औषधि माना गया है। मुनक्का के औषधीय उपयोग इस प्रकार हैं- - 250 ग्राम दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं। इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशक है। - जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो मुनक्का बीज निकालकर रात को एक सप्ताह तक खिलाएं। - भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है। - सर्दी-जुकाम होने पर सात मुनक्का रात्रि में सोने से पूर्व बीज निकालकर दूध में उबालकर लें। एक खुराक से ही राहत मिलेगी। यदि सर्दी-जुकाम पुराना हो गया हो तो सप्ताह भर तक लें। - मुनक्का का सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। इससे मल-मूत्र भी साफ हो जाता है। - शाम को सोते समय लगभग 10 या 12 मुनक्का को धोकर पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह उठकर मुनक्का के बीजों को निकालकर इन मुनक्कों को अच्छी तरह से चबाकर खाने से शरीर में खून बढ़ता है। इसके अलावा मुनक्का खाने से खून साफ होता है और नाक से बहने वाला खून भी बंद हो जाता है। मुनक्का का सेवन 2 से 4 हफ्ते तक करना चाहिए। - जिन व्यक्तियों के गले में निरंतर खराश रहती है या नजला एलर्जी के कारण गले में तकलीफ बनी रहती है, उन्हें सुबह-शाम दोनों वक्त चार-पांच मुनक्का बीजों को खूब चबाकर खा ला लें, लेकिन ऊपर से पानी ना पिएं। दस दिनों तक निरंतर ऐसा करें।

चश्मा उतर जाएगा बस रोजाना दस मिनट करें ये काम

आंख हमारी बॉडी का सबसे संवेदनशील अंग है। यही कारण है कि आंखों की सही देखभाल व केयर बहुत जरूरी है लेकिन अधिकतर लोग आजकल की बिजी लाइफस्टाइल के चलते आंखों पर कम ही ध्यान दे पाते हैं। अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक है। अगर आपकी आंखें भी कमजोर हैं। आंखों में बार-बार पानी या जाले आने की समस्या होती है तो तो रोजाना कुछ देर देवज्योतिमुदा करें। माना जाता है कि इस मुद्रा को करने से आंखों की कमजोरी दूर होती है साथ ही जिन लोगों को कम उम्र में चश्मा लग जाता है रोजाना दस से पंद्रह मिनट देवज्योति मुद्रा का अभ्यास करने से उतर जाता है। मुद्रा विधि : अपने हाथ की तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाने से देव ज्योतिमुद्रा बन जाती है। यह कुछ कुछ वायु मुद्रा जैसी है। लगभग 40-60 सेकंड तक आप इसी मुद्रा में रहने का अभ्यास करें। सुबह-शाम चार से 6 बार कर सकते हैं।

ठंड में रोजाना मूली खाने से ये 8 प्रॉब्लम्स जड़ से खत्म हो जाएंगी

मूली बहुत गुणकारी और सरलता से मिलने वाली सब्जी है। ठंड में रोजाना थोड़ी मूली को सलाद के रूप में लेना चाहिए क्योंकि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। इसके अलावा भी ठंड के मौसम में सलाद के रूप में मूली खाने के अनेक फायदे आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में... - मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। - मूली के पत्ते काटकर नींबू निचोड़ के खाने से पेट साफ होता है व स्फूर्ति रहती है - सुबह-सुबह मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। - थकान मिटाने और अच्छी नींद लाने में भी मूली काफी फायदेमंद होती है। - ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए मूली का सलाद के रूप में नियमित रूप से सेवन अच्छा माना गया है क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर को शांत करने में मूली मदद करती है। - पेट संबंधी रोगों में यदि मूली के रस में अदरक का रस और नीबू मिलाकर नियम से पियें तो भूख बढ़ती है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी कच्ची मूली फायदेमंद साबित होती है। - मूली शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों और हड्डियों को मजबूत करती है। - मूली हमारे दांतों को मजबूत करती है तथा हड्डियों को शक्ति प्रदान करती है। मूली का ताजा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली लाभ पहुंचाती है।

ये हैं मेथी खाने के SUPERB ADVANTAGES

मेथी एक ऐसी सब्जी है जो स्वादिष्ट होने के साथ ही क ई तरह के स्वास्थ्य लाभ भी देती है। मेथी की पत्तियों को सब्जी के तरह व इससे प्राप्त दानों को यानी मेथीदानों को मसाले के रूप में उपयोग में लाया जाता है। मेथी व मेथीदानें का सेवन तो हम सभी करते हैं लेकिन उसके औषधिय गुणों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं आइए आज हम आपको बताते हैं मेथी के ऐसे ही कुछ गुणों के बारे में....... लो-ब्लडप्रेशर में - मेथी की सब्जी में अदरक,गर्म मसाला डालकर खाने से निम्न रक्तचाप में फायदा होता है। एसिडिटी में बढिय़ा उपचार - डायरिया और हार्टबर्न के अलावा मेथी के रस से पेट और आंत की सभी समस्याएं दूर होती हैं। अगर आप अल्सर और एसिडिटी को ठीक करना चाहते हैं तो मेथी और मठ्ठे को घोल कर पीएं। सिर्फ यही नहीं अगर आप रोज़ सुबह खाली पेट कुछ मेथी के दानें खाएगें तो पेट के सभी रोग दूर होगें। त्वचा संबधी रोगों से निजात- अगर आपको खुजली, जलन, फोड़े-फुंसी और गांठ की समस्या है तो आपको कुछ ग्राम मेथी खाने की आवश्यकता है। न सिर्फ खानें से बल्कि इसके पेस्ट को लगाने से भी फायदा होता है। अगर रुसी की समस्या है तो बालों में मेथी और दही मिला कर लगाने से यह समस्या जल्द दूर हो जाएगी। कोलेस्ट्रॉल संतुलन- डॉक्टरों का कहना है कि यह हार्ट रोगियों के लिए एक वरदान के समान है जिसे वह रोज अपने भोजन में खा कर अपने बढे हुए कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम कर सकता है। अगर मेथी के दाने ज्यादा कड़वे हों तो उन्हें कैप्सूल के रूप में भी खाया जा सकता है। डाइबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक- रिसर्च के अनुसार यह जानकारी प्राप्त हुई है कि यह टाइप 2 के मधुमेह रोगियों के लिए काफी लाभकारी होता है। अगर रोगी रोज दिन में 6-7 मेथी के दानों का या फिर मेथी के पानी का सेवन करें तो उसका शुगर लेवल कम हो सकता है। उर्जा को बढ़ाता है- मेथी से से इंसान की यौन ऊर्जा बढ़ती है। मेथी के दाने व्यक्ति को कामोत्जेना में मदद करते हैं साथ ही अगर कोई व्यक्ति मेथी का नियमित सेवन करता है तो वो यौन रोगों से ग्रसित भी नहीं होगा। सिर की त्वचा में समस्या- मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। उसके बाद बालों को धो लें इससे रुसी और सिर की त्वचा में जो भी समस्या होगी वह दूर हो जाएगी। साथ ही मेथी के अधिक सेवन से भी बाल स्वस्थ रहते हैं। साइटिका में- आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार मेथी के बीज आर्थराइटिस और साइटिका के दर्द से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए 1 ग्राम मेथी दाना पाउडर और सोंठ पाउडर को थोड़े से गर्म पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लेने से लाभ होता है।

पेट बहुत जल्दी अंदर हो जाएगा

मोटापा आजकल एक आम समस्या बनता जा रहा है। उम्र चाहे कोई भी हो मोटापे का शिकार हर उम्र के लोग है। इसका मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व खानपान होता है कुछ लोगों में यह समस्या अनुवांशिक भी होती है। कहीं आप भी तो इस समस्या से परेशान तो नहीं। यदि हां.. तो अपनाइए इन सिंपल देसी नुस्खों को और फिर देखिए कैसे कुछ ही दिनों में मोटापा छूमंतर और पेट अंदर हो जाता है। - आश्चर्यजनक रूप से मोटापे का इलाज एक गिलास छाछ में पाया गया है। आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और योग के सम्मिलित प्रयासों से मोटापे की समस्या का 100-प्रतिशत कारगर उपाय खोज निकाला गया है। ये बेहद सरल उपाय ये हैं -प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक गिलास घर पर बनी शुद्ध छाछ पीएं, स्वाद के अनुसार थोड़ा सा काला नमक व हींग-जीरा भी मिलाया जा सकता है। -प्रतिदिन सोते समय गुनगुने पानी से एक से दो चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन करें। - मीठी और ऑयली चीजों का सेवन कम करें। - जानकार के मार्गदर्शन में प्रतिदिन सुबह खुले प्राकृतिक स्थान पर जाकर आसन और प्राणायाम का अभ्यास करें।

आसान फंडा: इसे अपना लें तो ओवरवेट नहीं होंगे

आजकल तो हर व्यक्ति फिट और चुस्त-दुरूस्त रहना चाहता है, जिसके कारण वह खासी मेहनत भी करता है लेकिन अगर आप ये फंडा याद रखें तो आप बहुत आसानी से परफेक्ट फिगर पा सकते हैं।कमर पतली करने के लिए सीधे लेट जाइए। हाथ जांघों पर रखें। फिर अपनी टांगे जमीन से छ: से सात इंच ऊपर उठाए। इस व्यायाम में हाथ जमीन को नहीं छुना चाहिए। एक और व्यायाम में पैर सीधे करके पास-पास रखिए। अब कमर पर हाथ रखकर दोंनो पैरों को बिल्कुल सीधा रखने का प्रयास कीजिए। चार-पांच सैकंड तक पैर उसी तरह रखें। यह दस बार कीजिए। इसी तरह बाएं पैर की दस बार कसरत कीजिए। अधिक से अधिक पैदल चलने से नितंब सुडौल हो जाएंगे। प्रतिदिन हथेली की सहायता से पेट के मांस को नीचे से ऊपर की ओर ले जाना चाहिए। यह क्रिया कम से कम दस मिनट तक करते रहना चाहिए। इस तरह मालिश करने से आपके पेट की मालिश से फालतू चर्बी कम हो जाएगी। इसी तरह कमर और जांघों की चरबी नहीं बढऩे देनी चाहिए।आप अपनी बॉडी से प्यार करें खाने-पीने की सही आदतें डाल लें। ध्यान रखें कि सही डाइट जल्दी डाइजेस्ट भी होती है, जिससे बॉडी सिस्टम पर एक्स्ट्रा जोर नहीं पड़ता है। आप हर निश्चित अवधि के बाद खाना खाएं, लेकिन ओवर ईटिंग से बचें। आप खाना तो हर चीज चाहती हैं, लेकिन कैलरीज बर्न करने के लिए वर्कआउट नहीं करतीं, तो आपकी सेहत पर इसका बुरा असर भी पड़ सकता है। आप अपना डेली वर्क आउट रिजीम तय कर लें और इसमें सिर से लेकर पैर तक की एक्सरसाइज करें। इससे पूरी बॉडी में ब्लड ठीक से सर्कुलेट होगा। आपके लिए 20 मिनट की एक्सरसाइज भी काफी है। आपकी बॉडी में अच्छे से ब्लड सर्कुलेट हो, दिल स्वस्थ रहे और आप अनुशासन में खाना खाएं, तो आप परफेक्ट बॉडी पा सकती हैं। यानी परफेक्ट बॉडी के लिए महीनों तक भूखा रहने और जी-तोड़ वर्क आउट करने की जरूरत नहीं है।

ठंड में रोज खाएं अखरोट होंगे ये ''BENEFITS''अखरोट है इन बीमारियों का बेजोड़ इलाज, ये हैं कुछ दमदार नुस्खे

