बढाएं सेक्स पावर


 भिन्डी की जड का चूर्ण बनालें। यह चूर्ण १० ग्राम बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दूध में ऊबालकर पीने से नपुंसकता नष्ट होती है।

मुनक्का ३० ग्राम गरम दूध से नित्य खावें। कब्ज मिटाकर सेक्स पावर बढाता है।

गोखरू और असगन्ध का चूर्ण बराबर मात्रा में शहद में मिलाकर नित्य लेने से इरेक्टाइल डिस्फ़न्क्शन का रोग दूर होकर स्तंभन शक्ति मे वृद्धि होती है।


अंकुरित अनाज,हरी सब्जियां, फ़ल और सूखे मेवे प्रचुरता से भोजन में ग्रहण करें। नपुंसकता निवारण में इसके महत्व को कम नहीं आंकना चाहिये।


कामेन्द्रिय को पुष्ट और ताकतवर बनाया जा सकता है और से़क्स का भरपूर आनंद लिया जा सकता है।मैं ऐसे ही कुछ प्रभावी  उपचार



लहसून की 2-3 कलियां कच्ची चबाकर खाने से सेक्स पावर बढता है। यह हमारे शरीर की  रोगों से लडने की ताकत बढाता है।  लहसुन उन लोगों के लिये भी हितकर है जो  अति सेक्स सक्रिय  रहते हैं।  इसके उपयोग से नाडीमंडल  तंदुरस्त रहता है  जिससे  अधिक सेक्स के  बावजूद थकावट मेहसूस नहीं होती है। लहसुन के नियमित उपयोग से स्वस्थ शुक्राणुओं का उत्पादन होता है।भोजन में भी लहसुन शामिल करें।


प्याज कामेच्छा जागृत करने और बढाने में विशेष सहायक  है। इससे लिंग पुष्ट होता है। एक प्याज कूट-खांडकर  मखन या देसी घी में तलें। इसे एक चम्मच शहद में मिश्रित कर  खाली पेट  खाएं। यह उपचार शीघ्र पतन,स्वप्नदोष और नपुंसकता में बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। भोजन मे कच्चा प्याज खाना हितकर है।

        उडद  की दाल का आटा  २०० ग्राम लें। इसे प्याज के रस में एक ह्फ़्ता  रखें। बाद में इसे सूखाकर  किसी बर्तन में भरकर रख दें। रोज खाली पेट १५ ग्राम  लेते रहने से  कामेच्छा बढती है और नपुंसकता  दूर होती है।
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शीघ्रपतन दूर करने के उपाय Ways to get rid of premature ejaculation



* दोनों पांव के तलवे पर पानी की धार डालें कम से कम दस मिनट तक दें।

*धूप में सिद्ध किया पीली कांच की बोतल का पानी सुबह शाम दो–दो चम्मच पियें। 

*अदरक का रस6ग्राम, सफेद प्याज का रस 10ग्राम, 5ग्राम शहद, गाय का घी 3ग्राम, सबको एक साथ मिलाकर रोजाना चाटें एक मास तक इससे हर तरह की मर्दाना ताकत बढ़ती है।

*अदरक के रस में एक (half boiled egg) मिलाकर खायें यह प्रयोग रात्रि में करें। रोजाना, एक माह तक। 

* बादाम, काली मिर्च लें जरूरत अनुसार मिस्री मिलायें, सबको मिलाकर खा जायें ऊपर से एक ग्लास गरम दूध पी जायें। 

* सोठ, काली मिर्च, लौंग, जायफल, सूखा करी पत्ता इन सबको 50-50ग्राम लें पाचा कपूर5ग्राम, 10ग्राम केसर लें सबको अलग-अलग पीस मिला लें। अब केसर दूध में पीस लें। अपनी पाचन शक्ति अनुसार मात्रा में कम से कम एक माह तक लें। इससे शीघ्र पतन की शिकायत तो दूर होगी ही साथ आपकी काया भी सुंदर होगी। 

*ताल मखाने के बीज 60ग्राम लेकर अदरक के रस में भिगोयें फिर सुखायें। इस तरह तीन बार करें, फिर इसका चूर्ण बनाकर 200 ग्राम शहद में मिलाकर रख लें। इसे सुबह शाम 10-10ग्राम गाय के दूध के साथ लें यह अत्यंत लाभदायक है। 

*शतावर का चूरण लें एक तोला, मिस्री मिलें गरम दूध के साथ रोज सेवन करें। शरीर बलवाल होगा। 

*प्रतिदिन 50ग्राम गुड अवश्य खाये।

*एक चम्मच तुलसी के बीजों का चूरण, दो साबुत पान, 2रत्ती आक के फूल सबकी भस्म बनाकर पीस कें इसे रात में सोते समय एक ग्लास दूध के साथ लें। 

*तुलसी के दो पत्ते, एक चम्मच बीज, पान में रखकर चबायें।

*तुलसी के बीज का जड़ का टुकडा बराबर चूसते रहें करीब दो माह तक। 

*गाजर के रस में लहसुन की 10बूंद डालकर नित्य पियें सुबह शाम गाय का दूध पियें।

*जामुन की गुठली सूखा कर पीस लें। इसे रोजाना आधा चम्मच खाकर गाजर का रस पियें एक माह तक।

*सिंघाडे का हलुआ खाकर ऊपर से गाजर का रस पियें।

*दो तोला धुली उडद की दाल भिगाकर पीस लें। एक तोला घी आधा तोला शहद मिलाकर चाटें ऊपर से एक ग्लास मिस्री मिला दूध पियें। करीब तीन माह तक। अश्व जैसी शक्ति आ जायेगी।

*शिलाजीत की शक्ति महान है इसे दूध के साथ रोजाला सेवन करें।

*शतावर और असगंध का चूरण दूध के साथ रोजाना सें लाभ होगा 
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गंजापन में उपयोगी















गंजापन में उपयोगी -




     - उड़द की दाल को उबाल कर पीस लें। रात को सोते समय इस पिट्ठी का लेप सिर पर  कुछ दिनों तक करते रहने से गंजापन समाप्त हो जाता है।









मैथी का प्रयोग--


 मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। उसके बाद बालों को धो लें इससे रुसी और सिर की त्‍वचा में जो भी समस्‍या होगी वह दूर हो जाएगी।मेथी में निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन पाया जाता है जो बालों की जड़ो को प्रोषण पहुंचाता है और बालों की ग्रोथ को भी बढ़ाता है। इसके प्रयोग से सूखे और डैमेज बाल भी ठीक हो जाते हैं। 

हरा धनिया

हरे धनिए का लेप जिस स्थान पर बाल उड़ गए हैं, वहां करने से  बाल उगने  लगते हैं.।

     उपयोगी उपचार-

थोड़ी सी मुलहठी को दूध में पीसकर, फिर उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है.

केले का गूदा निकालकर उसे निंबू के रस में मिलाकर गंजवाले स्थान पर लगाने से बालों के उडने की समस्या में लाभ होता है।

अनार के पती पीसकर गंज-स्थल पर लगाने से गंज का निवारण होता है।

प्याज काटकर दो भाग करें। आधे प्याज को गंज वाले भाग पर ५ मिनिट रोज रगडें।  बाल आने लगेंगे।
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विभिन्न रोगों में नीम का उपयोग Use of Neem in various diseases


