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सच्चे रिश्तों का सम्मान

 सफल गृहस्थ जिंदगी जी रही प्रिया की जिंदगी में पति आकाश के अलावा करण क्या आया, उसकी पूरी जिंदगी में तूफान आ गया। इसकी कीमत प्रिया ने क्या खोकर चुकाई।

"मम्मा, आज मैं अपनी नई वाली बोतल में पानी ले जाऊंगी," नन्ही अनिका चहकते हुए बोली।

"ओके," कहते हुए प्रिया ने उसे स्कूल के लिए तैयार किया।

"प्रिया, पार्लर की लिस्ट मैं विकास को दे आया हूं। 11-12 बजे तक सामान पहुंचा देगा। तुम चेक कर लेना," आकाश ने नाश्ता करते हुए कहा।

"ठीक है, आप चिंता न करें," प्रिया ने कहा।

आकाश और अनिका के चले जाने के बाद प्रिया आरामकुर्सी पर निढाल हो गई। तभी अचानक किसी ने ज़ोर से दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोलते ही सामने पड़ोसन सीमा हांफती हुई दिखाई दी।

"क्या हुआ? कहां से भागती-दौड़ती चली आ रही हो?" प्रिया ने पूछा।

"यार, बुरी खबर है। करण की पत्नी ने आत्महत्या कर ली," सीमा ने हांफते हुए कहा।

"क्या?" प्रिया स्तब्ध रह गई।

"हां, सुना है कि वह प्रेग्नेंट भी थी।"

सीमा के जाने के बाद प्रिया के मन में सवालों का सैलाब उमड़ पड़ा। करण की पत्नी पूजा, जिसे वह एक बार आयोजन में मिली थी, ने अपनी दुखभरी आंखों से उससे कहा था, "दीदी, काश हम भी आपकी तरह खुशहाल होते।"

प्रिया का मन अतीत की गलियों में भटकने लगा।

कुछ साल पहले, जब प्रिया ने आकाश के साथ नई कॉलोनी में घर लिया था, तो पड़ोस में रहने वाला करण अक्सर उससे टकरा जाता।

"भाभी, ये रंग आप पर बहुत जंच रहा है," सब्जी खरीदते समय करण ने पहली बार प्रिया से कहा।

करण धीरे-धीरे प्रिया की मदद करने के बहाने उसके करीब आने लगा। प्रिया भी उसके आकर्षण और मीठी बातों के जाल में फंसती चली गई।

एक दिन, जब आकाश किसी काम से शहर से बाहर थे, प्रिया और करण ने अपनी सीमाएं पार कर दीं।

लेकिन इसके बाद का हर पल प्रिया के लिए अपराधबोध और पछतावे का बन गया।

करण से दूरी बनाने की कोशिश के बावजूद, वह बार-बार प्रिया के जीवन में लौट आता। आखिरकार, एक दिन प्रिया ने आकाश और अपनी बेटी के लिए करण का साथ छोड़ने का निर्णय लिया।

आज, जब प्रिया को पता चला कि करण की पत्नी ने आत्महत्या कर ली है, तो वह सोचने लगी कि अगर उसने भी करण के साथ अपना जीवन चुना होता, तो शायद उसकी हालत भी पूजा जैसी ही होती।

पुनःस्थापना:

आकाश के साथ समय बिताने और उसकी अटूट समझ ने प्रिया को अपने गुनाहों से उबरने का हौसला दिया।

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे रिश्तों का सम्मान करना चाहिए। जीवन में मोह और क्षणिक आकर्षण से बचकर सही निर्णय लेना ही सच्चा समझदारी है।

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वह फरिश्ता मेरी जिंदगी से दूर चला गया

 बचपन से मुझे यही सिखाया गया था कि लड़के गंदे होते हैं और उनसे बस काम की बातें करनी चाहिए। इस बात ने मेरे दिमाग में गहरी छाप छोड़ी थी। इसी साल मेरा ग्रेजुएशन पूरा हुआ था, और मेरे घरवाले मेरी शादी के लिए लड़का ढूंढ रहे थे। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले में रहते हुए, लड़कियों की शादी ग्रेजुएशन के बाद जल्दी कर दी जाती है। मेरे माता-पिता और भाई मेरे लिए रिश्ते देख रहे थे।

