30 December 2013

समलैंगिकता

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किशोरावस्था में आप अक्सर उस व्यक्ति की कल्पना करने लगते हैं जिन्हें आप पसंद करते हैं। यह कोई भी हो सकते हैं,एक लड़का या लड़की, एक मित्र, कोई जिन्हें आप जानते हों, या यहाँ तक की आपके स्कूल के शिक्षक या कोई फिल्म अभिनेता या कोई पॉपस्टार। और आप स्वयं को किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में कल्पना करते हुए भी पा सकते हैं जो आपके ही लिंग के हों।
यदि आप अपने आप को किसी ऐसे व्यक्ति के प्यार में पाते हैं जो आपके ही लिंग के हैं और आपको लगता है की आप उनके साथ सेक्स करना चाहते हैं तो सम्भवतः आप समलैंगिक पुरुष या महिला या द्वीलैंगिक हैं।
यदि आप समलैंगिक हैं तो आप अपने ही लिंग के व्यक्ति की आकर्षित ओर होते हैं। समलैंगिक पुरुष अक्सर गे कहलाते हैं और समलैंगिक महिलाएं लेस्बियन। यदि आप पुरुष एवं महिलाओं दोनों की ओर आकर्षित होते हैं तो आप द्वीलैंगिक हैं। और यदि आप विपरीत लिंग वाले लोगों की ओर आकर्षित होते हैं तो आप विषमलैंगिक हैं।
कुछ लोगों के लिए - विशेषकर लड़कियों के लिए - यौनिकता इन सभी पहचानों में से कोई एक या दूसरी नहीं होती है बल्कि वह एक किस्म के पैमाने (स्केल) पर सरकती रहती है। आप अपने आप को समलैंगिक पुरुष या समलैंगिक महिला नहीं मानते हैं फिर भी आप अपने लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो सकते हैं।

रिश्तों में समस्याए

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यदि आपके बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेन्ड आपके प्रति ईमानदार नहीं हैं तो यह बात आपको सदमा पहुँचाने वाली हो सकती है। यदि एक साथी को यह पता चल जाता है की दूसरे साथी उनके प्रति ईमानदार नहीं हैं तो आमतौर पर यह एक बहुत ही तीव्र, भावनात्मक एवं गुस्से भरे विवाद की ओर अग्रसर होने लगता है।
आप इस रिश्ते का अन्त करने का निश्चय कर सकते हैं। पर आप इस बात पर भी सहमत हो सकते हैं की हालांकि, एक व्यक्ति ने गलती की है पर आप अपने रिश्ते को इतनी एहमियत देते हैं की आप इस रिश्ते में फिर भी रह सकते हैं। ऐसी स्थिति में यह उम्मीद न करें की चीज़ें तुरन्त पहले की तरह सामान्य हो जाएगीं। पुनः विश्वास हासिल करने में थोड़ा समय लगता है।
ईर्ष्या की भावना
हर किसी को कभी न कभी ईर्ष्या की भावना होती है, विशेषकर तब जब आप किसी के प्यार में हैं। ईर्ष्या का मुख्य कारण असुरक्षा की भावना है। आप स्वयं के लिए एवं अपने रिश्ते के लिए असुरक्षित महसूस करते हैं। और ईर्ष्या से बर्ताव करते हुए आप दूसरे व्यक्ति को दिखाना चाहते हैं की आप अन्य किसी भी व्यक्ति से ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
दूसरे व्यक्ति पर हक जताना या पज़ेसिव होना
कभी कभी ईर्ष्या बहुत गम्भीर रुप ले लेती है। एक साथी इतनी ईर्ष्या करने लगते हैं की दूसरे साथी को लगता है की वे अब कुछ और कर ही नहीं सकते। केवल एक नज़र या एक शब्द या अन्य किसी व्यक्ति के लिए थोड़ा सा भी ध्यान, ईर्ष्या की चिंगारी को बढ़ा सकता है।
यदि आपको लगता है की आप ऐसा महसूस कर रहे हैं तो अपने साथी से इस बारे में बात करने की कोशिश करें और उन्हें समझाएं की आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं। और यदि आपके साथी ईर्ष्या करते हैं तो याद रखें की यह सामान्यतः असुरक्षा की भावना के कारण होता है। पता लगाने की कोशिश करें की किस वज़ह से वे असुरक्षित महसूस करते हैं और उनके मानसिक तनाव को कम करने की कोशिश करें। इस समस्या का एक ही समाधान है, आपस में बात करना।
रिश्ते का अन्त करना
कुछ लोग किसी एक व्यक्ति से रिश्ता बनाते हैं, उनसे शादी करते हैं और सारा जीवन साथ रहते हैं। पर वास्तव में यह एक अप्राकृतिक मानव व्यवहार है। ज़्यादातर रिश्ते एक समय पर आकर खत्म हो जाते हैं।
  • क्या आप रिश्ते का अन्त करना चाहते हैं ?
अपने साथी को बताने का समय चुनें। उन पर चिल्लाएं नहीं या उनका अपमान न करें। कोशिश करें की आप सारा दोष अपने साथी को न दें - आम तौर पर कहानी के दो पहलू होते हैं, यदि किसी रिश्ते में कोई समस्या होती है, तो और इसमें दोनों साथियों का योगदान होता है। सिर्फ अपने साथी पर उंगली उठाने की बजाय, यह समझाने की कोशिश करें की आपको इस रिश्ते में क्या समस्या है।
  • क्या किसी और ने आपसे रिश्ता खत्म किया है ?
यदि आप किसी से प्यार करते हैं और वे आपसे रिश्ता खत्म कर लेते हैं तो बहुत बुरा लगता है। आप यह स्वीकार नहीं करना चाहते हैं की सब खत्म हो गया है। आप को दुख लग सकता है या गुस्सा आ सकता है। अस्वीकृत किया जाना दुख देता है। पर यदि आपका रिश्ता खत्म हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है की आप एक व्यक्ति के रुप में असफल हो गए हैं। यह विश्वास करना कठिन लग सकता है पर समय के साथ आप फिर से बेहतर महसूस करने लगेंगें।
प्यार से जुड़ी चिंताएँ
यदि आप अपने रिश्ते को लेकर चिंतित हैं तो इसे अपने तक न रखें। इसके बारे में बात करें, प्राथमिक रुप से अपने साथी से। यदि आप परेशानियों को दिल में बंद कर के रखेंगें, तो आम तौर पर ये और तकलीफ़ दे सकतीं हैं। यदि आपको अपने साथी से बात करने की हिम्मत नहीं पड़ रही है तो किसी ऐसे व्यक्ति को तलाषें जो आपके नज़दीकी हों और आप उन पर विश्वास करते हों - जैसे आपके कोई अच्छे दोस्त, आपके बहन या भाई, माता या पिता।

