3 February 2013

प्रभु की सोच

www.goswamirishta.com
एक बच्चा अपनी मां के साथ टॉफियों की एक दुकान पर पहुंचा। वहां अनेक जारों में अनेक तरह की टॉफियां सजी हुई थीं। बच्चे की आंखें उन टॉफियों को देखकर ललचा रही थीं। दुकानदार को स्नेह उमड़ आया, उसने कहा, बेटे, तुम्हें जो भी टॉफी पसंद आ रही हो, वह बेझिझक ले सकते हो।

बच्चे ने कहा, नहीं। दुकानदार ने बच्चे को हैरानी से देखा और फिर समझाते हुए कहा, मैं तुमसे पैसे नहीं लूंगा। अब तो तुम अपनी पसंद की टॉफी ले सकते हो।
दुकान पर बच्चे के साथ उसकी मां भी थी। उसने कहा, ठीक है बेटे, अंकल कह रहे हैं, तो ले लो। लेकिन बच्चे ने फिर भी मना कर दिया। मां और दुकानदार को वजह समझ में नहीं आई। फिर दुकानदार को एक नया उपाय सूझा, उसने स्वयं
जार में हाथ डाला और बच्चे की तरफ मुट्ठी बढ़ाई। बच्चे ने झट से अपने स्कूल के बस्ते में सारी की सारी टॉफियां डलवा लीं। दुकान से बाहर आने पर मां ने बच्चे से कहा, बड़ा अजीब लड़का है तू। जब तुझे टॉफियां लेने को कहा तब तो मना कर दिया और जब दुकानदार अंकल ने टॉफियां दीं तो मजे से ले लीं। बच्चे ने मां को समझाया, मेरी मुट्ठी बहुत ही छोटी है, दुकानदार की मुट्ठी बड़ी है। मैं लेता तो कम मिलतीं, उसने दीं तो बड़ी मुट्ठी भर कर दीं।

यही हाल आज के मनुष्य का है। हमारी सोच बड़ी छोटी है; और प्रभु की सोच बहुत बड़ी है। आज से 25 वर्ष पहले यदि आपको अपनी इच्छाओं की सूची बनाने को कहा जाता कि आपकी जिन-जिन वस्तुओं की इच्छा है उसे लिखो। तो शायद उस समय जो लिखते, वह आज के संदर्भ में बहुत ही तुच्छ होता।
आज आपको प्रभु ने या प्रकृति ने इतना कुछ दिया है, जो आपकी सोच से कहीं बड़ा है। अपने आसपास पड़ी वस्तुओं की तरफ नजर घुमाकर देखें और सोचें, जिन वस्तुओं को आप सहजता से भोग रहे हैं, वे कई साल पहले आपकी सोच में भी नहीं थीं। इसलिए हमारी सोच बहुत छोटी है तथा प्रभु की सोच हमारे लिए बहुत व्यापक है।

ॐ नमः शिवाय

www.goswamirishta.com

भारत में भगवान शिव की उपासना उतनी ही पुरानी है, जितनी पुरानी भारतीय सभ्यता है।

संभवत: भारत में जब सभ्यता का श्रीगणेश नहीं हुआ था तब भी शिव की उपासना की जाती थी।

मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस प्रागैतिहासिक युग में भगवान शिव की उपासना एवं आराधना प्रचलित थी।

शिव एक ऐसे देवता हैं जो योगी और भोगी, राजा और रंक, सभ्य और वनवासी सभी के आराध्य देव बन गए।

यहां तक कि वे पशुओं का पालन करने वाले, जंगल के निवासियों के ‘पशुपतिनाथ’ के रूप में आराध्य देव बने तो कर्मकांडी शास्त्रियों ने उनकी ‘महादेव’ के रूप में वंदना की।

शतपथ ब्राह्मण तथा कौशीतकि ब्राह्मण में भगवान शिव के आठ स्वरूपों का उल्लेख है-
भव, पशुपति, महादेव, ईशान, शर्व, रुद्र, उग्र एवं अशनि।

पर शिव के इन आठ स्वरूपों में पशुपतिनाथ के स्वरूप को दर्शाने वाली संभवत: दो ही प्रतिमाएं हैं।

ये दोनों ही प्रतिमाएं पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

इनमें से एक प्रतिमा है-नेपाल की राजधानी काठमांडू में तथा

दूसरी है म.प्र. के मंदसौर नामक कस्बे में।

मंदसौर की इस प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण मालव सम्राट यशोवर्मन ने आक्रांता हूणों को पराजित करने के उपलक्ष्य में किया था।

