भारत के प्रसिद्ध चार धाम

भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है. चार धामों के दर्शन का सौभाग्य पूर्व जन्म पुन्यों से ही प्राप्त होता है. इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है. 

बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है. 

बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है.

बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है.

यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.

बद्रीनाथ धाम पौराणिक कथा |

भगवान श्री विष्णु का विश्राम स्थल क्षीरसागर है. यहां ये शेषनाग पर लेटे रहते है. तथा देवी लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु के पैर दबाती है. देवी से सदैव अपनी सेवा कराने की बात ऋषि नारद ने श्री विष्णु से बोल दी. ऋषि नारद की बाद से भगवान विष्णु को दु:ख पहुंचा. और वे क्षीरसागर को छोड कर हिमालय के वनों में चले गयें. वहां वे बैर खाकर तपस्या करते रहे हे.

देवी लक्ष्मी को उन्होने पहले ही नागकन्याओं के पास भेज दिया था. नागकन्याओं के पास से जब देवी लक्ष्मी लौटी तो, वे वहां भगवान श्री विष्णु को न पाकर परेशान हो गई़. कई जगहों पर श्री विष्णु को ढूंढने पर वे हिमालय में ढूंढने पहुंच गई. वहां देवी को भगवान श्री विष्णु बेर के वनों में तपस्या करने नजर आयें. इस पर देवी ने भगवान श्री विष्णु को बेर के स्वामी के नाम से संम्बोधित किया. तभी से इस धाम का नाम बद्रीनाथ पडा है.

बद्रीनाथ धाम के कपाट वर्ष में छ: माह बन्द रहते है. सामान्यत: मई माह में ये कपाट दर्शनों के लिये खुल जाते है. कपाट खुलने पर मंदिर की अखंड ज्योति के दर्शनों को विशेष कल्याणकारी कहा गया है.

जय शम्भो !! जय श्री बद्रीनाथ !!
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आयुर्वेदिक दोहे ayurvedic couplets for healthy health

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आयुर्वेदिक दोहे

1.जहाँ कहीं भी आपको,काँटा कोइ लग जाय। दूधी पीस लगाइये, काँटा बाहर आय।।

2.मिश्री कत्था तनिक सा,चूसें मुँह में डाल। मुँह में छाले हों अगर,दूर होंय
... तत्काल।।

3.पौदीना औ इलायची, लीजै दो-दो ग्राम। खायें उसे उबाल कर, उल्टी से आराम।।

4.छिलका लेंय इलायची,दो या तीन गिराम। सिर दर्द मुँह सूजना, लगा होय आराम।।

5.अण्डी पत्ता वृंत पर, चुना तनिक मिलाय। बार-बार तिल पर घिसे,तिल बाहर आ जाय।।

6.गाजर का रस पीजिये, आवश्कतानुसार। सभी जगह उपलब्ध यह,दूर करे अतिसार।।

7.खट्टा दामिड़ रस, दही,गाजर शाक पकाय। दूर करेगा अर्श को,जो भी इसको खाय।।

8.रस अनार की कली का,नाकबूँद दो डाल। खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।

9.भून मुनक्का शुद्ध घी,सैंधा नमक मिलाय। चक्कर आना बंद हों,जो भी इसको खाय।।

10.मूली की शाखों का रस,ले निकाल सौ ग्राम। तीन बार दिन में पियें,पथरी से
आराम।।

11.दो चम्मच रस प्याज की,मिश्री सँग पी जाय। पथरी केवल बीस दिन,में गल बाहर
जाय।।

12.आधा कप अंगूर रस, केसर जरा मिलाय। पथरी से आराम हो, रोगी प्रतिदिन खाय।।

13.सदा करेला रस पिये,सुबहा हो औ शाम। दो चम्मच की मात्रा, पथरी से आराम।।

14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक रस चौलाइ। चीनी सँग लें बीस दिन,पथरी दे न दिखाइ।।

15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन तीस ग्राम। लगातार सेवन करें, पथरी से आराम।।

16.बैगन भुर्ता बीज बिन,पन्द्रह दिन गर खाय। गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर आय।।

17.लेकर कुलथी दाल को,पतली मगर बनाय। इसको नियमित खाय तो,पथरी बाहर आय।।

18.दामिड़(अनार) छिलका सुखाकर,पीसे चूर बनाय। सुबह-शाम जल डालकम, पी मुँह बदबू
जाय।।

19. चूना घी और शहद को, ले सम भाग मिलाय। बिच्छू को विष दूर हो, इसको यदि
लगाय।।

20. गरम नीर को कीजिये, उसमें शहद मिलाय। तीन बार दिन लीजिये, तो जुकाम मिट
जाय।।

21. अदरक रस मधु(शहद) भाग सम, करें अगर उपयोग। दूर आपसे होयगा, कफ औ खाँसी
रोग।।

22. ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे रस दस ग्राम। पेट दर्द से पायँगे, कुछ पल का
आराम।।

23.बहुत सहज उपचार है, यदि आग जल जाय। मींगी पीस कपास की, फौरन जले लगाय।।

24.रुई जलाकर भस्म कर, वहाँ करें भुरकाव। जल्दी ही आराम हो, होय जहाँ पर घाव।।

25.नीम-पत्र के चूर्ण मैं, अजवायन इक ग्राम। गुण संग पीजै पेट के, कीड़ों से
आराम।।

26.दो-दो चम्मच शहद औ, रस ले नीम का पात। रोग पीलिया दूर हो, उठे पिये जो
प्रात।।

27.मिश्री के संग पीजिये, रस ये पत्ते नीम। पेंचिश के ये रोग में, काम न कोई
हकीम।।

28.हरड बहेडा आँवला चौथी नीम गिलोय, पंचम जीरा डालकर सुमिरन काया होय॥

29.सावन में गुड खावै, सो मौहर बराबर पावै॥

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आयुर्वेदिक दोहे 

1.जहाँ कहीं भी आपको,काँटा कोइ लग जाय। दूधी पीस लगाइये, काँटा बाहर आय।।

2.मिश्री कत्था तनिक सा,चूसें मुँह में डाल। मुँह में छाले हों अगर,दूर होंय
... तत्काल।।

3.पौदीना औ इलायची, लीजै दो-दो ग्राम। खायें उसे उबाल कर, उल्टी से आराम।।

4.छिलका लेंय इलायची,दो या तीन गिराम। सिर दर्द मुँह सूजना, लगा होय आराम।।

5.अण्डी पत्ता वृंत पर, चुना तनिक मिलाय। बार-बार तिल पर घिसे,तिल बाहर आ जाय।।

6.गाजर का रस पीजिये, आवश्कतानुसार। सभी जगह उपलब्ध यह,दूर करे अतिसार।।

7.खट्टा दामिड़ रस, दही,गाजर शाक पकाय। दूर करेगा अर्श को,जो भी इसको खाय।।

8.रस अनार की कली का,नाकबूँद दो डाल। खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।

9.भून मुनक्का शुद्ध घी,सैंधा नमक मिलाय। चक्कर आना बंद हों,जो भी इसको खाय।।

10.मूली की शाखों का रस,ले निकाल सौ ग्राम। तीन बार दिन में पियें,पथरी से
आराम।।

11.दो चम्मच रस प्याज की,मिश्री सँग पी जाय। पथरी केवल बीस दिन,में गल बाहर
जाय।।

12.आधा कप अंगूर रस, केसर जरा मिलाय। पथरी से आराम हो, रोगी प्रतिदिन खाय।।

13.सदा करेला रस पिये,सुबहा हो औ शाम। दो चम्मच की मात्रा, पथरी से आराम।।

14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक रस चौलाइ। चीनी सँग लें बीस दिन,पथरी दे न दिखाइ।।

15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन तीस ग्राम। लगातार सेवन करें, पथरी से आराम।।

16.बैगन भुर्ता बीज बिन,पन्द्रह दिन गर खाय। गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर आय।।

17.लेकर कुलथी दाल को,पतली मगर बनाय। इसको नियमित खाय तो,पथरी बाहर आय।।

18.दामिड़(अनार) छिलका सुखाकर,पीसे चूर बनाय। सुबह-शाम जल डालकम, पी मुँह बदबू
जाय।।