रिश्तों के लिए सुझाव

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एक दूसरे के प्रति उदार रहें
  • एक दूसरे से बात करें

  • एक साथ कुछ अच्छा करने की सोचें और मज़े करें।
  • सब कुछ साथ-साथ ही ना करें। अपने खुद के लिए भी थोड़ा समय रखें - और अपने अन्य दोस्तों को भूला न दें।
  • एक दूसरे को विस्मित करें। कोई रोमांचक संदेश भेजें या कोई छोटा सा अप्रत्याशित तोहफ़ा दें।

रिश्ते

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यदि आप दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं, तो संभवतः आप एक रिश्ते की शुरुआत कर सकते हैं।
निसंदेह, यह इस बात पर निर्भर करता है की आप कहाँ रहते हैं। पश्चिमी देशों में यह एक आम बात है की लोग अपनी किशोरावस्था में एवं वयस्क होने पर कई बॉयफ्रेंड एवं गर्लफ्रेन्ड से मिलते हैं जब तक उन्हें ऐसे साथी नहीं मिल जाते जिनके साथ वे रहने का निश्चय कर सकें या शादी कर सकें। दूसरी ओर, दक्षिणी एसिया में, लोगों के बॉयफ्रेंड एवं गर्लफ्रेन्ड होना सामान्य बात नहीं है। यहाँ आप सिर्फ अपने पति या पत्नी के साथ ही रिश्ता रख सकते हैं, आम तौर पर शादी के बाद जो अन्य लोगों द्वारा तय कराई जाती है।
यदि आपके कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेन्ड हैं तो आप शायद ज़्यादा समय एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए, एक दूसरे को आलिंगन करते हुए, साथ लेटे हुए, एक दूसरे कोचूमते हुए या शायद सेक्स करते हुए बिताना चाहेंगें।
जब आप प्यार में होते हैं, तब आप अनिश्चय एवं असुरक्षा की भावना महसूस कर सकते हैं। आपके साथी क्या चाहते हैं ? क्या आप डेट कर रहे हैं या आपका रिश्ता स्थिर है या है ही नहीं ? सेक्स के बारे में आप क्या सोचते हैं ? आप कितना आगे तक जाना चाहते हैं और आप यह बात कैसे स्पष्ट रुप से बता पाएंगें ? एक नए रिश्ते में आप दोनों को एक दूसरे को जानना होता है और अपने तरीके से महसूस करना होता है। आप अपना समय लें। यदि अब भी आप इन बातों को लेकर अनिश्चित हैं तो प्रसन्नचित होकर इस बारे में बात करने की कोशिश करें। अक्सर आप पाते हैं की दूसरे व्यक्ति भी वैसे ही सोच रहे होते हैं।
और फिर आता है सेक्स
आप एक रिश्ते में हैं - डेट कर रहे हैं, आपका रिश्ता स्थिर है - पर क्या आप सेक्स भी करते हैं ? ज़रुरी तो नहीं है। सेक्स करना तभी शुरु करें जब आप इसके लिए तैयार हों। एक दूसरे को जानें, और पता करें की आपके साथी इस बारे में क्या सोचते हैं। यदि आप सेक्स करना चाहते हैं, तो क्या एक जैसे कारणों के लिए करना चाहते हैं ? कुछ लोग सिर्फ सेक्स का आनन्द प्राप्त करने के लिए सेक्स करते हैं। दुसरे लोग एक प्यार भरे रिश्ते की शुरुआत के लिए सेक्स करते हैं। और कुछ लोग शादी से पहले सेक्स करने में विश्वास ही नहीं रखते हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए मेकिंग लव भाग देखें।
विषमलैंगिक, समलैंगिक, द्विलैंगिक
लड़के एवं लड़कियों के बीच रिश्ते होना बहुत ही आम बात है। पर लड़कों का लड़कों के साथ एवं लड़कियों का लड़कियों के साथ भी रिश्ता हो सकता है। और कुछ लोग दोनों लड़कों एवं लड़कियों की तरफ़ आकर्षित होते हैं।

प्यार

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जब आपको प्यार हो जाता है तो आप दिनभर उन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं जिनसे आप प्यार करते हैं। आपको लगता है की जो भी वे करते हैं वह अनोखा है। प्यार में होना आपको सातवें आसमान पर होने जैसा एहसास दे सकता है, पर यह आपको धैर्यहीन या अशांत भी बना सकता है।
उस व्यक्ति को मिलकर आपको एक अनजाना अशांत एहसास होता है। आपको पेट में दर्द भी हो सकता है। आप हमेशा मुस्कराते रहते हैं। उन्हें देखकर आप निःशब्द हो जाते हैं या फिर - आप उन्हें प्रभावित करने की कोशिश में बहुत ज़्यादा बोलने लगते हैं। यदि आपको यह सब जाना पहचाना लग रहा है तो सम्भवतः आपको प्यार हो गया है!

