‘ देवो भूत्वा देवं यजेत ’
यह उपासना का मुख्य सिद्दांत है और इसका ‘उप ’ अर्थात समीप , ‘आसन ’ अर्थात स्थित होना अर्थ है I जिस उपासना द्वारा अपने इष्टदेव में उनकी गुण -धर्म -रूप शक्तियों में सामीप्य -संबध स्थापित होकर तदाकर्ता हो जाये , अभेद -संबध हो जाये , यही उसका तात्पर्य एवं उद्देश्य है I
आज की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य मात्र के लिए , विशेषतया युवकों एवं बालकों के लिए भगवन हनुमान की उपासना अत्यंत अवश्यक है I हनुमान जी बुधि -बल -शौर्य प्रदान करते हैं और उनके स्मरण मात्र से अनेक रोगों का प्रशमन होता है I मानसिक दुर्बलताओं के संघर्ष में उनसे सहायता प्राप्त होती है गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन में उन्हीं से सहायता प्राप्त हुई थी!
वे आज जहाँ भी श्री राम कथा होती है , वहां पहुंचते हैं और मस्तक झुकाकर , रोमांच - कंटकित होकर , नेत्रों में अश्रू भरकर श्री राम कथा का सiदर श्रवण करते हैं !
हनुमान जी भगवत्त तत्व विज्ञानं , पराभक्ति और सेवा के ज्वलंत उधारण हैं!
यह उपासना का मुख्य सिद्दांत है और इसका ‘उप ’ अर्थात समीप , ‘आसन ’ अर्थात स्थित होना अर्थ है I जिस उपासना द्वारा अपने इष्टदेव में उनकी गुण -धर्म -रूप शक्तियों में सामीप्य -संबध स्थापित होकर तदाकर्ता हो जाये , अभेद -संबध हो जाये , यही उसका तात्पर्य एवं उद्देश्य है I
आज की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य मात्र के लिए , विशेषतया युवकों एवं बालकों के लिए भगवन हनुमान की उपासना अत्यंत अवश्यक है I हनुमान जी बुधि -बल -शौर्य प्रदान करते हैं और उनके स्मरण मात्र से अनेक रोगों का प्रशमन होता है I मानसिक दुर्बलताओं के संघर्ष में उनसे सहायता प्राप्त होती है गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन में उन्हीं से सहायता प्राप्त हुई थी!
वे आज जहाँ भी श्री राम कथा होती है , वहां पहुंचते हैं और मस्तक झुकाकर , रोमांच - कंटकित होकर , नेत्रों में अश्रू भरकर श्री राम कथा का सiदर श्रवण करते हैं !
हनुमान जी भगवत्त तत्व विज्ञानं , पराभक्ति और सेवा के ज्वलंत उधारण हैं!