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सोचो ज़रा...

सोचो ज़रा...

देश विरोधी अगर शक्ति शाली हो,

तो क्या देश सुरक्षित रह पाएगा?



सोचो ज़रा...

अगर चरित्रहीन को मिले कुर्सी,

तो क्या समाज सुरक्षित बच पाएगा?


सोचो ज़रा...

भ्रष्टाचारी अगर कुर्सी पर होगा,

 क्या देश भ्रस्टाचार मुक्त हो पाएगा?


सोचो ज़रा...

जो अयोग्य होकर भी कुर्सी पाएगा ,

 क्या वह जिम्मेदारी निभाएगा?


सोचो ज़रा...

जो जाति धर्म के नाम पर बाँटेगा,

 क्या वह न्याय दिला पाएगा?


सोचो ज़रा...

जो चरित्रहीनता और भ्रस्टाचार में बिक जायेगा,

तो क्या लोकतंत्र बच पाएगा?


सोचो ज़रा...

जहाँ झूठ बोलने पर सज़ा ना मिले,

तो क्या अपराधी सजा पायेगा?


सोचो ज़रा...

अगर जिम्मेदारों को सजा ही ना हो,

तो क्या लोकतंत्र ज़िंदा रह पाएगा?


सोचो ज़रा...

जहाँ नर नारी चरित्रहीन हो जाए,

तो क्या कोई घर बच पाएगा?



अब उठो... पूछो सबसे यही सवाल,

फिर देखना वो भी पूछेंगे उनसे यही सबाल!

तब यही सबाल इंक़लाब लेकर आयेगा,

फिर हर कुर्सी पर योग्य और जिम्मेदार ही आयेगा!

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जाति-मज़हब के नाम पर, हैवान बन गए इंसान

 जाति-मज़हब के नाम पर,

हैवान बन गए इंसान,

मर्यादा भूले रिश्तों की,

करते फिरें अपमान।

तो बताओ ज़रा, कैसा है ये धर्म?

जो बाँट दे दिलों को, वो कैसा कर्म?




कहीं मंदिर जले, कहीं मस्जिद टूटी,

इंसानियत की साँसे छूटी।

ना राम ने कहा, ना रहीम ने सिखाया,

नफ़रत का धर्म किसने बनाया?



कहीं नाम पर जाति की तलवार,

कहीं मज़हब के नाम पर वार।

जो जोड़ न पाए, वो तो जहर है,

धर्म तो वही जो सबमें असर है।



बोलो नफ़रत से क्या मिला है?

टूटा घर, टूटा देश का किला है।

प्रेम से जो जीते दिलों को,

बस वही सच्चा साधु मिला है।



जात-पात, मज़हब की दीवारें गिराओ,

इंसान को पहले इंसान बनाओ।

जिसके कर्म में करुणा हो,

बस वही सच्चा धर्म कहलाए।


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गुरुकुल मिटा, साज़िश रची, संस्कृति की जड़ें हिलाई गईं

गुरुकुल मिटा, साज़िश रची,

संस्कृति की जड़ें हिलाई गईं।

जो भारत सिखाए मर्यादा का पाठ,

उसी में अब चरित्रहीनता छाई गईं।


बॉलीवुड ने चुपके से जाल बुना,

वासना और धोखे का पाठ सुना।

रिश्तों की पवित्रता खो गई,

हर घर में ज़हर सी घुल गई।



सीरियल में दिखे नाजायज़ रिश्ते,

बॉयफ्रेंड संग पत्नी के फितरे।

पति को मारा योजना बनाकर,

प्रेम नहीं, अब हत्या है रिश्तों में उतर।


माँ-बाप की अब इज़्ज़त नहीं,

बेटा-बेटी भी बदल गए यही।

जहाँ संस्कार पूजा जाते थे,

वहाँ अपशब्द गूंज रहे हैं।



गुरुकुल हटा, नेटफ्लिक्स आया,

चरित्र गिरा, मोबाइल छाया।

टीवी में रोमांस, घर में क्लेश,

हर सीन ने मारा सच्चा देश।


अब बेटा माँ से आँख चुराए,

बेटी संस्कार को भुलाए।

शर्म से झुकीं वो दीवारें,

जहाँ गूँजती थीं वेद-वाणियाँ।



मॉडर्न के नाम पर देह दिखाया,

रिश्तों को भी व्यापार बनाया।

माँ की ममता, पिता का सम्मान,

आज बन गया है अपमान।


प्यार के नाम पर झूठी कहानी,

सच में केवल बेईमानी।

बेटी जो थी लक्ष्मी का रूप,

अब बन गई लाइक्स की भूख।



अब भी समय है, चेतो यारो,

संस्कार फिर से लौटाओ।

बेटी को सीता बनाओ फिर,

बेटे को राम की राह दिखाओ।


सिनेमा से पहले संस्कृति रखो,

रिश्तों में फिर सच्चाई रखो।

बॉलीवुड का नक़ाब हटाओ,

भारत को फिर से भारत बनाओ।

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इंटरनेट ने छीनी घर की मर्यादा

