विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
बढ़ती तोंद अगर इन दिनों आपके जीवन का सबसे बड़ा तनाव है और इसे कम करने की मशक्कत में पसीना बहाकर आप तंग आ चुके हैं तो हमारे पास आपके लिए तीन आसान एक्सरसाइज हैं। हेल्दी डाइट और रोज सुबह 20 मिनट की सैर यकीनन आपके पेट की चर्बी घटाने में कारगर होगी।
1. साइकिल क्रंच जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं और दोनों हाथों को सिर के नीचे लगाएं। अब पैरों से हवा में साइकिल चलाने का अभ्यास करें, साथ ही शरीर के ऊपरी हिस्से को उसी अवस्था में ऊपर उठाएं कि कोहनी से घुटने छूने चाहिए। तीन मिनट तक इसका अभ्यास दिन में कम से कम दो बार करें।
2. बोट स्टाइल 'बोट' यानी नाव के आकार में शरीर को स्ट्रेच करने की यह एक्सरसाइज पेट का फैट कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके लिए जमीन पर बैठ जाएं, दोनों पैर सीधे होने चाहिए। अब दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए सांस खींचें और झुकते हुए दोनों पंजों को हाथों से छुएं। कोशिश करें कि आपके कंधों से घुटने छूने चाहिए। रोज दिन में तीन बार यह एक्सरसाइज करें।
3. प्लैंक पेट के बल सीधे लेट जाएं जिससे पंजे और माथा जमीन पर टिका हो। अब पंजों और हाथों के बल शरीर को ऊपर उठाएं जिससे शरीर का भार इन पर ही पड़े। 10 सेकंड तक इसी अवस्था में रहने के बाद सामान्य अवस्था में आ जाएं। दिन में तीन बार इसे करें।
रोज इन्हें अपने रुटीन में शामिल करेंगे तो वाकई फर्क महसूस करेंगे।
बालों के रोग : -आंवले का चूर्ण पानी में भिगोकर रात्रि में रख दें। सुबह इस पानी से रोजाना बाल धोने से उनकी जड़े मजबूत होंगी, उनकी सुंदरता बढ़ेगी और मेंहदी मिलाकर बालों में लगाने से वे काले हो जाते हैं। "पेशाब की जलन : -* आधा कप आंवले के रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर पिएं। * हरे आंवले का रस 50 ग्राम, शक्कर या शहद 25 ग्राम थोड़ा पानी मिलाकर सुबह-शाम पीएं। यह एक खुराक का तोल है। इससे पेशाब खुलकर आयेगा जलन और कब्ज ठीक होगी। इससे शीघ्रपतन भी दूर होता है।"
"हकलाहट, तुतलापन : -* बच्चे को 1 ताजा आंवला रोजाना कुछ दिनों तक चबाने के लिये दें। इससे जीभ पतली, आवाज साफ, हकलाना और तुतलापन दूर होता है। * हकलाने और तुतलाने पर कच्चे, पके हरे आंवले को कई बार चूस सकते हैं।"
खून के बहाव (रक्तस्राव) : -स्राव वाले स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाएं, स्राव बंद हो जाएगा।
धातुवर्द्धक (वीर्यवृद्धि) : -एक चम्मच घी में दो चम्मच आंवले का रस मिलाकर दिन में 3 बार कम-से-कम 7 दिनों तक ले सकते हैं।
पेशाब रुकने पर : -कच्चे आंवलों को पीसकर बनी लुग्दी पेडू पर लगाएं।
आंखों (नेत्र) के रोग में : -* लगभग 20-50 ग्राम आंवले के फलों को अच्छी तरह से पीसकर 2 घंटे तक आधा किलो ग्राम पानी में उबालकर उस जल को छानकर दिन में 3 बार आंखों में डालने से आंखों के रोगों में बहुत लाभ होता है। * वृक्ष पर लगे हुये आंवले में छेद करने से जो द्रव पदार्थ निकलता है। उसका आंख के बाहर चारों ओर लेप करने से आंख के शुक्ल भाग की सूजन मिटती है। * आंवले के रस को आंखों में डालने अथवा सहजन के पत्तों का रस 4 ग्राम तथा सेंधानमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग इन्हें एक साथ मिलाकर आंखों में लगाने से शुरुआती मोतियाबिंद (नूतन अभिष्यन्द) नष्ट होता है। * लगभग 6 ग्राम आंवले को पीसकर ठंडे पानी में भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उन आंवलों को निचोड़कर फेंक दें और उस जल में फिर दूसरे आंवले भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उनको भी निचोड़ कर फेंक दें। इस प्रकार 3-4 बार करके उस पानी को आंखों में डालना चाहिए। इससे आंखो की फूली मिटती है। * आंवले का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आंवले के साथ हरा धनिया पीसकर खाने से भी आंखों के रोग में लाभ होता है"
