18 February 2012

धन अर्जित करने के लिए कर्म और उद्योग यानी परिश्रम ही श्रेष्ठ उपाय माना गया है

शास्त्रों में धन अर्जित करने के लिए कर्म और उद्योग यानी परिश्रम ही श्रेष्ठ उपाय माना गया है। व्यावहारिक जीवन में मेहनत का यही रूप नौकरी या व्यापार के रूप में दिखाई देता, जिसके जरिए कोई व्यक्ति धन बंटोरकर कर जीवन को सफल और सुखी बनाने का प्रयास करता है। वैसे, जीवन में खुशियां को पाने और बनाए रखने के लिए धन की अहम भूमिका होती है। अगर यहां व्यापार की बात करें तो कारोबार में निरंतर सफलता के लिए योजनाओं के साथ-साथ धन भी जरूरी होता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश को विघ्रहर्ता माना गया है, इसलिए नौकरी या व्यापार में धन लाभ या धन की कमी से उबरने के लिए ही विशेष गणेश मंत्र के जप का उपाय बताया गया है, जो प्रतिदिन घर से निकलने से पहले, दुकान खोलने या ऑफिस पहुंचने के बाद श्री गणेश को गंध, अक्षत, फूल, धूप व दीप चढ़ाकर जरूर करें। पूजा सामग्री न होने पर मानस या मन ही मन सामग्रियों को अर्पित करें। जानते हैं यह विशेष गणेश मंत्र- ॐ गणेश महालक्ष्यै नम: इस गणेश मंत्र का जप प्रतिदिन खासतौर पर बुधवार, चतुर्थी पर करना न केवल नौकरी या कारोबार में धन हानि से बचाता है बल्कि लगातार सफलता देने वाला माना गया है।

इशारों को समझकर भाग्यशाली व्यक्ति वह सब धन प्राप्त कर सकता है

अगर अचानक आपको बहुत सारा पैसा, जायदाद या धन-दौलत मिलने वाला है तो उससे पहले आपको अजीब अजीब सपने आने लगेंगे। इन सपनों पर ध्यान दिया जाए तो संभव है आपको जायदाद या खजाना दिलाने में सपने मदद करेंगे। कुछ लोगों के भाग्य में आसानी से पैसा या जायदाद मिलना लिखा होता है लेकिन कुछ लोगों को ऐसे सपने आने के बाद भी धन लाभ नहीं हो पाता। जिस व्यक्ति की किस्मत में खजाने के रूप में अचानक धन प्राप्त करने के योग होते हैं उस व्यक्ति को स्वप्न में खजाने का स्वामी खजाने के साथ दिखाई देता है। सभी खजानों के अलग-अलग स्वामी होते हैं। खजानों के स्वामी का मतलब अलग-अलग दैवीय शक्तियां जो इन खजानों की रक्षा करती हैं। सपने में पूर्वज संबंधित व्यक्ति को बुलाते हैं और जायदाद देते हैं। जिस व्यक्ति को ऐसे सपने दिखाई दे तो उसे जायदाद मिलने में किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आती है। ऐसे लोग आसानी से धन प्राप्त कर सकते हैं। खजानों से जुड़े सपनों में ऐसे स्थान के इशारे रहते हैं जहां अपार धन रहता है। उन इशारों को समझकर भाग्यशाली व्यक्ति वह सब धन प्राप्त कर सकता है।

भीष्म की मृत्यु उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर थी

भीष्म पितामह हस्तिनापुर के राजा शांतनु तथा देवनदी गंगा के पुत्र थे। इनका वास्तविक नाम देवव्रत था। इनकी योग्यता देखकर शांतनु ने इन्हें युवराज बना दिया। एक दिन महाराज शांतनु जब शिकार खेलने गए तो उन्होंने नदी के किनारे एक सुंदर कन्या जिसका नाम सत्यवती था, को देखा। उसके रूप को देखकर शांतनु उस पर मोहित हो गए। उन्होंने उस कन्या के पिता निषादराज से उस कन्या से शादी करने का प्रस्ताव रखा। तब निषादराज ने यह शर्त रखी कि मेरी पुत्री से उत्पन्न संतान ही आपके राज्य की अधिकारी हो। लेकिन शांतनु ने यह शर्त अस्वीकार कर दी क्योंकि वे पहले ही देवव्रत को युवराज बना चुके थे। इस घटना के बाद से शांतनु उदास रहने लगे। उदासी का कारण पुछने पर भी शांतनु ने यह बात देवव्रत को नहीं बताई। तब देवव्रत ने महाराज शांतनु के सारथि से पूरी बात जान ली और स्वयं निषादराज के पास गए और अपने पिता के लिए सत्यवती का हाथ मांगा। निषादराज ने वही शर्त दोहराई। तब देवव्रत ने प्रतिज्ञा ली कि इस कन्या से उत्पन्न पुत्र ही राज्य का अधिकारी होगा। तब निषादराज ने कहा कि यदि तुम्हारे पुत्र ने उसे मारकर राज्य छिन लिया तब क्या होगा? यह सुनकर भीष्म ने सभी दिशाओं और देवताओं को साक्षी मानकर आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा ली। इस भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ा। भीष्म की पितृभक्ति देखकर महाराज शांतनु ने उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया था। अर्थात भीष्म की मृत्यु उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर थी। महाभारत के युद्ध के बाद माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।