देवताओं की भूमि हिमालय अपने अन्दर अनेक दिव्य औषधियों को समेटे हुए है। देवभूम ि शायद इन औषधीय वनस्पतियों की उपलब्धता के कारण ही प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों की साधना व तपस्या का केंद्र रही है। ऐसे ही कई गुणों को समेटे हुए एक वृक्ष जिसे हम अखरोट के नाम से जानते हैं अनेक औषधीय गुणों से युक्त होता है। जंगली अखरोट एवं कागजी अखरोट नाम की दो जातियों से जाना जाने वाला यह वृक्ष अपने फलों के कारण प्रसिद्ध है। आइए अब हम आपको इसके कुछ औषधीय प्रयोग के बारे में जानकारी देते है -अखरोट के फल के बाह्य कठोर आवरण को तोड़कर अन्दर की गिरी को 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में गाय के गुनगुने दूध से नित्य सेवन करना रसायनगुणों से युक्त अर्थात शारीरिक क्षय को रोकने वाला प्रभाव देता है। -अखरोट के पेड़ की छाल को मुंह में रखकर चबाने से मुख रोगों में लाभ मिलता है तथा फल के बाहरी कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर आग में जलाकर भस्मीकृत कर मंजन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। -अखरोट के प़ेड छाल का काढा पेट के कीड़े खत्म कर देता है। -महिलाओं में माहवारी से सम्बंधित समस्याओं में फल के कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर 20 से 25 मिली की मात्रा में शहद के साथ पिलाने से लाभ मिलता है। इसी काढ़े का प्रयोग सुबह शाम सेवन करने से मलबद्धता(कानस्टीपेशन) को दूर होता है। -अखरोट के फलों की गिरी को पांच से दस ग्राम,छुहारे बीस से तीस ग्राम और बादाम पांच ग्राम की मात्रा में एक साथ यवकूटकर गाय के घी में भूनकर प्राप्त चूर्ण में थोड़ी मिश्री मिलाकर दस ग्राम नित्य प्रात:काल सेवन, डाइबिटीज को दूर करता है। -अखरोट के फलों के कठोर आवरण को जलाकर भस्म प्राप्त करें तथा अब इसमें पांच से दस ग्राम मात्रा में गुड़ मिला दें ,अब इसे पांच से दस ग्राम की मात्रा में प्री-मेच्युर-इजेकुलेशन से पीडि़त रोगी को दें निश्चित लाभ मिलेगा। -इसकी छाल से प्राप्त काढ़े से घाव को धोने यह उसे शीघ्रता से भरने (हीलिंग ) का भी काम करता है। -पाइल्स से सम्बंधित समस्या में भी इसके तेल को गुदा में रुई में भिंगोकर रखने मात्र से लाभ मिलता है। - दांतों के लिए अखरोट के स्वास्थ्य गुणों के कारण डेंटिस्ट भी इसके सेवन की सलाह देते हैं। - यह एक ऐसा मेवा है जो खून में कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता है और पेट संबधी समस्याओं को दूर करता है. यह इस तरह बेहतर पाचन में मदद करता है और अधिक कैलोरी जलाता है। इसलिए आप दिन में 2-3 अखरोट खा कर अपना वजन कम कर सकते हैं. - अखरोट में फाइबर, विटामिन बी, मैगनेशियम और एण्टी् आक्सिडेंट्स अधिक मात्रा में होते हैं और यह बालों व त्वचा को स्वस्थ रखता है। - अखरोट के फल के बाह्य कठोर आवरण को तोड़कर अन्दर की गिरी को 10 से 20 ग्राम की मात्रा में गाय के गुनगुने दूध से नित्य सेवन करने से बुढ़ापा दूर रहता है। - यह रक्त वाहिकाओं को फैला देती हैं और मैटाबॉलिक सिंड्रोम को कम कर देता है. इससे डायबिटीज कंट्रोल में रहती है. - अखरोट कैंसर को प्राकृतिक तरीके से सही कर सकता है. इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होता है, जो कैंसर सेल को इकठ्ठा होने से रोकता है. अखरोट ब्रेस्ट कैंसर को रोकने में सबसे लाभदायक माना जाता है. इसके अलावा यह ट्यूमर को भी बनने से रोकता है। -ये तो इसके चंद प्रयोग हैं , जो हमने आपको बताए वैसे इसे कई औषधियों के साथ मिलाकर चिकित्सक के निर्देशन में लेना उपयोगी होता है!

हर नागरिक का फर्ज

एक बार चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस अपने कुछ शिष्यों के साथ एक पहाड़ी से गुजर रहे थे। एक जगह वह अचानक रुक गए। यह देख शिष्य हैरत में पड़ गए। कन्फ्यूशियस बोले, 'कहीं कोई रो रहा है।' इतना कह कर वह रोने की आवाज को लक्ष्य कर चल पड़े। शिष्य भी पीछे चले। कुछ दूर जाकर उन्होंने देखा कि एक स्त्री रो रही है। उन्होंने रोने का कारण पूछा तो स्त्री ने बताया कि इसी स्थान पर उसके पुत्र को एक चीते ने मार डाला। कन्फ्यूशियस ने कहा, 'पर तुम तो अकेली हो। तुम्हारे परिवार के और लोग कहां हैं?' स्त्री ने बताया, 'अब परिवार में है ही कौन। इसी पहाड़ी पर मेरे ससुर और पति को भी चीते ने फाड़ डाला था।' कन्फ्यूशियस ने आश्चर्य से कहा, 'तो तुम इस खतरनाक स्थान को छोड़ क्यों नहीं देती?' स्त्री बोली, 'इसलिए नहीं छोड़ती कि यहां कम से कम किसी अत्याचारी का तो शासन नहीं है। चीते का अंत तो हो ही जाएगा।' कन्फ्यूशियस ने शिष्यों की ओर देख कर कहा, 'निश्चित रूप से यह स्त्री करुणा और सहानुभूति की पात्र है, लेकिन इसकी बात ने हम लोगों को एक महान सत्य प्रदान किया है। वह यह कि अत्याचारी शासक, एक चीते से अधिक भयंकर होता है। अत्याचारी शासन में रहने से अच्छा है कि किसी पहाड़ी अथवा जंगल में रह लिया जाए, मगर यह कोई समाधान नहीं है। जनता को चाहिए कि वह अत्याचारी शासन का समुचित विरोध करे और सत्ताधारी को सुधरने के लिए विवश करे। इसे हर नागरिक अपना फर्ज समझे।'

गिरते बालों को रोकने के ये हैं कुछ बेहद खास तरीके

बालों का झडऩा आजकल एक आम समस्या है। बाल अगर थोड़े बहुत झड़े तो कोई चिंता की बात नहीं होती है। लेकिन अगर बाल बहुत अधिक झड़ रहे हों तो उनकी केयर करना जरूरी होता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ खास घरेलू उपाय जिन्हें अपनाने पर बाल नहीं गिरेंगे व घने होने लगेंगे..... - गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर उनका पेस्ट बनाइए। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगाइए और कुछ समय बाद सिर को धो लीजिए। इससे बालों का गिरना कम होगा। - दालचीनी भी बालों की समस्या को दूर करने का कारगर उपाय है। दालचीनी और शहद के को मिलाकर बालों में लगाइए। इससे बालों का झडऩा बंद होगा। - शहद कई बीमारियों को दूर करने में सक्षम है। शहद के प्रयोग से बालों का झडऩा भी रोका जा सकता है। शहद को बालों में लगाने से बालों का गिरना बंद हो जाता है। - ग्रीन टी को पीसकर बालों में लगाने से भी बाल नहीं झड़ते हैं। चाय को उबालकर छान ले और पानी से हेयर वाश करते समय बालों में डालें। ये बहुत अच्छे कंडीशनर का काम करता है। - नीम की पत्तियों को पीसकर नींबू डालकर लगाने और इसके लगातार प्रयोग से बालों का झडऩा बंद हो जाता हैं। - दही में नींबू का रस मिलाकर भी प्रयोग किया जा सकता है। नींबू के रस को दही में मिलाकर पेस्ट बना लीजिए। नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों में लगाइए, 30 मिनट बाद बालों को धुल लीजिए। बालों का गिरना कम हो जाएगा। - गिरते बालों को रोकने के लिए दही बहुत कारगर घरेलू नुस्खा है। दही से बालों को पोषण मिलता है। इसके लिए बालों को धोने से कम से कम 30 मिनट पहले बालों में दही लगाना चाहिए। जब बाल पूरी तरह सूख जाएं तो पानी से धो लीजिए।

सर्दी में रोजाना शहद खाने के 10 जबरदस्त फायदे,रोजाना बस चम्मच भर शहद और होंगे ये फायदे ही फायदे

शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाए रखने के लिए शहद का रोजाना सेवन बहुत अच्छा माना जाता है। आयुर्वेद में इसे अमृत माना गया है। यूं तो सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, लेकिन सर्दियों में तो शहद का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है क्योंकि शरीर को इससे ऊर्जा प्राप्त होती है। शहद बहुत ही लाभकारी प्राकृतिक औषधी है। इसके सेवन से शरीर निरोगी रहता है। रोजाना दो चम्मच शहद सेवन करने के अनेकों लाभ हैं। इसे खाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। इसके सेवन से खुब भूख लगती है। बुढ़ापे में इसके सेवन से जवानी सा सामथ्र्य व शक्ति मिलती है। शहद कई तरह के विटामिन्स से भरपूर है। शहद में विटामिन ए, बी, सी, पाए जाते हैं। इसके अलावा आयरन, कैल्शियम, सोडियम फास्फोरस, आयोडीन भी पाए जाते हैं। इसीलिए प्रतिदिन शहद का सेवन करने से शरीर में शक्ति और ताजगी बनी रहती है। शहद रोजाना खाने से सेहत बनती है और शरीर मोटा होता है। शरीर की दुर्बलता दूर करने के लिए रात को बिना चीनी के एक गिलास दूध में शहद डालकर पीने से शरीर सुडौल, पुष्ट व बलशाली बनता है। रोजाना एक चम्मच शहद से दिमागी कमजोरियां दूर होती है।उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में शहद कारगर है।रक्त को साफ करने यानी रक्त शुद्धि के लिए भी शहद का सेवन करना चाहिए। शहद से मांसपेशियां बलवती होती हैं। दिल को मजबूत करने, और हृदय संबंधी रोगों से बचने के लिए प्रतिदिन शहद खाना अच्छा रहता है। शहद, मलाई और बेसन का उबटन लगाने से चेहरे पर चमक आ जाती है। जबरदस्त फायदे ========== शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाए रखने के लिए शहद का रोजाना सेवन बहुत अच्छा माना जाता है। आयुर्वेद में इसे अमृत माना गया है। यूं तो सभी मौसमों में शहद का सेवन लाभकारी है, लेकिन सर्दियों में तो शहद का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है क्योंकि शरीर को इससे ऊर्जा प्राप्त होती है। - दूध में शक्कर की जगह शहद लेने से गैस नहीं बनती और पेट के कीड़े भी निकल जाते हैं। - बढ़े हुए ब्लडप्रेशर में शहद का सेवन लहसुन के साथ करना लाभप्रद होता है। - रोजाना शहद खाने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं। शहद का सेवन करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है। - शहद रोज खाने से आंखों की ज्योति बढ़ती है। आंखें स्वच्छ व चमकीली बनती है। - ठंडे पानी में शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से त्वचा का रंग साफ होता है तथा चेहरे पर लालिमा एवं कांति भी आ जाती है। - त्वचा सम्बन्धी रोग हो या कहीं जल-कट गया हो तो शहद लगाएं। जादू सा असर दिखाई - प्रतिदिन 25 ग्राम शहद दूध के साथ जरूर लें । इससे शरीर को ताकत मिलती है! - रोजाना शहद लेने से पेट के छोटे-मोटे घाव और शुरुआती स्थिति का अल्सर शहद को दूध या चाय के साथ लेने से ठीक हो सकता है। - कब्जियत में टमाटर या संतरे के रस में एक चम्मच शहद डालकर सेवन करें, लाभ होगा।

मधुमेह नहीं होता,कॉफी पीने से.......'डिप्रेशन से बचा सकती है कॉफ़ी

क्या आप मधुमेह के शिकार हैं तो एक दिन में 4 कप कॉफी पिएं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि रोज 4 कप कॉफी पीना मधुमेह के खतरे का कम कर सकता है। पहले के अध्ययनों से पता चला था कि कॉफी पीने से मुधमेह का खतरा कम होता है, लेकिन इसके परिणामों को लेकर विरोधभास था कि क्या यह कैंसर जैसी दीर्घकालीक बीमारियों को बढ़ावा देता है। अब यूरोप की एक टीम ने दावा किया है कि हर दिन सामान्य मात्रा में काफी पीने वाले लोगों में मधमेह (टाइप टू) का खतरा उन लोगों की तुलना में काफी कम हो सकता है, जो कभी-कभी इसे पीते हैं या कभी नहीं पीते। 'डिप्रेशन से बचा सकती है कॉफ़ी' कॉफ़ी का कप वैज्ञानिकों का कहना है कि कैफ़ीन के असर की वजह से डिप्रेशन में कमी हो सकती है चाय और कॉफ़ी के स्वास्थ्य पर न जाने कितने शोध हो चुके हैं और जहाँ कुछ उसे फ़ायदेमंद बताते हैं तो कुछ उसके नुक़सानदायक पहलू पर ज़ोर देते हैं. अब कॉफ़ी पर आए एक नए शोध के अनुसार एक दिन में दो या उससे अधिक कप कॉफ़ी पीने वाली महिलाओं के डिप्रेशन का शिकार होने की संभावना काफ़ी कम होती है. इससे जुड़ी और सामग्रिया अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि ऐसा प्रभाव क्यों होता है मगर शोधकर्ताओं को लगता है कि कॉफ़ी में मिलने वाली कैफ़ीन दिमाग़ पर ये असर डालती है क्योंकि कैफ़ीनमुक्त कॉफ़ी का ऐसा असर देखने को नहीं मिला. इस शोध के नतीजे आर्काइव्स ऑफ़ इंटरनल मेडिसिन में छपे हैं और इसके लिए 50 हज़ार अमरीकी महिला नर्सों का अध्ययन किया गया. विशेषज्ञ ये संबंध समझने के लिए और अध्ययन करने पर ज़ोर दे रहे हैं. उनका कहना है कि निश्चित ही अभी महिलाओं को ये सलाह देना जल्दबाज़ी होगी कि उन्हें अपना मूड ठीक रखने के लिए कॉफ़ी पीनी शुरू कर देनी चाहिए. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक दल ने 1996 से 2006 के बीच के दशक में महिलाओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखी और उनके कॉफ़ी के सेवन की मात्रा की जानकारी लेने के लिए प्रश्नावलियों का सहारा लिया. कैफ़ीन का असर इस अवधि में सिर्फ़ 2600 महिलाएँ डिप्रेशन का शिकार हुईं और उनमें से अधिकतर या तो बिल्कुल ही कॉफ़ी नहीं पीती थीं या बहुत ही कम कॉफ़ी का सेवन करती थीं. हफ़्ते में एक कप या उससे कम कॉफ़ी पीने वाली महिलाओं की तुलना जब ऐसी महिलाओं से की गई जो दिन में दो या तीन कप कॉफ़ी पीती थीं तो कॉफ़ी ज़्यादा पीने वाली महिलाओं में डिप्रेशन होने का ख़तरा 15 प्रतिशत तक कम पाया गया. वहीं चार या उससे अधिक कप कॉफ़ी पीने वाली महिलाओं में ये ख़तरा 20 प्रतिशत से भी कम हो गया. अध्ययन के अनुसार नियमित रूप से कॉफ़ी पीने वालों के धूम्रपान करने या शराब पीने की संभावना भी ज़्यादा थी और उनके चर्च जाने या सामुदायिक कार्यों में हिस्सेदारी कम रहती थी. उन महिलाओं का वज़न बढ़ जाने या उनमें उच्च रक्त चाप की समस्या भी नहीं देखी गई. शोधकर्ताओं के अनुसार ये अध्ययन पहले के उन शोधों के अनुरूप ही पाए गए हैं जिनके अनुसार कॉफ़ी पीने वालों की आत्महत्या की दर काफ़ी कम होती है. शोधकर्ता इसकी वजह कैफ़ीन को मान रहे हैं.