19. चूना घी और शहद को, ले सम भाग मिलाय। बिच्छू को विष दूर हो, इसको यदि
लगाय।।

20. गरम नीर को कीजिये, उसमें शहद मिलाय। तीन बार दिन लीजिये, तो जुकाम मिट
जाय।।

21. अदरक रस मधु(शहद) भाग सम, करें अगर उपयोग। दूर आपसे होयगा, कफ औ खाँसी
रोग।।

22. ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे रस दस ग्राम। पेट दर्द से पायँगे, कुछ पल का
आराम।।

23.बहुत सहज उपचार है, यदि आग जल जाय। मींगी पीस कपास की, फौरन जले लगाय।।

24.रुई जलाकर भस्म कर, वहाँ करें भुरकाव। जल्दी ही आराम हो, होय जहाँ पर घाव।।

25.नीम-पत्र के चूर्ण मैं, अजवायन इक ग्राम। गुण संग पीजै पेट के, कीड़ों से
आराम।।

26.दो-दो चम्मच शहद औ, रस ले नीम का पात। रोग पीलिया दूर हो, उठे पिये जो
प्रात।।

27.मिश्री के संग पीजिये, रस ये पत्ते नीम। पेंचिश के ये रोग में, काम न कोई
हकीम।।

28.हरड बहेडा आँवला चौथी नीम गिलोय, पंचम जीरा डालकर सुमिरन काया होय॥

29.सावन में गुड खावै, सो मौहर बराबर पावै॥

@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]
@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]

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बड़ी बीमारियों का टेस्टी इलाज करें इस घरेलू थेरेपी से


ज्यूस को शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इसीलिए प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है और बीमारियों का इलाज किया जाता है।इसमें अलग-अलग फलों और सब्जियों का रस दिया जाता है। करेला जामुन या लौकी के ज्यूस में स्वाद नहीं होता है लेकिन इनका ज्यूस पीने के बहुत फ...ायदे हैं। आइए जानते हैं ज्यूस थेरेपी के कुछ स्पेशल राज जिनसे कर सकते हैं आप इन बीमारियों का इलाज....

खून की कमी- पालक के पत्तों का रस, मौसम्मी, अंगूर, सेब, टमाटर और गाजर का रस लिया जा सकता है।

भूख की कमी- नींबू, टमाटर का रस लें।

फ्लू और बुखार- मौसम्मी, गाजर, संतरे का रस लेना चाहिए।

एसीडिटी- मौसम्मी, संतरा, नींबू, अनानास का रस लें।

कृमि रोगों में- लहसुन और मूली का रस पेट के कीड़ों को मार देता हैं।

मुहांसों में- गाजर, तरबूज, और प्याज का रस लें।

पीलिया- गन्ने का रस, मौसम्मी और अंगूर का रस दिन में कई बार लेना चाहिए।

पथरी- खीरे का रस लें।

मधुमेह- इस रोग में गाजर, करेला, जामुन, टमाटर, पत्तागोभी एवं पालक का रस लिया जा सकता है।

अल्सर में- गाजर, अंगूर का रस ले सकते हैं। कच्चे नारियल का पानी भी अल्सर ठीक करता है।

मासिकधर्म की पीड़ा में- अनानास का रस लें।

बदहजमी -अपच में नींबू का रस, अनानास का रस लें, आराम मिलेगा।

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पानी पीने की सही विधि

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पानी पीने की सही विधि --
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"हर व्यक्ति को ऊषापान (सुबह उठने के बाद खाली पेट पानी पीने को कहते हैं ) ज़रूर करना चाहिए ..इससे मोटापा ..पेट सम्बंधित बीमारियाँ ,त्वचा सम्बंधित बीमारियाँ इत्यादि नियंत्रित होती हैं ..."

1--"पानी हमेशा घूँट घूँट करके पीना चाहिए क्योंकि इससे हमारे मुह में जो लार होती है वो पेट के अंदर जाती है|
2--हमारे पेट में भोजन को पकाने के लिए अम्ल होते हैं और मुह में जो लार होती है वो क्षार होता है
अम्ल+क्षार =न्यूट्रल (सामान्य) पानी हो जाता है |
3--इसलिए जितना घूँट घूँट करके पानी पियेंगे क्षार बनेगा और पेट में जाकर भोजन का पाचन होगा और पेट हमारा पानी की तरह रहेगा मतलब ढीला (स्वस्थ)रहेगा |पानी हमेशा बैठ कर ही पियें |
4--लार में medicinal property होती हैं ,जो की internal healing के भी काम आती हैं |
5--पानी हमेशा शरीर के temperature के अनुसार पीना चाहिए यानी की न ज्यादा गर्म और न ही chilled |क्योंकि ज्यादा ठंडा पानी पीने से पेट को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है और अंगों को कार्यशीलता (दिमाग ,ह्रदय etc.)धीरे- धीरे कम होने लगती है |
6--दिमाग का रक्त Gravity के कारन सबसे पहले कम होने लगता है और आगे चलकर Brain hemmorrhage इत्यादि रोगों के होने का डर रहता है |




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चिकनगुनिया का इलाज !

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मित्रो कुछ दिनो पहले चिकनगुनिया नाम की बीमारी बहुत तेजी से अपने देश मे फैली !! लाखो की संख्या मे लोग इससे प्रभावित हुये ! और हजारो लोग मरे ! हमेशा की तरह सरकार के हाथ खड़े रहे !

श्री राजीव दीक्षित जी ने 6 महीने गाँव -गाँव घूम-घूम कर आयुर्वेदिक दवा से सैंकड़ों लोगो को बचाया !!और ये दवा बनानी कितनी आसान है !

तुलसी का काढ़ा पी लो !

नीम की गिलोय होती है उसको भी उसमे डाल लो !

थोड़ी सोंठ(सुखी अदरक) डाल लो !

थोड़ी छोटी पीपर डाल लो !

और अंत थोड़ा गुड मिला लो ! क्यूंकि ज्यादा कड़वा हो जाता है तो कई बार पिया नहीं जाता !

मात्र इसकी 3 खुराक से राजीव भाई ने हजारो लोगो का चिकनगुनिया पूरा खत्म कर दिया !!
___________________

और जो ये एलोपेथी वाले ने किया ! Boveron के 3 -3 इंजेक्शन ठोक दो ! diclofenac दे दो !
Paracetamol भी दे दो ! जो इनके पास है सब मरीज को ठोक दिया ! और लोग 20 -20 दिन से बिस्तर मे पड़े तड़पते रहे !!

और कुछ डाक्टर जिनको खुद चिकनगुनिया हो गया ! राजीव भाई के पास आए और बोलो कुछ बता दो ! राजीव भाई ने कहा अपना इंजेक्शन खुद क्यूँ नहीं ठोक लेते ! तो उन्होने ने कहा हमे मालूम है इसके side effects क्या हैं !

तो राजीव भाई ने कहा मरीज को क्यूँ नहीं बताते ???
क्या इतने हरामखोर हो ??

तुम जानते हो Boveron लगाएंगे मुंह मे छाले हो जाएँगे ! गले मे छालें हो जाएँगे ! अल्सर होने की भी संभावना है ! ये सब तुम जानते हो तो मरीज को क्यूँ नहीं बताते ???

ये हरामखोरी तुम मे कहाँ से आ गई ??

अपने को ये सब इंजेक्शन लगाओ नहीं ! और मरीज को ठोकते जाओ ठोकते जाओ ! और तुमके मालूम है मरीज इससे ठीक होने वाला नहीं ! फिर Paracetamol दे दो फिर novalgin दे दो !

और दुर्भाग्य से ये सारी दवाएं यूरोप के देशों मे पीछले 20 -20 से बंद है ! वो कहते है diclofenac खराब है !Paracetamol तो जहर है ! novaljin तो 1984 से बैन हैं अमेरिका मे ! और वही इंजेक्शन ठोक रहें बार बार ! और मरीज जो है ठीक ही नहीं हो रहा !!

