याददाश्त बढ़ाने के लिए अचूक रामबाण नुस्खे Perfect panacea for improving memory

बार-बार भूलने की समस्या केवल बूढ़े लोगों के साथ ही नहीं बल्कि जवान लोगों के साथ भी होती है। दरअसल भूलने का मुख्य कारण एकाग्रता की कमी है। स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए दिमाग को सक्रिय रखना आवश्यक है। अगर आपके साथ भी यही समस्या है कमजोर स्मरण शक्ति आपके लिए परेशानी का कारण बनी हुई है, तो नीचे लिखे घरेलू उपायों को जरुर अपनाएं।

- अखरोट स्मरण शक्ति बढाने में सहायक है। 20 ग्राम अखरोट और साथ में 10 ग्राम किशमिश रोजाना लेना चाहिये।

- अलसी का तेल आपकी एकाग्रता बढाता है, आपकी स्मरण शक्ति तेज करता है तथा सोचने समझने की शक्ति को भी बढ़ाता है। नियमित रूप से अलसी के तेल के सेवन से आपको मष्तिष्क सम्बन्धी कोई विकार नहीं रहेगा।

- ब्रह्मी दिमागी शक्ति बढाने की मशहूर जड़ी-बूटी है। इसका एक चम्मच रस नित्य पीना हितकर है। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है। ये दिमाग की शक्ति घटने पर रोक लगती है।

- बादाम 9 नग रात को पानी में गलाएं। सुबह छिलके उतारकर बारीक पीस कर पेस्ट बना लें। अब एक गिलास दूध गरम करें और उसमें बादाम का पेस्ट घोलें। इसमें 3 चम्मच शहद भी डालें। जाने पर उतारकर मामूली गरम हालत में पीएं। यह मिश्रण पीने के बाद दो घंटे तक कुछ न लें।

बार-बार भूलने की समस्या बहुत ही परेशानी देने वाली होती है। जिन लोगों के साथ ये समस्या होती है सिर्फ वे खुद ही नहीं उनसे जुड़े अन्य लोग भी कई बार समस्या में पड़ जाते है। अगर आपकी भी याददाश्त कमजोर है तो अपनी भागदौड़भरी दिनचर्या में से थोड़ा वक्त निकालकर रोजाना भद्रासन करें। आपका दिमाग उम्रभर तेजतर्रार रहेगा।

भद्रासन विधि-
आसन बिछाकर बैठ जाएं। दाहिना पैर घुटने से मोड़कर एड़ी उपस्थ और गुदा के मध्य के दाहिने भाग में और बायां पैर मोड़कर एड़ी सीवन के बायें भाग में इस प्रकार रखें कि दोनों पैर के तलवे एक दूसरे को लगकर रहें। इस स्थिति को रेचक कहते हैं। रेचक करके दोनों हाथ सामने जमीन पर रखें। धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं और दोनों पैर के पंजों पर इस प्रकार बैठें कि शरीर का वजन एड़ी के मध्य भाग पर आए। ध्यान रहे अंगुलियों वाला भाग छूटा रहे।

लाभ-
इस आसन से शरीर फूर्तिला और फिट रहता है। बुद्धि तीक्ष्ण होती है। कल्पनाशक्ति का भी विकास होता है। चंचलता कम होती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर शुद्धि होने लगती है। स्नायु मजबूत होता है। धातुक्षय, गैस, स्वप्नदोष, कमर का दर्द, सिरदर्द, अनिद्रा, दमा, मूर्छारोग, बवासीर, उल्टी, हिचकी, अतिसार,उदररोग, नेत्रविकार आदि असंख्य रोगों में इस आसन से लाभ होता है।
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MIRACULOUS PLANT:(गिलोय ) ये है लगभग दर्जनभर रोगों की रामबाण दवा

गिलोय एक बहुत ही उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है। यह दिव्य औषधि जिसे संस्कृत में गडूची और अम्रतवल्ली, अमृता,मराठी में गुडवेल, गुजराती में गिलो के नामो से जाने जाने वाली वर्षो तक जीवित रहने वाली यह बेल या लता अन्य वृक्षों के सहारे चढ़ती है। नीम के वृक्ष के सहारे चडऩे वाली गिलोय औषधि उपयोग के लिए सर्वश्रेष्ट होती है, इसी कारण इसे नीम-गिलोय भी कहा जाता है। फू ल लाल झुमकों में लगता है। अंगूठें जैसा मोटा तना प्रारम्भ में हरा, पकने पर धूसर रंग का हो जाता है,यही तना औषधि के काम आता है।

- वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार इसमें एल्केलाइड गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा, अल्कोहल, ग्लिस्टरोल, अम्ल व उडऩशील तेल होते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। वायरसों की दुश्मन गिलोय रोग संक्रमण रोकने में सक्षम होती है। यह एक श्रेष्ठ एंटीबयोटिक है।

-टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। गिलोय बीमारियों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।

- इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, खून की कमी, निम्न रक्तचाप, दिल की कमजोरी, टीबी, मूत्र रोग, एलर्जी, पेट के रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक बीमारियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है।

- दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और गेहूं के ज्वारे के रस के साथ तुलसी के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है।

- बुखार को ठीक करने का इसमें अद्भुत गुण है। यह मलेरिया पर अधिक प्रभावी नहीं है लेकिन शरीर की समस्त मेटाबोलिक क्रियाओं को व्यवस्थित करने के साथ सिनकोना चूर्ण या कुनाईनं (कोई भी एंटी मलेरियल) औषधि के साथ देने पर उसके घातक प्रभावों को रोक कर शीघ्र लाभ देती हे।

- गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है।
गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।

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बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज Eating blackberries in the rainy season cures all these diseases.

सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है कि जामुन को नमक के साथ खाया जाता है। जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है।जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर भी पाया जाता है इसमें खनिजों की मात्रा अधिक होती है। इसके बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है। जामुन के इन्हीं गुणों के कारण हम आपको बताने जा रहे हैं जामुन से जुड़े कुछ खास नुस्खे जो रोगों में रामबाण की तरह काम करते हैं......

- गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।


-गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।


-जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ होता है। है। जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह लेने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

- इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है। जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

-जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।


- जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है। पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।

- दांतों, मसूढ़ों से खून आता हो, पानी लगता हो, मसूढ़े फूलते हों तो इसके पत्तों की राख को दांतों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं, दांत चमकीले बन जाते हैं।गला बैठ गया हो, आवाज बेसुरी हो गयी हो, गले में छाले हो गये हों तो इसके पत्ते पानी में उबाल कर उसे थोड़ा ठंडा कर उससे गरारे करें।

- रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें। गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।
Photo: बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज
==================================  (संयोगिता सिंह)
सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है कि  जामुन को नमक के साथ खाया जाता है। जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है।जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर भी पाया जाता है इसमें खनिजों की मात्रा अधिक होती है। इसके बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है।  जामुन के इन्हीं गुणों के कारण हम आपको बताने जा रहे हैं जामुन से जुड़े कुछ खास नुस्खे जो रोगों में रामबाण की तरह काम करते हैं......

- गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।


-गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ  होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।


-जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ होता है। है। जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह लेने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

- इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है। जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

-जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।


- जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है। पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।

- दांतों, मसूढ़ों से खून आता हो, पानी लगता हो, मसूढ़े फूलते हों तो इसके पत्तों की राख को दांतों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं, दांत चमकीले बन जाते हैं।गला बैठ गया हो,  आवाज बेसुरी हो गयी हो, गले में छाले हो गये हों तो इसके पत्ते पानी में उबाल कर उसे थोड़ा ठंडा कर उससे गरारे करें।

- रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें। गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।
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दर्द भगाने की रामबाण दवा है ये खास पौधा.

गलियों और सड़कों के किनारे आक के पौधों को बहुतायत से देखा जा सकता है। इसका वानस्पतिक नाम कैलोट्रोपिस प्रोसेरा है। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके पत्ते, फूल और फल को भगवान शिव को भी चढ़ाया जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पौधा जहरीला होता हैं और इसकी थोड़ी सी मात्रा नशा भी पैदा करती हैं हलाँकि डाँगी आदिवासियों की मानी जाए तो इस पौधे को कृषि भूमि के पास लगाया जाए तों यह भूजल बढ़ाता है और इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती हैं। चलिए आज जानते हैं आक से जुडे आदिवासी हर्बल नुस्खों को..