ठंड में ऐसे करें तिल का USE, HEALTH बन जाएगी

वैसे तो तिल या उसका तेल दोनों ही हमारी बॉडी के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। लेकिन ठंड में तिल का सेवन बॉडी के लिए बहुत ज्यादा लाभदायक होता है। तिल में कैल्शियम, आयरन, ऑक्जेलिक एसिड, अमीनो एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी, सी तथा ई की प्रचुर मात्रा होता है। काले तिल व सफेद तिल दोनों का ही उपयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ठंड में तिल के उपयोग व इसे खाने से होने वाले फायदों के बारे में.... - प्रतिदिन दो चम्मच काले तिल को चबाकर खाइए और उसके बाद ठंडा पानी पीजिए। इसका नियमित सेवन करने से पुराना बवासीर भी ठीक हो जाता है। - बच्चा सोते समय पेशाब करता हो़ तो भुने काले तिलों को गुड़ के साथ मिलाकर उसका लड्डू बना लीजिए। बच्चे को यह लड्डू हर रोज रात में सोने से पहले खिलाइए, बच्चा सोते वक्त पेशाब नही करेगा। - पेट दर्द- 20-25 ग्राम साफ चबाकर उपर से गर्म पानी पिलाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है। - कब्ज होने पर 50 ग्राम तिल भूनकर उसे कूट लीजिए, इसमें चीनी मिलाकर खाइए। इससे कब्ज दूर हो जाती है। - खांसी आने पर तिल का सेवन कीजिए खांसी ठीक हो जाएगी। तिल व मिश्री को पानी में उबाल कर पीने से सूखी खांसी भी दूर हो जाती है। - एक स्टडी के मुताबिक ठंड में तिल व तिल के तेल का सेवन डायबिटीज के पेशेन्ट्स के लिए दवा का काम करता है। - ठंड में तिल गुड़ दोनो समान मात्रा में लेकर मिला लें।उसके लड्डू बना ले। प्रतिदिन 2 बार 1-1 लड्डू दूध के साथ खाने से मानसिक दुर्बलता एंव तनाव दूर होते है। शक्ति मिलती है। कठिन शारीरिक श्रम करने पर सांस फूलना जल्दी बुढ़ापा आना बन्द हो जाता है। - तिल का तेल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। वाइरस, एजिंग और बैक्टीरिया से शरीर की रक्षा करता है। इसीलिए ठंड में तिल का सेवन जरूर करना चाहिए। - यदि सर्दी के कारण सूखी खांसी हो तो 4-5 चम्मच मिश्री एंव इतने ही तिल मिश्रित कर ले। इन्हे एक गिलास मे आधा पानी रहने तक उबाले। इसे दिनभर में तीन बार लें।

खाने के बाद चीकू खाने से हो जाता है इन बीमारियों का इलाज

चीकू एक ऐसा फल है जो हर मौसम में आसानी से मिल जाता है और बहुत स्वाद भी होता है। भोजन के बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ प्रदान करता है। चीकू के फल में 71 प्रतिशत पानी, 1.5 प्रतिशत प्रोटीन, 1.5 प्रतिशत चर्बी और साढ़े पच्चीस प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट है। इसमे विटामिन ए अच्छी मात्रा में तथा विटामिन सी कम मात्रा में है। चीकू के फल में 14 प्रतिशत शर्करा भी होती है। इसमें फास्फोरस तथा लौह भी काफी मात्रा में होता है एवं क्षार का भी कुछ अंश होता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं चीकू खाने के कुछ ऐसे ही फायदों के बारे में .... गर्मियों में चीकू खाने से शरीर में विशेष प्रकार की ताजगी और फुर्ती आती है। इसमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है। यह खून में घुलकर ताजगी देती है। चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं। चीकू की छाल बुखार नाशक होती है। इस छाल में टैनिन होता है। चीकू के फल में थोड़ी सी मात्रा में संपोटिन नामक तत्व रहता है। चीकू के बीज मृदुरेचक और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में सापोनीन एवं संपोटिनीन नामक कड़वा पदार्थ होता है। चीकू के फल में 71 प्रतिशत पानी, 1.5 प्रतिशत प्रोटीन, 1.5 प्रतिशत चर्बी और साढ़े पच्चीस प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट है। इसमे विटामिन ए अच्छी मात्रा में तथा विटामिन सी कम मात्रा में है। चीकू के फल में 14 प्रतिशत शर्करा भी होती है। तथा इसमें फस्फोरस तथा लौह भी काफी मात्रा में होता है एवं क्षार का भी कुछ अंश होता है। चीकू शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रूचिकारक हैं। भोजन के बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ प्रदान करता है। चीकू हमारे ह्रदय और रक्तवाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है। चीकू कब्ज और दस्त की बीमारी को ठीक करने बहुत सहायक होता है।चीकू खाने से के होने का खतरा कम होता है। चीकू में होता है जो की फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है।चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।यह हृदय रोगों और गुर्दे के रोगों को भी होने से रोकता है।यह ऊर्जा का एक अच्छा स्त्रोत है, क्योंकि इसके गूदे में 14 प्रतिशत मात्रा शर्करा की होती है। इसमें पर्याप्त मात्रा में कैरोटिन और अल्प मात्रा में आयरन व विटामिन भी पाया जाता है। डायबिटीज के रोगी इसे न सेवन करें तो ठीक है। -चीकू हमारे दिल और रक्तवाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है। - यह गुर्दे के रोगों को भी होने से रोकता है। - चीकू फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है। - कब्ज और दस्त की बीमारी को ठीक करने बहुत सहायक होता है। - चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।

मोटापा जल्दी से घटाना है तो ऐसे खाएं लहसुन

मान्यता है कि देव-दानव के बीच हुए अमृत युद्ध में अमृत की कुछ बूंदे धरती पर बिखर गई उन्हीं बूंदों से धरती पर जिस पौधे की उत्पति हुई। वह लहसुन का पौधा था। इसलिए कहा जाता है कि लहसुन एक अमृत रासायन है। लेकिन चूंकी माना जाता है कि इसका प्रयोग करने वाले मनुष्य के दांत, मांस व नाखून बाल, व रंग क्षीण नहीं होते हैं। - यह पेट के कीड़े मारता है व खांसी दूर करता है। लहसुन कब्ज को मिटाने वाला व आंखों के रोग दूर करने वाला माना गया है। अगर आप थुलथुले मोटापे से परेशान हैं तो अपनाएं नीचे लिखे लहसुन के अचूक प्रयोग- - लहसुन की दो कलियां भून लें उसमें सफेद जीरा व सौंफ सैंधा नमक मिलाकर चूर्ण बना लें। इसका सेवन सुबह खाली पेट गर्म पानी से करें। - लहसुन की चटनी खाना चाहिए और लहसुन को कुचलकर पानी का घोल बनाकर पीना चाहिए। - लहसुन की पांच-छ: कलियां पीसकर में भिगो दें। सुबह पीस लें। उसमें भुनी हिंग और अजवाइन व सौंफ के साथ ही सोंठ व सेंधा नमक, पुदीना मिलाकर चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण रोज फांकना चाहिए। कुछ नुस्खे: छोटे लहसुन के बड़े फायदे...इन बीमारियों में है रामबाण ------------------------------------------------------------------- लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है। 1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है। 2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है। 3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है। 4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है। 5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। 6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे। 7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है। 8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है। 9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है। 10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।

घर पर बनाएं ये आयुर्वेदिक मंजन कैसा भी हो दांत का दर्द ठीक हो जाएगा

दांत का दर्द एक ऐसा दर्द है जो किसी भी उम्र में पेरशान कर सकता है। दांत का दर्द होने पर अधिकतर लोग बहुत ज्यादा एलोपेथिक दवाईयां ले लेते हैं जो कि शरीर के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। इसीलिए अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो घर पर ये आयुर्वेदिक मंजन बनाकर ट्राय करें। इससे आपको दांत के दर्द से जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा। - काली मिर्च 10 ग्राम,सोनगेरु 20 ग्राम और नौसादर 10 ग्राम लेकर महीन पीसकर पाउडर की तरह चूर्ण बना लें। इसे मंजन की तरह दांतों पर मलने से दांत के दर्द से छुटकारा मिलता है। - मिट्टी के तेल में कपूर मिलाकर लगाने से दांत का दर्द जल्द ही शंात हो जाता है। - नाकुली की पत्तियो को पीसकर टिकिया बना लें और जिस ओर के दांत में दर्द हों उसके विपरीत हाथ वाले कंधे पर ये टिकिया रखकर कपड़े से बांध दे। निश्चित ही दांत की पीड़ा में फायदा होगा। - बादाम के छिलकों की राख 20 ग्राम, 20 ग्राम माजूफल 20 ग्राम, सेंधा नमक 20 ग्राम, अजवाइन सत्व 3 ग्राम और अफीम 3 ग्राम सभी को पीसकर महीन पाउडर बना लें, इसे मंजन की तरह दांतों पर लगाने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।

20 November 2012

♥ लकड़ी का कटोरा ♥

http://www.goswamirishta.com एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु – बेटे के यहाँ शहर रहने गया . उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोर हो चुका था , उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था . वो एक छोटे से घर में रहते थे , पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे . लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कत होती थी . कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाते तो कभी हाँथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता . बहु -बेटे एक -दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता की इस काम से चिढ होने लगी . “ हमें इनका कुछ करना पड़ेगा ”, लड़के ने कहा . बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली ,” आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा रहेंगे , और हम इस तरह चीजों का नुक्सान होते हुए भी नहीं देख सकते .” अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के कोने में लगा दिया , अब बूढ़े पिता को वहीँ अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था . यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया , ताकि अब और बर्तन ना टूट -फूट सकें . बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठ कर खाते और जब कभी -कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते . यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता , वो उनकी छोटी से छोटी गलती पर ढेरों बातें सुना देते . वहां बैठा बालक भी यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता , और अपने में मस्त रहता . एक रात खाने से पहले , उस छोटे बालक को उसके माता -पिता ने ज़मीन पर बैठ कर कुछ करते हुए देखा , ”तुम क्या बना रहे हो ?” पिता ने पूछा . बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया , “ अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ , ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खाना खा सकें .” ,और वह पुनः अपने काम में लग गया . पर इस बात का उसके माता -पिता पर बहुत गहरा असर हुआ . उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और आँखों से आंसू बहने लगे . वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि अब उन्हें क्या करना है . उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये , और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया .

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ?

