5 February 2012

रहीम के दोहे

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥ देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन। लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥ अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥ गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया। जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥ छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥ जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥ जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि। गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥ खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥ टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥ बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥ आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि। ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥ चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥ रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥ माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि। फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥ रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि। उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥ रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥ बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥ रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥ बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥ मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥ वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥ रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत। काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥ रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥ रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

गुरु नानकदेव के पद

झूठी देखी प्रीत जगत में झूठी देखी प्रीत। अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥ मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥ मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥ # को काहू को भाई हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥ धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥

मीरा के पद

मीरा के पद दरद न जाण्यां कोय हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय। घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय। जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय। दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय। मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥ # अब तो हरि नाम लौ लागी सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी। कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी। मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी। मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव। स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव। पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै। दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥ # राम रतन धन पायो पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो। बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो। जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो। सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो। मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥ # हरि बिन कछू न सुहावै परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै। राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै। आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै। तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै। चरण कंवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै। मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्यौ, आंणद बरण्यूं न जावै॥ # झूठी जगमग जोति आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि। झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति। झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति। झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर। सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर। छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगिन में दाग। लूण अलूणो ही भलो है, अपणो पियाजी को साग। देखि बिराणै निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज। कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज। छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ। ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ। वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ। जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ। अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत। मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥ # अब तो मेरा राम अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥ माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई। साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥ सतं देख दौड आई, जगत देख रोई। प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥ मारग में तारग मिले, संत राम दोई। संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥ अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई। राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥ अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई। दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥ # म्हारे तो गिरधर गोपाल म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥ जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥ छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥ संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥ चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई। मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥ अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥ भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

नीरज के गीत

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी ऐसे माहौल में,‘नीरज’ को बुलाया जाए

कबीर की साखियाँ

कबीर की साखियाँ गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागूँ पाँय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दिया बताय॥ सिष को ऐसा चाहिए, गुरु को सब कुछ देय। गुरु को ऐसा चाहिए, सिष से कुछ नहिं लेय॥ कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास। जो कुछ गंधी दे नहीं, तौ भी बास सुबास॥ साधु तो ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उडाय॥ गुरु कुम्हार सिष कुंभ है गढ-गढ काढै खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर मारै चोट॥ कबिरा प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय। रोम रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय॥ जल में बसै कमोदिनी, चंदा बसै अकास। जो है जाको भावता, सो ताही के पास॥ प्रीतम को पतियाँ लिखूँ, जो कहुँ होय बिदेस। तन में मन में नैन में, ताको कहा संदेस॥ नैनन की करि कोठरी, पुतली पलँग बिछाय। पलकों की चिक डारिकै, पिय को लिया रिझाय॥ गगन गरजि बरसे अमी, बादल गहिर गँभीर। चहुँ दिसि दमकै दामिनी, भीजै दास कबीर॥ जाको राखै साइयाँ, मारि न सक्कै कोय। बाल न बाँका करि सकै, जो जग बैरी होय॥ नैनों अंतर आव तूँ, नैन झाँपि तोहिं लेवँ। ना मैं देखौं और को, ना तोहि देखन देवँ॥ लाली मेरे लाल की, जित देखों तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल॥ कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूँढै बन माहिं। ऐसे घट में पीव है, दुनिया जानै नाहिं। सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर होय। जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होय॥ जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहिरे पानी पैठ। जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ॥ बिरहिनि ओदी लाकडी, सपचे और धुँधुआय। छूटि पडौं या बिरह से, जो सिगरी जरि जाय॥ जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं। प्रेम गली अति साँकरी, ता मैं दो न समाहिं॥ लिखा-लिखी की है नहीं, देखा देखी बात। दुलहा दुलहिनि मिलि गए, फीकी परी बरात॥ रोडा होइ रहु बाटका, तजि आपा अभिमान। लोभ मोह तृस्ना तजै, ताहि मिलै भगवान॥

कबीर के पद

काहे री नलिनी तू कुमिलानी। तेरे ही नालि सरोवर पानी॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि॥ कहे 'कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान। मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै। हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै। हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै। सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले। हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै। तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै। कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥ रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है। यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥ यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है। कहत 'कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥ झीनी-झीनी बीनी चदरिया, काहे कै ताना, काहै कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया। इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया। साँई को सियत मास दस लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया। दास 'कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया॥ मन लागो मेरो यार फकीरी में। जो सुख पावौं राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में। भली बुरी सबकी सुनि लीजै, कर गुजरान गरीबी में॥ प्रेम नगर में रहनि हमारी, भलि-बनि आई सबूरी में। हाथ में कूंडी बगल में सोंटा, चारों दिस जागीरी में॥ आखिर यह तन खाक मिलैगो, कहा फिरत मगरूरी में। कहत 'कबीर सुनो भई साधो, साहिब मिलै सबूरी में॥

कबीर की साखियाँ

कबीर की साखियाँ कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ. ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ.. प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय. राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय .. माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर. कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर.. माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर. आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर .. झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद. खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद.. वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर. परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर.. साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय. तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय.. सोना सज्जन साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार. दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धकै दरार.. जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं. ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं.. मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ. कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ.. तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय. कबहुँ उड़न आखन परै, पीर घनेरी होय.. बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि. हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि.. ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय. औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय.. लघता ते प्रभुता मिले, प्रभुत ते प्रभु दूरी. चिट्टी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी.. निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय. बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय.. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं. मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..

कबीर की साखियाँ - 2

कबीर की साखियाँ - 2 चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥ सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥ साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय । मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥ जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल। तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥ उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥ सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥ साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय। आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

कबीर की कुंडलियां

माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो # आया है किस काम को किया कौन सा काम भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी # चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी # कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...