राजीव भाई बताते है होमेओपेथी की तो बहुत सी दवा तो आयुर्वेद से हीं गाई ! आप मे से कुछ होमेओपेथी डाक्टर होंगे तो वो जानते होंगे ! तुलसी से ही ocimum बनी हैं ! तो ocimum की तीन तीन खुराक देकर राजीव भाई ने कर्नाटक राज्य मे 70 हजार लोगो को चलता कर दिया ! और वो 20 -20 दिन से एलोपेथी खा रहे थे result नहीं आ रहा था ! बुखार रुक नहीं रहा था उल्टी पे उल्टी हो रही थी ! नींद आ नहीं रही थी और ocimum 200 की तीन तीन खुराक से
सब ठीक कर दिया !

और अंत कर्नाटक राज्य की सरकार ने इसके परिणाम देख अपने सारे डाएरेक्टर,जोयन डेरेक्टर ! लगा दिये कि जाओ देखो ये राजीव दीक्षित क्या दे रहा है !

राजीव भाई 70 हजार लोगो को दवा दी सिर्फ 6 मरे ! औए उन्होने 1 लाख 22 हजार लोगो की दी मुश्किल से 6 बचे !! ये कर्नाटक का हाल था ! राजीव भाई बोले मेरी मजबूरी ये थी की कार्यकर्ता कम पढ़ गए ! अगर 1 -2 हजार डाक्टरों की टीम साथ होती ! तो हम कर्नाटक के उन लाखो लोगो को बचा लेते जो मर गए !

तो मित्रो ये तुलसी ,नीम सोंठ ,पीपर सब आपके घर मे आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ! इनके प्रयोग से आप रोगी की जान बचा सकते हैं ! और अगर पूरे शहर या गाँव मे फैल जाये ! एक एक को काढ़ा पिलाना मुश्किल हो तो होमेओपेथी की ocimum 200 की दो दो बुँदे 3 -3 बार मरीजो को दीजिये !!
उनका अनमोल जीवन और पैसा बचाइए !
http://www.youtube.com/watch?v=PmQnBJbq5X8
अपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !

एक बार यहाँ जरूर click कर देखे !


वन्देमातरम ! अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !
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god shiva

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सोचने वाली बाते

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ज्यादातर लोग आज की बनी रोटी कल खाना पसंद नहीं करेंगे, कुछ तो ऐसे भी है जो सुबह की बनी रोटी शाम को भी नही खाते, अब मैं अगर आपसे बोलूँ की आज रोटी बनाकर उसको पौलिथीन में पैक कर देता हूँ, उसको ४ दिन बाद खाने को कौन राजी होगा?
आप सोच रहे होंगे की क्या बेतुकी बातें कर रहा हूँ, अब जरा सोचो की आटे को सड़ाकर बनाई हुई ब्रेड और पाँव रोटी जो पता नही कितने दिन पहले की बनी हुई है, उसको इतना मजे ले कर क्यों खाते हो ? क्यों बर्गर और ब्रेड पकोड़ा खाते वक्त ये बातें दिमाग में नही आती हैं ?

अगर हम ताजा रोटी खाने की परम्परा को दकियानुसी मान कर ४-५ दिन पहले बनी बासी रोटी खाने को अपनी शान समझते है तो हम पढ़े लिखे मूर्खो के सिवा और कुछ नही है, यूरोप के गधों के पीछे आँख बंद कर चलने वाली भेड़ चाल को हमें छोड़ना ही होगा, यूरोप में ब्रेड खाना उनकी मज़बूरी है, वहाँ का तापमान इतना कम रहता है की रोटी बनाना संभव ही नही है, आटा गूँथने के लिए पानी चाहिए लेकीन वहाँ छः महीने तो बर्फ जमी रहती है, इसीलिए वहाँ ब्रेड बनाई जाती है जिसमें आटा गूँथने की जरुरत नहीं होती है, आटे को सड़ाकर ब्रेड बना दी जाती है, और अत्यंत कम तापमान की वजह से वो चार पांच दिनों तक खराब नही होती है, भारतीय जलवायु के हिसाब से ब्रेड उचित नहीं है, भारतीय जलवायु में ब्रेड जैसे नमीयुक्त खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं, तापमान बहुत कम होने के कारण उनके शरीर में मैदे से बनी ब्रैड पच जाती है पर भारत में तापमान बहुत अधिक होता है जो भारतीयों के लिये सही नही, इससे कब्ज की शिकायत होती है और कब्ज होने से सैंकडों बीमारियां लगती है, हजारों सालों से भारत में ताजे आटे को गूंथकर ही रोटी बनाई और खाई जाती है, हमारे पूर्वज इतने तो समझदार थे जो उन्होने ब्रैड आदि खाना शुरू नही किया तो आप भी समझदार बनिये,
इसीलिए सभी राष्ट्रभक्त भाई बहनों से निवेदन है की ब्रेड, पाँव रोटी जैसी चीजों से बने खाद्य पदार्थ का पूरी तरह से बहिष्कार करें और अन्य को भी प्रेरित करें।
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ईश्वर का सन्देश

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हम मानव जाति लिए ईश्वर का सन्देश क्या है ? क्या अपेक्षा है परमपिता परमेश्वर की हम मानव से !

संत कहते हैं मानव जीवन मिला है इसे केवल ईश्वर- भक्ति में व्यतीत करना चाहिये! विद्वान् कहते हैं बड़े भाग्य से मानव शरीर मिला है इसका उपयोग भले कार्यों में करना चाहिये !

क्यों हम अपना सम्पूर्ण जीवन मात्र पिता की स्तुति में नष्ट करें ? कोई पिता भी ऐसा नहीं चाहेगा !

क्या ईश्वर अपनी स्तुति के लिए ही हमें जन्म देता है ??

भले कार्यों की परिभाषा कौन निश्चित करेगा ? ईश्वर या खुद मानव ??

हम मानव खुद को इतना समझदार बना डालने के बावजूद ईश्वर का सन्देश और जीवन को जीने के तरीके का संकेत समझ नहीं पाते ! हम उस अंधे की तरह समझदारी दिखाते हैं जो पूंछ को रस्सी और रस्सी को सांप समझने जैसा करता है !

ईश्वर का सन्देश बिलकुल स्पष्ट है कि मानव जीवन मिला है और मिली है एक खुशहाल मस्त प्रकृति - पेड़ -पहाड़ -नदियां -पक्षी -साग़र -फूलों आदि से लबालब ! बस हम मानव इन प्राकृतिक रचनाओं का आदर करते हुये इनके संग संग ख़ुशी-ख़ुशी जीवन व्यतीत करें और जीवन के समापन तक आनंदित रहें ! अगर कोई बीता हुआ क्षण व्यथित कर रहा है तो उसे भूल जायें और आगे बढ़े !
आप पूछेगें कि भूतकाल को क्यों और कैसे भूल कर आगे बढ़े ! मेरा मानना है ईश्वर का यही सन्देश है कि कल जो बीत गया अच्छा या बुरा उसे भूल जायें , आज जो हम जी रहें हैं उसे आनंदमय बनाये ! अगर ईश्वर ये नहीं चाहता तो व़ो हमसे पिछले जन्म की स्मृति क्यों छीन लेता ? पिछले जन्म की स्मृतियाँ इस जन्म में नहीं देने का प्रयोजन ही ईश्वर का हम मानव को स्पष्ट सन्देश है कि जो बीत जाता है उसे भूल कर रोज नया जीवन जीये तभी हम खुश रह पायेंगें ! 
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मन्दिर में घंटा क्यों बजाना चाहिए ?

