विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
मानव जीवन में भारतीय देसी गाय का महत्व - Importance of Indian Desi Cow in human life
It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - Election
It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - #Election
भारत की जनता को राजनीतिक नेताओं की भाषणबाजी से मुर्ख नहीं बनाना चाहिए। यह आवश्यक है कि लोग यह समझें कि हमारे देश में मानवता और हिन्दू विरोधी राजनीति के पक्ष और विपक्ष में कौन है। जब तक जनता को यह स्पष्ट नहीं होगा कि कौन सच में उनके हित में काम कर रहा है, तब तक नेता अपनी रोटी सेंकते रहेंगे।
राजनीतिक दलों के बीच खींचतान के कारण अक्सर जनता के असली मुद्दे पीछे रह जाते हैं। यह समझना जरूरी है कि राजनीति केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की बुनियाद है। अगर हम अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो वे नेता जो केवल स्वार्थ की राजनीति करते हैं, हमारे अधिकारों को छीन लेंगे।
समानता और राष्ट्रहित के लिए जरूरी है कि हम अपने नागरिक कर्तव्यों को समझें और सक्रिय रूप से भाग लें। हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारे प्रतिनिधि क्या करते हैं और क्या वे वास्तव में हमारे लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए हमें जागरूक रहना होगा और राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेना होगा।
राजनीतिक दलों का यह कर्तव्य है कि वे समाज के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करें। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि हम खुद अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाएंगे। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीति का असली अर्थ है सेवा करना, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए खेलना।
इसलिए, जनता को जागरूक होना होगा और समझना होगा कि राजनीतिक विमर्श में जो मुद्दे उठाए जाते हैं, वे केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। समाज में समानता और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए हमें सोच-समझकर निर्णय लेने की आवश्यकता है। केवल उसी स्थिति में हम एक मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं।
समानता और राष्ट्रहित के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। जब तक हम एकजुट नहीं होंगे और अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक राजनीति के अंधेरे में फंसे रहेंगे। यही वक्त है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएं और अपने भविष्य के प्रति जागरूक बनें। हमारी एकता ही हमें मजबूत बनाएगी और तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे।
इसलिए, हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम राजनीतिक दावों और भाषणों में न फंसें, बल्कि अपने हक के लिए समझदारी से लड़ें। यही सही समय है कि हम सच में एक परिवर्तन की ओर बढ़ें।
माँ की मौत के बाद - after mother's death
माँ की मौत के बाद जब तेरहवी भी निमट गई तब नम आँखों से चारु ने अपने भाई से विदा ली।
" सब काम निमट गये भैया माँ चली गई अब मैं चलती हूँ भैया !" आंसुओ के कारण उसके मुंह से केवल इतना निकला।
" रुक चारु अभी एक काम तो बाकी रह गया ... ये ले माँ की अलमारी खोल और तुझे जो सामान चाहिए तू ले जा !" एक चाभी पकड़ाते हुए भैया बोले।
" नही भाभी ये आपका हक है आप ही खोलिये !" चारु चाभी भाभी को पकड़ाते हुए बोली। भाभी ने भैया के स्वीकृति देने पर अलमारी खोली।
" देख ये माँ के कीमती गहने , कपड़े है तुझे जो ले जाना ले जा क्योकि माँ की चीजों पर बेटी का हक सबसे ज्यादा होता है !" भैया बोले।
"भैया पर मैने तो हमेशा यहां इन गहनो , कपड़ो से कीमती चीज देखी है मुझे तो वही चाहिए !" चारु बोली।
" चारु हमने माँ की अलमारी को हाथ तक नही लगाया जो है तेरे सामने है तू किस कीमती चीज की बात कर रही है !" भैया बोले।
" भैया इन गहने कपड़ो पर तो भाभी का हक है क्योकि उन्होंने माँ की सेवा बहू नही बेटी बनकर की है। मुझे तो वो कीमती सामान चाहिए जो हर बहन बेटी चाहती है !" चारु बोली।
" मैं समझ गई दीदी आपको किस चीज की चाह है । दीदी आप फ़िक्र मत कीजिये मांजी के बाद भी आपका ये मायका हमेशा सलामत रहेगा ! पर फिर भी मांजी की निशानी समझ कुछ तो ले लीजिये !" भाभी भरी आँखों से बोली तो चारु रोते हुए उनके गले लग गई।
" भाभी जब मेरा मायका सलामत है मेरे भाई भाभी के रूप मे फिर मुझे किसी निशानी की जरूरत नही फिर भी आप कहती है तो मैं ये हँसते खेलते मेरे मायके की तस्वीर ले जाना चाहूंगी जो मुझे हमेशा एहसास कराएगा की मेरी माँ भले नही पर मायका है !