भगवान के सामने जाने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए

आज तेजी से बदलते समय में अनुसुख और शांतिभव करने के लिए काफी लोग देवी-देवताओं के स्थानों पर जाना पसंद करते हैं। एक ओर जहां हमारे आसपास हमेशा ही शोर और अशांति फैली रहती हैं वहीं दूसरी ओर किसी मंदिर में असीम आनंद और शांति मिल जाती है। इसी वजह से बड़ी संख्या में लोग जब भी समय होता है तब देवी-देवताओं के स्थानों पर अवश्य जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान के सामने जाने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए। भगवान के प्रति सच्ची आस्था और भक्ति होने पर व्यक्ति की सभी इच्छाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। भगवान की भक्ति में तभी पूरा आनंद प्राप्त होता है जब शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन भी किया जाए। शास्त्रों के अनुसार भक्त को मंदिर में जाते समय जानवरों के चमड़े से बनी वस्तुएं बाहर ही रख देना चाहिए। आजकल लेदर के पर्स और लेदर के बेल्ट आदि का फेशन खासा प्रचलित है। लगभग हर व्यक्ति चमड़े से बनी वस्तुओं का उपयोग करता है। ऐसे में मंदिर में प्रवेश करने से पहले इन चीजों को बाहर ही रख देना चाहिए। इन्हें धर्म ग्रंथों के अनुसार अपवित्र माना गया है। जानवरों के चमड़े से बनी ये चीजें अशुद्ध मानी जाती हैं, इन्हें पहनकर या अपने पास रखकर भगवान के सामने नहीं जाना चाहिए। इसके नियम के पीछे कई कारण हैं, जैसे लेदर की वस्तुएं जानवरों की खाल से बनाई जाती हैं। कई बार इसके लिए जीवित जीवों को मार भी दिया जाता है। किसी भी जीव की हत्या करना शास्त्रों के अनुसार गंभीर पाप माना गया है। अत: ऐसे कृत्य के बाद बनी वस्तुएं भी अपवित्र और अशुद्ध होती हैं। इनका उपयोग नहीं करना चाहिए। इन चीजों के अधिक उपयोग के कारण ही कई जीवों को असमय मृत्यु का संकट झेलना पड़ता है। इसके साथ चमड़े से बनी वस्तुएं कई बार स्वास्थ्य संबंधी विसंगतियों को भी जन्म देती है। इनके स्पर्श से त्वचा संबंधी बीमारियां होने की भी पूरी संभावनाएं रहती हैं। अत: कम से कम मंदिर में जाते समय इनका उपयोग नहीं करना चाहिए।

भांग सेहत के लिए लाभदायक भी होती है

भांग सेहत के लिए लाभदायक भी होती है बहुत कम लोग ही स्वास्थ्य के लिए भांग के फायदों को जानते हैं। चिकित्सा भाषा में कैनाबिस सटाइवा कही जानेवाली भांग का आयुर्वेदिक उपचार में बहुत इस्तेमाल होता है। "रोग के लक्षणों और कारणों के आधार पर आयुर्वेद में भांग का अलग-अलग इस्तेमाल होता है।" कई प्रकार के रोगों जैसे दर्द, मतली और उल्टी के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। मधुमेह के कारण वजन में होनेवाली कमी और तंत्रिकातंत्र संबंधी रोगों के इलाज में भी इसका इस्तेमाल होता है। यदि सही मात्रा में लिया जाए तो इससे बुखार और पेचिश के इलाज, तुरंत पाचन और भूख बढ़ाने में मदद मिल सकती है। गठिया, अवसाद और चिंता के इलाज के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है, जबकि त्वचा रोगों के उपचार में भी यह लाभदायक है। "कई लोग त्वचा के रूखी और खुरदुरी होने की शिकायत लेकर आते हैं और यह पाया गया है कि भांग की ताजा पत्तियों का लेप लगाने से त्वचा ठीक हो जाती है।" देश के कई हिस्सों में लोग भोजन से पहले भांग खाते हैं। इन लोगों का मानना है कि इससे न केवल भोजन का स्वाद बढ़ जाता है, बल्कि इससे पाचन भी बेहतर होता है। भारत में 1000 ईसा पूर्व भांग का एक नशीले पदार्थ के रूप में इस्तेमाल होता था और ‘अथर्ववेद’ में इसे चिंता दूर करनेवाली एक जड़ी-बूटी बताया गया है।

