29 November 2013

क्या आपको याद है विवाह के ये सात वचन

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क्या आपको याद है विवाह के ये सात वचन -----
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हिन्दू धर्म में विवाह के समय वर-वधू द्वारा सात वचन लिए जाते हैं. इसके बाद ही विवाह संस्कार पूर्ण होता है.विवाह के बाद कन्या वर से पहला वचन लेती है कि-

पहला वचन इस प्रकार है -

तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या कहती है कि स्वामि तीर्थ, व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कर्म तुम मेरे साथ ही करोगे तभी मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हैं अर्थात् तुम्हारी पत्नी बन सकती हूं। वाम अंग पत्नी का स्थान होता है.

दूसरा वचन इस प्रकार है-

हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्.

अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती है कि यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करोगे तब ही मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं.

तीसरा वचन इस प्रकार है-

कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं कुर्या: पशूनां परिपालनं च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयम्।।

अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती है कि यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा घर के पालतू पशुओं का पालन करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं।

चौथा वचन इस प्रकार है -

आयं व्ययं धान्यधनादिकानां पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम्।।

अर्थ - चौथे वचन में कन्या वर से कहती है कि यदि तुम धन-धान्य आदि का आय-व्यय मेरी सहमति से करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हैं अर्थात् पत्नी बन सकती हूं.

पांचवां वचन इस प्रकार है -

देवालयारामतडागकूपं वापी विदध्या:यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचमम्।।

अर्थ - पांचवे वचन में कन्या वर से कहती है कि यदि तुम यथा शक्ति देवालय, बाग, कूआं, तालाब, बावड़ी बनवाकर पूजा करोगे तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हूं अर्थात् पत्नी बन सकती हूं.


छठा वचन इस प्रकार है -

देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा यदा विदध्या:क्रयविक्रये त्वम्।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठम्।।

अर्थ - इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती है कि यदि तुम अपने नगर में या विदेश में या कहीं भी जाकर व्यापार या नौकरी करोगे और घर-परिवार का पालन-पोषण करोगे तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं.

सातवां वचन इस प्रकार है -

न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाविनि कामनीश्च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सप्तम्।।

अर्थ - इस श्लोक के अनुसार सातवां और अंतिम वचन यह है कि कन्या वर से कहती है यदि तुम जीवन में कभी पराई स्त्री को स्पर्श नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं.

शास्त्रों के अनुसार पत्नी का स्थान पति के वाम अंग की ओर यानी बाएं हाथ की ओर रहता है. विवाह से पूर्व कन्या को पति के सीधे हाथ यानी दाएं हाथ की ओर बिठाया जाता है और विवाह के बाद जब कन्या वर की पत्नी बन जाती है जब वह बाएं हाथ की ओर बिठाया जाता है.

27 November 2013

गोंद के औषधीय गुण

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किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।
- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .
गोंद के औषधीय गुण -
किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।
- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .

पीपल

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पीपल
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है .
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है .
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
- कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है .
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .
पीपल 
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है .
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है .
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
- कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है . 
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .

25 November 2013

आयुर्वेदिक कूकिंग

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आयुर्वेदिक कूकिंग
आज कल कूकरी शोज़ की और रेसिपीज़ की भरमार है . पर हम खाना पकाने में आयुर्वेदिक सिद्धांतों की पूरी तरह से अवहेलना कर देते हैं , जिसकी वजह से आज स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्याएँ आ रही है .अगर कोई ऐसी बिमारी है जो वर्षों से ठीक नहीं हो रही तो खाने में ये आजमा कर देखे .
- सूप बनाते समय उसमे दूध नहीं डाले .
- दही खट्टा हो तो उसमे दूध नहीं डाले .
- ओट्स पकाते समय उसमे दूध दही साथ साथ न डाले .
- चाय कॉफ़ी में शहद ना डाले .
- पूरी , भटूरे , मिठाइयां डालडा घी में ना बना कर शुद्ध घी में बनाए .
- नमकीन चावलों में , सब्जी की करी में दूध न डाले .
- खट्टे फलों के साथ , फ्रूट सलाद में क्रीम या दूध न डाले .
- दही बड़ा विरुद्ध आहार है .
- ४ बजे के बाद केले , दही , शरबत , आइसक्रीम आदि का सेवन ना करे .
- आटा लगाने के लिए दूध का इस्तेमाल ना करे .
- गर्मियों में हरी मिर्च और सर्दियों में लाल मिर्च ला सेवन करे .
- सुबह ठंडी तासीर की और शाम के बाद गर्म तासीर के खाने का सेवन करे .
- पकौड़ों के साथ चाय या मिल्क शेक नहीं गरम कढ़ी ले .
- फलों को सुबह नाश्ते के पहले खाए . किसी अन्य खाने के साथ मिलाकर ना ले .कच्चा सलाद भी खाने के पहले खा ले .
- दही वाले रायते को हिंग जीरे का तडका अवश्य लगाएं .
- दाल में एक चम्मच घी अवश्य डाले .
- खाली पेट पान का सेवन ना करे .
- खाने के साथ पानी नहीं ज़्यादा पानी डाला छाछ या ज्यूस या सूप पियें .
- अत्याधिक नमक और खट्टे पदार्थ सेहत के लिए ठीक नहीं .
- बघार लगाने में खूब हिंग , जीरा , सौंफ , मेथीदाना , धनिया पावडर , अजवाइन आदि का प्रयोग करें .
आयुर्वेदिक कूकिंग
आज कल कूकरी शोज़ की और रेसिपीज़ की भरमार है . पर हम खाना पकाने में आयुर्वेदिक सिद्धांतों की पूरी तरह से अवहेलना कर देते हैं , जिसकी वजह से आज स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्याएँ आ रही है .अगर कोई ऐसी बिमारी है जो वर्षों से ठीक नहीं हो रही तो खाने में ये आजमा कर देखे .
- सूप बनाते समय उसमे दूध नहीं डाले .
- दही खट्टा हो तो उसमे दूध नहीं डाले .
- ओट्स पकाते समय उसमे दूध दही साथ साथ न डाले .
- चाय कॉफ़ी में शहद ना डाले .
- पूरी , भटूरे , मिठाइयां डालडा घी में ना बना कर शुद्ध घी में बनाए .
- नमकीन चावलों में , सब्जी की करी में दूध न डाले .
- खट्टे फलों के साथ , फ्रूट सलाद में क्रीम या दूध न डाले .
- दही बड़ा विरुद्ध आहार है .
- ४ बजे के बाद केले , दही , शरबत , आइसक्रीम आदि का सेवन ना करे .
- आटा लगाने के लिए दूध का इस्तेमाल ना करे .
- गर्मियों में हरी मिर्च और सर्दियों में लाल मिर्च ला सेवन करे .
- सुबह ठंडी तासीर की और शाम के बाद गर्म तासीर के खाने का सेवन करे .
- पकौड़ों के साथ चाय या मिल्क शेक नहीं गरम कढ़ी ले .
- फलों को सुबह नाश्ते के पहले खाए . किसी अन्य खाने के साथ मिलाकर ना ले .कच्चा सलाद भी खाने के पहले खा ले .
- दही वाले रायते को हिंग जीरे का तडका अवश्य लगाएं .
- दाल में एक चम्मच घी अवश्य डाले .
- खाली पेट पान का सेवन ना करे .
- खाने के साथ पानी नहीं ज़्यादा पानी डाला छाछ या ज्यूस या सूप पियें .
- अत्याधिक नमक और खट्टे पदार्थ सेहत के लिए ठीक नहीं .
- बघार लगाने में खूब हिंग , जीरा , सौंफ , मेथीदाना , धनिया पावडर , अजवाइन आदि का प्रयोग करें .

नामजप कितना करना चाहिए ?