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ? संतोंमें भी स्तर होते हैं , गुरुपद के संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर) से शक्तिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं, सद्गुरु पदके संत (80% आध्यात्मिक स्तर) उसके अगले स्तरके होते हैं और उनसे आनंदके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं और वह वह शक्तिके स्पंदनसे अधिक सूक्ष्म होते हैं और सबसे ऊपर परात्पर पदके संत (९० % आध्यात्मिक स्तर) के होते हैं उनसे शांतिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं | सभी गुरु संत होते हैं, परन्तु सभी संत गुरु नहीं होते | गुरु पद एक कठिन पद होता है और कई बार संत इस पदको स्वीकार करने को इच्छुक नहीं होते और वे आत्मानंदमें रत रहना पसंद करते हैं | ऐसे संतोके मात्र अस्तित्वसे ब्रह्माण्डकी सात्त्विकता बनी रहती है | कुछ संत भक्तोंके अध्यात्मिक कष्ट दूर तो करते हैं, पर किसी को शिष्य स्वीकार कर उसे मोक्ष तक ले जानेको इच्छुक नहीं होते क्योंकि संतोंको पता होता है मात्र शिष्य बनानेसे काम समाप्त नहीं होता, शिष्य जब तक मोक्षको प्राप्त नहीं होता, तब तक वह उत्तरदायित्व गुरुका होता है; अतः कई गुरु शिष्य बनाते समय बहुत सतर्क रहते हैं और योग्य पात्रको ही शिष्य स्वीकार करते हैं | मात्र गुरु पद स्वीकार करनेके पश्चात् संतोकी प्रगति मोक्षकी द्रुत गतिसे होती है | ईश्वर प्रत्येक संतको गुरुके लिए नहीं चुनते, जिनमे दूसरोंको सिखानेकी विशेष क्षमता हो, मां समान मातृत्व, क्षमाशीलता और प्रेम हो, उसे ही सद्गुरु पद पर आसीन करते हैं | What is the difference between a saint and a Guru? Saints too are at different levels as per their sadhana, saints of the status of Guru (70% spiritual level) emit vibrations of Shakti (energy); saints at the status of Sadguru (spiritual master) at 80% spiritual level, are saints of the next higher level and they emit vibrations of bliss. These vibrations are even more subtle than vibrations of Shakti. The saints of the highest status – Paratpar level - are at a spiritual level of more than 90% and they project vibrations of peace. All Gurus are saints, but all saints are not Gurus. The status of a Guru is a difficult one and many a time, saints are not willing to accept this status because they like to remain in a state of bliss. The mere existence of such saints maintains the Sattvikta (purity) of the universe. Some saints remove the spiritual problems of devotees, but they are not desirous of accepting someone as their disciple and take one to Moksha (liberation), for saints know that merely accepting one as a disciple is not enough. Till the time the disciple attains Moksha, it continues to be a responsibility of the Guru. Hence, many Gurus remain alert while accepting disciples and only accept eligible seekers as disciples. Merely by accepting the status of a Guru, saints make progress towards Final Liberation at a rapid pace. God does not select every saint to be a Guru, He confers the status of a Sadguru only upon those who have a special ability to teach others, possess a maternal affection and are forgiving in nature

ठंड में बनाना हो सेहत तो ये हैं ...7 आसान तरीके

ठंड को सेहत बनाने का मौसम माना जाता है। कहते हैं इस मौसम में अगर कोई भी अपना खान-पान अच्छा रखें तो सालभर बीमारियां नहीं आती साथ ही सेहत भी बन जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं खान-पान से जुड़े पांच ऐसे ही नुस्खों के बारें में जिन्हें अपनाकर आप भी अपनी सेहत बना सकते है। - रोज सुबह खाली पेट एक सेवफल खाने से शरीर स्वस्थ रहती है। - वसंतकुसुमकर रस शरीर को न सिर्फ आंतरिक उर्जा देता है बल्कि वजन को जल्दी बढ़ाने में भी लाभकारी है। - ठंड में सुबह हेल्थ के लिए भारी नाश्ता अच्छा माना गया है। इसीलिए ठंड में सुबह भारी नाश्ता करना चाहिए। - रोजाना सुबह एक चम्मच च्यवनप्राश जरूर खाना चाहिए। यह ठंड में वजन बढ़ाने के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक औषधी है। यह लगभग सभी के लिए हेल्दी रहता है। इससे न सिर्फ शारीरिक उर्जा बढ़ती है बल्कि मेटाबोलिज्म भी मजबूत रहता है। - आयुर्वेद के अनुसार ठंड में शतावरी कल्प के सेवन को आंखों की रोशनी तो बढ़ती ही है। साथ ही सेहत बनती है व वजन बढऩे लगता है। - शीलाजीत को दूध से लेने से जल्दी असर करता है और वजन प्रबंधन में भी मदद करता है - ठंड में रोजाना द्रकशरिष्ठा को लगातार एक महीने तक गर्म या ठंडे पानी में शहद के साथ मिलाकर लेना भी शरीर के लिए अच्छा रहता है।

आलोचनाओं से विचलित न

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ। किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ मेंझाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वहहिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कद म बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया। ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ मेंही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगीको गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। अतः याद रखो !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए १)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहो। २)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो ..

सात प्रकार के विवाह

http://www.goswamirishta.com ********सात प्रकार के विवाह********** " ब्रह्मविवाह" " आर्षविवाह" " प्रजापत्य-विवाह" " असुर-विवाह" " गान्धर्व-विवाह" " पैशाच-विवाह " " राक्षस-विवाह" ! विवाह का वर्णन करते हुये ईश्वर कहते हैं----अपने समान गोत्र तथा समान प्रवर में उत्पन्न हुई कन्या का वंरण न करे! पिता से ऊपर की सात पीढ़ियों के साथ तथा माता से मंच पीढ़ियों के बाद की ही परम्परा में उसका जन्म होना चाहिये! उत्तम कुल तथा अच्छे स्वभाव के सदाचारी वर को घर पर बुला कर उसे कन्या का दान देना " ब्रह्मविवाह" कहलाता है! वर के साथ एक गाय और एक बैल लेकर जो कन्यादान किया जाता है, उसे " आर्षविवाह" कहते हैं! जब किसी के मांगने पर उसे कन्या दी जाती है तो वह " प्रजापत्य-विवाह" कहलाता है! कीमत लेकर कन्या का देना " असुर-विवाह" है! [ इसे नीच श्रेणी का विवाह कहा गया है] वर और कन्या जब स्वेच्छापूर्वक एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं तो उसे " गान्धर्व-विवाह" कहलाता है तथा कन्या को धोखा देकर उड़ा लेना " पैशाच-विवाह " माना है! युद्ध के द्वारा कन्या के हर लेने से " राक्षस-विवाह" कहलाता है! ..................................................................... भगवान् हयग्रीव जी [विष्णु] कहते हैं---"ॐ ॐ हूं फट विष्णवे स्वाहा!" इस प्रकार मन्त्र-जप करके सो जाने पर यदि अच्छा स्वप्न हो तो सब शुभ होता है और यदि बुरा स्वप्न हुआ तो नरसिंह मन्त्र से हवन करनेपर शुभ होता है!

8 November 2012

दशनामियों के दो अंग

http://www.goswamirishta.com दशनामियों के दो अंग होते है शस्त्रधारी व अस्त्रधारी,शस्त्रधारी शस्त्रों आदि का अध्यन करके अपना अध्यातिमिक विकास करते है व अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते है । इन नागा सन्यासियों का धार्मिक ही नही राजनैतिक महत्व भी है इनकी स्थापना जिन उद्देश्य को लेकर हई थी उनमें इन्होने अपने पराक्रम साहस का अभूतपूर्व परिचय दिया,उत्तर मुगलकालीन भारत में इन नागे सन्यासियों ने अपने सैनिक कार्य में ख्याति पाई ही साथ ही उन्होने उस समय के वाणिज्य व्यवसाय में भी अच्छा हाथ बंटाया व्यापारिक केन्द्रों में अपने मठ स्थापित किये, नागा संन्यासियों ने राजनैतिक एंव व्यवसायिक दोनो ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किये । सनातन धर्म की रक्षा के लिए ही नागा सन्यासियों का जन्म हुआ यह सब आप पढ चुके है अत्याचारी व हिन्दु का दमन करने वाले मुस्लिम शासको के साथ इन्होने कठिन से कठिन लडाइयां लडी ............... कुछ प्रमुख युद्व इस प्रकार है काशी के ज्ञानवापी का युद्व - 1664 ई0 में औरंगजेब ने काशी ज्ञानवापी एंव विश्वनाथ के मन्दिर पर आक्रमण करके अपने सेनापति मिर्जा अली तुंरग खां एंव अब्दुल अली को विशाल सेना के साथ काशी भेजा, इस आक्रमण के भय से काशी में सर्वत्र हाहाकार मच गया जो रक्षा कर सकते थे वह भी आक्रमण्कारियों के साथ मिल गये ऎसे में नागा सन्यासियों ने अपने शस्त्रों के भयानक प्रराहों से उनको पूर्णतया पराजित कर वहां से भगा दिया इस युद्व में नागा सन्यासियों ने विश्वनाथ की गद्दी की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रख औरगजेब की सेना पर विजय प्राप्त की खुद को योद्वा प्रमाणित कर महान यश को प्राप्त किया । औरंगज़ेब के आतातायी सेनापतियो ने हरिद्वार तीर्थ की पवित्रता को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया तो पंचायती अखाडा के महानिवार्णी के नागा सन्यासियों ने अपने नेताओं के साथ हरिद्वार पहुँच कर आक्रमणकारियों से युद्व करने के लिए शंखनाद किया और अपना झंडा तथा निशान स्थापित करके मुगलसेना का संहार करना आरम्भ कर दिया इसमें मराठा सेना ने भी उनका साथ दिया इस तरह नागाओ ने हरिद्वार की रक्षा की । पुष्कर राजतीर्थ की रक्षा -पुष्कर के दोना पवित्र तीर्थो पर मुसलमान गुजरों की खानाबदोश लुटेरी जाति ने अधिकार करके उसकी पवित्रता को नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन उसी समय दशनाम नागा सन्यासियों के एक दल ने आक्रमण करके उन गुजरों को पराजित करके वहां से भगा दिया व पुष्कर नगर ब्राहृमणों को सौप दिया । जिस समय मुगलों के शाही तक्ष्त पर अहमदशाह बैठा था उसन अवध के नवाब सफदर जंग को अपना वजीर बनाया था ।इस नियुक्ति के कारण ही बंगश अफगान उसके विरोधी हो गये वह जनता पर निरंतर अत्याचार करके भंयकर आपत्ति का सृजन कर रहे थे ऎसी परिस्थितियों में अखाडे के नागा सन्यासियों के द्वारा ही नगर एवं जनता की रक्षा हई ।श्री राजेन्द्रगिरी उस समय नागा सन्यासयों की विशाल सेना के के अधिनायक थे उन्होने बंगश अफगानो को देखकर ही दुर्ग-रक्षक की याचना पर उसको भी अफगानों के भय से मुक्त किया ।राजेन्द्र गिरी, उमराव गिरी, अनूपगिरी ,एतबारपुरी ,नीलकण्ठ गिरी आदि के नेतृत्व में सनातन धर्म की रक्षा प्रकट होती रही ।जिन राजाओ को इनकी सहायता मिलती थी बदले में उन राजाआ द्वारा इन्हे वार्षिक अनुदान का लाभ भी मिलता था।इसके अतिरिक्त अन्य कितने ही देशी राज्यों को इन नागा सन्यासियों न सहायता दी थी नागा सन्यासियों ने ही राजपुत सेना के दोष दुर करने सहायता की थी इसके साथ ही इनकी सेना को स्थिरता भी प्रदान की थी इनके इन योगदानों को कतिपय भुलाया नही जा सकता ।

सौंफ खाने के BENEFITS--

http://www.goswamirishta.com सौंफ सिर्फ भोजन का स्वाद बढ़ाने का ही काम नहीं करती है। खाने के बाद थोड़ी सौंफ चबाने के अनेक फायदे हैं। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे त त्व होते हैं।पेट के कई विकारों जैसे मरोड़, दर्द और गैस्ट्रो विकार के उपचार में यह बहुत लाभकारी है। बड़ा हो या छोटा बच्चा यह हर किसी के स्वास्थ्य के लिए बड़ी लाभकारी है। 1. उल्टी प्यास जी मिचलाना जलन पेटदर्द व पित्तविकार मरोड़ आदि में सौंफ का सेवन बहुत लाभकारी होता है। 2. यदि पेट में मरोड़ होने से परेशान हैं तो सौंफ कच्ची-पक्की करके चबाएं। आराम मिलेगा। 3. सौंफ का अर्क दस ग्राम शहद मिलाकर लें। खाँसी में तत्काल आराम मिलेगा। 4. बेल का गूदा 10 ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह-शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है और अतिसार में लाभ होता है। 5. दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है। 6. अस्थमा और खांसी के उपचार में सौंफ सहायक है। 7. गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है। 8. अगर गले में खराश हो जाए तो सौंफ चबाना चाहिए। सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला भी साफ हो जाता है। 9. रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा में चमक आती है। 10. 5-6 ग्राम सौंफ लेने से लीवर और आंखों की ज्योति ठीक रहती है। अपच संबंधी विकारों में सौंफ बेहद उपयोगी है। बिना तेल के तवे पर तली हुई सौंफ और बिना तली सौंफ के मिक्चर से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है। 11. सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आँखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।

Magical Health Benefits of " Wheatgrass Juice "

http://www.goswamirishta.com ( If You drink only 1 or 2 ounces of wheat-grass juice in a day, it will provide you enough Energy required for the day. ) 1 ) Anti Cancer : wheatgrass is high in chlorophyll, which is capab le of kill cancer cells. It deals with cancer is great due to it contains chlorophyll, which has practically the same molecular structure as hemoglobin. Chlorophyll boosts hemoglobin production, sense more Oxygen gets to the cancer. Selenium and Laetrile are other properties in wheatgrass, both are anticancer. 2 ) It boosts the İmmune System and the Nervous System. Chlorophyll and Selenium, moreover, help builds the İmmunity System. 3 ) Natural Detox : Detoxification of the body, blood and organs. It purifies the Blood and Cleanses the Kidneys, Liver and Urinary Tract. 4 ) The chlorophyll in wheat-grass also has Antibacterial drug properties, that can halt the growth of harmful bacteria in the body. 5 ) Wheat-grass juice is suitable for Diabetics as it regulates blood sugar levels. 6 ) It enhances the capillaries and reduces High Blood Pressure. 7 ) Weight Loss : It is an appetite suppressant. Wheatgrass juice is full of chlorophyll and protein, which restrain the breakdown of protein. Therefore, wheatgrass helps you to feel full of a long time since ingestion.The high nutritional merit of wheatgrass juice also puts up to feel appeased after drinking it. It is acculturated quickly by the body, which as well contributes to hunger for satisfaction. Wheatgrass juice provides energy, which helps motivates you to exercise and be more active, putting up to weight loss and perpetuation.