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 मन्दिर में घंटा क्यों बजाना चाहिए ?
हमारे जितने भी रीति रिवाज है उन्हें बनाने के पीछे ऋषि मुनियों की मंशा यही थी की वैज्ञानिक बातों को सामान्य जन कैसे अपनी जीवन शैली में उतारे . समय के साथ साथ कुछ रूढ़ियाँ भी इसमें आ गयी . पर अब ये हमारे लिए चुनौती है की हम इन रीती रिवाजों के पीछे छुपा विज्ञान ढूंढे और जो उसमे कचरा या मिलावट आ गयी उसे अलग करें . ऐसा ही एक रिवाज हमारी पूजा पद्धति का है घंटी बजाना ....घंटा अष्ट धातु से बना होता है ! ये आठ धातुये है ........ सोना, चाँदी,पीतल, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा तथा लोहा .अष्ट धातु निर्मित घंटे की टंकार से उत्पन्न होने वाली धव्नि प्राणघातक सूक्ष्म जीवाणुओ को हवा में ही मारने की क्षमता रखती है अर्थात अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु जो वातावरण में विद्यमान होते है एवं प्राण वायु के मध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर हानि पहुचाने की शक्ति रखते है ऐसे हानिकारक जीवाणुओ की घंटे की टंकार के साथ ही तत्काल मृत्यु हो जाती है जो शंख ध्वनी के सिवाय अन्य किसी साधन से संभव नहीं है .घंटे की आवाज़ ककर्श न होकर मनमोहक एवं कर्ण-पिर्य होती है जिस से किसी भी प्रकार हानि नहीं होती . मनमोहक एवं कर्ण प्रिय धव्नि मन मष्तिष्क को आध्यात्म भाव की और के जाने का सामर्थ्य रखती है बस आवश्कता है इस दिव्य ध्वनि को महसूस करने की..घंटियां देवालयों व मंदिरों में काफी प्राचीन समय से लगाई जाती रही हैं ! ऐसी मान्यता है कि जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। ऐसे स्थानों पर नकारात्मक शक्तियां निष्क्रिय रहती हैं !!!!!!!!!


सुबह-शाम मंदिरों में जब पूजा-आरती की जाती है तो छोटी-बड़ी घंटियों की आवाज आती है ! घंटियां बजाने में एक विशेष लय होती है जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय अनुभूति होती है !!


ऐसा माना जाता है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमाएं चेतन हो जाती हैं जिससे उनकी पूजा और अधिक प्रभावशाली तथा शीघ्र फल देने वाली होती है ! पुराणों के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं ! जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी की ध्वनि से वही नाद निकलता है ! यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है !!


घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद यानि आवाज प्रकट होगी ! मंदिरों में घंटी लगाने का वैज्ञानिक कारण भी है। जब घंटी बजाई जाती है तो उससे वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन की सीमा में आने वाले जीवाणु, विषाणु आदि सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। मंदिर का तथा उसके आस-पास का वातावरण शुद्ध बना रहता है। इसी वजह से जब भी मंदिर जाएं तो घंटी जरूर बजाएं !
जय बजरंगी..जय श्री राम
ॐ नमः शिवाय ..हर हर महादेव 



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मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज Ayurvedic treatment of cataract


मोतियाबिंद एक आम समस्या बनता जा रहा है, अब तो युवा भी इस रोग के शिकार होने लगे हैं। अगर इस रोग का समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी अंधेपन का शिकार हो जाता है।

कारण : मोतियाबिंद रोग कई कारणों से होता है। आंखों में लंबे समय तक सूजन बने रहना, जन्मजात सूजन होना, आंख की संरचना में कोई कमी होना, आंख में चोट लग जाना, चोट लगने पर लंबे समय तक घाव बना रहना, कनीनिका में जख्म
बन जाना, दूर की चीजें धूमिल नजर आना या सब्जमोतिया रोग होना, आंख के परदे का किसी कारणवश अलग हो जाना, कोई गम्भीर दृष्टि दोष होना, लंबे समय तक तेज रोशनी या तेज गर्मी में कार्य करना, डायबिटीज होना, गठिया होना, धमनी रोग होना, गुर्दे में जलन का होना, अत्याधिक कुनैन का सेवन, खूनी बवासीर का रक्त स्राव अचानक बंद हो जाना आदि समस्याएँ मोतियाति‍बिंद को जन्म दे सकती हैं।

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज
रक्त मोतियाबिंद में सभी चीजें लाल, हरी, काली, पीली और सफेद नजर आती हैं। परिम्लामिन मोतियाबिंद में सभी ओर पीला-पीला नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे कि पेड़-पौधों में आग लग गई हो।
सभी प्रकार के मोतियाबिंद में आंखों के आस-पास की स्थिति भी अलग-अलग होती है। वातज मोतियाबिंद में आंखों की पुतली लालिमायुक्त, चंचल और कठोर होती है। पित्तज मोतियाबिंद में आंख की पुतली कांसे के समान पीलापन लिए होती है। कफज मोतियाबिंद में आंख की पुतली सफेद और चिकनी होती है या शंख की तरह सफेद खूँटों से युक्त व चंचल होती है। सन्निपात के मोतियाबिंद में आंख की पुतली मूंगे या पद्म पत्र के समान तथा उक्त सभी के मिश्रित लक्षणों वाली होती है। परिम्लामिन में आंख की पुतली भद्दे रंग के कांच के समान, पीली व लाल सी, मैली, रूखी और नीलापन लिए होती है।

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज




आंखों में लगाने वाली औषधियाँ-

त्रिफला के जल से आंखें धोना::
आयुर्वेद में हरड़ की छाल (छिलका), बहेड़े की छाल और आमले की छाल - इन तीनों को त्रिफला कहते हैं । यह त्रिदोषनाशक है अर्थात् वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषों के कुपित होने से जो रोग उत्पन्न होते हैं उन सबको दूर करने वाला है । मस्तिष्क सम्बन्धी तथा उदर रोगों को दूर भगाता है तथा इन्हें शक्ति प्रदान करता है । सभी ज्ञानेन्द्रियों के लिये लाभदायक तथा शक्तिप्रद है । विशेषतया चक्षुरोग के लिये तो रामबाण है । कभी-कभी स्वस्थ मनुष्यों को भी त्रिफला के जल से अपने नेत्र धोते रहना चाहिये । नेत्रों के लिए अत्यन्त लाभदायक है । कभी-कभी त्रिफला की सब्जी खाना भी हितकर है ।
धोने की विधि - त्रिफला को जौ से समान (यवकुट) कूट लो और रात्रि के समय किसी मिट्टी, शीशे वा चीनी के पात्र में शुद्ध जल में भिगो दो । दो तोले वा एक छटांक त्रिफला को आधा सेर वा एक सेर शुद्ध जल में भिगोवो । प्रातःकाल पानी को ऊपर से नितारकर छान लो । उस जल से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धोवो । सारे जल का उपयोग एक बार के धोने में ही करो । इससे निरन्तर धोने से आंखों की उष्णता, रोहे, खुजली, लाली, जाला, मोतियाबिन्द आदि सभी रोगों का नाश होता है । आंखों की पीड़ा (दुखना) दूर होती है, आंखों की ज्योति बढ़ती है । शेष बचे हुए फोकट सिर पर रगड़ने से लाभ होता है ।
त्रिफला की टिकिया
(१) त्रिफला को जल के साथ पीसकर टिकिया बनायें और आंखों पर रखकर पट्टी बांध दें । इससे तीनों दोषों से दुखती हुई आंखें ठीक हो जाती हैं ।
(२) हरड़ की गिरी (बीज) को जल के साथ निरन्तर आठ दिन तक खरल करो । इसको नेत्रों में डालते रहने से मोतियाबिन्द रुक जाता है । यह रोग के आरम्भ में अच्छा लाभ करता है ।

* मोतियाबिंद की शुरुआती अवस्था में भीमसेनी कपूर स्त्री के दूध में घिसकर नित्य लगाने पर यह ठीक हो जाता है।

* हल्के बड़े मोती का चूरा 3 ग्राम और काला सुरमा 12 ग्राम लेकर खूब घोंटें। जब अच्छी तरह घुट जाए तो एक साफ शीशी में रख लें और रोज सोते वक्त अंजन की तरह आंखों में लगाएं। इससे मोतियाबिंद अवश्य ही दूर हो जाता है।

* छोटी पीपल, लाहौरी नमक, समुद्री फेन और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लें। इसे 200 ग्राम काले सुरमा के साथ 500 मिलीलीटर गुलाब अर्क या सौंफ अर्क में इस प्रकार घोटें कि सारा अर्क उसमें सोख लें। अब इसे रोजाना आंखों में लगाएं।