१. प्रसव एवं प्रसूता काल में नीम का उपयोग
१.१ नीम की जड़ को गर्भवती स्त्री के कमर में बांधने से बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है। किन्तु बच्चा पैदा होते ही नीम की जड़ को कमर से खोलकर तुरन्त फेंक देने का सुझाव दिया जाता है। यह प्रयोग देश के कुछ ग्रामीण अंचलों में होते देखा गया है। परीक्षणों के बाद आयुर्वेद ने भी इसे मान्यता दी है।
१.२ प्रसूता को बच्चा जनने के दिन से ही नीम के पत्तों का रस कुछ दिन तक नियमित पिलाने से गर्भाशय संकोचन एवं रक्त की सफाई होती है, गर्भाशय और उसके आस-पास के अंगों का सूजन उतर जाता है, भूख लगती है, दस्त साफ होता है, ज्वर नहीं आता, यदि आता भी है तो उसका वेग अधिक नहीं होता। यह आयुर्वेद का मत है।
१.३ आयुर्वेद के मतानुसार प्रसव के छ: दिनों तक प्रसूता को प्यास लगने पर नीम के छाल का औटाया हुआ पानी देने से उसकी प्रकृति अच्छी रहती है। नीम के पत्ते या तने के भीतरी छाल को औंटकर गरम जल से प्रसूता स्त्री की योनि का प्रक्षालन करने से प्रसव के कारण होने वाला योनिशूल (दर्द) और सूजन नष्ट होता है। घाव जल्दी सूख जाता है तथा योनि शुद्ध तथा संकुचित होता है।
१.४ प्रसव होने पर प्रसूता के घर के दरवाजे पर नीम की पत्तियाँ तथा गोमूत्र रखने की ग्रामीण परम्परा मिलती है। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि घर के अन्दर दुष्ट आत्माएं अर्थात संक्रामक कीटाणुओं वाली हवा न प्रवेश करे। नीम पत्ती और गोमूत्र दोनों में रोगाणुरोधी (anti bacterial) गुण पाये जाते हैं। गुजरात के बड़ौदा में प्रसूता को नीम छाल का काढ़ा एवं नीम तेल पिलाया जाता है, इससे भी स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
२. मासिक धर्म, सुजाक एवं सहवास क्षत में नीम
२.१ आयुर्वेद मत में नीम की कोमल छाल ४ माशा तथा पुराना गुड २ तोला, डेढ़ पाव पानी में औंटकर, जब आधा पाव रह जाय तब छानकर स्त्रियों को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म पुन: शुरू हो जाता है। एक अन्य वैद्य के अनुसार नीम छाल २ तोला सोंठ, ४ माशा एवं गुण २ तोला मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर देने से मासिक धर्म की गड़बड़ी ठीक होती है।
२.२ स्त्री योनि में सुजाक (फुंसी, चकते) होने पर नीम के पत्तों के उबले गुनगुने जल से धोने से लाभ होता है। एक बड़े व चौड़े बर्तन में नीम पत्ती के उबले पर्याप्त जल में जो सुसुम हो, बैठने से सुजाक का शमन होता है और शान्ति मिलती है। पुरूष लिंग में भी सुजाक होने पर यही सुझाव दिया जाता है। इससे सूजन भी उतर जाता है और पेशाब ठीक होने लगता है।
२.३ नीम पत्ती को गरम कर स्त्री के कमर में बांधने से मासिक धर्म के समय होने वाला कष्ट या पुरूषप्रसंग के समय होने वाला दर्द नष्ट होता है।
२.४ नीम के पत्तों को पीस कर उसकी टिकिया तवे पर सेंककर पानी के साथ लेने से सहवास के समय स्त्री योनि के अन्दर या पुरूष लिंग में हुए क्षत भर जाते हैं, दर्द मिट जाता है।
३. प्रदर रोग (Leocorea) में नीम
३.१ प्रदर रोग मुख्यत: दो तरह के होते हैं-श्वेत एवं रक्त। जब योनि से सड़ी मछली के समान गन्ध जैसा, कच्चे अंडे की सफेदी के समान गाढ़ा पीला एवं चिपचिपा पदार्थ निकलता है, तब उसे श्वेत प्रदर कहा जाता है। यह रोग प्रजनन अंगों की नियमित सफाई न होने, संतुलित भोजन के अभाव, बेमेल विवाह, मानसिक तनाव, हारमोन की गड़बड़ी, शरीर से श्रम न करने, मधुमेह, रक्तदोष या चर्मरोग इत्यादि से होता है। इस रोग की अवस्था में जांघ के आस-पास जलन महसूस होता है, शौच नियमित नहीं होता, सिर भारी रहता है और कभी-कभी चक्कर भी आता है। रक्त प्रदर एक गंभीर रोग है। योनि मार्ग से अधिक मात्रा में रक्त का बहना इसका मुख्य लक्षण है। यह मासिक धर्म के साथ या बाद में भी होता है। इस रोग में हाथ-पैर में जलन, प्यास ज्यादा लगना, कमजोरी, मूर्च्छा तथा अधिक नींद आने की शिकायतें होती हैं।
३.२ श्वेत प्रदर में नीम की पत्तियों के क्वाथ से योनिद्वार को धोना और नीम छाल को जलाकर उसका धुआं लगाना लाभदायक माना गया है। दुर्गन्ध तथा चिपचिपापन दूर होने के साथ योनिद्वार शुद्ध एवं संकुचित होता है। यह आयुर्वेद ग्रंथ 'गण-निग्रह' का अभिमत है।
३.३ रक्त प्रदर में नीम के तने की भीतरी छाल का रस तथा जीरे का चूर्ण मिलाकर पीने से रक्तस्राव बन्द होता है तथा इस रोग की अन्य शिकायतें भी दूर होती हैं।
३.४ प्रदर रोग में (कफ होने पर) नीम का मद एवं गुडची का रस शराब के साथ लेने से लाभ होता है।
४. घाव, फोड़े-फुंसी, बदगांठ, घमौरी तथा नासूर में नीम
४.१ घाव एवं चर्मरोग बैक्टेरियाजनित रोग हैं और नीम का हर अंग अपने बैक्टेरियारोधी गुणों के कारण इस रोग के लिए सदियों से रामवाण औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। घाव एवं चर्मरोग में नीम के समान आज भी विश्व के किसी भी चिकित्सा-पद्धति में दूसरी कोई प्रभावकारी औषधि नहीं है। इसे आज दुनियाँ के चिकित्सा वैज्ञानिक भी एकमत से स्वीकारने लगे हैं।
४.२ घाव चाहे छोटा हो या बड़ा नीम की पत्तियों के उबले जल से धोने, नीम पत्तियों को पीस कर उसपर छापने और नीम का पत्ता पीसकर पीने से शीघ्र लाभ होता है। फोड़े-फुंसी व बलतोड़ में भी नीम पत्तियाँ पीस कर छापी जाती हैं।
४.३ दुष्ट व न भरने वाले घाव को नीम पत्ते के उबले जल से धोने और उस पर नीम का तेल लगाने से वह जल्दी भर जाता है। नीम की पत्तियाँ भी पीसकर छापने से लाभ होता है।
४.४ गर्मी के दिनों में घमौरियाँ निकलने पर नीम पत्ते के उबले जल से नहाने पर लाभ होता है।
४.५ नीम की पत्तियों का रस, सरसों का तेल और पानी, इनको पकाकर लगाने से विषैले घाव भी ठीक हो जाते हैं।॥
४.६ नीम का मरहम लगाने से हर तरह के विकृत, विषैले एवं दुष्ट घाव भी ठीक होते हैं। इसे बनाने की विधि इस प्रकार है-नीम तेल एक पाव, मोम आधा पाव, नीम की हरी पत्तियों का रस एक सेर, नीम की जड़ के छाल का चूर्ण एक छटाक, नीम पत्तियों की राख ढाई तोला। एक कड़ाही में नीम तेल तथा पत्तियों का रस डालकर हल्की आँच पर पकावें। जब जलते-जलते एक छटाक रह जाय तब उसमें मोम डाल दें। गल जाने के बाद कड़ाही को चूल्हे पर से उतार कर और मिश्रण को कपड़े से छानकर गाज अलग कर दें। फिर नीम की छाल का चूर्ण और पत्तियों की राख उसमें बढ़िया से मिला दें। नीम का मरहम तैयार।
४.७ हमेशा बहते रहने वाले फोड़े पर नीम की छाल का भष्म लगाने से लाभ होता है।
४.८ छाँव में सूखी नीम की पत्ती और बुझे हुए चूने को नीम के हरे पत्ते के रस में घोटकर नासूर में भर देने से वह ठीक हो जाता है। जिस घाव में नासूर पड़ गया हो तथा उससे बराबर मवाद आता हो, तो उसमें नीम की पत्तियों का पुल्टिस बांधने से लाभ होता है।
५. उकतव (एक्जिमा), खुजली, दिनाय में नीम
५.१ रक्त की अशुद्धि तथा परोपजीवी (Parasitic) कीटाणुओं के प्रवेश से उकवत, खुजली, दाद-दिनाय जैसे चर्मरोग होते हैं। इसमें नीम का अधिकांश भाग उपयोगी है।
५.२ उकवत में शरीर के अंगों की चमड़ी कभी-कभी इतनी विकृत एवं विद्रूप हो जाती है कि एलोपैथी चिकित्सक उस अंग को काटने तक की भी सलाह दे देते हैं, किन्तु वैद्यों का अनुभव है कि ऐसे भयंकर चर्मरोग में भी नीम प्रभावकारी होता है। एक तोला मजिष्ठादि क्वाथ तथा नीम एवं पीपल की छाल एक-एक तोला तथा गिलोय का क्वाथ एक तोला मिलाकर प्रतिदिन एक महीने तक लगाने से एक्जिमा नष्ट होता है।
५.३ एक्जिमा में नीम का रस (जिसे मद भी कहते हैं) नियमित कुछ दिन तक लगाने और एक चम्मच रोज पीने से भी १०० प्रतिशत लाभ होता है। सासाराम (बिहार) के एक मरीज पर इसका लाभ होते प्रत्यक्ष देखा गया। खुजली और दिनाय में भी नीम का रस समान रूप से प्रभावकारी है।
५.४ कुटकी के काटने से होने वाली खुजली पर नीम की पत्ती और हल्दी ४:१ अनुपात में पीसकर छापने से खुजली में ९७ प्रतिशत तक लाभ पाया गया है। यह प्रयोग १५ दिन तक किया जाना चाहिए।
५.५ नीम के पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर लगाने से भी दाद मिट जाता है।