एक दिन मेरे भाई को फेसबुक पर अभिषेक नाम के लड़के का प्रोफाइल दिखा। अभिषेक पढ़े-लिखे और दिखने में बेहद अच्छे थे, उनका अपना व्यवसाय भी था। उनके घर से संदेश आया कि उन्हें दहेज नहीं चाहिए, बस लड़की अच्छी हो। यह बात हमारे परिवार को बेहद पसंद आई क्योंकि हमारी आर्थिक स्थिति साधारण थी।

अभिषेक ने शादी से पहले मुझसे बात करने की इच्छा जताई। मेरे भाई ने मेरा नंबर उन्हें दे दिया। अभिषेक का पहला फोन आया तो मैं घबरा गई। उनसे बात करना मेरे लिए एक अलग अनुभव था। पहले दिन बातचीत में मैं सहज नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे उनकी बातें मुझे अच्छी लगने लगीं।

अभिषेक मुझसे पूछते, "आगे क्या करना चाहती हो?" उनके सवाल मुझे सोचने पर मजबूर कर देते। उन्होंने जीवन के हर पहलू पर इतनी जानकारी और समझ दिखाई कि मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।

जल्द ही हमारे घरवाले अभिषेक के परिवार से मिलने गए। सब कुछ सही लग रहा था। मेरे पापा और भाई ने अभिषेक और उनके परिवार की खूब तारीफ की। लेकिन अचानक अभिषेक के घर से यह संदेश आया कि वे शादी के लिए कुछ समय लेना चाहते हैं। मेरे परिवार को यह सुनकर झटका लगा।

मैंने अभिषेक को फोन किया और पूछा, "आपके घरवालों ने मना क्यों किया?" अभिषेक ने कहा, "नेहा, तुमसे बात करके मुझे लगता है कि तुम्हें पहले अपने करियर और जीवन को समझने का समय देना चाहिए। शादी जरूरी है, लेकिन उससे पहले तुम्हें अपनी पढ़ाई और आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना चाहिए।"

उनकी बातें मुझे गहराई तक छू गईं। उन्होंने अपनी बहन का उदाहरण दिया, जिसने शादी के बाद पढ़ाई में रुकावटें झेलीं। उन्होंने मुझसे कहा, "तुम्हारे जैसा टैलेंटेड इंसान अपनी जिंदगी के सपने पूरे कर सकता है, अगर सही दिशा में आगे बढ़े।"

मैंने उनके कहे शब्दों को गंभीरता से लिया और एमसीए में दाखिला लिया। कॉलेज में मुझे पहली बार सोशल स्किल्स, लोगों से मिलने-जुलने और उनकी बातों को समझने का मौका मिला। तीन साल की मेहनत के बाद मेरी प्लेसमेंट एक बड़ी कंपनी में हो गई।

आज, चार साल बाद, मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं। अभिषेक अब कहां हैं, क्या कर रहे हैं, मुझे नहीं पता। लेकिन उनकी बातों ने मेरी जिंदगी बदल दी। उनकी सूझबूझ और समर्थन ने मुझे वह बना दिया जो आज मैं हूं।

कभी-कभी सोचती हूं कि भगवान ने उन्हें मेरी जिंदगी में एक मकसद के लिए भेजा था। वह मकसद पूरा हुआ और वह फरिश्ता मेरी जिंदगी से दूर चला गया।

अगर आज अभिषेक मुझसे मिलते, तो मैं उन्हें गले लगाकर शुक्रिया कहती। उनकी बातें मेरी जिंदगी के सबसे बड़े सबक के रूप में हमेशा मेरे साथ रहेंगी।

आपको यह कहानी कैसी लगी, जरूर बताएं।

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प्रेम और मर्यादा

 एक दिन मैंने अपनी पत्नी से पूछा - "क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं बार-बार तुम्हें कुछ भी कह देता हूँ, और डाँट भी देता हूँ, फिर भी तुम पति भक्ति में लगी रहती हो, जबकि मैं कभी पत्नी भक्ति का प्रयास नहीं करता?"

