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2 February 2012
JAI SAI BABA KI
गुरु की शरण हो या स्मरण समान रूप से उस आश्रय स्थल की तरह होता है, जिसके साये में हर कोई नया मनोबल, शांति, धैर्य, ऊर्जा, सुख पाकर सारी अशांति, भय या कलह से मुक्त हो जाता है। गुरु कृपा शिष्य की शक्ति और चेतना को जगाकर जीवन को सार्थक व सफल बनाने की राह पर ले जाती है।
उम्मीदों, आशाओं को पूरा कर आत्मविश्वास जगाने वाली ऐसी ही पनाह जगतगुरु साईं बाबा की भक्ति, ध्यान व स्मरण भी माना जाता है। धार्मिक आस्था से परब्रह्म का योग व ज्ञान स्वरूप माने जाने वाले साईं बाबा की उपासना सांसारिक जीवन से जुड़ी हर कामना को सिद्ध करने वाली व तमाम दु:खों को काटने वाली मानी गई है।
सुख-समृद्ध जीवन की आस पूरी करने के लिए ही साईं भक्ति की परंपरा में गुरुवार के दिन साईं का कुछ विशेष पवित्र व चमत्कारी शब्दों व पंक्तियों से जयकारा लगाना बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। जानिए, बाबा साईं का यह करिश्माई जयकारा व पूजा का सरल उपाय -
- घर या साईं मंदिर में साईं बाबा के चरणों में पीले चंदन, पीले अक्षत, पीले फूलों, पीले वस्त्र, पीले रंग की मिठाईयां व श्रीफल अर्पित करें।
- श्रद्धा व भक्ति के साथ अकेले मन ही मन या सामूहिक रूप से पूजा व आरती कर साईं के इस जयकारे को आस्था व भक्ति भाव के साथ तमाम असफलताओं, कष्टों व दोषों से छुटकारे की कामना कर बोलें -
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज
परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाथ महाराज की जय।।
साईं बाबा का यह जयकारा कागज पर लिखकर अपने पर्स में या साईं तस्वीर के साथ घर की दीवारों या कार्यालय में लगाना अशुभ व अनिष्ट को दूर रखने वाला माना गया है।
हनुमानजी एक शिक्षा देते हैं
दुख किसके जीवन में नहीं आता। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति भी दुखी रहता है। पहुंचे हुए साधु से लेकर सामान्य व्यक्ति तक सभी के जीवन में दुख का समय आता ही है। कोई दुख से निपट लेता है और किसी को दुख निपटा देता है। दुख आए तो सांसारिक प्रयास जरूर करें, पर हनुमानजी एक शिक्षा देते हैं और वह है थोड़ा अकेले हो जाएं और परमात्मा के नाम का स्मरण करें।
सुंदरकांड में अशोक वाटिका में हनुमानजी ने सीताजी के सामने श्रीराम का गुणगान शुरू किया। वे अशोक वृक्ष पर बैठे थे और नीचे सीताजी उदास बैठीं हनुमानजी की पंक्तियों को सुन रही थीं। रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।
वे श्रीरामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, जिन्हें सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया। तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ।। तब हनुमानजी पास चले गए। उन्हें देखकर सीताजी मुख फेरकर बैठ गईं। हनुमानजी रामजी का गुणगान कर रहे थे। सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया। दुख किसी के भी जीवन में आ सकता है।
जिंदगी में जब दुख आए तो संसार के सामने उसका रोना लेकर मत बैठ जाइए। परमात्मा का गुणगान सुनिए और करिए, बड़े से बड़ा दुख भाग जाएगा। आगे तुलसीदासजी ने लिखा है कि हनुमानजी को देखकर सीताजी मुंह फेरकर बैठ गईं। यह प्रतीकात्मक घटना बताती है कि हम भी कथाओं से मुंह फेरकर बैठ जाते हैं और यहीं से शब्द अपना प्रभाव बदल लेते हैं। शब्दों के सम्मुख होना पड़ेगा, शब्दों के भाव को उतारना पड़ेगा, तब परिणाम सही मिलेंगे। इसी को सत्संग कहते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक बृहस्पति की उपासना
शास्त्रों के मुताबिक बृहस्पति की उपासना ज्ञान, सौभाग्य व सुख देने वाली मानी गई है। दरअसल, गुरु ज्ञान व विद्या के रास्ते तन, मन व भौतिक दु:खों से मुक्त जीवन जीने की राह बताते हैं। जिस पर चल कोई भी इंसान मनचाहे सुखों को पा सकता है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में कामना विशेष को पूरा करने के लिए खास दिनों पर की जाने वाली गुरु पूजा की परंपरा में गुरुवार को भी देवगुरु बृहस्पति की पूजा का महत्व बताया गया है। ऐसी पूजा के शुभ, सौभाग्य व मनचाहे फल के लिए गुरुवार व्रत व पूजा के कुछ नियमों को पालन जरूरी बताया गया है।