यह बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पौधे से निकलने वाले दूध का उपयोग शारिरिक दर्द भगाने में किया जाता हैं, पातालकोट के आदिवासियों की मानें तो इसका दूध किसी भी प्रकार के दर्द को खींच लेता हैं।

आक की पत्तियों को सतहों पर सरसों के तेल को लगाकर आँच पर सेंका जाए और दर्द वाले हिस्सों पर इससे हल्की सेंकाई की जाए तो दर्द में आराम मिलता है।

आक की पत्तियों को तोडकर निकले दूध को चोट या घाव के आसपास लगाया जाए तो वह जल्दी ठीक हो जाता हैं।

इस पेड़ की जड़ और छाल को हाथीपांव, कुष्ठरोग और एक्जीमा जैसे रोगों को ठीक करने में उपयोग में लाया जाता हैं। इन्हें कुचलकर प्रभावित अंगों पर लगाया जाता है तो आराम मिलने लगता है।

इसके फूल अस्थमा, बुखार, सर्दी और टयूमर के इलाज में उपयोग में लाए जाते हैं। फूलों को सुखाकर चूर्ण तैयार कर लिया जाता है, अल्प मात्रा में फूलों का चूर्ण देने से इन तमाम समस्याओं में आराम मिलता है।

पातालकोट के आदिवासी इसकी जड़ का चूर्ण बनाकर मरीज को देते हैं, जिससे दमा, फेफड़े की बीमारियों और कमजोरी दूर होती हैं।

(भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।)

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थायराइड हो जाएं तो ये खाएं इन चीजों से बचें If you have thyroid then eat this and avoid these things

थायराइड ग्रंथि एवं इससे होने वाली समस्याओं के लक्षणों आदि की संक्षिप्त जानकारी मैंने इस श्रृंखला के पहले लेख में देने का प्रयास किया था ,आइए अब जानें थायरायड की समस्या से बचाव एवं सम्बंधित चिकित्सोपयोगी जानकारी -

-थायराइड से सम्बंधित समस्याओं के लिए सोया एवं इससे बने अन्य पदार्थों को विलेन नंबर 1 माना गया है, आधुनिक शोध इस बात को प्रमाणित भी कर रहे हैं कि लगभग एक तिहाई बच्चे जो ऑटोइम्यून थायरायड से सम्बंधित समस्याओं से पीडि़त होते है उनमें सोया-मिल्क या इससे बने अन्य पदार्थ एक बड़ा कारण हैं। आप यह जानते होंगे कि सोयाबीन हायड्रोजेनेटेडफैट एवं पालीअनसेचुरेटेड ऑयल का सबसे बड़ा स्रोत है।
-फूलगोभी,ब्रोकली एवं पत्ता गोभी स्वयं में गूट्रोजन पाए जाने के कारण थायरायड हार्मोन्स के प्रोडक्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

क्या खाएं :-

आयोडीन - थायराइड की समस्या में आयोडीन की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण होती है इसी न्युट्रीयंट पर थायरायड की कार्यकुशलता निर्भर करती है ढ्ढ पूरी दुनिया में ऑटोइम्यून कारणों से उत्पन्न होनेवाली थायरायड की समस्या को छोड़कर बांकी अधिकांश रोगियों में आयोडीन की कमी इस समस्या का मूल कारण है हालांकि आयोडाईज्ड नमक एवं प्रोसेस्ड भोज्य पदार्थों के कारण आज आयोडीन की कमी से उत्पन्न होनेवाली इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है।

विटामिन डी: - ऑटोइम्यून समस्या के कारण कम थायरोक्सिन बनना (हाशिमोटोडीजिज) एवं अधिक थायरोक्सिन बनना (ग्रेव्स डिजीज) दोनों ही स्थितियों में विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन आवश्यक होता है। अत: वैसे भोज्य पदार्थ जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन -डी पाया जाता हो जैसे :मछली,अंडे,दूध एवं मशरूम का सेवन करना चाहिए और यदि विटामिन -डी की मात्रा आवश्यक मात्रा से कम है तो इसे सप्लीमेंट के रूप में चिकित्सक के परामर्श से लेना चाहिए।