मैंने वेदों का अध्ययन किया है और भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि रखता हूँ, जबकि मेरी पत्नी विज्ञान की विद्यार्थी रही है। फिर भी, उसकी आध्यात्मिक शक्ति मुझसे कई गुना अधिक है, क्योंकि मैं केवल पढ़ता हूँ और वह उसका पालन करती है।

मेरे प्रश्न पर उसने मुस्कुराते हुए पानी का गिलास पकड़ा और बोली - "एक पुत्र यदि माता की भक्ति करे तो उसे मातृ भक्त कहते हैं, परन्तु माता चाहे कितनी भी सेवा करे, उसे पुत्र भक्त नहीं कहा जा सकता।"

मैं सोच रहा था, आज भी यह मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने पूछा, "जीवन के प्रारंभ में पुरुष और स्त्री समान थे, फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री शक्ति का प्रतीक है?"

वह हँसते हुए बोली - "आपको थोड़ा विज्ञान भी पढ़ना चाहिए। दुनिया दो चीज़ों से बनी है - ऊर्जा और पदार्थ। पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ का। जब पदार्थ को विकसित होना होता है, तो वह ऊर्जा का आधान करता है। इसी प्रकार, जब स्त्री पुरुष का आधान करती है, तो शक्ति स्वरूप हो जाती है। यही कारण है कि स्त्री प्रथम पूज्या बनती है।"

मैंने चुपचाप पूछा, "तो तुम मेरी भी पूज्य हो गईं, क्योंकि तुम ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो।"

उसने झेंपते हुए कहा, "आप भी पढ़े-लिखे मूर्ख जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा से मैंने शक्ति पाई, तो क्या उस शक्ति का उपयोग आप पर करूँ? यह कृतघ्नता होगी।"

मैंने कहा, "मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ, फिर तुम क्यों नहीं?"

उसका उत्तर सुनकर मेरी आँखें भर आईं। उसने कहा, "जिसके साथ मात्र संसर्ग से मैं जीवन उत्पन्न करने की शक्ति पा गई, उसे मैं कैसे विद्रोह करूँ? यदि शक्ति प्रयोग करना होगा तो मुझे क्या आवश्यकता... मैं माता सीता की भाँति लव-कुश तैयार कर लूँगी, जो आपसे मेरा हिसाब कर लेंगे।"

सभी मातृ शक्तियों को सहस्त्रों नमन, जिन्होंने सृष्टि को प्रेम और मर्यादा में बाँध रखा है। 🙏


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A Lesson in Unity

The Legacy of the Old Mango Tree

In a small village nestled amidst lush greenery, there lived a farmer named Ramesh with his wife and three children—Aarav, Meera, and little Kabir. At the heart of their farmland stood an old mango tree, planted by Ramesh’s father decades ago. The tree was massive, its branches wide enough to provide shade for the entire family during hot summer afternoons.

The mango tree was more than just a source of sweet fruits. For Ramesh, it was a reminder of his father’s wisdom and sacrifices. His father used to say, “This tree will teach you everything you need to know about life and family, as long as you’re willing to listen.”

The Seeds of Division

As the years passed, Ramesh’s children grew up and started pursuing their own lives. Aarav became a merchant, traveling far and wide, while Meera got married and moved to a nearby town. Kabir, the youngest, stayed back to help his parents on the farm.

One day, Ramesh called his children together and shared his wish: “This mango tree is the soul of our family. When I am gone, take care of it, and it will take care of you.”

Aarav, however, thought differently. “Father, the land where the tree stands could fetch a good price. We could sell it and split the money.”

Meera nodded hesitantly, but Kabir protested, “How can you think of selling something that has been part of our family for generations?”

The siblings argued for hours, their voices echoing through the fields. Hurt and disappointed, Ramesh said nothing but gazed at the tree with tears in his eyes.

A Lesson in Unity

A Lesson in Unity

A few months later, Ramesh passed away, leaving the family divided. Aarav and Meera pressured Kabir to sell the land, but Kabir refused. Finally, Aarav declared, “If you won’t sell, you can keep the tree. But don’t expect us to help you with anything.”

Kabir, now alone, worked tirelessly to maintain the farm and the tree. Seasons changed, and Kabir’s determination bore fruit—literally. That year, the mango tree produced an abundant harvest. Kabir decided to send baskets of mangoes to Aarav and Meera as a gesture of peace.

