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रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति के अलावा कोई और नहीं था। पति का अपना कारोबार था, जिससे उनकी व्यस्तता भी काफी रहती थी। और कभी कभी ही हमारे बीच संबंध बनता, लेकिन जब बनाने लगे तो उसमें भी आफत क्यों की घर में एक बुजुर्ग पिता जी थे कभी भी आवाज देके बुला लेते 

हर सुबह जब मैं जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाकर ऑफिस के लिए निकलने की तैयारी करती, ठीक उसी वक़्त मेरे ससुर मुझे आवाज़ देकर कहते, "बहू, मेरा चश्मा साफ़ कर मुझे देती जा।" यह रोज़ का सिलसिला था। ऑफिस की देरी और काम के दबाव की वजह से कभी-कभी मैं मन ही मन झल्ला जाती थी, लेकिन फिर भी अपने ससुर को कुछ कह नहीं पाती।

एक दिन, मैंने इस बारे में अपने पति से बात की। उन्हें भी यह जानकर हैरानी हुई, लेकिन उन्होंने पिता से कुछ नहीं कहा। उन्होंने मुझे सलाह दी कि सुबह उठते ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो ताकि ऑफिस जाते समय कोई परेशानी न हो।

अगले दिन मैंने वैसा ही किया, पर फिर भी ऑफिस के लिए निकलते समय वही बात हुई। ससुर ने मुझे फिर बुलाकर कहा कि "बहू, मेरा चश्मा साफ़ कर दे।" मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। धीरे-धीरे मैंने उनकी बातों को अनसुना करना शुरू कर दिया, और कुछ समय बाद तो मैंने बिल्कुल ध्यान देना ही बंद कर दिया।

 ससुर के कुछ बोलने पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं देती औऱ बिलकुल ख़ामोशी से अपने काम में मस्त रहती ।

गुज़रते वक़्त के साथ ही एक दिन  ससुर जी भी गुज़र गए ।

समय का पहिया कहाँ रुकने वाला था,वो घूमता रहा घूमता रहा ।

छुट्टी का एक दिन था। अचानक मेरे के मन में घर की साफ़ सफाई का ख़याल आया । मैं अपने घर की सफ़ाई में जुट गई । तभी सफाई के दौरान मृत ससुर की डायरी मेरे हाथ लग गई ।

मैने ने जब अपने ससुर की डायरी को पलटना शुरू किया तो उसके एक पन्ने पर लिखा था-"दिनांक 26.10.2019....  " मेरी प्यारी बहू.....आज के इस भागदौड़ औऱ बेहद तनाव व संघर्ष भरी ज़िंदगी में घर से निकलते समय बच्चे अक़्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं , जबकि बुजुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए ढाल का काम करता है । बस इसीलिए जब तुम प्रतिदिन मेरा चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी तो मैं मन ही मन अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रख देता था , क्योंकि मरने से पहले तुम्हारी सास ने मुझसे कहा था कि बहू को अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना औऱ उसे ये कभी भी मत महसूस होने देना कि वो अपने ससुराल में है औऱ हम उसके माँ बाप नहीं है ।उसकी छोटी मोटी गलतियों को उसकी नादानी समझकर माफ़ कर देना । वैसे मैं रहूं या न रहूं मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा...सदा खुश रहो ।"

अपने ससुर की डायरी को पढ़कर मुझे रोना आने लगा लगा

आज मेरे ससुर को गुजरे ठीक 2 साल से ज़्यादा समय बीत चुके हैं , लेकिन फ़िर भी मैं रोज घर से बाहर निकलते समय अपने ससुर का चश्मा अच्छी तरह साफ़ कर , उनके टेबल पर रख दिया करती हूं....... उनके अनदेखे हाथ से मिले आशीष की लालसा में.....।

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अक़्सर हम जीवन में रिश्तों का महत्व महसूस नहीं कर पाते , चाहे वो किसी से भी हो, कैसा भी हो.......और जब तक महसूस करते हैं तब तक वह हमसे बहुत दूर जा चुका होता है ......!!

प्रत्येक रिश्तों की अहमियत औऱ उनका भावनात्मक कद्र बेहद जरूरी है , अन्यथा ये जीवन व्यर्थ है ।


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नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ? 

जब आप लिफ़्ट में प्रवेश करें और आपको 13 वीं मंज़िल पर जाना हो, तो अपनी मंज़िल तक के सभी बटनों को दबा दें ! कोई भी व्यक्ति उस परिस्थिति में हमला नहीं कर सकता जब लिफ़्ट प्रत्येक मंजिल पर रुकती हो ! 

2. जब आप घर में अकेली हों और कोई अजनबी आप पर हमला करे तो क्या करें ? तुरन्त रसोईघर की ओर दौड़ जायें 

आप स्वयं ही जानती हैं कि रसोई में पिसी मिर्च या हल्दी कहाँ पर उपलब्ध है ! और कहाँ पर चक्की व प्लेट रखे हैं !यह सभी आपकी सुरक्षा के औज़ार का कार्य कर सकते हैं ! और भी नहीं तो प्लेट व बर्तनों को ज़ोर- जोर से फैंके भले ही टूटे !और चिल्लाना शुरु कर दो !स्मरण रखें कि शोरगुल ऐसे व्यक्तियों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है ! वह अपने आप को पकड़ा जाना कभी भी पसंद नहीं करेगा ! 

3. रात में ऑटो या टैक्सी से सफ़र करते समय ! 

ऑटो या टैक्सी में बैठते समय उसका नं० नोट करके अपने पारिवारिक सदस्यों या मित्र को मोबाईल पर उस भाषा में विवरण से तुरन्त सूचित करें जिसको कि ड्राइवर जानता हो ! मोबाइल पर यदि कोई बात नहीं हो पा रही हो या उत्तर न भी मिल रहा हो तो भी ऐसा ही प्रदर्शित करें कि आपकी बात हो रही है व गाड़ी का विवरण आपके परिवार/ मित्र को मिल चुका है ! . इससे ड्राईवर को आभास होगा कि उसकी गाड़ी का विवरण कोई व्यक्ति जानता है और यदि कोई दुस्साहस किया गया तो वह अविलम्ब पकड़ में आ जायेगा ! इस परिस्थिति में वह आपको सुरक्षित स्थिति में आपके घर पहुँचायेगा ! जिस व्यक्ति से ख़तरा होने की आशंका थी अब वह आपकी सुरक्षा का ध्यान रखेगा ! 

4. यदि ड्राईवर गाड़ी को उस गली/रास्ते पर मोड़ दे जहाँ जाना न हो और आपको महसूस हो कि आगे ख़तरा हो सकता है - तो क्या करें ? 

आप अपने पर्स के हैंडल या अपने दुपट्टा/ चुनरी का प्रयोग उसकी गर्दन पर लपेट कर अपनी तरफ़ पीछे खींचती हैं तो सैकिण्डो में वह व्यक्ति असहाय व निर्बल हो जायेगा ! यदि आपके पास पर्स या दुपट्टा न भी हो तो भी आप न घबरायें ! आप उसकी क़मीज़ के काल़र को पीछे से पकड़ कर खींचेंगी तो शर्ट का जो बटन लगाया हुआ है वह भी वही काम करेगा और आपको अपने बचाव का मौक़ा मिल जायेगा ! 

5. यदि रात में कोई आपका पीछा करता है ! 