कामना ही मनुष्य के दुखों का कारण

कामना ही मनुष्य के दुखों का कारण मनुष्य के दुख का, संताप का, परेशानियों व दुर्गति का कारण है कामना, इच्छा, वासना, इच्छा पूरी होती है तो सुख होता है और इच्छा की अपूर्ति में दुख होता है इच्छा में बाधा लगने से ही क्रोध की उत्पत्ति होती है। अगर कोई क्रोधी है, तो इसका कारण है उसके भीतर इच्छाएं दबी पड़ी हैं। सत्संग से, सेवा से परोपकार से इच्छाओं का संबंध होता है कर्मयोगी दूसरों की इच्छाएं (शस्त्रयुक्त) पूरी करके सेवा करके सुख पहुंचा के अपनी इच्छाओं से रहित हो जाता है जो दूसरों की शास्त्रोंचित इच्छाएं पूरी करता है। उसे अपनी इच्छाओं से दुखी नहीं होना पड़ता। ज्ञान योगी इच्छओं का कारण अज्ञान को मिटाकर इच्छा रहित होना है। मुझे चाह रहित बना देंगे इच्छा के दो कारण हैं। एक तो पूर्व जन्म के संस्कार जो अर्न्तमन में पड़े रहते हैं। समय-समय पर वो प्रकट होते रहते हैं और उनमें इच्छाएं, वासनाएं उत्पन्न होती रहती हैं। पूर्वजन्म के भोगों के संस्कार हैं वो और दूसरा कारण है। वर्तमान में किसी वस्तु व्यक्ति को हम देखकर बहुत महत्व देते हैं तो उसकी इच्छा पैदा हो जाती है। इसका मूल कारण है देहाभिमान। इच्छा किसी कारण से उत्पन्न हुई हो साधक को विवेक पूर्वक उसका परिणाम देखना चाहिए।

शिवजी का मूल मंत्र जो संस्कृत के 5 शब्दों से मिलकर बना है

शिवजी का मूल मंत्र जो संस्कृत के 5 शब्दों से मिलकर बना है, सब मंत्रों में शुभ व पवित्र माना जाता है। व्रत रखने वाले व्यक्तियों को शिव-मंत्र का उच्चारण अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से अनेक प्रकार की सात्विक और पवित्र ऊर्जा का शरीर में समावेश होता है। प्राचीन शिव पंचाक्षरी मंत्र इस प्रकार है - नागेन्द्रहराय त्रिलोचनाय भास्मंगारागाय महेश्वराय नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै 'न'काराय नमः शिवाय ।।1।। मन्दाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदिश्वाराय प्रमथानाथ महेश्वराय मंदारापुष्प बहुपुष्प सुपुजिताय तस्मै 'म'काराय नमः शिवाय ।।2।। शिवाय गौरी वादानाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वार नशाकाय श्रीनिलाकंठाय वृषभध्वजाय तस्मै 'शि'काराय नमः शिवाय।।3।। वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतामार्य मुनीन्द्र देवार्चिता शेखाराय चन्द्रार्कवैश्वनारा लोचनाय तस्मै 'व'काराय नमः शिवाय।।4।। यक्षस्वरुपाय जटाधाराय पिनाकहस्ताय सनातनाय दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै 'य'काराय नमः शिवाय।।5।।

कर्म से गहरा नाता

इंसानी जीवन में इच्छाओं को पूरा करना है तो कर्म से गहरा नाता जरूरी है। किंतु कामनापूर्ति होने पर भी जीवन सुखी और शांत रहे, यह जरूरी नहीं। क्योंकि मन का सुकून इस बात पर भी निर्भर करता है कि जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्म कैसे किए गए - अच्छे या बुरे। अगर बुरे कर्म किए गए तो वह मन में कलह बनाए रखते हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों में कलहमुक्त जीवन के लिए ही कर्म के साथ धर्म पालन का भी महत्व बताया गया। देव उपासना इसी धार्मिक परंपरा का अहम अंग है। इसी कड़ी में महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की उपासना सांसारिक जीवन की सभी कामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है। जिसमें शिव पूजा के साथ व्रत का विधान बहुत ही शुभ है। शास्त्रों के मुताबिक महाशिवरात्रि को व्रत रख शिवालय में शिव आराधना, शिव का गंगा या पवित्र जल से अभिषेक दृश्य और अदृश्य रूप से लौकिक और सांसारिक कामनाओं का पूरा करने वाला है। जानिए, इस बार महाशिवरात्रि-सोमवार के संयोग में शिव पूजा और व्रत कैसे-कैसे सुखद बदलाव लाएगी - - रोजगार और धन के इच्छुक नवयुवक-युवतियां नौकरी के साथ मान-सम्मान, पैसा और प्रतिष्ठा पाएंगे। - अविवाहितों को योग्य जीवनसाथी मिलेगा। - विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य यानी पति की लंबी आयु और संतान सुख प्राप्त करेगी। - बुजुर्ग और बड़ी उम्र के पुरुष या महिला वृद्धावस्था के तन, मन के कष्टों और चिंताओं से मुक्त होंगे। धार्मिक दृष्टि से वह पृथ्वीलोक का सुख प्राप्त कर देवलोक पाएंगे। - गृहस्थ पुरुष भरपूर सुख-समृद्धि और पारिवारिक सुख पाएंगे। - व्यवसायी या व्यापारी कारोबार से यश, कीर्ति, अपार धन और लक्ष्मी प्राप्त करेंगे। - छात्र और विद्यार्थी विद्या और बुद्धि के बूते सफलता पाएंगे। - महाशिवरात्रि के साथ आए सोमवार से जुड़ी धार्मिक मान्यता है कि लगातार 14 साल तक सोमवार व्रत कर पारण करने से पुरुष-स्त्री बहुत दाम्पत्य सुख मिलता है।