 मोबाइल की दुनिया अब डर बन गई है,

हर दीवार में दरार सी लग गई है।

इंटरनेट ने छीनी घर की मर्यादा,

मर्यादा रोती है, बिखरा है परिवार।




चुपके-चुपके मोबाइल से रिश्ता बनता,

फिर वही रिश्ता घर को तोड़ देता।

वो चैट, वो कॉल, वो चोरी की बातें,

सच्चे रिश्तों पर पड़ती हैं घातें।


आँखों में नशा, दिल में है धोखा,

अश्लीलता ने तोड़ दिया माँ का रोका।

संस्कार खो गए, संस्कृति हुई ग़मगीन,

घर की लक्ष्मी अब सवालों में हींन।



मोबाइल की दुनिया अब डर बन गई है,

हर दीवार में दरार सी लग गई है।

इंटरनेट ने छीनी घर की मर्यादा,

मर्यादा रोती है, बिखरा है परिवार।



ना भाई का प्यार, ना बहन की इज़्ज़त,

हर स्क्रीन से फैल रही है अशुद्धता।

रात की बातें, दिन में ज़हर बनती,

अवैध रिश्ते अब जान भी लेतीं।


हत्या, धोखा, ब्लैकमेल का खेल,

इंटरनेट ने बिगाड़ दिया हर मेल।

जहां था कभी प्रेम और संस्कार,

वहीं अब ज़हर है, छल और व्यवहार।



उठो, जागो, समय न बीत जाए,

मोबाइल की दुनिया में घर न जल जाए।

संस्कारों की दीवार फिर से खड़ी करो,

संस्कृति के दीप को फिर से जला दो।



मोबाइल की दुनिया अब डर बन गई है,

हर दीवार में दरार सी लग गई है।

इंटरनेट ने छीनी घर की मर्यादा,

मर्यादा रोती है, बिखरा है परिवार।


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हर नज़र चरित्र वान नहीं होती

हर नज़र चरित्र वान नहीं होती,

बेशर्म नजरे गन्दी होती हैं,

इसलिए ज़रूरी है –

आज़ादी के साथ समझदारी रख।




तेरे पहनावे का उद्देश्य,

कई बार खतरा बन जाता है।

जो सोच पहले ही गन्दी हो,

वो नजरों से बलात्कार कर देता है।


तू कहती है – "ये मेरा हक़ है",

और वो तुझसे कोई छीन नहीं सकता।

मगर जब समाज चरित्रहीन हो,

तो सुरक्षित रहना भी जरुरी है।



तू जो चाहे वो पहन,

तेरी मर्ज़ी पर किसी का हक़ नहीं।

पर जब भूंखे भेड़िये घूमते हों,

तो मर्यादा ही सबसे बड़ी रक्षक बनती ।


तेरी चाल में हो आत्मसम्मान,

तेरे व्यवहार में हो सादगी।

मर्यादा कमज़ोरी नहीं होती,

ये तो तेरे तेज़ की गहराई है।



नज़रें ग़लत हों तो दंड मिले,

पर नीयत बिगड़ने का मौका क्यों देती हो।

जिस समाज की सोच चरत्रहीन हो,

वहाँ सावधानी ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।


तू कम नहीं, तू प्रकाश है,

तू हर बदलाव की आस है।

बस इतना याद रख बहना,

तेरा चरित्र ही तेरी आबरू है।



तू आज़ाद है, ये सच है,

पर तेरी गरिमा सबसे बड़ी पहचान है।

जो खुद में संतुलन रखती है,

वो ही सबसे सशक्त स्त्री कहलाती है।



तेरे शरीर का दिखावा, 

पति केअलावा, गैरों को क्यों।

मर्यादा ओढ़कर जब तू चले,

तो तेरे साथ तेरे, घर की आबरू बचे।


तू वही है जो मिसाल बने,

तेरे कारण समाज संभले।

आज़ादी भी तेरे पास हो,

और सम्मान भी तेरे साथ चले।



"स्वतंत्रता तब सुरक्षित होती है, जब उसमें मर्यादा और समझदारी साथ हो।"

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चल, उठ! शेर, खड़ा हो जा

 कब तक अपनों को कटते देखोगे?

