18 March 2013

ईश्वर का सन्देश

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हम मानव जाति लिए ईश्वर का सन्देश क्या है ? क्या अपेक्षा है परमपिता परमेश्वर की हम मानव से !

संत कहते हैं मानव जीवन मिला है इसे केवल ईश्वर- भक्ति में व्यतीत करना चाहिये! विद्वान् कहते हैं बड़े भाग्य से मानव शरीर मिला है इसका उपयोग भले कार्यों में करना चाहिये !

क्यों हम अपना सम्पूर्ण जीवन मात्र पिता की स्तुति में नष्ट करें ? कोई पिता भी ऐसा नहीं चाहेगा !

क्या ईश्वर अपनी स्तुति के लिए ही हमें जन्म देता है ??

भले कार्यों की परिभाषा कौन निश्चित करेगा ? ईश्वर या खुद मानव ??

हम मानव खुद को इतना समझदार बना डालने के बावजूद ईश्वर का सन्देश और जीवन को जीने के तरीके का संकेत समझ नहीं पाते ! हम उस अंधे की तरह समझदारी दिखाते हैं जो पूंछ को रस्सी और रस्सी को सांप समझने जैसा करता है !

ईश्वर का सन्देश बिलकुल स्पष्ट है कि मानव जीवन मिला है और मिली है एक खुशहाल मस्त प्रकृति - पेड़ -पहाड़ -नदियां -पक्षी -साग़र -फूलों आदि से लबालब ! बस हम मानव इन प्राकृतिक रचनाओं का आदर करते हुये इनके संग संग ख़ुशी-ख़ुशी जीवन व्यतीत करें और जीवन के समापन तक आनंदित रहें ! अगर कोई बीता हुआ क्षण व्यथित कर रहा है तो उसे भूल जायें और आगे बढ़े !
आप पूछेगें कि भूतकाल को क्यों और कैसे भूल कर आगे बढ़े ! मेरा मानना है ईश्वर का यही सन्देश है कि कल जो बीत गया अच्छा या बुरा उसे भूल जायें , आज जो हम जी रहें हैं उसे आनंदमय बनाये ! अगर ईश्वर ये नहीं चाहता तो व़ो हमसे पिछले जन्म की स्मृति क्यों छीन लेता ? पिछले जन्म की स्मृतियाँ इस जन्म में नहीं देने का प्रयोजन ही ईश्वर का हम मानव को स्पष्ट सन्देश है कि जो बीत जाता है उसे भूल कर रोज नया जीवन जीये तभी हम खुश रह पायेंगें ! 

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मन्दिर में घंटा क्यों बजाना चाहिए ?

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 मन्दिर में घंटा क्यों बजाना चाहिए ?
हमारे जितने भी रीति रिवाज है उन्हें बनाने के पीछे ऋषि मुनियों की मंशा यही थी की वैज्ञानिक बातों को सामान्य जन कैसे अपनी जीवन शैली में उतारे . समय के साथ साथ कुछ रूढ़ियाँ भी इसमें आ गयी . पर अब ये हमारे लिए चुनौती है की हम इन रीती रिवाजों के पीछे छुपा विज्ञान ढूंढे और जो उसमे कचरा या मिलावट आ गयी उसे अलग करें . ऐसा ही एक रिवाज हमारी पूजा पद्धति का है घंटी बजाना ....घंटा अष्ट धातु से बना होता है ! ये आठ धातुये है ........ सोना, चाँदी,पीतल, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा तथा लोहा .अष्ट धातु निर्मित घंटे की टंकार से उत्पन्न होने वाली धव्नि प्राणघातक सूक्ष्म जीवाणुओ को हवा में ही मारने की क्षमता रखती है अर्थात अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु जो वातावरण में विद्यमान होते है एवं प्राण वायु के मध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर हानि पहुचाने की शक्ति रखते है ऐसे हानिकारक जीवाणुओ की घंटे की टंकार के साथ ही तत्काल मृत्यु हो जाती है जो शंख ध्वनी के सिवाय अन्य किसी साधन से संभव नहीं है .घंटे की आवाज़ ककर्श न होकर मनमोहक एवं कर्ण-पिर्य होती है जिस से किसी भी प्रकार हानि नहीं होती . मनमोहक एवं कर्ण प्रिय धव्नि मन मष्तिष्क को आध्यात्म भाव की और के जाने का सामर्थ्य रखती है बस आवश्कता है इस दिव्य ध्वनि को महसूस करने की..घंटियां देवालयों व मंदिरों में काफी प्राचीन समय से लगाई जाती रही हैं ! ऐसी मान्यता है कि जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। ऐसे स्थानों पर नकारात्मक शक्तियां निष्क्रिय रहती हैं !!!!!!!!!


सुबह-शाम मंदिरों में जब पूजा-आरती की जाती है तो छोटी-बड़ी घंटियों की आवाज आती है ! घंटियां बजाने में एक विशेष लय होती है जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय अनुभूति होती है !!


ऐसा माना जाता है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमाएं चेतन हो जाती हैं जिससे उनकी पूजा और अधिक प्रभावशाली तथा शीघ्र फल देने वाली होती है ! पुराणों के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं ! जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी की ध्वनि से वही नाद निकलता है ! यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है !!


घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद यानि आवाज प्रकट होगी ! मंदिरों में घंटी लगाने का वैज्ञानिक कारण भी है। जब घंटी बजाई जाती है तो उससे वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन की सीमा में आने वाले जीवाणु, विषाणु आदि सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। मंदिर का तथा उसके आस-पास का वातावरण शुद्ध बना रहता है। इसी वजह से जब भी मंदिर जाएं तो घंटी जरूर बजाएं !
जय बजरंगी..जय श्री राम
ॐ नमः शिवाय ..हर हर महादेव 



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