" चारु पूरे परिवार की तस्वीर उठाते हुए बोली और नम आँखों से विदा ली सबसे..
govardhan puja vidhi
Govardhan Puja, also known as Annakut, is celebrated the day after Diwali to honor Lord Krishna’s lifting of the Govardhan Hill. Here’s a simple vidhi (procedure) for performing Govardhan Puja:
Materials Needed
- A small hill made of cow dung or clay (to represent Govardhan Hill)
- Flowers and leaves (especially of the tulsi plant)
- Fruits, sweets, and other food items (for the offering)
- Incense sticks and diyas (oil lamps)
- A picture or idol of Lord Krishna
- Pooja thali (plate)
Procedure
1. **Preparation of the Idol or Hill:**
- Shape cow dung or clay into a small hill, representing Govardhan Hill.
- Decorate it with flowers and leaves.
2. **Setting the Pooja Place:**
- Clean the area where you will perform the puja.
- Place the idol or hill in a clean spot.
3. **Offering Food:**
- Arrange a variety of food items, especially those made of grains, fruits, and sweets, around the hill.
- You can prepare dishes like khichdi, puris, and various sweets.
4. **Performing the Aarti:**
- Light the diyas and incense sticks.
- Offer the light to the hill/Idol while singing devotional songs or chanting mantras.
5. **Prayers and Mantras:**
- Offer prayers to Lord Krishna, asking for his blessings.
- You can chant specific mantras, such as the Govardhan Puja mantra.
6. **Concluding the Puja:**
- After the prayers, distribute the prasad (offered food) to family and friends.
- Sing bhajans or kirtans in praise of Lord Krishna.
After the Puja
- It’s customary to visit a temple if possible, or participate in community celebrations.
- Share the prasad with neighbors and friends as a symbol of sharing and community spirit.
Notes
- The puja can be performed in the morning or evening, depending on family traditions.
- The essence of Govardhan Puja is gratitude and devotion, so focus on the spirit of the festival.
Realize the mistake - गलती का एहसास करो
Realize the mistake - गलती का एहसास करो
योगेश ट्रेन की जनरल बोगी में बर्थ सीट पर सोया हुआ था |
गाडी रूककर वापस चली तो अचानक उसकी नजर अपनी तलाकशुदा पत्नी रागिनी पर पडी | पता नहीं कब वह उसके सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई थी | 6 साल बाद वह उसे देख रहा था | वह बहुत कमजोर हो गई थी | उसने पुरानी सस्ती सी साडी पहन रखी थी | ना माथे पर बिंदी और ना गले में मंगलसूत्र था | तो क्या उसने अभी तक दूसरा विवाह नहीं किया | क्या अभी तक वह मेरी तरह अकेली ही है | योगेश
ऐसा सोच ही रहा था कि तभी रागिनी की नजर उस पर पडी .नजरे मिली तो योगेश दूसरी तरफ देखने लगा | फिर पता नहीं योगेश के दिमाग में क्या आया कि वह सीट से नीचे उतर आया और रागिनी के पास बैठे लडके से कहा कि वह ऊपर
वाली सीट पर चला जाये | लडका मान गया तब योगेश रागिनी के पास बैठ गया | बैठते ही योगेश बोला " रागिनी
कैसी हो ?"
रागिनी ने नजर न मिलाते हुए खिडकी की तरफ देखते हुए बोला कि " मैं ठीक हूँ और आप? "
योगेश बोला मैं भी ठीक हूँ और कानपुर जा रहा हूँ | त्यौहार होने के कारण रिजर्वेशन सीट नहीं मिली | इस कारण जनरल बोगी में आना पडा | तुम कहां जा रही हो ?
वह बोली मैं भी कानपुर ही जा रही हूँ | आजकल माँ वही बडे भईया के पास ही है | बीमार है इसलिए मिलने जा रही हूँ |
काफी देर दोनों चुप रहे |
फिर योगेश बोला " एक बात पूछूँ ?"
रागिनी ने आँखों से ही पूछा क्या?
योगेश संकोच करते हुए पूछा " अभी तक शादी क्यों नहीं
की ?
वह कुछ नहीं बोली |
मगर जब योगेश ने दोबारा नहीं पूछा तो रागिनी ने पूछा "
आपने की है शादी "
योगेश ने भी बिना बोले ना में गर्दन हिला दी |
फिर काफी देर तक दोनों चुप रहे |
मानो एक दूसरे को परख रहे थे |
डिब्बे में कुल्फी बेचने वाला आ गया था |
योगेश बोला खाओगी रागिनी ने ना में सिर हिला दिया
योगेश ने रिक्वेस्ट करते हुए फिर पूछा " खा लो यार , तुम्हारे साथ मैं भी खा लूंगा " | जानता हूँ तुम्हारी सबसे बडी कमजोरी कुल्फी है | वह थोडा मुस्कुराई तो योगेश ने महसूस
किया कि वह अपनी आँखों से बहने वाली आंसुओं को समेटने का प्रयास कर रही है | 5 साल उसके साथ रहा
था ,जब वह अपने आँसुओं को समेटने का प्रयास करती थी
तो ऐसे ही मुस्कुराया करती थी | योगेश दूसरी तरफ देखने लगा तो रागिनी चुपके से अपनी आँसुओ को पोछने लगी |
फिर वह सहज होकर बोली " एक शर्त पर खाउंगी "
योगेश बोला क्या शर्त है ?
