21 January 2013

मनुष्य को सर्वश्रेस्ट माना गया

www.goswamirishta.com

समस्त जीवधारियो में मनुष्य को सर्वश्रेस्ट माना गया है! अथर्ववेद में कहा गया है कि हे पुरुष, यह जीवन उन्नति करने के लिए है, अवनति करने के लिए नहीं है! परमेश्वर ने मनुष्य को दक्षता या कार्यकुशलता से परिपूर्ण किया है! ईश्वर यहाँ हमें पुरुष शब्द से संबोधित कर रहे है जिसका अर्थ है जो कार्य पूर्ण करके रहे वही पुरुष कहलाता है! इस परके मनुष्य का जीवन अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने की क्षमता रखने वाला है और उसके जीवन में सफलता उद्देश्यों की पूर्ति पर निर्भर करती है! मानव जीवन का उद्देश्य धर्मपूर्वक कर्म करते हुए अर्थ या धन- संपत्ति कमाना और धर्मपूर्वक कामनाये रखते हुए उनकी पूर्ति करना है! साथ ही धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए आत्मिक उन्नति कर मोक्ष्य को प्राप्त करना है! इसके लिए प्रभु ने मनुष्य को बुद्धि, विवेक और दक्षता प्रदान करते हुए विशेष शारीरिक रूप प्रदान किया है! मनुष्य के शरीर में आठ चक्र और नव द्वारो की स्थिति सबसे ऊपर मस्तिस्क रूपी राजा का नियंत्रण होने से वह समस्त कार्यो को तरीके से संचालित करता है और मनुष्य मन के तल पर जीता है लेकिन पशुओ आदि अन्य प्राणियों में मस्तिस्क व् चक्रों की स्थिति प्रथ्वी के समान्तर होने से उनकी अधोगति रहती है! मनुष्य इसके विपरीत अधर्वगामी होता है! इससे विचारो की परिपक्वता और ज्ञान की उत्क्रस्टता आसानी से प्राप्त कर प्रगति की और बढ़ता है! मनुष्य योनि कर्म के साथ- साथ योग योनि भी है, जबकि अन्य जीवो की केवल भोग योनि है! अन्य जीवो में मस्तिस्क में कोई दक्षता न होने के कारण उन्नति की कोई गुंजाईश नहीं रहती! परमेश्वर ने मनुष्य को केवल उन्नति करने के लिए बनाया है लेकिन यदि वह इस अवसर का लाभ न उठाकर फिर से अधोगति प्राप्त कर अन्य योनियो में जन्म लेता है तो इसके लिए तुम स्वयं ही दोषी हो! मनुष्य बुद्धि, विवेक, दक्षता और भक्ति से न केवल भौतिक उन्नति कर सकता है अपितु आध्यात्मिक रूप से भी उन्नति कर मोक्ष्य को प्राप्त कर सकता है!
जन्म के समय मनुष्य के अन्दर अनेक शक्तिया निहित रहती है, किन्तु अपरिपक्व अविकसित होती है! उस समय मनुष्य का जैसे समाज में गठन किया जायेगा वैसे ही परिवेश के अनुसार मनुष्य का विकास होगा! शिक्षा के अभाव में मनुष्य केवल प्राणी होता है , इन्सान नहीं! मनुष्य समाज में रहकर ही अपने आंतरिक गुणों को प्रकाश में लाता है ! शिक्षा एक प्रक्रिया है! यह जन्म से प्रारंभ होकर मृत्यु तक चलती है, क्योकि मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ सीखता ही रहता है!
पहले तो मनुष्य का जीवन ही दुर्लभ है, फिर उसे अपने जीवन के लक्ष्य को पहचान पाना और भी कठिन है, क्योकि इस मोह रूपी संसार में आकर उसी में गोते लगाता रहता है! तब शिक्षा और गुरु के माध्यम से ही अपने आन्तरिक गुणों को प्रकाश में लाता है! यदि धर्म के मार्ग पर चलकर मानव विज्ञ बनता है तो वह अपने जीवन के मार्ग के विकास के लिए अनवरत लगकर जीवन को सफल बनाता है और सम्यक ज्ञान, गुण धर्म के अपने जीवन को ब्रह्म से जोड़कर करोडो जन्मो के कर्मो से मुक्ति प्राप्त करता है, किन्तु यह शिक्षा के द्वारा ही संभव है!
शिक्षा दो माध्यमो से संभव है! एक जीविकोपार्जन का माध्यम बनता है तथा दूसरी से जीवन साधन ! दोनों में परिपूर्णता गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होती है! जीविकोपार्जन की शिक्षा पाकर यह संसार बड़ा सुखमय प्रतीत होता है तथा जलते हुए दीपक के प्रकाश जैसा वह बाहरी जीवन में प्रकाश पाता है! दूसरी शिक्षा पाने के लिए सद्गुरु की तलाश होती है! वह सद्गुरु कही भी और कोई भी हो सकता है!ब्रह्म ज्ञान और आत्मनिरूपण के सच्ची शिक्षा के बिना सार्थक जीवन नहीं मिलता!

No comments:

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...