आरम्भमें हाथमें माला लेकर कमसे कम १५ मिनट बैठकर नामजप करनेका प्रयास करें | यदि सुबह संभव न हो तो संध्याकालमें कार्यालयसे घर लौटनेके पश्चात, हाथ-पैर धोकर, एक आसनपर बैठकर नामजप करनेका प्रयास करें अर्थात मेरी दिनचर्यामें कमसे कम १५ मिनट, मैं नामजपके लिए अवश्य दूँ, ऐसा प्रत्येक गृहस्थका प्रयास होना चाहिए और धीरे-धीरे इसे दो घंटे तक ले जानेका प्रयास करें | आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्यमें सुखद परिवर्तन तो आएगा ही, गृहस्थ जीवनकी अन्य कई समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी, मन शांत एवं आनंदित रहने लगेगा और व्यावसायिक जीवनमें भी कम प्रयासमें ही यश मिलने लगेगा | मुझे कई विद्यार्थियों ने बताया है कि नामजपके प्रयास आरम्भ करनेके पश्चात उनकी ग्रहण-शक्ति और स्मरण शक्तिमें अत्यधिक सुधार आया है |

गृहिणियोंको नामजप भोजन बनाते समय या भोजन परोसते समय तो अवश्य ही करना चाहिए, इससे भोजनमें ईश्वरका चैतन्य समाहित हो जाता है और भोजनके माध्यमसे नामजप परिवारके सदस्योंके सूक्ष्म शरीरमें प्रवेश कर उनकी वृत्तिमें परिवर्तन लाता है | प्रतिदिन रात्रिमें सोनेसे पूर्व दिन भर नामजप हेतु किए गए प्रयासकी समीक्षा करें और एक ध्येय रख उस ओर बढ़ते जाएँ | ध्यान रहे हमारा नामजप शीघ्रातिशीघ्र अखंड हो इस हेतु हमें प्रयास करने चाहिए | यदि नामजप अखंड होने भी लगे तब भी कमसे कम एक घंटे. बैठकर नामजप अवश्य ही करना चाहिए |

इससे नामजपका संस्कार अन्तर्मनमें दृढ़ होता है , निर्विचार अवस्थाकी अनुभूति होती है, मनको आनंदकी अनुभूति होती है और एकाग्रतापूर्वक किए गए नामजपसे अनिष्ट शक्तिसे लड़नेकी शक्ति प्राप्त होती है | यदि सुबह ही एक से दो घंटेका नामजप कर लिया जाये तो दिन भर अनिष्ट शक्तिके आक्रमणसे बचाव होता है और व्यावहारिक जीवनमें अनिष्टशक्तिद्वारा आनेवाली अडचन कम हो जाती हैं
नामजप कितना करना चाहिए ?
आरम्भमें हाथमें माला लेकर कमसे कम १५ मिनट बैठकर नामजप करनेका प्रयास करें | यदि सुबह संभव न हो तो संध्याकालमें कार्यालयसे घर लौटनेके पश्चात, हाथ-पैर धोकर, एक आसनपर बैठकर नामजप करनेका प्रयास करें अर्थात मेरी दिनचर्यामें कमसे कम १५ मिनट, मैं नामजपके लिए अवश्य दूँ, ऐसा प्रत्येक गृहस्थका प्रयास होना चाहिए और धीरे-धीरे इसे दो घंटे तक ले जानेका प्रयास करें | आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्यमें सुखद परिवर्तन तो आएगा ही, गृहस्थ जीवनकी अन्य कई समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी, मन शांत एवं आनंदित रहने लगेगा और व्यावसायिक जीवनमें भी कम प्रयासमें ही यश मिलने लगेगा | मुझे कई विद्यार्थियों ने बताया है कि नामजपके प्रयास आरम्भ करनेके पश्चात उनकी ग्रहण-शक्ति और स्मरण शक्तिमें अत्यधिक सुधार आया है |

गृहिणियोंको नामजप भोजन बनाते समय या भोजन परोसते समय तो अवश्य ही करना चाहिए, इससे भोजनमें ईश्वरका चैतन्य समाहित हो जाता है और भोजनके माध्यमसे नामजप परिवारके सदस्योंके सूक्ष्म शरीरमें प्रवेश कर उनकी वृत्तिमें परिवर्तन लाता है | प्रतिदिन रात्रिमें सोनेसे पूर्व दिन भर नामजप हेतु किए गए प्रयासकी समीक्षा करें और एक ध्येय रख उस ओर बढ़ते जाएँ | ध्यान रहे हमारा नामजप शीघ्रातिशीघ्र अखंड हो इस हेतु हमें प्रयास करने चाहिए | यदि नामजप अखंड होने भी लगे तब भी कमसे कम एक घंटे. बैठकर नामजप अवश्य ही करना चाहिए |

इससे नामजपका संस्कार अन्तर्मनमें दृढ़ होता है , निर्विचार अवस्थाकी अनुभूति होती है, मनको आनंदकी अनुभूति होती है और एकाग्रतापूर्वक किए गए नामजपसे अनिष्ट शक्तिसे लड़नेकी शक्ति प्राप्त होती है | यदि सुबह ही एक से दो घंटेका नामजप कर लिया जाये तो दिन भर अनिष्ट शक्तिके आक्रमणसे बचाव होता है और व्यावहारिक जीवनमें अनिष्टशक्तिद्वारा आनेवाली अडचन कम हो जाती हैं

कर्पूर के फायदे

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"कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम।
सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि।।"

अर्थात : कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले, करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं...हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं।
हिन्दू धर्म में संध्यावंदन, आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेने की परंपरा है। पूजन, आरती आदि धार्मिक कार्यों में कर्पूर का विशेष महत्व बताया गया है। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है।

कर्पूर के फायदे :


अनिंद्रा : रात में सोते वक्त कर्पूर जलाने से नींद अच्छी आती है। प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर जलाते रहने से घर में किसी भी प्रकार की आकस्मि घटना और दुर्घटना नहीं होती।

जीवाणु नाशक : वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।

औषधि के रूप में उपयोग :
* कर्पूर का तेल त्वचा में रक्त संचार को सहज बनाता है।
* गर्दन में दर्द होने पर कर्पूर युक्त बाम लगाने पर आराम मिलता है।
* सूजन, मुहांसे और तैलीयत्वचा के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है।
* आर्थराइटिस के दर्द से राहत पाने के लिए कर्पूर मिश्रित मलहम का प्रयोग करें।
* पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा रखेगा।
* कफ की वजह से छाती में होने वाली जकड़न में कर्पूर का तेल मलने से राहत मिलती है।
* कर्पूर युक्त मलहम की मालिश से मोच और मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द में राहत मिलती है।

नोट : गर्भावस्था या अस्थमा के मरीजों को कर्पूर तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
"कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम।
सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि।।"

अर्थात : कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले, करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं...हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं।
हिन्दू धर्म में संध्यावंदन, आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेने की परंपरा है। पूजन, आरती आदि धार्मिक कार्यों में कर्पूर का विशेष महत्व बताया गया है। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है।

कर्पूर के फायदे :
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अनिंद्रा : रात में सोते वक्त कर्पूर जलाने से नींद अच्छी आती है। प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर जलाते रहने से घर में किसी भी प्रकार की आकस्मि घटना और दुर्घटना नहीं होती।

जीवाणु नाशक : वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।

औषधि के रूप में उपयोग :
* कर्पूर का तेल त्वचा में रक्त संचार को सहज बनाता है।
* गर्दन में दर्द होने पर कर्पूर युक्त बाम लगाने पर आराम मिलता है।
* सूजन, मुहांसे और तैलीयत्वचा के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है।
* आर्थराइटिस के दर्द से राहत पाने के लिए कर्पूर मिश्रित मलहम का प्रयोग करें।
* पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा रखेगा।
* कफ की वजह से छाती में होने वाली जकड़न में कर्पूर का तेल मलने से राहत मिलती है।
* कर्पूर युक्त मलहम की मालिश से मोच और मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द में राहत मिलती है।

नोट : गर्भावस्था या अस्थमा के मरीजों को कर्पूर तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

16 November 2013

तुलसी, अदरक और लौंग ऐसे खाएंगे तो ये रोग परेशान नहीं करेंगे

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छोटी-छोटी हेल्थ प्रॉब्लम्स होने पर भी तुरंत दवा खाना कुछ लोगों की आदत होती है। इसका मुख्यकारण घरेलू नुस्खों व उन्हें अपनाएं जाने के सही तरीके की जानकारी न होना है। ये हेल्थ प्रॉब्लम्स ऐसी होती हैं जिन्हें बिना दवा खाए घरेलू नुस्खे अपनाकर भी ठीक किया जा सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही घरेलू नुस्खे जो सिरदर्द, सर्दी-जुकाम, पेटदर्द जैसी छोटी प्रॉब्लम्स में रामबाण की तरह काम करते हैं....