* 10 ग्राम गिलोय का रस, 1 ग्राम शहद, 1 ग्राम सेंधा नमक सभी को बारीक पीसकर रख लें। इसे रोजाना आंखों में अंजन की तरह प्रयोग करने से मोतियाबिंद दूर होता है।

* मोतियाबिंद में उक्त में से कोई भी एक औषधि आंख में लगाने से सभी प्रकार का मोतियाबिंद धीरे-धीरे दूर हो जाता है। सभी औषधियां परीक्षित हैं।
नेत्र रोगों में कुदरती पदार्थों से ईलाज करना फ़ायदेमंद रहता है। मोतियाबिंद बढती उम्र के साथ अपना तालमेल बिठा लेता है। अधिमंथ बहुत ही खतरनाक रोग है जो बहुधा आंख को नष्ट कर देता है। आंखों की कई बीमारियों में नीचे लिखे सरल उपाय करने हितकारी सिद्ध होंगे-

१) सौंफ़ नेत्रों के लिये हितकर है। मोतियाबिंद रोकने के लिये इसका पावडर बनालें। एक बडा चम्मच भर सुबह शाम पानी के साथ लेते रहें। नजर की कमजोरी वाले भी यह उपाय करें।

२) विटामिन ए नेत्रों के लिये अत्यंत फ़ायदेमंद होता है। इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण करना उत्तम रहता है। गाजर में भरपूर बेटा केरोटिन पाया जाता है जो विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। गाजर कच्ची खाएं और जिनके दांत न हों वे इसका रस पीयें। २०० मिलि.रस दिन में दो बार लेना हितकर माना गया है। इससे आंखों की रोशनी भी बढेगी। मोतियाबिंद वालों को गाजर का उपयोग अनुकूल परिणाम देता है।

३) आंखों की जलन,रक्तिमा और सूजन हो जाना नेत्र की अधिक प्रचलित व्याधि है। धनिया इसमें उपयोगी पाया गया है।सूखे धनिये के बीज १० ग्राम लेकर ३०० मिलि. पानी में उबालें। उतारकर ठंडा करें। फ़िर छानकर इससे आंखें धोएं। जलन,लाली,नेत्र शौथ में तुरंत असर मेहसूस होता है।

४) आंवला नेत्र की कई बीमारियों में लाभकारी माना गया है। ताजे आंवले का रस १० मिलि. ईतने ही शहद में मिलाकर रोज सुबह लेते रहने से आंखों की ज्योति में वृद्धि होती है। मोतियाबिंद रोकने के तत्व भी इस उपचार में मौजूद हैं।

५) भारतीय परिवारों में खाटी भाजी की सब्जी का चलन है। खाटी भाजी के पत्ते के रस की कुछ बूंदें आंख में सुबह शाम डालते रहने से कई नेत्र समस्याएं हल हो जाती हैं। मोतियाबिंद रोकने का भी यह एक बेहतरीन उपाय है।

६) अनुसंधान में साबित हुआ है कि कद्दू के फ़ूल का रस दिन में दो बार आंखों में लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। कम से कम दस मिनिट आंख में लगा रहने दें।

७) घरेलू चिकित्सा के जानकार विद्वानों का कहना है कि शहद आंखों में दो बार लगाने से मोतियाबिंद नियंत्रित होता है।

८) लहसुन की २-३ कुली रोज चबाकर खाना आंखों के लिये हितकर है। यह हमारे नेत्रों के लेंस को स्वच्छ करती है।

९) पालक का नियमित उपयोग करना मोतियाबिंद में लाभकारी पाया गया है। इसमें एंटीआक्सीडेंट तत्व होते हैं। पालक में पाया जाने वाला बेटा केरोटीन नेत्रों के लिये परम हितकारी सिद्ध होता है। ब्रिटीश मेडीकल रिसर्च में पालक का मोतियाबिंद नाशक गुण प्रमाणित हो चुका है।

१०) एक और सरल उपाय बताते हैं- अपनी दोनों हथेलियां आंखों पर ऐसे रखें कि ज्यादा दबाव मेहसूस न हो। हां, हल्का सा दवाब लगावे। दिन में चार-पांच बार और हर बार आधा मिनिट के लिये करें। मोतियाबिंद से लडाई का अच्छा तरीका है।

११) किशमिश ,अंजीर और खारक पानी में रात को भिगो दें और सुबह खाएं । मोतियाबिंद की अच्छी घरेलू दवा है।

१२) भोजन के साथ सलाद ज्यादा मात्रा में शामिल करें । सलाद पर थोडा सा जेतून का तेल भी डालें। इसमें प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के गुण हैं जो नेत्रों के लिये भी हितकर है।

मोतियाबिंद दो प्रकार का होता है।

1.nuclear cataract.

2.cortical cataract.

उक्त दोनो तरह के मोतियाबिंद बनने से रोकने के लिये विटामिन ए तथा बी काम्प्प्लेक्स का दीर्घावधि तक उपयोग करने की सलाह दी जाती है। अगर मोतियाबिंद प्रारंभिक हालत में है तो रोक लगेगी।


खाने वाली औषधियाँ-
आंखों में लगने वाली औषधि के साथ-साथ जड़ी-बूटियों का सेवन भी बेहद फायदेमन्द साबित होता है। एक योग इस प्रकार है, जो सभी तरह के मोतियाबिंद में फायदेमन्द है-

* 500 ग्राम सूखे आँवले गुठली रहित, 500 ग्राम भृंगराज का संपूर्ण पौधा, 100 ग्राम बाल हरीतकी, 200 ग्राम सूखे गोरखमुंडी पुष्प और 200 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ लेकर सभी औषधियों को खूब बारीक पीस लें। इस चूर्ण को अच्छे प्रकार के काले पत्थर के खरल में 250 मिलीलीटर अमरलता के रस और 100 मिलीलीटर मेहंदी के पत्रों के रस में अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद इसमें शुद्ध भल्लातक का कपड़छान चूर्ण 25 ग्राम मिलाकर कड़ाही में लगातार तब तक खरल करें, जब तक वह सूख न जाए। इसके बाद इसे छानकर कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। इसे रोगी की शक्ति व अवस्था के अनुसार 2 से 4 ग्राम की मात्रा में ताजा गोमूत्र से खाली पेट सुबह-शाम सेवन करें।


फायदेमन्द व्यायाम व योगासन-

* औषधियाँ प्रयोग करने के साथ-साथ रोज सुबह नियमित रूप से सूर्योदय से दो घंटे पहले नित्य क्रियाओं से निपटकर शीर्षासन और आंख का व्यायाम अवश्य करें।

* आंख के व्यायाम के लिए पालथी मारकर पद्मासन में बैठें। सबसे पहले आंखों की पुतलियों को एक साथ दाएँ-बाएँ घुमा-घुमाकर देखें फिर ऊपर-नीचे देखें। इस प्रकार यह अभ्यास कम से कम 10-15 बार अवश्य करें। इसके बाद सिर को स्थिर रखते हुए दोनों आंखों की पुतलियों को एक गोलाई में पहले सीधे फिर उल्टे (पहले घड़ी की गति की दिशा में फिर विपरीत दिशा में) चारों ओर घुमाएँ। इस प्रकार कम से कम 10-15 बार करें। इसके बाद शीर्षासन करें।

कुछ खास हिदायतें

* मोतियाबिंद के रोगी को गेहूँ की ताजी रोटी खानी चाहिए। गाय का दूध बगैर चीनी का ही पीएँ। गाय के दूध से निकाला हुआ घी भी सेवन करें। आंवले के मौसम में आंवले के ताजा फलों का भी सेवन अवश्य करें। फलों में अंजीर व गूलर अवश्यक खाएं।

* सुबह-शाम आंखों में ताजे पानी के छींटे अवश्य मारें। मोतियाबिंद के रोगी को कम या बहुत तेज रोशनी में नहीं पढ़ना चाहिए और रोशनी में इस प्रकार न बैठें कि रोशनी सीधी आंखों पर पड़े। पढ़ते-लिखते समय रोशनी बार्ईं ओर से आने दें।

