20 November 2012

♥ लकड़ी का कटोरा ♥

http://www.goswamirishta.com एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु – बेटे के यहाँ शहर रहने गया . उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोर हो चुका था , उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था . वो एक छोटे से घर में रहते थे , पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे . लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कत होती थी . कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाते तो कभी हाँथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता . बहु -बेटे एक -दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता की इस काम से चिढ होने लगी . “ हमें इनका कुछ करना पड़ेगा ”, लड़के ने कहा . बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली ,” आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा रहेंगे , और हम इस तरह चीजों का नुक्सान होते हुए भी नहीं देख सकते .” अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के कोने में लगा दिया , अब बूढ़े पिता को वहीँ अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था . यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया , ताकि अब और बर्तन ना टूट -फूट सकें . बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठ कर खाते और जब कभी -कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते . यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता , वो उनकी छोटी से छोटी गलती पर ढेरों बातें सुना देते . वहां बैठा बालक भी यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता , और अपने में मस्त रहता . एक रात खाने से पहले , उस छोटे बालक को उसके माता -पिता ने ज़मीन पर बैठ कर कुछ करते हुए देखा , ”तुम क्या बना रहे हो ?” पिता ने पूछा . बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया , “ अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ , ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खाना खा सकें .” ,और वह पुनः अपने काम में लग गया . पर इस बात का उसके माता -पिता पर बहुत गहरा असर हुआ . उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और आँखों से आंसू बहने लगे . वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि अब उन्हें क्या करना है . उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये , और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया .

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ?

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ? संतोंमें भी स्तर होते हैं , गुरुपद के संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर) से शक्तिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं, सद्गुरु पदके संत (80% आध्यात्मिक स्तर) उसके अगले स्तरके होते हैं और उनसे आनंदके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं और वह वह शक्तिके स्पंदनसे अधिक सूक्ष्म होते हैं और सबसे ऊपर परात्पर पदके संत (९० % आध्यात्मिक स्तर) के होते हैं उनसे शांतिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं | सभी गुरु संत होते हैं, परन्तु सभी संत गुरु नहीं होते | गुरु पद एक कठिन पद होता है और कई बार संत इस पदको स्वीकार करने को इच्छुक नहीं होते और वे आत्मानंदमें रत रहना पसंद करते हैं | ऐसे संतोके मात्र अस्तित्वसे ब्रह्माण्डकी सात्त्विकता बनी रहती है | कुछ संत भक्तोंके अध्यात्मिक कष्ट दूर तो करते हैं, पर किसी को शिष्य स्वीकार कर उसे मोक्ष तक ले जानेको इच्छुक नहीं होते क्योंकि संतोंको पता होता है मात्र शिष्य बनानेसे काम समाप्त नहीं होता, शिष्य जब तक मोक्षको प्राप्त नहीं होता, तब तक वह उत्तरदायित्व गुरुका होता है; अतः कई गुरु शिष्य बनाते समय बहुत सतर्क रहते हैं और योग्य पात्रको ही शिष्य स्वीकार करते हैं | मात्र गुरु पद स्वीकार करनेके पश्चात् संतोकी प्रगति मोक्षकी द्रुत गतिसे होती है | ईश्वर प्रत्येक संतको गुरुके लिए नहीं चुनते, जिनमे दूसरोंको सिखानेकी विशेष क्षमता हो, मां समान मातृत्व, क्षमाशीलता और प्रेम हो, उसे ही सद्गुरु पद पर आसीन करते हैं | What is the difference between a saint and a Guru? Saints too are at different levels as per their sadhana, saints of the status of Guru (70% spiritual level) emit vibrations of Shakti (energy); saints at the status of Sadguru (spiritual master) at 80% spiritual level, are saints of the next higher level and they emit vibrations of bliss. These vibrations are even more subtle than vibrations of Shakti. The saints of the highest status – Paratpar level - are at a spiritual level of more than 90% and they project vibrations of peace. All Gurus are saints, but all saints are not Gurus. The status of a Guru is a difficult one and many a time, saints are not willing to accept this status because they like to remain in a state of bliss. The mere existence of such saints maintains the Sattvikta (purity) of the universe. Some saints remove the spiritual problems of devotees, but they are not desirous of accepting someone as their disciple and take one to Moksha (liberation), for saints know that merely accepting one as a disciple is not enough. Till the time the disciple attains Moksha, it continues to be a responsibility of the Guru. Hence, many Gurus remain alert while accepting disciples and only accept eligible seekers as disciples. Merely by accepting the status of a Guru, saints make progress towards Final Liberation at a rapid pace. God does not select every saint to be a Guru, He confers the status of a Sadguru only upon those who have a special ability to teach others, possess a maternal affection and are forgiving in nature