सेलीनियम: -थायराइड ग्रंथि में सेलीनियम उच्च सांद्रता में पाया जाता है इसे थायराइड-सुपर-न्युट्रीएंट भी कहा जाता है, यह थायराइड से सम्बंधित अधिकाँश एन्जायम्स का एक प्रमुख घटक द्रव्य है ,इससे थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता नियंत्रित होती है। सेलेनियम एक ऐसा आवश्यक सूक्ष्म तत्व है जिस पर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता सहित प्रजनन आदि अनेक क्षमतायें निर्भर करती है, अत: भोजन में पर्याप्त सेलीनियम थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता के लिए अत्यंत आवश्यक है जो अखरोट,बादाम जैसे सूखे लों में पाया जाता है।

-थायराइड की दवा लेते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि कोई ऐसा फ़ूड सप्लीमेंट जैसे केल्शियम सप्लीमेंट्स आदि इसके अवशोषण को बाधित कर सकता है अत: इनके लिए जाने के समय के बीच का अंतराल कम से कम चार घंटे का अवश्य ही होना चाहिए।

-डायबीटिक रोगियों में शुगर कंट्रोल करने के लिए दी जा रही दवा Chromium picolinate थायराईड की दवा के अवशोषण को बाधित कर सकती है अत: उपरोक्त दवा और थायराइड की दवा को लेने के बीच भी कम से कम तीन से चार घंटे का अंतर अवश्य ही होना चाहिए। फ्लेवनोइड्सयुक्त ल सब्जियां एवं चाय हृदय की कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर थायराइड की कार्यकुशलता को घटा देते हैं अत: इनका सेवन नियंत्रित मात्रा में ही किया जाना चाहिए।

- नियंत्रित व्यायाम हायपो थायराईडिज्म एवं हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में आवश्यक माना गया है। इससे वजन बढऩा,थकान एवं अवसाद जैसी स्थितियों से बचने में काफी मदद मिलती है।

-थायराइड के रोगियों के लिए धूम्रपान एक जहर की भाँति है, खासकर सिगरेट के धुएं में पाया जानेवाला थायोसायनेट थायराइड ग्रंथि को नुकसान पहुंचाने वाला एक बड़ा कारण है अत: एक्टिव एवं पेसिव स्मोकिंग से बचना अत्यंत आवश्यक है।

-कहीं न्यूक्लीयर -एक्सीडेंट हो जाने पर पोटेशियम-आयोडाईड एक ऐसा सप्लीमेंट है जो कुछ ही घंटों के बाद लोगों में बांटा जाता है ताकि थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर होने की संभावना को टाला जा सके ,रूस में चेर्नोबिल हादसे के बाद पोलेंड में इसे बड़ी मात्रा में लोगों के बीच बांटा गया जबकि यूक्रेन एवं रूस में समय रहते उतना वितरण नहीं हो पाया।.इन्हें कारणों से पोलेंड में चेर्नोबिल हादसे के बाद थायराइड की गड़बड़ी एवं थायराइड कैंसर की समस्या उतनी नहीं देखी गयी।

-फ्लोराइड एक ऐसा नाम जिससे आप सभी परिचित होंगे, हायपर-थायराईडिज्म यानि थायराइड की अतिसक्रियता की स्थिति में इसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है जो प्रभावी ढंग से थायराइड को अंडरएक्टिव बना देता है। आधुनिक फ्लोरिनेटेड संसार में जहां पानी, माउथ-वाश से लेकर टूथ-पेस्ट तक सब कुछ फ्लोरिनेटेड है के प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
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दिल के रोगों को दूर करने के लिए आदिवासी करते हैं इस आयुर्वेदिक नुस्खे का USE

अर्जुन का पेड़ आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है और यह धारियों-युक्त फलों की वजह से आसानी से पहचान आता है, इसके फल कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। अर्जुन का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना है। औषधीय महत्व से इसकी छाल और फल का ज्यादा उपयोग होता है। अर्जुन की छाल और फलों को दिल के रोगियों के लिए वरदान के रूप में देखा जाता है। आदिवासी इसे उच्चरक्तचाप और हृदय से जुडी समस्याओं के लिए अक्सर उपयोग में लाते हैं, चलिए जानते है हृदय की समस्याओं के निदान के लिए आदिवासी किस तरह से अर्जुन को उपयोग में लाते हैं।

अर्जुन छाल और जंगली प्याज के कंदो का चूर्ण समान मात्रा में तैयार कर प्रतिदिन आधा चम्मच दूध के साथ लेने से हृदय रोगों में हितकर होता है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर पीने से हृदय और उच्चरक्तचाप की समस्याओं में तेजी से आराम मिलता है। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप सामान्य हो जाता है।

