भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है. चार धामों के दर्शन का सौभाग्य पूर्व जन्म पुन्यों से ही प्राप्त होता है. इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है.
बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है.
बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है.
बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है.
यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.
बद्रीनाथ धाम पौराणिक कथा |
भगवान श्री विष्णु का विश्राम स्थल क्षीरसागर है. यहां ये शेषनाग पर लेटे रहते है. तथा देवी लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु के पैर दबाती है. देवी से सदैव अपनी सेवा कराने की बात ऋषि नारद ने श्री विष्णु से बोल दी. ऋषि नारद की बाद से भगवान विष्णु को दु:ख पहुंचा. और वे क्षीरसागर को छोड कर हिमालय के वनों में चले गयें. वहां वे बैर खाकर तपस्या करते रहे हे.
देवी लक्ष्मी को उन्होने पहले ही नागकन्याओं के पास भेज दिया था. नागकन्याओं के पास से जब देवी लक्ष्मी लौटी तो, वे वहां भगवान श्री विष्णु को न पाकर परेशान हो गई़. कई जगहों पर श्री विष्णु को ढूंढने पर वे हिमालय में ढूंढने पहुंच गई. वहां देवी को भगवान श्री विष्णु बेर के वनों में तपस्या करने नजर आयें. इस पर देवी ने भगवान श्री विष्णु को बेर के स्वामी के नाम से संम्बोधित किया. तभी से इस धाम का नाम बद्रीनाथ पडा है.
बद्रीनाथ धाम के कपाट वर्ष में छ: माह बन्द रहते है. सामान्यत: मई माह में ये कपाट दर्शनों के लिये खुल जाते है. कपाट खुलने पर मंदिर की अखंड ज्योति के दर्शनों को विशेष कल्याणकारी कहा गया है.
जय शम्भो !! जय श्री बद्रीनाथ !!
बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है.
बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है.
बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है.
यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.
बद्रीनाथ धाम पौराणिक कथा |
भगवान श्री विष्णु का विश्राम स्थल क्षीरसागर है. यहां ये शेषनाग पर लेटे रहते है. तथा देवी लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु के पैर दबाती है. देवी से सदैव अपनी सेवा कराने की बात ऋषि नारद ने श्री विष्णु से बोल दी. ऋषि नारद की बाद से भगवान विष्णु को दु:ख पहुंचा. और वे क्षीरसागर को छोड कर हिमालय के वनों में चले गयें. वहां वे बैर खाकर तपस्या करते रहे हे.
देवी लक्ष्मी को उन्होने पहले ही नागकन्याओं के पास भेज दिया था. नागकन्याओं के पास से जब देवी लक्ष्मी लौटी तो, वे वहां भगवान श्री विष्णु को न पाकर परेशान हो गई़. कई जगहों पर श्री विष्णु को ढूंढने पर वे हिमालय में ढूंढने पहुंच गई. वहां देवी को भगवान श्री विष्णु बेर के वनों में तपस्या करने नजर आयें. इस पर देवी ने भगवान श्री विष्णु को बेर के स्वामी के नाम से संम्बोधित किया. तभी से इस धाम का नाम बद्रीनाथ पडा है.
बद्रीनाथ धाम के कपाट वर्ष में छ: माह बन्द रहते है. सामान्यत: मई माह में ये कपाट दर्शनों के लिये खुल जाते है. कपाट खुलने पर मंदिर की अखंड ज्योति के दर्शनों को विशेष कल्याणकारी कहा गया है.
जय शम्भो !! जय श्री बद्रीनाथ !!
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आयुर्वेदिक दोहे
1.जहाँ कहीं भी आपको,काँटा कोइ लग जाय। दूधी पीस लगाइये, काँटा बाहर आय।।
2.मिश्री कत्था तनिक सा,चूसें मुँह में डाल। मुँह में छाले हों अगर,दूर होंय
... तत्काल।।
3.पौदीना औ इलायची, लीजै दो-दो ग्राम। खायें उसे उबाल कर, उल्टी से आराम।।
4.छिलका लेंय इलायची,दो या तीन गिराम। सिर दर्द मुँह सूजना, लगा होय आराम।।
5.अण्डी पत्ता वृंत पर, चुना तनिक मिलाय। बार-बार तिल पर घिसे,तिल बाहर आ जाय।।
6.गाजर का रस पीजिये, आवश्कतानुसार। सभी जगह उपलब्ध यह,दूर करे अतिसार।।
7.खट्टा दामिड़ रस, दही,गाजर शाक पकाय। दूर करेगा अर्श को,जो भी इसको खाय।।
8.रस अनार की कली का,नाकबूँद दो डाल। खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।
9.भून मुनक्का शुद्ध घी,सैंधा नमक मिलाय। चक्कर आना बंद हों,जो भी इसको खाय।।
10.मूली की शाखों का रस,ले निकाल सौ ग्राम। तीन बार दिन में पियें,पथरी से
आराम।।
11.दो चम्मच रस प्याज की,मिश्री सँग पी जाय। पथरी केवल बीस दिन,में गल बाहर
जाय।।
12.आधा कप अंगूर रस, केसर जरा मिलाय। पथरी से आराम हो, रोगी प्रतिदिन खाय।।
13.सदा करेला रस पिये,सुबहा हो औ शाम। दो चम्मच की मात्रा, पथरी से आराम।।
14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक रस चौलाइ। चीनी सँग लें बीस दिन,पथरी दे न दिखाइ।।
15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन तीस ग्राम। लगातार सेवन करें, पथरी से आराम।।
16.बैगन भुर्ता बीज बिन,पन्द्रह दिन गर खाय। गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर आय।।
17.लेकर कुलथी दाल को,पतली मगर बनाय। इसको नियमित खाय तो,पथरी बाहर आय।।
18.दामिड़(अनार) छिलका सुखाकर,पीसे चूर बनाय। सुबह-शाम जल डालकम, पी मुँह बदबू
जाय।।
19. चूना घी और शहद को, ले सम भाग मिलाय। बिच्छू को विष दूर हो, इसको यदि
लगाय।।
20. गरम नीर को कीजिये, उसमें शहद मिलाय। तीन बार दिन लीजिये, तो जुकाम मिट
जाय।।
21. अदरक रस मधु(शहद) भाग सम, करें अगर उपयोग। दूर आपसे होयगा, कफ औ खाँसी
रोग।।
22. ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे रस दस ग्राम। पेट दर्द से पायँगे, कुछ पल का
आराम।।
23.बहुत सहज उपचार है, यदि आग जल जाय। मींगी पीस कपास की, फौरन जले लगाय।।
24.रुई जलाकर भस्म कर, वहाँ करें भुरकाव। जल्दी ही आराम हो, होय जहाँ पर घाव।।
25.नीम-पत्र के चूर्ण मैं, अजवायन इक ग्राम। गुण संग पीजै पेट के, कीड़ों से
आराम।।
26.दो-दो चम्मच शहद औ, रस ले नीम का पात। रोग पीलिया दूर हो, उठे पिये जो
प्रात।।
27.मिश्री के संग पीजिये, रस ये पत्ते नीम। पेंचिश के ये रोग में, काम न कोई
हकीम।।
28.हरड बहेडा आँवला चौथी नीम गिलोय, पंचम जीरा डालकर सुमिरन काया होय॥
29.सावन में गुड खावै, सो मौहर बराबर पावै॥
@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]
@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]](https://fbcdn-sphotos-f-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash3/s480x480/527744_174325796050446_925882142_n.jpg)