Aarav, upon receiving the mangoes, was overwhelmed by their sweetness and the memories they brought back. He visited Kabir, guilt heavy in his heart. Meera followed soon after. Standing under the shade of the old mango tree, the siblings apologized to each other and to Kabir.

The Roots of Family

The three siblings decided to honor their father’s wish. They stopped arguing about the land and worked together to make the farm thrive. The mango tree became a symbol of their unity and a reminder of their father’s teachings.

Years later, Aarav’s son asked him, “Why do you always tell stories about the mango tree?”

Aarav smiled and replied, “Because it taught us the most important lesson: A family is like a tree. Its roots are our shared values, its trunk is our bond, and its fruits are the love and care we give each other.”

From then on, the family gathered under the mango tree every year, cherishing the legacy of togetherness and the values it symbolized.


This story illustrates that family values are like the roots of a tree—they provide stability, nurture growth, and keep us connected, no matter how far we wander.

 


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सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल क्यों जरूरी है?

 एक रात, मैं मोबाइल पर स्क्रॉल कर रही थी, तभी एक वीडियो पर नज़र पड़ी। वीडियो में एक पति-पत्नी और उनके साथ सोते हुए बच्चे दिख रहे थे। पति धीरे से पत्नी से पूछता है, "बच्चे सो गए हैं क्या?" पत्नी जवाब देती है, "हाँ।" पति तुरंत कहता है, "उन्हें उधर करो, और जल्दी से इधर आओ।" पत्नी आश्चर्यचकित होकर पूछती है, "क्यों?" पति उत्साह से कहता है, "जल्दी करो, बच्चे जाग जाएंगे।" पत्नी हड़बड़ाकर पति के पास पहुंचती है। तभी पति बेड से नीचे उतरकर मुस्कुराते हुए कहता है, "चलो, रेड गोटिया मैं लूंगा, तुम ग्रीन लेना।" वीडियो यहीं खत्म हो जाती है।

शुरुआत में यह वीडियो ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कुछ रोमांटिक या अश्लील होने वाला है, लेकिन अंत में इसे मजाकिया ट्विस्ट देकर लूडो खेलने पर खत्म कर दिया गया।

प्रश्न यह है कि ऐसी वीडियो बनाने का उद्देश्य क्या होता है?

ऐसी वीडियो मुख्यतः व्यूज और लाइक्स पाने के लिए बनाई जाती हैं। ये कुछ समय के लिए लोगों को आकर्षित करती हैं, लेकिन इसके पीछे की गंभीरता को नजरअंदाज कर देती हैं। खासकर जब ये वीडियो वायरल होती हैं, तो यह हर जगह फैल जाती हैं। हमारे बच्चे, जो आज छोटे हैं, भविष्य में इन वीडियो को देखकर शर्मिंदा महसूस कर सकते हैं।

सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल क्यों जरूरी है?

आज सोशल मीडिया हमारे व्यक्तित्व का आईना बन गया है। आपकी पोस्ट, वीडियो, और कंटेंट आपके चरित्र और सोच को दर्शाते हैं। अश्लीलता, डबल मीनिंग या भ्रामक कंटेंट भले ही तात्कालिक ध्यान आकर्षित कर लें, लेकिन वे लंबे समय में आपकी छवि को धूमिल कर सकते हैं।

सुझाव:

हमें सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री पोस्ट करनी चाहिए जो प्रेरणा दे, मनोरंजन करे और समाज में सकारात्मकता फैलाए। ऐसी पोस्ट से बचें जो अनैतिकता को बढ़ावा देती हो। याद रखें, आपके द्वारा बनाया गया कंटेंट आपके बच्चों और परिवार के लिए भी एक पहचान बनता है।

निष्कर्ष:

सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करें। ऐसा कंटेंट बनाएं जो दूसरों को प्रेरित करे और आपके साथ-साथ समाज को भी गर्व महसूस कराए। आपके विचार और रचनात्मकता का सही इस्तेमाल ही आपकी सच्ची पहचान बनाएगा।

Plzzz अगर Agree हो तो 1 share मेरे लिए क्योंकि जो new लड़कियां है उन्हें बताना जरूरी है ये सब ।।

राम राम

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मुलाकात और नई सच्चाई

 वह लड़की, साधारण कपड़ों में थी। उसके चेहरे पर घबराहट और मासूमियत के भाव थे। लेकिन अमित और रोहन उसे हवस की नजरों से देख रहे थे।