पुराणों में उल्लेख

नेपाल के पशुपतिनाथ के संबंध में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार एक बार पांडव, केदारनाथ में भगवान शिव के दर्शन के लिए गए। भगवान शिव ने पांडवों को अपने ही सगोत्रियों की हत्या का दोषी माना एवं दर्शन देना अस्वीकार कर दिया। पांडव भगवान शिव की आराधना एवं उनका पीछा करते रहे। पांडवों से पीछा छुड़ाने के लिए भगवान शिव ने भैसें (महिष) का रूप धारण किया और पृथ्वी के भीतर घुसने लगे। पांडवों ने इस महिष की पूंछ पकड़ ली पर तब तक भगवान शिव पृथ्वी के भीतर घुस चुके थे।

उनका मुख रुद्रनाथ में, बांहें तुंगनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में, जटा कल्पेशवर में तथा मस्तक बागमती नदी के दाएं किनारे पर स्थित कांतिपुर में प्रकट हुआ। यह कांतिपुर ही आज काठमांडू के नाम से जाना जाता है। काठमांडू नामकरण होने का कारण यह बताया जाता है कि इस शहर के मध्य में एक ही लकड़ी का एक विशाल काष्ठमंडप था। यह ‘काष्ठमंडप’ कालांतर में काठमांडू कहलाने लगा।

काठमांडू में निॢमत भगवान पशुपतिनाथ का यह मंदिर पैगोडा शैली में है। पशुपतिनाथ का यह विशाल मंदिर, चारों ओर से छोटे-छोटे मंदिरों और धर्मशालाओं से घिरा हुआ है। इस मंदिर के चार द्वार हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही विशाल प्रांगण दिखाई पड़ता है। मंदिर के द्वार चांदी के हैं। प्रांगण में कई हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं तथा त्रिशूल की आकृतियां स्थापित हैं।

पशुपतिनाथ के मुख्य मंदिर के अहाते में नंदी की विशाल प्रतिमा है। मंदिर के शिखर सोने के बताए जाते हैं। मुख्य मंदिर नेपाली एवं भारतीय स्थापत्य कला का एक सर्वश्रेष्ठ प्रतीक कहा जा सकता है।

मंदिर में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा लगभग साढ़े तीन फुट ऊंची है। परिक्रमा एवं पूजन के लिए मंदिर में पर्याप्त स्थान है। भगवान पशुपतिनाथ की पूजा रुद्राक्ष एवं कमल-पुष्पों से की जाती है।

पशुपतिनाथ में आस्थावानों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों बागमती नदी के दूसरे किनारे से इसे बाहर से देखने की अनुमति है।

यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।

शिव

www.goswamirishta.com

ॐ नमः शिवाय॥
Ψ. मैं विकारों से रहित , विकल्पों से रहित , निराकार , परम एश्वर्य युक्त , सर्वदा यत्किंच सभी में सर्वत्र ,समान रूप में ब्याप्त हूँ , मैं ईक्षा रहित , सर्व संपन्न ,जन्म -मुक्ति से परे ,सच्चिदानंद स्वरुप कल्याणकारी शिव हूँ केवल , शिव ......न मृत्यु , न संदेह , न तो जाति-भेद (खंडित ) हूँ , न पिता न माता , न जन्म न बन्धु , न मित्र न गुरु न शिष्य ही हूँ ; मैं तो केवल सच्चिदानंद स्वरुप कल्याणकारी शिव हूँ , शिव ......न पुण्य हूँ , न पाप ; न सुख न दुःख , न मन्त्र न तीर्थ , न वेद न यज्न , न भोज्य , न भोजन न भोक्ता ही हूँ ; मै तो केवल सच्चिदानंद स्वरुप कल्याणकारी शिव हूँ , शिव ......न द्वेष , न राग , न लोभ , न मोह , न मत्सर , न धर्म , न अर्थ , न काम , न मोक्ष हूँ ; मैं तो सच्चिदानंद स्वरुप कल्याणकारी शिव हूँ , शिव......न तो प्राण उर्जा हूँ , न पञ्च वायु हूँ , न सप्त धातुएं हूँ , न पञ्च कोष हूँ , न सृष्टी , न प्रलय , न गति , न वाणी और न तो श्रवण ही हूँ ; मैं तो केवल सच्चिदानंद स्वरुप कल्याणकारी शिव हूँ , केवल शिव....... न तो मन हूँ , न बुद्धि , न अहंकार , न चित्त , न पञ्च इन्द्रियां - ( नेत्र ,कान ,जीभ , त्वचा , नासिका ) और न तो पञ्च तत्व (आकाश , भूमि , जल , वायु , अग्नि ) , हूँ ; मैं तो केवल कल्याणकारी शिव हूँ ; शिव हूँ......