कब तक चुप रहकर सहते जाओगे?

गली-गली में आग लगी है,

फिर भी तुम क्यों सोए हो भाई?




चल, उठ! शेर, खड़ा हो जा,

हक़ के लिए अब खड़ा हो जा।

जिस धरती माँ ने जन्म दिया,

उसके लिए तू ज़िंदा हो जा।



हर कतल पर खामोशी क्यों है?

हर अन्याय पर चुप्पी क्यों है?

ज़मीर को बिकता देख रहे हो,

इंसाफ़ को झुकता देख रहे हो।



गरम है खून, तो उबाल में ला,

कायर नहीं, ज्वालामुखी बन जा।

बेटियों की चीखें सुन,

क्या अब भी ज़मीर नहीं हिला?



चल, उठ! शेर, खड़ा हो जा,

भीड़ में से अब अलग हो जा।

माँ का लाल कहला कर भी,

अब तक क्यों बेजान पड़ा ?



वो तिजोरी भरते, राजनीती करते है,

इंसान डर डर के मरता है।

जनता का यह हाल हुआ है,

क्या फिर देश गुलाम बनेगा?


अब तो उठ, खड़ा हो जा,

समय है अब, सीना ठोक ।

बदलाव तेरे दम से आएगा,

तेरा तुझसे ही उम्मीद  लगाएगा।


चल, उठ! शेर, खड़ा हो जा...

अब वक़्त है, आग का गोला हो जा!

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🎵 उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा 🎵

 🎵 उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा 🎵




[अंतरा 1]

उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा,

जहाँ से मैं लौट न पाऊँ।

छोटी-सी गुड़िया हूँ अभी तक,

पराए घर का डर सताए।


[अंतरा 2]

आँगन की मिट्टी छोड़कर,

कैसे नई दुनिया अपनाऊँ?

जहाँ न माँ के हाथों का प्यार हो,

न पापा की बाहों का सहारा।


[मुखड़ा]

उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा,

जहाँ मेरी यादों का रास्ता भी थक जाए।

मैं रो लूँ बस थोड़ी देर,

तेरे सीने से लगकर...

फिर छोड़ देना हाथ मेरा,

धीरे-धीरे, हौले-हौले।


[अंतरा 3]

पापा के कंधे पर सोते-सोते,

सपनों की दुनिया रची थी।

और माँ की ममता की छाया में,

हर डर को हँसकर सहा था।


[ब्रिज]

जिस घर में मेरे रंग थे,

अब वो रंग किसी और के होंगे।

बस एक वादा कर लो, मम्मी-पापा,

कि लौट आऊँ तो गले लगोगे।


[मुखड़ा – पुनरावृत्ति]

उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा,

जहाँ से तुम मुझे देख न पाओ।

मैं हर मोड़ पर तुम्हें याद करूँ,

और तुम हर दुआ में मेरा नाम ले आओ।


[आउट्रो]

उतनी दूर मत ब्याहना, मम्मी-पापा,

मैं वही नन्ही-सी बिटिया हूँ अब भी।

तुम्हारे दिल में जो कोना है मेरा,

बस वहीं हमेशा ज़िंदा रहूँ…

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गलत वोट देने से देश नहीं बचेगा

 🎤  "अगर चुप हो, तो दोषी हो"



देश के दुश्मन सिर्फ वो नहीं,

जो समानता का विरोध करते हैं...

कई बार चुप रहने वाले भी,

गलत का साथ निभाते हैं।




जो इंसानियत को तोड़ते हैं,

जो बराबरी से डरते हैं,

जो झूठ को सच बताते हैं —

वो देश के लिए खतरा हैं।


लेकिन दोषी वो भी हैं,

जो ऐसे नेताओं को चुनते हैं,

बिना सोचे वोट देते हैं,

फिर सिस्टम को कोसते हैं।



✊ अगर चुप हो, तो दोषी हो,

गलत के आगे झुकना भी गुनाह है।

देश को बचाना है तो खुद बदलो,

बिना सोचे वोट मत दो।


🇮🇳 अगर सुधार चाहिए — तो,

सबसे पहले खुद को बदलो।

जो ग़लत को सही माने,

उसे भी वोट मत दो।



बिना सोचे समझे वोट देते हैं,

बस जातिऔर स्वार्थ देखकर,

फिर पाँच साल गुस्सा करते हैं —

"देश क्यों नहीं बदलता?"