सुन्दर बालों के लिए : -* सूखे आंवले 30 ग्राम, बहेड़ा 10 ग्राम, आम की गुठली की गिरी 50 ग्राम और लौह चूर्ण 10 ग्राम, रात भर कढाई में भिगोकर रखें। बालों पर इसका रोजाना लेप करने से छोटी आयु में सफेद हुए बाल कुछ ही दिनों में काले पड़ जाते हैं। * आंवले, रीठा, शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते हैं। * आंवले और आम की गुठली की मज्जा को साथ पीसकर सिर में लगाने से मजबूत लंबे केश पैदा होते हैं।
आवाज का बैठना : -* अजमोद, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक इनको समान मात्रा में मिलाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु और 1 चम्मच घी के साथ चाटने से आवाज का बैठना ठीक हो जाता है। * एक चम्मच पिसे हुए आंवले को गर्म पानी से फंकी लेने से बैठा हुआ गला खुल जाता है और आवाज साफ आने लगती है। * कच्चे आंवले बार-बार चूस-चूसकर खाएं।
हिक्का (हिचकी) : -* पिपली, आंवला, सोंठ इनके 2-2 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर बार-बार प्रयोग करने से हिचकी तथा श्वास रोग शांत होते हैं। * आंवले के 10-20 ग्राम रस और 2-3 ग्राम पीपल का चूर्ण, 2 चम्मच शहद के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है। * 10 ग्राम आंवले के रस में 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण और 5 ग्राम शहद मिलाकर चाटने से हिचकियों से राहत मिलती है। * आंवला, सोंठ, छोटी पीपल और शर्करा के चूर्ण का सेवन करने से हिचकी नहीं आती है। * आंवले के मुरब्बे की चाशनी के सेवन से हिचकी में बहुत लाभ होता है।
एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था । किन्तु किसी गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्युहो गयी । अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया । जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा, “बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमतका पता लगाओ | लेकिन ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है |”
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली |
”अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा |
”देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो | तौलने के काम आएगा |”- सब्जी वाली बोली ।
युवक आगे बढ़ गया । इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही ।
दुकानदार बोला, ” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ, देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ” |
युवक इस बार एक सुनार के पास गया, सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की |
फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला |
और अंत में युवक शहर के सबसेबड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला,” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें” |
विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला, ”यह तो एक अमूल्य हीरा है | करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है” |
यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है | यह अलग बात है कि हम में से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझ तुच्छ कामो में लगा देते हैं ।
आइये हम प्रार्थना करें कि परमेश्वर सभी को इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें .
ग्रामीण अंचलों में सब्जी के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफ़िल्लस है। कटहल के फलों में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बोहाईड्रेड्स के अलावा विटामिन्स पाए जाते है। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल के फलों का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। आदिवासी अंचलों में कटहल का उपयोग अनेक रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
चलिए आज जानते हैं कुछ ऐसे ही चुनिन्दा हर्बल नुस्खों के बारे में..