तो रागिनी बोली " पैसे मैं दूंगी "
योगेश कुछ नहीं बोला फिर रागिनी ने दो कुल्फियां खरीद ली |
और एक कुल्फी योगेश को देते हुए बोली " अब मैं भी कमाने लगी हूँ , एक प्राइवेट स्कूल में पढाती हूँ , महीने के 10 हजार मिलते हैं | कुल्फी खाते हुए योगेश बोला " तलाक के समय
कोर्ट के आदेश पर मैं तुम्हें 30 लाख रूपये दे तो रहा था |
अगर ले लेती तो अपना स्कूल खोल लेती | जबकि तुम बहुत स्वाभिमानी हो , इस जमाने में पैसे के बिना कुछ नहीं होता |
वह हंस कर बोली अगर ले लेती तो अपनी जमीर को क्या जवाब देती | तो ये जमीर रोज कहता कि जिसे छोड कर आयी हो उसी के सहारे पल रही हो |
योगेश बोला तुम बहुत अच्छी हो , मासूम हो | ये एहसास तुमसे तलाक लेने के बाद मुझे हुआ | तुम यकीन नहीं करोगी ? मैं बहुत बदल गया हूँ | पीना बिल्कुल छोड दिया है , गुस्सा बिल्कुल नहीं करता | अब मैं किसी को नीचा दिखाने की कोशिश भी नहीं करता जो तुम्हें बहुत बुरा लगता था | वो सब बुरी आदतें मैने छोड दी है |
वह उदास होकर बोली " अब क्या फायदा " जब मैं मना किया करती थी तब आप मेरी एक भी बात नहीं सुनते थे | आपके कारण मैं हमेशा टेंशन में रहती थी | इसी कारण मुझे दो बार गर्भपात भी हुआ | वरना आज मेरे भी दो बच्चे होते | एक 8
साल का हो गया होता और दूसरा 6 साल का होता | कहकर वो रो पडी |
बच्चों की बात पता चली तो योगेश के भी आंखों में आँसों आ गये लेकिन वह पुरूष था तो आँसुओं को पलकों तक पहुँचने से पहले ही पी गया और बोला " कभी कभी लगता है मैं बहुत बुरा आदमी हूँ | मैने कभी रिश्तों की कदर नहीं की , उसी की सजा झेल रहा हूँ आज | बिल्कुल अकेला हो गया हूँ , अब मां भी नहीं रही | "
मा के होने पर रागिनी को बडा दुख हुआ और बोली मा को भली चंगी छोड कर आयी थी , उनको क्या हो गया था | इस बार योगेश भावुकता वश अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया
और बोला वो तुम्हें हर दिन याद करती थी , बोलती थी बहु को वापस घर ले आओ | मैं उन्हें कैसे समझाता कि तलाक के बाद बहुएं वापस घर नहीं आती | फिर दोनों के बीच चुप्पी छा गई थी | कानपुर आ गया था |
स्टेशन आने वाला था | योगेश बोला वापस कब जाओगी ?
रागिनी बोली आज रात यही रूकूंगी , कल की सुबह की ट्रेन से वापस जाउंगी | फिर वही खडी हो गई , योगेश भी खडा हो गया और पूछा" कितने बजे वाली ट्रेन से वापस जाओगी "
रागिनी बोली हम गरीब लोग हैं ,रिजर्वेशन नहीं करा पता हैं , जनरल डिब्बे में सफर करते हैं | इसलिए जो भी ट्रेन मिलती है टिकट लेकर चढ जाते हैं | इतना कहकर वह नीचे उतर गई |
योगेश अपना सूटकेस सम्हालता हुआ उसके पीछे लपका और बोला अगर मैं रिजर्वेशन की दो टिकटें ले लूं तो मुझे पता है कि तुम मेरे साथ नहीं चलोगी लेकिन मैं तुम्हारे साथ सफर करना चाहता हूँ | जनरल में ही चल लूंगा , बताओ कितने बजे
यहां मिलोगी ?