नेता जैसा होगा,

देश भी वैसा ही बनेगा,

लेकिन नेता चुनेगा कौन?

ये फैसला तो हम करेंगे ना!



कभी खुद से सवाल करो —

क्या हमने सच का साथ दिया?

क्या हमने सही वोट किया ?

या बस आँखें बंद रखीं?



🔥 अगर चुप हो, तो दोषी हो,

खामोशी भी एक तरह की हामी है।

अब वक्त है सच के साथ चलने का,

वरना हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं।



गलत वोट देने से देश नहीं बचेगा,

ये हमारी ज़िम्मेदारी है।

और अगर हम सुधरेंगे,

तभी देश भी बचेगा।


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इंसान बन जाओ, देश बचाओ

 🎵 "इंसान बन जाओ, देश बचाओ" 🎵


देश की मिट्टी पुकार रही है,

ज़मीर से फिर सवाल करो,

भीड़ में मत खो जाओ यारों,

अब खुद से भी सवाल करो। ✅ 


झूठी बातों के जाल में मत फँसना,

देश विरोधी जय चंद बन जायेंगे ?

सोचो, समझो, पहचानो उनको,

सच का साथ तुझे इंसान बनाएगा। ✅ 



देश बचाना है तो इंसान बनकर सोचिए,

ना जात, ना मज़हब — अपने ज़मीर से पूछिये।

समानता और इंसानियत का विरोध क्यों ?

झुकना नहीं, रुकना नहीं — अपनी आत्मा की सुनिए! ✅ 



वोट के लिए जो बाँट रहे हैं,

वो कभी देश के होते नहीं,

नफ़रत के बीज जो बोते हैं,

वो देश को आगे बढ़ाते नहीं। ✅ 


भड़काने से दिमाग़ मत चलाओ,

अपने अंदर विचार का दीप जलाओ,

समानता से सही और ग़लत में फर्क करो,

भेदभाव करने बालों से बचकर चलो। ✅ 



हमें विकास चाहिए, नफ़रत नहीं,

कुर्सी उनको मिलेगी, तुम्हें नहीं,

जो समानता का साथी बन जाए,

वो ही देश का नेता कहलाए।


इंसानियत ही असली राष्ट्रधर्म है,

नारी का सम्मान ही शास्त्र धर्म है,

जब तक भेदभाव जिन्दा रहेगा,

तब तक देश जलता रहेगा। ✅ 



देश बचाना है तो इंसान बनकर सोचिए,

ना जात, ना मज़हब — अपने ज़मीर से पूछिये।

समानता और इंसानियत का विरोध क्यों ?

झुकना नहीं, रुकना नहीं — अपनी आत्मा की सुनिए!