५.६ वसंत ऋतु में दस दिन तक नीम की कोमल पत्ती तथा गोलमीर्च पीसकर खाली पेट पीने से साल भर तक कोई चर्मरोग नहीं होता, रक्त शुद्ध रहता है। रक्त विकार दूर करने में नीम के जड़ की छाल, नीम का मद एवं नीम फूल का अर्क भी काफी गुणकारी है। चर्मरोग में नीम तेल की मालिश करने तथा छाल का क्वाथ पीने की भी सलाह दी जाती है।
६. जले-कटे में नीम
६.१ आग से जले स्थान पर नीम का तेल लगाने अथवा नीम तेल में नीम पत्तों को पीस कर छापने से शान्ति मिलती है। नीम में प्रदाहक-रोधी (anti-inflammatory) गुण होने के कारण ऐसा होता है।
६.२ नीम की पत्ती को पानी में उबाल कर उसमें जले हुए अंग को डुबोने से भी शीघ्र राहत मिलती है।
६.३ नीम के तेल एवं पत्तियों में anticeptic गुण होते हैं। कटे स्थान पर इनका तेल लगाने से टिटनेस का भय नहीं होता।
७. कुष्ठरोग में नीम
७.१ दुनियाँ में २५ करोड़ से भी अधिक और भारत में पचासों लाख लोग कुष्ट रोग के शिकार हैं। सैकड़ों कोढ़ नियंत्रण चिकित्सा केन्द्रों के बावजूद इस रोग से पीड़ितों की संख्या में मामूली कमी आयी है। यह रोग एक छड़नुमा 'माइक्रोबैक्टेरिया लेबी' से होता है। चमड़ी एवं तंत्रिकाओं में इसका असर होता है। यह दो तरह का होता है-पेप्सी बेसीलरी, जो चमड़ी पर धब्बे के रूप में होता है, स्थान सुन्न हो जाता है। दूसरा मल्टीबेसीलरी, इसमें मुँह लाल, उंगलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी तथा नाक चिपटी हो जाती है। नाक से खून आता है। दूसरा संक्रामक किस्म का रोग है। इसमें डैपसोन रिफैमिसीन और क्लोरोफाजीमिन नामक एलोपैथी दवा दी जाती है। लेकिन इसे नीम से भी ठीक किया जा सकता है।
७.२ प्राचीन आयुर्वेद का मत है कि कुष्ठरोगी को बारहों महीने नीम वृक्ष के नीचे रहने, नीम के खाट पर सोने, नीम का दातुन करने, प्रात:काल नित्य एक छटाक नीम की पत्तियों को पीस कर पीने, पूरे शरीर में नित्य नीम तेल की मालिश करने, भोजन के वक्त नित्य पाँच तोला नीम का मद पीने, शैय्या पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछाने, नीम पत्तियों का रस जल में मिलाकर स्नान करने तथा नीम तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर घाव पर लगाने से पुराना से पुराना कोढ़ भी नष्ट हो जाता है।
८. धवल रोग (Leucoderma) में नीम
८.१ शरीर के विभिन्न भागों में चकते के रूप में चमड़ी का सफेद हो जाना, फिर पूरे शरीर की चमड़ी का रंग बदल जाना, धवल रोग है। इसका स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता, इसके होने का कारण भी बहुत ज्ञात नहीं,किन्तु यूनानी चिकित्सा का मत है कि यह रक्त की खराबी, हाजमें की गड़बड़ी, कफ की अधिकता, पेट में कीड़ों के होने, असंयमित खान-पान, मानसिक तनाव, अधिक एंटीबायोटिक दवाइयों के सेवन आदि से होता है।
८.२ नीम की ताजी पत्ती के साथ बगुची का बीज (Psora corylifolia) तथा चना (Circerarietinum) पीसकर लगाने से यह रोग दूर होता है।
९. बवासीर
९.१ प्रतिदिन नीम की २१ पत्तियों को मूंग की भिंगोई और धोयी हुई दाल मे पीसकर बिना कोई मशाला डाले पकौड़ी बनाकर २१ दिन तक खाने से हर तरह का बवासीर निर्बल होकर गिर जाता है। पथ्य में सिर्फ ताजा मट्ठा, भात एवं सेंघा नमक लिया जाना चाहिए।
९.२ नीम बीज का पाउडर शहद में मिलाकर दिन में दो बार खाने से भी कुछ दिनों में बवासीर नष्ट हो जाते हैं। यह प्रयोग बुन्देलखण्ड के आदिवासियों द्वारा करते देखा गया है। इसमें नीम के टूसे बवासीर पर बांधने की सलाह दी जाती है।
१०. आँख की बीमारी में नीम
१०.१ नीम की हरी निबोली का दूध आँखों पर लगाने से रतौंधी दूर होती है। आँख में जलन या दर्द हो तो नीम की पत्ती कनपटी पर बांधने से आराम मिलता है। नीम के पत्ते का रस थोड़ा सुसुम कर जिस ओर आंख में दर्द हो, उसके दूसरी ओर कान में डालने से लाभ होता है। दोनों आँख में दर्द हो तो दोनों कान में सुसुम तेल डालना चाहिए।
१०.२ नीम के फूल छाँव में सुखाकर समान भाग कलमी शोरे के साथ पीसकर कपड़े से छानकर आँख में आँजन करने से फूली, धुंध, माडा, रतौंधी आदि दूर होते हैं, आँखों की ज्योति बढ़ती है।
१०.३ नीम की पत्तियों का रस तथा लाल फिटकिरी जल में मिलाकर उससे धोने से आँख का जाला साफ होता है तथा स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है।
१०.४ दु:खती आँख में नीम पत्तियों का रस शहद में मिलाकर लगाने से भी दर्द दूर होता है और साफ दिखाई पड़ता है। नीम की लकड़ी जलाकर उसकी राख का सूरमा भी लगाने से इसमें लाभ होता है।
१०.५ नीम की निबोली (फल) का रस, लोहे के किसी पात्र में रगड़कर और हल्का गर्म कर पलकों पर लेप करने से नेत्र का धुंधलापन दूर होता है।
१०.६ शुष्ठी और नीम के पत्तों को सेंधा नमक के साथ पीसकर नेत्र पलकों पर लगाने से सूजन, जलन, दर्द तथा आंखो का गड़ना समाप्त होता है।
१०.७ नीम की पत्तियों तथा लोधरा का पाउडर कपड़े में बांधकर पानी में कुछ देर छोड़ दें, फिर उस पानी से आँख धोने से नेत्र-विकार दूर होते हैं।
१०.८ नीम काजल : नीम की पीली सूखी पत्तियाँ ७ नग, नीम के सूखे फलों का चूर्ण एक माशा, नीम तेल एक तोला, साफ महीन कपड़ा ४ इंच। कपड़े पर नीम की सूखी पत्तियाँ तथा फलों का चूर्ण रखकर, हाथ से मसलकर तथा लपेटकर बत्ती बना लें। एक मिट्टी के दीपक में नीम का तेल डालकर उसमें बत्ती डूबो कर जला दें। जब बत्ती अच्छी तरह जलने लगे, तब उस पर एक ढकनी लगाकर काजल एकत्र कर लें। इसको आँखों में लगाने से हर प्रकार के नेत्र रोग दूर होते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ती है। नीम के फूलों का भी काजल लगाने से लाभ होता है।
१०.९ नीम का तेल आँखों में आँजने और नीम का मद ६ तोला दो तीन दिन तक प्रात: पीने से भी रतौंधी दूर होती है। किन्तु मद को दो-तीन दिन से अधिक नहीं पीना चाहिए।
१०.१० नीम की पत्तियों का रस आँख में टपकाने से भी नेत्र के जलन व विकार नष्ट होते हैं।
११ कान रोग में नीम
११.१ नीम का तेल गर्म कर एवं थोड़ा ठंढ़ा कर कान में कुछ दिन तक नियमित डालने से बहरापन दूर होता है।
११.२ कान-दर्द या कान-बहने में नीम तेल कुछ दिन तक कान में नियमित डालने से ठीक होता है।
११.३ कान के घाव एवं उससे मवाद आने में नीम का रस (मद) शहद के साथ मिलाकर डालने या बत्ती भिंगोकर कान में रखने से मवाद निकलना बन्द होता है और घाव सूखता है।
१२. नाक तथा दाँत की बीमारी में नीम
१२.१ नीम की पत्तियाँ तथा अजवाइन दोनों पीसकर कनपट्टियों पर लेप करने से नकसीर बन्द होता है।
१२.२ मसूड़ों से खून आने और पायरिया होने पर नीम के तने की भीतरी छाल या पत्तों को पानी में औंटकर कुल्ला करने से लाभ होता है। इससे मसूड़े और दाँत मजबूत होते हैं। नीम के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से भी इसमें लाभ होता है।
१२.३ नीम का दातुन नित्य करने से दाँतों के अन्दर पाये जाने वाले कीटाणु नष्ट होते हैं। दाँत चमकीला एवं मसूड़े मजबूत व निरोग होते हैं। इससे चित्त प्रसन्न रहता है।
१३. बालों के जुंए, भूरापन तथा कील-मुहांसा में नीम
१३.१ पुराने समय में स्त्रियाँ नीम के तने का भीतरी छाल घिसकर चेहरे पर लगाती थीं, जिससे त्वचा कोमल तथा कील-मुहांसों से मुक्त होता था।
१३.२ बालों में नीम का तेल लगाने से जुएं तथा रूसी नष्ट होते हैं।
१३.३ नीम तेल नियमित सिर में लगाने से गंजापन या बाल का तेजी से झड़ना रूक जाता है। यह बालों को भूरा होने से भी बचाता है। नीम तेल से हेयर आयल तथा हेयर लोशन भी बनाये जाते हैं। मार्गो या नीम साबुन भी इसमें लाभप्रद है। किन्तु नीम तेल या उससे बने साबुन, तेल, लोशन आदि लगाने से माथे में गर्मी भी होती है, अत: बहुत जरूरी होने पर ही इनका प्रयोग करना चाहिए।
१४. पेट-कृमि में नीम
१४.१ आंत में पड़ने वाली सफेद कृमि या केचुए को जड़ से नष्ट करने में संभवत: नीम जैसा गुणकारी कोई अन्य औषधि नहीं है। नीम की पत्ती १५-२० नग तथा काली मिर्च १० नग थोड़े से नमक के साथ पीसकर एक गिलास जल में घोलकर खाली पेट ३-४ दिन तक पी लेने से इन कृमियों से कम से कम २-३ वर्ष तक के लिए मुक्ति मिल जाती है।