यदि आप यह जानना चाहते हैं की दूसरे व्यक्ति आपके बारे में क्या सोचते हैं तो आपको अपनी भावनाओं पर भरोसा करना होगा। अक्सर आप यह महसूस कर लेते हैं की दूसरे व्यक्ति आपमें रुचि रखते हैं या नहीं। यदि आप इस बारे में निश्चित नहीं हैं तो थोड़ी हिम्मत दिखाएं! ऐसे मौकों की तलाश करें जहाँ आपको उनसे बात करने का अवसर मिल सके। आप उन्हें फोन पर संदेश भेज सकते हैं या एम एस एन जैसी किसी इंटरनेट साइट पर उनसे संपर्क कर सकते हैं। यदि आपको लगता है की वे आपके संदेश का जवाब नहीं देना चाह रहे हैं या आपको टालना या आपसे बचना चाह रहें हैं तो इसकी बहुत संभावना है की वे आपकी भावनाओं का प्रत्युत्तर नहीं देगें।
संदेश को पहचानें
हालांकि, प्यार के खेल में यह एक अत्यधिक पेचीदा पहेली होती है, यह ध्यान में रखें की कुछ लोग आपसे आकर्षित होने के बाद भी आपसे दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी ही भावनाओं को संभालने का तरीका नहीं पता होता है! या उन्हें यह भी लग सकता है की आपके प्रयास अच्छे लगने पर भी उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। अतः यदि कोई लड़का या लड़की आपके संदेश का तुरन्त जवाब नहीं देते हैं तो तुरन्त ही यह न सोच लें की वे आपमें रुचि नहीं रखते हैं।
दूसरी ओर, यदि आपके दो चार बार संपर्क करने की कोशिश का कोई जवाब न मिले तो आपको संदेश समझ लेना चाहिए। या फिर, उन्हें थोड़ा समय दें। किसी पर दबाव डालने से या उन्हें परेशान करने से वे आपमें ज़्यादा रुचि नहीं दिखाएंगें। हो सकता है इससे कुछ हाथ न लगे, पर धैर्य बनाए रखें, आपके लिए उनकी भावनाओं में बदलाव भी आ सकता है। यदि आपको साफ़ ’ना’ का संदेश मिल जाता है तो अपने जीवन में आगे बढ़ें और उस व्यक्ति को अकेला छोड़ दें।
प्यार दुख देता है
कभी कभी प्यार की कहानियों का अंत सुखद होता है पर हमेशा नहीं। हो सकता है आप किसी से प्यार करने लगें पर उनकी भावनाएं आपके लिए वैसी ही न हों। या आपके गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड आपसे संबंध खत्म कर लें। या आप प्यार में तो हैं, पर कुछ परिस्थियों - जैसे पारिवारिक दबाव, जिम्मेदारियों का एहसास, धार्मिक मान्यता, दूसरों द्वारा करवाई गई शादी - के कारण उस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। या आप प्यार तो करते हैं पर कुछ कारणों की वजह से आपको एक दूसरे से काफी समय दूर रहना पड़ रहा है। प्यार सच में बहुत दुख दे सकता है।
यह एक जानी मानी कहावत समझ लीजिए, परन्तु सत्य है। जब दिल टूटता है तो यह विश्वास कर पाना मुश्किल लगता है की आप फिर से पहले जैसा महसूस कर पाएंगें। पर आप ऐसा कर सकेंगें। इसमें थोड़ा समय लगता है। अपना मन कहीं और लगाने की कोशिश करें - कोई खेल खेलें या संगीत सुनें। इसके बारे में अपने किसी अच्छे मित्र से बात करें, अपनी भावनाओं को कविता या गीत के रुप में लिखें। और याद रखें की हर किसी को कभी न कभी प्यार में दर्द मिलता है। यहाँ तक की कक्षा के सबसे लोकप्रिय लड़के एवं लड़कियों को भी।
प्यार और सेक्स
बहुत सारे लोग केवल उन्हीं लोगों के साथ सेक्स करते हैं जिनसे उन्हें प्यार होता है या जिन्हें वे प्यार करते हैं। पर प्यार सेक्स के समान नहीं होता और सेक्स प्यार का प्रतिरुप नहीं होता है। आप सेक्स काम प्रवृति के कारण भी कर सकते है, केवल सेक्स का आनन्द लेने के लिए। पर ज़्यादातर लोगों के लिए, उन्हें उन लोगों के साथ सेक्स करने में ज़्यादा गहरा आनन्द मिलता है जिनसे वे प्यार करते हैं।

गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर

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सामान्यतः लोग गेहूँ को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर है।

खाँसी - 20 ग्राम गेहूँ के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खाँसी जल्दी चली जाती है।

दाहकता - 80 ग्राम गेहूँ को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूँ के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है।

अस्थि भंग - एक मुठ्ठी गेहूँ को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है।
स्मरण शक्ति- गेहूँ से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
Photo: सामान्यतः लोग गेहूँ को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। 

खाँसी - 20 ग्राम गेहूँ के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खाँसी जल्दी चली जाती है।

दाहकता - 80 ग्राम गेहूँ को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूँ के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है। 

अस्थि भंग - एक मुठ्ठी गेहूँ को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है। 
स्मरण शक्ति- गेहूँ से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

शीत ऋतु में उपयोगी पाक

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शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।

अदरक पाकः-

अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।

खजूर पाकः-

खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।

बादाम पाकः-

बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।

मेथी पाकः-

मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।

सूंठी पाकः-

320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।

अंजीर पाकः-

500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।

अश्वगंधा पाकः-

अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।

परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।
Photo: शीत ऋतु में उपयोगी पाक -------
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शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।

अदरक पाकः-

अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।

खजूर पाकः-

खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।

बादाम पाकः-

बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।

मेथी पाकः-

मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।

सूंठी पाकः-

320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।

अंजीर पाकः-

500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।

अश्वगंधा पाकः-

अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।

परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।

तिल्ली और जिगर की सूजन

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यदि तिल्ली और जिगर में सूजन हो तो अदरक का रस और शहद मिलाकर गर्मी के मौसम में शर्बत बनाकर पीएं। इससे बहुत लाभ होता हैं। यदि सर्दी का मौसम हो तो गर्म पानी में शहद मिलाकर ले सकते हैं।
तिल्ली की सूजन की शिकायत दूर करने के लिए शहद में सोंठ का चूर्ण मिलाकर चाटना लाभप्रद रहता है। दिन में तीन बार ऐसा कर सकते हैं। ऐसा करने से एक सप्ताह में ही तिल्ली सिमट जाती है।
Photo: तिल्ली और जिगर की सूजन -----
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यदि तिल्ली और जिगर में सूजन हो तो अदरक का रस और शहद मिलाकर गर्मी के मौसम में शर्बत बनाकर पीएं। इससे बहुत लाभ होता हैं। यदि सर्दी का मौसम हो तो गर्म पानी में शहद मिलाकर ले सकते हैं।
तिल्ली की सूजन की शिकायत दूर करने के लिए शहद में सोंठ का चूर्ण मिलाकर चाटना लाभप्रद रहता है। दिन में तीन बार ऐसा कर सकते हैं। ऐसा करने से एक सप्ताह में ही तिल्ली सिमट जाती है।

मक्खियां या कीट कैसे नदारद होती हैं

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फलों को छीलकर या काटकर रखने पर अक्सर छोटी- छोटी मक्खियां या कीट इसके आस-पास मंडराते या कटे हिस्सों पर बैठे दिख जाते हैं, चिंता ना करें..तुलसी की छोटी सी डंठल या कुछ ८-१० पत्तियों को फलों की ट्रे या प्लेट पर या फलो के आसपास रख दीजिए और फिर देखिए कैसे नदारद होती हैं ये मक्खियां..इसे खुले हुए खाद्य पदार्थों पर भी आजमाकर देखिए.


फलों को छीलकर या काटकर रखने पर अक्सर छोटी- छोटी मक्खियां या कीट इसके आस-पास मंडराते या कटे हिस्सों पर बैठे दिख जाते हैं, चिंता ना करें..तुलसी की छोटी सी डंठल या कुछ ८-१० पत्तियों को फलों की ट्रे या प्लेट पर या फलो के आसपास रख दीजिए और फिर देखिए कैसे नदारद होती हैं ये मक्खियां..इसे खुले हुए खाद्य पदार्थों पर भी आजमाकर देखिए.

