7 February 2013

पुराना फटा सा पर्स

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यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स में ऐसा कुछनहीं था जिससे कोई सुराग मिलसके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस ... टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह किसका पर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें।"
टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा हीहै। केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।"
उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान श्रीकृष्ण की फोटो है।"
टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"
बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं तुम्हें बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूपमें कुछ पैसे मिलते थे। मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटोरखी हुयी थी।
जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैंअपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था।
कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था।मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।
जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ,तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चेके साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चेकी फोटो आ गयी थी।"
बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता-पिता कास्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी।मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पासमेरी देखभाल का क्त नहीं है। जिसे मैंनेअपने जिगर के टुकड़ेकी तरह पाला था,
वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है।
अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।
जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वरके साथ किया होता तो आज मैं
इतना अकेला नहीं होता।"
टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला-"क्या तुम्हारे पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए.

जय जय श्री राधे

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प्रभु की प्राप्ति प्रभु की ही कृपा से ही संभव है क्योंकि वह साधनसाध्य नहीं हैं, वे तो केवल और केवल कृपासाध्य हैं परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जब वह कृपासाध्य ही हैं तो हम साधन ही क्यॊं करें । जब उन्हें कृपा करनी होगी तब अपने आप कर ही देंगे, हम व्यर्थ में ही अपना बहूमूल्य समय क्यों नष्ट करें ।
साधन बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे पात्रता की संभावनायें जागती हैं । किसान खेत में बीज बोता है, सींचता है, खरपतवार की भी सफ़ाई करता रहता है, इसी आशा के साथ कि फ़सल अच्छी होगी पर यह जरूरी तो नहीं कि ऐसा ही हो, हो सकता है कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गाँव की व्यक्तिगत वैमनस्यता के कारण उसे हानि हो जाये पर क्या किसान दोबारा अगली फ़सल के लिये और अधिक परिश्रम नहीं करता । प्रभु की कृपा अनरत बरस रही है पर हम अपनी पात्रतानुसार ही उसका लाभ ले पाते हैं जैसे जब बारिश हो रही हो तो खुले आँगन में अगर गिलास रखा हो तो गिलास भरेगा, घड़ा हो तो घड़ा भर जायेगा, अन्य कोई बड़ा पात्र हो तो वह भी भर जायेगा लेकिन अगर कोई गिलास से भी छोटा पात्र हो और उल्टा रखा हो तो भरपूर बारिश के बाद भी वह रीता ही रह जायेगा, अब इसमें दॊष किसका है ? क्या प्रभु पक्षपाती है ? नहीं, ऐसा नहीं है, इस बात का विश्वास रखिये ।
एक संत थे जिनके पास बहुत से विधार्थी अध्ययन करते थे , कालांतर में शिक्षा पूरी होने पर उन्होंने अपने एक शिष्य को रामकथा के प्रचार-प्रसार की आज्ञा दी और उनका वह शिष्य स्थान-स्थान पर प्रभु की मनोहर रामकथा का गान करने लगा । एक बार वह एक स्थान पर कथा कर रहा था जहाँ के गृहस्वामी के पास एक अदभुत बोलने वाला तोता था। ब्रह्मचारी ने रामकथा का माहात्म बताते हुए इसे भवतारिणी एवं समस्त बंधनों से मुक्त करने वाला बताया तभी तोता बोल उठा कि "नहीं, यह सत्य नहीं है ! मैं कितने वर्षों से "राम-राम" कहता रहता हूँ और आज तक इस पिंजड़े से ही मुक्त नहीं हो पाया तब मैं कैसे मानूँ कि तुम सत्य कहते हो ।"
इस तर्क के उत्तर के लिये ब्रह्मचारी ने गुरू की शरण ली और इस संशय के समाधान को जानने की प्रार्थना की ।
गुरूदेव ने कहा कि तोते से कहो कि वह एक दिन न कुछ खाये न पिये और निश्चेष्ट होकर पिंजरे में पड़ा रहे और मन ही मन राम-राम रट्ता रहे । ब्रह्मचारी के कहे अनुसार तोते ने ऐसा ही किय़ा और यह देखकर गृह्स्वामी ने पिंजरे का द्वार खोल दिया । द्वार खुलते ही तोता उड़ गया और उड़ते-उड़ते बोला कि-" यह सत्य है कि राम नाम बंधनों को काटने वाला है पर इसकी कुंजी गुरू के पास है ।"
प्रभु की कृपा के आसरे रहिये, सही समय पर निश्चित ही वह उचित माध्यम द्वारा हमें अपनी शरण लेंगे ।
"जानत सोई जाहि देहु जनाई । जानत तुम्हीं तुम्ही होइ जाई॥ राजी तेरी रजा में....।"
जय जय श्री राधे !