१४.२ बैगन या किसी दूसरे साग के साथ नीम की पत्तियों की छौंक लगाकर खाने से भी कृमि नष्ट होती है। सिर्फ नीम की पत्तियों का चूर्ण १०-१५ दिन खा लेने से भी लाभ होता है।
१४.३ एक अन्य मत के अनुसार दस ग्राम नीम के पत्ते, दस ग्राम शुद्ध हींग के साथ कुछ दिन नियमित सेवन करने से भी पेट के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
१५. मलेरिया में नीम
१५.१ नीम वृक्ष मलेरिया-रोधी के रूप में प्रसिद्ध है। इसकी छाया में रहने और इसकी हवा लेने वालों पर मलेरिया का प्रकोप नहीं होता, यह ग्रामीण अनुभव है। इस वृक्ष के आस-पास मलेरिया तथा अन्य संक्रामक बीमारियों के वायरस भी जल्दी नहीं आते। यह वायरस-विरोधी (anti Viral) वृक्ष है। अत: घर के आस-पास नीम वृक्ष लगाने और स्वच्छता रखने की सलाह दी जाती है।
१५.२ मलेरिया मुख्यत: मच्छरों के काटने से होता है। सर्दी, कंपकपाहट, तेज बुखार, बेहोशी, बुखार उतरने पर पसीना छूटना, इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग में नीम के तने की छाल का काढ़ा दिन में तीन बार पिलाने अथवा नीम के जड़ की अन्तर छाल एक छटाक ६० तोला पानी में १८ मिनट तक उबालकर और छानकर ज्वर चढ़ने से पहले २-३ बार पिलाना चाहिए। इससे ज्वर उतर जाता है। १५.३ नीम तेल में नारियल या सरसो का तेल मिलाकर शरीर पर मालिश करने से भी मच्छरों के कारण उत्पन्न मलेरिया ज्वर उतर जाता है।
१६. सामान्य एवं विषम ज्वर में नीम
१६.१ नीम के अन्तर छाल का चूर्ण, सोंठ तथा मीर्च का काढ़ा विषम ज्वर में देने से लाभ होता है। इसमें नीम के तेल की मालिश करने तथा प्रमाण से रोगी को पिलाने से भी लाभ होता है। छाल की अपेक्षा तेल का प्रभाव जल्द होता बताया गया है। सूजनयुक्त ज्वर या उष्मज्वर में नीम का छाल अधिक उपयोगी पाया गया है। नीम पत्तों को पीस-छान कर भी रोगी को पिलाया जा सकता है। ये सारी औषधियाँ रोगी को कुछ खिलाने से पहले दी जानी चाहिए।
१६.२ मलेरियस ज्वर में नीम तेल की ५-१० बूंद दिन में दो बार देने से अच्छा लाभ होते देखा गया है। जीर्ण ज्वर में नीम का छाल एक तोला १० छटांक पानी में औंटकर, जब एक छटाक रह जाय तो छानकर प्रात: काल पिलाने से कुछ ही दिनों में अन्दर रहने वाला ज्वर विल्कुल निकल जाता है।
१६.३ तेज सिहरनयुक्त ज्वर के साथ कै होने पर नीम की पत्ती के रस शहद एवं गुड़ के साथ देने से लाभ होता है। नीम का पंचांग (पता, जड़ फूल, फल और छाल) को एक साथ कूटकर घी के साथ मिलाकर देने से भी लाभ होता है। यह सुश्रुत एवं काश्यप का मत है। १६.४ साधारण बुखार में नीम की पत्तियाँ पीस कर दिन में तीन बार पानी में छानकर पिलाने से बुखार उतर जाता है। साधारण या विषम ज्वर में नीम के पत्तों की राख रोगी के शरीर पर मालिश करना लाभदायक होता है।
१७. चेचक में नीम
१७.१ इसकी भयंकरता के कारण इस रोग को दैवी प्रकोप माना जाता रहा है। यह जब उग्र रूप धारण करता है तब बड़े-बड़े चिकित्सकों की भी कुछ नहीं सुनता। आयुर्वेद में चेचक के रोकथाम के जो निदान बातये गये हैं उनमें नीम का उपयोग ही सर्वाधिक वर्णित है। इसके सेवन से या तो चेचक निकलता ही नहीं अथवा निकलता भी है तो उग्र नहीं होता, क्रमश: शान्त हो जाता है। नीम में चूंकि दाहकता शान्त करने के शीतल गुण हैं, इसलिए यह लोक जीवन में शीतला देवी के रूप में भी पूजित है।
१७.२ चेचक कभी निकले ही नहीं, इसके लिए आयुर्वेद मत में उपाय है कि चैत्र में दस दिन तक प्रात:काल नीम की कोमल पत्तियाँ गोल मिर्च के साथ पीस कर पीना चाहिए। नीम का बीज, बहेड़े का बीज और हल्दी समान भाग में लेकर पीस-छानकर कुछ दिन पीने से भी शीतला/चेचक का डर नहीं रह जाता।
१७.३ चेचक निकलने पर रोगी को स्वच्छ घर में नीम के पत्तों पर लिटाना, घर में नीम की ताजा पत्तियों की टहनी का बन्दनवार लटकाना तथा नीम का चंवर बनाकर रोगी को हवा देना चाहिए। बिस्तरे की पत्तियाँ नित्य बदल देनी चाहिए। रोगी को यदि अधिक जलन महसूस हो तो नीम की पत्तियों को पीसकर पानी में घोलकर तथा मथानी से मथकर उसका फेन चेचक के दानों पर सावधानी पूर्वक लगाना चाहिए। इससे भी राहत नहीं मिलने पर नीम की कोमल पत्तियाँ पीसकर चेचक के दानों पर हल्का लेप चढ़ाना चाहिए। नीम के बीज की गिरी को पीसकर भी लेप करने से दाहकता शीघ्र कम होती है। रोगी को प्यास लगने पर नीम के छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में बुझाकर उस पानी को छान कर पिलाना चाहिए। नीम की पत्तियों को पानी में औंटकर पिलाने से भी दाहकता शान्त होती है। इससे चेचक का विष एवं ज्वर भी कम होता है, चेचक के दाने शीघ्र सूखते हैं। चेचक के दाने ठीक से न निकलने पर भी बेचैनी होती है। अत: नीम की पत्तियाँ पीस कर दिन में तीन बार पिलाने से वह शीघ्र निकल आते हैं। जब दाने सूख जांय तब नीम का पत्ता जल में उबालकर रोगी को कुछ दिन नियमित स्नान और नीम तेल की मालिश करनी चाहिए। इससे चेचक के दाग भी मिट जाते हैं। नीम बीज की गिरी पानी में गाढ़ा पीस कर दाग पर लगाना भी फायदेमंद होता है। चेचक होने पर कई रोगियों के कुछ बाल भी झड़ जाते हैं। इसमें नीम तेल माथे पर लगाने से बाल पुन: उग आते हैं।
१७.४ चेचक में भूलकर भी नीम के अलावे कोई दूसरा इलाज करना बैद्यों ने मना किया है।
१८. प्लेग में नीम
१८.१ वायरस कीटाणुओं से होने वाला यह एक संक्रामक बीमारी है। मिट्टी, जल और वायु के प्रदूषण से इसके कीटाणु (पिप्सू) संक्रमित होते हैं, जो पहले चूहों में लगते हैं, फिर चूहों से मिट्टी, खाद्य पदार्थ, जल एवं वायु के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। तेज बुखार, साँस लेने में कठिनाई, खून की उल्टियाँ, आँत में दर्द, बगल तथा गले में सूजन अथवा गांठे पड़ जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। आयुर्वेद में इसे ग्रन्थिक या वातलिकार ज्वर कहा जाता है। यह बहुत तेजी से फैलता है। इसके वायरस शरीर की कोशिकाओं को नष्ट कर व्यक्ति को अपनी चपेट में तुरन्त ले लेते हैं।
१८.२ प्लेग फैलते ही स्वस्थ लोगों को नीम के पत्ते पीस कर नित्य पीते रहना चाहिए, इससे प्लेग का उनपर असर नही होता। प्लेग के शिकार रोगी को नीम का पंचाग (बीज, छाल, पत्ता, फूल, गोद) कूटकर पानी मे छानकर दस-दस तोले की मात्रा हर पन्द्रह मिनट पर देनी चाहिए। तत्काल नीम के पांचों अंग न मिले तो जो भी मिले उसी को देना चाहिए। १८.३ शरीर के जोड़ों पर नीम की पत्तियों की पुल्टिस बांधने तथा आस-पास नीम की लकड़ी-पत्तों की घूनी करने से भी प्लेग का शमन होता है।
१९. हैजा में नीम
१९.१ यह अशुद्ध/दूषित जल के उपयोग से फैलने वाला संक्रामक रोग है। इसकी अभी कोई कारगार दवा इजाद नहीं हुई है। इसके जीवाणु पहले आंत में प्रतिक्रिया करते हैं। तत्काल उपाय न होने पर देखते-देखते रोगी मर जाता है। ग्लूकोज या नमक चीनी का घोल तुरन्त दिया जाना लाभदायक होता है। इसके फैलने पर व्यक्ति को पानी उबालकर पीना चाहिए, मांस-मंछली वर्जित करना चाहिए, खुले स्थान के मल को मिट्टी से ढक देना या लैट्रिन की विधिवत सफाई होती रहनी चाहिए। हैजा 'विब्रियो कैलेरा' नामक जीवाणु से संक्रमित होता है। कूड़े-कचड़ों के सड़न में इनका निवास अधिक होता है। इस बैक्टेरिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने मल द्वारा हैजे के करोड़ों जीवाणु वातावरण में छोड़ता है, उससे जल, मिट्टी, खाद्य पदार्थ तथा वायु संक्रमित होते हैं। मक्खियाँ भी इसके संवाहक बनती हैं। उल्टी-दस्त, हाथ-पांव में ऐठन और तेज प्यास इसके प्रमुख लक्षण हैं।
१९.२ नीम के पत्तों को पीसकर, गोला बनाकर तथा कपड़े में बांधकर ऊपर सनी हुई मिट्टी का मोटा लेप चढ़ाकर उसे आग के धूमल (भभूत) में पकाना चाहिए, जब वह लाल हो जाय तब थोड़ी-थोड़ी देर पर उस पके हुए गोले को अर्क गुलाब के साथ रोगी को देने से दस्त, वमन एवं प्यास रूकता है। नीम तेल की मालिश से शरीर का ऐंठन कम होता है। हैजे में नीम तेल पानी के साथ पीने से भी लाभ होता है। नीम छाल का काढ़ा पतले दस्त में भी लाभकारी होता है।