जब अमित ने नेहा को अंदर बुलाया, आदित्य ने खुद को असहज महसूस किया। उसने अमित और रोहन को रोकने की कोशिश की, लेकिन वे नशे में धुत थे।

जब रोहन कमरे में गया और काफी देर तक बाहर नहीं निकला, तो आदित्य ने दरवाजा खटखटाया। नेहा ने दरवाजा खोला और कहा, "भाई साहब, ये लोग ना कुछ कर रहे हैं, ना पैसे दे रहे हैं। मुझे घर जाना है।"

आदित्य ने नेहा को पैसे देकर दूसरे कमरे में ले जाकर बिठाया। लेकिन नेहा ने कहा, "भाई साहब, मैं किसी से मुफ्त में पैसे नहीं ले सकती।" नेहा ने आदित्य को रोककर काम पूरा करने की कोशिश की। आदित्य के मना करने के बावजूद वह अपनी मजबूरी से हार गई।

मुलाकात और नई सच्चाई

कई दिनों बाद आदित्य ने नेहा को बाजार में देखा। उसने नेहा से बात करनी चाही, लेकिन उसने उसे अनसुना कर दिया।

एक दिन, आदित्य ने नेहा का पीछा किया और उससे बात करने की कोशिश की। नेहा कमजोर दिख रही थी। आदित्य ने उसे एक चाय की दुकान पर बैठाकर पूछा, "तुम्हारी ये हालत कैसे हुई?"

नेहा ने रोते हुए बताया, "उस रात जो पैसे आपने दिए, उनसे मैंने अपने भाई को जेल से छुड़ाया। लेकिन जब उसे पता चला कि मैंने कैसे पैसे कमाए, तो उसने मुझे धंधेवाली कहकर पीटा। मेरे पेट में जो बच्चा पल रहा है, उसे सब नाजायज कहते हैं।"

आदित्य को गहरा सदमा लगा। नेहा ने कहा, "भाई साहब, यह बच्चा आपकी निशानी है। मैंने फैसला किया है कि इसे दुनिया में लाऊंगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी सहना पड़े।"

एक अधूरी कहानी

आदित्य ने तय किया कि वह नेहा से शादी करेगा। लेकिन अगली सुबह जब वह नेहा के घर पहुंचा, तो वहां भीड़ जमा थी। नेहा जमीन पर पड़ी थी। उसके भाई ने उसे चाकू मारकर मार दिया था।

नेहा का एक हाथ अपने पेट पर था। उसके चेहरे पर मासूम मुस्कान थी, जैसे कह रही हो, "यह तुम्हारे प्यार की निशानी है।"

आदित्य खुद को माफ नहीं कर पाया। उसने सोचा कि अगर वह एक दिन पहले ही नेहा से शादी की बात कर लेता, तो शायद उसकी जान बच सकती थी।

बारिश तेज हो गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे आसमान भी नेहा के दर्द पर रो रहा हो।

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हिंदू-मुस्लिम झगड़ा समान नागरिक संहिता (UCC) से ही खत्म होगा

 हिंदू-मुस्लिम झगड़ा समान नागरिक संहिता (UCC) से ही खत्म होगा

हिंदू-मुस्लिम झगड़ा समान नागरिक संहिता (UCC) से ही खत्म होगा

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां हर नागरिक को समान अधिकार और स्वतंत्रता का वादा संविधान में किया गया है। लेकिन देश में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून होने की वजह से अक्सर विवाद और असमानता देखने को मिलती है। विशेष रूप से हिंदू-मुस्लिम मुद्दों में यह असमानता और अलग-अलग कानून तनाव और झगड़े की एक बड़ी वजह बनती है।

समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?

समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू हों, चाहे उनका धर्म, जाति, लिंग, या भाषा कुछ भी हो। इसका उद्देश्य यह है कि सभी भारतीय नागरिकों को शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि जैसे मुद्दों में एक समान कानून मिले।

UCC से हिंदू-मुस्लिम झगड़ा कैसे खत्म होगा?