होम मेड हर्बल टी व अजवायन का सेवन

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ठण्ड से बचने के लिए लोग तरह तरह की युक्ति व जुगाड़ में लगे रहते हैं, रूम हीटर, ब्लोअर, अलाव, कउड़ा, शरीर पर कई कपडे भी लाद लेंगे यहाँ तक कि कुछ लोग घरों से निकलना भी बंद कर देते हैं।

चाय पर चाय भी पी जाते हैं जो कि नुकसान देय है क्योंकि चायपत्ती के माध्यम से शरीर में अत्यधिक निकोटिन जाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

किन्तु यदि हम कुछ घरेलू मसालों के माध्यम से घर पर हर्बल पेय बनाकर केवल दिन में दो बार सेवन कर लें, एकाक बार थोड़ी सी अजवायन फांक लें तथा योगासन की दृष्टि से सूर्य नमस्कार व् योग मुद्रासन तथा प्राणायाम की दृष्टि से भ्रस्त्रिका व सूर्यभेदी प्राणायाम शरीर को अतिरिक्त उर्जा व ऊष्मा देता है ।

हर्बल पेय के लिए निम्नांकित सभी सामान जैसे काली मिर्च, छोटी इलायची, तेजपत्ता, लवंग, दालचीनी, मुलेठी, अजवायन, सोंठ, पीपर, स्याह
जीरा इत्यादि को सम मात्रा में लेकर पाउडर बना कर एक में मिला लें।

अनुपात की दृष्टि से दो कप पानी में उक्त मिश्रण का पाउडर १/२ चम्मच, एक चम्मच शक्कर, चार तुलसी पत्ती, आवश्यकतानुसार दूध डाल कर खौला लें। चायपत्ती डालने की आवश्यकता नहीं है, अब इसे छान कर चुस्की लेते हुए शरीर को स्वस्थ रखें।

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि इस पेय पदार्थ व अजवायन के अलग सेवन से शरीर को ऊष्मा व उर्जा तो मिलेगी ही साथ ही साथ शीत ऋतु में होने वाली समस्याएँ जैसे सर्दी, खांसी, गले की खराश, टांसिल रोग, काफ, सीने की जकड़न, बुखार, उल्टी , कोल्ड डायरिया इत्यादि से मुक्ति मिलेगी।
Poojya Acharya Bal Krishan Ji Maharaj's photo.
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श्रावणकुमारके दादा

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श्रावणकुमारके दादा धौम्य ऋषि थे व उसके माता-पिता रत्नावली व रत्नऋषि थे । रत्नऋषि नंदिग्रामके राजा अश्वपतिके राजपुरोहित थे । अश्वपति राजाकी कन्याका नाम कैकेयी था । रत्नऋषिने कैकेयीको सभी शास्त्र सिखाए और यह बताया कि यदि दशरथकी संतान हुई, तो वह संतान राजगद्दीपर नहीं बैठ पाएगी अथवा दशरथकी मृत्युके पश्चात् यदि चौदह वर्षके दौरान राजसिंहासनपर कोई संतान बैठ भी गई, तो रघुवंश नष्ट हो जाएगा । ऐसी होनीको टालने हेतु, आगे चलकर वसिष्ठ ऋषिने कैकेयीको दशरथसे दो वर मांगनेके लिए कहा । उनमेंसे एक वरसे उन्होंने रामको चौदह वर्षतक ही वनवास भेजा व दूसरे वरसे भरतको राज्य देनेके लिए कहा । उन्हें ज्ञात था कि रामके रहते भरत राजा बनना स्वीकार नहीं करेंगे यानी राजसिंहासनपर नहीं बैठेंगे । वसिष्ठ ऋषिके कहनेपर ही भरतने सिंहासनपर रामकी प्रतिमाकी अपेक्षा उनकी चरणपादुका स्थापित की । यदि प्रतिमा स्थापित की होती, तो शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गंध एकत्रित होनेके नियमसे जो परिणाम रामके सिंहासनपर बैठनेसे होता, वही उनकी प्रतिमा स्थापित करनेसे भी होता ।


श्रावणकुमारके दादा धौम्य ऋषि थे व उसके माता-पिता रत्नावली व रत्नऋषि थे । रत्नऋषि नंदिग्रामके राजा अश्वपतिके राजपुरोहित थे । अश्वपति राजाकी कन्याका नाम कैकेयी था । रत्नऋषिने कैकेयीको सभी शास्त्र सिखाए और यह बताया कि यदि दशरथकी संतान हुई, तो वह संतान राजगद्दीपर नहीं बैठ पाएगी अथवा दशरथकी मृत्युके पश्चात् यदि चौदह वर्षके दौरान राजसिंहासनपर कोई संतान बैठ भी गई, तो रघुवंश नष्ट हो जाएगा । ऐसी होनीको टालने हेतु, आगे चलकर वसिष्ठ ऋषिने कैकेयीको दशरथसे दो वर मांगनेके लिए कहा । उनमेंसे एक वरसे उन्होंने रामको चौदह वर्षतक ही वनवास भेजा व दूसरे वरसे भरतको राज्य देनेके लिए कहा । उन्हें ज्ञात था कि रामके रहते भरत राजा बनना स्वीकार नहीं करेंगे यानी राजसिंहासनपर नहीं बैठेंगे । वसिष्ठ ऋषिके कहनेपर ही भरतने सिंहासनपर रामकी प्रतिमाकी अपेक्षा उनकी चरणपादुका स्थापित की । यदि प्रतिमा स्थापित की होती, तो शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गंध एकत्रित होनेके नियमसे जो परिणाम रामके सिंहासनपर बैठनेसे होता, वही उनकी प्रतिमा स्थापित करनेसे भी होता ।

रामराज्य

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खरे अर्थमें रामराज्यका अर्थ है अपने विषय वासनाओंपर नियंत्रण कर ईश्वरीय तत्त्वमें रममाण होना ! जब प्रत्येक व्यक्तिके अंदर इस प्रकारके रामराज्य हेतु प्रयास आरंभ हो जाएंगे तो पहले व्यक्तिके अंदर, उसके पश्चात उसके परिवारके अंदर, तत्पश्चात उसके गाँव, जिले, राज्य और राष्ट्रके अंदर रामराज्य आनेमें समय नहीं लगेगा अतः हमें रामराज्य हेतु दो छोरसे प्रयास करने होंगे । एक व्यष्टि स्तरपर और दूसरा समष्टि स्तरपर | व्यष्टि स्तर अर्थात वैयक्तिक स्तरपर रामराज्य हेतु अखंड नामजपके प्रयास करना अपने दोष और अहम के लक्षण दूर करने हेतु सतर्कतासे प्रयास करना और समष्टि स्तरपर धर्मग्लानि रोकना, धर्माधिष्टित राष्ट्रप्रणाली स्थापित करना, देवी -देवता, संत -गुरु, गौ, गंगाकी अवमानना रोकना, राष्ट्रद्रोही एवं धर्मद्रोहीको कडा दण्ड देना यह सब प्रयास करना आवश्यक होगा ! और हमारी जैसी अनेक संस्थाएं इस दिशामें प्रयासरत हैं और उसका परिणाम मात्र दस वर्षके अंदर दिखाई देनेवाला है !