* वनस्पति घी, बाजार में मिलने वाले घटिया-मिलावटी तेल, मांस, मछली, अंडा आदि सेवन न करें। मिर्च-मसाला व खटाई का प्रयोग न करें। कब्ज न रहने दें। अधिक ठंडे व अधिक गर्म मौसम में बाहर न निकलें
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अगर आपका पेट ख़राब है

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अगर आपका पेट ख़राब है और दस्त हो गया है , बार-बार आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो इसकी सबसे अच्छी दावा है जीरा | अध चम्मच जीरा चबाके खा लो और फिर गुनगुना पानी पी लो तो दस्त एकदम बंद हो जाते है एक ही खुराख में |

अगर बहुत जादा दस्त हो ... हर दो मिनट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डाल के जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |
और एक अच्छी दावा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो और फिर थोडा पानी पी लो. ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |

पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अछि दावा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है , रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |

और एक अच्छी दावा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |
पेट जुडी दो-तीन ख़राब बीमारियाँ है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .. ये सब बिमारिओ में अच्छी दावा है मूली का रस | एक कप मुली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरह का बवासीर ठीक हो जाता है , भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है .. अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |


पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
http://www.youtube.com/watch?v=PHuYbNe2lBw
अगर आपका पेट ख़राब है और दस्त हो गया है , बार-बार आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो इसकी सबसे अच्छी दावा है जीरा | अध चम्मच जीरा चबाके खा लो और फिर गुनगुना पानी पी लो तो दस्त एकदम बंद हो जाते है एक ही खुराख में |

अगर बहुत जादा दस्त हो ... हर दो मिनट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डाल के जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |
और एक अच्छी दावा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो और फिर थोडा पानी पी लो. ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |

पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अछि दावा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है , रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |

और एक अच्छी दावा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |
पेट जुडी दो-तीन ख़राब बीमारियाँ है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .. ये सब बिमारिओ में अच्छी दावा है मूली का रस | एक कप मुली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरह का बवासीर ठीक हो जाता है , भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है .. अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |

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बीड़ी सिगरेट गुटका शारब पीने की तलब न लगे ! Don't feel the urge to smoke beedi, cigarette, gutka or liquor.


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http://www.youtube.com/watch?v=6VytOKTVRN0&feature=plcp
मित्रो बहुत से लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छुटता नहीं है !बार बार वो कहते है हमे मालूम है ये गुटका खाना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे ???
बार बार लगता है ये बीड़ी सिगरेट पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे !??
बार बार महसूस होता है यह शाराब पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब हो जाती है तो क्या करे ! ????

तो आपको बीड़ी सिगरेट की तलब न आए गुटका खाने के तलब न लगे ! शारब पीने की तलब न लगे ! इसके लिए बहुत अच्छे दो उपाय है जो आप बहुत आसानी से कर सकते है ! पहला ये की जिनको बार बार तलब लगती है जो अपनी तलब पर कंट्रोल नहीं कर पाते नियंत्रण नहीं कर पाते इसका मतलब उनका मन कमजोर है ! तो पहले मन को मजबूत बनाओ!

मन को मजबूत बनाने का सबसे आसान उपाय है पहले थोड़ी देर आराम से बैठ जाओ ! आलती पालती मर कर बैठ जाओ ! जिसको सुख आसन कहते हैं ! और फिर अपनी आखे बंद कर लो फिर अपनी दायनी(right side) नाक बंद कर लो और खाली बायी(left side) नाक से सांस भरो और छोड़ो ! फिर सांस भरो और छोड़ो फिर सांस भरो और छोड़ो !

बायीं नाक मे चंद्र नाड़ी होती है और दाई नाक मे सूर्य नाड़ी ! चंद्र नाड़ी जितनी सक्रिये (active) होगी उतना इंसान का मन मजबूत होता है ! और इससे संकल्प शक्ति बढ़ती है ! चंद्र नाड़ी जीतने सक्रिये होती जाएगी आपकी मन की शक्ति उतनी ही मजबूत होती जाएगी ! और आप इतने संकल्पवान हो जाएंगे ! और जो बात ठान लेंगे उसको बहुत आसानी से कर लेगें ! तो पहले रोज सुबह 5 मिनट तक नाक की right side को दबा कर left side से सांस भरे और छोड़ो ! ये एक तरीका है ! और बहुत आसन है !

दूसरा एक तरीका है आपके घर मे एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसको आप सब अच्छे से जानते है और पहचानते हैं ! राजीव भाई ने उसका बहुत इस्तेमाल किया है लोगो का नशा छुड्वने के लिए ! और उस ओषधि का नाम है अदरक ! और आसानी से सबके घर मे होती है ! इस अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! जब भी दिल करे गुटका खाना है तंबाकू खाना है बीड़ी सिगरेट पीनी है ! तो आप एक अदरक का टुकड़ा निकालो मुंह मे रखो और चूसना शुरू कर दो ! और यह अदरक ऐसे अदबुद चीज है आप इसे दाँत से काटो मत और सवेरे से शाम तक मुंह मे रखो तो शाम तक आपके मुंह मे सुरक्षित रहता है ! इसको चूसते रहो आपको गुटका खाने की तलब ही नहीं उठेगी ! तंबाकू सिगरेट लेने की इच्छा ही नहीं होगी शराब पीने का मन ही नहीं करेगा !
बहुत आसन है कोई मुश्किल काम नहीं है ! फिर से लिख देता हूँ !

अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! डिब्बी मे रखो पुड़िया बना के रखो जब तलब उठे तो चूसो और चूसो !
जैसे ही इसका रस लाड़ मे घुलना शुरू हो जाएगा आप देखना इसका चमत्कारी असर होगा आपको फिर गुटका –तंबाकू शराब –बीड़ी सिगरेट आदि की इच्छा ही नहीं होगी ! सुबह से शाम तक चूसते रहो ! और 10 -15 -20 दिन लगातार कर लिया ! तो हमेशा के लिए नशा आपका छूट जाएगा !

आप बोलेगे ये अदरक मैं ऐसे क्या चीज है !????

यह अदरक मे एक ऐसे चीज है जिसे हम रसायनशास्त्र (क्मिस्ट्री) मे कहते है सल्फर !
अदरक मे सल्फर बहुत अधिक मात्रा मे है ! और जब हम अदरक को चूसते है जो हमारी लार के साथ मिल कर अंदर जाने लगता है ! तो ये सल्फर जब खून मे मिलने लगता है ! तो यह अंदर ऐसे हारमोनस को सक्रिय कर देता है ! जो हमारे नशा करने की इच्छा को खत्म कर देता है !

और विज्ञान की जो रिसर्च है सारी दुनिया मे वो यह मानती है की कोई आदमी नशा तब करता है ! जब उसके शरीर मे सल्फर की कमी होती है ! तो उसको बार बार तलब लगती है बीड़ी सिगरेट तंबाकू आदि की ! तो सल्फर की मात्रा आप पूरी कर दो बाहर से ये तलब खत्म हो जाएगी ! इसका राजीव भाई ने हजारो लोगो पर परीक्षण किया और बहुत ही सुखद प्रणाम सामने आए है ! बिना किसी खर्चे के शराब छूट जाती है बीड़ी सिगरेट शराब गुटका आदि छूट जाता है ! तो आप इसका प्रयोग करे !

और इसका दूसरे उपयोग का तरीका पढे !

अदरक के रूप मे सल्फर भगवान ने बहुत अधिक मात्रा मे दिया है ! और सस्ता है! इसी सल्फर को आप होमिओपेथी की दुकान से भी प्राप्त कर सकते हैं ! आप कोई भी होमिओपेथी की दुकान मे चले जाओ और विक्रेता को बोलो मुझे सल्फर नाम की दावा देदो ! वो देदेगा आपको शीशी मे भरी हुई दावा देदेगा ! और सल्फर नाम की दावा होमिओपेथी मे पानी के रूप मे आती है प्रवाही के रूप मे आती है जिसको हम Dilution कहते है अँग्रेजी मे !