कटहल के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
अल्सर में है बेहतरीन दवा कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी होती है। हरी ताजा पत्तियों को साफ धोकर सुखा लिया जाए। सूखने के बाद पत्तियों का चूर्ण तैयार किया जाए और पेट के अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति को इस चूर्ण को खिलाया जाए तो आराम मिलता है।
मुंह के छालों में असरदार जिन्हें मुंह में बार-बार छाले होने की शिकायत हो उन्हें कटहल की कच्ची पत्तियों को चबाकर थूकना चाहिए, आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह छालों को ठीक कर देता है।
खाना जल्दी पचा देता है पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए। इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फ़ायदा मिलता है।
जोड़ों के दर्द में रामबाण फल के छिलकों से निकलने वाला दूध यदि गांठनुमा सूजन, घाव और कटे-फ़टे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है। इसी दूध से जोड़ दर्द होने पर जोड़ों पर मालिश की जाए तो आराम मिलता है।
डायबिटीज में लाभदायक डांग- गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह डायबिटीज के रोगियों को देते है। यही रस हाईब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए भी उत्तम है।
गले के रोगों को मिटा देता है कटहल पेड़ की ताजी कोमल पत्तियों को कूट कर छोटी-छोटी गोली बनाकर लेने से गले के रोग में फायदा होता है।
कब्ज को खत्म करता है पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार पके फलों का ज्यादा सेवन करने से पेट साफ होता है और अपचन की समस्या का निवारण हो जाता है।
जो लोग करेले की सब्जी को शौक से नहीं खाते वह भी इसके अचूक गुणों के कारण मुरीद हो जाते हैं। प्रति 100 ग्राम करेले में लगभग 92 ग्राम नमी होती है। साथ ही इसमें लगभग 4 ग्राम कार्बोहाइडेट, 15 ग्राम प्रोटीन, 20 मिलीग्राम कैल्शियम, 70 मिलीग्राम फस्फोरस, 18 मिलीग्राम, आयरन तथा बहुत थोड़ी मात्रा में वसा भी होती है। इसमें विटामिन ए तथा सी भी होती है जिनकी मात्रा प्रति 100 ग्राम में क्रमश: 126 मिलीग्राम तथा 88 मिलीग्राम होती है। - करेला मधुमेह में रामबाण औषधि का कार्य करता है, छाया में सुखाए हुए करेला का एक चम्मच पावडर प्रतिदिन सेवन करने से डायबिटीज में चमत्कारिक लाभ मिलता है क्योंकि करेला पेंक्रियाज को उत्तेजित कर इंसुलिन के स्रावण को बढ़ाता है। - विटामिन ए की उपस्थिति के कारण इसकी सब्जी खाने से रतौंधी रोग नहीं होता है। जोड़ों के दर्द में करेले की सब्जी का सेवन व जोड़ों पर करेले के पत्तों का रस लगाने से आराम मिलता है। - करेले के तीन बीज और तीन कालीमिर्च को पत्थर पर पानी के साथ घिसकर बच्चों को पिलाने से उल्टी-दस्त बंद होते हैं।करेले के पत्तों को सेंककर सेंधा नमक मिलाकर खाने से अम्लपित्त के रोगियों को भोजन से पहले होने वाली उल्टी बंद होती है। - करेला खाने वाले को कफ की शिकायत नहीं होने पाती। इसमें प्रोटीन तो भरपूर पाया जाता है। इसके अलावा करेले में कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन पाए जाते हैं। करेले की छोटी और बड़ी दो प्रकार की प्रजाति होती है, जिससे इनके कसैलेपन में भी अंतर आता है। - करेले का रस और 1 नींबू का रस मिलाकर सुबह सेवन करने से शरीर की चर्बी कम होती है और मोटापा कम होता है। पथरी रोगी को 2 करेले का रस प्रतिदिन पीना चाहिए और इसकी सब्जी खाना चाहिए। इससे पथरी गलकर पेशाब के साथ बाहर निकल जाती है। - लकवे के रोगियों को करेला जबरदस्त फायदा पहुंचाता है। दस्त और उल्टी की शिकायत की सूरत में करेले का रस निकालकर उसमें काला नमक और थोड़ा पानी मिलाकर पीने से फायदा देखा गया है।
परिचय :बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तूक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे पत्ते होने के भेद से दो प्रकार का होता है। बथुए के पौधे 1 हाथ से लेकर कहीं-कहीं चार हाथ तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते मोटे, चिकने, हरे रंग के होते हैं। बडे़ बथुए के पत्ते बड़े होते हैं और पुष्ट होने पर लाल रंग के हो जाते हैं। बथुए के पौधे गेहूं तथा जौ के खेतों में अपने आप उग जाते हैं। इसके फूल हरे होते हैं। इसमें काले रंग के बीज निकलते हैं। बथुआ एक मशहूर साग है। इसमें लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है। यह पथरी होने से बचाता है। आमाशय को बलवान बनाता है। अगर गर्मी