रागिनी आटो में बैठती हुई बोली " 9 बजे यहां मिलूंगी "फिर उसके देखते देखते आटो आँखों से ओझल हो गया |
योगेश कानपुर दो दिन के लिए आया था मगर रागिनी का साथ पाने के लिए उसने अपना शेड्यूल बदल लिया | उसने जल्दी से अपने बिजनेस का काम पूरा किया और अगले दिन सुबह साढे 8 बजे ही स्टेशन आ गया | रागिनी 9 की जगह 10 बजे स्टेशन पहुँची | और बोली आप अभी तक यहीं पर हो , मैं सोच रही थी कि आप चले गये होंगे |
रागिनी बहुत खुश थी | बोली मां अब बिल्कुल ठीक है |
योगेश बोला मैं तुम्हारा भी टिकट ले आया हूँ | अब 30 रूपये के टिकट के लिए कुछ कहना मत | रागिनी हंसते हुए बोली अभी ट्रेन आने में आधा घंटा है , चलो तब तक कुल्फी खाते हैं| पैसे मैं दे दूंगी , हिसाब बराबर हो जायेगा | इतना कहकर वह फिर मुस्कुरा दी | वह जब भी मुस्कुराती थी योगेश की नजर उसके चेहरे पर ठहर जाती थी | फिर दोनों ने कुल्फी खायी और तब तक ट्रेन आ गयी और फिर से एक नया सफर
शुरु हो गया मगर इस सफर में कुछ खास था | योगेश कुछ कहने के लिए तिलमिला रहा था ।मगर डर भी रहा था कि वह मना करा देगी तो | योगेश नोटिस कर रहा था कि रागिनी बडे भाई के
घर से नई साडी पहन कर आई थी |वह बहुत सुन्दर लग रही थी | खिडकी से आ रही ठंडी हवा के झोंके से रागिनी के ललाट पर लटकी बालों की एक लडी झूम उठती है | उसे ऐसे देखकर योगेश के दिल में एहसास सा उठता है कि ये औरत कभी उसकी जिन्दगी थी मगर मैं इसे सम्हाल कर नहीं रख पाया | योगेश की मन:स्थिति से अनजान रागिनी बोली " क्या हुआ आप गुमशुम से क्यों हो ?" | दोस्त बन कर ही सही कुछ बात तो कर लो | योगेश बोला मुझे दोस्ती नहीं चाहिए |
रागिनी को झटका सा लगा , बोली " फिर क्यों मेरे साथ सफर करने के लिए उतावले थे आप" योगेश बोला "मुझे तू चाहिए " | हमेशा के लिए | जन्मों जन्मों के लिए | मेरे साथ हंसने के लिए , मेरे साथ रोने के लिए | वह इतनी जल्दी में ये सारी बातें बोला कि रागिनी बस उसके मुंह की ओर देखती रह गई | वह आगे बोला " मैं गलत था , तुम्हारी कदर नहीं कर पाया " |
मगर तुम्हारे जाने के बाद मुझे मेरे गलतियों का एहसास हो गया है | मुझे माफ कर दो " कहकर वह रो पडा | रागिनी चुप हो गई , बस उसके चेहरे की तरफ देखे जा रही थी |
योगेश उसके दोनों हाथ पकड कर बोला " मुझे माफ कर दे यार | मैं वादा करता हूँ अब कभी भी तुम्हारे आंसुओं की वजह नहीं बनूंगा | तू जो कहेगी वही करूंगा , प्लीज लौट आ | " रागिनी ने माथे पर साडी थोडी सी पीछे सरकाई और बोली इधर देखिये जरा |" योगेश ने देखा रागिनी ने मांग भर रखी थी | वह बोली मैं जानती थी आप यही सब करोगे | मैंने कल ही सोच लिया था कि अब अकेले चलने के दिन खत्म हो गये हैं | मेरा हमसफर लौट आया है | अब आगे का सफर उसी के साथ तय करना है | थक गई हूँ मैं अकेले चलते चलते | कहते हुए
वह अजीब सी मुद्रा में मुस्कुराने लगी | योगेश बोला , मैं जानता हूँ जब तेरा दिल रोने को होता है तब तू ऐसे ही मुस्कुराती है | मत रोक इन आंसुओं को , इन्हें बह जाने दो | दिल हल्का हो जायेगा | इतना सुनते ही रागिनी का संयम
जवाब दे गया | वह जोर जोर से रोने लगी , पूरे डिब्बे के लोग उन्हें देखने लगे | मगर रागिनी ने लोगों की परवाह नहीं की |
वह योगेश के कंधे पर सर रखकर रोती रही | कुछ देर बाद रागिनी का गांव आ गया | गाडी कुछ पल रूकी फिर चल पडी
| रागिनी को अब वहां उतरना ही नहीं था | जिन्दगी में एक नया सफर फिर से शुरू हो गया | अब उसकी मंजिल मायका नहीं पिया का घर था | जो वर्षों से उसके उसके लौटने का इन्तजार कर रहा था | वह अब भी योगेश के कंधे पर सर रखी
थी | आंखें बंद कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी , एक मासूम बच्चे की तरह |
कहानी कैसी लगी कमेन्ट करके जरूर बतायें | कहानी अच्छी लगी हो तो विडियो को प्लीज लाइक कर दीजिए , शेयर कर दीजिए and follow us
धन्यवाद 🙏
If we divide, we will be divided. बटेगें_तो_कटेंगे
If we divide, we will be divided. बटेगें_तो_कटेंगे
#बटेगें_तो_कटेंगे ... #If_we_divide, #we_will_be_divided.