1. समानता की भावना:

समान नागरिक संहिता से यह सुनिश्चित होगा कि सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार और कर्तव्य मिलें। इससे किसी विशेष धर्म या समुदाय को प्राथमिकता देने का सवाल ही खत्म हो जाएगा, और यह असमानता और झगड़ों को कम करेगा।

2. भ्रम और अन्याय की समाप्ति:

वर्तमान में अलग-अलग व्यक्तिगत कानून होने की वजह से कई बार भ्रम की स्थिति पैदा होती है। कुछ समुदायों को लगता है कि उन्हें कानून के तहत विशेषाधिकार दिए गए हैं या उनसे अन्याय हो रहा है। UCC से यह गलतफहमी खत्म हो जाएगी।

3. सामाजिक एकता:

समान कानून होने से समाज में एकता और सामंजस्य बढ़ेगा। लोग यह महसूस करेंगे कि सभी को एक ही कानून के तहत देखा जा रहा है, और इससे धार्मिक तनाव कम होंगे।

4. राजनीतिक हस्तक्षेप कम होगा:

अक्सर देखा गया है कि धार्मिक आधार पर व्यक्तिगत कानूनों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए किया जाता है। UCC लागू होने से इस तरह के हस्तक्षेप और वोट बैंक की राजनीति पर लगाम लगेगी।

5. महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा:

विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में कई बार महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है। UCC लागू होने से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी महिलाओं को समान अधिकार और सुरक्षा मिले।

6. धर्म के आधार पर भेदभाव खत्म होगा:

जब कानून सभी के लिए समान होंगे, तो धर्म के आधार पर भेदभाव और कटुता की जगह एकता और विश्वास बढ़ेगा।

UCC लागू करने में चुनौतियां

समान नागरिक संहिता लागू करना आसान नहीं है। इसके लिए लोगों के बीच जागरूकता फैलाना और यह समझाना जरूरी है कि यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी के भले के लिए है। धार्मिक संगठनों और नेताओं को भी इसे समझना होगा और इसका समर्थन करना होगा।

निष्कर्ष

हिंदू-मुस्लिम झगड़े का स्थायी समाधान तभी संभव है जब सभी नागरिकों को समान अधिकार और कर्तव्यों के दायरे में लाया जाए। समान नागरिक संहिता (UCC) न केवल धार्मिक तनाव को कम करेगी बल्कि एक मजबूत, एकजुट और प्रगतिशील भारत के निर्माण में भी मदद करेगी। यह देश के संविधान की भावना और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विचार को साकार करने का एक महत्वपूर्ण कदम होगा।


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जीवन में सही और गलत के बीच फर्क समझना बेहद ज़रूरी

तीन साल पहले की बात है। उस समय एक लोकप्रिय टीवी सीरीज़, क्राइम पेट्रोल: डायल 100, काफी चर्चा में थी। इस सीरीज़ में दिखाए गए पारिवारिक रिश्तों के गलत और अशोभनीय पहलुओं ने मुझे बुरी तरह से प्रभावित किया। इस सीरीज़ को देखने की आदत ऐसी बन गई कि मेरी सोच पर इसका गहरा असर पड़ा। मैंने यह मान लिया कि जो भी स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है, वह असल जीवन में भी संभव है। मेरे दिमाग में यह विचार आने लगा कि पारिवारिक रिश्तों में भी शारीरिक संबंध बनाए जा सकते हैं।

जीवन में सही और गलत के बीच फर्क समझना बेहद ज़रूरी

हमारे घर में मेरे माता-पिता, छोटी बहन, और मेरे चाचा-चाची रहते थे। मेरी चाची की शादी को दो साल ही हुए थे, और वह स्वभाव से बहुत हंसमुख और प्रेमपूर्वक बात करने वाली थीं। उनके इस स्वभाव ने मेरे दिमाग में गलतफहमी पैदा कर दी, और मैं सोचने लगा कि शायद उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने की संभावना हो सकती है, जैसा कि मैंने सीरीज़ में देखा था।

एक दिन, अपनी इन गलतफहमियों के चलते, मैंने चाची की ओर कुछ ऐसा कदम उठाने की कोशिश की जो बिल्कुल गलत था। मैंने सोचा कि हल्के-फुल्के संकेतों से वह राज़ी हो जाएंगी, जैसा कि सीरीज़ में दिखाया जाता था। लेकिन हकीकत सीरीज़ से बहुत अलग थी। उन्होंने मुझे तुरंत एक जोरदार थप्पड़ मारा और कहा कि वह मेरी यह हरकत मम्मी-पापा को बताने जा रही हैं।

