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एक छोटी सी शुरुआत ने पूरे परिवार को खुशहाल बना दिया
एक छोटे से शहर में रेणु अपने पति महेन्द्र और बेटी अनामिका के साथ रहती थी। महेन्द्र एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। एक दिन जब महेन्द्र ऑफिस से घर लौटे, तो उनके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। अनामिका उस समय टीवी देख रही थी।
महेन्द्र: "टीवी बंद कर दो।"
अनामिका: "जी पापा! क्या बात है? आप परेशान लग रहे हो?"
महेन्द्र: "कुछ नहीं, बेटा। जरा एक गिलास पानी ला दे।"
यह सुनकर, किचन में काम कर रही रेणु जल्दी से पानी लेकर आई और अनामिका से कहा,
रेणु: "बेटा, किचन में देख लो, सब्जी बन रही है। मैं अभी आती हूँ।"
अनामिका अंदर चली गई, तब रेणु ने महेन्द्र से पूछा,
रेणु: "क्या बात है? आप बहुत चिंतित दिख रहे हैं।"
महेन्द्र: "रेणु, मेरी नौकरी चली गई। कंपनी घाटे में चल रही थी, और मुझे भी निकाल दिया गया है। समझ नहीं आ रहा कि घर का किराया, गाड़ी की किश्त, और अनामिका की पढ़ाई के लिए पैसे कहाँ से आएंगे।"
रेणु: "आप चिंता मत कीजिए, आपको जरूर कोई और नौकरी मिल जाएगी। हम एक काम करते हैं, अनामिका की पढ़ाई के लिए जो एसआईपी शुरू की है, उसे कुछ समय के लिए रोक देते हैं।"
महेन्द्र: "नहीं, बेटी की पढ़ाई के लिए बचत करना जरूरी है। तुम जानती हो, आजकल पढ़ाई में कितने खर्चे होते हैं।"
यह सारी बातें अनामिका किचन से सुन रही थी। वह तुरंत बाहर आई।
अनामिका: "पापा, आप मेरे लिए पैसे जोड़ना बंद कर दीजिए। मैं अपनी पढ़ाई खुद संभाल लूंगी, और ऐसे लड़के से शादी करूंगी जो दहेज नहीं मांगेगा।"
महेन्द्र ने अपनी बेटी की बातें सुनकर हंसते हुए कहा,
महेन्द्र: "अभी तू केवल दस साल की है और इतनी बड़ी बातें कर रही है। चिंता मत कर, मैं तेरी शादी अच्छे से करूंगा।"
रेणु: "हमारी बेटी बहुत समझदार है। वह सही कह रही है।"
सभी हंसने लगे और घर का माहौल हल्का हो गया।
अगले दिन, महेन्द्र तैयार होकर घर से बाहर जाने लगे।
रेणु: "आप इतनी सुबह-सुबह कहां जा रहे हैं?"
महेन्द्र: "आज संडे है, दोस्तों से मिलकर देखता हूँ, शायद कहीं नौकरी का इंतजाम हो जाए।"
उनके जाने के बाद, रेणु ने अपने भाई को फोन किया और रोते हुए कहा,
रेणु: "भैया, महेन्द्र बहुत परेशान हैं। अगर उन्हें जल्द नौकरी नहीं मिली, तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे।"
अनामिका, जो स्कूल से आई थी, यह सब सुन रही थी। उसे यह बात समझ में आ गई कि उसके मम्मी-पापा कितने परेशान थे।
अगले दिन, घर में चुप्पी थी। महेन्द्र घर पर थे, और अनामिका की छुट्टी थी। तभी अनामिका ने कहा,
अनामिका: "पापा, आप भी ताऊजी की तरह कोई बिजनेस क्यों नहीं शुरू करते?"
रेणु: "बेटा, बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे चाहिए होते हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।"
अनामिका: "पापा, मेरी पढ़ाई के लिए जो पैसे बचाए हैं, उनसे बिजनेस शुरू कर लीजिए।"
महेन्द्र: "नहीं बेटा, वो पैसे जोखिम में नहीं डाल सकते। अगर बिजनेस नहीं चला, तो सारा पैसा डूब जाएगा।"
अनामिका: "पापा, कुछ नहीं होगा। अगर पैसा डूब गया, तो मैं बड़ा होकर फिर से कमा लूंगी। मेरी कसम, उस पैसे से बिजनेस शुरू कर दीजिए।"
रेणु भी अनामिका की बात से सहमत थी, और काफी समझाने के बाद महेन्द्र बिजनेस करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपने दोस्तों से सलाह ली और कुछ दिनों में बिजनेस की योजना बना ली।
शुरुआत में कई मुश्किलें आईं, लेकिन धीरे-धीरे उनका बिजनेस चलने लगा। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी, और अनामिका की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। समय बीतता गया, अनामिका ने पढ़ाई पूरी की और फिर अपने पिता का बिजनेस संभाल लिया।
एक दिन, अनामिका ने अपने पापा से कहा,
अनामिका: "पापा, अब आप आराम कीजिए। बिजनेस मैं संभाल लूंगी।"
महेन्द्र: "बेटा, तेरी शादी का समय हो रहा है। शादी के बाद तो तू अपने घर चली जाएगी। तब बिजनेस कौन संभालेगा?"
अनामिका: "पापा, मैं उसी लड़के से शादी करूंगी जो मुझे यह सब करने की आजादी देगा।"
महेन्द्र और रेणु ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन अनामिका अपनी बात पर अडिग रही। महेन्द्र ने घर पर रहकर आराम करना शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें अभी भी अनामिका की शादी की चिंता सताती रही।
कुछ दिनों बाद, एक बड़ी गाड़ी उनके घर के सामने आकर रुकी। उसमें से एक सज्जन अपनी पत्नी और बेटे के साथ उतरे। उन्होंने महेन्द्र से कहा,
सज्जन: "महेन्द्र जी, आपकी बेटी के साथ हमारा बिजनेस संबंध है, और हम उसकी ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए हैं। हम अपने बेटे की शादी आपकी बेटी से करना चाहते हैं।"
महेन्द्र ने कहा कि उन्हें पहले अनामिका से पूछना पड़ेगा। लेकिन सज्जन ने बताया कि उन्होंने पहले से ही अनामिका से बात कर ली है और उसकी सारी शर्तें मान ली हैं।
कुछ ही दिनों में अनामिका की शादी हो गई, और उसने अपने पति के साथ मिलकर बिजनेस को और भी बड़ा बना लिया। इस तरह, एक छोटी सी शुरुआत ने पूरे परिवार को खुशहाल बना दिया।