अनार का जूस घटा सकता है चर्बी

http://www.goswamirishta.com * रोज एक गिलास अनार का जूस पीजिए। अनार का रस पेट पर जमी चर्बी तथा कमर पर टायर की तरह लटकते मांस को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। * अपच : यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें। * प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। * दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है। * अनार कब्ज दूर करता है, मीठा होने पर पाचन शक्ति बढ़ाता है। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है। * अत्यधिक मासिक स्राव में : अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण एक चम्मच फाँकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रक्त स्राव रुक जाता है। * मुँह में दुर्गंध : मुँह में दुर्गंध आती हो तो अनार का छिलका उबालकर सुबह-शाम कुल्ला करें। इसके छिलकों को जलाकर मंजन करने से दाँत के रोग दूर होते हैं। * अनार आपका मूड अच्छा करता है और साथ ही याददाश्त बढ़ाता है। तनाव से भी आपको निजात दिलाता है। * अनार का रस वृद्धावस्था में सठिया जाने के रोग की संभावना भी घटाता है। * अनार में लोहा की भरपूर मात्रा होती है, जो रक्त में आयरन की कमी को पूरा करता है। * अनार के जूस को खाली पेट मे पी सकते है और यह सफेद दाग मे यह फायदा करता है * उच्च रक् तचाप को घटाता है, सूजन और जलन में राहत पहुँचाता है, गठिया और वात रोग की संभावना घटाता और जोड़ों में दर्द कम करता है, कैंसर की रोकथाम में सहायक बनता है, शरीर के बुढ़ाने की गति धीमी करता है और महिलाओं में मातृत्व की संभावना और पुरुषों में पुंसत्व बढ़ाता है। अनार को त्वचा के कैंसर, स्तन-कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि के कैंसर और पेट में अल्सर की संभावना घटाने की दृष्टि से भी विशेष उपयोगी पाया गया है। * बच्चों की खाँसी, अनार के छिलकों का चूर्ण आधा-आधा छोटा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से मिट जाती है। ************************************** हानिकारक सभी प्रकार के अनार शीत प्रकृति वालों के लिये हानिकारक होता है। मीठा अनार बुखार वालों को खट्टा और फीका अनार सर्द मिजाज वालों के लिए हानिकारक हो सकता है। *******************************

वेदों का इतिहास जानें यही है सनातन धर्म के धर्मग्रंथ

http://www.goswamirishta.com ।।ॐ।। वेद 'विद' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना, ज्ञाता या जानने वाला; मानना नहीं और न ही मानने वाला। सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य। जाँचा-परखा मार्ग। इसी में संकलित है 'ब्रह्म वाक्य'। WD वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। वेद वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। विद्वानों ने संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं। बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं। संहिता : मन्त्र भाग। वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है। जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध हो उठता है। ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है। वेदों के मंत्रों की व्याख्या है। यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ। आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : (1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार। उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण वेदांत कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं। मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।

वैदिक काल

http://www.goswamirishta.com प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं। वेद के विभाग चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई। ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन। यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल। सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है। अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है। ND उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है।

छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)-

http://www.goswamirishta.com (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प। छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक। ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत। वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं। आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया- (1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक। वेदों का सार है उपनिषदें और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है। इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं। स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है। वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है। विद्वानों ने वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है। ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है और वेदों को ईश्वर वाक्य। वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है। ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि उन्होंने पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा, सुना और परखा। मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्‍भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है। श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते। तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥ भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन की गति को मापा गया है। ऋषि-मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया।।। ॐ ।।

हरा धनिया

http://www.goswamirishta.com हरा धनिया मसाले के रूप में व भोजन को सजाने या सुंदरता बढ़ाने के साथ ही चटनी के रूप में भी खाया जाता है। हमारे बड़े-बुजूर्ग इसके औषधिय गुणों को जानते थे इसीलिए प्राचीन समय से ही धनिए का उपयोग भारतीय भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरे धनिए के कुछ ऐसे ही औषधिय गुणों के बारे में... - इसके एंटीसेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है इसीलिए अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो धनिए की हरी पत्तियों को पीसकर उसमें चुटकीभर हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जीमा, सुखापन और एलर्जी से राहत दिलवाता है। - आयरन से भरपूर होने के कारण यह एनिमिया को दूर करने में मददगार होता है। एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, सी और कई मिनरलों से भरपूर धनिया कैंसर से बचाव करता है। - हरा धनिया की चटनी बनाकर खाई जाती है क्योंकि जो हमाइसको खाने से नींद भी अच्छी आती है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। यह इंसुलिन बढ़ाता है और रक्त का ग्लूकोज स्तर कम करने में मदद करता है। - धनिया की पत्तियों में एंटी टय़ुमेटिक और एंटी अर्थराइटिस के गुण होते हैं। यह सूजन कम करने में बहुत मददगार होता है, इसलिए जोड़ों के दर्द में राहत देता है। - हरा धनिया वातनाशक होने के साथ-साथ पाचनशक्ति भी बढ़ाता है। धनिया की हरी पत्तियां पित्तनाशक होती हैं। पित्त या कफ की शिकायत होने पर दो चम्मच धनिया की हरी-पत्तियों का रस सेवन करना चाहिए।

रुद्राक्ष क्या है ?

http://www.goswamirishta.com रुद्राक्ष एक फल की गुठली है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। रुद्राक्ष शिव का वरदान है, जो संसार के भौतिक दु:खों को दूर करने के लिए प्रभु शंकर ने प्रकट किया है। रुद्राक्ष के नाम और उनका स्वरूप:: एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, द्विमुखी श्री गौरी-शंकर, त्रिमुखी तेजोमय अग्नि, चतुर्थमुखी श्री पंचदेव, षष्ठमुखी भगवान कार्तिकेय, सप्तमुखी प्रभु अनंत, अष्टमुखी भगवान श्री गेणश, नवममुखी भगवती देवी दुर्गा, दसमुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र तथा चौदहमुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं। एकमुखी रुद्राक्ष- ऐसा रुद्राक्ष जिसमें एक ही आँख अथवा बिंदी हो। स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है। द्विमुखी रुद्राक्ष- सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है। त्रिमुखी रुद्राक्ष- ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है। चतुर्थमुखी रुद्राक्ष- धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला होता है। पंचमुखी रुद्राक्ष- सुख प्रदान करने वाला। षष्ठमुखी रुद्राक्ष- पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता होता है। सप्तमुखी रुद्राक्ष- दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष- आयु एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है। नवममुखी रुद्राक्ष- मृत्यु के डर से मुक्त करने वाला होता है। दसमुखी रुद्राक्ष- शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष- विजय दिलाने वाला, ज्ञान एवं भक्ति प्रदान करने वाला होता है। बारह मुखी रुद्राक्ष- धन प्राप्ति कराता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष- शुभ व लाभ प्रदान कराने वाला होता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष- संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।

कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

http://www.goswamirishta.com एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए ह ैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा। कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भी दाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी द ाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।' सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुई है। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभ से पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?' शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।' उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके। दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

न सुख, न दुख, केवल समभाव

http://www.goswamirishta.com फूल आते हैं, चले जाते हैं. कांटे आते हैं, चले जाते हैं. सुख आते हैं, चले जाते हैं. दुख आते हैं, चले जाते हैं. जो जगत के इस ‘चले जाने’ के शाश्वत नियम को जान लेता है, उसका जीवन क्रमश: बंधनों से मुक्त होने लगता है. एक अंधकारपूर्ण रात्रि में कोई व्यक्ति नदी तट से कूदकर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था. वर्षा के दिन थे और नदी पूर्ण पर थी. आकाश में बादल घिरे थे और बीच-बीच में बिजली चमक रही थी. वह व्यक्ति उस देश का बहुत धनी व्यक्ति था, लेकिन अचानक घाटा लगा और उसकी सारी संपत्ति चली गई. उसके भाग्य का सूरज डूब गया था और उसके समक्ष अंधकार के अतिरिक्त और कोई भविष्य नहीं था. ऐसी स्थिति में उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया था. किंतु वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पर पहुंचने को हुआ कि किन्हीं दो बूढ़ी लेकिन मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया. तभी बिजली चमकी और उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है. उस वृद्ध ने उससे इस निराशा का कारण पूछा और सारी कथा सुनकर वह हंसने लगा और बोला, ”तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे?” वह व्यक्ति बोला, ”हां, मेरा भाग्य-सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था और अब सिवाय अंधकार के मेरे जीवन में और कुछ भी शेष नहीं है.” वह वृद्ध फिर हंसने लगा और बोला, ”दिन के बाद रात्रि है और रात्रि के बाद दिन. जब दिन नहीं टिकता, तो रात्रि भी कैसे टिकेगी? परिवर्तन प्रकृति का नियम है. ठीक से सुन लो – जब अच्छे दिन नहीं रहे, तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे. और जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, वह सुख में सुखी नहीं होता और दुख में दुखी नहीं. उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है, जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है.” सुख और दुख को जो समभाव से ले, समझना कि उसने स्वयं को जान लिया. क्योंकि, स्वयं की पृथकता का बोध ही समभाव को जन्म देता है. सुख-दुख आते और जाते हैं, जो न आता है और न जाता है, वह है, स्वयं का अस्तित्व, इस अस्तित्व में ठहर जाना ही समत्व है.

26 September 2012

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25 September 2012

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अलग-अलग देवता हैं श्री गणेश और गणपति!!


हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रसंग है कि भगवान शिव के विवाह में सबसे पहले गणपति की पूजा हुई थी। इसमें सांसारिक नजरिए से एक जिज्ञासा यह पैदा होती है जब भगवान गणेश शिव-पार्वती के पुत्र हैं तो उनके विवाह क े पहले ही उनकी पूजा कैसे की गई? दरअसल लोक मान्यताओं में गणेश और गणपति एक ही देवता है। है। किंतु धर्म ग्रंथ में गणेश और गणपति को दो अलग-अलग रूप के बारे में बताया गया हैं। जानते हैं यह रोचक तथ्य -

शास्त्रों के अनुसार गणेश का अर्थ है - जगत के सभी प्राणियों का ईश्वर या स्वामी। इसी तरह गणपति का मतलब है - गणों यानि देवताओं का मुखिया या रक्षक।

गणपति को शिव, विष्णु की तरह ही स्वयंभू, अजन्मा, अनादि और अनंत यानि जिनका न जन्म हुआ न ही अंत है, माना गया है।

श्री गणेश इन गणपति का ही अवतार हैं। जैसे पुराणों में विष्णु का अवतार राम, कृष्ण, नृसिंह का अवतार बताया गया है। वैसे ही गणपति, गणेश रूप में जन्में और अलग-अलग युगों में अलग-अलग रूपों में पूजित हुए। विनायक, मोरेश्वर, धूम्रकेतु, गजानन कृतयुग, त्रेतायुग में पूजित गणपति के ही रूप है। यही कारण है कि काल अन्तर से श्री गणेश जन्म की भी अनेक कथाएं हैं।

सनातन धर्म में वैदिक काल से ही पांच देवों की पूजा लोकप्रिय है। इनमें गणपति पंच देवों में प्रमुख माने गए हैं। इन सब बातों में एक बात साफ है कि गणपति हो या गणेश वास्तव मे दोनों ही उस शक्ति का नाम है जो हर कार्य में सिद्ध यानि कुशल और सफल बनाती है।Photo: अलग-अलग देवता हैं श्री गणेश और गणपति!!    हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रसंग है कि भगवान शिव के विवाह में सबसे पहले गणपति की पूजा हुई थी। इसमें सांसारिक नजरिए से एक जिज्ञासा यह पैदा होती है जब भगवान गणेश शिव-पार्वती के पुत्र हैं तो उनके विवाह के पहले ही उनकी पूजा कैसे की गई? दरअसल लोक मान्यताओं में गणेश और गणपति एक ही देवता है। है। किंतु धर्म ग्रंथ में गणेश और गणपति को दो अलग-अलग रूप के बारे में बताया गया हैं। जानते हैं यह रोचक तथ्य -  शास्त्रों के अनुसार गणेश का अर्थ है - जगत के सभी प्राणियों का ईश्वर या स्वामी। इसी तरह गणपति का मतलब है - गणों यानि देवताओं का मुखिया या रक्षक।  गणपति को शिव, विष्णु की तरह ही स्वयंभू, अजन्मा, अनादि और अनंत यानि जिनका न जन्म हुआ न ही अंत है, माना गया है।  श्री गणेश इन गणपति का ही अवतार हैं। जैसे पुराणों में विष्णु का अवतार राम, कृष्ण, नृसिंह का अवतार बताया गया है। वैसे ही गणपति, गणेश रूप में जन्में और अलग-अलग युगों में अलग-अलग रूपों में पूजित हुए। विनायक, मोरेश्वर, धूम्रकेतु, गजानन कृतयुग, त्रेतायुग में पूजित गणपति के ही रूप है। यही कारण है कि काल अन्तर से श्री गणेश जन्म की भी अनेक कथाएं हैं।  सनातन धर्म में वैदिक काल से ही पांच देवों की पूजा लोकप्रिय है। इनमें गणपति पंच देवों में प्रमुख माने गए हैं। इन सब बातों में एक बात साफ है कि गणपति हो या गणेश वास्तव मे दोनों ही उस शक्ति का नाम है जो हर कार्य में सिद्ध यानि कुशल और सफल बनाती है।

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ये संस्कार आपको सम्मान दिलाता है...