उस समय मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मैंने बहुत माफी मांगी और उनसे कहा कि मैं अपनी सोच को सुधारूंगा। उनकी गंभीर चेतावनी ने मेरी आंखें खोल दीं। उन्होंने कहा, "अगर दोबारा ऐसा हुआ, तो मैं तुम्हारे माता-पिता को सबकुछ बता दूंगी।"

इस घटना ने मुझे एक गहरी सीख दी। मुझे यह समझ में आया कि टीवी सीरीज़ और वेब शोज़ में जो दिखाया जाता है, वह केवल मनोरंजन के लिए होता है, न कि वास्तविक जीवन का प्रतिबिंब। इन कहानियों का उद्देश्य अक्सर दर्शकों को आकर्षित करना होता है, लेकिन यह हमारे दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

मेरी इस कहानी का उद्देश्य है कि आप सब सावधान रहें। ऐसे किसी भी सीरीज़, फिल्म, या कंटेंट से बचें, जो आपके मन में नकारात्मक सोच और गलत धारणाएं पैदा करे। यह केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को खराब करेगा और आपको अनचाहे विवादों में फंसा सकता है।

युवाओं और बच्चों से मेरी यही अपील है कि अपने समय का उपयोग सकारात्मक चीज़ों में करें, और हर तरह की जानकारी को समझदारी से स्वीकार करें। कोई भी ऐसा कदम न उठाएं, जो न केवल आपके बल्कि आपके परिवार के लिए भी शर्मिंदगी का कारण बने। जीवन में सही और गलत के बीच फर्क समझना बेहद ज़रूरी है।

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सनातनी हिंदूओं को जागरूक करने के लिए संदेश

 

सनातनी हिंदूओं को जागरूक करने के लिए संदेश

सनातनी हिंदूओं को जागरूक करने के लिए संदेश

प्रिय सनातनी भाई और बहनों,

हम सब सनातन धर्म के अनुयायी हैं, जो केवल एक धर्म बल्कि जीवन जीने का तरीका है। हमारी संस्कृति, परंपराएँ, और जीवनशैली हमें सिखाती हैं कि हम केवल खुद को बल्कि समाज को भी सत्य, अहिंसा, प्रेम और ज्ञान से अभिभूत करें। आज जब समाज में विकृतियाँ और भ्रम फैलाए जा रहे हैं, हमें अपने धर्म की मूल बातें समझने और उसे अपनाने की आवश्यकता है। यही समय है जब हमें अपने समाज को एकजुट करने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि हम अपने राष्ट्र को सुरक्षित, समृद्ध और प्रगतिशील बना सकें।

1. जाति-पाती मुक्त समाज का महत्व

सनातन धर्म का मूल तत्व है "एकता में शक्ति" और यह संदेश हमें जाति, पाती, रंग या रूप के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुट होने की प्रेरणा देता है। हमारे समाज में जातिवाद की नींव बहुत पुरानी है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि जातिवाद सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। जाति-पाती के भेदों ने समाज को कई हिस्सों में बाँट दिया है और यही कारण है कि हम अपने समाज में एकता और अखंडता नहीं देख पा रहे हैं।

यदि हम अपने समाज को वाकई में एकजुट और मजबूत बनाना चाहते हैं, तो हमें जातिवाद, संप्रदायवाद और भेदभाव को समाप्त करना होगा। हमें यह मानना होगा कि हम सभी भारतीय हैं, चाहे हमारी जाति कुछ भी हो, हमारा धर्म एक ही है, और हम सभी एक ईश्वर के भक्त हैं। एक जाति-पाती मुक्त समाज में ही सनातन हिंदू एकता का सपना पूरा हो सकता है। जब हम सब मिलकर एक लक्ष्य के लिए काम करेंगे, तभी हम अपने राष्ट्र को मजबूत बना सकेंगे।