राम अपनी कृपा से

www.goswamirishta.com

राम अपनी कृपा से मुझे भक्ति दे .
राम अपनी कृपा से मुझे शक्ति दे ..

नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ .
तन से सेवा करूँ मन से संयम कर्रूँ ..

नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ .
श्री राम जय राम जय जय राम ..

राम जपो राम देखो
राम जपो राम देखो राम के भरोसे रहो .
राम काज करते रहो राम के भरोसे रहो ..

राम जपो राम देखो राम के भरोसे रहो .
राम काज करते रहो राम को रिझाते रहो ..

जखम किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो ये लगाइए

www.goswamirishta.com



कुछ चोट लग जाती है, और कुछ छोटे बहुत गंभीर हो जाती है। जैसे कोई डाईबेटिक पेशेंट है चोट लग गयी तो उसका सारा दुनिया जहां एक ही जगह है, क्योंकि जल्दी ठीक ही नही होता है। और उसके लिए कितना भी चेष्टा करे करे डॉक्टर हर बार उसको सफलता नही मिलता है। और अंत में वो चोट धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में कन्वर्ट हो जाती है। और फिर काटना पड़ता है, उतने हिस्से को शारीर से निकालना पड़ता है। ऐसी परिस्तिथि में एक औषधि है जो गैंग्रीन को भी ठीक करती है और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा का प्रदाह) को भी ठीक करती है।

गैंग्रीन माने अंग का सड़ जाना, जहाँ पे नए कोशिका विकसित नही होते। न तो मांस में और न ही हड्डी में और सब पुराने कोशिका मरते चले जाते हैं। इसीका एक छोटा भाई है Osteomyelitis इसमें भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नही होते, जिस हिस्से में होता है उहाँ बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है के डॉक्टर कहता है की इसको काट के ही निकलना है और कोई दूसरा उपाय नही है।। ऐसे परिस्तिथि में जहां शारीर का कोई अंग काटना पड़ जाता हो या पड़ने की संभावना हो, घाव बहुत हो गया हो उसके लिए आप एक औषधि अपने घर में तैयार कर सकते है।

औषधि है देशी गाय का मूत्र (सूती के आट परत कपड़ो में चन कर) , हल्दी और गेंदे का फुल। गेंदे के फुल की पिला या नारंगी पंखरियाँ निकलना है, फिर उसमे हल्दी डालके गाय मूत्र डालके उसकी चटनी बनानी है। अब चोट कितना बड़ा है उसकी साइज़ के हिसाब से गेंदे के फुल की संख्या तै होगी, माने चोट छोटे एरिया में है तो एक फुल, बड़े है तो दो, तिन, चार अंदाज़े से लेना है। इसकी चटनी बनाके इस चटनी को लगाना है जहाँ पर भी बाहर से खुली हुई चोट है जिससे खून निकल जुका है और ठीक नही हो रहा। कितनी भी दावा खा रहे है पर ठीक नही हो रहा, ठीक न होने का एक कारण तो है डाईबेटिस दूसरा कोई जिनगत कारण भी हो सकते है। इसको दिन में कम से कम दो बार लगाना है जैसे सुबह लगाके उसके ऊपर रुई पट्टी बांध दीजिये ताकि उसका असर बॉडी पे रहे; और शाम को जब दुबारा लगायेंगे तो पहले वाला धोना पड़ेगा टी इसको गोमूत्र से ही धोना है डेटोल जैसो का प्रयोग मत करिए, गाय के मूत्र को डेटोल की तरह प्रयोग करे। धोने के बाद फिर से चटनी लगा दे। फिर अगले दिन सुबह कर दीजिये।

