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Ashutosh Shashank Shekhar
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सच्चे कल्याण की उम्मीद-hope for true well-being
एक समय की बात है, एक महिला जिसका नाम नीरा था, पेशे से वेश्या थी। उसकी जिंदगी में एक दिन ऐसा आया जब उसे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर उसका कल्याण कैसे हो सकता है? इस विचार ने उसे बेचैन कर दिया। वह जानना चाहती थी कि वह किस रास्ते पर चले जिससे उसका आत्मिक कल्याण हो सके।
पहले वह एक साधु के पास गई। साधु ने उसे समझाया, "साधुओं का संग करो, उनके सेवा में ही कल्याण है। साधु लोग त्यागी होते हैं, इसलिए उनकी सेवा करने से तुम्हारा उद्धार होगा।"
नीरा ने साधु की बात सुनी, लेकिन उसे संतुष्टि नहीं मिली। फिर वह एक ब्राह्मण के पास गई। ब्राह्मण ने उसे कहा, "साधु लोग बनावटी हो सकते हैं, पर हम ब्राह्मण जन्म से ही श्रेष्ठ हैं। ब्राह्मण सबके गुरु होते हैं, इसलिए ब्राह्मणों की सेवा करने से ही तुम्हारा कल्याण होगा।"
ब्राह्मण की बात भी नीरा को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकी। इसके बाद वह एक सन्यासी के पास गई। सन्यासी ने कहा, "हम सन्यासी सबसे ऊंचे होते हैं। हमारे संग में रहो और सेवा करो, तभी तुम्हारा उद्धार होगा।"
नीरा को यहाँ भी समाधान नहीं मिला। फिर वह वैरागियों के पास गई। वैरागियों ने कहा, "हम सबसे अधिक शक्तिशाली और तेजस्वी हैं। हमारी सेवा करने से ही तुम्हारा कल्याण हो सकता है।"
नीरा को हर जगह अलग-अलग बातें सुनने को मिलीं, लेकिन कोई भी उत्तर उसे संतोषजनक नहीं लगा। वह अलग-अलग संप्रदायों और मतों के गुरुओं के पास भी गई, लेकिन हर जगह उसे वही पक्षपात और आग्रह दिखाई दिया। सभी ने उसे अपने-अपने धर्म या संप्रदाय की सेवा करने का सुझाव दिया। हर एक ने उसे अपने अनुयायी बनने के लिए कहा, लेकिन किसी ने उसे सच्चे कल्याण का मार्ग नहीं दिखाया।
थक-हारकर नीरा के मन में एक अनोखा विचार आया। उसने सोचा, "जब साधु लोग, ब्राह्मण, सन्यासी और वैरागी सभी अपने-अपने मत का आग्रह करते हैं, तो मैं क्यों न अपने जैसे वेश्याओं की सेवा करूं? शायद इसी से मेरा कल्याण हो।" उसने निर्णय लिया कि वह अपने जैसी अन्य वेश्याओं के लिए एक भोज का आयोजन करेगी।
उसने सभी वेश्याओं को भोज के लिए आमंत्रित किया। जब उस गांव के बाहर रहने वाले एक विरक्त संत, स्वामी अद्वैतानंद को इस भोज की खबर लगी, तो वे नीरा को कुछ सिखाने के लिए वहां पहुंचे।
भोज की तैयारियां चल रही थीं, और नीरा अपनी छत पर खड़ी थी। उसने देखा कि स्वामी अद्वैतानंद चावल के पानी (मांड) से अपने हाथ धो रहे थे, जो नाली में गिराया जा रहा था। नीरा को यह देखकर अजीब लगा और उसने स्वामी से कहा, "बाबा, आप क्या कर रहे हैं? यह तो गंदा पानी है, इससे आपके हाथ और गंदे हो जाएंगे।"
स्वामी अद्वैतानंद ने नीरा की ओर देखा और बोले, "बेटी, तुम भी तो मुझसे यही पूछ सकती हो कि यह गंदा पानी हाथ साफ कैसे कर सकता है? अगर गंदे पानी से हाथ साफ नहीं होते, तो क्या गंदे कर्मों से आत्मा शुद्ध हो सकती है?"
नीरा के मन में जैसे कुछ जगमगा उठा। उसने पूछा, "तो फिर बाबा, मेरे कल्याण का मार्ग क्या है?"
स्वामी अद्वैतानंद ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटी, सच्चा संत वही होता है जिसके मन में किसी भी तरह का स्वार्थ, पक्षपात या अहंकार न हो। जो सच्चे मन से सिर्फ जीवों के कल्याण की इच्छा रखता हो। ऐसे संत का संग करना, उनकी बातें सुनना, और उनकी सेवा करना ही सच्चा कल्याण है। संप्रदाय, वर्ण, और जाति के भेदभाव में पड़कर तुम सच्चाई से दूर होती जा रही हो।"
नीरा को अब समझ में आ गया कि सच्चा संत कौन होता है और उसने अपने जीवन में उस ज्ञान को अपनाने का निर्णय लिया। उसने सोचा कि अब वह किसी भी बाहरी दिखावे या धर्म के नाम पर छलावे में नहीं पड़ेगी। वह अब सच्चे संत की तलाश में आगे बढ़ी।
तात्पर्य यह है कि जहाँ स्वार्थ, अभिमान, और अहंकार होता है, वहाँ सच्चे कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती। सच्चा कल्याण तभी संभव है जब हम बिना किसी भेदभाव के सच्चे मार्ग पर चलें और सच्चे संत का संग करें, जिनके पास कोई स्वार्थ या अहंकार नहीं होता।
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कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना-Whoever goes to Vrindavan, take my message.
कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना,
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना ।
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पड़े जो जाल माया के उन्हे तुम कब छुडाओगे ।
मुझे इस घोर दल-दल से, मेरे भगवान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
जब उनके सामने जाओ तो उनको देखते रहना,
मेरा जो हाल पूछें तो ज़ुबाँ से कुछ नहीं कहना ।
बहा देना कुछ एक आँसू मेरी पहचान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
जो रातें जाग कर देखें, मेरे सब ख्वाब ले जाना,
मेरे आँसू तड़प मेरी..मेरे सब भाव ले जाना ।
न ले जाओ अगर मुझको, मेरा सामान ले जाना ॥
कोई जाये जो वृन्दावन...
मैं भटकूँ दर ब दर प्यारे, जो तेरे मन में आये कर,
मेरी जो साँसे अंतिम हो..वो निकलें तेरी चौखट पर ।
‘हरिदासी’ हूँ मैं तेरी.. मुझे बिन दाम ले जाना॥
कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना
मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ मेरा प्रणाम ले जाना ॥
खुद को माफ करना सीखो-जो हो गया, उसकी चिंता, करना छोड़ों -Learn to forgive yourself-Stop worrying about what has happened
Feetured Post
सच्चे रिश्तों का सम्मान
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