2. धर्म और समाज का समन्वय

सनातन धर्म केवल व्यक्तिगत भक्ति और पूजा तक सीमित नहीं है, यह समाज के हर पहलू को प्रभावित करता है। हमें अपने धर्म को केवल मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि हमें इसे अपने समाज के हर पहलू में लागू करना होगा। हम तब ही सफल होंगे, जब हम समाज में जाति-पाती के भेदभाव को समाप्त करेंगे और एक दूसरे के प्रति समान सम्मान और प्रेम दिखाएंगे। जब समाज में जातिवाद, असहमति और भेदभाव का कोई स्थान नहीं होगा, तभी हम अपने सामाजिक और धार्मिक एकता की असली ताकत को महसूस कर सकेंगे।

3. हमारी शक्ति एकजुटता में है

अगर हम सनातनी हिंदूओं को एकजुट कर लेते हैं तो केवल हमारी धार्मिकता मजबूत होगी, बल्कि हम समाज में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। यह सच है कि अगर हम सभी एकजुट हो जाते हैं तो हमारी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। सनातन धर्म में कर्म, धर्म और भक्ति की जो शिक्षा दी गई है, यदि हम उसे अपनी जिंदगी में लागू करें, तो केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सफल होगा, बल्कि समाज भी सशक्त बनेगा। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम सभी का उद्देश्य एक ही हैपरमात्मा के प्रति श्रद्धा और समाज की सेवा।

4. आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति की दिशा

हमारे समाज में आज भी बहुत से लोग गरीब हैं, अशिक्षित हैं और समाज के मुख्यधारा से बाहर हैं। हमें यह समझना होगा कि किसी की जाति, पाती, धर्म या आर्थिक स्थिति को देखकर किसी को भी नीचा नहीं समझना चाहिए। हमारा धर्म हमें सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय का संदेश देता है। हमें अपनी शक्ति का उपयोग समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने के लिए करना चाहिए, ताकि हम एक सशक्त और समान समाज का निर्माण कर सकें।

धर्म का पालन करते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम सभी अपने परिवारों और समुदायों में समानता और भ्रातृत्व की भावना का प्रचार करें। जातिवाद को समाप्त करने के लिए हम अपने बच्चों को बचपन से यह सिखाएं कि सभी इंसान समान हैं और किसी भी प्रकार का भेदभाव हमारी संस्कृति के खिलाफ है। जब हम जातिवाद को समाप्त करेंगे, तब ही हमारी धार्मिक और सामाजिक एकता का सही अर्थ समझ में आएगा।

5. देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए एकता आवश्यक है

सनातन धर्म का पालन करना और जातिवाद से मुक्त समाज की स्थापना करना केवल हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए नहीं है, बल्कि इससे देश की सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित होगी। जब हम एकजुट होंगे और किसी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करेंगे, तो हमारी एकता हमें हर संकट का सामना करने के लिए मजबूती देगी। एकता में ही राष्ट्र की शक्ति निहित है। अगर हम सभी सनातनी भाई-बहन एकजुट होकर अपने धर्म, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे, तो हम केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा में भी योगदान दे सकेंगे।

6. क्या हमें तैयार रहना चाहिए?

आज के समय में समाज में बढ़ते असहमति और भेदभाव को समाप्त करने के लिए हमें अपने आप को तैयार करना होगा। हमें समझना होगा कि अगर हम एक जाति-पाती मुक्त समाज का निर्माण करते हैं तो यह हमारे देश के लिए भी बेहतर होगा। हमें अपने धर्म, अपने समाज और अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी निभानी होगी। हम हर कदम पर एकता का संदेश फैलाने के लिए काम कर सकते हैं, चाहे वह हमारे परिवार में हो या समाज में।

निष्कर्ष

प्रिय सनातनी भाई-बहनों, यह समय है जब हमें जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करके एकजुट होने का संकल्प लेना होगा। केवल तब ही हम सनातन हिंदू एकता को मजबूत कर सकते हैं और अपने समाज तथा राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकते हैं। जब हम एकजुट होंगे, तब हम सभी के साथ मिलकर अपने देश को एक शक्तिशाली और सुरक्षित स्थान बना सकते हैं। हमारे लिए यह समय जागरूक होने का है और अपने धर्म की सच्चाई को केवल अपने जीवन में अपनाने का, बल्कि समाज में फैलाने का भी है।

जय श्रीराम! जय हिंद!

 

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