जो इतिहास की राख से जला दीपक उठाता है,
वही अंधेरे समय में भारत को फिर से जगाता है।
हर घाव को सहकर, हर दर्द को पी जाता है,
वो राष्ट्र के लिए अपना जीवन लुटाता है।
तूफानों से भिड़ा, वीर सपूतों का था रक्त,
गुरूर नहीं था, बस कर्तव्य था सत्कर्म युक्त।
मुट्ठी में सूरज, दिल में जोश का नूर,
वो देशभक्त हर हाल में करता रहा निखार भरपूर।
धारा से टकराया, ना रुका वो बवंडर,
जो सच्चाई की राह पर चलता है निर्भय होकर।
अधिकार नहीं, धर्म की शक्ति को अपनाए,
वो भारत के कोने-कोने में जोश जगाए।
सपने हैं वही जिनमें दिखता हो जनकल्याण,
न कि पत्थरों का घमंड या झूठा अभिमान।
जो राख से दीपक जले, वही लाए उजियारा,
भारत की आंधी में, शेर-सा लड़े दोबारा।
जगाओ अब हर भारतवासी को सत्य की बातों से,
चलो उठें आदर्शों की ऊँचाईयों की रातों से।
जो राख से दीपक जले, वही भारत को फिर से जगाए,
राष्ट्र की आन-बान-शान को सहेजे, और कभी न डगमगाए।
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