आप अपने ही घर में बुजुर्ग लोगों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वे विश्वास से अधिक जिए हैं और नई पीढ़ी पर दृष्टि रखें तो पाएंगे कि ये लोग विचार से जीते हैं। विश्वास से जीने वालों के पास संतोष, धर्य और शांति ह ोती है। वे तर्क के सामने निरुत्तर होते हैं।

गुजरती पीढ़ी से यदि पूछा जाए कि वे आज भी कुछ काम ऐसे कर रहे हैं, जिनका उनके पास जवाब नहीं है तो वे यही कहेंगे कि सारा मामला विश्वास का है। उन्होंने रिश्तों में विश्वास किया है, प्रकृति पर विश्वास किया है और सबसे बड़ा विश्वास उनके लिए परमात्मा है।

नई पीढ़ी विचार को प्रधानता देती है। विचार और विश्वास सही तरीके से मिल जाएं तो आनंद और बढ़ जाएगा। खाली विश्वास एक दिन आदमी को पंगु बना देगा। उसकी सक्रियता आलस्य में बदल सकती है। इस बदलते युग में वह लाचार हो जाएगा और शायद बेकार भी।

खाली विचार से चलने वाले लोग घोर अशांत पाए जाते हैं। श्रीश्री रविशंकर एक जगह कहते हैं - उदारता इसमें है कि जीवन में दोनों का संतुलन हो। विश्वास का अर्थ है स्वयं के प्रति आदरपूर्ण होना।

विश्वास और विचार जुड़ते ही हम समग्र के प्रति आदरपूर्ण हो सकते हैं। जब हम कहते हैं कि परमात्मा महान है तो इसका विश्वास में अर्थ है कि सचमुच वो महान है और विचार का अर्थ होगा कि वो महान है इसलिए उसकी कृति के रूप में हम भी महान हैं। हमें उस महानता को याद रखना है और वैसे ही कार्य करने हैं।

किसी को आदर देकर हम स्वयं भी सम्मान पाते हैं। जैसे-जैसे विचार और विश्वास जीवन में मिलते जाएंगे, वैसे-वैसे विज्ञान और धर्म का भी संतुलन जिंदगी में होता रहेगा। 
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Koi bhakat nahi unsa dekha,
koi balwan nahi unsa dekha,
koi hona nahi unsa budhimann,
kehte hain jinhe sab HANUMAN....
Shri RAM, SIYA RAM, Jai Jai RAM...
Jai RAM, Jai RAM, Jai HANUMAN.......

14 September 2012

पुराणों से संग्रहित ब्रह्मा जी से परीक्षित जी तक कि संक्षिप्त पुरु वंशावली 
जैसा की हम जानते हैं कि सारी सृष्टी परमपिता ब्रम्हा से उत्पन्न हुई है इसलिए उनके बाद से पुरुवंश की पचास पीढ़ियों का वर्णन इस प्रकार है. आप दिए गए नंबरों से उनकी पीढ़ी का पता लगा सकते है.
१. परमपिता ब्रम्हा से प्रजापति दक्ष हुए.
२. दक्ष से अदिति हुए.
३. अदिति से बिस्ववान हुए.
४. बिस्ववान से मनु हुए जिनके नाम से हम लोग मानव कहलाते हैं.
५. मनु से इला हुए.
६. इला से पुरुरवा हुए जिन्होंने उर्वशी से विवाह किया.
७. पुरुरवा से आयु हुए.
८. आयु से नहुष हुए जो इन्द्र के पद पर भी आसीन हुए परन्तु सप्तर्षियों के श्राप के कारण पदच्युत हुए.
९. नहुष के बड़े पुत्र यति थे जो सन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए. ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले. ययाति के पांच पुत्र थे. देवयानी से यदु और तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से दृहू, अनु, एवं पुरु. यदु से यादवों का यदुकुल चला जिसमे आगे चलकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. तर्वासु से मलेछ, दृहू से भोज तथा पुरु से सबसे प्रतापी पुरुवंश चला. अनु का वंश ज्यादा नहीं चला.
१०. पुरु के कौशल्या से जन्मेजय हुए.
११. जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान हुए.
१२. प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति हुए.
१३. संयाति के वारंगी से अहंयाति हुए.
१४. अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम हुए.
१५. सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन हुए.
१६. जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन हुए.
१७. अवाचीन के मर्यादा से अरिह हुए.
१८. अरिह के खल्वंगी से महाभौम हुए.
१९. महाभौम के शुयशा से अनुतनायी हुए.
२०. अनुतनायी के कामा से अक्रोधन हुए.
२१. अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि हुए.
२२. देवातिथि के मर्यादा से अरिह हुए.
२३. अरिह के सुदेवा से ऋक्ष हुए.
२४. ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार हुए.
२५. मतिनार के सरस्वती से तंसु हुए.
२६. तंसु के कालिंदी से इलिन हुए.
२७. इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए.
२८. दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए जिनके नाम पर हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है.
२९. भरत के सुनंदा से भमन्यु हुए.
३०. भमन्यु के विजय से सुहोत्र हुए.
३१. सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए जिनके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम हस्तिनापुर पड़ा.
३२. हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए.
३३. विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए.
३४. अजमीढ़ से संवरण हुए.
३५. संवरण के तपती से कुरु हुए जिनके नाम से ये वंश कुरुवंश कहलाया.
३६. कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए.
३७. विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा हुए.
३८. अनाश्वा के अमृता से परीक्षित हुए.
३९. परीक्षित के सुयशा से भीमसेन हुए.
४०. भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा हुए.
४१. प्रतिश्रावा से प्रतीप हुए.
४२. प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ. देवापि किशोरावस्था में ही सन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ने में लग गए इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली.
४३. शांतनु कि गंगा से देवव्रत हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए. भीष्म का वंश आगे नहीं बढा क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा कि थी. शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए. चित्रांगद की मृत्यु युवावस्था में ही हो गयी. विचित्रवीर्य कि दो रानियाँ थी, अम्बिका और अम्बालिका. विचिचित्रवीर्य भी संतान प्राप्ति के पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए, लेकिन महर्षि व्यास कि कृपा से उनका वंश आगे चला.
४४. विचित्रवीर्य के महर्षि व्यास की कृपा से अम्बिका से ध्रितराष्ट्र, अम्बालिका से पांडू तथा अम्बिका की दासी से विदुर का जन्म हुआ.
४५. ध्रितराष्ट्र से दुर्योधन, दुहशासन, इत्यादि १०० पुत्र एवं दुशाला नमक पुत्री हुए. इनकी एक वैश्य कन्या से युयुत्सु नमक पुत्र भी हुआ जो दुर्योधन से छोटा और दुहशाशन से बड़ा था. इतने पुत्रों के बाद भी इनका वंश आगे नहीं चला क्योंकि इनके समूल वंश का नाश महाभारत के युद्घ में हो गया. किन्दम ऋषि के श्राप के कारण पांडू संतान उत्पत्ति में असमर्थ थे. उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों को दुर्वासा ऋषि के मंत्र से संतान उत्पत्ति की आज्ञा दी. कुंती के धर्मराज से युधिष्ठिर, पवनदेव से भीम और इन्द्रदेव से अर्जुन हुए तथा माद्री के अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ. इन पांचो के जन्म में एक एक साल का अंतर था. जिस दिन भीम का जन्म हुआ उसी दिन दुर्योधन का भी जन्म हुआ.
४६. युधिष्ठिर के द्रौपदी से प्रतिविन्ध्य एवं देविका से यौधेय हुए. भीम के द्रौपदी से सुतसोम, जलन्धरा से सवर्ग तथा हिडिम्बा से घतोत्कच हुआ. घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हुआ. नकुल के द्रौपदी से शतानीक एवं करेनुमती से निरमित्र हुए. सह्देव के द्रौपदी से श्रुतकर्मा तथा विजया से सुहोत्र हुए. इन चारो भाइयों के वंश नहीं चले. अर्जुन के द्रौपदी से श्रुतकीर्ति, सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इलावान, तथा चित्रांगदा से बभ्रुवाहन हुए. इनमे से केवल अभिमन्यु का वंश आगे चला.
४७. अभिमन्यु के उत्तरा से परीक्षित हुए. इन्हें ऋषि के श्रापवश तक्षक ने कटा और ये मृत्यु को प्राप्त हुए.
४८. परीक्षित से जन्मेजय हुए. इन्होने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया जिसमे सर्पों के कई जातियां समाप्त हो गयी, लेकिन तक्षक जीवित बच गया.
४९. जन्मेजय से शतानीक तथा शंकुकर्ण हुए.
५०. शतानीक से अश्वामेघ्दत्त हुए.

ये संक्षेप में पुरुवंश का वर्णन है.
महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा हैः
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 राजा युधिष्ठिर 36 8 25
2 राजा परीक्षित 60 0 0
3 राजा जन्मेजय 84 7 23
4 अश्वमेध 82 8 22
5 द्वैतीयरम 88 2 8
6 क्षत्रमाल 81 11 27
7 चित्ररथ 75 3 18
8 दुष्टशैल्य 75 10 24
9 राजा उग्रसेन 78 7 21
10 राजा शूरसेन 78 7 21
11 भुवनपति 69 55
12 रणजीत 65 10 4
13 श्रक्षक 64 7 4
14 सुखदेव 62 0 24
15 नरहरिदेव 51 10 2
16 शुचिरथ 42 11 2
17 शूरसेन द्वितीय 58 10 8
18 पर्वतसेन 55 8 10
19 मेधावी 52 10 10
20 सोनचीर 50 8 21
21 भीमदेव 47 9 20
22 नरहिरदेव द्वितीय 45 11 23
23 पूरनमाल 44 8 7
24 कर्दवी 44 10 8
25 अलामामिक 50 11 8
26 उदयपाल 38 9 0
27 दुवानमल 40 10 26
28 दामात 32 0 0
29 भीमपाल 58 5 8
30 क्षेमक 48 11 21
क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया
 

