14 February 2013

Do Not Drink Tea - Rajiv Dixit

www.goswamirishta.com


Rajiv Dixit दिल का दौरा रोकने का तरीका heart attack

www.goswamirishta.com


Sugar डाईबेटिस Treatment साबधानिया Precaution - Rajiv Dixit

www.goswamirishta.com


मधुमेह है तब भी आप गुड को खाइये Rajiv Dixit

www.goswamirishta.com


Diabetes( Ayurvedic treatment ) & SUGAR VS Gud (गुड़) Superb Explanation

www.goswamirishta.com


ईश्वर का प्रमाण

www.goswamirishta.com

एक दिन एक राजा ने अपने सभासदों से कहा, ‘क्या तुम लोगों में कोई ईश्वर के होने का प्रमाण दे सकता है ?’ सभासद सोचने लगे, अंत में एक मंत्री ने कहा, ‘महाराज, मैं कल इस प्रश्न का उत्तर लाने का प्रयास करूंगा।’ सभा समाप्त होने के बाद उत्तर की तलाश में वह मंत्री अपने गुरु के पास जा रहा था। रास्ते में उसे गुरुकुल का एक विद्यार्थी मिला। मंत्री को चिंतित देख उसने पूछा, ‘सब कुशल मंगल तो है ? इतनी तेजी से कहां चले जा रहे हैं ?’

मंत्री ने कहा, ‘गुरुजी से ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण पूछने जा रहा हूं।’ विद्यार्थी ने कहा, ‘इसके लिए गुरुजी को कष्ट देने की क्या आवश्यकता है ? इसका जवाब तो मैं ही दे दूंगा।’ अगले दिन मंत्री उस विद्यार्थी को लेकर राजसभा में उपस्थित हुआ और बोला, ‘महाराज यह विद्यार्थी आपके प्रश्न का उत्तर देगा।’ विद्यार्थी ने पीने के लिए एक कटोरा दूध मांगा। दूध मिलने पर वह उसमें उंगली डालकर खड़ा हो गया। थोड़ी-थोड़ी देर में वह उंगली निकालकर कुछ देखता, फिर उसे कटोरे में डालकर खड़ा हो जाता। जब काफी देर हो गई तो राजा नाराज होकर बोला, ‘दूध पीते क्यों नहीं? उसमें उंगली डालकर क्या देख रहे हो?’ विद्यार्थी ने कहा, ‘सुना है, दूध में मक्खन होता है, वही खोज रहा हूं।’ राजा ने कहा, ‘क्या इतना भी नहीं जानते कि दूध उबालकर उसे बिलोने से मक्खन मिलता है।’ विद्यार्थी ने मुस्कराकर कहा, ‘हे राजन, इसी तरह संसार में ईश्वर चारों ओर व्याप्त है, लेकिन वह मक्खन की भांति अदृश्य है। उसे तप से प्राप्त किया जाता है।’ राजा ने संतुष्ट होकर पूछा, ‘अच्छा बताओ कि ईश्वर करता क्या है ?’

विद्यार्थी ने प्रश्न किया, ‘गुरु बनकर पूछ रहे हैं या शिष्य बनकर?’ राजा ने कहा, ‘शिष्य बनकर।’ विद्यार्थी बोला, ‘यह कौन सा आचरण है ? शिष्य सिंहासन पर है और गुरु जमीन पर।’ राजा ने झट विद्यार्थी को सिंहासन पर बिठा दिया और स्वयं नीचे खड़ा हो गया। तब विद्यार्थी बोला, ‘ईश्वर राजा को रंक और रंक को राजा बनाता है।’

मित्रो, ईश्वर कि उपस्थिति के किसी प्रमाण की क्या आवश्यकता है ? हमारा इस संसार में होना ही इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. वह तो कण कण में है. जैसे दूध में मक्खन और दही दिखाई नहीं देते, माचिस की तीली में आग नजर नहीं आती, ऐसे ही ईश्वर भी प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते. वह हमसे पूर्ण समर्पण और पूरा विश्वास चाहते हैं . ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन के लिए एक पूर्ण सद्गुरु की तलाश करें !!!