रामराज्य 
खरे अर्थमें रामराज्यका अर्थ है अपने विषय वासनाओंपर नियंत्रण कर ईश्वरीय तत्त्वमें रममाण होना ! जब प्रत्येक व्यक्तिके अंदर इस प्रकारके रामराज्य हेतु  प्रयास आरंभ हो जाएंगे तो पहले व्यक्तिके अंदर, उसके पश्चात उसके परिवारके अंदर, तत्पश्चात उसके गाँव,  जिले,  राज्य और राष्ट्रके अंदर रामराज्य  आनेमें समय नहीं लगेगा अतः हमें रामराज्य हेतु दो छोरसे प्रयास करने होंगे ।  एक व्यष्टि स्तरपर और दूसरा समष्टि स्तरपर | व्यष्टि स्तर अर्थात  वैयक्तिक स्तरपर रामराज्य हेतु अखंड नामजपके प्रयास करना अपने दोष और अहम के लक्षण दूर करने हेतु सतर्कतासे प्रयास करना और समष्टि स्तरपर धर्मग्लानि रोकना,  धर्माधिष्टित राष्ट्रप्रणाली स्थापित करना,  देवी -देवता,  संत -गुरु,  गौ,  गंगाकी अवमानना रोकना,  राष्ट्रद्रोही एवं  धर्मद्रोहीको कडा दण्ड देना यह सब प्रयास करना आवश्यक होगा ! और हमारी जैसी अनेक संस्थाएं इस दिशामें प्रयासरत हैं और उसका परिणाम मात्र दस  वर्षके अंदर दिखाई देनेवाला है !

उपाय करने से पहले कर्म सुधारें

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एक गांव के कुएं में गिर कर एक कुत्ता मर गया। लोगों ने जब कुएं में मरा कुत्ता देखा तो उसके जल को अपवित्र समझ उसका उपयोग करना छोड़ दिया और कुएं के जल को पवित्र करने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों से उपाय पूछा। विद्वानों ने कई प्रकार के पूजा-पाठ व जाप के द्वारा उसके पवित्रीकरण का उपाय करने के लिए कहा और ग्रामीणों ने पूरी श्रद्धा से उन उपायों को सम्पादित किया। किन्तु सब कुछ करने के बावजूद कुएं के जल में बदबू आती रही तो सभी लोग उन प्रकाण्ड विद्वानों को दोष देते हुए उनके घर पर पहुंचे। विद्वानों ने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता। तुम लोगों को हमारे किसी विरोधी ने बहकाया है कि हमारे उपाय सही नहीं है। चलो चल कर देखते हैं।
जब वे विद्वान कुएं के पास पहुँचे तो यह देख कर दंग रह गए कि कुएं में वह मरा कुत्ता पूर्ववत पड़ा हुआ है। विद्वानों ने ग्रामीणों की मूर्खता को कोसते हुए समझाया कि नादानों, इन उपायों को चाहे तुम हजार बार दुहराओ किन्तु जब तक कुएं से मरे हुए कुत्ते को बाहर नहीं फेंकोगे और उसका जल पूरी तरह उलीच नहीं डालोगे तब तक कुंए का जल पवित्र नहीं हो सकता। उपायों का अवलम्बन तो बाद में कामयाब होता है। तुम्हारा पहला कार्य तो मरे हुए कुत्ते को निकालना और पानी को उलीचना है।
मित्रो! कष्टों के निवारण के लिए भगवान की अनुकम्पा हासिल करने के लिए चाहे कोई भी उपाय उपयोग में लाया जाए उसके पहले उन बुनियादी त्रिसूत्री ब्रह्मास्त्र उपायों को अपनाना आवश्यक है। क्योंकि इसको अपनाए बिना कोई भी उपाय आपको मनोवांछित फल प्रदान नहीं करेगा।
ये उपाय हैं -
1. माँ-बाप की सेवा करें।
2. पति-पत्नी दोनों ही धर्मानुकूल आचरण करें।
3. राष्ट्र के प्रति वफादार रहें। राष्ट्र के साथ दगा न करें।
मुझे विश्वास है कि यदि आप मेरे इन बातों को मद्देनजर रखते हुए ही भगवान की अनुकंपा पाने के लिए शास्त्रोक्त उपाय करेंगे तो आपको अवश्य ही लाभ होगा और यदि ऐसा नहीं करते हैं तो चाहे कितने ही उपाय कर लीजिए वे फलिभूत नहीं होंगे फिर भगवान को दोष देने से कोई फायदा नहीं।
उपाय करने से पहले कर्म सुधारें
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एक गांव के कुएं में गिर कर एक कुत्ता मर गया। लोगों ने जब कुएं में मरा कुत्ता देखा तो उसके जल को अपवित्र समझ उसका उपयोग करना छोड़ दिया और कुएं के जल को पवित्र करने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों से उपाय पूछा। विद्वानों ने कई प्रकार के पूजा-पाठ व जाप के द्वारा उसके पवित्रीकरण का उपाय करने के लिए कहा और ग्रामीणों ने पूरी श्रद्धा से उन उपायों को सम्पादित किया। किन्तु सब कुछ करने के बावजूद कुएं के जल में बदबू आती रही तो सभी लोग उन प्रकाण्ड विद्वानों को दोष देते हुए उनके घर पर पहुंचे। विद्वानों ने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता। तुम लोगों को हमारे किसी विरोधी ने बहकाया है कि हमारे उपाय सही नहीं है। चलो चल कर देखते हैं।
जब वे विद्वान कुएं के पास पहुँचे तो यह देख कर दंग रह गए कि कुएं में वह मरा कुत्ता पूर्ववत पड़ा हुआ है। विद्वानों ने ग्रामीणों की मूर्खता को कोसते हुए समझाया कि नादानों, इन उपायों को चाहे तुम हजार बार दुहराओ किन्तु जब तक कुएं से मरे हुए कुत्ते को बाहर नहीं फेंकोगे और उसका जल पूरी तरह उलीच नहीं डालोगे तब तक कुंए का जल पवित्र नहीं हो सकता। उपायों का अवलम्बन तो बाद में कामयाब होता है। तुम्हारा पहला कार्य तो मरे हुए कुत्ते को निकालना और पानी को उलीचना है।
मित्रो! कष्टों के निवारण के लिए भगवान की अनुकम्पा हासिल करने के लिए चाहे कोई भी उपाय उपयोग में लाया जाए उसके पहले उन बुनियादी त्रिसूत्री ब्रह्मास्त्र उपायों को अपनाना आवश्यक है। क्योंकि इसको अपनाए बिना कोई भी उपाय आपको मनोवांछित फल प्रदान नहीं करेगा।
ये उपाय हैं -
1. माँ-बाप की सेवा करें।
2. पति-पत्नी दोनों ही धर्मानुकूल आचरण करें।
3. राष्ट्र के प्रति वफादार रहें। राष्ट्र के साथ दगा न करें।
मुझे विश्वास है कि यदि आप मेरे इन बातों को मद्देनजर रखते हुए ही भगवान की अनुकंपा पाने के लिए शास्त्रोक्त उपाय करेंगे तो आपको अवश्य ही लाभ होगा और यदि ऐसा नहीं करते हैं तो चाहे कितने ही उपाय कर लीजिए वे फलिभूत नहीं होंगे फिर भगवान को दोष देने से कोई फायदा नहीं।