से बढ़े हुए लीवर को ठीक करना है तो बथुए का प्रयोग करें। बथुए का साग जितना ज्यादा खाया जाये उतना ही फायदेमंद और लाभदायक है। बथुआ के साग में कम से कम मसाला और नमक डालकर या नमक न ही मिलायें और खाया जाये तो फायदेमंद होता है। यदि स्वादिष्ट बनाने की जरूरत पड़े तो सेंधानमक मिलायें और गाय या भैंस के घी में छौंका लगायें। बथुआ का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है और दही में बनाया हुआ रायता भी स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ को रोज खाना चाहिए। बथुआ के पराठे भी बनाये जाते हैं जो ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं तथा इसको उड़द की दाल में बनाकर भी खाया जाता है। बथुआ वीर्यवर्धक है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी बथुआ, रक्त बथुआ संस्कृत वास्तूक, क्षारपत्र बंगाली वेतुया फारसी मुसेलसा सरमक अंग्रेजी व्हाइट गूज फुट
गुण : बथुआ जल्दी हजम होता है, यह खून पैदा करता है। इससे गर्म स्वभाव वालों को अत्यंत फायदा होता है। यह प्यास को शांत करता है। इसके पत्तों का रस गांठों को तोड़ता है, यह प्यास लाता है, सूजनों को पचाता है और पथरी को गलाता है। छोटे-बड़े दोनों प्रकार के बथुवा क्षार से भरे होते हैं यह वात, पित्त, कफ (बलगम) तीनों दोषों को शांत करता है, आंखों को अत्यंत हित करने वाले मधुर, दस्तावर और रुचि को बढ़ाने वाले हैं। शूलनाशक, मलमूत्रशोधक, आवाज को उत्तम और साफ करने वाले, स्निग्ध पाक में भारी और सभी प्रकार के रोगों को शांत करने वाले हैं। चिल्ली यानी लाल बथुआ गुणों में इन दोनों से अच्छा है। लाल बथुआ गुणों में बथुए के सभी गुणों के समान है। बथुवा, कफ (बलगम) और पित्त को खत्म करता है। प्रमेह को दबाता है, पेशाब और सुजाक के रोग में बहुत ही फायदेमंद है।
विभिन्न रोंगों का बथुआ से उपचार :
1 पेट के रोग में :-जब तक बथुआ की सब्जी मिलती रहे, रोज इसकी सब्जी खांयें। बथुए का उबाला हुआ पानी पीयें। इससे पेट के हर प्रकार के रोग लीवर (जिगर का रोग), तिल्ली, अजीर्ण (पुरानी कब्ज), गैस, कृमि (कीड़े), दर्द, अर्श (बवासीर) और पथरी आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
2 पथरी :-1 गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर रोज पीने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
3 कब्ज : -बथुआ आमाशय को ताकत देता है और कब्ज को दूर करता है। यह पेट को साफ करता है। इसलिए कब्ज वालों को बथुए का साग रोज खाना चाहिए। कुछ हफ्ते लगातार बथुआ का साग खाते रहने से हमेशा होने वाला कब्ज दूर हो जाता है।
4 जुंए :-*बथुआ के पत्तों को गर्म पानी में उबालकर छान लें और उसे ठंडा करके उसी पानी से सिर को खूब अच्छी तरह से धोने से बाल साफ हो जायेंगे और जुएं भी मर जायेंगी। *बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर को धोने से जुंए मर जाती हैं और सिर भी साफ हो जाता है।"
5 मासिक-धर्म की रुकावट :-2 चम्मच बथुआ के बीज को 1 गिलास पानी में उबालें। उबलने पर आधा पानी बचने पर इसे छानकर पीने से रुका हुआ मासिक-धर्म खुलकर आता है।
6 आंखों की सूजन पर : -रोजाना बथुए का साग खाने से आंखों की सूजन दूर हो जाती है।
7 सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़ा, कुष्ठ और त्वचा रोग में : -बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीये और सब्जी साग बना कर खायें। बथुए के उबले हुए पानी से त्वचा को धोयें। बथुआ के कच्चे पत्ते पीसकर निचोड़कर रस निकालें। 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की आग पर गर्म करें। जब रस खत्म होकर तेल रह जाये तब छानकर किसी साफ साफ शीशी में सुरक्षित रख लें और त्वचा पर रोज लगायें। इस प्रयोग को लम्बे समय तक करने से सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़ा, कुष्ठ और त्वचा रोग के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
8 फोड़े :-बथुए को पीसकर इसमें सोंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेंकें। सेंकने के बाद इसे फोड़े पर बांध लें इस प्रयोग से फोड़ा बैठ जायेगा या पककर जल्दी फूट जायेगा।
9 जलन :-आग से जले अंग पर कच्चे बथुए का रस बार-बार लगाने से जलन शांत हो जाती है।
10 गुर्दे के रोगों में :-गुर्दे के रोग में बथुए का साग खाना लाभदायक होता है अगर पेशाब रुक-रुककर आता हो, या बूंद-बूंद आता हो, तो बथुए का रस पीने से पेशाब खुलकर आता है।