16 May 2012

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26 February 2012

हर समस्या का निदान - पत्नी पुराण

शेर की शादी में चूहे को देखकर हाथी ने पूछा - "भाई तुम इस शादी में किस हैसियत से आये हो ?" चूहा बोला, " जिस शेर की शादी हो रही है, वह मेरा छोटा भाई है ।" हाथी का मुँह खुला का खुला रह गया, बोला, "शेर और तुम्हारा छोटा भाई ? " चूहा - "क्या कहूँ ? शादी के पहले मैं भी शेर ही था ।" यह तो हुई मजाक की बात, लेकिन पुराने समय से ही दुनिया का मोह छोड़कर, सच की तलाश में भटकनेवाले भगोडों को सही रास्ते पर लाने के लिए, शादी कराने का रिवाज हमारे समाज में रहा है । कई बिगडैल कुँवारों को इसी पद्धति से आज भी रास्ते पर लाया जाता है । हम सबने कई बार देखा-सुना है कि तथाकथित सत्य की तलाश में भटकने को तत्पर आत्मा, शादी के बाद पत्नी को प्रसन्न करने के लिए लगातार भटकती रहती है । कहते भी हैं कि "शादी वह संस्था है जिसमें मर्द अपनी 'बैचलर डिग्री' खो देता है और स्त्री 'मास्टर डिग्री' हासिल कर लेती है ।" प्रायः शादी के पहले की जिंदगी पत्नी को पाने के लिए होती है और शादी के बाद की जिंदगी पत्नी को खुश रखने के लिए । तकरीबन हर पति के लिए पत्नी को खुश रखना एक अहम और ज्वलंत समस्या होती है और यह समस्या चूँकि सर्वव्यापी है अतः इसे हम चाहें तो राष्ट्रीय (या अंतर्राष्ट्रीय) समस्या भी कह सकते हैं । लगभग प्रत्येक पति दिन-रात इसी समस्या के समाधान में लगा रहता है, पर कामयाबी बिरलों के भाग्य में ही होती है । सच तो यह है कि आदमी की पूरी जिंदगी पत्नी को ही समर्पित रहती है और पत्नी है कि खुश होने का नाम ही नहीं लेती । अगर खुश हो जाएगी तो उसका बीवीपन खत्म हो जाएगा, फिर उसके आगे-पीछे कौन घूमेगा? किसी ने ठीक ही तो कहा है कि "शादी और प्याज में कोई खास अन्तर नहीं - आनंद और आँसू साथ-साथ नसीब होते हैं ।" पत्नी को खुश रखना इस सभ्यता की संभवतः सबसे प्राचीन समस्या है । सभी कालखंडों में पति अपनी पत्नी को खुश रखने के आधुनिकतम तरीकों का इस्तेमाल करता रहा है और दूसरी ओर पत्नी भी नाराज होने की नई-नई तरकीबों का ईजाद करती रहती है । एक बार एक कामयाब और संतुष्ट-से दिखाई देनेवाले पति से मैंने पूछा- 'क्यों भाई पत्नी को खुश रखने का उपाय क्या है ?' वह नाराज होकर बोला- 'यह प्रश्न ही गलत है । यह सवाल यूँ होना चाहिए था कि पत्नी को भी कोई खुश रख सकता है क्या ?' उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि "शादी और युद्ध में सिर्फ एक अन्तर है कि शादी के बाद आप दुश्मन के बगल में सो सकते हैं ।" जिस पत्नी को सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हों, वह इस बात को लेकर नाराज रहती है कि उसका पति उसे समय ही नहीं देता । अब बेचारा पति करे तो क्या करे ? सुख-सुविधाएँ जुटाए या पत्नी को समय दे ? इसके बरअक्स कई पत्नियों को यह शिकायत रहती है कि मेरे पति आफिस के बाद हमेशा घर में ही डटे रहते हैं । इसी प्रकार के आदर्श-पतिनुमा एक इन्सान(?) से जब मैंने पूछा कि 'पत्नी को खुश रखने का क्या उपाय है ?' तो उसने तपाक से उत्तर दिया-'तलाक ।' मुझे लगा कि कहीं यह आदमी मेरी ही बात तो नहीं कह रहा है ? मैं सोचने लगा " 'विवाह' और 'विवाद' में केवल एक अक्षर का अन्तर है शायद इसलिए दोनों में इतना भावनात्मक साहचर्य और अपनापन है ।" पतिव्रता नारियों का युग अब प्रायः समाप्ति की ओर है और पत्नीव्रत पुरुषों की संख्या, प्रभुत्व और वर्चस्व लगातार बढ़त की ओर है । यदि इसका सर्वेक्षण कराया जाय तो प्रायः हर दूसरा पति आपको पत्नीव्रत मिलेगा । मैंने सोचा क्यों न किसी अनुभवी पत्नीव्रत पति से मुलाकात करके पत्नी को खुश रखने का सूत्र सीखा जाए । सौभाग्य से इस प्रकार के एक महामानव से मुलाक़ात हो ही गई, जो इस क्षेत्र में पर्याप्त तजुर्बेकार थे । मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने जो भी बताया, उसे अक्षरशः नीचे लिखने जा रहा हूँ, ताकि हर उस पति का कल्याण हो सके, जो पत्नी-प्रताड़ना से परेशान हैं - १ - ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पूरे मनोयोग से चाय बनाकर पत्नी के लिए 'बेड टी' का प्रबंध करें । इससे आपकी पत्नी का 'मूड नार्मल' रहेगा और बात-बात पर पूरे दिन आपको उनकी झिडकियों से निजात मिलेगी । वैसे भी, किसी भी पत्नी के लिए पति से अच्छा और विश्वासपात्र नौकर मिलना मुश्किल है, इसलिए इसे बोझस्वरूप न लें, बल्कि सहजता से युगधर्म की तरह स्वीकार करें । कहा भी गया है कि "सर्कस की तरह विवाह में भी तीन रिंग होते हैं - एंगेजमेंट रिंग, वेडिंग रिंग और सफरिंग ।" २ - अगर आपका वास्ता किसी तेज-तर्रार किस्म की पत्नी से है तो उनके तेज में अपना तेज (अगर अबतक बचा हो तो) सहर्ष मिलाकर स्वयं निस्तेज हो जाएँ । क्योंकि कोई भी पत्नी तेज-तर्रार पति की वनिस्पत ढुलमुल पति को ही ज्यादा पसंद करती है । इसका यह फायदा होगा कि आप पत्नी से गैरजरूरी टकराव से बच जाएँगे, अब तो जो भी कहना होगा, पत्नी कहेगी । आपको तो बस आत्मसमर्पण की मुद्रा अपनानी है । ३- आपकी पत्नी कितनी ही बदसूरत क्यों न हो, आप प्रयास करके, मीठी-मीठी बातों से यह यकीन दिलाएँ कि विश्व-सुंदरी उनसे उन्नीस पड़ती है । पत्नी द्वारा बनाया गया भोजन (हलाँकि यह सौभाग्य कम ही पतियों को प्राप्त है) चाहे कितना ही बेस्वाद क्यों न हो, उसे पाकशास्त्र की खास उपलब्धि बताते हुए पानी पी-पीकर निवाले को गले के नीचे उतारें । ध्यान रहे, ऐसा करते समय चेहरे पर शिकायत के भाव उभारना वर्जित है, क्योंकि "विवाह वह प्रणाली है, जो अकेलापन महसूस किए बिना अकेले जीने की सामर्थ्य प्रदान करती है ।" ४ - पत्नी के मायकेवाले यदि रावण की तरह भी दिखाई दे तो भी अपने वाकचातुर्य और प्रत्यक्ष क्रियाकलाप से उन्हें 'रामावतार' सिद्ध करने की कोशिश में सतत सचेष्ट रहना चाहिए । ५ - आप जो कुछ कमाएँ, उसे चुपचाप 'नेकी कर दरिया में डाल' की नीति के अनुसार बिल्कुल सहज समर्पित भाव से अपनी पत्नी के करकमलों में अर्पित कर दें और प्रतिदिन आफिस जाते समय बच्चों की तरह गिडगिडाकर दो-चार रूपयों की माँग करें । पत्नी समझेगी कि मेरा पति कितना बकलोल है कि कमाता खुद है और रूपये-दो रूपयों के लिए रोज मेरी खुशामद करता रहता है । एक हालिया सर्वे के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत पति इसी श्रेणी में आते हैं । मैं अपील करता हूँ कि शेष पच्चीस प्रतिशत भी इस विधि को अपनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएँ और सुरक्षित जीवन-यापन करें । अंत में उस अनुभवी महामानव ने अपने इस प्रवचन के सार-संक्षेप के रूप में यह बताया कि उक्त विधियों को अपनाकर आप भले दुखी हो जाएँ, लेकिन आपकी पत्नी प्रसन्न रहेगी और उनकी मेहरबानी के फूल आप पर बरसते रहेंगे । किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि "प्यार अंधा होता है और शादी आँखें खोल देती है ।" मेरी भी आँखें खुल गईं । कलम घिसने का रोग जबसे लगा, साहित्यिक मित्रों की आवाजाही घर पर बढ़ गई । चाय-पानी के चक्कर में जब पत्नी मुझे पूतना की तरह देखती तो मेरी रूह काँप जाती थी । मैंने इससे निजात पाने का रास्ता ढूँढ ही लिया । आपने फूल कई रंगों के देखे होंगे, लेकिन साँवले या काले रंग के फूल प्रायः नहीं दिखते । मैंने अपने नाम 'श्यामल' के आगे पत्नी का नाम 'सुमन' जोड़ लिया । हमारे साहित्यिक मित्र मुझे 'सुमनजी-सुमनजी' कहकर बुलाते हुए घर आते । धीरे-धीरे नम्रतापूर्वक मैंने अपनी पत्नी को विश्वास दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता पाई कि मेरे उक्त क्रियाकलाप से आखिर उनका ही नाम तो यशस्वी होता है । अब मेरे घर में ऐसे मित्रों भले ही स्वागत-सत्कार कम होता हो, पर मैं निश्चिंत हूँ कि अब उनका अपमान नहीं होगा । किसी ने ठीक ही कहा है कि "विवाह वह साहसिक-कार्य है जो कोई बुजदिल पुरुष ही कर सकता है ।"

25 February 2012

रुद्राक्ष की महिमा

रुद्राक्ष की महिमा एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से पूछा-“दयानिधान! रुद्राक्ष को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है? रुद्राक्ष की महिमा को आप विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करें।” देवर्षि नारद की बात सुनकर भगवान् नारायण बोले-“हे देवर्षि! प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान् महादेव से पूछा था। तब उन्होंने जो कुछ बताया था, वही मैं तुम्हें बताता हूँ: “एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हो गया। वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर सका। तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना लगने लगे। भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र है। वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है। उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है। त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया। अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं। उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए। ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे। इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है। ये ही इनके अड़तीस भेद हैं। ब्राह्मण को श्वेतवर्ण वाले रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण वाले रुद्राक्ष, वैश्य को मिश्रित रंग वाले रुद्राक्ष और शूद्र को कृष्णवर्ण वाले रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने पर बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ समझा जाता है। उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। रुद्राक्ष धारण करना भगवान शिव के दिव्य-ज्ञान को प्राप्त करने का साधन है। सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य समाज में मान-सम्मान पाता है। रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर धारण करके जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवश्य धारण किया करें। रुद्राक्ष धारण करने वाले के लिए मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन वर्जित होता है।”

मानवता ही सबसे बड़ा धन है

खरा सौदा किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसके तीन बेटे थे-रामलाल, श्यामलाल, मोहन कुमार। साहूकार के पास रुपए पैसे की कमी न थीं। किंतु अब उसकी उम्र बढ़ रही थी। वह अधिक मेहनत नहीं कर पाता था। इसलिए उसने सोचा कि चलो अपना व्यापार बेटों को सौंप दूं। साहूकार चाहता था कि उसका धन गलत हाथों में पड़कर बर्बाद न हो जाए। इसलिए उसने अपने बेटों की परीक्षा लेने का मन बनाया। उसने बातों-बातों में कहा-‘ईश्वर तो सब जगह रहता है। वह तुम्हारी रक्षा करेगा। तुम लोग मुझे ऐसी जगह से एक-एक अशर्फी लाकर दो, जहां कोई देख न रहा हो।’ तीनों बेटे पिता की बात सुनकर चल पड़े। रामलाल को पता था के पिता जी पैसा कहां रखते हैं? जब साहूकार सो रहा था तो उसने एक अशर्फी चुपके से उठा ली। इसी तरह श्यामलाल ने मां की संदूकची में से अशर्फी चुराई। लेकिन मोहन को पिता की बात भूली न थी। उसने सोचा-‘पिता जी ने कहा था कि ईश्वर सब जगह रहता है फिर तो वह मेरी चोरी देख लेगा?’ उसने कहीं से भी अशर्फी नहीं ली। दोनों भाइयों ने बड़ी शान से अपनी अक्लमंदी पिता को बताई। जब मोहन ने अपनी बात बताई तो साहूकार ने उसे गले से लगा लिया। मोहन पिता जी की परीक्षा में खरा उतरा। फिर साहूकार ने तीनों बेटों को एक-एक रुपया देकर कहा, ‘जाओ, ऐसा खरा सौदा करना कि माल से कमरा भर जाए?’ पहला बेटा रामलाल बाजार गया। बहुत दिमाग लड़ाने के बाद उसने एक रुपये का भूसा खरीद लिया। भूसे को फैलाकर कमरे में बिखेर दिया। कमरा भर गया। अपने उत्साह में उसने राह में बैठे भूखे भिखारी को लात मार दी। श्यामलाल को भी राह में वही भिखारी मिला। उसे भी खरा सौदा करने की जल्दी थी। उसने भिखारी को दुत्कार दिया। एक रुपए की रुई खरीदी और बैलगाड़ी में लदवाकर घर ले गया। कमरे में रूई ठूंस दी उसका कमरा भी लद गया। तब मोहन ने बचे हुए पैसों से एक माचिस व मोमबत्ती खरीद ली। जब साहूकार देखने आया तो उसने वही मोमबत्ती अपने कमरे में जला दी। सारा कमरा रोशनी से जगमगा उठा। दरअसल, साहूकार ही भिखारी बनकर राह में बैठा, बेटों की परीक्षा ले रहा था। उसे बड़े दो बेटों से बहुत निराशा हुई। वह मोहन से बोला-‘वाह बेटा! तुमने किया है खरा सौदा।’ इंसान वही है, जो दूसरों के दुख पहले दूर करे और बाद में अपने लिए सोचे। साहूकार ने मोहन को अपनी सारी संपत्ति सौंप दी। मोहन ने कहा-‘पिता जी, हम तीनों भाई मिलकर आपके काम ही देख-रेख करेंगे।’ साहूकार की आंखें खुशी से भर आईं। बड़े भाइयों ने भी मोहन से मानवता की सीख ली और सब मिल-जुलकर रहने लगे।