बच्चों को योग सिखाने के लाभ

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- इससे बच्चें शांत होते है.
- आज के दौर में बच्चें भी बहुत तनाव में होते है. योग से उनका तनाव दूर होता है.
- योग बच्चों की एकाग्रता और संतुलन को बढाता है.
- योग करने से बच्चें सक्रीय और बेहतर जीवन शैली की ओर कदम बढाते है.
- योग करने से बच्चों की नींद और अच्छी होती है.
- योग करने से बच्चों की कार्य प्रवीणता यानी मोटर स्किल में वृद्धि होती है. वे बारीक से बारीक और भारी से भारी काम ज़्यादा अच्छे से करते है.
- योग करने से बच्चों का पाचन अच्छा होता है . इससे उनके मुंह का स्वाद और भूख खुलने से वे सब कुछ खाना पसंद करते है. वे जंक फ़ूड से दूर रह पाते है.
- योग से बच्चों में लचीलापन और शक्ति बढती है.
- योग से बच्चें बेहतर तरीके से अपने विचार लिख-बोल पाते है. उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.
- योग से बच्चें अपने शरीर , मन , विचार और बुद्धि के प्रति जागरूक होते है.
- योग करने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है.
- इससे बच्चों में रोग प्रतिकारक शक्ति का विकास होता है. बार बार सर्दी खांसी , अस्थमा और पेट की गड़बड़ी नहीं होती.
- बच्चों में किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती.
- बचपन में शरीर हल्का और लचीला होता है. कई आसन बचपन से ही करना चाहिए जैसे शिर्षासन. इससे बड़े हो कर भी वे अच्छे से सभी आसन कर पाते है.
- योग भारत का गौरव है इसे हर भारतीय को करते आना चाहिए. इससे देश के प्रति अभिमान में वृद्धि होती है.
- योग सीख लेने पर एक शैली में बच्चा निपुण हो जाता है. यह उसे अपने आगे के जीवन में बहुत काम आयेगा.
- योग से प्राप्त लचीलापन , शारीरिक और मानसिक क्षमता अन्य खेल और कला सीखने में काम आएँगी.
- स्वामी रामदेवजी ने बच्चों के लिए बहुत मनोरंजक शैली में योग कार्यक्रम बनाए है. इस लिंक पर जाकर बच्चों के साथ इन कार्यक्रमों को देखें -दिखाए. इससे बच्चें योग की ओर आकर्षित होंगे.


बच्चों को योग सिखाने के लाभ---
- इससे बच्चें शांत होते है.
- आज के दौर में बच्चें भी बहुत तनाव में होते है. योग से उनका तनाव दूर होता है.
- योग बच्चों की एकाग्रता और संतुलन को बढाता है.
- योग करने से बच्चें सक्रीय और बेहतर जीवन शैली की ओर कदम बढाते है.
- योग करने से बच्चों की नींद और अच्छी होती है. 
- योग करने से बच्चों की कार्य प्रवीणता यानी मोटर स्किल में वृद्धि होती है. वे बारीक से बारीक और भारी से भारी काम ज़्यादा अच्छे से करते है.
- योग करने से बच्चों का पाचन अच्छा होता है . इससे उनके मुंह का स्वाद और भूख खुलने से वे सब कुछ खाना पसंद करते है. वे जंक फ़ूड से दूर रह पाते है.
- योग से बच्चों में लचीलापन और शक्ति बढती है.
- योग से बच्चें बेहतर तरीके से अपने विचार लिख-बोल पाते है. उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.
- योग से बच्चें अपने शरीर , मन , विचार और बुद्धि के प्रति जागरूक होते है.
- योग करने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है.
- इससे बच्चों में रोग प्रतिकारक शक्ति का विकास होता है. बार बार सर्दी खांसी , अस्थमा और पेट की गड़बड़ी नहीं होती. 
- बच्चों में किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती. 
- बचपन में शरीर हल्का और लचीला होता है. कई आसन बचपन से ही करना चाहिए जैसे शिर्षासन. इससे बड़े हो कर भी वे अच्छे से सभी आसन कर पाते है. 
- योग भारत का गौरव है इसे हर भारतीय को करते आना चाहिए. इससे देश के प्रति अभिमान में वृद्धि होती है. 
- योग सीख लेने पर एक शैली में बच्चा निपुण हो जाता है. यह उसे अपने आगे के जीवन में बहुत काम आयेगा.
- योग से प्राप्त लचीलापन , शारीरिक और मानसिक क्षमता अन्य खेल और कला सीखने में काम आएँगी. 
- स्वामी रामदेवजी ने बच्चों के लिए बहुत मनोरंजक शैली में योग कार्यक्रम बनाए है. इस लिंक पर जाकर बच्चों के साथ इन कार्यक्रमों को देखें -दिखाए. इससे बच्चें योग की ओर आकर्षित होंगे.