आज से एक वचन लो,

सिर्फ़ समानता और इंसानियत से संबंध हो,

देश के लिए जीना है तो,

पहले इंसान बन जाना होगा।


भारत माता की जय , वन्दे मातरम, जय श्री राम,

जय भवानी, जय शिवाजी, जय महाकाल,

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जय भवानी, जय शिवाजी

 शिवाजी फिर से जाग उठेगा,  

भाले-तलवार के संग दौड़ेगा,  

रण में सिंह की हुंकार बनेगा,  

हर दुश्मन काँपते लौटेगा। 🔁



राणा सांगा खड्ग उठाए,  

सैकड़ों घावों के साथ लड़ेगा,  

लाल किले तक गूंज उठेगा,  

जब चेतक रण में दौड़ेगा। 🔁


जाग उठा है हर घर हिन्दू,  

जाग उठी अब तरुणाई,  

देश का हर वीर उठेगा,  

हर घर अब हिन्दू जगेगा। 🔁


झाँसी की रानी शस्त्र संभाले,  

घोड़े पे चढ़ेगी वीर मर्दानी,  

तोपों के आगे भी झुकी नहीं,  

बनी भारत की शान वीरानी। 🔁


पद्मावती जौहर कर वीर बनी,  

मान-सम्मान की रक्षक थी,  

राजपूती मर्यादा में लिपटी,  

अग्नि में भी अमर ज्वाला थी। 🔁


महाराणा प्रताप भाला लिए,  

हल्दीघाटी की गर्जना था,  

अकबर की सेना कांप उठी,  

जब चेतक रणभू में छा गया। 🔁


बाजीराव पेशवा घोड़े पे,  

भाला-कुंठ से युद्ध लड़ा,  

दक्खन से दिल्ली तक उसका,  

रणकला अमर कथा बना। 🔁


रानी दुर्गावती धनुष उठाए,  

गोंडवाना की थी रक्षक,  

शेरनी जैसी लड़ी मैदान में,  

वीरगाथा अमर कर गई। 🔁


हाड़ा रानी ने शीश कटाया,  

पति की मर्यादा बचाई,  

गौरव की मिसाल बनी वो,  

बलिदान की दीप जलाई। 🔁


हर घर में भगवा लहराए,  

हर मन में जोश भरे,  

जय भवानी, जय शिवाजी,  

वीरत्व की लहरें गूँजें। 🔁


हिन्दू समाज न टूटेगा,  

अब ना कोई छल पाएगा,  

वीरों की इस पुण्य धरा पर,  

हर योद्धा बजरंगी बन जायेगा। ✅

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👉 संस्कृति बचाओ, भारत बचाओ, 👉 चरित्र से जीवन को फिर जगाओ।

 ये धरती राम की है, सीता की शान,

जहाँ चरित्र था धन, वही पहचान।

आज वासना के बाज़ार में रिश्ते बिकते,

संस्कारों के दीपक धुएं में सिसकते।


👉 संस्कृति बचाओ, भारत बचाओ,

👉 चरित्र से जीवन को फिर जगाओ।


जहाँ द्रौपदी की लाज पर युद्ध हुआ,

आज बहनों का दुख व्यापार बन गया।

इंद्र जैसा छल हर कोने में पनपे,

गौतम की अर्धांगिनी पत्थर बन तपे।


👉 मर्यादा का दीप फिर जलाना होगा,

👉 पाप के हर चेहरे को दिखाना होगा।


कृष्ण-राधा का नाम लिया, न समझा प्रेम,

वासना में रंगा, आत्मिक सेतु रेम।

भूल गए कुंती का त्याग, राम का व्रत,

अब ढूंढते हैं fancy freedom, सस्ती बात।


👉 ये भारत है, संस्कारों की थाती,

👉 न प्रेम बिकाऊ, न रिश्ते बिन बाती।


बिना चरित्र के आज़ादी, अंधा रास्ता,

जहाँ घर टूटे, समाज त्रस्त है सस्ता।

संयुक्त परिवार की नींव फिर से बनानी,

माँ-बाप, गुरु, बच्चों में प्रेम की ज्योति जलानी।


👉 स्कूलों में धर्म की शिक्षा लाओ,

👉 मोबाइल नहीं, मन में श्रीराम बसाओ।


अगर न संभले हम,

कल न बचेगा भारत-धर्म।

संस्कृति इस देश की जान है,

इसे बचाओ, यही पहचान है।


👉 संस्कृति बचाओ, भारत बचाओ,

👉 चरित्र से जीवन को फिर जगाओ।

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ये संसार हुआ है, बिल्कुल पागलखाना