11 पेशाब के रोग :-आधा किलो बथुआ और 3 गिलास पानी लेकर उबालें, और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिलाकर लें। इसमें स्वादानुसार नींबू, जीरा, जरा-सी कालीमिर्च और सेंधानमक मिलाकर पी जायें। इस प्रकार तैयार किया हुआ पानी दिन में 3 बार पीयें। इससे पेशाब में जलन, पेशाब कर चुकने के बाद होने वाला दर्द ठीक हो जाता है। दस्त साफ आते हैं। पेट की गैस, अपच (भोजन न पचना) दूर होती है। पेट हल्का लगता है। उबले हुए पत्ते भी दही में मिलाकर खाने से बहुत ही स्वादिष्ट लगते हैं।
12 कब्ज :-*बथुआ की सब्जी बनाकर रोजाना खाते रहने से कब्ज की शिकायत कभी नहीं होती है। बथुआ आमाशय को ताकत देता है और शरीर में ताकत व स्फूर्ति लाता है। *बथुआ को उबालकर उसमें इच्छानुसार चीनी मिलाकर एक गिलास सुबह और शाम पीने से कब्ज में आराम मिलता है। *बथुआ के पत्तों का 2 चम्मच रस को रोजाना पीने से कब्ज दूर हो जाती है। *बथुआ का साग, रस और इसका उबला हुआ पानी पीने से कब्ज ठीक हो जाती है। *बथुआ और चौलाई की पकी सब्जी को मिलाकर सेवन करने से कब्ज समाप्त हो जाती है।"
13 गर्भनिवारक योग :-बथुआ के बीज 20 ग्राम की मात्रा में लेकर आधे किलो पानी में पकाते हैं। पकने पर इसे आधा रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही औरत को पिला देते हैं। इससे गर्भ बाहर आ जाएगा। एक इन्द्रायण (इंडोरन) को पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में पकाते हैं। पक जाने पर इसे निचोड़कर रस निचोड़ लेते हैं। रूई का फोहा इस पानी में भिगोकर योनि में बांधना चाहिए। इससे मृतक बच्चा भी गर्भ से बाहर आ जाएगा। यदि इंडोरन ताजी हो तो पकाने की जरूरत नहीं है। इसके रस को गर्म करके सेवन करना चाहिए।
14 गर्भपात : -बथुआ के 20 बीज को लगभग 200 मिलीलीटर पानी में उबालते हैं। इसके बाद इसके एक चौथाई रह जाने पर इसे पीने से गर्भपात हो जाता है।
15 दस्त :-बथुआ के पत्तों को लगभग 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर उसे 2 चम्मच की मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी-सी चीनी मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सुबह और शाम पिलाने से दस्त में लाभ मिलता है।
16 कष्टार्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) : -5 ग्राम बथुए के बीजों को 200 मिलीलीटर पानी में खूब देर तक उबालें। उबलने पर 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाने पर इसे छानकर पीने से मासिक-धर्म के समय होने वाली पीड़ा नहीं होती है।
17 बवसीर (अर्श) :-बथुआ का साग और बथुआ को उबालकर उसका पानी पीने से बवासीर ठीक हो जाती है।
18 जिगर का रोग :-बथुआ, छाछ, लीची, अनार, जामुन, चुकन्दर, आलुबुखारा, के सेवन करने से यकृत (जिगर) को शक्ति मिलती है और इससे कब्ज भी दूर हो जाती है।
19 आमाशय की जलन :-बथुआ को खाने से आमाशय की बीमारियों से लड़ने के लिए रोगी को ताकत मिलती है।
20 अम्लपित्त के लिए :-बथुआ के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ पीने से आमाशय की गंदगी साफ हो जाती है और यह पित्त को बाहर निकाल देता है।
21 प्रसव पीड़ा :-बथुए के 20 ग्राम बीज को पानी में उबालकर, छानकर गर्भवती स्त्री को पिला देने से बच्चा होने के समय पीड़ा कम होगी।
22 अनियमित मासिकस्राव :-50 ग्राम बथुआ के बीजों को लेकर लगभग आधा किलो पानी में उबालते हैं। जब यह पानी 250 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो उसका सेवन करना चाहिए। इसे तीन दिनों तक नियमित रूप से सेवन करने से माहवारी खुलकर आने लगती है।
23 पेट के सभी प्रकार के रोग :-बथुआ की सब्जी मौसम के अनुसार खाने से पेट के रोग जैसे- जिगर, तिल्ली, गैस, अजीर्ण, कृमि (कीड़े) और बवासीर ठीक हो जाते हैं।
24 पेट के कीड़ों के लिए : -*बथुआ को उबालकर उसका आधा कप रस निकालकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। *1 कप कच्चे बथुआ के रस में इच्छानुसार नमक मिलाकर रोजाना पीने से पेट के कीड़ें खत्म हो जाते हैं। *बथुआ के बीजों को पीसकर 1 चम्मच शहद में मिलाकर चाटने से पेट के कीड़े दूर हो जाते हैं। *बथुए का रस निकालकर पीने से पेट के कीड़ें मर जाते हैं। *चम्मच बथुए का रस रोजाना सुबह और शाम बच्चों को पिलाने से उनके पेट मे कीड़े नहीं होते हैं। *बथुए के बीज को 1 चम्मच पिसे हुए शहद में मिलाकर चाटने से भी लाभ होता है तथा रक्तपित्त का रोग भी ठीक हो जाता है।"