28 December 2013

नमक का ये आसान प्रयोग कर देगा हर तरह के बुखार की छुट्टी

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मौसम में बुखार की चपेट में आना एक आम बात है। कभी वायरल फीवर के नाम पर तो कभी मलेरिया जैसे नामों से यह सभी को अपनी चपेट में ले लेता है। फिर बड़ा आदमी हो या कोई बच्चा इस बीमारी की चपेट में आकर कई परेशानियों से घिर जाते हैं। कई बुखार तो ऐसे हैं जो बहुत दिनों तक आदमी को अपनी चपेट में रखकर उसे पूरी तरह से कमजोर बना देता है। पर घबराइए नहीं सभी तरह के बुखार की एक अचूक दवा है भुना नमक। इसके प्रयोग किसी भी तरह के बुखार को उतार देता है।

भुना नमक बनाने की विधि- खाने मे इस्तेमाल आने वाला सादा नमक लेकर उसे तवे पर डालकर धीमी आंच पर सेकें। जब इसका कलर कॉफी जैसा काला भूरा हो जाए तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा हो जाने पर एक शीशी में भरकर रखें।जब आपको ये महसूस होने लगे की आपको बुखार आ सकता है तो बुखार आने से पहले एक चाय का चम्मच एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर ले लें। जब आपका बुखार उतर जाए तो एक चम्मच नमक एक बार फिर से लें। ऐसा करने से आपको बुखार कभी पलट कर नहीं आएगा।


विशेष :-

- हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों को यह विधि नहीं अपनानी चाहिए।


- यह प्रयोग एक दम खाली पेट करना चाहिए इसके बाद कुछ खाना नहीं चाहिए और ध्यान रखें कि इस दौरान रोगी को ठण्ड न लगे।


- अगर रोगी को प्यास ज्यादा लगे तो उसे पानी को गर्म कर उसे ठण्डा करके दें।


- इस नुस्खे को अजमाने के बाद रोगी को करीब 48 घंटे तक कुछ खाने को न दें। और उसके बाद उसे दूध चाय या हल्का दलिया बनाकर खिलाऐं।

सादा बुखार-

सादे बुखार में उपवास अत्यधिक लाभदायक है। उपवास के बाद पहले थोड़े दिन मूँग लें फिर सामान्य खुराक शुरु करें। ऋषि चरक ने लिखा है कि बुखार में दूध पीना सर्प के विष के समान है अतः दूध का सेवन न करें।

पहला प्रयोगः- सोंठ, तुलसी, गुड़ एवं काली मिर्च का 50 मि.ली काढ़ा बनाकर उसमें आधा या 1 नींबू निचोड़कर पीने से सादा बुखार मिटता है।

दूसरा प्रयोगः- शरीर में हल्का बुखार रहने पर, थर्मामीटर द्वारा बुखार न बताने पर थकान, अरुचि एवं आलस रहने पर संशमनी की दो-दो गोली सुबह और रात्रि में लें। 7-8 कड़वे नीम के पत्ते तथा 10-12 तुलसी के पत्ते खाने से अथवा पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के एक तोला रस में 3 ग्राम शक्कर डालकर पीने से हल्के बुखार में खूब लाभ होता है।

तीसरा प्रयोगः- कटुकी, चिरायता एवं इन्द्रजौ प्रत्येक की 2 से 5 ग्राम को 100 से 400 मि.ली. पानी में उबालकर 10 से 50 मि.ली. कर दें। यह काढ़ा बुखार की रामबाण दवा है।

चौथा प्रयोगः- बुखार में करेले की सब्जी लाभकारी है।

पाँचवाँ प्रयोगः मौठ या मौठ की दाल का सूप बनाकर पीने से बुखार मिटता है। उस सूप में हरी धनिया तथा मिश्री डालने से मुँह अथवा मल द्वारा निकलता खून बन्द हो जाता है।


नमक का ये आसान प्रयोग कर देगा हर तरह के बुखार की छुट्टी ---
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मौसम में बुखार की चपेट में आना एक आम बात है। कभी वायरल फीवर के नाम पर तो कभी मलेरिया जैसे नामों से यह सभी को अपनी चपेट में ले लेता है। फिर बड़ा आदमी हो या कोई बच्चा इस बीमारी की चपेट में आकर कई परेशानियों से घिर जाते हैं। कई बुखार तो ऐसे हैं जो बहुत दिनों तक आदमी को अपनी चपेट में रखकर उसे पूरी तरह से कमजोर बना देता है। पर घबराइए नहीं सभी तरह के बुखार की एक अचूक दवा है भुना नमक। इसके प्रयोग किसी भी तरह के बुखार को उतार देता है।

भुना नमक बनाने की विधि- खाने मे इस्तेमाल आने वाला सादा नमक लेकर उसे तवे पर डालकर धीमी आंच पर सेकें। जब इसका कलर कॉफी जैसा काला भूरा हो जाए तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा हो जाने पर एक शीशी में भरकर रखें।जब आपको ये महसूस होने लगे की आपको बुखार आ सकता है तो बुखार आने से पहले एक चाय का चम्मच एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर ले लें। जब आपका बुखार उतर जाए तो एक चम्मच नमक एक बार फिर से लें। ऐसा करने से आपको बुखार कभी पलट कर नहीं आएगा।


विशेष :-

- हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों को यह विधि नहीं अपनानी चाहिए।


- यह प्रयोग एक दम खाली पेट करना चाहिए इसके बाद कुछ खाना नहीं चाहिए और ध्यान रखें कि इस दौरान रोगी  को ठण्ड न लगे।


- अगर रोगी को प्यास ज्यादा लगे तो उसे पानी को गर्म कर उसे ठण्डा करके दें।


- इस नुस्खे को अजमाने के बाद रोगी को करीब 48 घंटे तक कुछ खाने को न दें। और उसके बाद उसे दूध चाय या हल्का दलिया बनाकर खिलाऐं।

सादा बुखार-

 सादे बुखार में उपवास अत्यधिक लाभदायक है। उपवास के बाद पहले थोड़े दिन मूँग लें फिर सामान्य खुराक शुरु करें। ऋषि चरक ने लिखा है कि बुखार में दूध पीना सर्प के विष के समान है अतः दूध का सेवन न करें।

पहला प्रयोगः- सोंठ, तुलसी, गुड़ एवं काली मिर्च का 50 मि.ली काढ़ा बनाकर उसमें आधा या 1 नींबू निचोड़कर पीने से सादा बुखार मिटता है।

दूसरा प्रयोगः- शरीर में हल्का बुखार रहने पर, थर्मामीटर द्वारा बुखार न बताने पर थकान, अरुचि एवं आलस रहने पर संशमनी की दो-दो गोली सुबह और रात्रि में लें। 7-8 कड़वे नीम के पत्ते तथा 10-12 तुलसी के पत्ते खाने से अथवा पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के एक तोला रस में 3 ग्राम शक्कर डालकर पीने से हल्के बुखार में खूब लाभ होता है।

तीसरा प्रयोगः- कटुकी, चिरायता एवं इन्द्रजौ प्रत्येक की 2 से 5 ग्राम को 100 से 400 मि.ली. पानी में उबालकर 10 से 50 मि.ली. कर दें। यह काढ़ा बुखार की रामबाण दवा है।

चौथा प्रयोगः- बुखार में करेले की सब्जी लाभकारी है।

पाँचवाँ प्रयोगः मौठ या मौठ की दाल का सूप बनाकर पीने से बुखार मिटता है। उस सूप में हरी धनिया तथा मिश्री डालने से मुँह अथवा मल द्वारा निकलता खून बन्द हो जाता है।