 ये संसार हुआ है,

बिल्कुल पागलखाना।

दुनिया विकास के नाम पर,

विनाश की ओर दौड़ रही है।


झूठ का मेला फैला है,

सच का क़त्ल चला है।

पेड़ कटे, शहर बना,

धुआं निकला, साँस घुटा।


नेता भाषण में राजा,

नीति में सबसे सस्ता।

नदी को नाली कर डाला,

धरती को कंक्रीट से ढाँका।


अंधभक्तों का शोर बढ़ा,

सोचने वाला अब ग़द्दार।

प्रकृति की चीख दबा दी,

डेस्क पर दुनिया सजा दी।


नारी रोए, न्याय माँगे,

सिस्टम सोए, जुर्म बढ़े।

मॉल खुले, जंगल कटे,

पंछी रोए, पंख जले।


भूख से बच्चा मर जाए,

नेता रथ पे घूमे जाए।

ओज़ोन रोती चुपचाप,

गर्मी बरसे बिना जवाब।


धर्म बना है धंधा आज,

इंसानियत हुई निराश।

जात-पात की दीवारें ऊँची,

दिलों की ज़मीन हुई सूनी।


जो बोले वो देशद्रोही,

चुप रहो तो कहलाओ मोही।

सवाल करोगे तो मारा,

"विकास" ने सब कुछ हारा।



पागलखाना बना विकास,

सच पूछो तो है विनाश।

मिट्टी रोए, नदियाँ सूखी,

फिर भी कहते – "देश तरक़्क़ी"।


विकास के नाम पर खेला गया,

धरती माँ का सीना छेदा गया।

अब भी चुप है जो इंसान,

समझ लो वो भी पागलखाना का मेहमान।


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कर्म तेरा लौट के आएगा

 तू भी सताया जाएगा

कर्म तेरा लौट के आएगा


दिल से दुआ निकलती है

चुप-सी आग भी जलती है

इंसाफ़ वक़्त ज़रूर दिखाएगा

सब कुछ लौटकर ही आएगा


दर्द का भी हिसाब होगा

आँसुओं का जवाब होगा

बेवफ़ाई रंग छोड़ जाएगी

सच्चा प्यार कभी ना रोएगी


ज़ुल्म का सफ़र थम जाएगा

हक़ का सितारा चमक जाएगा

टूटा दिल भी बोल उठेगा

वक़्त सबकुछ कह जाएगा


तू भी रोएगा रातों में

तड़पेगा उन बातों में

अकेलापन डराएगा तुझको

अपना कोई नहीं लगेगा


क़िस्मत भी लौट के आएगी

तेरी गली तक आएगी

जो किया है, वो मिलेगा

सच की जीत ही खिलेगा

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रिश्तों की मर्यादा Rishton ki Maryada

   रिश्तों की मर्यादा के बिना,

प्यार, चरित्रहीन कर देता है,

जब वफ़ा की जगह धोखा हो,

रिश्ता, बदनाम हो जाता है।

दिलों का भरोषा जाता है,

इश्क़ भी, शर्मिंदा होता है,

कहने को प्यार रहता है,

पर चरित्रहीन कर देता है।




धोखा देने बाले प्यार से,

चरित्र पर दाग क्यों लगाए,

धोखे की नींव पर रखा प्यार,

दामन पर दाग लगाये।

जहाँ विचार वफ़ादार न हों,

वहाँ कोई भरोषा कैसे करेगा?

मर्यादा टूटे तो, इंसान जानवर में,

 क्या फर्क रह जायेगा ?।



💔 प्यार, वो नहीं जो रिश्तों में धोखा दे जाए,

💔 प्यार, वो है जो दुनिया में सम्मान बढ़ाये।

🔥 चरित्र, वही जो रिश्ते में भरोषा बनाये,

🔥 वरना इश्क़ भी, चरित्रहीन कर देता है।



माँ-बाप का आशीर्वाद हो,

तो रिश्ता, पवित्र बनता है,

रिश्तों को धोखा देकर प्यार,

पाप का कलंक लगता है।

जो न निभा सके भरोसा,

वो प्रेम नहीं, छलावा है,

जो मर्यादा में बंधे, वही चरित्रवान,

बो ही घर को, मंदिर बनाता है।



रिश्तों की गरिमा में ही है,

जीवन की सच्चाई का भरोसा,

मर्यादा से ही प्यार बना,

शुद्ध सास्वत प्रेम महान।

भरोसे से संभालो इन रिश्तों को,

ये हैं भगवान के वरदान ,

मर्यादा से बंधे प्यार में ही,

छुपे हैं, इंसानियत के प्राण ।

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समानता-विरोधी को वोट क्यों?

 वोट एक अधिकार है,

वोट एक ज़िम्मेदारी है,

सही बटन, सही निर्णय, सही वोट, —

देश के भविष्य को सुरक्षित करेगा।



समानता-विरोधी को वोट क्यों?

जो तोड़े एकता के रंग,

जो बाँटे धर्म और जाति में,

क्यों उसे सौंपें देश की कुर्सी ?


देश-विरोधी को वोट क्यों?

जो भूले शहीदों की शहादत,

जो फैलाए अफवाहें हर गली,

क्यों दें उसे, देश की ज़िम्मेदार कुर्सी ?



पूछिए अपने ज़मीर से,

क्या समानता विरोधी को वोट दें?

क्या देश विरोधी को वोट दें?

वोट है भविष्य की नींव,

कहीं गिरवी न रखें अपना ज़मीर,

अन्यथा देश विरोधी हो जाओगे ?