- कच्चा लहसुन रोज सुबह खाली पेट खाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है। रोज 50 ग्राम कच्चा ग्वारपाठा खाली पेट खाने से कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है।- कच्चा लहसुन रोज सुबह खाली पेट खाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है।

-अदरक खाने से मुंह के हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं। साथ ही अदरक दांतों को भी स्वस्थ रखता है।अदरक का एक छोटा टुकड़ा छीले बिना (छिलकेसहित) गर्म करके छिलका उतार दें। इसे मुंह में रख कर आहिस्ता-आहिस्ता चबाते चूसते रहने से अन्दर जमा और रुका हुआ बलगम निकल जाता है और सर्दी-खांसी ठीक हो जाती है।

- लौंग को पीसकर एक चम्मच शक्कर में थोड़ा-सा पानी मिलाकर उबाल लें व ठंडा कर लें। इसे पीने से उल्टी होना व जी मिचलाना बंद हो जाता है।

- 12 ग्राम गेहूं की राख इतने ही शहद में मिला कर चाटने से कमर और जोड़ों के दर्द में आराम होता है। गेहूं की रोटी एक ओर से सेंक लें और एक ओर से कच्ची रखें । कच्चे वाले भाग में तिल का तेल लगा कर दर्द वाले अंग पर बांध दें। इससे दर्द दूर हो जाएगा।

- हींग, सोंठ, गुड आदि पाचन में बेहद सहायक चीजों का सेवन करने से यह बीमारी जड़ से चली जाती है। थोड़ी सी हल्दी, धनिया, अदरक और काला नमक लेकर इस थोड़े से पानी में उबालें। इस गर्म पानी को पी जाएं। पेट से गैस छू-मंतर हो जाएगी।

-आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फायदा होता है।अर्जुन छाल और जंगली प्याज के कंदो का चूर्ण समान मात्रा में तैयार कर प्रतिदिन आधा चम्मच दूध के साथ लेने से हृदय रोगों में हितकर होता है।

-रोजाना तुलसी के पांच पत्ते खाने से मौसमी बुखार व जुकाम जैसी समस्याएं दूर रहती है।तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।मुंह के छाले दूर होते हैं व दांत भी स्वस्थ रहते हैं।

-तौलिए को गर्म पानी में भिगोकर उसे सिर पर थोड़ी देर रखने से सिरदर्द में तुरंत आराम मिलता है।

डायबिटीज कंट्रोल करने के 6 अनोखे उपाय, जो आपको शायद ही पता हो!

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दुनिया में लाखों लोग डायबिटीज से पीडि़त हैं। आज भारत में 4.5 करोड़ व्यक्ति डायबिटीज (मधुमेह) का शिकार हैं। इसका मुख्य कारण है असंयमित खानपान, मानसिक तनाव, मोटापा, व्यायाम की कमी। इसी कारण यह रोग हमारे देश में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। डायबिटीज चयापचय से संबंधित बीमारी है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज का ऑक्सीकरण पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है।
डाइबिटीज एक ऐसी प्रॉब्लम है जिससे ग्रसित व्यक्ति को कई दूसरे रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इनमें अंधापन, रक्तवाहिकाओं में संकुचन, ब्लडप्रेशर, किडनी से जुड़ी बीमारियां व नर्व डेमेज जैसी समस्याएं प्रमुख हैं। आज हम आपको दे रहे हैं घरेलू नुस्खों की लिस्ट जो डायबिटीज के साथ ही आपका वेट भी कंट्रोल कर देंगे।

जामुन के बीज- जामुन के बीज डायबिटीज में बहुत लाभदायक साबित होते हैं। जामुन की पत्तियों को चुसने से भी डायबिटीज में राहत मिलती है।जामुन का जूस भी लेना फायदेमंद होता है।

तुलसी की पत्तियां- तुलसी वैसे तो कई बीमारियों में रामबाण का काम करती है, लेकिन इसके डायबिटीज कंट्रोल करने के गुण को बहुत कम लोग जानते हैं। रोजाना तुलसी की पांच पत्तियां खाने से भी डायबिटीज कंट्रोल हो जाती है।

कैक्टस का जूस- कैक्टस का जूस डायबिटीज रोगियों के लिए लाभदायक होता है। कैक्टस का जूस ब्लडशुगर लेवल को स्थिर रखता है।

नीम- नीम भी डायबिटीज में रामबाण दवा है। नीम का सत्व या जूस सुबह लेने से डायबिटीज नियंत्रण में रहती है।साथ ही खून साफ होता है व स्किन प्रॉब्लम्स भी नहीं होती हैं।

ईसबगोल- अधिकतर लोग इसबगोल का सिर्फ एक गुण जानते हैं वो है कब्ज मिटाना। मगर ईसबगोल डायबिटीज पेशेन्ट्स के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। रोजाना ईसबगोल लेने से पेट भी साफ रहता है व डायबिटीज भी कंट्रोल में रहती है।

पोषक तत्वों से भरपूर खजूर

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* दांतों का गलना – छुहारे खाकर गर्म दूध पीने से कैलशियम की कमी से होने वाले रोग, जैसे दांतों की कमजोरी, हड्डियों का गलना इत्यादि रूक जाते हैं।

* रक्तचाप – कम रक्तचाप वाले रोगी 3-4 खजूर गर्म पानी में धोकर गुठली निकाल दें। इन्हें गाय के गर्म दूध के साथ उबाल लें। उबले हुए दूध को सुबह-शाम पीएं। कुछ ही दिनों में कम रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगी।

* कब्ज – सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है। खजूर का अचार भोजन के साथ खाया जाए तो अजीर्ण रोग नहीं होता तथा मुंह का स्वाद भी ठीक रहता है। खजूर का अचार बनाने की विधि थोड़ी कठिन है, इसलिए बना-बनाया अचार ही ले लेना चाहिए।

* पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं।

* मासिक धर्म : छुहारे खाने से मासिक धर्म खुलकर आता है और कमर दर्द में भी लाभ होता है।

* खजूर गर्भवती महिलाओं में दूध की मात्रा में वृद्धि करता है और अधिक ऊर्जा प्रदान करता है।

* आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा।

* मोटापा - खजूर का सेवन मोटापा लाता है तथा शरीर का भार बढ़ता है, अतः मोटे व्यक्ति सोचकर खाए। दुबले व्यक्ति भार बढ़ाने के लिए खा सकते हैं।

* जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें।
 
Photo: पोषक तत्वों से भरपूर खजूर****

* दांतों का गलना – छुहारे खाकर गर्म दूध पीने से कैलशियम की कमी से होने वाले रोग, जैसे दांतों की कमजोरी, हड्डियों का गलना इत्यादि रूक जाते हैं।

* रक्तचाप – कम रक्तचाप वाले रोगी 3-4 खजूर गर्म पानी में धोकर गुठली निकाल दें। इन्हें गाय के गर्म दूध के साथ उबाल लें। उबले हुए दूध को सुबह-शाम पीएं। कुछ ही दिनों में कम रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगी।

* कब्ज – सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है। खजूर का अचार भोजन के साथ खाया जाए तो अजीर्ण रोग नहीं होता तथा मुंह का स्वाद भी ठीक रहता है। खजूर का अचार बनाने की विधि थोड़ी कठिन है, इसलिए बना-बनाया अचार ही ले लेना चाहिए।

* पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं।

* मासिक धर्म : छुहारे खाने से मासिक धर्म खुलकर आता है और कमर दर्द में भी लाभ होता है।

* खजूर गर्भवती महिलाओं में दूध की मात्रा में वृद्धि करता है और अधिक ऊर्जा प्रदान करता है।

* आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा।

* मोटापा - खजूर का सेवन मोटापा लाता है तथा शरीर का भार बढ़ता है, अतः मोटे व्यक्ति सोचकर खाए। दुबले व्यक्ति भार बढ़ाने के लिए खा सकते हैं।

* जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें।

बड़ी इलायची

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परिचय :इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर खाते हैं। सुगन्ध के लिए इसे शर्बतों और मिठाइयों में मिलाते हैं। मसालों तथा औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इलायची दो प्रकार की होती है। छोटी और बड़ी। छोटी इलायची मालाबार और गुजरात में अधिक पैदा होती है, और बड़ी इलायची उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों तथा नेपाल में उत्पन्न होती है। दोनों प्रकार की इलायची के गुण समान होते हैं। छोटी इलायची अधिक सुगन्ध वाली होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत एला, स्थूल, बहुला
हिन्दी बड़ी इलायची लाल इलायची
बंगाली बड़ एलायच
मराठी थोखेला
गुजराती मोटी एलची, जाडी एलची
फारसी हैल्कल्क
इंग्लिश लार्ज कारडेमम
लैटिन एमोमम सुवेलेटम, छोटी इलायची
संस्कृत सूक्ष्ममैला, उपकुंचिका, तुत्थादि
हिन्दी छोटी इलायची, गुजराती इलायची
बंगाली छोट एलायच, गुजराती रानी एलायच
मराठी लघुवेला
गुजराती झीली एलची,
फारसी हैलहिला
इंग्लिश सेलसर कारडेमम
लैटिन एलोटोरिया कार्डामोमम

रंग : यह भूरा, कालापन और हल्का लाल रंग का होता है।

स्वाद : इसका स्वाद चरपरा (तीखा) होता है।

स्वरूप : इलायची का पेड़ अदरक के पेड़ के जैसा होता है। इसके फल सफेद और लाल रंग के होते हैं। इसके बीज काले होते हैं।

स्वभाव : आयुर्वेद के अनुसार इसकी प्रकृति शीतल है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार यह गर्म और खुश्क होती है।

हानिकारक : बड़ी इलायची को अधिक मात्रा में सेवन करने से आंतों को नुकसान हो सकता है।

दोषों को दूर करना वाला : बड़ी इलायची के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए कतीरा का उपयोग किया जाता है।

मात्रा : इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।

गुण : बड़ी इलायची पाचन शक्ति को बढ़ाती है, भूख को बढ़ाती है, दस्त और जी मिचलाने को रोकती है। इसके दाने मसूढ़ों को स्वस्थ व मजबूत बनाते हैं।

विभिन्न रोंगों का बड़ी इलायची से उपचार :

1 सिर दर्द :-इलायची को पीसकर सिर पर लगाने से सिर दर्द दूर हो जाता है। इसके चूर्ण को सूंघने से भी सिर दर्द दूर हो जाता है।

2 पेट दर्द के लिए : -2 इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर खाने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।

3 खांसी, दमा, हिचकी : -*इलायची खाने से खांसी, दमा, हिचकी आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
*इलायची, खजूर और अंगूर को शहद में चाटने से खांसी, दमा और कमजोरी दूर होती है। "

4 मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट) :-*इलायची को दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा पेशाब खुलकर आता है।
*इलायची के दाने का चूर्ण शहद में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) दूर हो जाता है।
*30-30 ग्राम इलायची और बांसकपूर लेकर चन्दन के तेल में घोंटकर उसकी 14 गोलियां बनाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) के रोग में लाभ होता है।"

5 पथरी :-पथरी होने पर इलायची का सेवन करने से लाभ मिलता है।

6 रक्तपित्त :-सुबह उठते ही खाली पेट रहकर 2 इलायची रोजाना चबाएं इसके बाद ऊपर से दूध या पानी पियें। इससे रक्तपित्त में लाभ मिलता है।

7 नेवले का विष :-इलायची का चूर्ण दही के साथ सेवन करने से नेवले का जहर उतर जाता है।

8 शक्ति एवं रोशनी वर्द्धक :-50-50 ग्राम इलायची के दाने, बांस, कपूर और बादाम को भिगोकर छान लेते हैं। इन्हें 50 ग्राम पिस्तों के साथ पत्थर पर बारीक पीसकर 2 लीटर दूध में पकाएं। पकने के बाद इसका हलुआ जैसा होने पर उसमें 20 ग्राम चांदी का वर्क मिलाएं। इसे रोजाना 10-20 ग्राम सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है और शारीरिक शक्ति बढ़ती है।

9 घबराहट व जी मिचलाना : -इलायची के दानों को पीसकर खाने से या शहद में मिलाकर चाटने से घबराहट व जी मिचलाना दूर हो जाता है।

10 वमन (उल्टी) : -*1-2 ग्राम इलायची के दानों का चूर्ण अथवा 5 बूंद इलायची के तेल को अनार के शर्बत में मिलाकर चाटने से जी मिचलाना और उल्टी होना बंद हो जाता है।
*इलायची को छिलके के साथ जलाकर 600 मिलीग्राम भस्म शहद के साथ बार-बार चाटने से कफजन्य उल्टियां आना बंद हो जाती हैं।"

11 हृदय रोग : -इलायची के दाने और पीपरामूल को बराबर मात्रा में लेकर घी के साथ रोजाना सुबह के समय चाटने से दिल के रोग मिट जाते हैं।

12 धातु की पुष्टि :-इलायची के दाने, जावित्री, बादाम की गिरी, गाय का मक्खन और चीनी को एक साथ मिलाकर रोजाना सुबह के समय खाने से धातु पुष्ट होती है और वीर्य गाढ़ा होता है।

13 धातु की वृद्धि :-असगंध, शतावरी, गोखरू, सफेद मूसली, क्रौंच (शुद्ध), खिरेंटी के बीज, एखरा, इलायची के दाने और बादाम बराबर मात्रा में लेकर शक्कर मिलाकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। यह 5-5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लेने से वीर्य की वृद्धि होती है।

14 शीघ्रपतन :-इलायची के दाने और ईसबगोल बराबर मात्रा में लेकर आंवले के रस में खरल करके बेर के आकार की गोलियां बना लेते हैं। यह एक-एक गोली सुबह-शाम लेने से शीघ्रपतन के रोग में लाभ होता है।

15 पेशाब में धातु का जाना :-इलायची के दाने और सेंकी हुई हींग का लगभग
360 मिलीग्राम चूर्ण घी और दूध के साथ रोगी को देने से पेशाब में धातु का आना बंद हो जाता है।

16 पेशाब का खुलकर आना : -इलायची के दाने और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर अनार के रस या दही के छने हुए पानी में सेंधानमक मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और मूत्राघात दूर हो जाता है।

17 सूखी खांसी :-छोटी इलायची को तवे पर जलाकर कोयला बनाकर धुंआ निकल जाने के बाद किसी बर्तन से ढंक दें। इनका चूर्ण बनाकर लगभग 500 मिलीग्राम घी और शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से सूखी खांसी में आराम आता है।

18 कफजन्य खांसी :-लगभग 500 मिलीग्राम इलायची के दानों का बारीक चूर्ण और सोंठ का चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर चाटने से या इलायची के तेल की 4-5 बूंद चीनी के साथ लेने से कफजन्य खांसी मिटती है।

19 कफ : -इलायची के दाने, कालानमक, घी तथा शहद को एक साथ मिलाकर चाटने से कफ रोग दूर हो जाता है।

20 ज्वर और जीर्ण ज्वर :-इलायची के दाने, बेलफल, साठी, दूध और पानी को एक साथ उबाल लें तथा दूध के शेष रहने रहने पर इसे उतारकर पी लेते हैं। इससे सभी प्रकार के बुखार और पुराने बुखार ठीक हो जाते हैं।

21 अफारा : -इलायची को आंवले के रस या चूर्ण के साथ 120 मिलीग्राम सेंकी हुई हींग और नींबू के थोड़े से रस में मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस, पेट का दर्द और अफारा का रोग मिट जाता है।

22 सभी प्रकार के दर्द :-इलायची के दाने सेंकी हुई हींग, जवाक्षार और सेंधानमक का काढ़ा बनाकर उसमें एरंड का तेल मिलाकर रोगी को देने से कमर, दिल, नाभि, पीठ, मस्तक, कान, आंख आदि स्थानों के सभी प्रकार के दर्द तुरन्त ही मिट जाते हैं।

23 कफजन्य हृदय रोग :-इलायची के दाने, पीपरामूल और पटोलपत्र को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लेते हैं। यह चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक शुद्ध घी के साथ चाटने से कफजन्य दिल रोग व दिल का दर्द दूर हो जाता है।

24 वातनाड़ी दर्द :-2 ग्राम इलायची के दाने का ताजा चूर्ण और लगभग 120 मिलीग्राम से 180 मिलीग्राम क्विनाइन मिलाकर वातनाड़ी शूल के रोगी को देने से शीघ्र लाभ मिलता है।