यह इतना प्रभावशाली है के आप सोच नही सकते देखेंगे तो चमत्कार जैसा लगेगा। इस औषधि को हमेशा ताजा बनाके लगाना है। किसीका भी जखम किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो ये लगाइए। जो सोराइसिस गिला है जिसमे खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उसको यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देता है। अकसर यह एक्सीडेंट के केसेस में खूब प्रोयोग होता है क्योंकि ये लगाते ही खून बांध हो जाता है। ऑपरेशन का कोई भी घाव के लिए भी यह सबसे अच्छा औषधि है। गिला एक्जीमा में यह औषधि बहुत काम करता है, जले हुए जखम में भी काम करता है।

अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=Io6nPEFz2vY

कुछ चोट लग जाती है, और कुछ छोटे बहुत गंभीर हो जाती है। जैसे कोई डाईबेटिक पेशेंट है चोट लग गयी तो उसका सारा दुनिया जहां एक ही जगह है, क्योंकि जल्दी ठीक ही नही होता है। और उसके लिए कितना भी चेष्टा करे करे डॉक्टर हर बार उसको सफलता नही मिलता है। और अंत में वो चोट धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में कन्वर्ट हो जाती है। और फिर काटना पड़ता है, उतने हिस्से को शारीर से निकालना पड़ता है। ऐसी परिस्तिथि में एक औषधि है जो गैंग्रीन को भी ठीक करती है और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा का प्रदाह) को भी ठीक करती है।

गैंग्रीन माने अंग का सड़ जाना, जहाँ पे नए कोशिका विकसित नही होते। न तो मांस में और न ही हड्डी में और सब पुराने कोशिका मरते चले जाते हैं। इसीका एक छोटा भाई है Osteomyelitis इसमें भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नही होते, जिस हिस्से में होता है उहाँ बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है के डॉक्टर कहता है की इसको काट के ही निकलना है और कोई दूसरा उपाय नही है।। ऐसे परिस्तिथि में जहां शारीर का कोई अंग काटना पड़ जाता हो या पड़ने की संभावना हो, घाव बहुत हो गया हो उसके लिए आप एक औषधि अपने घर में तैयार कर सकते है।

औषधि है देशी गाय का मूत्र (सूती के आट परत कपड़ो में चन कर) , हल्दी और गेंदे का फुल। गेंदे के फुल की पिला या नारंगी पंखरियाँ निकलना है, फिर उसमे हल्दी डालके गाय मूत्र डालके उसकी चटनी बनानी है। अब चोट कितना बड़ा है उसकी साइज़ के हिसाब से गेंदे के फुल की संख्या तै होगी, माने चोट छोटे एरिया में है तो एक फुल, बड़े है तो दो, तिन, चार अंदाज़े से लेना है। इसकी चटनी बनाके इस चटनी को लगाना है जहाँ पर भी बाहर से खुली हुई चोट है जिससे खून निकल जुका है और ठीक नही हो रहा। कितनी भी दावा खा रहे है पर ठीक नही हो रहा, ठीक न होने का एक कारण तो है डाईबेटिस दूसरा कोई जिनगत कारण भी हो सकते है। इसको दिन में कम से कम दो बार लगाना है जैसे सुबह लगाके उसके ऊपर रुई पट्टी बांध दीजिये ताकि उसका असर बॉडी पे रहे; और शाम को जब दुबारा लगायेंगे तो पहले वाला धोना पड़ेगा टी इसको गोमूत्र से ही धोना है डेटोल जैसो का प्रयोग मत करिए, गाय के मूत्र को डेटोल की तरह प्रयोग करे। धोने के बाद फिर से चटनी लगा दे। फिर अगले दिन सुबह कर दीजिये।

यह इतना प्रभावशाली है के आप सोच नही सकते देखेंगे तो चमत्कार जैसा लगेगा। इस औषधि को हमेशा ताजा बनाके लगाना है। किसीका भी जखम किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो ये लगाइए। जो सोराइसिस गिला है जिसमे खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उसको यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देता है। अकसर यह एक्सीडेंट के केसेस में खूब प्रोयोग होता है क्योंकि ये लगाते ही खून बांध हो जाता है। ऑपरेशन का कोई भी घाव के लिए भी यह सबसे अच्छा औषधि है। गिला एक्जीमा में यह औषधि बहुत काम करता है, जले हुए जखम में भी काम करता है।

अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=Io6nPEFz2vY

श्री गुर पद नख मनि गन जोती

www.goswamirishta.com

श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥ - बालकांड रामचरितमानस 
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...