कर्म तेरे दिल के अंदर, समझता वो विधाता है,

कर्म तेरे दिल के अंदर, समझता वो विधाता है,

कुकर्म चाहे तू  जितना छुपाले, वो सबका ज्ञाता है।



ना देखे वो तेरा चेहरा, ना पूछे जाति या पंथ,

भाव देखता है वो भीतर, वही करेगा तेरा अंत।


मंदिर-मस्जिद ढूँढे सब कोई, वो बसता हर प्राणी में,

धर्म स्थल में भी धुल झोंकता, तू प्रभु की आँखों में?


कर्मों की है सीधी गिनती, ना रिश्वत, ना सिफ़ारिश,

जैसा किया तूने कर्म, वैसी होगी पक्की वारिस।


भीख न माँग तू भजन में, कर सेवा का संकल्प,

प्रभु को पाना हो अगर, बना खुद को निर्मल कल्प।


कर्म  में न हो कोई भेद भाव, यही है धर्म का जीवन,

जो जीए हर जीव के खातिर, वही है सच्चा साधन।


कर्म तेरे दिल के अंदर, समझता वो विधाता है,

हर धड़कन में नाम उसी का, यही अंतर्ज्ञान बताता है।

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