Family - परिवार
परिवार का महत्व और बुजुर्गों का सम्मान - Importance of family and respect for elders
"राघव ज़रा इधर आ," राघव की दादी ने उसे पुकारा। दादी की आवाज़ सुनकर राघव तुरंत दौड़कर उनके पास पहुंचा।
"हाँ, दादी जी, क्या बात है?" राघव ने पूछा।
दादी ने उदास स्वर में कहा, "अरे, मेरा चश्मा नहीं मिल रहा। ज़रा ढूंढ दे बेटा।"
राघव ने उत्सुकता से पूछा, "दादी, चश्मे का क्या करोगी?"
दादी ने अपने हाथ में फटा हुआ ब्लाउज दिखाते हुए कहा, "देख, बेटा, यह ब्लाउज कितना फट गया है। इसे सिलना है, लेकिन बिना चश्मे के दिखता नहीं।"
राघव ने ध्यान से देखा और कहा, "दादी, ये तो बहुत पुराना हो गया है। इसे छोड़ो, मैं मम्मी से कह दूंगा, वह आपको नया सिलवा देंगी।"
दादी की आंखों में हल्की उदासी छा गई। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "नहीं बेटा, मम्मी से कुछ मत कहना। वो मुझे दस बातें सुना देंगी। मैं इसी से काम चला लूंगी।"
राघव को दादी की यह बात बहुत बुरी लगी। वह चुपचाप खिड़की के पास गया और पर्दे के पीछे छुपी चश्मे की डिब्बी निकाल कर दादी को दे दी। दादी ने सुई में धागा डालकर पुराने ब्लाउज को सिलना शुरू कर दिया।
शाम को जब राघव के पापा, अभिनव, घर लौटे, तो राघव ने अपने पापा से कहा, "पापा, दादी के पास एक भी नई साड़ी या ब्लाउज नहीं है। वो अपना पुराना ब्लाउज बार-बार सिल रही हैं। आपको दादी के लिए नए कपड़े दिलवाने चाहिए।"
अभिनव ने यह सुनकर अपनी पत्नी साक्षी से कहा, "सुनो, माँ के लिए एक नई साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा ले आना। राघव ने देखा कि माँ फटे कपड़े पहन रही हैं।"
साक्षी ने गुस्से में कहा, "तुम्हारी माँ यह सब जान-बूझकर करती हैं, ताकि बच्चे को दिखाकर हमें गलत साबित कर सकें। अगर तुम्हारा मन है, तो पूरा घर लुटा दो उन पर। मुझे क्या फर्क पड़ता है।"
अभिनव ने शांत स्वर में कहा, "अरे, एक साड़ी देने में क्या बुराई है? अगर माँ फटे कपड़े पहनकर कहीं बाहर दिख गईं, तो हमारी बदनामी होगी।"
अगले दिन अभिनव अपनी माँ के लिए एक साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा लेकर आए और दर्जी को सिलाई के लिए दे दिया। दो दिन बाद, राघव खुशी-खुशी दादी के लिए कपड़े लेकर उनके पास गया। लेकिन दादी ने उदास होकर कहा, "कितना अच्छा होता, अगर तेरा पापा या मम्मी खुद अपने हाथों से ये कपड़े देते।"
राघव ने अपनी दादी को खुश करने के लिए कहा, "दादी, कोई बात नहीं। आप ये साड़ी पहनकर दिखाओ, मैं आपकी फोटो खींचूंगा।"
दादी ने साड़ी निकाली, लेकिन वह सस्ती सी सूती साड़ी देखकर उनका दिल बैठ गया। फिर भी उन्होंने पोते की खुशी के लिए साड़ी लेकर रख ली। जब राघव ने उन्हें पहनने के लिए कहा, तो दादी ने कहा, "बेटा, नहा कर पहनूंगी। नए कपड़े नहा कर ही पहने जाते हैं।"
कुछ देर बाद, राघव वहीं दादी के पास सो गया। तभी साक्षी आईं और ताने मारने लगीं, "मांजी, इस बार तो हमने आपको साड़ी दिलवा दी, लेकिन आगे से कोई फरमाइश मत करना।"
दादी ने गुस्से में कहा, "बहू, मैंने तुमसे साड़ी नहीं मांगी थी। ले जाओ इसे, मैं अपने पुराने कपड़ों से ही काम चला लूंगी।"
साक्षी और गुस्से में आ गईं, "पहले नाटक करती हैं, अब नखरे दिखा रही हैं। ये साड़ी वापस ले जाऊंगी, तो घर में झगड़ा हो जाएगा। आप ही इसे रख लीजिए।"
अगले दिन राघव की जिद पर दादी ने वह साड़ी पहनी और मंदिर चली गईं। वहां उनकी पुरानी सहेली कुसुम मिलीं। कुसुम ने कहा, "बहन, नई साड़ी में तो तुम बहुत अच्छी लग रही हो। लेकिन तुम इस तरह क्यों रहती हो? आओ, मेरे साथ वृद्धाश्रम में रहो। वहाँ हमें खूब सम्मान मिलता है।"
राघव सारी बातें सुन रहा था। उसने दादी से पूछा, "दादी, क्या आप मुझे छोड़ कर चली जाएंगी?"
दादी ने उसे समझाते हुए कहा, "बेटा, मैं पास ही रहूंगी। जब दिल चाहे, मुझसे मिलने आ जाना।"
अगले दिन, दादी ने साक्षी को बताया कि वह वृद्धाश्रम में जा रही हैं। साक्षी ने बेरुखी से कहा, "जैसी आपकी मर्जी।"
दादी वृद्धाश्रम चली गईं। राघव ने जब दादी को घर में न पाया, तो बहुत उदास हो गया। कई दिनों बाद, वह अपनी मम्मी-पापा से जिद करने लगा कि वह दादी से मिलने जाएगा। आखिरकार, राघव के माता-पिता उसे दादी से मिलने वृद्धाश्रम लेकर गए।
वहां राघव ने मैनेजर से पूछा, "क्या मैं भी यहां अपनी दादी के साथ रह सकता हूं?"
मैनेजर ने जवाब दिया, "नहीं, बेटा। यहाँ वही लोग रहते हैं, जिनके घरवालों ने उन्हें छोड़ दिया हो।"
राघव मासूमियत से बोला, "तो फिर मेरे मम्मी-पापा को रख लीजिए। मैं अपनी दादी को अपने साथ ले जाऊंगा। वैसे भी, बड़े होकर मैं इन्हें घर से निकाल दूंगा, क्योंकि इन्होंने मेरी दादी को अपने साथ नहीं रखा।"
यह सुनकर राघव के माता-पिता का दिल पिघल गया। अभिनव ने अपनी माँ के पैरों में गिरकर माफी मांगी, और साक्षी भी अपनी गलती पर शर्मिंदा हुईं। दोनों ने दादी से माफी मांगी और उन्हें घर वापस ले आए।
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