जानिए सौभाग्य, पारिवारिक सुख-शांति, कार्य कुशलता, मान-सम्मान, विवाह, दाम्पत्य सुख व दरिद्रता को दूर करने की कामना से गुरुवार व्रत व पूजा में किन बातों का ख्याल रखें -
- गुरुवार व्रत किसी माह के शुक्ल पक्ष में गुरुवार व अनुराधा के योग से शुरू करना चाहिए।
- 1, 3, 5, 7, 9, 11 या 1 से 3 वर्ष या ताउम्र व्रत रखा जा सकता है।
- इस दिन हजामत यानी बाल न कटाएं व दाढ़ी न बनवाएं।
- व्रत नियमों में सूर्योदय से पहले जाग स्नान कर पीले वस्त्र पहनें।
- इस दिन केले के वृक्ष या इष्ट देव के समीप बैठ पूजा करें।
- गुरु और बृहस्पति प्रतिमा को पीली पूजा सामग्री जैसे पीले फूल, पीला चंदन, चने की दाल, गुड़, सोना, वस्त्र चढ़ाएं। पीली गाय के घी से दीप पूजा करें। पीली वस्तुओं का दान करें। कथा सुनें।
- भगवान को केले चढ़ाएं लेकिन खाएं नहीं।
- यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन व दान दें।
- हर दरिद्रता व संकट टालने ही नहीं सपंन्नता को बनाए रखने के लिए भी यह व्रत करना चाहिए।
यदि आपकी शादी में बार-बार रुकावटें आ रही हैं
यदि आपकी शादी में बार-बार रुकावटें आ रही हैं या बात बनते-बनते बिगड़ रही है तो इसका कारण आपकी कुंडली में गुरु का अशुभ स्थिति में होना भी हो सकता है। यदि कुंडली में गुरु प्रतिकूल होता है तो व्यक्ति की शादी में रुकावटें आती हैं और शादी भी देरी से होती है। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो नीचे लिखे मंत्र का जप करने से आपकी यह समस्या दूर हो सकती है।
मंत्र
ऊँ बृं बृहस्पत्ये नम:।
जप विधि
- गुरुवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर व साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले देवगुरु बृहस्पति की पूजा करें।
- देवगुरु बृहस्पति को पीला वस्त्र, पीले फूल, चंदन, केसर व पीली मिठाई अर्पित करें।
- इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें।
- प्रति गुरुवार इस मंत्र की 11 माला जप करने से अति शीघ्र आपका विवाह हो जाएगा।
सिद्धि बहुत अभ्यास के बाद ही मिलती है
कहते हैं कोई भी सिद्धि बहुत अभ्यास के बाद ही मिलती है। लगातार किसी चीज का अभ्यास हमें उसमें निपुण बनाता है और यह निपुणता ही हमारी सिद्धि कहलाती है। पुराणों में सिद्धियों के आठ प्रकार बताए गए हैं लेकिन ये सब तप से मिलती हैं। अधिकांश तंत्र साधना का हिस्सा हैं।
हम जिन सिद्धियों की बात कर रहे हैं वे हमारे व्यवहार से आती हैं। पुराणों में ऐसे पात्रों का भी उल्लेख मिलता है जिनके व्यवहार से ही प्रसिद्ध थे, और उनका व्यवहार ही सिद्धि था। जैसे सत्य बोलना। ऐसा माना जाता है कि हम अगर कई वर्षों तक सत्य बोलते रहे, कभी मजाक में भी किसी से झूठ ना कहें तो ये हमारी वाक सिद्धि होती है।
महाभारत में कुंती की वाक सिद्धि मानी गई है। ऐसा कहा जाता है कि कुंती ने कभी कोई झूठ नहीं बोला। उसने वो ही कहा जो सत्य था। जब पांचों पांडव द्रौपदी के स्वयंवर से लौटे। अर्जुन ने मछली की आंख भेदकर द्रौपदी को जीता था।
वे गए थे भिक्षा मांगने और स्वयंवर मे चले गए। कुंती को यह बात पता नहीं थी। भाइयों ने आकर मां से कहा देखो मां आज हम क्या लेकर आए हैं। कुंती ने बिना देखे कह दिया पांचों भाई बराबर बांट लो। युधिष्ठिर ने कहा मां ने आज तक कभी असत्य नहीं कहा। मां का हर वचन सत्य होता है।
नतीजतन पांचों भाइयों ने द्रौपदी से विवाह किया। ये प्रताप था कुंती के सत्य बोलने का। वो जो कहती थी वो सच होता था। हम अपने व्यवहार में ऐसी बातें लाएं, उनका कठोरता से पालन भी करें तो सिद्धि मिलना कोई मुश्किल नहीं है। इसके लिए जरूरत है लगातार अभ्यास और इसे व्यवहार में उतारने की।
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