किसी भी नज़दीकी खुली दुकान या घर में घुस कर उन्हें अपनी परेशानी बतायें ! यदि रात होने के कारण बन्द हों तो नज़दीक में एटीएम हो तो एटीएम बाक्स में घुस जायें क्योंकि वहाँ पर सीसीटीवी कैमरा लगे होते हैं ! पहचान उजागर होने के भय से किसी की भी आप पर वार करने की हिम्मत नहीं होगी ! 

आख़िरकार मानसिक रुप से जागरुक होना ही आपका आपके पास रहने वाला सबसे बड़ा हथियार सिद्ध होगा ! 

कृपया समस्त नारी शक्ति जिसका आपको ख़्याल है उन्हें न केवल बतायें बल्कि उन्हें जागरुक भी कीजिए ! अपनी नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये ऐसा करना ! न केवल हम सभी का नैतिक उत्तरदायित्व है बल्कि कर्त्तव्य भी है ! 

प्रिय मित्रों इससे समस्त नारी शक्ति -अपनी मां, बहन, पत्नी व महिला मित्रों को अवगत करावें !

आप सभी से विनम्र निवेदन की इस संदेश को महिला शक्ति की जानकारी में अवश्य लायें यह समस्त नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये सहायक सिद्ध होगा ! ऐसा मेरा विश्वास है !

जय हिंद

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प्रत्येक रिश्ते की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक निजी बैंक में एक अच्छी पद पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर, श्री गुप्ता, और मेरे पति, रोहन, के अलावा कोई और नहीं था। रोहन का अपना व्यवसाय था, जिससे वे काफी व्यस्त रहते थे। हमारी निजी ज़िंदगी पर भी इसका असर था, और जब हम साथ समय बिताना चाहते, तो अक्सर घर में मौजूद बुज़ुर्ग ससुर के कारण बाधा आ जाती थी, क्योंकि वे कभी भी हमें बुला लेते थे।

हर सुबह जब मैं जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाकर ऑफिस के लिए निकलने की तैयारी करती, तभी मेरे ससुर मुझे आवाज़ देकर कहते, "बहू, मेरा चश्मा साफ़ करके मुझे दे दो।" यह रोज़ का सिलसिला था। ऑफिस की देरी और काम के दबाव के कारण कभी-कभी मैं मन ही मन खीझ जाती थी, लेकिन फिर भी अपने ससुर से कुछ नहीं कह पाती थी।

एक दिन, मैंने इस बारे में रोहन से बात की। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ, लेकिन उन्होंने पिताजी से कुछ नहीं कहा। उन्होंने मुझे सलाह दी, "सुबह उठते ही पिताजी का चश्मा साफ़ करके उनके कमरे में रख दिया करो, ताकि ऑफिस जाते समय कोई परेशानी न हो।"

अगले दिन मैंने वैसा ही किया, लेकिन फिर भी ऑफिस के लिए निकलते समय वही बात हुई। ससुर जी ने फिर बुलाकर कहा, "बहू, मेरा चश्मा साफ़ कर दो।" मुझे बहुत गुस्सा आया, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। धीरे-धीरे मैंने उनकी बातों को अनसुना करना शुरू कर दिया, और कुछ समय बाद तो मैंने बिल्कुल ध्यान देना ही बंद कर दिया।

जब भी ससुर जी कुछ बोलते, मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं देती और ख़ामोशी से अपने काम में लगी रहती।

समय के साथ, एक दिन ससुर जी का भी निधन हो गया।

वक़्त का पहिया रुकता नहीं है; वह चलता रहता है।

एक दिन छुट्टी थी। अचानक मेरे मन में घर की सफ़ाई करने का ख़याल आया। मैं अपने घर की सफ़ाई में जुट गई। सफ़ाई के दौरान मुझे दिवंगत ससुर जी की एक डायरी मिली।

मैंने जब उस डायरी को पलटना शुरू किया, तो उसके एक पन्ने पर लिखा था, "दिनांक 26.10.2019... मेरी प्यारी बहू अनिता... आज की इस भागदौड़ और तनाव भरी ज़िंदगी में बच्चे घर से निकलते समय अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं, जबकि बुज़ुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए ढाल का काम करता है। इसलिए जब तुम प्रतिदिन मेरा चश्मा साफ़ कर मुझे देने के लिए झुकती थी, तो मैं मन ही मन अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रखकर तुम्हें आशीर्वाद देता था। तुम्हारी सास ने जाते समय मुझसे कहा था कि बहू को अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना और उसे यह कभी महसूस न होने देना कि वह ससुराल में है और हम उसके माता-पिता नहीं हैं। उसकी छोटी-मोटी गलतियों को उसकी नादानी समझकर माफ़ कर देना। चाहे मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, बेटी... सदा खुश रहो।"

अपने ससुर की डायरी पढ़कर मेरी आँखों में आँसू आ गए।

आज ससुर जी को गुज़रे दो साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन फिर भी मैं रोज़ घर से बाहर निकलते समय उनका चश्मा अच्छी तरह साफ़ करके, उनकी मेज़ पर रख देती हूँ... उनके अनदेखे आशीर्वाद की आशा में।

अक्सर हम जीवन में रिश्तों का महत्व समझ नहीं पाते, चाहे वे किसी से भी हों, कैसे भी हों... और जब तक महसूस करते हैं, तब तक वे हमसे बहुत दूर जा चुके होते हैं।


प्रत्येक रिश्ते की अहमियत और उनका भावनात्मक आदर करना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा यह जीवन अधूरा है।

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असली सुकून का अहसास

 जब पति कानों में कहे, "आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो"

एक छोटे से प्यार भरे वाक्य में छुपा होता है पूरी दुनिया का सुकून। उस एक वाक्य से मिलती है उसे अपनेपन की गर्माहट, जैसे सारा दिन की थकान एक झटके में गायब हो जाती हो।

जब बेटा भरपेट खाना खा ले 

माँ का दिल तभी तो सुकून से भरता है जब बेटा खुशी-खुशी थाली साफ कर देता है। बिना किसी शिकवे-शिकायत के जब बेटा कहता है, "माँ, आज बहुत स्वादिष्ट खाना था," तो उसकी सारी मेहनत सफल हो जाती है।

 जब बेटी कहे, "माँ, आज तुम बैठो, खाना मैं बनाती हूँ"

इस वाक्य में एक बेटी का प्यार छुपा होता है, माँ के प्रति उसकी परवाह। जब बेटी खुद रसोई संभालने का जिम्मा लेती है, तो माँ के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान जाती है, और दिल को सुकून मिलता है।

 जब ससुर कहें, "आज खाना खाकर मजा गया"

हर बहू के लिए अपने ससुराल में यह सुनना, जैसे उसे उसकी मेहनत का सबसे बड़ा इनाम मिल गया हो। उनके इस छोटे से तारीफ में सुकून की वो मिठास होती है, जो उसे पूरे दिन खुशी से भर देती है।

जब सास कहें, "बहुत हो गया काम, अब आराम कर लो"

सास के ये शब्द बहू के दिल को वो सुकून देते हैं, जो किसी भी आराम से कहीं ऊपर होता है। ये वाक्य जैसे बहू के काम की सराहना करता है और एक मजबूत रिश्ता बनने का एहसास दिलाता है।

यही वो छोटे-छोटे पल हैं, जो किसी भी गृहिणी को असली सुकून का अहसास कराते हैं। क्योंकि सुकून वही है, जो बिना शोर-शराबे के, रिश्तों की गहराई में छुपा होता है।

 जब पति कानों में कहे, "आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो"

एक छोटे से प्यार भरे वाक्य में छुपा होता है पूरी दुनिया का सुकून। उस एक वाक्य से मिलती है उसे अपनेपन की गर्माहट, जैसे सारा दिन की थकान एक झटके में गायब हो जाती हो।