हृदय रोगियों के लिए पुर्ननवा का पांचांग (समस्त पौधा) का रस और अर्जुन छाल की समान मात्रा बड़ी फाय़देमंद होती है।

आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फायदा होता है।

हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।

कहा जाता है कि यदि हृदयघात जैसा महसूस होने पर अर्जुन का चूर्ण जुबान पर रख लिया जाए तो तेजी से फ़ायदा करता है और एक हद तक हृदयाघात के बुरे असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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प्याज को इस तरह खाएंगे तो कभी नींद की गोली नहीं खानी पड़ेगी

कहते हैं स्वस्थ रहने के लिए भरपूर नींद लेना बहुत आवश्यक होता है। जो लोग पूरी नींद नहीं लेते उन्हें कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ता है। धीरे-धीरे उन्हें अनिद्रा की समस्या हो जाती है। कई बार अनियमित दिनचर्या या असंतुलित खानपान केे कारण भी अनिद्रा रोग सताने लगता है अगर आप भी अनिद्रा की समस्या से परेशान है तो हम बताते हैं आपको इस समस्या को दूर करने के कुछ खास नुस्खे.....

-प्याज को भूनकर उसे पीसकर रस निकाल लीजिए और दो बड़े चम्मच रस नियमित पीजिए, इससे नींद न आने की शिकायत दूर हो जाती है।

- सोने से करीब दो घंटे पहले रात का भोजन करना चाहिए। कभी भी खाना खाकर तुरंत नहीं सोना चाहिए और ना ही भारी-भरकम भोजन करना चाहिए, हमेशा रात का खाना हल्का होना चाहिए।

- अनिद्रा रोग में दूध का सेवन बहुत लाभकारी होता है। रात को सोने से पहले एक गिलास गुनगुना दूध पीएं, इससे शरीर को तुरंत शक्ति प्राप्त होती है। जिससे शरीर में स्फूर्ति आती है। मस्तिष्क तरोताजा हो जाता है परिणामस्वरूप नींद आसानी से आ जाती है।

- मीठे पदार्थो का सेवन नींद लाने में सहायक होता है। रोजाना रात को सोने से पहले पचास ग्राम गुड़ या कोई मीठी चीज खाने से अनिद्रा रोग का नाश होता है लेकिन डाइबिटीज के मरीजों को ये प्रयोग नहीं करना चाहिए।

- सुबह जल्दी उठकर किसी पार्क में घुमने जाएं, योगा करें। सुबह की धूप के नियमित सेवन से मिलैटोनिन नामक हारमोन के निर्माण में वृद्धि होती है, जो गहरी नींद में सहायक होता है।

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लौंग के कुछ घरेलू प्रयोग

लौंग एक ऐसा मसाला है जिसे उसके जबरदस्त फ्लेवर के कारण जाना जाता है। खाने के जिस भी व्यंजन में इसे मिलाया जाता है उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। लौंग सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाती बल्कि कई बीमारियों में जबरदस्त औषधि के रूप में भी काम करती है। लौंग में कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा जैसे तत्वों से भरपूर होता है। इसके अलावा लौंग में खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, विटामिन सी और ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं तीखी लौंग के ऐसे ही कुछ प्रयोग जो आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।

- सिर दर्द, दांत दर्द व गठिया में लौंग के तेल का लेप करने से शीघ्र लाभ मिलता है।

- गर्भवती स्त्री को अगर ज्यादा उल्टियां हो रही हों तो लौंग का चूर्ण शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।

- लौंग का तेल मिश्री पर डालकर सेवन करने से पेटदर्द में लाभ होता है।

- एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फांक लें। इस तरह तीन बार लेने से सामान्य बुखार दूर हो जाएगा।

- लौंग दमा रोगियों के लिए विशेषरूप से लाभदायक है। लौंग नेत्रों के लिए हितकारी, क्षय रोग का नाश करने वाली है।

- लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।

- चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने से बुखार ठीक हो जाती है।

- खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह-शाम खाने से एसीडिटी ठीक हो जाती है।

-15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं इससे एसीडिटी ठीक हो जाता है।

- लौंग को गरम कर जल में घिसकर माथे पर लगाने से सिर दर्द गायब हो जाता है।

- लौंग को पीसकर एक चम्मच शक्कर में थोड़ा-सा पानी मिलाकर उबाल लें व ठंडा कर लें। इसे पीने से उल्टी होना व जी मिचलाना बंद हो जाता है।

- लौंग सेंककर मुंह में रखने से गले की सूजन व सूखे कफ का नाश होता है।

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अमरबेल से जुडे आदिवासी हर्बल नुस्खे, जानिए और कहिए अरे वाह!