25 खूनी बवासीर : -इलायची के दाने, केसर, जायफल, बांस, कपूर, नागकेसर और शंखजीरा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लेते हैं। इसके 2 ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम शहद, 6 ग्राम घी और 3 ग्राम शक्कर को मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक लेने से रक्तप्रदर और खूनी बवासीर दूर हो जाती है। इस दवा के सेवन करते समय गुड़, खोपरा आदि चीजें नहीं खानी चाहिए।

26 मुंह का रोग : -10-10 ग्राम छालिया और बड़ी इलायची लेकर पीसकर और कपड़े में छानकर पॉउडर बना लें। रोजाना 2 से 3 बार इस पॉउडर को मुंह के घाव, छाले पर लगाने से मुंह के दाने और जख्म ठीक हो जाते हैं।

27 पित्ताशय की पथरी : -लगभग आधा ग्राम बड़ी इलायची को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर खाने से पथरी के रोग में फायदा होता है।

28 श्वेत प्रदर : -बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर उसमें बराबर मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह और शाम पीने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
 
Photo: बड़ी इलायची ------
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परिचय :इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर खाते हैं। सुगन्ध के लिए इसे शर्बतों और मिठाइयों में मिलाते हैं। मसालों तथा औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इलायची दो प्रकार की होती है। छोटी और बड़ी। छोटी इलायची मालाबार और गुजरात में अधिक पैदा होती है, और बड़ी इलायची उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों तथा नेपाल में उत्पन्न होती है। दोनों प्रकार की इलायची के गुण समान होते हैं। छोटी इलायची अधिक सुगन्ध वाली होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत एला, स्थूल, बहुला
हिन्दी बड़ी इलायची लाल इलायची
बंगाली बड़ एलायच
मराठी थोखेला
गुजराती मोटी एलची, जाडी एलची
फारसी हैल्कल्क
इंग्लिश लार्ज कारडेमम
लैटिन एमोमम सुवेलेटम, छोटी इलायची
संस्कृत सूक्ष्ममैला, उपकुंचिका, तुत्थादि
हिन्दी छोटी इलायची, गुजराती इलायची
बंगाली छोट एलायच, गुजराती रानी एलायच
मराठी लघुवेला
गुजराती झीली एलची,
फारसी हैलहिला
इंग्लिश सेलसर कारडेमम
लैटिन एलोटोरिया कार्डामोमम

रंग : यह भूरा, कालापन और हल्का लाल रंग का होता है।

स्वाद : इसका स्वाद चरपरा (तीखा) होता है।

स्वरूप : इलायची का पेड़ अदरक के पेड़ के जैसा होता है। इसके फल सफेद और लाल रंग के होते हैं। इसके बीज काले होते हैं।

स्वभाव : आयुर्वेद के अनुसार इसकी प्रकृति शीतल है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार यह गर्म और खुश्क होती है।

हानिकारक : बड़ी इलायची को अधिक मात्रा में सेवन करने से आंतों को नुकसान हो सकता है।

दोषों को दूर करना वाला : बड़ी इलायची के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए कतीरा का उपयोग किया जाता है।

मात्रा : इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।

गुण : बड़ी इलायची पाचन शक्ति को बढ़ाती है, भूख को बढ़ाती है, दस्त और जी मिचलाने को रोकती है। इसके दाने मसूढ़ों को स्वस्थ व मजबूत बनाते हैं।

विभिन्न रोंगों का बड़ी इलायची से उपचार :

1 सिर दर्द :-इलायची को पीसकर सिर पर लगाने से सिर दर्द दूर हो जाता है। इसके चूर्ण को सूंघने से भी सिर दर्द दूर हो जाता है।

2 पेट दर्द के लिए : -2 इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर खाने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।

3 खांसी, दमा, हिचकी : -*इलायची खाने से खांसी, दमा, हिचकी आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
*इलायची, खजूर और अंगूर को शहद में चाटने से खांसी, दमा और कमजोरी दूर होती है। "

4 मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट) :-*इलायची को दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा पेशाब खुलकर आता है।
*इलायची के दाने का चूर्ण शहद में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) दूर हो जाता है।
*30-30 ग्राम इलायची और बांसकपूर लेकर चन्दन के तेल में घोंटकर उसकी 14 गोलियां बनाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) के रोग में लाभ होता है।"

5 पथरी :-पथरी होने पर इलायची का सेवन करने से लाभ मिलता है।

6 रक्तपित्त :-सुबह उठते ही खाली पेट रहकर 2 इलायची रोजाना चबाएं इसके बाद ऊपर से दूध या पानी पियें। इससे रक्तपित्त में लाभ मिलता है।

7 नेवले का विष :-इलायची का चूर्ण दही के साथ सेवन करने से नेवले का जहर उतर जाता है।

8 शक्ति एवं रोशनी वर्द्धक :-50-50 ग्राम इलायची के दाने, बांस, कपूर और बादाम को भिगोकर छान लेते हैं। इन्हें 50 ग्राम पिस्तों के साथ पत्थर पर बारीक पीसकर 2 लीटर दूध में पकाएं। पकने के बाद इसका हलुआ जैसा होने पर उसमें 20 ग्राम चांदी का वर्क मिलाएं। इसे रोजाना 10-20 ग्राम सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है और शारीरिक शक्ति बढ़ती है।

9 घबराहट व जी मिचलाना : -इलायची के दानों को पीसकर खाने से या शहद में मिलाकर चाटने से घबराहट व जी मिचलाना दूर हो जाता है।

10 वमन (उल्टी) : -*1-2 ग्राम इलायची के दानों का चूर्ण अथवा 5 बूंद इलायची के तेल को अनार के शर्बत में मिलाकर चाटने से जी मिचलाना और उल्टी होना बंद हो जाता है।
*इलायची को छिलके के साथ जलाकर 600 मिलीग्राम भस्म शहद के साथ बार-बार चाटने से कफजन्य उल्टियां आना बंद हो जाती हैं।"

11 हृदय रोग : -इलायची के दाने और पीपरामूल को बराबर मात्रा में लेकर घी के साथ रोजाना सुबह के समय चाटने से दिल के रोग मिट जाते हैं।

12 धातु की पुष्टि :-इलायची के दाने, जावित्री, बादाम की गिरी, गाय का मक्खन और चीनी को एक साथ मिलाकर रोजाना सुबह के समय खाने से धातु पुष्ट होती है और वीर्य गाढ़ा होता है।

13 धातु की वृद्धि :-असगंध, शतावरी, गोखरू, सफेद मूसली, क्रौंच (शुद्ध), खिरेंटी के बीज, एखरा, इलायची के दाने और बादाम बराबर मात्रा में लेकर शक्कर मिलाकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। यह 5-5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लेने से वीर्य की वृद्धि होती है।

14 शीघ्रपतन :-इलायची के दाने और ईसबगोल बराबर मात्रा में लेकर आंवले के रस में खरल करके बेर के आकार की गोलियां बना लेते हैं। यह एक-एक गोली सुबह-शाम लेने से शीघ्रपतन के रोग में लाभ होता है।

15 पेशाब में धातु का जाना :-इलायची के दाने और सेंकी हुई हींग का लगभग
360 मिलीग्राम चूर्ण घी और दूध के साथ रोगी को देने से पेशाब में धातु का आना बंद हो जाता है।

16 पेशाब का खुलकर आना : -इलायची के दाने और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर अनार के रस या दही के छने हुए पानी में सेंधानमक मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और मूत्राघात दूर हो जाता है।

17 सूखी खांसी :-छोटी इलायची को तवे पर जलाकर कोयला बनाकर धुंआ निकल जाने के बाद किसी बर्तन से ढंक दें। इनका चूर्ण बनाकर लगभग 500 मिलीग्राम घी और शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से सूखी खांसी में आराम आता है।

18 कफजन्य खांसी :-लगभग 500 मिलीग्राम इलायची के दानों का बारीक चूर्ण और सोंठ का चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर चाटने से या इलायची के तेल की 4-5 बूंद चीनी के साथ लेने से कफजन्य खांसी मिटती है।

19 कफ : -इलायची के दाने, कालानमक, घी तथा शहद को एक साथ मिलाकर चाटने से कफ रोग दूर हो जाता है।