25 प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) : -बथुए को उबालकर उसका उबला हुआ पानी पीने या कच्चे बथुए के रस में नमक डालकर पीने से तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने का रोग ठीक हो जाता है।
26 नकसीर : -नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में 4-5 चम्मच बथुए का रस पीने से लाभ होता है।
27 त्वचा के रोग के लिए :-चमड़ी के रोगों में बथुए को उबालकर निचोड़ लें और इसका रस निकाल कर पी लें और सब्जी को खा लें। बथुए के उबले हुए पानी से चमड़ी को धोने से भी त्वचा के रोगों में लाभ होता है। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर और निचोडकर उसका रस निकाल लें। इस 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर पका लें। जब रस जलकर तेल ही बचा रह जाये तो इसे छानकर त्वचा के रोगों पर काफी समय तक लगाने से लाभ होता है।
28 खाज-खुजली : -*रोजाना बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस निकालकर पीयें और सब्जी खायें। इसके पानी से त्वचा को धोने से भी खाज-खुजली में लाभ होता है। *4 भाग कच्चे बथुए का रस और 1 भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म कर लें जब पानी जलकर सिर्फ तेल रह जाये तो उस तेल की मालिश करने से खुजली दूर हो जाती है।"
29 हृदय रोग :-बथुए की लाल पत्तियों को छांटकर उसका लगभग आधा कप रस निकाल लें। इस रस में सेंधानमक डालकर सेवन करने से दिल के रोगों में आराम आता है।
30 पीलिया का रोग :-100 ग्राम बथुए के बीज को पीसकर छान लें। 15-16 दिन तक रोजाना सुबह आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
31 दाद के रोग में :-बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस पी लें और इसकी सब्जी खा लें। उबले हुए पानी से त्वचा को धोएं। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर, निचोड़कर उसका रस निकाल लें। 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर पका लें। जब रस जल जायें और बस तेल बाकी रह जाये तो तेल को छानकर शीशी में भर लें और त्वचा के रोगों में लम्बे समय तक लगाते रहने से दाद, खाज-खुजली समेत त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
32 विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-बथुआ, सौंठ और नमक को एक साथ पीसकर इसके लेप को गीले कपड़े में बांधकर इसके ऊपर मिट्टी का लेप कर दें और इसे आग पर रख कर सेंक लें। फिर इसे खोलकर गर्म-गर्म ही फुंसियों पर बांध लें। इससे फुंसियों का दर्द कम होगा और मवाद बाहर निकल जायेगी।
33 जलने पर :-*बथुए के पत्तों पर पानी के छींटे मारकर पीस लें और शरीर के जले हुए भागों पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और दर्द भी समाप्त होता है। *शरीर के किसी भाग के जल जाने पर बथुआ के पत्तों को पीसकर लेप करने से जलन मिट जाती है।"
34 सफेद दाग होने पर : -बथुआ की सब्जी खाने से सफेद दाग में लाभ होता है। इसका रस निकालकर सफेद दागों पर लगाने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं। बथुआ को रोजाना उबालकर निचोड़कर इसका रस निकालकर पी लें और इसकी सब्जी बनाकर खायें। बथुए के उबले हुए पानी से त्वचा को धोयें। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर निचोड़ लें और उसका रस निकाल लें। 2 कप बथुए के पत्तों के रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर रख दें। जब रस पूरी तरह जल जाये और बस तेल बाकी रह जाये तो तेल को छानकर शीशी में भर लें और रोजाना सफेद दागों पर लगायें। लगातार यह तेल लगाने से समय तो ज्यादा लगेगा पर सफेद दाग ठीक हो जायेंगे।
35 शरीर का शक्तिशाली होना : -बथुआ को साग के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। पत्तों के साग में बथुआ का साग सबसे अधिक फायदेमंद और सेहतमंद होता है। इसका सेवन निरंतर रूप से करने से मनुष्य की मर्दानगी बढ़ती है, खून में वृद्धि होती है, याददाश्त तेज होती है, आमाशय मजबूत होता है, पथरी से बचाव होता है, कब्ज और पेट में होने वाली जलन से छुटकारा मिल जाता है। हरे बथुए का सेवन अधिक लाभकारी होता है। अगर हरा बथुआ न मिले तो इसे सूखाकर रोटी में मिलाकर खाने से बहुत लाभ मिलता है।
दिल से होते मन में बसते चाहे अनचाहे अनजाने में बनते किसी रिश्ते से कम नहीं होते निरंतर मिलने की ख्वाइश तो होती मुलाक़ात हो ना हो दूरियां उनमें खलल नहीं डालती नजदीकियां दिल की होती इक कसक दोनों तरफ होती दिल से दुआ एक दूजे के लिए निकलती कमी दिल में सदा खलती याद से रौनक चेहरे पर आती जहन में सुखद अनुभूती होती कुछ रिश्ते........