स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है

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• सोंठ का मगज, मिश्री तथा बादाम गिरी इन तीनों की ढाई -ढाई सौ ग्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें। रात को सोने से पहले 10 ग्राम की मात्रा में चूर्ण की फं£की दूध के साथ चालीस दिनों तक लगातार लेने से याददाश्त अच्छी होने के साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ जाती है।
• आधा लीटर पानी में 125 ग्राम धनिया कू£ट कर उबालें। जब पानी चौथाई भाग रह जाये तब छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फि गर्म करें। जब गाढ़ा हो जाये तो उतार लें। यह प्रतिदिन दस ग्राम चाटें। इससे मस्तिष्क की कमजोरी तो दूर होती ही है याददाश्त भी अच्छी हो जाती है।
• गाय के दूध की छाछ में मुलहठी की जड़ का चूर्ण मिलाकर कु£छ दिनों तक नियमित पीने से मस्तिष्क की कमजोरी तो दूर होती ही है साथ ही स्मरण शक्ति भी तेज हो जाती है।
• स्मरण शक्ति की कमी, दिमागी कमजोरी तथा गुर्दे की खराबी में भोजन करने से पहले एक मीठा सेब बिना छीले खाने से लाभ होता है। इससे दुर्बलता भी दूर होती है।
• 5 ग्राम दालचीनी पानी के साथ सुबह-शाम नियमित प्रयोग करने से दिमागी कमजोरी दूर हो जाती है। स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है।
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मेरा हमेशा से यह प्रयास रहता है कि मैं अपने अनुभव को आपसे बांटू जिन्हें मैंने श्रेष्ठ संतों से प्रसाद स्वरूप पाया है हां मानना न मानना आपकी मर्जी है और Second Opinion लेना आापका अधिकार है, ये हमेशा याद रखें। परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि आप सुखी रहे और यह शोध आपके काम आए।
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नुसखे : स्मरण शक्ति की कमी
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• सोंठ का मगज, मिश्री तथा बादाम गिरी इन तीनों की ढाई -ढाई सौ ग्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें। रात को सोने से पहले 10 ग्राम की मात्रा में चूर्ण की फं£की दूध के साथ चालीस दिनों तक लगातार लेने से याददाश्त अच्छी होने के साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ जाती है।
• आधा लीटर पानी में 125 ग्राम धनिया कू£ट कर उबालें। जब पानी चौथाई भाग रह जाये तब छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फि गर्म करें। जब गाढ़ा हो जाये तो उतार लें। यह प्रतिदिन दस ग्राम चाटें। इससे मस्तिष्क की कमजोरी तो दूर होती ही है याददाश्त भी अच्छी हो जाती है।
• गाय के दूध की छाछ में मुलहठी की जड़ का चूर्ण मिलाकर कु£छ दिनों तक नियमित पीने से मस्तिष्क की कमजोरी तो दूर होती ही है साथ ही स्मरण शक्ति भी तेज हो जाती है।
• स्मरण शक्ति की कमी, दिमागी कमजोरी तथा गुर्दे की खराबी में भोजन करने से पहले एक मीठा सेब बिना छीले खाने से लाभ होता है। इससे दुर्बलता भी दूर होती है।
• 5 ग्राम दालचीनी पानी के साथ सुबह-शाम नियमित प्रयोग करने से दिमागी कमजोरी दूर हो जाती है। स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है।
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मेरा हमेशा से यह प्रयास रहता है कि मैं अपने अनुभव को आपसे बांटू जिन्हें मैंने श्रेष्ठ संतों से प्रसाद स्वरूप पाया है हां मानना न मानना आपकी मर्जी है और Second Opinion लेना आापका अधिकार है, ये हमेशा याद रखें। परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि आप सुखी रहे और यह शोध आपके काम आए।
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26 December 2013

चेहरे की रंगत बढाए टमाटर का जूस

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रोज सवेरे एक गिलास ताजे टमाटर का जूस तैयार करें, दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें और सिर्फ़ एक महिने के अंदर चेहरे की रंगत देखिए, आईना शरमा जाएगा l जानकार इसे वजन कम करने का एक अच्छा उपाय मानते है जबकि गुजरात के आदिवासी इसे यकृत और फ़ेफ़डों के लिए बेहतर टोनिक मानते है..आजमाईये जरूर, देसी ज्ञान है, असर सर चढकर बोलेगे..स्वस्थ रहें, मस्त रहें..
चेहरे की रंगत बढाए टमाटर का जूस..आजमाईये जरूर

रोज सवेरे एक गिलास ताजे टमाटर का जूस तैयार करें, दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें और सिर्फ़ एक महिने के अंदर चेहरे की रंगत देखिए, आईना शरमा जाएगा l जानकार इसे वजन कम करने का एक अच्छा उपाय मानते है जबकि गुजरात के आदिवासी इसे यकृत और फ़ेफ़डों के लिए बेहतर टोनिक मानते है..आजमाईये जरूर, देसी ज्ञान है, असर सर चढकर बोलेगे..स्वस्थ रहें, मस्त रहें..

25 December 2013

छोटे लहसुन के बड़े फायदे

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लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।


1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।


2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।


3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।


4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।


5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।


6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।


7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।


8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।


9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।


10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।


11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।


12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।

13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।

लहसुन की बदबू-

अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।
कुछ नुस्खे: छोटे लहसुन के बड़े फायदे.......
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(इन बीमारियों में है रामबाण)

लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।


1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।


2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।


3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।


4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।


5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।


6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।


7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।


8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।


9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।


10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।


11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।


12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है। 

13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।

लहसुन की बदबू-

अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।

24 December 2013

गुटका,तंबाकू,बी ड़ी सिगरेट,शराब से मुक्ति

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अदरक के छोटे छोटे टुकड़े कर लो उस मे नींबू निचोड़
दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको किसी कांच या चीनी के बर्तन में डाल कर धूप मे सूखा लो l जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए और अदरक सूख जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को किसी कांच के बर्तन में रख लो l

जब भी गुटका,तंबाकू,बी ड़ी सिगरेट,शराब पीने का मन करे तो आप एक अदरक का टुकड़ा निकालो मुंह मे रखो और चूसना शुरू कर दो l

इसको चूसते रहो आपको गुटका खाने की तलब ही नहीं उठेगी, तंबाकू सिगरेट लेने की इच्छा ही नहीं होगी शराब पीने का मन ही नहीं करेगा l

मिर्गी रोग

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मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।

मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।

दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।

अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।

मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।

मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।

मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।

रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।

पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।

मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।


मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है। 

मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए। 
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है। 

दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।

अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।

मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।

मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।

मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।

रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है। 

पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।

मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

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