नग्न साधुओं पर प्रतिक्रिया

www.goswamirishta.com

महाकुंभ विशेष : 
कुछ व्यक्तियोंने महाकुंभमें विचरते नग्न साधुओंपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां मां-बहनें आती हैं, वहां साधुओंका नग्न होकर घूमना कहां तक उचित है? क्या यह भारतीय संस्कृति है ? 
उत्तर : पाश्चात्य देशोंमें कई बार कुछ जन अपने विषयकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहां नग्न होकर प्रदर्शन करनेका उद्देश्य होता है, सभीका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं, वहां वे यह सब किसीका ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नहीं करते | ध्यान रहे, हम सबकी उत्पत्ति ईश्वरसे हुई, परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है, अर्थात “मैं ब्रह्म हूं ” के स्थान पर मैं देह हूं और मैं फलां-फलां हूं, यह विचार अधिक प्रबल होता है | जब तक मैं देह हूं, यह विचार प्रबल रहता है, ईश्वरकी प्रचीति नहीं हो सकती !
नग्न दो प्रकारके योगी रहते हैं – एक जो परमहंसके स्तरके संत होते हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्रका त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटिके योगी इस संसारमें विरले ही हैं | दूसरे प्रकारके नग्न योगी हठयोगी होते है, वे अंबरको अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मनके विरुद्ध जाकर सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमेंसे कुछ शैव उपासक भी होते हैं तो कुछ अन्य पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं, वे शिवसे एकरूप होने हेतु शिवको प्रिय हैं, वे उनका उपयोग करते हैं |
देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगोंका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु करने वालेके प्रति हीन भावना नहीं, आदरकी भावना होनी चाहिए | कुम्भमें नग्न साधुओंकी विशाल सेना इस बातका द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है, तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और अपने योगमार्गको बनाए रखने हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसी श्रेष्ठ परंपराका पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपराके प्रति हमें गर्व होना चाहिए न कि लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपराने समय-समय पर सनातन संस्कृतिका शस्त्र और शास्त्र दोनोंके माध्यमसे रक्षण किया है; अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकोंके प्रति प्रत्येक हिन्दुको गर्व होना चाहिये ! 

महाकुंभ विशेष :
कुछ व्यक्तियोंने महाकुंभमें विचरते नग्न साधुओंपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां मां-बहनें आती हैं, वहां साधुओंका नग्न होकर घूमना कहां तक उचित है? क्या यह भारतीय संस्कृति है ?
उत्तर : पाश्चात्य देशोंमें कई बार कुछ जन अपने विषयकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहां नग्न होकर प्रदर्शन करनेका उद्देश्य होता है, सभीका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं, वहां वे यह सब किसीका ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नहीं करते | ध्यान रहे, हम सबकी उत्पत्ति ईश्वरसे हुई, परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है, अर्थात “मैं ब्रह्म हूं ” के स्थान पर मैं देह हूं और मैं फलां-फलां हूं, यह विचार अधिक प्रबल होता है | जब तक मैं देह हूं, यह विचार प्रबल रहता है, ईश्वरकी प्रचीति नहीं हो सकती !
नग्न दो प्रकारके योगी रहते हैं – एक जो परमहंसके स्तरके संत होते हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्रका त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटिके योगी इस संसारमें विरले ही हैं | दूसरे प्रकारके नग्न योगी हठयोगी होते है, वे अंबरको अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मनके विरुद्ध जाकर सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमेंसे कुछ शैव उपासक भी होते हैं तो कुछ अन्य पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं, वे शिवसे एकरूप होने हेतु शिवको प्रिय हैं, वे उनका उपयोग करते हैं |
देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगोंका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु करने वालेके प्रति हीन भावना नहीं, आदरकी भावना होनी चाहिए | कुम्भमें नग्न साधुओंकी विशाल सेना इस बातका द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है, तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और अपने योगमार्गको बनाए रखने हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसी श्रेष्ठ परंपराका पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपराके प्रति हमें गर्व होना चाहिए न कि लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपराने समय-समय पर सनातन संस्कृतिका शस्त्र और शास्त्र दोनोंके माध्यमसे रक्षण किया है; अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकोंके प्रति प्रत्येक हिन्दुको गर्व होना चाहिये ! 