ही आम समस्या है जो कभी वायरल फीवर के रूप में तो कभी घातक मलेरिया बनकर अलग-अलग नामों से यह सभी को अपनी चपेट में ले ही लेता है। लेकिन अधिकतर लोग सामान्य बुखार में डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं, ऐसे में बिना डॉक्टर के परामर्श दवा खाने से अच्छा है कि आप घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाएं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं नानी का एक खास औषधि। इस औषधि को चिरायता कहा जाता है। कैसा भी बुखार हो चिरायता एक ऐसी देहाती जड़ी- बूटी मानी जाती है जो कुनैन की गोली से अधिक प्रभावी होती है। एक प्रकार से यह एक देहाती घरेलू नुस्खा है।पहले चिरायते को घर में सुखा कर बनाया जाता था लेकिन आजकल यह बाजार में कुटकी चिरायते के नाम से भी मिलता है। लेकिन घर पर बना हुआ ताजा और विशुद्ध चिरायता ही अधिक कारगर होता है।
*चिरायता बनाने की विधि- 100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें। मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा। कारगर
*एंटीबॉयोटिक- बुखार ना होने की स्थिति में भी यदि इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें तो यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु मर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।
वजन या मोटी कमर से परेशान हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसा नेचुरल उपाय जिसे अपनाकर आप अपनी कमर को एकदम पतली और फिट बना सकते हैं। कमर पतली करने का सबसे कारगर उपाय है गरुड़ासन। इस आसन से कमर पतली हो होगी ही साथ में कई अन्य स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। इस आसन में व्यक्ति का आकर गरुड़ की तरह हो जाता है, इसलिए इसे गरुड़ासन कहते हैं।
*गरुडासन की विधि- समतल और शांत तथा स्वच्छ वायु (हवा) के प्रवाह वाले स्थान पर गरुड़ासन करना चाहिए। इस आसन में पहले सामान्य स्थिति (सावधान की स्थिति) में खड़े हो जाएं। इस के बाद बाएं पैर को सीधा रखें और दाएं पैर को बाएं पैर में लता की तरह लपेट लें। अब दोनों हाथों को सीने के सामने रखकर हाथों को आपस में लता की तरह लपेट कर हाथों को थोड़े से आगे की ओर करें। इस स्थिति में दोनों हाथ गरुड़ की चोंच की तरह बना रहें। इसके बाद स्थिर पैर (बाएं पैर) को धीरे-धीरे नीचे झुकाते हुए दाएं पैर को पंजों पर सटाने की कोशिश करें। इस स्थिति में 1 मिनट तक रहें। इस के बाद सामान्य स्थिति में आ जाएं। फिर दाएं पैर को नीचे सीधा खड़ा रखकर बाएं पैर को उस लता की तरह लपेट लें। हाथों की स्थिति पहले की तरह ही रखें। इस तरह इस क्रिया को दोनों पैरों से 5-5 बार करें। इस के अभ्यास को धीरे- धीरे बढ़ाते जाएं।
लाभ- गरुड़ासन से रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है, कमर पतली होती है तथा बाहों व टांगों की मांसपेशियां तथा नस नाडिय़ां चुस्त बनती है। इससे पैर, घुटने व जांघों को मजबूती मिलती हैं। यह कंधे, बाहें तथा कोहनियों आदि के दर्द व कम्पन को ठीक करता है। यह शरीर के कम्पन को दूर करता है। यह कमर दर्द, गठिया (जोड़ों का दर्द), और आंत उतरने की बीमारी (हर्निया) आदि रोग ठीक होता है। बवासीर, अण्डकोष वृद्धि (हाइड्रोसिल) तथा मूत्र सम्बन्धी रोग के रोगियों को यह आसन करना अधिक लाभकारी हैं।