तो यह पानी जैसे आएगी देखने मे ऐसे ही लगेगा जैसे यह पानी है ! 5 मिली लीटर दवा की शीशी 5 रूपये आती है ! और उस दवा का एक बूंद जीभ पर दाल लो सवेरे सवेरे खाली पेट ! फिर अगले दिन और एक बूंद डाल लो ! 3 खुराक लेते ही 50 से 60 % लोग की दारू छूट जाती है ! और जो ज्यादा पियाकड़ है !जिनकी सुबह दारू से शुरू होती है और शाम दारू पर खतम होती है ! वो लोग हफ्ते मे दो दो बार लेते रहे तो एक दो महीने तक करे बड़े बड़े पियकरों की दारू छूट जाएगी !राजीव भाई ने ऐसे ऐसे पियकारों की दारू छुड़ाई है ! जो सुबह से पीना शुरू करते थे और रात तक पीते रहते थे ! उनकी भी दारू छूट गई बस इतना ही है दो तीन महीने का समय लगा !

तो ये सल्फर अदरक मे भी है ! होमिओपेथी की दुकान मे भी उपलब्ध है ! आप आसानी से खरीद सकते है !लेकिन जब आप होमिओपेथी की दुकान पर खरीदने जाओगे तो वो आपको पुछेगा कितनी ताकत की दवा दूँ ??!
मतलब कितनी Potency की दवा दूँ ! तो आप उसको कहे 200 potency की दवा देदो ! आप सल्फर 200 कह कर भी मांग सकते है ! लेकिन जो बहुत ही पियकर है उनके लिए आप 1000 Potency की दवा ले !आप 200 मिली लीटर का बोतल खरीद लो एक 150 से रुपए मे मिलेगी ! आप उससे 10000 लोगो की शराब छुड़वा सकते हैं ! मात्र एक बोतल से ! लेकिन साथ मे आप मन को मजबूत बनाने के लिए रोज सुबह बायीं नाक से सांस ले ! और अपनी इच्छा शक्ति मजबूत करे !!!


अब एक खास बात !

बहुत ज्यादा चाय और काफी पीने वालों के शरीर मे arsenic तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप arsenic 200 का प्रयोग करे !

गुटका,तंबाकू,सिगरेट,बीड़ी पीने वालों के शरीर मे phosphorus तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप phosphorus 200 का प्रयोग करे !

और शराब पीने वाले मे सबसे ज्यादा sulphur तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप sulphur 200 का प्रयोग करे !!

सबसे पहले शुरुवात आप अदरक से ही करे !!

आपने पूरी पोस्ट पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !

वन्देमातरम !

एक बार यहाँ जरूर क्लिक करे !

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थायरायड की चिकित्सा:: राजीव दीक्षित Rajiv Dixit Thyroid treatment:


******* थायरायड/पैराथायरायड ग्रंथियां ********
थायरायड ग्रंथि गर्दन के सामने की ओर,श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों तरफ दो भागों में बनी होती है | एक स्वस्थ्य मनुष्य में थायरायड ग्रंथि का भार 25 से 50 ग्राम तक होता है | यह ‘ थाइराक्सिन ‘ नामक हार्मोन का उत्पादन करती है | पैराथायरायड ग्रंथियां, थायरायड ग्रंथि के ऊपर एवं मध्य भाग की ओर एक-एक जोड़े [ कुल चार ] में होती हैं | यह ” पैराथारमोन ” हार्मोन का उत्पादन करती हैं | इन ग्रंथियों के प्रमुख रूप से निम्न कार्य हैं-

******* थायरायड ग्रंथि के कार्य ******

थायरायड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन शरीर की लगभग सभी क्रियाओं पर अपना प्रभाव डालता है | थायरायड ग्रंथि के प्रमुख कार्यों में -

• बालक के विकास में इन ग्रंथियों का विशेष योगदान है |
• यह शरीर में कैल्शियम एवं फास्फोरस को पचाने में उत्प्रेरक का कार्य करती है |
• शरीर के ताप नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका है |
• शरीर का विजातीय द्रव्य [ विष ] को बाहर निकालने में सहायता करती है |

थायरायड के हार्मोन असंतुलित होने से निम्न रोग लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं –

अल्प स्राव [ HYPO THYRODISM ]

थायरायड ग्रंथि से थाईराक्सिन कम बन ने की अवस्था को ” हायपोथायराडिज्म ” कहते हैं, इस से निम्न रोग लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं -

• शारीरिक व् मानसिक वृद्धि मंद हो जाती है |
• बच्चों में इसकी कमी से CRETINISM नामक रोग हो जाता है |
• १२ से १४ वर्ष के बच्चे की शारीरिक वृद्धि ४ से ६ वर्ष के बच्चे जितनी ही रह जाती है |
• ह्रदय स्पंदन एवं श्वास की गति मंद हो जाती है |
• हड्डियों की वृद्धि रुक जाती है और वे झुकने लगती हैं |
• मेटाबालिज्म की क्रिया मंद हो जाती हैं |
• शरीर का वजन बढ़ने लगता है एवं शरीर में सुजन भी आ जाती है |
• सोचने व् बोलने ki क्रिया मंद पड़ जाती है |
• त्वचा रुखी हो जाती है तथा त्वचा के नीचे अधिक मात्रा में वसा एकत्र हो जाने के कारण आँख की पलकों में सुजन आ जाती है |
• शरीर का ताप कम हो जाता है, बल झड़ने लगते हैं तथा ” गंजापन ” की स्थिति आ जाती है |

थायरायड ग्रंथि का अतिस्राव

इसमें थायराक्सिन हार्मोन अधिक बनने लगता है | इससे निम्न रोग लक्षण उत्पन्न होते हैं —-

• शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है |
• ह्रदय की धड़कन व् श्वास की गति बढ़ जाती है |
• अनिद्रा, उत्तेजना तथा घबराहट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं |
• शरीर का वजन कम होने लगता है |
• कई लोगों की हाँथ-पैर की उँगलियों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है |
• गर्मी सहन करने की क्षमता कम हो जाती है |
• मधुमेह रोग होने की प्रबल सम्भावना बन जाती है |
• घेंघा रोग उत्पन्न हो जाता है |
• शरीर में आयोडीन की कमी हो जाती है |

पैराथायरायड ग्रंथियों के असंतुलन से उत्पन्न होने वाले रोग

जैसा कि पीछे बताया है कि पैराथायरायड ग्रंथियां ” पैराथार्मोन “ हार्मोन स्रवित करती हैं | यह हार्मोन रक्त और हड्डियों में कैल्शियम व् फास्फोरस की मात्रा को संतुलित रखता है | इस हार्मोन की कमी से – हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं, जोड़ों के रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं | पैराथार्मोन की अधिकता से – रक्त में, हड्डियों का कैल्शियम तेजी से मिलने लगता है,फलस्वरूप हड्डियाँ अपना आकार खोने लगती हैं तथा रक्त में अधिक कैल्शियम पहुँचने से गुर्दे की पथरी भी होनी प्रारंभ हो जाती है |

विशेष :-
थायरायड के कई टेस्ट जैसे - T -3 , T -4 , FTI , तथा TSH द्वारा थायरायड ग्रंथि की स्थिति का पता चल जाता है | कई बार थायरायड ग्रंथि में कोई विकार नहीं होता परन्तु पियुष ग्रंथि के ठीक प्रकार से कार्य न करने के कारण थायरायड ग्रंथि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन -TSH [ Thyroid Stimulating hormone ] ठीक प्रकार नहीं बनते और थायरायड से होने वाले रोग लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं |

थायरायड की प्राकृतिक चिकित्सा :-

thyroid के लिए हरे पत्ते वाले धनिये की ताजा चटनी बना कर एक बडा चम्मच एक गिलास पानी में घोल कर पीए रोजाना....एक दम ठीक हो जाएगा (बस धनिया देसी हो उसकी सुगन्ध अच्छी हो)

आहार चिकित्सा ***
सादा सुपाच्य भोजन,मट्ठा,दही,नारियल का पानी,मौसमी फल, तजि हरी साग – सब्जियां, अंकुरित गेंहूँ, चोकर सहित आंटे की रोटी को अपने भोजन में शामिल करें |

परहेज :-
मिर्च-मसाला,तेल,अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय, काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी,मलाई, मांस, अंडा जैसे खाद्यों से परहेज रखें | अगर आप सफ़ेद नमक (समुन्द्री नमक) खाते है तो उसे तुरन्त बंद कर दे और सैंधा नमक ही खाने में प्रयोग करे, सिर्फ़ सैंधा नमक ही खाए सब जगह