शिव साकार और निराकार दोनों ही रूप में पूजनीय है

हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवताओं में शिव साकार और निराकार दोनों ही रूप में पूजनीय है। शिव को अनादि, अनंत भी माना गया है। पंचदेवों के रूप में शिव जहां कल्याणकारी देवता माने गए हैं तो वहीं त्रिदेव शक्तियों में वह दुष्ट वृत्तियों के विनाशक के रूप में भी पूजनीय है। खासतौर पर शिव के निराकार स्वरूप शिवलिंग पूजा समस्त सांसारिक कामनाओं को पूरा करने और दु:ख-संताप का अंत करने वाली बताई गई है। यही नहीं शिवलिंग के दर्शन मात्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला बताया गया है। शिव पुराण में शिवलिंग प्राकट्य के प्रसंग भी निराकार स्वरूप शिवलिंग की शक्तियों और उपासना का महत्व ही उजागर नहीं करते, बल्कि घट-घट में बसे शिव स्वरूप की अपार महिमा बताते हैं। इसी कारण शिव ही नहीं उनके अनेक अवतार भी धर्म परंपराओं में संकटमोचक माने गए हैं। जिनमें हनुमान, भैरव लोक प्रसिद्ध है। शिवलिंग की ऐसी ही महिमा बताते हुए एक रोचक प्रसंग शिव पुराण में आया है। जिसमें शिव के एक अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का रहस्य भी है। जानते हैं यह दिलचस्प प्रसंग - एक बार दो असुरों विदल और उत्पल ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पाया कि उनकी किसी पुरुष के हाथों मृत्यु न होगी। इसके बाद दोनों असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर बुरी तरह से हरा दिया। पराजित देवगणों ने ब्रह्मदेव के सामने अपना दु:ख प्रगट किया। तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं को यह बताया कि शिवलीला से दोनों असुरो का देवी के हाथों अंत होगा। इसी शिवलीला के चलते नारद ने दोनों दैत्यों के आगे पार्वती की सुंदरता का बखान किया। यह सुनकर दोनों उस स्थान पर पहुंचे जहां माता पार्वती गेंद से खेल रही थी। उनके रूप से मोहित दोनों दुष्ट दैत्य वेश बदलकर देवी के करीब पहुंचे। किंतु महादेव ने उनकी आंखों को देखकर यह जान लिया कि वह दैत्य हैं। शिव ने देवी की ओर संकेत किया। देवी शिव का इशारा समझ गई और उन्होनें बिना देरी किए अपनी गेंद से दोनों राक्षसों पर घातक प्रहार किया। जिससे चोट खाकर विदल और उत्पल नामक दैत्य धराशायी होकर मृत्यु को प्राप्त हुए और उस गेंद ने शिवलिंग रूप ले लिया। शिवपुराण के मुताबिक यही शिवलिंग गेंद यानी कन्दुक के नाम से कन्दुकेश्वर लिंग के रूप में काशी में स्थित है, जो सभी बुरी वृत्तियों का नाशक व समस्त सांसारिक सुख और मोक्ष देने वाला माना गया है।

बालक का मन इचा प्रबल होता है

बालक का मन इचा प्रबल होता है ,उन्हें देखने पर आपको समस्त जगत सुन्दर दिखाई देगा ,लेकिन जैसे वह आगे बढता है प्रकृति रास्ता रोके खड़ी रहती है ,उस प्राचीर को भंग करने के लिए वह बारम्बार प्रयाश करता है ,सारा जीवन जैसे आगे बदता जाता है ,उसका आदर्श दूर होता जाता है ,अंत माँ मृत्यु ----यही माया है

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