जब बेटा भरपेट खाना खा ले 

माँ का दिल तभी तो सुकून से भरता है जब बेटा खुशी-खुशी थाली साफ कर देता है। बिना किसी शिकवे-शिकायत के जब बेटा कहता है, "माँ, आज बहुत स्वादिष्ट खाना था," तो उसकी सारी मेहनत सफल हो जाती है।

 जब बेटी कहे, "माँ, आज तुम बैठो, खाना मैं बनाती हूँ"

इस वाक्य में एक बेटी का प्यार छुपा होता है, माँ के प्रति उसकी परवाह। जब बेटी खुद रसोई संभालने का जिम्मा लेती है, तो माँ के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान जाती है, और दिल को सुकून मिलता है।

 जब ससुर कहें, "आज खाना खाकर मजा गया"

हर बहू के लिए अपने ससुराल में यह सुनना, जैसे उसे उसकी मेहनत का सबसे बड़ा इनाम मिल गया हो। उनके इस छोटे से तारीफ में सुकून की वो मिठास होती है, जो उसे पूरे दिन खुशी से भर देती है।

जब सास कहें, "बहुत हो गया काम, अब आराम कर लो"

सास के ये शब्द बहू के दिल को वो सुकून देते हैं, जो किसी भी आराम से कहीं ऊपर होता है। ये वाक्य जैसे बहू के काम की सराहना करता है और एक मजबूत रिश्ता बनने का एहसास दिलाता है।

यही वो छोटे-छोटे पल हैं, जो किसी भी गृहिणी को असली सुकून का अहसास कराते हैं। क्योंकि सुकून वही है, जो बिना शोर-शराबे के, रिश्तों की गहराई में छुपा होता है।


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कुंभ का महत्व

भारत के नाट्‌य शास्त्र में जिन नाटकों के मंचन का उल्लेख मिलता है उनमें 'अमृत मंथन' सर्वप्रथम गिना जाता है। भारतीय नाटक देवासुर-संग्राम की पृष्ठभूमि में जन्मा, इसे जानने के बाद कुंभ का महत्व और बढ़ जाता है और प्राचीनता भी अधिक सिद्ध होती है।

'अमृत मंथन' के अभिनय से पूर्व कुंभ-स्थापन का उल्लेख भरत ने किया है पर वह पूजा के अंग रूप में ग्रहण किया गया है। 'अमृत कुंभ' से उसका सीधा संबंध नहीं है, किन्तु कुंभ की कल्पना अवश्य उससे सम्बद्ध मानी जा सकती है।

कुम्भं सलिल-सम्पूर्ण पुष्पमालापुरस्कृत्‌म।
स्थापयेद्रंगमध्ये तु सुवर्ण चात्र दापयेत्‌
एवं तु पूजनं कृत्वा मया प्रोक्तः पितामहः।
आज्ञापय विभौ क्षिप्रं कः प्रयोगाः प्रयुज्यताम्‌।
सचेतनो स्म्युक्तो भगवता योजयामृतमंथनम्‌ एतदुत्साहजननं सुरप्रीतिकरः तथा

अर्थः-रंगपीठ के मध्य में पुष्पमालाओं से सज्जित जल से पूर्ण कुंभ स्थापित करना चाहिए और उसके भीतर स्वर्ण डालना चाहिए।

इस प्रकार पूजन करके मैंने ब्रह्मा से कहा- 'हे वैभवशाली, शीघ्र आज्ञा प्रदान करें कि कौन-सा नाटक खेला जाए। तब भगवान ब्रह्मा द्वारा मुझसे कहा गया-'अमृत मंथन का अभिनय करो। यह उत्साह बढ़ाने वाला तथा देवताओं के लिए हितकर है।

वह नाट्‌य-प्रकार 'समवकार' कहलाता था और भरत द्वारा उसका अभिनय धर्म और अर्थ को सिद्ध करने वाला माना गया है। देवताओं के साथ शंकर की अभ्यर्थना भी की गई। 'अमृत मंथन' से इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश की एकता और देवताओं की प्रसन्नता अभीष्ट रही, जो आज तक चली आ रही है।

'त्रिपुरा-दाह' का अभिनय 'अमृत मंथन' के बाद हुआ, भरत मुनि के इस कथन से 'अमृत मंथन' की कथा व महत्ता और बढ़ जाती है। नाट्‌यवेद की रचना जम्बूद्वीप के भरत खण्ड में पंचम वेद के रूप में मानी गई, क्योंकि शूद्र जाति द्वारा वेद का व्यवहार उनके समय निषिद्ध माना जाता था।

यह पांचवां वेद सब वर्णों के लिए रचा गया, क्योंकि भरत शूद्र जाति को भी अधिकार सम्पन्न बनाना चाहते थे, साथ ही अन्य वर्णों का भी उन्हें ध्यान था। 'सार्ववर्णिकम्‌' शब्द इसलिए महत्वपूर्ण है।

यथा-
न वेदव्यवहारों यं संश्रव्यं शूद्रजातिषु।
तस्मात्सृजापरं वेदं पंचमं सार्ववर्णिकम्‌।

कुंभ का महत्व भी इसी प्रकार सभी वर्णों के समन्वित है। किसी वर्ण का गंगा स्नान अथवा कुंभ-स्नान में निषेध नहीं है। वर्णेत्तर लोग भी स्नान करते रहे हैं।

विष्णु के चरणों से चौथे वर्ण की उत्पत्ति मानी गई है और गंगा भी विष्णु के चरणों से निकली हैं ऐसी पौराणिक मान्यता है। दोनों का विशेष संबंध सांस्कृतिक दृष्टि से उपकारक एवं प्रेरक सिद्ध होगा। इस प्रकार कुंभ हर प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है।
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नागा बाबाओं की रहस्मय दुनिया

शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना आखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया।

वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई। ये नागा जैन और बौद्ध धर्म भी सनातन हिन्दू परम्परा से ही निकले थे। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए।

आज संतों के तेरह-चौदह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
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कुंभक्षेत्र तीर्थक्षेत्र

कुंभक्षेत्र तीर्थक्षेत्र हैं । वहांकी पवित्रता तथा सात्त्विकता बनाए रखनेका प्रयास करना, यह स्थानीय पुरोहित, देवालयोंके न्यासी तथा प्रशासनके साथ ही वहां आए प्रत्येक तीर्थयात्रीका भी कर्तव्य है । १. कुंभक्षेत्रमें पर्यटकोंकी भांति आचरण न करें ! : कुंभक्षेत्रमें आए अनेक लोग वहां पर्यटकोंकी भांति आचरण करते दिखाई देते हैं । एक-दूसरेका उपहास उडाना, पश्चिमी वेशभूषा करना, संगीत सुनना, अभक्ष्य भक्षण करना आदि कृत्य उनसे होते हैं । तीर्थक्षेत्रगमन एक ‘साधना’ है । वह पूर्ण होनेके लिए तीर्थक्षेत्रमें आनेपर भावपूर्ण गंगास्नान करना, देवताओंके दर्शन करना, दान-धर्म करना, उपास्यदेवताका नामजप करना, इस प्रकार अधिकाधिक समय ईश्वरसे सायुज्य (आंतरिक सान्निध्य) रखना अपेक्षित है । ऐसा करनेपर गंगास्नान एवं यात्राका आध्यात्मिक स्तरपर लाभ होता है । २. तीर्थक्षेत्रकी पवित्रता बनाएं रखें ! : कुंभक्षेत्रमें पवित्र तीर्थस्नान करनेवाले तीर्थयात्री वह तीर्थ प्रदूषित करनेवाले कृत्य करते हैं । कुछ लोग प्लास्टिककी थैलियां, सिगरेटके वेष्टन, पुराने अंतर्वस्त्र इ. भी नदी / कुंडमें डालते हैं । इससे तीर्थकी पवित्रता घटती है । धर्मशास्त्रके अनुसार गंगा, गोदावरी एवं क्षिप्रा, इन पवित्र नदियोंको प्रदूषित करना बडा अपराध है । इसलिए तीर्थयात्री इस बातका ध्यान रखें कि स्नानके समय तीर्थकी पवित्रता बनी रहे । ३. पर्वस्नानके आरंभमें प्रार्थना तथा स्नान करते समय नामजप करें ! : पर्वस्नानके समय तीर्थयात्री जोर-जोरसे बातें करना, चिल्लाना, एक-दूसरेपर पानी उछालना इत्यादि अनुचित कृत्य करते हैं । स्नान करनेवालेका मन तीर्थक्षेत्रकी पवित्रता एवं सात्त्विकता अनुभव न करता हो, तो उसके पापकर्म धुलना असंभव है; इसलिए पर्वस्नानका आध्यात्मिक लाभ होने हेतु उसके आरंभमें गंगामातासे आगे दिए अनुसार प्रार्थना करें । ३ अ. हे गंगामाता, आपकी कृपासे मुझे ये पर्वस्नान करनेका अवसर प्राप्त हुआ है । इसके लिए मैं आपके चरणोंमें कृतज्ञ हूं । हे माते, आपके इस पवित्र तीर्थमें मुझसे श्रद्धायुक्त अंतःकरणसे पर्वस्नान हो । ३ आ. हे पापविनाशिनी गंगादेवी, आप मेरे सर्व पापोंको हर लीजिए । ३ इ. ‘हे मोक्षदायिनी देवी, आप मेरी आध्यात्मिक प्रगति हेतु आवश्यक साधना करवा लीजिए और मुझे मोक्षकी दिशामें ले जाइए’ । तदुपरांत उपास्यदेवताका नामजप करते हुए स्नान करें  !..
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2 मिनट लगेगा प्लीज पुरा पढना

१.पापा कहते है "बेटा पढाई करके कुछ बनो" तो बुरा लगता है, पर यही बात जब गर्लफ्रेंड कहती है तो लगता है केयर करती है | २. गर्लफ्रेंड के लिए माँ-बाप से झूठ बोलते है, पर माँ-बाप के लिए गर्लफ्रेंड से क्यूँ नहीं ? ३. गर्लफ्रेंड से शादी के लिए माँ-पापा को छोड़ देते है, पर माँ-पापा के लिए गर्लफ्रेंड को क्यूँ नहीं ? 4. गर्लफ्रेंड से रोज रात में मोबाईल से पूछते है खाना खाया की नहीं या कितनी रोटी खाई, पर क्या आज तक ये बात माँ-पापा से पूछी ? 5.गर्लफ्रेंड की एक कसम से सिगरेट छूट जाती है, पर पापा के बार-बार कहने से क्यूँ नहीं ? कृपया अपने माँ-बाप की हर बात माने और उनकी केयर करे...और करते हो तो आपके माँ-बाप आपके लिए कुछ भी गर्व से करने को तैय्यार है | और ये सबको बताये और समझाए, क्या पता आपकी बात उसके समझ में आ जाये...? अपने को माहोल ही ऐसा बनाना है की हर बच्चा अपने माता-पिता को ही भगवान समझे | अगर आप को ये postपसंद आये तो इसे share and like...
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कबीर हिंदू थे या मुसलमान?

मुगल काल से ही देश में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों को आपस में खूब लड़ाया जाता है। पहले राजा हुआ करते थे फिर अंग्रेज हुए और अब राजनैतिक दल एवं राजनेता स्वयं जातिवाद या सांप्रदायवाद के प्रतीक बन गए हैं। ऐसे तनाव भरे माहौल को हटाने के लिए समय-समय पर कई संत हुए हैं, जैसे साँईं बाबा, अजमेर वाला ख्‍याजा साहब, सत रहिम, रैदास आदि। उन्हीं की जमात के एक संत थे संत कबीर। कबीर हिंदू थे या मुसलमान यह सवाल आज भी जिंदा है उसी तरह कि साँईं हिंदू है या मुसलमान। कबीर का पहनावा कभी सूफियों जैसा होता था तो कभी वैष्णवों जैसा। लोग समझ नहीं पाते थे कि असल में वे हैं क्या? कबीर वैरागी साधु थे उसी तरह जिस तरह की सूफी होते हैं। उनका विवाह वैरागी समाज की लोई के साथ हुआ जिससे उन्हें दो संतानें हुईं। लड़के का नाम कमाल और लड़की का नाम कमाली था। कबीर का पालन-पोषण नीमा और नीरू ने किया जो जाति से जुलाहे थे। ये नीमा और नीरू उनके माता-पिता थे या नहीं इस संबंध में मतभेद हैं। एकता के प्रयास : कुछ लोगों का मानना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के माध्यम से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुईं और रामानंद ने चेताया तो उनके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया और उन्होंने उनसे दीक्षा ले ली। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया। सांप्रदयिक भेद- भाव को समाप्त करने और जनता के बीच खुशहाली लाने के लिए निमित्त संत- कबीर अपने समय के एक मजबूत स्तंभ साबित हुए। उनकी खरी, सच्ची वाणी और सहजता के कारण दोनों ही धर्म के लोग उनसे प्रेम करने लगे थे। कुछ लोग मानते हैं कि वे नाथों की परंपरा से थे। हालाँकि उन्होंने वैष्णव पंथी गुरु रामानंद से दीक्षा जरूर ली थी, लेकिन उनका जो बाना था व मुस्लिमों जैसा और जो विचार थे वे सभी शैव कुल के संकेत देते हैं। कुछ भी हो वे थे तो अक्खड़, फक्कड़ या विद्रोही किस्म के इसीलिए माना जाता है कि उन्होंने अपने गुरु से अलग ही एक मार्ग बनाया। काशी से मगहर : ऐसी मान्यता है कि काशी में देह त्यागने वाला स्वर्ग और मगहर में देह त्यागने वाला नरक जाता है। कबीर जीवन भर काशी में रहे, लेकिन कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है और दरगाह भी। दलितों के मसीहा : दलित व गरीबों के मसीहा कबीर जन नायक थे। आज भी उनके भक्ति गीत ग्रामीण, आदिवासी और दलित इलाकों में ही प्रचलित हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के गाँवों में कबीर के गीतों की धून आज भी जिंदा है। कबीर पंथ : कबीर पंथ एकेश्वरवादी और मूर्तिभंजकों का पंथ हैं। यह ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना करते हैं और किसी भी प्रकार के पूजा और पाठ से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं। माना जाता है कि इस पंथ की बारह प्रमुख शाखाएँ हैं, जिनके संस्थापक नारायणदास, श्रुतिगोपाल साहब, साहब दास, कमाली, भगवान दास, जागोदास, जगजीवन दास, गरीब दास, तत्वाजीवा आदि कबीर के शिष्य हैं। शुरुआत में कबीर साहब के शिष्य श्रुतिगोपाल साहब ने उनकी जन्मभूमि वाराणसी में मूलगादी नाम से गादी परंपरा की शुरुआत की थी। इसके प्रधान भी श्रुतिगोपाल ही थे। उन्होंने कबीर साहब की शिक्षा को देशभर में प्रचार प्रसार किया। कालांतर में मूलगादी की अनेक शाखाएँ उत्तरप्रदेश, बिहार, आसाम, राजस्थान, गुजरात आदि प्रांतों में स्थापित होती गई ।
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मरने के बाद

लोग कहते हैं कि धर्म में लिखा है कि मरने के बाद व्यक्ति अपने पुण्य कर्मों के अनुसार स्वर्ग में जाता है और पाप कर्मों के अनुसार नर्क में दुख भोगता है। क्या यह सच है?

दुनिया के सभी धर्म में स्वर्ग और नर्क की बातें कही गई है। स्वर्ग अर्थात वह स्थान जहां अच्छी आत्माएं रहती है और नर्क वह स्थान जहां बुरी आत्माएं रहती है। कहा जाता है कि पापी व्यक्ति को नर्क में यातनाएं देने के लिए भेज दिया जाता है और पुण्यात्माओं को स्वर्ग में सुख भोगने के लिए भेज दिया जाता है।

स्वर्ग को इस्लाम में जन्नत कहा जाता है और नर्क को दोजख या जेहन्नूम। इसी तरह हर धर्म में यह धारणा है कि ईश्वर ने स्वर्ग और नर्क की रचना की है जहां व्यक्ति को उनके कर्मों के हिसाब से रखा जाता है। पुराणों अनुसार मृत्यु का देवता यमराज आत्माओं को दंड या पुरस्कार देता है। यमराज के मंत्री चित्रगुप्त सभी आत्माओं के कर्मों का हिसाब रखते हैं फिर यम के यमदूत उन्हें स्वर्ग या नर्क में भेज देते हैं। बहुत भयानक है गरुढ़ पुराण।

धर्म के तीन आधार : धर्म को जिंदा बनाए रखने और लोगों में नैतिकता को कायम रखने के तीन आधार है- 1.ईश्वर 2.स्वर्ग-नर्क और प्रॉफेट। यह तीनों ही वेद विरुद्ध माने जा सकते हैं। जब मानव असभ्य और जंगली था तब लोगों को सभ्य और नैतिक बनाने के लिए कुछ लोगों ने भय और लालच का सहारा लिया और लोगों को एक परिवार और समाज में ढाला। डराया ईश्वर और नर्क से और लालच दिया स्वर्ग का, अप्सराओं का। जिन लोगों ने समाज को ईश्वर, स्वर्ग, नर्क से डराकर नए नियम बताए उन्हें फ्रॉफेट माना जाने लगा। फ्रॉफेटों की अपनी किताबें भी होती हैं जिनके प्रति लोग पागल हैं।

वेद इस तरह की कपोल-कल्पनाओं के खिलाफ है। वेद आध्या‍त्म का सच्चा मार्ग ही बताते हैं। वेद अनुसार निश्चित ही व्यक्ति को अपने कर्म, भाव और विचार के अनुसार सद्गति और दुर्गति का सामना करना पड़ता है। जैसे शराब पीने वाले की चेतना गिरने लगती है तो उसे अधोगति कहते हैं और ध्यान करने वाली की चेतना उठने लगती है तो उसे उर्ध्व‍गति कहते हैं। वेद गति को मानता है। यदि आप अच्छी गति और स्थिति में रह हैं तो आप स्वर्ग में हैं और बुरी गति और स्थिति में रह रहे हैं तो आप नर्क में हैं। आदमी चलता फिरता नर्क और स्वर्ग है।
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यात्रा में जाने का शौक

छुट्टियाँ बिताने के लिये पूरे परिवार के साथ यात्रा में जाने का शौक भला किसे नहीं होता। घूमने जाने के नाम से बच्चे सबसे अधिक रोमांचित होते हैं पर साथ ही साथ बड़े भी उत्साहित रहते हैं। पर अक्सर होता यह है कि लोग बिना किसी पूर्व योजना तथा तैयारी के यात्रा में निकल पड़ते हैं जिससे उन्हें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इसलिये अच्छा यही है कि पूरी तरह से सोच-समझ कर यात्रा की पूर्व योजना बनायें और समस्त तैयारियों के साथ ही यात्रा में निकलें।
पूर्व योजनाः
यात्रा में जाने की योजना पर्याप्त समय पहले ही बनायें और अपना कार्यक्रम निश्‍चित कर लें जैसे कि कहाँ जाना है, कब जाना है, वहाँ रहने के दौरान वहाँ का अनुमानित मौसम कैसा रहेगा इत्यादि।
यह भी विचार कर लें कि किस स्थान पर किस माध्यम से जायेंगे फ्लाइट, रेल या टैक्सी/बस से। यह भी तय कर लें कि किस स्थान में कितने दिनों तक ठहरना है।
अपने जेब को ध्यान में रखते हुये अपना बजट भी पहले ही निश्‍चित कर लें।
हवाई जहाज से घूमने की इच्छा भला किसे नहीं होती। आजकल कई कंपनियाँ पर्यटकों को सस्ते दर पर टिकिट देती हैं इसलिये पहले ही पता कर लें कि कौन सी कंपनी आपके बजट के अनुरूप दर पर टिकिट दे रही है।
सब कुछ तय हो जाने के बाद अपने जाने तथा आने के लिये फ्लाइट, रेल आदि के आरक्षण की उचित व्यवस्था कर लें। जहाँ तक हो सके होटल आदि की व्यवस्था भी पहले ही कर लें जिससे कि गंतव्य स्थान में पहुँचने के बाद जगह ढूँढने में आपका समय बर्बाद न हो। आजकल इंटरनेट की सुविधा होने से आरक्षण, होटल बुकिंग आदि कार्य घर बैठे ही आसानी के साथ किया जा सकता है।
यात्रा के दौरान अपने साथ ले जाने वाली वस्तुओं की सूची भी बना लें ताकि ऐन वक्‍त पर कोई चीज छूट न जाये।
तैयारियाँ
घर से निकलने के पहले निश्‍चित कर लीजिये कि टूथब्रश, टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, तौलिया, शेविंग किट, बाल सँवारने के सामान आदि रख लिया गया है। प्रायः लोग इन्हीं चीजों को रखना भूल जाते हैं।
बुखार तथा दर्दनिवारक गोलियाँ, बैंडएड आदि जैसी कुछ आवश्यक दवाएँ और फर्स्ट-एड बाक्स रखना कदापि न भूलें। सम्पूर्ण यात्रा के दौरान कभी भी इनकी जरूरत पड़ सकती है।
एक छोटा टार्च, एक छोटा चाकू और एक छोटा ताला अपने साथ अवश्य रखें, ये यात्रा में बहुत काम आती हैं।
यद्यपि आजकल सभी पर्यटन स्थलों मे खान-पान की पर्याप्त व्यवस्था होती है, फिर भी अपने साथ कुछ हल्के नाश्ते का सामान भी रख लें।
अपने साथ अनावश्यक और भारी सामान कभी भी न रखें। छोटी-छोटी पैकिंग करें जिन्हें परिवार के लोग स्वयं ही उठा सकने में समर्थ हों क्योंकि यात्रा के दौरान अपने सामानों को स्वयं उठा कर ले जाने के अवसर अनेकों बार आते हैं।
कुछ सुझाव
महत्वपूर्ण कागजातों जैसे कि टिकिट, पासपोर्ट, क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स, ड्राइव्हिंग लायसेंस आदि की छायाप्रति बनवा लें ताकि यदि कोई कागजात खो जाता है तो छायाप्रति से काम चलाया जा सके।
आवश्यकता से अधिक नगद रकम साथ न रखें और प्लास्टिक मनी अर्थात् क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स का पूरा-पूरा उपयोग करें।
अपने सभी पैकिंगों पर अपना नाम व पता लिख दें, उनके भीतर भी अपने नाम व पते की स्लिप डाल दें।
परिचित लोगों के फोन नंबरों की सूची साथ रखें।
कहीं पर भी कूड़ा-करकट न फैलायें बल्कि उपयोग करने के बाद पालीथिन झिल्ली, डिस्पोजेबल गिलास आदि को कूड़ेदान में ही डालें।
नियम और कानून की अवहेलना ना करें।
हमेशा अपना व्यवहार सम्भ्रान्त रखें और अनजान लोगों पर एकाएक विश्‍वास न करें।
यदि आप उपरोक्‍त बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको निश्‍चिंत होकर अपनी छुट्टियों तथा यात्रा का पूरा-पूरा मजा लेने का मौका अवश्य ही मिलेगा।
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बेटी के ससुराल जा कर भूल के भी बदतमीज़ी से पेश ना आए

 अगर बेटी या बहन आपको अपने ससुराल वालो की शिकायत करे तो एक तरफ़ा राय ना बनाए आराम से बात करे गाली गलोच से नही, बेटी के ससुराल जा कर भूल के भी बदतमीज़ी से पेश ना आए, ना ही भूल के भी दामाद पर या बेटी के सास व ससुर पर उंगली भी उठाए या उनके दोष निकाले, बेटी को घर वापस लाने की ग़लती कभी ना करे क्योंकि जो लड़की एक बार ससुराल की दहलीज़ लांघ जाती वो वापस पहले वाली जगह नहीं पा सकती, अगर अपने ऐसा कुछ भी किया तो समझ लीजिए की अपने खुद ही अपनी बेटी का घर उजाड़ दिया है, आप खुद अपनी बेटी के सबसे बड़े दुश्मन हे और अब आप उसका घर कुछ भी करके नही बसा सकते.

राधे राधे

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Batenge To Katenge Song II बंटेंगे तो कटेंगे II Desh Bhakti II Election II BJP II #india #hindu

Batenge To Katenge Song II बंटेंगे तो कटेंगे II Desh Bhakti II Election II BJP II #india #hindu



 

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मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा - Defense of humanity, sociality and nationality

मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा - Defense of humanity, sociality and nationality

मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा - Defense of humanity, sociality and nationality

1. **मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा में जिम्मेदारी का निर्वाह**

मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता ये तीन मुख्य स्तंभ हैं, जो किसी भी राष्ट्र की पहचान और विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। यदि इन स्तंभों को ध्यान में रखते हुए जिम्मेदारी से कार्य नहीं किया जाता, तो समाज और राष्ट्र पर गहरे नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। यह जिम्मेदारी केवल कुछ वर्गों या व्यक्तियों की नहीं होती, बल्कि यह प्रत्येक नागरिक, धार्मिक नेताओं, राजनेताओं, और समाजिक कार्यकर्ताओं की होती है।


- **धर्म के कार्यों से जुड़े लोग**: धर्म के प्रचारक और धार्मिक नेताओं की भूमिका समाज में नैतिक और मानसिक शांति स्थापित करने में अहम होती है। यदि ये लोग ईमानदारी और सच्चाई से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, तो समाज में वैमनस्य, असहमति और धार्मिक असहिष्णुता फैल सकती है।

  

- **राजनीतिक और गैर-राजनीतिक लोग**: राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी देश की नीतियाँ बनाना और समाज की समृद्धि के लिए काम करना है। यदि वे अपनी जिम्मेदारियों को न निभाएं, तो इसका सीधा असर राष्ट्र की प्रगति, आंतरिक शांति और राष्ट्रीय एकता पर पड़ेगा। वहीं, गैर-राजनीतिक लोग, जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, और शिक्षा वाले भी समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. **समाज, मानवता और राष्ट्र पर प्रभाव**

अगर समाज के ये सभी स्तंभ अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते, तो इसका गहरा प्रभाव समाज, मानवता और राष्ट्र पर पड़ेगा:


- **समाज में विघटन**: अगर लोग अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते हैं, तो समाज में असहमति, असुरक्षा और संघर्ष बढ़ सकते हैं। यह धार्मिक और जातीय संघर्षों को जन्म दे सकता है।

  

- **राष्ट्रीय एकता का संकट**: राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की असंवेदनशीलता राष्ट्र की एकता को तोड़ सकती है। इससे राष्ट्र के भीतर असंतोष और असमर्थता का माहौल बन सकता है।

  

- **मानवता पर खतरा**: अगर धर्म और समाज में नैतिकता की कमी होती है, तो यह मानवता को संकट में डाल सकता है। शोषण, भेदभाव, असमानता जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।


3. **समाधान**

समाधान के लिए हमें सभी स्तरों पर मिलकर काम करने की आवश्यकता है:


- **नैतिक और सामाजिक शिक्षा**: धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को समाज में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने की जरूरत है। साथ ही, उन्हें खुद भी इन मूल्यों को आत्मसात करना होगा।

  

- **संवेदनशीलता और जिम्मेदारी**: प्रत्येक नागरिक को यह समझना होगा कि राष्ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। समाज में संवेदनशीलता, सहिष्णुता और एकता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

  

- **कानूनी और सामाजिक सुधार**: समाज के निचले स्तर तक समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानूनों को और मजबूत करना होगा। इसके लिए सरकारी नीतियों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

  

- **धार्मिक और राजनीतिक एकता**: धर्म और राजनीति को एक दूसरे से अलग रखना आवश्यक है, ताकि राष्ट्र में सबके लिए समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें। लेकिन धर्म और राजनीति के बीच उचित संतुलन बनाए रखना भी जरूरी है ताकि एकता और शांति बनी रहे।


- **संवाद और सहमति**: समाज में विभिन्न वर्गों, धर्मों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना जरूरी है। इस तरह से हम पारस्परिक सम्मान और समझ विकसित कर सकते हैं, जो समाज और राष्ट्र की मजबूती के लिए आवश्यक है।


निष्कर्ष:

अगर धर्म, राजनीति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग अपनी जिम्मेदारी इमानदारी से निभाते हैं, तो समाज में शांति और समृद्धि का माहौल बनेगा, और राष्ट्र की ताकत और एकता भी मजबूत होगी। लेकिन अगर यह जिम्मेदारी नहीं निभाई जाती है, तो समाज में असहमति और विघटन होगा, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव राष्ट्र की स्थिरता पर पड़ेगा। इस पर काबू पाने के लिए हमें सभी स्तरों पर जागरूकता और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

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वक्फ बोर्ड या सनातन बोर्ड - Waqf Board or Sanatan Board

 वक्फ बोर्ड और इसके द्वारा उत्पन्न समस्याओं के समाधान के रूप में कई सुझाव दिए जा सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हो सकते हैं:


1. वक्फ बोर्ड का समाप्त होना


वक्फ बोर्ड की समाप्ति का विचार कुछ लोगों द्वारा यह मानते हुए प्रस्तुत किया गया है कि यह एक विशेष धर्म से जुड़े संस्थान का प्रतिनिधित्व करता है, और इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी हो सकती है। वक्फ बोर्ड को समाप्त करने का सुझाव तब दिया जाता है जब यह महसूस किया जाता है कि यह विशेष रूप से मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के हितों को प्राथमिकता देता है और इससे अन्य समुदायों के अधिकारों की अनदेखी हो सकती है।

यदि वक्फ बोर्ड को समाप्त कर दिया जाए, तो यह धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन में न्यायसंगतता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि कई धार्मिक संपत्तियां हैं जिनका उपयोग सामाजिक कल्याण, शिक्षा और धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। इसके लिए एक नया वैकल्पिक ढांचा बनाया जा सकता है, जो हर धर्म की धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक समान और न्यायपूर्ण प्रक्रिया अपनाए। इस कदम से धार्मिक संस्थाओं के बीच भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है और समाज में एकता और समरसता को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, यह भी जरूरी है कि वक्फ बोर्ड के बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जाए, जो समान रूप से सभी धार्मिक समुदायों के अधिकारों का संरक्षण कर सके।

2. हिंदू मंदिरों की तरह वक्फ बोर्ड को सरकार के नियंत्रण में लेना


भारत में हिंदू मंदिरों की अधिकांश संपत्तियों और मामलों का प्रशासन सरकार के अधीन होता है, जैसे तमिलनाडु में हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ ट्रस्ट (HR&CE) विभाग। सरकार द्वारा मंदिरों के प्रशासन की तरह, वक्फ बोर्ड को भी सरकार के नियंत्रण में लाने का विचार यह है कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती है।

सरकार यदि वक्फ बोर्ड को अपने नियंत्रण में लेती है, तो यह सुनिश्चित कर सकती है कि धार्मिक संपत्तियों का सही तरीके से उपयोग हो, और उनका लाभ केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए ही हो। इस व्यवस्था से यह भी हो सकता है कि वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार हो, और यह अन्य समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना काम करे।

वर्तमान में वक्फ बोर्ड के पास जो अधिकार हैं, उन्हें सरकार के नियंत्रण में लाने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि कोई एक समुदाय अपने धर्म के नाम पर किसी और समुदाय के खिलाफ भेदभाव न करे। साथ ही, इससे वक्फ बोर्ड की पारदर्शिता भी बढ़ेगी, और जो भी गड़बड़ियां हैं, वे सामने आ सकेंगी। यह कदम भारतीय समाज में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप होगा और समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देगा।

3. सनातन बोर्ड और वक्फ बोर्ड जैसी शक्तियों का समान अधिकारों के साथ निर्माण


यह एक और संभावित समाधान हो सकता है, जिसमें 'सनातन बोर्ड' का गठन किया जाए जो वक्फ बोर्ड जैसी शक्तियों के साथ प्रत्येक धर्म की धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार रखे। सनातन बोर्ड का विचार उस समय उभरता है जब यह महसूस किया जाता है कि हिंदू धर्म की धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक सशक्त और समान बोर्ड की आवश्यकता है। यदि सनातन बोर्ड वक्फ बोर्ड जैसी शक्तियों के साथ बनाया जाए, तो इसे सभी धर्मों के समान अधिकार और कर्तव्यों के तहत संचालित किया जाना चाहिए।

इसका उद्देश्य केवल एक धर्म विशेष के हितों की रक्षा करना नहीं, बल्कि सभी धर्मों के अधिकारों का समान रूप से पालन करना होना चाहिए। इस तरह का बोर्ड पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्यायपूर्ण तरीके से काम करेगा, ताकि समाज में किसी एक धर्म के अनुयायियों को विशेष अधिकार न मिलें और सभी को समान अवसर प्राप्त हो।

सनातन बोर्ड को यदि वक्फ बोर्ड जैसी शक्तियों के साथ बनाया जाता है, तो यह एक प्रकार का संतुलन स्थापित कर सकता है, जहां प्रत्येक धर्म का समान रूप से सम्मान किया जाता है और धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन न्यायपूर्ण तरीके से किया जाता है। इस तरह के बोर्ड में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि हो सकते हैं, जो यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी धर्म अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे और न ही किसी अन्य धर्म के अधिकारों का उल्लंघन हो।

समाधान का निष्कर्ष


इन तीनों समाधानों में से कोई भी कदम उठाने से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि समाज में धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्यायपूर्ण व्यवस्था कायम रहे। वक्फ बोर्ड को समाप्त करना या उसे सरकार के नियंत्रण में लेना, दोनों ही कदम समाज में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही ला सकते हैं। वहीं, अगर एक सनातन बोर्ड की स्थापना की जाती है, तो यह सुनिश्चित करना होगा कि उसे सभी धर्मों के समान अधिकार दिए जाएं और किसी भी समुदाय को विशेष प्राथमिकता न मिले।

किसी भी समाधान का मुख्य उद्देश्य समाज में आपसी सद्भाव, एकता और समानता को बढ़ावा देना होना चाहिए। सभी धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से किया जाना चाहिए ताकि कोई भी समुदाय धर्म के नाम पर भेदभाव का शिकार न हो। इसके अलावा, यह भी आवश्यक है कि सरकार द्वारा इस तरह के बोर्डों का गठन करते समय किसी एक धर्म विशेष को बढ़ावा न दिया जाए, बल्कि सभी धर्मों के हितों को समान रूप से देखा जाए।

इसलिए, वक्फ बोर्ड या सनातन बोर्ड जैसी संस्थाओं के समाधान के लिए यह जरूरी है कि हम सभी समुदायों के अधिकारों की समान सुरक्षा करें और धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखें, ताकि भारतीय समाज में एकता और शांति बनी रहे।
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समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है - We need unity to bring change in society

समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है - We need unity to bring change in society 
समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है - We need unity to bring change in society

जाति और धर्म बदलने से DNA नहीं बदलता, यह बात उन भटके हुए लोगों को समझने की आवश्यकता है जो राजनीतिक, संप्रदायिक, मानवता और राष्ट्र विरोधी लोगों की बातों में आकर भटक गए हैं। जब हम जाति और धर्म बदलकर अपने पूर्वजों से विरोध करते हैं, तो यह व्यक्ति की नासमझी और व्यक्तित्व को दर्शाता है। 


हमारे पूर्वजों का DNA, हमारे संस्कार, हमारे मूलभूत मूल्य और हमारे विचार, ये सभी चीजें हमें एक पहचान देती हैं। जाति या धर्म बदलने से हम अपनी पहचान को नहीं बदल सकते। इसके बावजूद, आज समाज में कुछ लोग इसे एक रूप में देखते हैं, जिससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ती है। 


हमें समझना होगा कि समाज में एकता और समरसता की आवश्यकता है। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपनी बुद्धि का उपयोग करें। हमें यह विचार करना चाहिए कि क्या हमारा व्यवहार और हमारी सोच सही दिशा में जा रही है या नहीं। यदि हम अपने पूर्वजों के मूल्य और सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, तो हम अपनी पहचान और संस्कृति को खो देंगे।


समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है। यह एकता तब ही संभव है जब हम एक-दूसरे को समझें और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखें। हमें किसी भी राजनीतिक या धार्मिक विभाजन से ऊपर उठकर सोचने की आवश्यकता है। जो लोग हमें जाति, धर्म, और अन्य सामाजिक विभाजन के आधार पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं, हमें उनके खिलाफ खड़ा होना चाहिए।


हमारी बुद्धिमत्ता का सही उपयोग यही है कि हम समाज में एकता के लिए हो रहे बदलाव का सदुपयोग करें। यह बुद्धिमत्ता हमें यह सिखाती है कि हम सभी एक ही मानवता का हिस्सा हैं, और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। जब हम अपनी पहचान को समझेंगे और अपने भीतर एकता की भावना को जगाएंगे, तभी हम सही दिशा में बढ़ेंगे।


हमें यह भी समझना चाहिए कि जाति और धर्म केवल सामाजिक निर्माण हैं, जबकि हमारी पहचान हमारे DNA में बसी हुई है। यही DNA हमें जोड़ता है, और इसे समझकर हम अपने समाज को एक नया दिशा दे सकते हैं। 


समाज में बदलाव लाने के लिए हमें संगठित होकर काम करना होगा। हमें उन लोगों के खिलाफ खड़ा होना होगा जो समाज में नफरत और विभाजन फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें चाहिए कि हम अपने समुदाय में एकता, प्यार और सहिष्णुता का संदेश फैलाएं। 


इसलिए, हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए एक समृद्ध और सहिष्णु समाज का निर्माण करना चाहिए। यही हमारी जिम्मेदारी है, और यही हमारी पहचान का सही अर्थ है। जब हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे, तो हम न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर समाज की नींव रखेंगे।

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भारत की तरक्की का आधार - The basis of India's progress

 भारत के नागरिकों को एक-दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने के लिए टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी गलतियों को मानवता और राष्ट्रहित के अनुकूल खुद ही सुधारने का संकल्प लेना हर नागरिक का कर्तव्य है। तभी भारत में समानता और शांति स्थापित होगी और देश तरक्की करेगा। 

भारत की तरक्की का आधार - The basis of India's progress

हम सबकी तरक्की एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई है। अगर हम अपने समाज में भेदभाव और असमानता को खत्म नहीं करेंगे, तो तरक्की का कोई अर्थ नहीं होगा। यह ज़रूरी है कि हम सभी एकजुट होकर एक सकारात्मक और सहिष्णु माहौल बनाएँ।


जनसंख्या नियंत्रण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे विकास में रुकावट आती है। इसलिए, हमें जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। यह न केवल हमारे लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है।


महिलाओं का सम्मान करना भी हमारी जिम्मेदारी है। समाज में महिलाओं को समानता और सुरक्षा प्रदान करना बेहद जरूरी है। जब हम महिलाओं का सम्मान करेंगे, तभी एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकेंगे। 


गायों की हत्या पर भी ध्यान देना चाहिए। गाय हमारे लिए केवल एक जानवर नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का हिस्सा है। गाय की पूजा करने और इसे बचाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हमारी परंपराएं और अधिक मजबूत होंगी।


राजनीतिक लोगों की बातों को सुनते समय हमें अपनी बुद्धि का भी उपयोग करना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि क्या उनके विचार मानवता और देश के लिए सही हैं या नहीं। इसी आधार पर हमें अपने वोट का निर्णय लेना चाहिए। यह सही चुनाव करना ही हमारे राष्ट्र धर्म का एक हिस्सा है। 


हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के विकास में अपनी भूमिका निभाएँ। हमें एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि हम अपने देश को एक बेहतर स्थान बना सकें। जब हम सभी मिलकर काम करेंगे, तभी हम अपने समाज में बदलाव ला सकेंगे।


इसलिए, आइए हम सब मिलकर एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाएँ। हमें अपने कर्तव्यों को समझते हुए, एकता, समानता और सहिष्णुता का परिचय देना होगा। यही हमारे लिए सही रास्ता है, और यही भारत की तरक्की का आधार बनेगा।

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मानव जीवन में भारतीय देसी गाय का महत्व - Importance of Indian Desi Cow in human life

 मानव जीवन में भारतीय देसी गाय का महत्व - Importance of Indian Desi Cow in human life



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It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - Election

It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - #Election 

भारत की जनता को राजनीतिक नेताओं की भाषणबाजी से मुर्ख नहीं बनाना चाहिए। यह आवश्यक है कि लोग यह समझें कि हमारे देश में मानवता और हिन्दू विरोधी राजनीति के पक्ष और विपक्ष में कौन है। जब तक जनता को यह स्पष्ट नहीं होगा कि कौन सच में उनके हित में काम कर रहा है, तब तक नेता अपनी रोटी सेंकते रहेंगे। 

It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - Election

राजनीतिक दलों के बीच खींचतान के कारण अक्सर जनता के असली मुद्दे पीछे रह जाते हैं। यह समझना जरूरी है कि राजनीति केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की बुनियाद है। अगर हम अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो वे नेता जो केवल स्वार्थ की राजनीति करते हैं, हमारे अधिकारों को छीन लेंगे। 

समानता और राष्ट्रहित के लिए जरूरी है कि हम अपने नागरिक कर्तव्यों को समझें और सक्रिय रूप से भाग लें। हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारे प्रतिनिधि क्या करते हैं और क्या वे वास्तव में हमारे लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए हमें जागरूक रहना होगा और राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेना होगा। 

राजनीतिक दलों का यह कर्तव्य है कि वे समाज के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करें। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि हम खुद अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाएंगे। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीति का असली अर्थ है सेवा करना, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए खेलना। 

इसलिए, जनता को जागरूक होना होगा और समझना होगा कि राजनीतिक विमर्श में जो मुद्दे उठाए जाते हैं, वे केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। समाज में समानता और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए हमें सोच-समझकर निर्णय लेने की आवश्यकता है। केवल उसी स्थिति में हम एक मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं। 

समानता और राष्ट्रहित के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। जब तक हम एकजुट नहीं होंगे और अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक राजनीति के अंधेरे में फंसे रहेंगे। यही वक्त है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएं और अपने भविष्य के प्रति जागरूक बनें। हमारी एकता ही हमें मजबूत बनाएगी और तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे। 

इसलिए, हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम राजनीतिक दावों और भाषणों में न फंसें, बल्कि अपने हक के लिए समझदारी से लड़ें। यही सही समय है कि हम सच में एक परिवर्तन की ओर बढ़ें।

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govardhan puja vidhi

 Govardhan Puja, also known as Annakut, is celebrated the day after Diwali to honor Lord Krishna’s lifting of the Govardhan Hill. Here’s a simple vidhi (procedure) for performing Govardhan Puja:

govardhan puja vidhi

Materials Needed

- A small hill made of cow dung or clay (to represent Govardhan Hill)

- Flowers and leaves (especially of the tulsi plant)

- Fruits, sweets, and other food items (for the offering)

- Incense sticks and diyas (oil lamps)

- A picture or idol of Lord Krishna

- Pooja thali (plate)


Procedure


1. **Preparation of the Idol or Hill:**

   - Shape cow dung or clay into a small hill, representing Govardhan Hill.

   - Decorate it with flowers and leaves.


2. **Setting the Pooja Place:**

   - Clean the area where you will perform the puja.

   - Place the idol or hill in a clean spot.


3. **Offering Food:**

   - Arrange a variety of food items, especially those made of grains, fruits, and sweets, around the hill.

   - You can prepare dishes like khichdi, puris, and various sweets.


4. **Performing the Aarti:**

   - Light the diyas and incense sticks.

   - Offer the light to the hill/Idol while singing devotional songs or chanting mantras.


5. **Prayers and Mantras:**

   - Offer prayers to Lord Krishna, asking for his blessings.

   - You can chant specific mantras, such as the Govardhan Puja mantra.


6. **Concluding the Puja:**

   - After the prayers, distribute the prasad (offered food) to family and friends.

   - Sing bhajans or kirtans in praise of Lord Krishna.


After the Puja

- It’s customary to visit a temple if possible, or participate in community celebrations.

- Share the prasad with neighbors and friends as a symbol of sharing and community spirit.


Notes

- The puja can be performed in the morning or evening, depending on family traditions.

- The essence of Govardhan Puja is gratitude and devotion, so focus on the spirit of the festival.

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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...