ठंड में बनाना हो सेहत तो ये हैं ...7 आसान तरीके

ठंड को सेहत बनाने का मौसम माना जाता है। कहते हैं इस मौसम में अगर कोई भी अपना खान-पान अच्छा रखें तो सालभर बीमारियां नहीं आती साथ ही सेहत भी बन जाती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं खान-पान से जुड़े पांच ऐसे ही नुस्खों के बारें में जिन्हें अपनाकर आप भी अपनी सेहत बना सकते है। - रोज सुबह खाली पेट एक सेवफल खाने से शरीर स्वस्थ रहती है। - वसंतकुसुमकर रस शरीर को न सिर्फ आंतरिक उर्जा देता है बल्कि वजन को जल्दी बढ़ाने में भी लाभकारी है। - ठंड में सुबह हेल्थ के लिए भारी नाश्ता अच्छा माना गया है। इसीलिए ठंड में सुबह भारी नाश्ता करना चाहिए। - रोजाना सुबह एक चम्मच च्यवनप्राश जरूर खाना चाहिए। यह ठंड में वजन बढ़ाने के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक औषधी है। यह लगभग सभी के लिए हेल्दी रहता है। इससे न सिर्फ शारीरिक उर्जा बढ़ती है बल्कि मेटाबोलिज्म भी मजबूत रहता है। - आयुर्वेद के अनुसार ठंड में शतावरी कल्प के सेवन को आंखों की रोशनी तो बढ़ती ही है। साथ ही सेहत बनती है व वजन बढऩे लगता है। - शीलाजीत को दूध से लेने से जल्दी असर करता है और वजन प्रबंधन में भी मदद करता है - ठंड में रोजाना द्रकशरिष्ठा को लगातार एक महीने तक गर्म या ठंडे पानी में शहद के साथ मिलाकर लेना भी शरीर के लिए अच्छा रहता है।

आलोचनाओं से विचलित न

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ। किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ मेंझाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वहहिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कद म बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया। ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ मेंही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगीको गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। अतः याद रखो !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए १)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहो। २)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो ..

सात प्रकार के विवाह

http://www.goswamirishta.com ********सात प्रकार के विवाह********** " ब्रह्मविवाह" " आर्षविवाह" " प्रजापत्य-विवाह" " असुर-विवाह" " गान्धर्व-विवाह" " पैशाच-विवाह " " राक्षस-विवाह" ! विवाह का वर्णन करते हुये ईश्वर कहते हैं----अपने समान गोत्र तथा समान प्रवर में उत्पन्न हुई कन्या का वंरण न करे! पिता से ऊपर की सात पीढ़ियों के साथ तथा माता से मंच पीढ़ियों के बाद की ही परम्परा में उसका जन्म होना चाहिये! उत्तम कुल तथा अच्छे स्वभाव के सदाचारी वर को घर पर बुला कर उसे कन्या का दान देना " ब्रह्मविवाह" कहलाता है! वर के साथ एक गाय और एक बैल लेकर जो कन्यादान किया जाता है, उसे " आर्षविवाह" कहते हैं! जब किसी के मांगने पर उसे कन्या दी जाती है तो वह " प्रजापत्य-विवाह" कहलाता है! कीमत लेकर कन्या का देना " असुर-विवाह" है! [ इसे नीच श्रेणी का विवाह कहा गया है] वर और कन्या जब स्वेच्छापूर्वक एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं तो उसे " गान्धर्व-विवाह" कहलाता है तथा कन्या को धोखा देकर उड़ा लेना " पैशाच-विवाह " माना है! युद्ध के द्वारा कन्या के हर लेने से " राक्षस-विवाह" कहलाता है! ..................................................................... भगवान् हयग्रीव जी [विष्णु] कहते हैं---"ॐ ॐ हूं फट विष्णवे स्वाहा!" इस प्रकार मन्त्र-जप करके सो जाने पर यदि अच्छा स्वप्न हो तो सब शुभ होता है और यदि बुरा स्वप्न हुआ तो नरसिंह मन्त्र से हवन करनेपर शुभ होता है!

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...