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न जातियाँ, धर्म, और संस्कृतियाँ एक साथ मिलकर बसी हुई हैं। यह विविधता हमारे देश की ताकत है, लेकिन कभी-कभी यह विविधता विभाजन का कारण भी बन जाती है। ऐसे में, भारत के राष्ट्र भक्तों की जिम्मेदारी है कि वे एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र की रक्षा करें।
**मानवता की रक्षा का महत्व**
मानवता का मूल्य सभी भिन्नताओं से ऊपर है। जब हम जाति, धर्म, या समुदाय के बंधनों से ऊपर उठकर सोचते हैं, तब हम उन सामान्य मानव अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं जो सभी को समान रूप से मिलते हैं। मानवता का अर्थ है सहानुभूति, सहयोग, और एक-दूसरे के प्रति सम्मान।
**जाति और धर्म से ऊपर उठने की आवश्यकता**
आज के समय में, जब सामाजिक विषमताएँ और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही हैं, तब हमें जाति और धर्म की सीमाओं से परे जाकर सोचने की आवश्यकता है। राष्ट्र भक्तों को यह समझना होगा कि किसी भी समाज का असली मूल्य उसकी एकता में निहित है। जब हम जाति और धर्म के स्थान पर मानवता को प्राथमिकता देंगे, तब हम एक मजबूत और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकेंगे।
**एकता में बल**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र के खिलाफ काम करने वाले तत्वों का सामना करें। ये तत्व हमारे समाज में असहिष्णुता और विभाजन फैलाते हैं। यदि हम एक साथ खड़े होते हैं, तो हम इन तत्वों को प्रभावी ढंग से चुनौती दे सकते हैं। यह एकता न केवल सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि यह हमारे देश को एक नई दिशा में भी ले जाएगी।
**सकारात्मक संवाद का महत्व**
एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक संवाद बहुत आवश्यक है। हमें विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे कि हम एक-दूसरे की समस्याओं और विचारों को समझ सकें। जब संवाद खुला और ईमानदार होता है, तो यह आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।
**समाज में बदलाव की दिशा में कदम**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सक्रिय रूप से काम करें। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे क्षेत्रों में हो सकता है। जब हम समाज में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं, तो हम न केवल अपने समुदाय की भलाई के लिए काम कर रहे होते हैं, बल्कि हम राष्ट्र की प्रगति में भी योगदान दे रहे होते हैं।
**आवश्यकता है जागरूकता की**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे समाज में जागरूकता फैलाएँ। हमें यह समझाना होगा कि जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचने का क्या महत्व है। जागरूकता कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, और सेमिनारों के माध्यम से हम इस विचार को व्यापक रूप से फैला सकते हैं।
**निष्कर्ष**
अंततः, भारत के राष्ट्र भक्तों को एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र की रक्षा करनी होगी। जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचने की आवश्यकता है, ताकि हम एक मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण कर सकें। एकता में बल है, और यही एकता हमें उन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगी, जो आज हमारे सामने हैं। यदि हम सभी मिलकर काम करेंगे, तो हम निश्चित रूप से एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
#बटेगें_तो_कटेंगे
पति_पत्नी_का_रिश्ता... husband-wife relationship
पति_पत्नी_का_रिश्ता... husband-wife relationship
शादी के दिन एक अटैची की तरफ इशारा करती नवविवाहित दुल्हन ने अपने पति से वादा लिया था कि वह उस अटैची को कभी नहीं खोलेंगे।
उसके पति ने भी उससे वादा किया कि वह बिना उसके परमिशन के उस अटैची को कभी नहीं खोलेगा।
शादी के पचासवें साल में,
जब पत्नी बिस्तर पर ज़िंदगी की आखरी साँसे ले रही थी तो पति ने अपनी पत्नी को उस अटैची की याद दिला दी।
पत्नी बोली: अब इस अटैची का राज़ खोलने का वक़्त आ गया हैं,
अब आप इस अटैची को खोल सकते हो।
पति ने जब अटैची को खोला तो उससे दो गुड़िया और एक लाख रुपए बाहर निकलें।
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पति ने पूछा तो पत्नी बोली,
"मेरी माँ ने मुझे सफल शादी का राज़ दिया,
उसने सलाह दी कि गुस्सा पीना बहुत अच्छा हैं।