आप इसे छुने जाइए, इसकी पत्तियाँ शर्मा कर सिकुड़ जाएंगी, अपने इस स्वभाव की वजह से इसे शर्मिली के नाम से भी जाना जाता है। शर्मिले स्वभाव के इस पौधे में जिस तरह के औषधीय गुण हैं, आप भी जानकर दाँतों तले उंगली दबा लेंगे। छुई-मुई को जहाँ एक ओर देहातों में लाजवंती या शर्मीली के नाम से जाना जाता है वहीं इसे वानस्पति जगत में माईमोसा पुदिका के नाम से जाना जाता है। संपूर्ण भारत में उगता हुआ दिखाई देने वाला यह पौधा आदिवासी अंचलों में हर्बल नुस्खों के तौर पर अनेक रोगों के निवारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। चलिए आज जानते है इस पौधे से जुडे तमाम आदिवासी हर्बल नुस्खों के बारे में.. छुई-मुई से जुड़ी समस्याओं और उनके निवारण के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर- अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
छुई-मुई को आदिवासी बहुगुणी पौधा मानते हैं, उनके अनुसार यह पौधा घावों को जल्द से जल्द ठीक करने के लिए बहुत ज्यादा सक्षम होता है।
इसकी जड़ों का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ लिया जाए तो आंतरिक घाव जल्द आराम पड़ने लगते हैं। आधुनिक विज्ञान की शोधों से ज्ञात होता है कि हड्डियों के टूटने और माँस- पेशियों के आंतरिक घावों के उपचार में छुई-मुई की जड़ें काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। घावों को जल्दी ठीक करने में इसकी जड़ें सक्रियता से कार्य करती हैं।
छुई-मुई की जड़ों और बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से पुरूषों में वीर्य की कमी की शिकायत में काफी हद तक फायदा होता है।
पातालकोट के आदिवासी रोगियों को जड़ों और बीजों के चूर्ण की 4ग्राम मात्रा हर रात एक गिलास दूध के साथ लेने की सलाह देते हैं। ऐसा एक माह तक लगातार किया जाए तो सकारात्मक परिणाम देखे जा सकते हैं।
पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार छुई-मुई की जड़ और पत्तों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भंगदर रोग ठीक होता है। डाँग में आदिवासी पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लेपित करने की बात करते हैं। इनके अनुसार यह रस घाव को सुखाने का कार्य करता है और अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में भी मदद करता है।
मध्यप्रदेश के कई इलाकों में आदिवासियों छुई- मुई के पत्तों का 1 चम्मच पाउडर मक्खन के साथ मिलाकर भगंदर और बवासीर होने पर घाव पर रोज सुबह- शाम या दिन में 3 बार लगाते हैं।
छुई-मुई के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है। आदिवासी मानते हैं कि पत्तियों के रस की 4 चम्मच मात्रा दिन में एक बार लेने से भी फायदा होता है।
यदि छुई-मुई की 100 ग्राम पत्तियों को 300 मिली पानी में डालकर काढा बनाया जाए तो यह काढा मधुमेह के रोगियों को काफ़ी फ़ायदा होता है। इसके बीजों को एकत्र कर सुखा लिया जाए और चूर्ण तैयार किया जाए।
पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों के चूर्ण (3 ग्राम) को दूध के साथ मिलाकर प्रतिदिन रात को सोने से पहले लिया जाए तो शारीरिक दुर्बलता दूर कर ताकत प्रदान करता है।
छुई-मुई और अश्वगंधा की जड़ों की समान मात्रा लेकर पीस लिया जाए और तैयार लेप को ढीले स्तनों पर हल्के हल्के मालिश किया जाए तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है।
छुई-मुई की जड़ों का चूर्ण (3ग्राम) दही के साथ खूनी दस्त से ग्रस्त रोगी को खिलाने से दस्त जल्दी बंद हो जाती है। वैसे डाँगी आदिवासी मानते है कि जड़ों का पानी में तैयार काढा भी खूनी दस्त रोकने में कारगर होता है।