२०. पिलिया/जौंडिस में नीम
२०.१ नीम का रस (मद) या छाल का क्वाथ शहद में मिलाकर नित्य सुबह लेने से पिलिया में लाभ होता है। मोथा और कियू (Costus speciosus) के जूस में नीम का छाल मिलाकर उसका क्वाथ देने से भी यह रोग नष्ट होता है।
२१. मधुमेह/डायबिटीज में नीम
२१.१ हार्मोन की कमी के कारण रक्त में शर्करा की अधिकता और बार-बार पेशाब लगना, अधिक प्यास, कमजोरी, पैरो में झुनझुनी तथा बेहोशी भी इंसुलिन आधारित मधुमेह के प्रमुख लक्षण हैं। व्यायाम की कमी तथा आहार में प्रोटीन के अभाव से भी मधुमेह होता है, जिसका आधार इंसुलिन नहीं होता। इसमें घबराहट, नसों में दर्द, कमजोरी, थकान, शरीर का सूखना, वजन घटना, अधिक भूख, प्यास और पेशाब का लगना, कभी-कभी अंधापन भी इस रोग के लक्षण हैं।
२१.२ नीम के तने की भीतरी छाल तथा मेथी के चूर्ण का काढ़ा बनाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से मधुमेह की हर स्थिति में लाभ मिलता है।
२२. गठिया, बातरोग, साइटिका, जोड़ों में दर्द (अर्थराइटीस) में नीम
२२.१ इन रोगों में नीम तेल की मालिश, नीम की पत्तियों को पीसकर एवं गर्म कर जोड़ों पर छापने, नीम का मद पीने, नीम के सूखे बीज का चूर्ण हर तीसरे दिन महीने भर खाने से काफी लाभ मिलता है। नीम के छाल को पानी के साथ पीस कर जोड़ों के दर्द वाले स्थान पर गाढ़ा लेप करने से भी दर्द दूर होता है।
२३. सूजन, लकवा, चोट-मोच में नीम
२३.१ नीम के छाल का अर्क २ से ४ तोले तक नित्य पीने और इसके सेवन के २ घंटे बाद तत्काल बनी रोटी घी के साथ खाने से लकवा अर्द्धांश में लाभ होता है। पक्षाघात वाले अंगों पर नीम तेल की मालिश करने की भी सलाह दी जाती है।
२३.२ चोट लगने के कारण आयी मोच और गिल्टियों के सूजन पर नीम की पत्तियों का बफारा देने से लाभ होता है।
२४. कफ, पित्त, दमा, रक्त एवं हृदय विकार तथा पथरी में नीम
२४.१ नीम तथा वक के छाल का काढ़ा कफ में लाभदायक होता है।
२४.२ नीम का फूल, इमली तथा शहद के साथ खाने से कफ एवं पित्त दोनों का शमन होता है।
२४.३ नीम का शुद्ध तेल ३० से ६० बूंद तक पान में रखकर खाने से दमा से छुटकारा मिलता है। नीम के २० ग्राम पत्ते को आधा लीटर पानी में उबालकर जब एक कप रह जाय, कुछ दिन पीते रहने से भी दमा जड़ से नष्ट होता है।
२४.४ नीम का मद, नीम के जड़ की छाल, नीम की कोमल पत्तियाँ अथवा पंचांग (पत्ते, जड़, फूल, फल एवं छाल) का काढ़ा इनमें से किसी का भी सेवन करने से रक्त-विकार दूर होता है। पित्त का भी शमन होता है और हृदय रोग की भी आशंका नहीं होती है। २४.५ नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है। नीम के जड़ की छाल का काढ़ा त्रिदोषों - कफ, वात, पित्त का शमन करता है।
२४.६ नीम की पत्तियों की राख २ माशा जल के साथ नियमित कुछ दिन तक खाते रहने से पथरी गलकर नष्ट हो जाती है।
२५. मन्दाग्नि, वायुरोग, पशु-हाजमा में नीम
२५.१ नीम की पकी निबोली अथवा नीम का फूल कुछ दिन नित्य खाने से मंदाग्नि में काफी लाभ होता है।
२५.२ नीम तेल ३० बूंद पान के साथ खाने से वायु विकार तथा पेट का मरोड़ दूर होता है।
२५.३ पशु हाजमा में नीम की पत्तियाँ गुड़ तथा नमक के साथ कूटकर खिलाने से लाभ होता है। इससे आंत के कीड़े भी मरते हैं।
२६. वमन, विरेचन तथा नशा एवं विष उतारने में नीम
२६.१ नीम बीज जल के साथ खिलाने पर वमन होता है। यह मृदु विरेचक है।
२६.२ कई वर्षों तक लगातार हर साल १०-१५ दिन तक नीम की पत्तियों का सेवन किये हुए व्यक्ति को सर्प, बिच्छू आदि के विष का असर नहीं होता। नीम बीज का चूर्ण गर्म पानी के साथ पीने से भी विष उतरता है।
२६.३ हड्डी, बिच्छू तथा मधुमक्खी के काटने पर नीम की पत्तियों को पीसकर छापनी चाहिए। इसको पीने से संखिया का विष भी उतर जाता है। नीम पत्तों का तेज अर्क अफीम के विष का नाशक है। कच्ची या पक्की निबोली गर्म पानी से पिलाने पर उल्टी होती है, इससे विष का असर नष्ट होता है।
२७. लू से बचाव में नीम
२७.१ नीम के पंचांग (पत्ता, जड़, फूल, फल एवं छाल) तथा मिश्री एक-एक तोला पानी के साथ पीसकर पीने से लू का प्रभाव नष्ट होता है। नीम की पत्ती पीसकर नीम के रस के साथ माथे पर छापने से भी लू का असर कम होता है।
२७.२ चैत्र में दस दिन तक नीम की कोमल पत्ती एवं काली मिर्च पीने वाले व्यक्ति को गर्मी में लू नहीं लगती, शरीर में ढंठक बनी रहती है, कोई फोड़ा-फूंसी, चर्मरोग भी नहीं होता।
२८. एड्स रोग में नीम
२८.१ अभी कुछ ही वर्ष पहले नीम से असाध्य रोग एड्स के वायरस (एच.आई.वी.) प्रतिरोधी कुछ एनजाइम्स की खोज की गई है। भविष्य में नीम से बने एड्स विरोधी टीके आने वाले हैं। नीम छाल से एक ऐसा रसायन तैयार किया गया है जो एड्स को रोकने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है।
२९. अरूचिनाश तथा शुद्धिकरण में नीम
२९.१ नीम की कोमल पत्तियाँ घी में भूनकर खाने से भयंकर अरूचि भी नष्ट होती है।
२९.२ पुराने देशी घी या तेल को शुद्ध करने के लिए गर्म करते समय नीम की पत्तियाँ डाली जाती हैं।
२९.३ अधिक नीम के सेवन से उत्पन्न हुए विकार दूध या सेंधा नमक खाने से दूर होते हैं।
२९.४ नीम की पत्तियों से उबला जल या नीम तेल पानी में मिलाकर फर्श धोने से वातावरण शुद्ध होता है।
२९.५ शवदाह के बाद लौटने या कोई घृणित चीज देखने से उत्पन्न हुए चित्त विकार नीम की पत्तियाँ/टूसे चबाने से दूर होते हैं।
३०. अतिसार, पेचीस में नीम
३०.१ मेघालय की खासी और जैतिया आदिवासी नीम की पत्ती अतिसार (दस्त), पेचिस, क्षयरोग (यक्ष्मा, तपेदिक) और हृदय रोग में व्यवहार करते हैं।
३१. कुपोषण में नीम विटामिन 'ए' का एक समृद्ध स्रोत है। विटामिन 'ए' की कमी से भी रतौंधी के अलावे फोड़े-फुंसी, खुजली, दाद, चमड़ी का खुरदुरा हो जाना या सिकुड़ जाना, हाथ-पाँव, कन्धं तथा जाँघों में फुंसियाँ निकल आना, जुकाम, खाँसी, निमोनिया, स्वाँस की बीमारी, पाचन सम्बन्धी रोग आदि होते हैं। इन कुपोषण-जनित रोगों में नीम का विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है।
३२. कैलेस्ट्रोल नियंत्रण में नीम
कैलेस्ट्रोल रक्त में पाया जाने वाला पीले रंग का एक मोमी पदार्थ है। जब रक्त में यह अधिक हो जाता है, तब रक्त-वाहिनी धमनियों के अन्दर यह जमने लगता है, थक्का बनाकर रक्त-प्रवाह को अवरुद्ध करता है। कैलेस्ट्रोल दो तरह के होते हैं- एच.डी.एल. और एल.डी.एल.। इसमें पहला स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, दूसरा बुरा। बुरा कैलेस्ट्रोल अधिक वसायुक्त पदार्थ (तेल, घी, डालडा), माँस, सिगरेट तथा अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से पैदा होता है। बुरा कैलेस्ट्रोल की वृद्धि से रक्त दूषित होता है, उसका प्रवाह रुकता है और हार्ट अटैक का दौरा पड़ता है। नीम एक रक्त-शोधक औषधि है, यह बुरे कैलेस्ट्रोल को कम या नष्ट करता है। नीम का महीने में १० दिन तक सेवन करते रहने से हार्ट अटैक की बीमारी दूर हो सकती है। कोयम्बटूर के एक आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान में पशुओं पर प्रयोग करके देखा गया कि २०० ग्राम तक नीम पत्तियों के प्रयोग से कैलेस्ट्रोल की मात्रा काफी कम हो जाती है। लीवर की बीमारी में भी नीम पत्ती का सेवन लाभदायक पाया गया है।
३३. नीम के अधिक सेवन से नपुंसकता
३३.१ एक स्वस्थ व्यक्ति को अनावश्यक रूप से नीम का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, इससे नपुंसकता आती है। बहुत से साधु-संत प्रबल कामशक्ति को जीतने के लिए बारहो मास नीम का सेवन करते हैं। प्रात:काल उषापान करने वाले स्वस्थ व्यक्ति को नीम का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। नीम का दातुन इसमें अपवाद है।
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पेट की चर्बी कैसे कम करें