माँ ने मुझे ये तरीका बताया कि जब भी उसे अपने पति की किसी गलत बात पर ग़ुस्सा आये तो पति पर गुस्सा होने के बजाय एक गुड़िया सिल लिया करना।
इसलिए जब भी तुम्हारे बारे में किसी गलत बात पर ग़ुस्सा आता तो मैं एक गुड़िया सी लिया करती थी,
पति दो गुड़ियों को देखकर बहुत खुश हुआ कि उसने अपनी पत्नी को कितना खुश रखा हुआ हैं,
सफल दाम्पत्य जीवन के पचास वर्ष पूरे होने के बाद उसकी पत्नी ने सिर्फ दो गुड़िया बनाई।
जिज्ञासा में पति ने अटैची में रखें करीब एक लाख रुपए के बारे में पूछा तो पत्नी बोली,
"मैंने ये एक लाख रुपए गुडिया बेचकर इकठ्ठा किए हैं"
इतना सुनते ही पति को अपनी सभी गलतियों का एहसास हुआ और उसने अपनी पत्नी से सिर झुकाते हुए माफी मांगी।
पत्नी का दिल इतना बड़ा था कि उसने माफ कर दिया।
#Note:- जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता हैं,
छोटी-छोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं,
मुश्किल वक्त के समय में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता हैं।
पति-पत्नी का रिश्ता इस दुनिया का सबसे खास रिश्ता होता हैं।
पति पत्नी के रिश्ते में विश्वास होना चाहिए
आपस में एक दूसरे के प्रति होने वाले विश्वास को कभी न डगमगाने दे,
पति पत्नी के रिश्ते में एक दूसरे के प्रति सम्मान होना जरुरी हैं,
पति-पत्नी के रिश्ते में क्रोध और घमंड के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए,
पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए एक दूसरे को समय दे,
एक दूसरे की इच्छाओं का आदर करे,
एक दूसरे की भावनाओं को समझे,
एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार को कभी कम न होने दे,
हमेशा मिलजुल कर अपने प्यार को बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ खास करना चाहिए,
सबसे अहम बात दोनों को अपनी जिंदगी में एक दूसरे को बराबर समझना चाहिए
History of Dhanteras धनतेरस का इतिहास
धनतेरस का इतिहास
परिचय
धनतेरस, जिसे धन त्रयोदशी भी कहा जाता है, भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच दिवसीय दीवाली महापर्व की शुरुआत करता है, जो Goddess लक्ष्मी, समृद्धि और धन की देवी की पूजा के लिए समर्पित है। धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में आता है। यह त्योहार न केवल पूजा का दिन है, बल्कि विशेष रूप से सोने और चांदी के सामान की खरीदारी का अवसर भी है।
प्राचीन उत्पत्ति
धनतेरस की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू ग्रंथों और किंवदंतियों में निहित है। इस त्योहार से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी **पद्म पुराण** में मिलती है। इसके अनुसार, एक बार राजा हिम की पुत्रवधू को यह भविष्यवाणी की गई थी कि उसके पति की मृत्यु शादी के चौथे दिन एक सांप के काटने से होगी। उसे बचाने के लिए उसकी पत्नी ने एक योजना बनाई। उस रात, उसने अपने घर को सोने और चांदी के आभूषणों से भर दिया और कई दीपक जलाए, जिससे एक अद्भुत दृश्य बन गया। उसने अपने पति को जगाए रखने के लिए गीत गाए और कहानियाँ सुनाई। जब यमराज, मृत्यु के देवता, सांप के रूप में आए, तो वे उस दृश्य से इतने मंत्रमुग्ध हो गए कि वे घर में प्रवेश नहीं कर सके। इस प्रकार, राजा की जान बच गई।
एक अन्य कहानी भगवान धन्वंतरि से जुड़ी है, जो आयुर्वेद के देवता हैं। वे समुद्र मंथन के दौरान अमृत (अमरता का रस) का कलश लेकर प्रकट हुए। धन्वंतरि स्वास्थ्य और भलाई के प्रतीक हैं, जो जीवन में धन के महत्व को दर्शाते हैं।
सांस्कृतिक महत्व
धनतेरस भारतीय समाज में गहरे सांस्कृतिक जड़ें रखता है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह धन, स्वास्थ्य और समृद्धि के चारों ओर घूमने वाले मूल्यों और विश्वासों का प्रतिबिंब है। यह त्योहार हर किसी के जीवन में धन के महत्व को दर्शाता है और इसके प्रबंधन की आवश्यकता को समझाता है। धनतेरस का दिन व्यापारिक वर्ष की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है, विशेष रूप से व्यापारियों और दुकानदारों के लिए, जो इस दिन अपने नए खाता-बही की शुरुआत करते हैं।
धनतेरस के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और नए बर्तन, आभूषण या सोने के सिक्के खरीदते हैं, यह मानते हुए कि ये खरीदारी शुभ होगी और समृद्धि लाएगी। दिन का प्रमुख आकर्षण भगवान धन्वंतरि और Goddess लक्ष्मी की पूजा है, जिसमें भक्त स्वास्थ्य, धन और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
प्रथाएँ और उत्सव