विभाजन कारी है, हर वो बात,

देश विरोधी की शाजिस बाली घात,

समानता ही मानवता का न्याय,

क्यों समानता  विरोधी को वोट दें?


जो सुने न गौ माता की पीड़ा,

जो भारत माता की जय न बोले,

क्यों दें उसे, देश की ज़िम्मेदार कुर्सी ?

राष्ट्रहित में ही, जनहित है?



हमने देखे हैं, झूंठे वादों के मेले,

धर्म के नाम पर देश बांटा, फिर क्यों झेलें ?

अब समय है सोच-समझकर मतदान का,

भीड़ में बह जाने का नहीं, बल्कि उठ खड़े होने का।



पूछिए अपने ज़मीर से,

क्यों दें उसे, देश की ज़िम्मेदार कुर्सी ?

देश को चाहिए सेवा की नीति,

ना कि देश विरोधी, कोई सियासी चाल।



हम सबके पूर्वज सनातनी हैं,

हर वोट देश की दिशा तय करता है।

तो सोचिए,  फिर समझिये, फिर वोट करिये,

जनहित में, देशहित में, वोट करिये, 

 खुद के ज़मीर से पूछिए, - क्या सही, क्या गलत।


भारत माता की जय , वन्देमातरम


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हर जीव में भगवान बसे हैं

 हर जीव में भगवान बसे हैं,

जो इसे समझे, वही सच्चे इंसान हैं...



जो न सिखाए प्रेम, न सिखाए दया,

जो न जगा पाए अंतर की आत्मा,

वो धर्म नहीं, बस एक नाम भर है,

जिसमें न ईश्वर, न प्रकाश का दर है।


निर्दोषों का रक्त बहाना,

जीवों को पीड़ा देना,

ये मनुष्यता नहीं —

ये हैवानियत का चेहरा है जीता-जागता।



स्वार्थ के नाम पर क्यों ढाते हो वज्रपात?

क्या हर चीख नहीं करती तुम्हारे दिल पर घात?

सोचो — अंत में क्या जाएगा साथ?

सिंहासन छूटे, नाम मिटे — न रही ताज, न रही बात।



हर जीव में भगवान बसे हैं,

मत देखो उसे केवल मांस ।

वो आत्मा है, उसी का अंश है,

वो भी परमात्मा का ही रूप है।



कब्रों ने सबके नाम मिटा दिए,

महलों ने न किसी को अमर बनाया।

राजा हो या रंक, सबका अंत है एक,

शरीर छूटता है, साथ जाता सिर्फ कर्म।


अजर अमर बस प्रभु नाम है,

जो हर कण में, हर प्राण में विराजमान है।

जो अनंत है, सत्य है, ब्रह्म है —

वही परमात्मा महान है।



चलो अब विवेक से जीवन को देखो,

हर जीव में उसी प्रभु को समझो।

मत काटो, मत मारो —

प्रभु को इस तरह नादानी में।



सच्चा धर्म वही, जो सिखाए करुणा,

जहाँ प्रेम हो, न हो कोई घृणा।

हर आत्मा में ईश्वर का निवास है,

यही सनातन का सच्चा प्रकाश है।



ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,

सर्वे सन्तु निरामयाः।

हर आत्मा में जो विराजे,

वही है प्रभु — वही है सच्चा धर्म।



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जब-जब इंसान हैवान बना

जब-जब इंसान, हैवान बना,

और दिल से मिट गई दया,

जब नफ़रत ने शासन किया,

और सच बन गया सज़ा...




तब मौन नहीं रहता सृष्टिकर्ता,

वो फिर से धरा पे आते हैं,

अपने हाथों से कर्म का लेखा,

हर पापी को पढ़वाते हैं।



जब-जब इंसान हैवान बना,

दुनिया का सिस्टम रिसेट हुआ,

प्रभु चले जब रणभूमि में,

सत्य का सूरज फिर से उगा।





जब आँखों में शर्म न बची,

और इंसाफ भी बिकने लगे,

जब रक्षक ही भक्षक बनें,

और सपने तिजारत लगें...



तब कोई दूर से आता है,

वो दीप जलाने वाला है,

जो हाथ थामकर चलना सिखाए,

वो फिर से इंसान बनाए...



जब-जब इंसान हैवान बना,

दुनिया का सिस्टम रिसेट हुआ,

धरती ने फिर ईश्वर देखा,

जिसने अंधेरों को रोशनी दी।




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धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक

 जिसने दिल को धोखा दिया,

 उसने जान से खेला!"