20 ज्वर और जीर्ण ज्वर :-इलायची के दाने, बेलफल, साठी, दूध और पानी को एक साथ उबाल लें तथा दूध के शेष रहने रहने पर इसे उतारकर पी लेते हैं। इससे सभी प्रकार के बुखार और पुराने बुखार ठीक हो जाते हैं।

21 अफारा : -इलायची को आंवले के रस या चूर्ण के साथ 120 मिलीग्राम सेंकी हुई हींग और नींबू के थोड़े से रस में मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस, पेट का दर्द और अफारा का रोग मिट जाता है।

22 सभी प्रकार के दर्द :-इलायची के दाने सेंकी हुई हींग, जवाक्षार और सेंधानमक का काढ़ा बनाकर उसमें एरंड का तेल मिलाकर रोगी को देने से कमर, दिल, नाभि, पीठ, मस्तक, कान, आंख आदि स्थानों के सभी प्रकार के दर्द तुरन्त ही मिट जाते हैं।

23 कफजन्य हृदय रोग :-इलायची के दाने, पीपरामूल और पटोलपत्र को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लेते हैं। यह चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक शुद्ध घी के साथ चाटने से कफजन्य दिल रोग व दिल का दर्द दूर हो जाता है।

24 वातनाड़ी दर्द :-2 ग्राम इलायची के दाने का ताजा चूर्ण और लगभग 120 मिलीग्राम से 180 मिलीग्राम क्विनाइन मिलाकर वातनाड़ी शूल के रोगी को देने से शीघ्र लाभ मिलता है।

25 खूनी बवासीर : -इलायची के दाने, केसर, जायफल, बांस, कपूर, नागकेसर और शंखजीरा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लेते हैं। इसके 2 ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम शहद, 6 ग्राम घी और 3 ग्राम शक्कर को मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक लेने से रक्तप्रदर और खूनी बवासीर दूर हो जाती है। इस दवा के सेवन करते समय गुड़, खोपरा आदि चीजें नहीं खानी चाहिए।

26 मुंह का रोग : -10-10 ग्राम छालिया और बड़ी इलायची लेकर पीसकर और कपड़े में छानकर पॉउडर बना लें। रोजाना 2 से 3 बार इस पॉउडर को मुंह के घाव, छाले पर लगाने से मुंह के दाने और जख्म ठीक हो जाते हैं।

27 पित्ताशय की पथरी : -लगभग आधा ग्राम बड़ी इलायची को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर खाने से पथरी के रोग में फायदा होता है।

28 श्वेत प्रदर : -बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर उसमें बराबर मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह और शाम पीने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

हींग

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हींग कोई फल या फूल नहीं होती ,यह तो पेड़ के तने से निकली हुई गोंद होती है। इसका पेड़ 5 से 9 फीट उंचा होता है। इसके पत्ते 1 से 2 फीट लम्बे होते हैं।

ये हींग इतने सारे रोगों में काम आती है कि आपको जानकार आश्चर्य होगा। आइये कुछ महत्वपूर्ण उपयोगों के बारे में जान लीजिये-

** यदि प्रजनन अंगों से सम्बंधित कोई भी बीमारी है तो 3 चुटकी हींग का चूर्ण सेकिये और 3 ही चुटकी इलायची दाने का चूर्ण आग पर सेंक लीजिये और रोगी को दूध में मिला कर पिला दीजिये।



** किसी महिला को अक्सर गर्भपात हो जाता हो तो यही हिंग उसे रोकने में सक्षम होती है।गर्भवती महिला को चक्कर आने पर या दर्द होने पर हींग को घी में सेंक कर तुरंत पानी से निगलवा दीजिये।



** पेट में दर्द हो या कीड़े हों तो 3-4 चुटकी हींग का पाउडर पानी से खाली पेट निगल लीजिये।



** कोई भी नशा विशेषतः अफीम का हो तो 2 ग्राम हींग का चूर्ण दही या पानी में मिला कर पिला दीजिये।



** दांत में दर्द हो रहा हो तो वहाँ घी में तली हुई हींग दबाइए।



** घाव मे कीड़े पड़ जाएँ तो नीम के पत्तो के साथ हींग पीस का घाव में लगाइए ,कीड़े तो मरेंगे ही घाव जल्दी भरेगा।



** आयुर्वेद में हींग को काफी गुणकारी माना जाता है बस एक सावधानी रखिये की हींग हमेशा घी में ही तली या भुनी जानी चाहिए



** दाद ,खाज खुजली में हींग को पानी में रगड़ कर लेप कर सकते हैं।
 
Photo: हींग ----

हींग कोई फल या फूल नहीं होती ,यह तो पेड़ के तने से निकली हुई गोंद होती है। इसका पेड़ 5 से 9 फीट उंचा होता है। इसके पत्ते 1 से 2 फीट लम्बे होते हैं।

ये हींग इतने सारे रोगों में काम आती है कि आपको जानकार आश्चर्य होगा। आइये कुछ महत्वपूर्ण उपयोगों के बारे में जान लीजिये-

** यदि प्रजनन अंगों से सम्बंधित कोई भी बीमारी है तो 3 चुटकी हींग का चूर्ण सेकिये और 3 ही चुटकी इलायची दाने का चूर्ण आग पर सेंक लीजिये और रोगी को दूध में मिला कर पिला दीजिये।



** किसी महिला को अक्सर गर्भपात हो जाता हो तो यही हिंग उसे रोकने में सक्षम होती है।गर्भवती महिला को चक्कर आने पर या दर्द होने पर हींग को घी में सेंक कर तुरंत पानी से निगलवा दीजिये।



** पेट में दर्द हो या कीड़े हों तो 3-4 चुटकी हींग का पाउडर पानी से खाली पेट निगल लीजिये।



** कोई भी नशा विशेषतः अफीम का हो तो 2 ग्राम हींग का चूर्ण दही या पानी में मिला कर पिला दीजिये।



** दांत में दर्द हो रहा हो तो वहाँ घी में तली हुई हींग दबाइए।



** घाव मे कीड़े पड़ जाएँ तो नीम के पत्तो के साथ हींग पीस का घाव में लगाइए ,कीड़े तो मरेंगे ही घाव जल्दी भरेगा।



** आयुर्वेद में हींग को काफी गुणकारी माना जाता है बस एक सावधानी रखिये की हींग हमेशा घी में ही तली या भुनी जानी चाहिए



** दाद ,खाज खुजली में हींग को पानी में रगड़ कर लेप कर सकते हैं।

अरंडी (Castor)

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किसी भी स्थान पर और किसी भी ऋतु में उगने वाला और कम पानी से पलने वाला अरंडी का वृक्ष गाँव में तो खेतों का रक्षक और घर का पड़ोसी बनकर रहने वाला होता है।

वातनाशक, जकड़न दूर करने वाला और शरीर को गतिशील बनाने वाला होने के कारण इसे अरंडी नाम दिया गया है। खासतौर पर अरंडी की जड़ और पत्ते दवाई में प्रयुक्त होते हैं। इसके बीजों में से जो तेल निकलता है उसे अरंडी का तेल कहते हैं।

गुण-दोषः -

गुण में अरंडी वायु तथा कफ का नाश करने वाली, रस में तीखी, कसैली, मधुर, उष्णवीर्य और पचने के बाद कटु होती है। यह गरम, हलकी, चिकनी एवं जठराग्नि, स्मृति, मेधा, स्थिरता, कांति, बल-वीर्य और आयुष्य को बढ़ाने वाली होती है।
यह उत्तम रसायन है और हृदय के लिए हितकर है। अरंडी के तेल का विपाक पचने के बाद मधुर होता है। यह तेल पचने में भारी और कफ करने वाला होता है।
यह तेल आमवात, वायु के तमाम 80 प्रकार के रोग, शूल, सूजन, वायुगोला, नेत्ररोग, कृमिरोग, मूत्रावरोध, अंडवृद्धि, अफरा, पीलिया, पैरों का वात (सायटिका), पांडुरोग, कटिशूल, शिरःशूल, बस्तिशूल (मूत्राशयशूल), हृदयरोग आदि रोगों को मिटाता है।
अरंडी के बीजों का प्रयोग करते समय बीज के बीच का जीभ जैसा भाग निकाल देना चाहिए क्योंकि यह जहरीला होता है।
शरीर के अन्य अवयवों की अपेक्षा आँतों और जोड़ों पर अरंडी का सबसे अधिक असर होता है।