असंतुलित खाने के बढ़ते प्रचलन के कारण आज हर दूसरा व्यक्ति मोटापे से परेशान है। खाने के शौकीन लोगों के लिए तो आहार पर कंट्रोल करना और भी मुश्किल है। शरीर पर अधिक चर्बी बढ़ने से पेट बाहर निकल आता है और हाथ-पैर, गर्दन, कमर इत्यादि जगहों पर भी चर्बी जमा हो जाती है। जिससे शरीर बेड़ौल होने लगता हैं बहुत कम लोग ऐसे हैं जो वसा से दूर रह पाते हैं। यानी लोग मिठाईयों, तले पदार्थों और स्‍नैक्स इत्यादि को आसानी से नहीं छोड़ पाते। आइए जानें पेट की चर्बी कैसे कम की जा सकती हैं।

  • सबसे पहले तो ध्यान रखने वाली बात यह है कि खाना खाने के तुरंत बाद पानी न पीयें, बल्कि खाने के एक से डेढ़ घंटे के अंतराल पर पानी पीयें।
  • भोजन जब भी करें संयमित करें यानी भूख से थोड़ा कम ही खांए।
  • भोजन में तैलीय पदार्थों और मीठे के बजाय साग, सब्जी, सलाद और फलों को शामिल करें।
  • खाने में चावल, आलू और घी का प्रयोग कम से कम करें।
  • सप्ताह में कम से कम एक दिन सिर्फ तरल पदार्थों को पीने का नियम बांध लें या फिर दूध और फल ही खाएं।
  • प्रतिदिन व्यायाम, एक्ससरसाइज और योगा को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
  • पूरे दिन में दो-तीन बार कम से कम 30 मिनट तक टहलें।
  • गेहूं की चपाती छोड़ चने, जौ इत्यादि से मिले आटे की चपाती खाना आरंभ कर दें। साथ ही नाश्‍ते में जूस और स्प्राउट्स को शामिल कर सकते हैं।
  • सुबह-सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद और और नींबू घोलकर पीएं।
  • भोजन को हमेशा धीरे-धीरे और चबाकर खाएं।
  • पूरे दिन में कम से कम 12-13 गिलास पानी पींए और अपनी नींद पूरी करें।
  • पेट की चर्बी कम करने के लिए आपको नमक की मात्रा भी घटानी होगी और तनाव से दूर रहना होगा।