शादी से पहले, शादी शुदा से इश्क़,

कभी नहीं कभी नहीं,

धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक





दिल ने किया था यक़ीन,

वो निकली बस एक सीन।

हँसी थी झूठी हर बात,

आँखों में थी अंधी रात।

धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक।


[अंतरा 1 – छल की चोट]

सपनों में जाल बिछाया,

हर वादे में छल छुपाया।

पलकों पर आँसू भारी,

झूठी निकली उसकी यारी।

धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक।


[अंतरा 2 – चेतावनी और दर्द की सीख]

ना दो दिल किसी धोखे को,

वो चुभेगा जैसे नश्तर को।

चेहरे से मत आंक दिल,

अंदर होता है केवल छल।

धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक।


[अंतिम पंक्तियाँ – स्वाभिमान और सबक]

अब दिल खुद से जुड़ा है,

ज़ख्मों ने सब कुछ सिखाया है।

ना होगी अब मोहब्बत अंधी,

अब राहें होंगी अपनी सच्ची।

धोखेबाज़ से इश्क़ है घातक।


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जनसंख्या नियंत्रण नहीं तो, विकास नहीं, विनाश होगा

भीड़ ही भीड़ है,  शहर हो या गांव,

संसाधन सिमटे हैं, घट रही है छांव।

ना रोजगार बचा है, ना सांसें सस्ती हैं,

जनसंख्या विस्फोट से, विकास नहीं विनाश होगा 



हर अस्पताल लाइन में, टूटी उम्मीदें हैं,

स्कूलों में शिक्षा से ज़्यादा, होते अपराध हैं।

राशन कम है, ज़मीन सिकुड़ती जाती है,

औरतें बिन इलाज, सड़कों पर जनती जाती हैं।


सड़कों पर ट्रैफिक, घरों में तंगी,

हर परिवार में चिंता, हर युवा में बेरोजगारी।

आज की भीड़ कल की बर्बादी है,

जनसंख्या विस्फोट, ये आत्मघाती तैयारी है।



🗣️


जनसंख्या नियंत्रण नहीं तो, 

विकास नहीं, विनाश होगा,

विभाजनकारी बढ़ता वोट, देश को खतरा है।

जनसंख्या पर अगर,  न लगा  लगाम,

तो  देश बनेगा,  सिर्फ़ एक संघर्ष का नाम।



अगर आज न चेते, तो कल जल भी नहीं मिलेगा,

रोटी होगी सोने जैसी, पर पेट कभी नहीं भरेगा।

ध्यान रहे, — जनसंख्या बढ़ाना, ही गुलामी का जाल है,

जहाँ भी भीड़ बढ़ी है, वहाँ न्याय भी शर्मसार है।


👁️ तीन से अधिक संतान वाले को मिले सख्त दंड:


❌ ना वोट का अधिकार,


❌ ना चुनाव में हिस्सा,


❌ ना शासन में पद,


❌ ना सरकारी लाभ या सिफ़ारिश का किस्सा।


ये नियम हो नीचे से ऊपर तक, नेता भी अपवाद ना हो,

वरना जनता पर कानून और नेता पर छूट, — ये लोकतंत्र का अपमान होगा।



🗣️ जनसंख्या नियंत्रण नहीं तो, विकास नहीं, विनाश होगा,

जिम्मेदार कानून चाहिए, नारे नहीं — अब बदलाव होगा।

संविधान में जुड़ी हो,  नीति दो बच्चों की  सख्ती ,

न हो कोई डर, न हो कोई समानता विरोधी राजनीति ।



अब भी समय है —

छोटा परिवार, सुरक्षित भविष्य, शिक्षित समाज,

सभी के लिए हो भोजन, जल, जीवन और सम्मान का राज।


देश को चाहिए आबादी नहीं,

देश को चाहिए न्याय, विकास और नीति,

जनसंख्या नियंत्रण ही राष्ट्र का सुरक्षा कवच है,

इससे भी पहले समानता और देश विरोधी को,

 राजनीती  और देश की सेवाओं से, बाहर करना जरुरी है?




"यदि किसी के दो से अधिक संतान हों, तो उसे आजीवन मतदान, चुनाव, शासन, प्रशासन और राजनीति से वंचित किया जाए — और यह नियम नेता से लेकर आम नागरिक तक सभी पर समान रूप से लागू हो। यही आज के भारत की सबसे जरूरी जरूरत है।"

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Goswami Rishta Blogger Blog

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