महिलाओं की उँगलियों की तरह दिखने वाली फल्लियों की वजह से अँग्रेजी भाषा में इसे लेडीस फ़िंगर भी कहा जाता है हालांकि इसका वानस्पतिक नाम एबेल्मोस्कस एस्कुलेंट्स है। भिंडी अत्यधिक प्रचलित सब्जियों मे से एक है जो घरों के बगीचों से लेकर खेतों में विस्तार से उगाई जाती है। सामान्यत: लोग इसे सिर्फ़ एक सब्जी के तौर पर देखते है लेकिन आदिवासी इलाकों में इसे अनेक रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लाया जाता है।
मध्यप्रदेश के पातालकोट के भुमका (हर्बल जानकार) नपुँसकता दूर करने के लिये पुरुषों को कच्ची भिंडी को चबाने की सलाह देते हैं, ये आदिवासी शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भिंडी को बेहतर मानते हैं।
डाँग- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार भिंडी का काढ़ा तैयार कर सिफ़लिस के रोगी को देते है। करीब ५० ग्राम भिंडी को बारीक काटकर 200 मिली पानी में उबाला जाता है और जब यह आधा शेष रहता है तो इसे रोगी को दिया जाता है। एक माह तक लगातार इस काढे को लेने से आराम मिलता है।
भिंडी के बीजों को एकत्र कर सुखाया जाता है और बच्चों को इसका चूर्ण खिलाया जाता है, माना जाता है कि ये बीज प्रोटीनयुक्त होते है और उत्तम स्वास्थ्य के लिये बेहतर हैं। ये बीज टोनिक की तरह कार्य करते हैं।
मधुमेह के रोगियों को भिंडी के बीजों का चुर्ण (5 ग्राम), इलायची (5 ग्राम), दालचीनी की छाल का चुर्ण (3ग्राम) और काली मिर्च (5 दाने) लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिश्रण तैयार कर लेना चाहिए और प्रतिदिन दिन में 3 बार गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए। तेजी से फायदा होता है।मधुमेह के रोगियों को भिंडी के बीजों का चुर्ण (5 ग्राम), इलायची (5 ग्राम), दालचीनी की छाल का चुर्ण (3ग्राम) और काली मिर्च (5 दाने) लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिश्रण तैयार कर लेना चाहिए और प्रतिदिन दिन में 3 बार गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए। तेजी से फायदा होता है।
मधुमेह के रोगियों को अक्सर भिंडी की अधकची सब्जी का सेवन करते रहना चाहिए। डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार ताजी हरी भिंडी ज्यादा असर करती है।
कुछ इलाकों में भिंडी के कटे हुए सिरों को पीने के पानी में डुबोकर सारी रात रखा जाता है और सवेरे खाली पेट इस पानी का सेवन किया जाता है। छानने के बाद बचे भिंडी के हिस्सों को फेंक दिया जाना चाहिए। माना जाता है कि मधुमेह नियंत्रण के लिए यह एक कारगर उपाय है।
पीलिया, बुखार और सर्दी खाँसी में, बीच से कटी हुयी भिंडी की फल्लियाँ (लगभग 5), निंबू रस (आधा चम्मच), अनार और भुई आँवला की पत्तियाँ (5-5 ग्राम) आदि को 1 गिलास पानी में डुबोकर रात भर के लिये रख देते है। अगली सुबह सारे मिश्रण को अच्छी तरह से पीसकर प्रतिदिन 2 बार लगातार 7 दिनों तक दिया जाता है। हर्बल जानकारों की मानी जाए तो पीलिया जैसा घातक रोग एक सप्ताह में ही नियंत्रित हो जाता है।
आदिवासियों के अनुसार कच्ची भिंडी चबाने से वीर्य और शुक्राणुओं की मात्रा में भी खासी बढोतरी होती है और ये स्वभाव से टॉनिक भी होता है।
मध्यप्रदेश के पातालकोट के भुमका (हर्बल जानकार) नपुँसकता दूर करने के लिये पुरुषों को कच्ची भिंडी को चबाने की सलाह देते हैं, ये आदिवासी शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भिंडी को बेहतर मानते हैं।
डाँग- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार भिंडी का काढ़ा तैयार कर सिफ़लिस के रोगी को देते है। करीब ५० ग्राम भिंडी को बारीक काटकर 200 मिली पानी में उबाला जाता है और जब यह आधा शेष रहता है तो इसे रोगी को दिया जाता है। एक माह तक लगातार इस काढे को लेने से आराम मिलता है।
भिंडी के बीजों को एकत्र कर सुखाया जाता है और बच्चों को इसका चूर्ण खिलाया जाता है, माना जाता है कि ये बीज प्रोटीनयुक्त होते है और उत्तम स्वास्थ्य के लिये बेहतर हैं। ये बीज टोनिक की तरह कार्य करते हैं।
मधुमेह के रोगियों को भिंडी के बीजों का चुर्ण (5 ग्राम), इलायची (5 ग्राम), दालचीनी की छाल का चुर्ण (3ग्राम) और काली मिर्च (5 दाने) लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिश्रण तैयार कर लेना चाहिए और प्रतिदिन दिन में 3 बार गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए। तेजी से फायदा होता है।मधुमेह के रोगियों को भिंडी के बीजों का चुर्ण (5 ग्राम), इलायची (5 ग्राम), दालचीनी की छाल का चुर्ण (3ग्राम) और काली मिर्च (5 दाने) लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिश्रण तैयार कर लेना चाहिए और प्रतिदिन दिन में 3 बार गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए। तेजी से फायदा होता है।
मधुमेह के रोगियों को अक्सर भिंडी की अधकची सब्जी का सेवन करते रहना चाहिए। डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार ताजी हरी भिंडी ज्यादा असर करती है।
कुछ इलाकों में भिंडी के कटे हुए सिरों को पीने के पानी में डुबोकर सारी रात रखा जाता है और सवेरे खाली पेट इस पानी का सेवन किया जाता है। छानने के बाद बचे भिंडी के हिस्सों को फेंक दिया जाना चाहिए। माना जाता है कि मधुमेह नियंत्रण के लिए यह एक कारगर उपाय है।
पीलिया, बुखार और सर्दी खाँसी में, बीच से कटी हुयी भिंडी की फल्लियाँ (लगभग 5), निंबू रस (आधा चम्मच), अनार और भुई आँवला की पत्तियाँ (5-5 ग्राम) आदि को 1 गिलास पानी में डुबोकर रात भर के लिये रख देते है। अगली सुबह सारे मिश्रण को अच्छी तरह से पीसकर प्रतिदिन 2 बार लगातार 7 दिनों तक दिया जाता है। हर्बल जानकारों की मानी जाए तो पीलिया जैसा घातक रोग एक सप्ताह में ही नियंत्रित हो जाता है।
आदिवासियों के अनुसार कच्ची भिंडी चबाने से वीर्य और शुक्राणुओं की मात्रा में भी खासी बढोतरी होती है और ये स्वभाव से टॉनिक भी होता है।