Mata Pita Vs. Velentineday

www.goswamirishta.com

Chaitanya Mahaprabhu

www.goswamirishta.com


Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu

"May the Supreme Lord who is known as the son of Srimati Saci-devi be transcendentally situated in the innermost chambers of your heart. Resplendent with the radiance of molten gold, He has appeared in theAge of Kali by His causeless mercy to bestow what no incarnation has ever offered before: the most sublime and radiant mellow of devotional service, the mellow of conjugal love."~Chaitanya Charitamrita Adi-lila 1.4
Photo: Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu

"May the Supreme Lord who is known as the son of Srimati Saci-devi be transcendentally situated in the innermost chambers of your heart. Resplendent with the radiance of molten gold, He has appeared in the Age of Kali by His causeless mercy to bestow what no incarnation has ever offered before: the most sublime and radiant mellow of devotional service, the mellow of conjugal love."~Chaitanya Charitamrita Adi-lila 1.4

Sury Namaskar

www.goswamirishta.com

॥ ॐ ध्येयः सदा सवित्र मण्डल मध्यवर्ती नारायण सरसिजा सनसन्नि विष्टः
केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी हारी हिरण्मय वपुर धृतशंख चक्रः ॥
ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पुषणे नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
ॐ मरीचये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ श्रीसवित्रसूर्यनारायणाय नमः।
॥ आदित्यस्य नमस्कारन् ये कुर्वन्ति दिने दिने
आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस्तेशान् च जायते ॥

|| om dhyeyaḥ sadā savitra maṇḍala madhyavartī nārāyaṇa sarasijā sanasanni viṣṭaḥ
keyūravāna makarakuṇḍalavāna kirīṭī hārī hiraṇmaya vapura dhṛtaśaṁkha cakraḥ ||
om mitrāya namaḥ |
om ravaye namaḥ |
om sūryāya namaḥ |
om bhānave namaḥ |
om khagāya namaḥ |
om puṣaṇe namaḥ |
om hiraṇyagarbhāya namaḥ |
om marīcaye namaḥ |
om ādityāya namaḥ |
om savitre namaḥ |
om arkāya namaḥ |
om bhāskarāya namaḥ |
om śrīsavitrasūryanārāyaṇāya namaḥ |
|| ādityasya namaskāran ye kurvanti dine dine
āyuḥ prajñā balam vīryam tejasteśān ca jāyate ||
Photo: ॥ ॐ ध्येयः सदा सवित्र मण्डल मध्यवर्ती नारायण सरसिजा सनसन्नि विष्टः
केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी हारी हिरण्मय वपुर धृतशंख चक्रः ॥
ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पुषणे नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
ॐ मरीचये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ श्रीसवित्रसूर्यनारायणाय नमः।
॥ आदित्यस्य नमस्कारन् ये कुर्वन्ति दिने दिने
आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस्तेशान् च जायते ॥

|| om dhyeyaḥ sadā savitra maṇḍala madhyavartī nārāyaṇa sarasijā sanasanni viṣṭaḥ
keyūravāna makarakuṇḍalavāna kirīṭī hārī hiraṇmaya vapura dhṛtaśaṁkha cakraḥ ||
om mitrāya namaḥ |
om ravaye namaḥ |
om sūryāya namaḥ |
om bhānave namaḥ |
om khagāya namaḥ |
om puṣaṇe namaḥ |
om hiraṇyagarbhāya namaḥ |
om marīcaye namaḥ |
om ādityāya namaḥ |
om savitre namaḥ |
om arkāya namaḥ |
om bhāskarāya namaḥ |
om śrīsavitrasūryanārāyaṇāya namaḥ |
|| ādityasya namaskāran ye kurvanti dine dine
āyuḥ prajñā balam vīryam tejasteśān ca jāyate ||

Feetured Post

ये है सनातन धर्म के संस्कार

  गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहा...