नग्न साधुओं पर प्रतिक्रिया

महाकुंभ विशेष : 
कुछ व्यक्तियोंने महाकुंभमें विचरते नग्न साधुओंपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां मां-बहनें आती हैं, वहां साधुओंका नग्न होकर घूमना कहां तक उचित है? क्या यह भारतीय संस्कृति है ? 
उत्तर : पाश्चात्य देशोंमें कई बार कुछ जन अपने विषयकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहां नग्न होकर प्रदर्शन करनेका उद्देश्य होता है, सभीका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं, वहां वे यह सब किसीका ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नहीं करते | ध्यान रहे, हम सबकी उत्पत्ति ईश्वरसे हुई, परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है, अर्थात “मैं ब्रह्म हूं ” के स्थान पर मैं देह हूं और मैं फलां-फलां हूं, यह विचार अधिक प्रबल होता है | जब तक मैं देह हूं, यह विचार प्रबल रहता है, ईश्वरकी प्रचीति नहीं हो सकती !
नग्न दो प्रकारके योगी रहते हैं – एक जो परमहंसके स्तरके संत होते हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्रका त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटिके योगी इस संसारमें विरले ही हैं | दूसरे प्रकारके नग्न योगी हठयोगी होते है, वे अंबरको अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मनके विरुद्ध जाकर सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमेंसे कुछ शैव उपासक भी होते हैं तो कुछ अन्य पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं, वे शिवसे एकरूप होने हेतु शिवको प्रिय हैं, वे उनका उपयोग करते हैं |
देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगोंका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु करने वालेके प्रति हीन भावना नहीं, आदरकी भावना होनी चाहिए | कुम्भमें नग्न साधुओंकी विशाल सेना इस बातका द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है, तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और अपने योगमार्गको बनाए रखने हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसी श्रेष्ठ परंपराका पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपराके प्रति हमें गर्व होना चाहिए न कि लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपराने समय-समय पर सनातन संस्कृतिका शस्त्र और शास्त्र दोनोंके माध्यमसे रक्षण किया है; अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकोंके प्रति प्रत्येक हिन्दुको गर्व होना चाहिये ! 

महाकुंभ विशेष :
कुछ व्यक्तियोंने महाकुंभमें विचरते नग्न साधुओंपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां मां-बहनें आती हैं, वहां साधुओंका नग्न होकर घूमना कहां तक उचित है? क्या यह भारतीय संस्कृति है ?
उत्तर : पाश्चात्य देशोंमें कई बार कुछ जन अपने विषयकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहां नग्न होकर प्रदर्शन करनेका उद्देश्य होता है, सभीका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं, वहां वे यह सब किसीका ध्यान आकृष्ट करनेके लिए नहीं करते | ध्यान रहे, हम सबकी उत्पत्ति ईश्वरसे हुई, परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है, अर्थात “मैं ब्रह्म हूं ” के स्थान पर मैं देह हूं और मैं फलां-फलां हूं, यह विचार अधिक प्रबल होता है | जब तक मैं देह हूं, यह विचार प्रबल रहता है, ईश्वरकी प्रचीति नहीं हो सकती !
नग्न दो प्रकारके योगी रहते हैं – एक जो परमहंसके स्तरके संत होते हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्रका त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटिके योगी इस संसारमें विरले ही हैं | दूसरे प्रकारके नग्न योगी हठयोगी होते है, वे अंबरको अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मनके विरुद्ध जाकर सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमेंसे कुछ शैव उपासक भी होते हैं तो कुछ अन्य पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं, वे शिवसे एकरूप होने हेतु शिवको प्रिय हैं, वे उनका उपयोग करते हैं |
देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगोंका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु करने वालेके प्रति हीन भावना नहीं, आदरकी भावना होनी चाहिए | कुम्भमें नग्न साधुओंकी विशाल सेना इस बातका द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है, तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और अपने योगमार्गको बनाए रखने हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसी श्रेष्ठ परंपराका पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपराके प्रति हमें गर्व होना चाहिए न कि लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपराने समय-समय पर सनातन संस्कृतिका शस्त्र और शास्त्र दोनोंके माध्यमसे रक्षण किया है; अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकोंके प्रति प्रत्येक हिन्दुको गर्व होना चाहिये ! 
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Sury Namaskar


॥ ॐ ध्येयः सदा सवित्र मण्डल मध्यवर्ती नारायण सरसिजा सनसन्नि विष्टः
केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी हारी हिरण्मय वपुर धृतशंख चक्रः ॥
ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पुषणे नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
ॐ मरीचये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ श्रीसवित्रसूर्यनारायणाय नमः।
॥ आदित्यस्य नमस्कारन् ये कुर्वन्ति दिने दिने
आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस्तेशान् च जायते ॥

|| om dhyeyaḥ sadā savitra maṇḍala madhyavartī nārāyaṇa sarasijā sanasanni viṣṭaḥ
keyūravāna makarakuṇḍalavāna kirīṭī hārī hiraṇmaya vapura dhṛtaśaṁkha cakraḥ ||
om mitrāya namaḥ |
om ravaye namaḥ |
om sūryāya namaḥ |
om bhānave namaḥ |
om khagāya namaḥ |
om puṣaṇe namaḥ |
om hiraṇyagarbhāya namaḥ |
om marīcaye namaḥ |
om ādityāya namaḥ |
om savitre namaḥ |
om arkāya namaḥ |
om bhāskarāya namaḥ |
om śrīsavitrasūryanārāyaṇāya namaḥ |
|| ādityasya namaskāran ye kurvanti dine dine
āyuḥ prajñā balam vīryam tejasteśān ca jāyate ||

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विचार Idea

समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है।
- स्वामी शिवानंद
विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है। 
- विनोबा
विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं।
- रवींद्र
हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है।
- गौतम बुद्ध
जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है।
- मोरारजी देसाई
मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है। हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है।
- महात्मा गांधी
दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं।
- रामचंद्र शुक्ल
धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। 
- विदुर
वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर मौन दिव्य।
- कहावत
मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है।
- सुदर्शन
मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। 
- अज्ञात
जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है। 
- अज्ञात
ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से।
- कौटिल्य
जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। 
- सुदर्शन
अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं।
- जवाहरलाल नेहरू
सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है।
- पं. मोतीलाल नेहरू
स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
- विनोबा
जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। 
- मुक्ता
दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। 
- डॉ. रामकुमार वर्मा
डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है।
- अज्ञात
सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। 
- अज्ञात
अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती।
- अज्ञात
जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। 
- अज्ञात
अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का।
- कहावत
जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते।
- वेदव्यास
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।
- वेदव्यास
जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं।
- अमृतलाल नागर
जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता।
- स्वामी भजनानंद
लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है।
- सरदार पटेल
एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है। उसके भीतर रह कर कोई भी प्राणी असुरक्षा अनुभव नहीं करता।
- अज्ञात
फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को डराता है।
- अज्ञात
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। 
- हरिऔध
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। 
- हरिऔध
जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है।
- राम प्रताप त्रिपाठी
मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है।
- प्रेमचंद
असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। 
- हरिभाऊ उपाध्याय

एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है।
- अज्ञात
किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं।
- अज्ञात
ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा।
- विनोबा
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।
- प्रेमचंद
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।
- अज्ञात
जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है।
- अज्ञात
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पुराना फटा सा पर्स

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यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स में ऐसा कुछनहीं था जिससे कोई सुराग मिलसके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस ... टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह किसका पर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें।"
टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा हीहै। केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।"
उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान श्रीकृष्ण की फोटो है।"
टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"
बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं तुम्हें बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूपमें कुछ पैसे मिलते थे। मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटोरखी हुयी थी।
जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैंअपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था।
कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था।मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।
जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ,तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चेके साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चेकी फोटो आ गयी थी।"
बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता-पिता कास्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी।मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पासमेरी देखभाल का क्त नहीं है। जिसे मैंनेअपने जिगर के टुकड़ेकी तरह पाला था,
वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है।
अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।
जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वरके साथ किया होता तो आज मैं
इतना अकेला नहीं होता।"
टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला-"क्या तुम्हारे पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए.
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जय जय श्री राधे

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प्रभु की प्राप्ति प्रभु की ही कृपा से ही संभव है क्योंकि वह साधनसाध्य नहीं हैं, वे तो केवल और केवल कृपासाध्य हैं परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जब वह कृपासाध्य ही हैं तो हम साधन ही क्यॊं करें । जब उन्हें कृपा करनी होगी तब अपने आप कर ही देंगे, हम व्यर्थ में ही अपना बहूमूल्य समय क्यों नष्ट करें ।
साधन बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे पात्रता की संभावनायें जागती हैं । किसान खेत में बीज बोता है, सींचता है, खरपतवार की भी सफ़ाई करता रहता है, इसी आशा के साथ कि फ़सल अच्छी होगी पर यह जरूरी तो नहीं कि ऐसा ही हो, हो सकता है कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गाँव की व्यक्तिगत वैमनस्यता के कारण उसे हानि हो जाये पर क्या किसान दोबारा अगली फ़सल के लिये और अधिक परिश्रम नहीं करता । प्रभु की कृपा अनरत बरस रही है पर हम अपनी पात्रतानुसार ही उसका लाभ ले पाते हैं जैसे जब बारिश हो रही हो तो खुले आँगन में अगर गिलास रखा हो तो गिलास भरेगा, घड़ा हो तो घड़ा भर जायेगा, अन्य कोई बड़ा पात्र हो तो वह भी भर जायेगा लेकिन अगर कोई गिलास से भी छोटा पात्र हो और उल्टा रखा हो तो भरपूर बारिश के बाद भी वह रीता ही रह जायेगा, अब इसमें दॊष किसका है ? क्या प्रभु पक्षपाती है ? नहीं, ऐसा नहीं है, इस बात का विश्वास रखिये ।
एक संत थे जिनके पास बहुत से विधार्थी अध्ययन करते थे , कालांतर में शिक्षा पूरी होने पर उन्होंने अपने एक शिष्य को रामकथा के प्रचार-प्रसार की आज्ञा दी और उनका वह शिष्य स्थान-स्थान पर प्रभु की मनोहर रामकथा का गान करने लगा । एक बार वह एक स्थान पर कथा कर रहा था जहाँ के गृहस्वामी के पास एक अदभुत बोलने वाला तोता था। ब्रह्मचारी ने रामकथा का माहात्म बताते हुए इसे भवतारिणी एवं समस्त बंधनों से मुक्त करने वाला बताया तभी तोता बोल उठा कि "नहीं, यह सत्य नहीं है ! मैं कितने वर्षों से "राम-राम" कहता रहता हूँ और आज तक इस पिंजड़े से ही मुक्त नहीं हो पाया तब मैं कैसे मानूँ कि तुम सत्य कहते हो ।"
इस तर्क के उत्तर के लिये ब्रह्मचारी ने गुरू की शरण ली और इस संशय के समाधान को जानने की प्रार्थना की ।
गुरूदेव ने कहा कि तोते से कहो कि वह एक दिन न कुछ खाये न पिये और निश्चेष्ट होकर पिंजरे में पड़ा रहे और मन ही मन राम-राम रट्ता रहे । ब्रह्मचारी के कहे अनुसार तोते ने ऐसा ही किय़ा और यह देखकर गृह्स्वामी ने पिंजरे का द्वार खोल दिया । द्वार खुलते ही तोता उड़ गया और उड़ते-उड़ते बोला कि-" यह सत्य है कि राम नाम बंधनों को काटने वाला है पर इसकी कुंजी गुरू के पास है ।"
प्रभु की कृपा के आसरे रहिये, सही समय पर निश्चित ही वह उचित माध्यम द्वारा हमें अपनी शरण लेंगे ।
"जानत सोई जाहि देहु जनाई । जानत तुम्हीं तुम्ही होइ जाई॥ राजी तेरी रजा में....।"
जय जय श्री राधे !
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हे संकट मोचन

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हे संकट मोचन, हे दयानिधान,हे वीर बजरंगी हे वीर हनुमान 
यह एहसास की 'तुम मेरे भी हो' हे शंकर सुवन महा बली हनुमान 
भर देता है मुझ में असीम शक्ति और कर देता है सुगम सब काज 
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान् 
इक 'तेरा दर तो है' जिसने मुझे है सम्भाला हे शंकर सुवन महाबली हनुमान 
मैं तो इस माया भंवर में कभी इधर फसा कभी उधर फसा हे मेरे भगवन
दर तेरा बना मांझी मेरा बन खैव्य्या जीवन सवांरा हे शंकर सुवन महाबली हनुमान
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान्
सबसे सुगम है रस्ता तेरा हर युग के तुम हो भगवान
राम नाम की माला से ही, राम नाम के ही जाप से
खुश होते मेरे भगवन, कर देते पूरण जीवन के सब काम
क्यों न मानूँ, क्यों न पूजूं ,क्यों न ध्याऊँ तुम को हे मेरे भगवान्

मारुति नंदन नमो नमः
कष्ट भंजन नमो नमः
असुर निकंदन नमो नमः
श्रीरामदूतम नमो नमः
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मानो या ना मानो

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कहते हैं भोलेनाथ सभी देवताओं में सबसे भोले हैं। उनकी आराधना कर उन्हें मनाना बहुत आसान है। इसलिए शिव के पूजन से जुड़े इन नीचे लिखे टोटको को अपनाकर आप कई परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं और अपनी जिंदगी के हर दुख को दूर भगा सकते हैं।

- चावल जो सात बार स्वच्छ पानी से साफ हो उन्हें भोलेनाथ को चढाएं। इससे अचल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

- संतान वृद्धि हेतु उत्तम किस्म का गेहूं अर्पण किया जाता है।

- सुख की प्राप्ति हेतु मूंग शिव को चढाएं।

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कर्पूरगौरं करुणावतारं

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कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ||
भावार्थ:- उन परमेश्वर स्वरूपी शिव संग भवानीको मेरा नमन है जिनका वर्ण कर्पूर समान गौर है, जो करुणाके प्रतिमूर्ति हैं, जो सारे जगतके सार हैं, जिन्होने गलेमें सर्पके हार धारण कर रखे हैं और जो हमारे हृदय रूपी कमलमें सदैव विद्यमान रहते हैं |
Karpoor gauram karunaawataram
sansar saaram bhujgendra haaram
sadavasantam hrudayaaravinde
bhawam bahawani sahitam namami
I salute to that Shiv form of Almighty along with Bhavani (Shiva and Parvati), who is as white as camphor, an incarnation of compassion,
the essence of this world, who wears a serpant around
his neck and is ever present in the lotus abode of our hearts.
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दिनचर्या का भाग

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सुबह उठने के पश्चात ( यदि संभव हो तो सूर्योदय के पहले उठें ) और बिछावन त्यागने से पूर्व एवं भूमिमें चरण स्पर्श हो उससे पूर्व इन प्रार्थनाओं को अपनी दिनचर्या का भाग बनाएँ ! 
सर्व प्रथम अपने दोनों हाथों को अपने नेत्र के समक्ष रखकर यह प्रार्थना करना चाहिए !
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
अर्थ : हाथके अग्रभाग में लक्ष्मी का वास है । हस्तके मध्य में सरस्वती का वास है, और हस्तके मूल में गोविंद भगवान का वास है | अतः सुबह सुबह प्रथम अपने हस्त का दर्शन करना चाहिये |
तत्पश्चात भूमि को हाथ से स्पर्श कर भूमि प्रार्थना इस प्रकार करें |
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
हे पृथ्वी माँ आप विष्णु पत्नी हैं, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं, मैं आपको वंदन करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें !
Try to do these two prayers after getting up in the morning (preferably before sunrise ) . First open your palm and mediate on it by saying the first verse and then and before letting the feet touch the ground , recite the second verse in the form of prayer to Mother earth by touching the ground with your hand .

1. कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
karagre wasate laxmih , karmadhye saraswati
karmoole tu govindah prabhate kar darshanam

Meaning : Goddess Lakshmii dwells at the beginning of the hand.
In the center of the palm resides Sarasvati, the Goddess
of wisdom. At the base of the palm is Govinda, the
Lord of the universe. Hence, one should look and meditate on
the hand early in the morning immediately after rising.

2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
Samudra-Vasane Devi Parvat-Stana-Manddale |
Vishnu-Patni Namastubhyam Paada-sparsham Kshama-Svame ||

Meaning: (O Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet.
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सुबह उठने के पश्चात

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सुबह उठने के पश्चात ( यदि संभव हो तो सूर्योदय के पहले उठें ) और बिछावन त्यागने से पूर्व एवं भूमिमें चरण स्पर्श हो उससे पूर्व इन प्रार्थनाओं को अपनी दिनचर्या का भाग बनाएँ ! 
सर्व प्रथम अपने दोनों हाथों को अपने नेत्र के समक्ष रखकर यह प्रार्थना करना चाहिए !
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
अर्थ : हाथके अग्रभाग में लक्ष्मी का वास है । हस्तके मध्य में सरस्वती का वास है, और हस्तके मूल में गोविंद भगवान का वास है | अतः सुबह सुबह प्रथम अपने हस्त का दर्शन करना चाहिये |
तत्पश्चात भूमि को हाथ से स्पर्श कर भूमि प्रार्थना इस प्रकार करें |
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
हे पृथ्वी माँ आप विष्णु पत्नी हैं, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं, मैं आपको वंदन करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें !
Try to do these two prayers after getting up in the morning (preferably before sunrise ) . First open your palm and mediate on it by saying the first verse and then and before letting the feet touch the ground , recite the second verse in the form of prayer to Mother earth by touching the ground with your hand .

1. कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
karagre wasate laxmih , karmadhye saraswati
karmoole tu govindah prabhate kar darshanam

Meaning : Goddess Lakshmii dwells at the beginning of the hand.
In the center of the palm resides Sarasvati, the Goddess
of wisdom. At the base of the palm is Govinda, the
Lord of the universe. Hence, one should look and meditate on
the hand early in the morning immediately after rising.

2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
Samudra-Vasane Devi Parvat-Stana-Manddale |
Vishnu-Patni Namastubhyam Paada-sparsham Kshama-Svame ||

Meaning: (O Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet.
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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...