1 – गले की गर्म-ठंडी सेंक
साधन :– गर्म पानी की रबड़ की थैली, गर्म पानी, एक छोटा तौलिया, एक भगौने में ठण्डा पानी |
विधि :— सर्वप्रथम रबड़ की थैली में गर्म पानी भर लें | ठण्डे पानी के भगौने में छोटा तौलिया डाल लें | गर्म सेंक बोतल से एवं ठण्डी सेंक तौलिया को ठण्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर निम्न क्रम से गले के ऊपर गर्म-ठण्डी सेंक करें -
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– ३ मिनट ठण्डी
इस प्रकार कुल 18 मिनट तक यह उपचार करें | इसे दिन में दो बार – प्रातः – सांय कर सकते हैं |

2- गले की पट्टी लपेट :-
साधन :- १- सूती मार्किन का कपडा, लगभग ४ इंच चौड़ा एवं इतना लम्बा कि गर्दन पर तीन लपेटे लग जाएँ |
२- इतनी ही लम्बी एवं ५-६ इंच चौड़ी गर्म कपडे की पट्टी |

विधि :- सर्वप्रथम सूती कपडे को ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें, तत्पश्चात गले में लपेट दें इसके ऊपर से गर्म कपडे की पट्टी को इस तरह से लपेटें कि नीचे वाली सूती पट्टी पूरी तरह से ढक जाये | इस प्रयोग को रात्रि सोने से पहले ४५ मिनट के लिए करें |

3 -गले पर मिटटी कि पट्टी:-
साधन :- १- जमीन से लगभग तीन फिट नीचे की साफ मिटटी |
२- एक गर्म कपडे का टुकड़ा |
विधि :- लगभग चार इंच लम्बी व् तीन इंच चौड़ी एवं एक इंच मोटी मिटटी की पट्टी को बनाकर गले पर रखें तथा गर्म कपडे से मिटटी की पट्टी को पूरी तरह से ढक दें | इस प्रयोग को दोपहर को ४५ मिनट के लिए करें |
विशेष :- मिटटी को ६-७ घंटे पहले पानी में भिगो दें, तत्पश्चात उसकी लुगदी जैसी बनाकर पट्टी बनायें |

4 – मेहन स्नान
विधि :-
एक बड़े टब में खूब ठण्डा पानी भर कर उसमें एक बैठने की चौकी रख लें | ध्यान रहे कि टब में पानी इतना न भरें कि चौकी डूब जाये | अब उस टब के अन्दर चौकी पर बैठ जाएँ | पैर टब के बाहर एवं सूखे रहें | एक सूती कपडे की डेढ़ – दो फिट लम्बी पट्टी लेकर अपनी जननेंद्रिय के अग्रभाग पर लपेट दें एवं बाकी बची पट्टी को टब में इस प्रकार डालें कि उसका कुछ हिस्सा पानी में डूबा रहे | अब इस पट्टी/ जननेंद्रिय पर टब से पानी ले-लेकर लगातार भिगोते रहें | इस प्रयोग को ५-१० मिनट करें, तत्पश्चात शरीर में गर्मी लाने के लिए १०-१५ मिनट तेजी से टहलें |

योग चिकित्सा ***

उज्जायी प्राणायाम :-
पद्मासन या सुखासन में बैठकर आँखें बंद कर लें | अपनी जिह्वा को तालू से सटा दें अब कंठ से श्वास को इस प्रकार खींचे कि गले से ध्वनि व् कम्पन उत्पन्न होने लगे | इस प्राणायाम को दस से बढाकर बीस बार तक प्रतिदिन करें |

प्राणायाम प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर खाली पेट करें |

थायरायड की एक्युप्रेशर चिकित्सा ::

एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार थायरायड व् पैराथायरायड के प्रतिबिम्ब केंद्र दोनों हांथो एवं पैरों के अंगूठे के बिलकुल नीचे व् अंगूठे की जड़ के नीचे ऊँचे उठे हुए भाग में स्थित हैं

थायरायड के अल्पस्राव की अवस्था में इन केन्द्रों पर घडी की सुई की दिशा में अर्थात बाएं से दायें प्रेशर दें तथा अतिस्राव की स्थिति में प्रेशर दायें से बाएं [ घडी की सुई की उलटी दिशा में ] देना चाहिए | इसके साथ ही पियुष ग्रंथि के भी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए |

विशेष :-
प्रत्येक केंद्र पर एक से तीन मिनट तक प्रतिदिन दो बार प्रेशर दें |
पियुष ग्रंथि के केंद्र पर पम्पिंग मैथेड [ पम्प की तरह दो-तीन सेकेण्ड के लिए दबाएँ फिर एक दो सेकेण्ड के लिए ढीला छोड़ दें ] से प्रेशर देना चाहिए |
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सौ रोगों को हरने वाली शतावरी

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सौ रोगों को हरने वाली शतावरी 
आज हम आपको एक झाड़ीनुमा लता के बारे में बताते है , जिसमें फूल मंजरियों में एक से दो इंच लम्बे एक या गुच्छे में लगे होते हैं और फल मटर के समान पकने पर लाल रंग के होते हैं ..नाम है "शतावरी" ..I
आपने विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में इसके प्रयोग को अवश्य ही जाना होगा ..अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं, इसके प्रयोग को ..! आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार , शतावर पुराने से पुराने रोगी के शरीर को रोगों से लड़ने क़ी क्षमता प्रदान करता है ...I इसे शुक्रजनन,शीतल ,मधुर एवं दिव्य रसायन माना गया है I महर्षि चरक ने भी शतावर को बल्य और वयः स्थापक ( चिर यौवन को बरकार रखने वाला) माना है.I आधुनिक शोध भी शतावरी क़ी जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं I
अब हम आपको शतावरी के कुछ आयुर्वेदिक योग क़ी जानकारी देंगे ..जिनका औषधीय प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में करना अत्यंत लाभकारी होगा ...!!
- यदि आप नींद न आने क़ी समस्या से परेशान हैं तो बस शतावरी क़ी जड़ को खीर के रूप में पका लें और थोड़ा गाय का घी डालें ,इससे आप तनाव से मुक्त होकर अच्छी नींद ले पायेंगे ..!
-शतावरी क़ी ताज़ी जड़ को यवकूट करें ,इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें,हो गया मालिश का तेल तैयार ...इसे माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगायें और लाभ देखें I
-यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरी चूर्ण - 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली ,मिश्री के साथ लें और लाभ देखें I
-प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है ..!
-यदि पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है I
-यदि रोगी को मूत्र या मूत्रवह संस्थान से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है I
-शतावरी के पत्तियों का कल्क बनाकर घाव पर लगाने से भी घाव भर जाता है ...!
-यदि रोगी स्वप्न दोष से पीड़ित हो तो शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम ,मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर ...पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह ,प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है I
-गाँव के लोग इसकी जड़ का प्रयोग गाय या भैंसों को खिलाते हैं, तो उनकी दूध न आने क़ी समस्या में लाभ मिलता पाया गया है ...अतः इसके ऐसे ही प्रभाव प्रसूता स्त्रियों में भी देखे गए हैं I
-शतावरी के जड के चूर्ण को पांच से दस ग्राम क़ी मात्रा में दूध से नियमित से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है !
-वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का प्रयोग या इनके क्वाथ का सेवन ज्वर (बुखार ) से मुक्ति प्रदान करता है ..I
-शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन ,दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारीयों में लाभ मिलता है ...I
.. शतावरी हिमतिक्ता स्वादीगुर्वीरसायनीसुस्निग्ध शुक्रलाबल्यास्तन्य मेदोs ग्निपुष्टिदा ..!! चक्षु स्यागत पित्रास्य,गुल्मातिसारशोथजित...उदधृत किया है ..तो शतावरी एक बुद्धिवर्धक,अग्निवर्धक,शुक्र दौर्बल्य को दूर करनेवाली स्तन्यजनक औषधि है ...!!
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रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...