लालच ने ली ब्राह्मण के बेटे की जान

लोभ का कुफल किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एक बार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था। उसको देखकर वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि हो-न-हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है। मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की। अतः मैं आज अवश्य इसकी पूजा करूंगा। यह विचार मन में आते ही वह उठा और कहां से जाकर दूध मांग लाया। उसे उसने एक मिट्टी के सकोरे में रखा और बिल के समीप जाकर बोला, “हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे आपके विषय में मालूम नहीं था, इसलिए मैं किसी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं कर पाया। आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए।” इस प्रकार प्रार्थना करके उसने उस दूध को वहीं पर रख दिया और फिर अपने घर को लौट गया। दूसरे दिन प्रातःकाल जब वह अपने खेत पर आया तो सर्वप्रथम उसी स्थान पर गया। वहां उसने देखा कि जिस सकोरे में उसने दूध रखा था उसमें एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई है। उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया। उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया। अगले दिन प्रातःकाल उसको फिर एक स्वर्णमुद्रा मिली। इस प्रकार अब नित्य वह पूजा करता और अगले दिन उसको एक स्वर्णमुद्रा मिल जाया करती थी। कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा। उसने अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देश दिया। तदनुसार उस दिन उसका पुत्र गया और वहां दूध रख आया। दूसरे दिन जब वह पुनः दूध रखने के लिए गया तो देखा कि वहां स्वर्णमुद्रा रखी हुई है। उसने उस मुद्रा को उठा लिया और वह मन-ही-मन सोचने लगा कि निश्चित ही इस बिल के अंदर स्वर्णमुद्राओं का भण्डार है। मन में यह विचार आते ही उसने निश्चय किया कि बिल को खोदकर सारी मुद्राएं ले ली जाएं। सर्प का भय था। किन्तु जब दूध पीने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सिर पर लाठी का प्रहार किया। इससे सर्प तो नहीं मरा नहीं लेकिन सर्प ने क्रुद्ध होकर ब्राह्मण-पुत्र को अपने विषभरे दांतों से काट लिया जिससे ब्राह्मण-पुत्र की तत्काल मृत्यु हो गई। उसके सम्बधियों ने उस लड़के को वहीं उसी खेत पर जला दिया। जब ब्राह्मण ने अपने की का मृत्यु का समाचार सुना तो उसने कहा, “यह ठीक ही हुआ है। क्योंकि शरणागत जीवों को जो व्यक्ति रक्षा नहीं करता उसके विभव आदि उसके हाथ से उसी प्रकार चले जाते हैं। जिस प्रकार पद्मसर में रहने वाले राजा के हाथ से हंस निकल गए थे।”

कैसे हुआ गंगा का पृथ्वी पर आगमन?

गंगा का पृथ्वी पर आगमन राजा सगर की केशिनी व महती नामक दो सुंदर रानियां थीं। एक दिन महर्षि और्व ने उन्हें वर देते हुए कहा- “तुम्हारी एक रानी को साठ हज़ार पुत्र प्राप्त होंगे, जबिक दूसरी को मात्र एक पुत्र! किंतु वंश चलानेवाला दूसरी रानी का ही पुत्र होगा। इसलिए इन दो वरों में जिसकी जो इच्छा हो, वह वही ले ले।” तब रानी केशिनी ने एक पुत्र वाला और महती ने साठ हज़ार पुत्रों वाला वर स्वीकार कर लिया। कुछ समय बाद केशिनी ने एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम असमंजस रखा गया। दूसरी रानी महती के गर्भ से बीजों से भरी एक थैली उत्पन्न हुई। उसमें बीज के आकर के साठ हज़ार अंडे थे। सगर ने उन्हें घी से भरे हुए घड़ों में रखवा दिया और उनका पोषण करने के लिए साठ हज़ार सेविकाएं नियुक्त कर दीं। उचित समय आने पर उनमें साठ हज़ार बालक उत्पन्न हुए। वे सभी बालक अति वीर, बलशाली और पराक्रमी थे। सगर इतने पुत्रों को देखकर हर्षित हो गए। एक बार राजा सगर के मन में अश्वमेध यज्ञ करने का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपने मंत्रियों को यज्ञ की तैयारी करने का आदेश दे दिया। शुभ मुहूर्त पर यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ-अश्व को छोड़ा गया. देवराज इन्द्र ने सोचा कि अश्वमेध यज्ञ करके राजा सगर कहीं उनका राजसिंहासन न हथिया ले। अतः उन्होंने दैत्य का रूप धारण कर यज्ञ अश्व को चुरा लिया और भगवान विष्णु के अंशावतार कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दिया। अश्व का हरण होने पर ऋषि-मुनियों ने सगर से अतिशीघ्र यज्ञ-अश्व ढूंढने के लिए कहा। राजा सगर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को यज्ञ का अश्व खोजने के लिए भेजा। उन्होंने सारी पृथ्वी छान डाली, किंतु उन्हें यज्ञ का अश्व कहीं भी दिखाई नहीं दिया। तब उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से पृथ्वी को खोदना आरम्भ कर दिया। उनके भीषण प्रहारों से पृथ्वी सहित वहां रहने वाले नागों, दैत्यों और अन्य प्राणियों की करुण चीत्कारें गूंजने लगीं। सगर-पुत्र भूमि खोदते हुए महर्षि कपिल के आश्रम के निकट पहुंच गए। वहां उन्हें यज्ञ का अश्व बंधा हुआ दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि यज्ञ में विघ्न डालने के लिए कपिल मुनि ने ही यज्ञ-अश्व का हरण किया, अतः उन्होंने भगवान विष्णु अंशावतार महर्षि कपिल को अपशब्द कह दिए। तब मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें भस्म कर डाला। यह समाचार सुनकर सगर शोक में डूब गए। तब उनके पौत्र अंशुमान ने महर्षि कपिल की स्तुति कर उनका क्रोध शांत किया। महर्षि कपिल ने प्रसन्न होकर यज्ञ अश्व लौटा दिया। महर्षि को प्रसन्न देखकर अंशुमान ने उनसे मृत सगर-पुत्रों के उद्धार के विषय में पूछा। उन्होंने कहा कि गंगा की पवित्र जलधारा ही सगर-पुत्रों का उद्धार कर सकती है। महर्षि कपिल के परामर्श के अनुसार राजा सगर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप करने लगे। उनकी मृत्यु के बाद अंशुमान ने और इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने अनेक वर्षों तक कठोर तप किया। किंतु वे गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल नहीं हुए। अंत में अंशुमान के पौत्र भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए। भगवान के दर्शन पाकर भागीरथ श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे। तब भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर भागीरथ से कहा-“वत्स! तुम्हारी कठोर तपस्या से मैं अति प्रसन्न हूँ। तुम्हें अभिलषित वह प्रदान करने के लिए ही मैं यहाँ प्रकट हुआ हूँ। तुम निःसंकोच इच्छित वर माँग लो।” भागीरथ बोले-“भगवन! अनेक वर्षों पूर्व कपिल मुनि ने अपने शाप से मेरे पूर्वजों को भस्म कर दिया था। तभी से मेरे पूर्वज प्रेत योनि में भटक रहे हैं। कपिल मुनि ने कहा था कि यदि गंगा पृथ्वीलोक में आकर अपने पवित्र जल से उनकी शुद्धि कर दें तो प्रेत योनि से उनका उद्धार हो जाएगा और वे आपके परम पद के अधिकारी हो जाएँगे। भगवन! गंगा माता को पृथ्वी पर लाने के लिए मेरे परदादा राजा सगर, दादा अंशुमान और पिता दिलीप ने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की। किंतु वे इसमें सफल नहीं हुए और तपस्या करते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए। तब मैंने उनके कार्य को सम्पन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। प्रभु! यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो गंगा देवी को पृथ्वी पर भेजने की कृपा करें।” उसकी बात सुनकर भगवान विष्णु ने देवी गंगा से कहा-“गंगे! तुम अभी नदी के रूप में पृथ्वी पर जाओ और सगर के सभी पुत्रों का उद्धार करो। तुम्हारे स्पर्श से वे सभी राजकुमार मेरे परम धाम को प्राप्त होंगे। पृथ्वी पर जो भी पापी तुम्हारे जल में स्नान करेगा, उसके सभी पापों का नाश हो जाएगा। पर्वों और विशेष पुण्य तिथियों पर तुम्हारे जल में स्नान करने वाले प्राणियों को सुख-सम्पत्ति, भोग और ऐश्वर्य के अतिरिक्त मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होगा। सूर्य-ग्रहण के समय तुम्हारे पवित्र जल में स्नान करने वालों को पुण्य और सुखों की प्राप्ति होगी। तुम्हारे स्मरण-मात्र से ही प्राणियों के समस्त दुखों और कष्टों का अंत हो जाएगा।” यह सुनकर गंगा हाथ जोड़कर बोलीं-“प्रभु! आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है। किंतु मुझे पृथ्वीलोक पर कितने वर्षों तक रहना होगा? स्नान करके पापीजन अपने पाप मुझे दे देंगे। ऐसी स्थिति में मेरे उन पापों का नाश किस प्रकार होगा? दयानिधान! आप सर्वज्ञ हैं। भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं। संसार की कोई बात आप से छिपी नहीं है। इसलिए मेरी इन शंकाओं का समाधान करें?” भगवान विष्णु बोले-“हे गंगे! तुम नदी-रूप में पृथ्वीलोक पर रहोगी। मेरे अंशस्वरूप समुद्र तम्हारे पति होंगे। सभी नदियों में तुम सबसे श्रेष्ठ, सौभाग्यवती और पुण्यदायी होगी। हे देवी! कलियुग के पाँच हजार वर्षों तक तुम्हें भू-लोक में रहना पड़ेगा। सभी प्राणी देवी के रूप में तुम्हारी पूजा-अर्चना और स्तुति करेंगे। जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति-वंदना करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होगा। गंगा शब्द का निरंतर जाप करने वाले भक्तों के पूर्वजन्मों के भी समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे और मृत्यु के बाद वे मेरे परमधाम वैकुण्ठ को प्राप्त करेंगे।” जब भगवान विष्णु ने गंगा की सभी शंकाओं पर समाप्त कर दिया, तब वे भागीरथ से बोलीं-“राजन! भगवान विष्णु की आज्ञा और आपके कठोर तप के फलस्वरूप मैं आपके साथ पृथ्वी पर चलने को तैयार हूँ। किंतु राजन! जब मैं स्वर्ग से धरातल पर आऊँगी, तो मेरा वेग बहुत तेज़ होगा। मेरे तीव्र वेग से पृथ्वी पाताल में पहुँच जाएगी। इसलिए राजन! यदि आप अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहते हैं तो पहले इस समस्या का समाधान करें।” गंगा की बात सुनकर भागीरथ ने भगवान विष्णु से इसका समाधान करने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु शिवजी से बोले-“महादेव! भागीरथ की इस समस्या का उपाय केवल आप ही कर सकते हैं। तीव्र वेग से धरातल पर उतरती गंगा का आप अपनी विशाल जटाओं में बाँध लें। इससे गंगा का वेग कम हो जाएगा और पृथ्वी पाताल में धँसने से बच जाएगी।” शिवजी इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए। तब गंगा देवी ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और नदी के रूप में धरातल की ओर चल पड़ीं। धरातल की ओर जाते समय उनकी गति अत्यंत तेज़ हो गई। ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो प्रलयकाल आ गया हो। मेघ भीषण गर्जन करने लगे। गंगा के वेग को देखकर पृथ्वी काँप उठी। तभी भगवान विष्णु की प्रेरणा से शिवजी गंगा के मार्ग में आ गए और वे पूर्ण वेग से शिवजी की जटाओं में समा गईं। तब भगवान शिव ने अपनी जटा की एक लट खोलकर उनकी एक जलधारा पृथ्वी की ओर छोड़ दी। गंगा बड़ी धीमी गति से धरातल पर गिरने लगीं। इस प्रकार गंगा का आवेग कम हो जाने के कारण पृथ्वी पाताल लोक में धँसने से बच गई। गंगा के धरातल पर पहुँचते ही राजा भागीरथ उनकी स्तुति करते हुए बोले-“हे परम कल्याणी देवी गंगा! पापियों के पाप धोने वाली पुण्यमयी देवी! आपको मेरा कोटि-कोटि नमन। माते! आपकी कृपा से संतानहीन को संतान की प्राप्ति हो। बंधन में पड़े हुए व्यक्ति के सभी बंधन कट जाएँ। पापियों के पाप, पुण्यों में बदल जाएँ। ये वर दें।” इस प्रकार स्तुति-वंदना करते हुए भागीरथ गंगा को लेकर उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ उनके पूर्वज कपिल मुनि की क्रोधाग्नि से जलकर भस्म हो गए थे। पवित्र गंगा का स्पर्श पाते ही वे सभी मुक्त होकर वैकुण्ठ लोक चले गए। इस प्रकार परम पावन गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ। राजा भागीरथ के प्रयत्न से ही पुण्यमयी गंगा पृथ्वी पर आ सकी थीं, इसलिए उन्हें ‘भगीरथी’ भी कहा जाने लगा।

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