अपनी जीवनशैली को सुधार कर, नियमित खाने में वसा कम कर आप आसानी से अपने पेट के आसपास की चर्बी को खत्मक कर सकते हैं।
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टमाटर खायें सेहत पायें


टमाटर के पोषक तत्‍व

टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन-ए, बी6, सी पाया जाता है। इसमें लो कैलोरी होती है इसे खाने से शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल का स्‍तर नही बढ़ता है। एसिडिटी की शिकायत होने पर टमाटरों की खुराक बढ़ाने से यह शिकायत दूर हो जाती है। यह ब्‍लड प्रेशर को नियंत्रित भी करता है। सूखा रोग, गठिया और कैंसर से बचाता है।
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थायराइड मरीज के लिए डाइट चार्ट


थायराइड बहुत ही आवश्‍यक ग्रंथि है। यह ग्रंथि गले के अगले-निचले हिस्‍से में होती है। थायराइड को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्‍योंकि इसका लक्षण एक साथ नही दिखता है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो आदमी की मौत हो सकती है। यह ग्रंथि होती तो बहुत छोटी है लेकिन, हमारे शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने में इसका बहुत योगदान होता है। 
thyroid mareej ke liye diet chart
थाइराइड एक प्रकार की इंडोक्राइन ग्रंथि है, जो कुछ हार्मोन के स्राव के लिए जिम्‍मेदार होती है। यदि थाइराइड ग्रंथि अच्‍छे से काम करना बंद कर दे तो शरीर में कई समस्‍यायें शुरू हो जाती हैं। शरीर से हार्मोन का स्राव प्रभावित हो जाता है। लेकिन यदि थायराइड ग्रंथि कम या अधिक सक्रिय हो तब भी शरीर को प्रभावित करती है। 

लाइफस्‍टाइल और खान-पान में अनियमितता बरतने के कारण थायराइड की समस्‍या होती है। अगर शुरूआत में ही खान-पान का ध्‍यान रखा जाए तो थायराइड की समस्‍या होने की संभावना कम होती है। थायराइड के मरीजों का डाइट चार्ट कैसा हो, हम आपको उसकी जानकारी देते हैं।



थायराइड रोगियों के लिए डाइट चार्ट -
  • अपनी डाइट चार्ट में ऐसे खाद्य-पदार्थों को शामिल कीजिए जिसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो। क्‍योंकि आयोडीन की मात्रा थायराइड फंक्‍शन को प्रभावित करती है।
  • समुद्री जीवों में सबसे ज्‍यादा आयोडीन पाया जाता है। समुद्री शैवाल, समुद्र की सब्जियों और मछलियों में आयोडीन की भरपूर मात्रा होती है।
  • कॉपर और आयरन युक्‍त आहार के सेवन करने से भी डायराइड फंक्‍शन में बढ़ोतरी होती है।
  • काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में कॉपर की मात्रा होती है।
  • हरी और पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन की भरपूर मात्रा होती है।
  • पनीर और हरी मिर्च तथा टमाटर थायराइड गंथि के लिए फायदेमंद हैं।
  • विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त आहार खाने से थायराइड फंक्‍शन में वृद्धि होती है।
  • प्‍याज, लहसुन, मशरूम में ज्‍यादा मात्रा में विटामिन पाया जाता है।
  • कम वसायुक्‍त आइसक्रीम और दही का भी सेवन थायराइड के मरीजों के लिए फायदेमंद है।
  • गाय का दूध भी थायराइड के मरीजों को पीना चाहिए।
  • नारियल का तेल भी थायराइड फंक्‍शन में वृद्धि करता है। नारियल तेल का प्रयोग सब्‍जी बनाते वक्‍त भी किया जा सकता है।




थायराइड के रोगी इन खाद्य-पदार्थों को न खायें -
  • सोया और उससे बने खाद्य-पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।
  • जंक और फास्‍ट फूड भी थायराइड ग्रंथि को प्रभावित करते हैं। इसलिए फास्‍ट फूड को अपनी आदत मत बनाइए।
  • ब्राक्‍कोली, गोभी जैसे खाद्य-पदार्थ थायराइड फंक्‍शन को कमजोर करते हैं।




थायराइड थायराइड के मरीजों को डाइट चार्ट का पालन करना चाहिए, साथ ही नियमित रूप से योगा और एक्‍सरसाइज भी जरूरी है। नियमित व्‍यायाम करने से भी थायराइड फंक्‍शन में वृद्धि होती है। थायराइड की समस्‍या बढ़ रही हो तो चिकित्‍सक से संपर्क अवश्‍य कीजिए।



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चर्बी घटानी है तो पिएं सब्जियों का जूस


दिन प्रतिदिन बढ़ती कमर ने आपकी रातों की नींद उड़ा रखी है तो परेशान होने की जरूरत नहीं। सब्जियों का नियमित रूप से जूस पीना शुरू कर दें। फिर देखिए वजन कैसे कम नहीं होता। हाल ही में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि रोजाना एक गिलास सब्जियों (कम नमक वाला) का जूस पीना वजन घटाने में बेहद कारगर है। यह पौष्टिक तो होता ही है इसका सबसे ज्यादा फायदा मोटे लोगों और कमजोर पाचन तंत्र वाले लोगों को पहुंचता है। सब्जियों का जूस पीने से शरीर की अतिरिक्त चर्बी घटती है साथ ही हाई ब्लड प्रेशर, खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने की समस्या से भी बचा जा सकता है। बेलर कालेज के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया कि जिन प्रतिभागियों ने कम नमक वाला सब्जियों का जूस पिया था, उनका वजन 12 हफ्तों में दो किलो तक कम हुआ। वहीं फल या अन्य चीजों का जूस पीने वालों का वजन सिर्फ आधा किलो ही घटा। शोध में भाग लेने वाले ज्यादातर लोग अफ्रीकी अमेरिकी मूल के थे। इनमें बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनका पाचन तंत्र कमजोर था। शोध के दौरान प्रतिभागियों को खाने में फल, सब्जियों के अलावा कम फैट वाले दूध के उत्पाद व अनाज दिए गए। उनके वसा, नमक और कोलेस्ट्राल पर भी नजर रखी गई। प्रतिभागियों के दो समूहों को कम नमक वाला सब्जियों के जूस 12 हफ्तों तक पिलाया गया। जबकि तीसरे समूह को सब्जियों का जूस नहीं दिया गया। शोधकर्ताओं ने बताया कि सब्जियों का जूस पीने वाले प्रतिभागियों के शरीर में विटामिन सी और पोटेशियम की मात्रा अधिक पाई गई। यही नहीं उनका कार्बोहाइड्रेट का स्तर भी काफी घट गया।