हे संकट मोचन

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हे संकट मोचन, हे दयानिधान,हे वीर बजरंगी हे वीर हनुमान 
यह एहसास की 'तुम मेरे भी हो' हे शंकर सुवन महा बली हनुमान 
भर देता है मुझ में असीम शक्ति और कर देता है सुगम सब काज 
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान् 
इक 'तेरा दर तो है' जिसने मुझे है सम्भाला हे शंकर सुवन महाबली हनुमान 
मैं तो इस माया भंवर में कभी इधर फसा कभी उधर फसा हे मेरे भगवन
दर तेरा बना मांझी मेरा बन खैव्य्या जीवन सवांरा हे शंकर सुवन महाबली हनुमान
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान्
सबसे सुगम है रस्ता तेरा हर युग के तुम हो भगवान
राम नाम की माला से ही, राम नाम के ही जाप से
खुश होते मेरे भगवन, कर देते पूरण जीवन के सब काम
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान्

मारुति नंदन नमो नमः
कष्ट भंजन नमो नमः
असुर निकंदन नमो नमः
श्रीरामदूतम नमो नमः

ॐ साई राम

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"मैं दास तुम दाता साईं
सबके भाग्य विधाता साईं,
हम भक्तों से खफा न होना
हर पल ये मनाता साईं.
सुख दुःख तो रीत है दुनिया की
पर तुम हो तो एक संबल है,
बाबा तेरे भरोसे कायम
हम भक्तों का आत्मबल है.
सर पे हाथ दया का धर दो
बाबा कहीं हौसला टूट न जाए
तेरे सहारे चलता हुआ रही
बीच राह कहीं लुट न जाए."
साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं
साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं साईं !

मानो या ना मानो

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कहते हैं भोलेनाथ सभी देवताओं में सबसे भोले हैं। उनकी आराधना कर उन्हें मनाना बहुत आसान है। इसलिए शिव के पूजन से जुड़े इन नीचे लिखे टोटको को अपनाकर आप कई परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं और अपनी जिंदगी के हर दुख को दूर भगा सकते हैं।

- चावल जो सात बार स्वच्छ पानी से साफ हो उन्हें भोलेनाथ को चढाएं। इससे अचल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

- संतान वृद्धि हेतु उत्तम किस्म का गेहूं अर्पण किया जाता है।

- सुख की प्राप्ति हेतु मूंग शिव को चढाएं।

कर्पूरगौरं करुणावतारं

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कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ||
भावार्थ:- उन परमेश्वर स्वरूपी शिव संग भवानीको मेरा नमन है जिनका वर्ण कर्पूर समान गौर है, जो करुणाके प्रतिमूर्ति हैं, जो सारे जगतके सार हैं, जिन्होने गलेमें सर्पके हार धारण कर रखे हैं और जो हमारे हृदय रूपी कमलमें सदैव विद्यमान रहते हैं |
Karpoor gauram karunaawataram
sansar saaram bhujgendra haaram
sadavasantam hrudayaaravinde
bhawam bahawani sahitam namami
I salute to that Shiv form of Almighty along with Bhavani (Shiva and Parvati), who is as white as camphor, an incarnation of compassion,
the essence of this world, who wears a serpant around
his neck and is ever present in the lotus abode of our hearts.

दिनचर्या का भाग

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सुबह उठने के पश्चात ( यदि संभव हो तो सूर्योदय के पहले उठें ) और बिछावन त्यागने से पूर्व एवं भूमिमें चरण स्पर्श हो उससे पूर्व इन प्रार्थनाओं को अपनी दिनचर्या का भाग बनाएँ ! 
सर्व प्रथम अपने दोनों हाथों को अपने नेत्र के समक्ष रखकर यह प्रार्थना करना चाहिए !
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
अर्थ : हाथके अग्रभाग में लक्ष्मी का वास है । हस्तके मध्य में सरस्वती का वास है, और हस्तके मूल में गोविंद भगवान का वास है | अतः सुबह सुबह प्रथम अपने हस्त का दर्शन करना चाहिये |
तत्पश्चात भूमि को हाथ से स्पर्श कर भूमि प्रार्थना इस प्रकार करें |
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
हे पृथ्वी माँ आप विष्णु पत्नी हैं, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं, मैं आपको वंदन करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें !
Try to do these two prayers after getting up in the morning (preferably before sunrise ) . First open your palm and mediate on it by saying the first verse and then and before letting the feet touch the ground , recite the second verse in the form of prayer to Mother earth by touching the ground with your hand .

1. कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
karagre wasate laxmih , karmadhye saraswati
karmoole tu govindah prabhate kar darshanam

Meaning : Goddess Lakshmii dwells at the beginning of the hand.
In the center of the palm resides Sarasvati, the Goddess
of wisdom. At the base of the palm is Govinda, the
Lord of the universe. Hence, one should look and meditate on
the hand early in the morning immediately after rising.

2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
Samudra-Vasane Devi Parvat-Stana-Manddale |
Vishnu-Patni Namastubhyam Paada-sparsham Kshama-Svame ||

Meaning: (O Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet.

सुबह उठने के पश्चात

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सुबह उठने के पश्चात ( यदि संभव हो तो सूर्योदय के पहले उठें ) और बिछावन त्यागने से पूर्व एवं भूमिमें चरण स्पर्श हो उससे पूर्व इन प्रार्थनाओं को अपनी दिनचर्या का भाग बनाएँ ! 
सर्व प्रथम अपने दोनों हाथों को अपने नेत्र के समक्ष रखकर यह प्रार्थना करना चाहिए !
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
अर्थ : हाथके अग्रभाग में लक्ष्मी का वास है । हस्तके मध्य में सरस्वती का वास है, और हस्तके मूल में गोविंद भगवान का वास है | अतः सुबह सुबह प्रथम अपने हस्त का दर्शन करना चाहिये |
तत्पश्चात भूमि को हाथ से स्पर्श कर भूमि प्रार्थना इस प्रकार करें |
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
हे पृथ्वी माँ आप विष्णु पत्नी हैं, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं, मैं आपको वंदन करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें !
Try to do these two prayers after getting up in the morning (preferably before sunrise ) . First open your palm and mediate on it by saying the first verse and then and before letting the feet touch the ground , recite the second verse in the form of prayer to Mother earth by touching the ground with your hand .

1. कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
karagre wasate laxmih , karmadhye saraswati
karmoole tu govindah prabhate kar darshanam

Meaning : Goddess Lakshmii dwells at the beginning of the hand.
In the center of the palm resides Sarasvati, the Goddess
of wisdom. At the base of the palm is Govinda, the
Lord of the universe. Hence, one should look and meditate on
the hand early in the morning immediately after rising.

2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
Samudra-Vasane Devi Parvat-Stana-Manddale |
Vishnu-Patni Namastubhyam Paada-sparsham Kshama-Svame ||

Meaning: (O Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet.

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