धनतेरस का उत्सव समय के साथ विकसित हुआ है, लेकिन कई प्रमुख प्रथाएँ स्थिर बनी हुई हैं:
1. **घर की सफाई और सजावट**: धनतेरस की तैयारी में, परिवार अपने घरों को साफ करते हैं ताकि समृद्धि का स्वागत किया जा सके। यह प्रथा नकारात्मकता को हटाने और धन को आमंत्रित करने का प्रतीक है। लोग अक्सर रंगोली बनाते हैं और दीप जलाते हैं।
2. **नए सामान की खरीदारी**: इस दिन सोने, चांदी या नए बर्तनों की खरीदारी करना परंपरा है। इसे शुभ मानते हुए लोग अपने परिवार के साथ बाजार जाते हैं। यह न केवल आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देता है बल्कि परिवार के बंधनों को भी मजबूत करता है।
3. **पूजा और अनुष्ठान**: धनतेरस की शाम को परिवार भगवान धन्वंतरि और Goddess लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वे अपने घरों में इन देवताओं की मूर्तियाँ या चित्र रखते हैं, प्रार्थना करते हैं, और स्वास्थ्य और धन के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। पूजा में दीप जलाना और मिठाई तथा फल चढ़ाना शामिल होता है।
4. **पारंपरिक भोजन**: इस त्योहार पर विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। पारंपरिक मिठाइयाँ, नाश्ते और उत्सव के भोजन को परिवार और दोस्तों के साथ साझा किया जाता है, जिससे उत्सव का माहौल और भी रंगीन हो जाता है।
आधुनिक समय में धनतेरस
आधुनिक भारत में धनतेरस परंपरा और आधुनिकता का संगम है। जबकि मूल मूल्यों और रिवाजों में कोई परिवर्तन नहीं आया है, नए रुझान उभरे हैं। ऑनलाइन शॉपिंग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है, जिससे लोग अपने घरों से सोने, चांदी और अन्य सामान की खरीदारी कर सकते हैं। ज्वेलरी की दुकानें और रिटेलर्स इस अवधि में विशेष प्रचार और छूट लाते हैं, जिससे खरीदारी की होड़ बढ़ जाती है।
इसके अलावा, यह त्योहार भारत के बाहर भी मान्यता प्राप्त कर चुका है, जहाँ भारतीय समुदाय धनतेरस मनाते हैं। यह वैश्विक उत्सव प्रवासी भारतीयों की सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने के प्रयास को दर्शाता है।
आर्थिक प्रभाव
धनतेरस का भारत की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस त्योहार के दौरान सोने और चांदी की मांग बढ़ जाती है, जिससे ज्वेलरी की दुकानों और बाजारों में बिक्री में वृद्धि होती है। उद्योग के अनुमान के अनुसार, यह त्योहार भारत की वार्षिक सोने की खपत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे यह ज्वेलर्स के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक बन जाता है।
धनतेरस का यह आर्थिक पहलू न केवल ज्वेलरी उद्योग के लिए बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह उत्सव खर्च को बढ़ावा देता है, जो विभिन्न क्षेत्रों जैसे रिटेल, मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं में वृद्धि का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष
धनतेरस एक समृद्ध इतिहास, संस्कृति और परंपरा वाला त्योहार है। यह जीवन में धन और समृद्धि के महत्व को रेखांकित करता है, जबकि स्वास्थ्य और भलाई की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। जैसे-जैसे यह त्योहार विकसित होता है, यह समकालीन समाज में अपनी महत्वपूर्णता बनाए रखता है, परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटता है। चाहे परिवारिक मिलन, खरीदारी के लिए दौड़, या आध्यात्मिक अनुष्ठान, धनतेरस समृद्धि और खुशी की खोज का प्रतीक है।
यह त्योहार न केवल दीवाली के उत्सव की शुरुआत को चिह्नित करता है, बल्कि जीवन के हर पहलू में समृद्धि और खुशियों की खोज के मूल्यों को भी सुदृढ़ करता है। जैसे-जैसे यह हर साल मनाया जाता है, धनतेरस लाखों लोगों के लिए एक प्रिय अवसर बना रहता है, जो धन और खुशी की निरंतर खोज का प्रतीक है।
Dhanteras festival of sanatan hindu in India
History of Dhanteras
Introduction
Dhanteras, also known as Dhan Trayodashi, is a significant festival celebrated primarily in India. It marks the beginning of the five-day festival of Diwali, which is dedicated to the worship of Goddess Lakshmi, the goddess of wealth and prosperity. Dhanteras falls on the thirteenth lunar day of the dark fortnight in the month of Kartik (October-November). The festival is not only a day of worship but also an occasion for shopping, particularly for precious metals like gold and silver, as well as for household items.