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साइकिल चलायें और फिट रहें

जब भी आप फिटनेस की बात करते हैं तो आपके दिमाग में कुछ कलाकारों का नाम आ जाता है जैसे रितिक रोशन, शाहिद कपूर और बिपाशा कपूर। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि फैंसी जिम या उच्च प्रोफ़ाइल प्रशिक्षकों के बिना भी आप अपने आपको फिट रख सकते हैं । आपको सिर्फ दिन में कई बार अपने साइकिल के पैडल घुमाने हैं । अगर चिकित्सकों की या शोधकर्ताओं की मानें तो फिट रहने के लिए साइकलिंग सबसे प्रभावी और कम लागत वाला नुस्खा है । अगर आपको लगता है कि साइकिल सिर्फ गरीबों की सवारी है या इसे सिर्फ गांवों में चलायी जाती है तो आप गलत हैं । शायद आपको नहीं पता कि हालीवुड की सेलिब्रिटी मैडोना एक प्रसिद्ध साइकिल चालक हैं । विशेषज्ञ आप तक सिर्फ यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं, कि साइकिल चलाने से होने वाले लाभ लौकिक हैं ।

साइकिल चलाना शरीर के लिए संपूर्ण व्यायाम है । सर से पैर तक शरीर के सभी भाग इस व्यायाम में सम्मिलित होते हैं । डा निमेश देसाई जो कि मानव व्यवहार और संबद्ध दिल्ली में विज्ञान संस्थान के साथ वरिष्ठ प्राध्यापक हैं, उनके अनुसार साइकलिंग एक विशेष फिटनेस साधन है । साइकलिंग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है और यह आपके पैरों को सही आकार देता है । शहरी युवाओं में रीढ़ की हड्डी की समस्या बहुत ही आम है और साइकिल चलाने से आपकी रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है ।जो बात डा देसाई ने कही वही बात अनंत कुमार द्वारा दोहराई गयी जो कि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में युवा कार्यकारी हैं । मैंने 6 महीने पहले साइकिल चलाना शुरू किया और इससे मुझे बहुत लाभ मिला । मेरी फिटनेस और क्षमता पिछले 6 महीनों में बढ़ी है । एक पेशेवर की तरह मुझे कम्यूटर के आगे बहुत समय बिताना पड़ता है और मेरी पीठ में लगातार दर्द रहता था । साइकिल चलाने से मुझे दर्द से काफी हद तक राहत मिली । फिटनेस के साथ साथ दिल्ली की सड़कों पर सुबह साइकिल चलाने का मज़ा ही कुछ और है ।

नलिन सिन्हा़ जो कि दिल्ली साइकलिंग क्लब के संस्थापक हैं वह भी इस बात से उतने ही खुश हैं । उनके अनुसार पर्यावरण के अनुकूल परिवहन के साथ ही साइकिल चलाने के स्वास्‍थ्‍य लाभ भी हैं । हालांकि बहुत से लोग इस विकल्प को अपनाना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें  यह नहीं पता कि किस प्रकार साइकिल चलाना उनके स्वास्‍थ्‍य के लिए लाभदायी हो सकता है । अमेरिकी कॉलेज आफ स्पोर्टस मेडिसिन की पत्रिका में छपे शोध के अनुसार वो बच्चे जो साइकिल से स्कूल जाते हैं वो उन बच्चों की तुलना में ज्यादा सक्रिय होते हैं जो यातायात का कोई और साधन अपनाते हैं। शोधकर्ताओं ने इंगलैंड के 10 से 16 वर्ष की उम्र तक के 6,000 बच्चों पर शोध किया और परिणाम प्रकाशित किये ।

वर्ष 2007 और 2008 में बच्चों  की हृदय से सम्बन्धी समस्याओं और यात्रा की आदतों पर शोध किया गया । ऐसा पाया गया कि लगभग 30 प्रतिशत लड़के जो साइकिल से स्कूल जाते थे वो दूसरे माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों  की तुलना में अधिक स्वास्थ्‍य और लड़कियों में यह फायदे कहीं ज्यादा थे । दिल्ली में ही युवा सांसदों के एक समूह के अधिकारियों ने साइकिल चलाने की अनुमति मांगी है । सिर्फ प्रदूषण से बचने के लिए ही नहीं बल्कि यह सांसद अपनी फिटनेस और स्वा स्‍‍थ्यइ के बारे में भी सोचते हैं ।अगर आप अभी भी साइकिल चलाने को लेकर संदेह में हैं, तो आप प्रसिद्ध साइकिल चालक लैंस आर्मस्ट्रांग और उसकी काया के बारे में सोचें ।


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आदर्श वज़न क्या है

लोगों को आपने अक्सर वजन बढ़ने या कम होने के कारण परेशान होते देखा होगा। लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि आदर्श वजन कितना होना चाहिए या फिर एक खास उम्र में कितने वजन का बढ़ना ठीक है।
adarsh vajan ka arth kya hai
लेकिन आदर्श वजन क्‍या होता है यह आदमी की लंबाई के हिसाब से तय होता है। जिसकी लंबाई ज्‍यादा होगी उसका वजन ज्‍यादा और जिसकी लंबाई कम उसका वजन कम। लेकिन  यह टेबल महिला और पुरुष दोनों में अलग-अलग होता है। आइए हम आपको बताते हैं कि आदर्श वजन क्‍या है।

क्या है आदर्श वजन
किसी भी व्यक्ति का आदर्श वजन उसकी मांसपेशियों व मोटापे आदि पर निर्भर करता है। आदर्श वजन होने का अर्थ यह नहीं है कि हर स्थिति में व्यक्ति के शरीर का वजन भी एक जैसा रहे, बल्कि समय व परिस्थिति के मुताबिक वजन में परिवर्तन होते रहना स्वाभाविक है। आदर्श वजन में आपकी उम्र और लंबाई के आधार पर आपका कुछ निश्चित वजन होना चाहिए। आपके आदर्श वजन के लिए अंतराराष्ट्रीय मानक बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स को माना जाता है।
इसके अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 23 से 30 बीएमआई तक रखा गया है। 23 से कम अंडरवेट और 30 से अधिक बीएमआई को ओवरवेट की श्रेणी में रखा गया है। अंडरवेट यानी कम वजन होने पर आपके पूरे शरीर की कार्यशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। याद्दाश्त कम होती है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। ओवरवेट होने की स्थिति में मोटापा, हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना, उच्च रक्तचाप, जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।


आदर्श वजन से जुड़ी मुख्य बातें
  • आदर्श वजन जानने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) जैसे फॉर्मूले वजन तय करने के लिए कितने कारगर हैं, यह कहना बहुत मुश्किल है लेकिन यह तय है कि शरीर में अतिरिक्ति चर्बी स्वास्‍थ्‍य के लिए अच्छी नहीं।
  • शरीर में अतिरिक्त चर्बी जहां नुकसान देती है, वहीं वसा की कमी के कारण नर्वसेल्स और हार्मोंस बनने बंद भी हो सकते है।
  • हर व्यक्ति के कार्य, गतिविधियां और रहन-सहन एक दूसरे से अलग होते है, ऐसे में शरीर के लिए वसा का अनुपात भी अलग-अलग ही होगा।
  • वास्तव में व्यक्ति का आदर्श वजन उसके मसल्स और उनके मोटापे इत्यादि पर भी निर्भर करता है।
  • आदर्श वजन होने का अर्थ यह नहीं है कि शरीर भी एक ही स्थिति में रहे, बल्कि समय व परिस्थितियों के हिसाब से वजन में परिवर्तन होता रहता है।
  • आदर्श वजन के अंतर्गत आपकी उम्र, लिंग और लंबाई के आधार पर आपका कुछ निश्चित वज़न होना चाहिए।
  • बीएमआई फॉर्मूले के हिसाब से एक व्यस्क व्यक्ति का वजन 30 किलो से अधिक है तो वो ओवरवेट की श्रेणी में आता है।
  • नियमित रूप से जिम जाने वाले या रेसलर्स का वजन ज्‍यादा होता है। क्‍योंकि उनकी मांसपेशियों का वजन शरीर में मौजूद वसा से अधिक होता है इसलिए एक्‍सरसाइज करने वालों  का बीएमआई हमेशा अधिक होगा।
  • महिलाओं और पुरुषों में आदर्श वजन अलग-अलग होता है। यदि किसी महिला की लंबाई 5 फुट है तो उसका वजन 45-46 किलो के आसपास होना चाहिए। वहीं पुरूष की लंबाई यदि 5 फुट है तो उसका वजन 48 किलो से अधिक होना चाहिए। 

इस तरह से आदर्श वज़न व्यक्ति के लिंग, आकार, शरीर के ढांचे और कार्यशैली पर निर्भर करता है। आदर्श वजन रखने के लिए चिकित्सक की सलाह लेना बहुत जरूरी है।

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