औषधि-प्रयोगः-

कटिशूल (कमर का दर्द)- कमर पर अरंडी का तेल लगाकर, अरंडी के पत्ते फैलाकर खाट-सेंक (चारपाई पर सेंक) करना चाहिए। अरंडी के बीजों का जीभ निकाला हुआ भाग (गर्भ), 10 ग्राम दूध में खीर बनाकर सुबह-शाम लेना चाहिए।

शिरःशूलः -वायु से हुए सिर के दर्द में अरंडी के कोमल पत्तों पर उबालकर बाँधना चाहिए तथा सिर पर अरंडी के तेल की मालिश करनी चाहिए और सोंठ के काढ़े में 5 से 10 ग्राम अरंड़ी का तेल डालकर पीना चाहिए।

दाँत का दर्दः- अरंडी के तेल में कपूर में मिलाकर कुल्ला करना चाहिए और दाँतों पर मलना चाहिए।

योनिशूलः -प्रसूति के बाद होने वाले योनिशूल को मिटाने के लिये योनि में अरंडी के तेल का फाहा रखें।

उदरशूलः- अरंडी के पके हुए पत्तों को गरम करके पेट पर बाँधने से और हींग तथा काला नमक मिला हुआ अरंडी का तेल पीने से तुरंत ही राहत मिलेगी।

सायटिका (पैरों का वात)- एक कप गोमूत्र के साथ एक चम्मच अरंडी का तेल रोज सुबह शाम लेने और अरंड़ी के बीजों की खीर बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।

हाथ-पैर फटने परः- सर्दियों में हाथ, पैर, होंठ इत्यादि फट जाते हों तो अरंडी का तेल गरम करके उन पर लगायें और इसका जुलाब लेते रहें।

संधिवातः- अरंडी के तेल में सोंठ मिलाकर गरम करके जोड़ों पर (सूजन न हो तो) मालिश करनी चाहिए। सोंठ तथा सौंफ के काढ़े में अरंडी का तेल डालकर पीना चाहिए और अरंडी के पत्तों का सेंक करना चाहिए।
आमवात में यही प्रयोग करना चाहिए।
पक्षाघात और मुँह का लकवाः- सोंठ डाले हुए गरम पानी में 1 चम्मच अरंडी का तेल डालकर पीना चाहिए एवं तेल से मालिश और सेंक करनी चाहिए।

कृमिरोगः- वायविडंग के काढ़े में रोज सुबह अरंडी का तेल डालकर लें।

अनिद्राः- अरंडी के कोमल पत्ते दूध में पीसकर ललाट और कनपटी पर गरम-गरम बाँधने चाहिए। पाँव के तलवों और सिर पर अरंडी के तेल की मालिश करनी चाहिए।

गाँठः -अरंडी के बीज और हरड़े समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे नयी गाँठ पर बाँधने से वह बैठ जायेगी और अगर लम्बे समय की पुरानी गाँठ होगी तो पक जायेगी।

आँतरिक चोटः- अरंडी के पत्तों के काढ़े में हल्दी डालकर दर्दवाले स्थान पर गरम-गरम डालें और उसके पत्ते उबालकर हल्दी डालकर चोटवाले स्थान पर बाँधे।

आँखें आनाः- अरंडी के कोमल पत्ते दूध में पीसकर, हल्दी मिलाकर, गरम करके पट्टी बाँधें।

स्तनशोथः- स्तनपाक,स्तनशोथ और स्तनशूल में अरंडी के पत्ते पीसकर लेप करें।

अंडवृद्धिः- नयी हुई अंडवृद्धि में 1-2 चम्मच अरंडी का तेल, पाँच गुने गोमूत्र में डालकर पियें और अंडवृद्धि पर अरंडी के तेल की मालिश करके हलका सेंक करना चाहिए अथवा अरंडी के कोमल पत्ते पीसकर गरम-गरम लगाने चाहिए और एक माह तक एक चम्मच अरंडी का तेल देना चाहिए।

आमातिसारः- सोंठ के काढ़े में अथवा गरम पानी में अरंडी का तेल देना चाहिए अथवा अरंडी के तेल की पिचकारी देनी चाहिए। यह इस रोग का उत्तम इलाज है।

गुदभ्रंशः- बालक की गुदा बाहर निकलती हो तो अरंडी के तेल में डुबोई हुई बत्ती से उसे दबा दें एवं ऊपर से रूई रखकर लंगोट पहना दें।

आँत्रपुच्छ शोथ (अपेण्डिसाइटिस)- प्रारंभिक अवस्था में रोज सुबह सोंठ के काढ़े में अरंडी का तेल दें।

हाथीपाँव (श्लीपद रोग)- 1 चम्मच अरंडी के तेल में 5 गुना गोमूत्र मिलाकर 1 माह तक लें।

रतौंधीः- अरंडी का 1-1 पत्ता खायें और उसका 1-1 चम्मच रस पियें।

वातकंटकः- पैर की एड़ी में शूल होता है तो उसे दूर करने के लिए सोंठ के काढ़ें में या गरम पानी में अरंडी का तेल डालकर पियें तथा अरंडी के पत्तों को गरम करके पट्टी बाँधें।

तिलः- शरीर पर जन्म से ही तिल हों तो उन्हें से दूर करने के लिए अरंडी के पत्तों की डंडी पर थोड़ा कली चूना लगाकर उसे तिल पर घिसने से खून निकलकर तिल गिर जाते हैं।

ज्वरदाहः -ज्वर में दाह होता तो अरंडी के शीतल कोमल पत्ते बिस्तर पर बिछायें और शरीर पर रखें।

गुणों से मालामाल मूली

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ताजी व कोमल मूली, त्रिदोषशामक, जठराग्निवर्धक व उत्तम पाचक है | गर्मियों में इसका सेवन लाभकारी है | इसका कंद, पत्ते, बीज सभी औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं | ताजी व कोमल मूली ही खानी चाहिए | पुरानी, सख्त व मोटी मूली त्रिदोषप्रकोपक, भारी एवम रोगकारक होती है |
इसके १०० ग्राम पत्तों में ३४० मि.ग्रा. कैल्शियम, ११० मि.ग्रा. फास्फोरस व ८.८ मि.ग्रा. लोह तत्त्व पाया जाता है | प्रचुर मात्रा में निहित ये खनिज तत्त्व दाँत एवं हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और रक्त को बढ़ाते हैं | इसके पत्ते सलाद के रूप में अथवा सब्ब्जी बनाकर भी खाये जा सकते हैं | पत्तों के रस का भी सेवन किया जाता हैं | इसके पत्ते गुर्दे के रोग, मूत्र-संबंधी विकार, उच्च रक्तचाप, मोटापा, बवासीर व पाचन-संबंधी गड़बड़ियों में खूब लाभदायी हैं |
गर्मी में अधिक पसीना आने से शारीर में सोडियम की मात्रा कम हो जाती है | मूली में ३३ मि.ग्रा. सोडियम पाया जाता है, अत: मूली खाने से इसकी आपूर्ति सहजता से हो जाती है और थकान भी मिट जाती है |

पत्ते भी हैं फायदेमंद-

अक्सर लोग मूली खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं, जबकि पत्तों में भी स्वाद तथा काफी मात्र में पोषक तत्व होते हैं। उन्हें भूजी- सब्जियां, पराठों में प्रयोग करें। इसमें पतली-पतली फलियां भी आती हैं, जिसे मोंगर या मोंगरा के नाम से जाना जाता है। इन फलियों की सब्जियां बहुत स्वादिष्ट बनती हैं। हमेशा छोटी, पतली तथा ताजा मूली का ही प्रयोग करें।

हड्डियों को मजबूती दे-

मूली खाने से शरीर की विषैली गैस (कार्बन डाई ऑक्साइड) का निष्कासन होता है तथा जीवनदायी ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। मूली खाने से दांत मंसूड़े मजबूत होते हैं, हड्डियों में मजबूती आती है। थकान मिटाने और नींद लाने में भी मूली सहायक है।

पीलिया में फायदेमंद-

यह उच्च रक्तचाप, बवासीर की तकलीफ में लाभकारी है। इसका रस निकाल पीने से मूत्र रोगों में भी लाभ होता है। पीलिया रोग में ताजा मूली का प्रयोग बहुत ही उपयोगी है।