Ancient Origins
The origins of Dhanteras can be traced back to ancient Hindu scriptures and legends. One of the most prominent stories associated with this festival is found in the **Padma Purana**. According to the legend, King Hima's son was foretold to die on the fourth day of his marriage due to a snakebite. To save him, his wife devised a plan. On the fateful night, she filled the house with gold and silver ornaments and lit numerous lamps, creating a dazzling display. She also sang songs and told stories to keep her husband awake. When Yama, the god of death, arrived in the guise of a serpent, he was so enchanted by the brilliance and beauty of the scene that he could not enter the house. Thus, the king's life was saved.
Another tale is linked to Lord Dhanvantari, the god of Ayurveda, who emerged from the ocean during the churning of the ocean (Samudra Manthan) holding a pot of nectar (amrit) that grants immortality. He is also associated with health and well-being, symbolizing the importance of wealth in maintaining a healthy and prosperous life.
Cultural Significance
Dhanteras has deep cultural roots in Indian society. It is not merely a religious observance but a reflection of the values and beliefs surrounding wealth, health, and prosperity. The festival signifies the importance of wealth in everyday life and the need to respect and manage it wisely. It also marks the beginning of the business year for many communities in India, especially for traders and merchants, who begin their financial accounts anew.
On Dhanteras, people traditionally clean their homes and buy new utensils, jewelry, or gold coins, believing that these purchases will bring good luck and prosperity. The day is also marked by the worship of Lord Dhanvantari and Goddess Lakshmi, with devotees seeking blessings for health, wealth, and overall well-being.
Practices and Celebrations
The celebration of Dhanteras has evolved over time, but several key practices remain consistent:
1. **Cleaning and Decorating Homes**: In preparation for Dhanteras, families clean their homes to welcome prosperity. This practice symbolizes the removal of negativity and the welcoming of wealth. People often decorate their homes with rangoli (colorful patterns made with colored powders) and light lamps.
2. **Purchasing New Items**: It is customary to purchase gold, silver, or new utensils on this day. Many consider buying these items auspicious and believe they will bring prosperity in the coming year. This shopping spree not only boosts the economy but also strengthens family bonds as families come together for the occasion.
3. **Worship and Rituals**: On the evening of Dhanteras, families perform puja (worship) rituals to honor Lord Dhanvantari and Goddess Lakshmi. They place idols or pictures of these deities in their homes, offer prayers, and seek blessings for health and wealth. The rituals often involve lighting diyas (oil lamps) and offering sweets and fruits.
4. **Festive Foods**: Special dishes are prepared to celebrate the festival. Traditional sweets, snacks, and festive meals are shared with family and friends, adding to the celebratory atmosphere.
Dhanteras in Modern Times
In contemporary India, Dhanteras has evolved into a blend of tradition and modernity. While the core values and customs remain intact, new trends have emerged. Online shopping has gained immense popularity, allowing people to purchase gold, silver, and other items from the comfort of their homes. Jewelry stores and retailers often launch special promotions and discounts during this period, capitalizing on the shopping frenzy.
Moreover, the festival has also gained recognition outside of India, with Indian communities across the globe celebrating Dhanteras. This global celebration reflects the diaspora's efforts to maintain cultural ties and traditions in their new environments.
Economic Impact
Dhanteras has a significant economic impact in India. The demand for gold and silver spikes during this festival, leading to increased sales in jewelry shops and markets. According to industry estimates, the festival accounts for a substantial portion of India's annual gold consumption, making it one of the most important days for jewelers.
This economic aspect of Dhanteras is crucial not only for the jewelry industry but also for the overall economy. The festival stimulates spending, which can lead to growth in various sectors, including retail, manufacturing, and services.
Conclusion
Dhanteras is a festival rich in history, culture, and tradition. It serves as a reminder of the importance of wealth and prosperity in life, while also emphasizing the need for health and well-being. As the festival continues to evolve, it retains its significance in contemporary society, bridging the gap between tradition and modernity. Whether celebrated with family gatherings, shopping sprees, or spiritual rituals, Dhanteras embodies the hope for a prosperous and healthy future.
The festival not only marks the beginning of the Diwali celebrations but also reinforces the values of gratitude, family, and the pursuit of prosperity in every aspect of life. As it is celebrated year after year, Dhanteras remains a cherished occasion for millions, symbolizing the eternal quest for wealth and happiness.
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