जंगलों, सड़क, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड़ पर यह लग जाती है, वह पेड़ धीरे धीरे सूखने लगता है। इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। आदिवासी अंचलों में अमरबेल को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है, चलिए जानते हैं आज अमरबेल से जुडे हर्बल नुस्खों और आदिवासी जानकारियों को..

पूरे पौधे का काढ़ा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता है। आदिवासियों के अनुसार यह काढा घावों पर लगाया जाए तो यह घाव को पकने नहीं देता है।

बरसात में पैर के उंगलियों के बीच सूक्ष्मजीवी संक्रमण या घाव होने पर अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।

अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। यह मिश्रण एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है।

- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध देते है। इनके अनुसार यह दर्द निवारक की तरह कार्य करता है।

गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यदि आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो बाल पुन: उगने लगते है।

डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।
डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।

पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मुँह और पेट के कैंसर या ट्युमर में इस पौधे का काढा आराम दिलाता है, आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।

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चाय भी एक जबरदस्त हर्बल मेडिसिन है, जानिए और कहिए WOW!

चाय हर इंसान की जिंदगी का अहम हिस्सा है, कहा जाता है कि दिन का शुरुआत चाय पीकर की जाए तो शरीर में ताजगी आ जाती है, वैसे चाय अतिथीयों के सत्कार का प्रतीक है। चाय की पत्तियों मुख्य रसायन कैफीन है जिसका असर मूत्रवर्धक, नाड़ी तंत्र की उत्तेजना और समस्त मांसपेशियों में बल देने में होता है। चाय का वानस्पतिक नाम केमेलिया सायनेन्सिस है। चाय पाचनशक्ति को जगाती है और यह भोजन रुचि को उत्पन्न करती है। चाय आदिवासियों की जिंदगी का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे अनेक हर्बल नुस्खों में बतौर नुस्खा भी अपनाया जाता है, चलिए आज जानते है चाय से जुडे हर्बल नुस्खों के बारे में..

रक्त अल्पता के रोगी यदि अनंतमूल, दालचीनी और सौंफ़ की समान मात्रा लेकर चाय के साथ उबालकर कम से कम दिन में एक बार सेवन करें तो रक्त शुद्धी के साथ-साथ रक्त बनने की प्रक्रिया में तेजी आती है।

अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप भी सामान्य हो जाता है।

कॉलेस्ट्राल कम करने के लिए एक कप चाय के पानी में दो ग्राम शहद और तीन ग्राम दालचीनी की छाल का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से यह अतिलाभकारी होता है।

आदिवासियों का मानना है कि यह त्वचा और मूत्राशय को प्रभावित कर पसीना और पेशाब बहुत अधिक मात्रा में लाती है।

इन आदिवासियों के अनुसार ज्यादा देर तक उबली चाय का सेवन किया जाए तो मोटापा कम होता है और वैज्ञानिक तथ्य भी यही कहते है कि चाय को ज्यादा देर तक उबाला जाए तो टैनिन रसायन निकल आता है और यह रसायन पेट की भीतरी दीवार पर जमा हो भूख को मार देता है। हलाँकि पातालकोट के आदिवासी चाय के साथ पोदीना की पत्तियों को उबालकर पीने की सलाह देते है जिससे मोटापा कम करने में मदद मिलती है।

यदि त्वचा या शरीर का कोई अंग जल जाए तो चाय की पत्तियों को उबालकर इस पानी को सूती कपड़े या रूई से जले हिस्से पर लगाने से फ़फ़ोले नही पड़ते।

चाय की पत्तियों को मख्खन के साथ पीसकर इसे बवासीर के मस्सों पर लगायें तो मस्से सूखकर गिरने लगते हैं।

अगर जुकाम सूखा हो और बलगम गाढ़ा, पीला, बदबूदार हो या सिर में दर्द हो तो चाय में अदरख और मुलेठी डालकर पीने से तुरंत आराम आ जाता है।

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