मोटापा से मुक्ति दिलाए-

आज की महाबीमारी मोटापा से परेशान हैं तो इसके रस में नींबू व नमक मिला कर नियमित सेवन करें, लाभ होगा। सिर में जूं पड़ रही हो तो इसका रस पानी में मिला कर धोएं।

हीमोग्लोबिन की कमी दूर करे-

मूली के रस में सामान मात्र में अनार का रस मिला कर पीने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है।

दांतों को चमकाए-

इसके खाने से रक्तविकार दूर होते हैं। त्वचा के दाग धब्बे हटते हैं। दांतों पर पीलापन हो तो मूली के टुकड़े पर नींबू का रस लगाकर दांतों पर धीरे-धीरे मलने से दांत साफ होंगे। इसके अलावा मूली को काट कर नींबू लगा कर छोटे छोटे टुकड़े दांतों से काट कर धीरे-धीरे चबाएं। थोड़ी देर बाद उगल दें। ऐसा नियमित रूप से करने से दांतों पर चढ़ी पीली परतें हट जाएंगी।

पायरिया से राहत-

पायरिया से परेशान लोग मूली के रस से दिन में 2-3 बार कुल्ले करें और इसका रस पिएं तो लाभ होगा। मूली के रस से कुल्ले करना, मसूड़ों-दांतों पर मलना और पीना दांतों के लिये बहुत लाभकारी है। मूली को चबा-चबा कर खाना दांतों व मसूड़ों को निरोग करता है।

कब्ज से राहत दिलाए-

कब्ज से परेशान हैं तो मूली पर नींबू व नमक लगा कर सवेरे खाएं, लाभ होगा। भोजन में मूली सलाद के रूप में लें तो और लाभ होगा। सुबह-शाम मूली का रस पीने से पुराने कब्ज में भी लाभ होता है। इस दौरान तला-भूना भोजन न खाएं, बल्कि खिचड़ी, दलिया आदि खाएं।
पेट-दर्द में कारगर

पेट-दर्द परेशान करे तो मूली का रस नींबू मिला कर पिएं या मूली का अचार खाएं।
मुंह की दुर्गन्ध दूर करे -

मुंह से गंध आती हो तो मूली के पत्तों पर सेंधा नमक मिला कर सवेरे-सवेरे
रोज खाएं। दुर्गन्ध नष्ट होगी।

चेहरा दमकाए, खूबसूरत बनाएहम सभी खूबसूरत दिखना चाहते हैं लेकिन मुंहासे और झाईयां चेहरे की खूबसूरती छीन लेती हैं। अगर आप इससे मुक्ति के लिए काफी प्रयास कर चुके हैं तो इस बार मूली को आजमा कर देखें, लाभ होगा। मुंहासों के लिए मूली का टुकड़ा गोल काट कर मुंहासों पर लगाएं और तब तक लगाए रखें, जब तक यह खुश्क न हो जाए। थोड़ी देर बाद चेहरे को ठण्डे पानी से धो लें, काफी लाभ होगा। मुंहासे निकलना खून की खराबी का लक्षण है। मूली के सेवन से इस समस्या से मुक्ति मिलती है।

घरेलू नुस्खों से दूर करें दर्द

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जिस तरह का जीवन हम जी रहे हैं, उसमें सिरदर्द होना एक आम बात है। लेकिन यह दर्द हमारी दिनचर्या में शामिल हो जाए तो हमारे लिए बहुत कष्टदायी हो जाता है। दर्द से छुटकारा पाने के लिए हम पेन किलर घरेलू उपाय अपनाकर इसे दूर कर सकते हैं। इन घरेलू उपायों के कोई साईड इफेक्ट भी नहीं होते।

1. अदरक: अदरक एक दर्द निवारक दवा के रूप में भी काम करती है। यदि सिरदर्द हो रहा हो तो सूखी अदरक को पानी के साथ पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे अपने माथे पर लगाएं। इसे लगाने पर हल्की जलन जरूर होगी लेकीन यह सिरदर्द दूर करने में मददगार होती है।

2. सोडा: पेट में दर्द होने पर कप पानी में एक चुटकी खाने वाला सोडा डालकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है। सि्त्रयो के मासिक धर्म के समय पेट के नीचे होने वाले दर्द को दूर करने मे खाने वाला सोडा पानी में मिलाकर पीने से दर्द दूर होता है। एसिडिटी होने पर एक चुटकी सोडा, आधा चम्मच भुना और पिसा हुआ जीरा, 8 बूंदे नींबू का रस और स्वादानुसार नमक पानी में मिलाकर पीने से एसिडिटी में राहत मिलती है।

3. अजवायन: सिरदर्द होने पर एक चम्मच अजवायन को भूनकर साफ सूती कपडे में बांधकर नाक के पास लगाकर गहरी सांस लेने से सिरदर्द में राहत मिलती है। ये प्रक्रिया तब तक दोहराएं जब तक आपका सिरदर्द ठीक नहीं हो जाता। पेट दर्द को दूर करने में भी अजवायन सहायक होती है। पेट दर्द होने पर आधा चम्मच अजवायन को पानी के साथ फांखने से पेट दर्द में राहत मिलती है।

4. बर्फ : सिरदर्द में बर्फ की सिंकाई करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा स्पॉन्डिलाइटिस में भी बर्फ की सिंकाई लाभदायक होती है। गर्दन में दर्द होने पर भी बर्फ की सिंकाई लाभदायक होती है।

5. हल्दी: हल्दी कीटाणुनाशक होती है। इसमें एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक और दर्द निवारक तत्व पाए गए हैं। ये तत्व चोट के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। घाव पर हल्दी का लेप लगाने से वह ठीक हो जाता है। चोट लगने पर दूध में हल्दी डालकर पीने से दर्द में राहत मिलती है। एक चम्मच हल्दी में आधा चम्मच काला गर्म पानी के साथ फांखने से पेट दर्द व गैस में राहत मिलती है।

6. तुलसी के पत्ते: तुलसी में बहुत सारे औषधीय तत्व पाए जाते हैं। तुलसी की पत्तियों को पीसकर चंदन पाउडर में मिलाकर पेस्ट बना लें। दर्द होने पर प्रभावित जगह पर उस लेप को लगाने से दर्द में राहत मिलेगी। एक चम्मच तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर हल्का गुनगुना करके खाने से गले की खराश और दर्द दूर हो जाता है। खांसी में भी तुलसी का रस काफी फायदेमंद होता है।

7. मेथी: एक चम्मच मेथी दाना में चुटकी भर पिसी हुई हींग मिलाकर पानी के साथ फांखने से पेटदर्द में आराम मिलता है। मेथी डायबिटीज में भी लाभदायक होती है। मेथी के लड्डू खाने से जोडों के दर्द में लाभ मिलता है।

8. हींग: हींग दर्द निवारक और पित्तवर्द्धक होती है। छाती और पेटदर्द में हींग का सेवन लाभकारी होता है। छोटे बच्चों के पेट में दर्द होने पर हींग को पानी में घोलकर पकाने और उसे बच्चो की नाभि के चारो ओर उसका लेप करने से दर्द में राहत मिलती है।

9. सेब: सुबह खाली पेट प्रतिदिन एक सेब खाने से सिरदर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। चिकित्सकों का मानना है कि सेब का नियमित सेवन करने से रोग नहीं घेरते।

10. करेला: करेले का रस पीने से पित्त में लाभ होता है। जोडों के दर्द में करेले का रस लगाने से काफी राहत मिलती है।

15 November 2013

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :-

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दूध के साथ दही लें या नहीं?

दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।

दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं?

दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।

सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं?
आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।

दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।


नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।

खाने के साथ छाछ लें या नहीं?

छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।

दही और फल एक साथ लें या नहीं?

फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।

दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं?

दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

मछली के साथ दूध पिएं या नहीं?

दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद?

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।

खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए।

कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।

मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं

आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।

खाने के साथ पानी पिएं या नहीं?

पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।

लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं?

लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।

परांठे के साथ दही खाएं या नहीं?

आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।

फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं?

घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।


दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं?

दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।

तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं?

एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।

खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं?
मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।

खाने के बाद चाय पिएं या नहीं?

खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।

छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं?

कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।

भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं?

मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।

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