ओ३म् के उच्चारण के शारीरिक लाभ

ओ३म् के उच्चारण के शारीरिक लाभ -
अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
इससे पाचन शक्ति तेज़ होती है।
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है। इत्यादि इत्यादि।


ओ३म्‌
ओ३म् के उच्चारण से मानसिक लाभ -
जीवन जीने की शक्ति और दुनिया की चुनौतियों का सामना करने का अपूर्व साहस मिलता है।
इसे करने वाले निराशा और गुस्से को जानते ही नहीं।
प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियंत्रण होता है। परिस्थितियों को पहले ही भांपने की शक्ति उत्पन्न होती है।
आपके उत्तम व्यवहार से दूसरों के साथ सम्बन्ध उत्तम होते हैं। शत्रु भी मित्र हो जाते हैं।
जीवन जीने का उद्देश्य पता चलता है जो कि अधिकाँश लोगों से ओझल रहता है।
इसे करने वाला व्यक्ति जोश के साथ जीवन बिताता है और मृत्यु को भी ईश्वर की व्यवस्था समझ कर हँस कर स्वीकार करता है।
जीवन में फिर किसी बात का डर ही नहीं रहता।
आत्महत्या जैसे कायरता के विचार आस पास भी नहीं फटकते। बल्कि जो आत्महत्या करना चाहते हैं, वे एक बार ओ३म् के उच्चारण का अभ्यास 4 दिन तक कर लें। उसके बाद खुद निर्णय कर लें कि जीवन जीने के लिए है कि छोड़ने के लिए।
ओ३म् के उच्चारण के आध्यात्मिक (रूहानी) लाभ -
इसे करने से ईश्वर / अल्लाह से सम्बन्ध जुड़ता है और लम्बे समय तक अभ्यास करने से ईश्वर/अल्लाह को अनुभव (महसूस) करने की ताकत पैदा होती है।
इससे जीवन के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं और यह पता चलता है कि कैसे ईश्वर सदा हमारे साथ बैठा हमें प्रेरित कर रहा है।
इस दुनिया की अंधी दौड़ में खो चुके खुद को फिर से पहचान मिलती है। इसे जानने के बाद आदमी दुनिया में दौड़ने के लिए नहीं दौड़ता किन्तु अपने लक्ष्य के पाने के लिए दौड़ता है।
इसके अभ्यास से दुनिया का कोई डर आसपास भी नहीं फटक सकता मृत्यु का डर भी ऐसे व्यक्ति से डरता है क्योंकि काल का भी काल जो ईश्वर है, वो सब कालों में मेरी रक्षा मेरे कर्मानुसार कर रहा है, ऐसा सोच कर व्यक्ति डर से सदा के लिए दूर हो जाता है। जैसे महायोगी श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के वातावरण में भी नियमपूर्वक ईश्वर का ध्यान किया करते थे। यह बल व निडरता ईश्वर से उनकी निकटता का ही प्रमाण है।
इसके अभ्यास से वह कर्म फल व्यवस्था स्पष्ट हो जाती है कि जिसको ईश्वर ने हमारे भले के लिए ही धारण कर रखा है। जब पवित्र ओ३म् के उच्चारण से हृदय निर्मल होता है तब यह पता चलता है कि हमें मिलने वाला सुख अगर हमारे लिए भोजन के समान सुखदायी है तो दुःख कड़वा होते हुए भी औषधि के समान सुखदायी है जो आत्मा के रोगों को नष्ट कर दोबारा इसे स्वस्थ कर देता है। इस तरह ईश्वर के दंड में भी उसकी दया का जब बोध जब होता है तो उस परम दयालु जगत माता को देखने और पाने की इच्छा प्रबल हो जाती है और फिर आदमी उसे पाए बिना चैन से नहीं बैठ सकता। इस तरह व्यक्ति मुक्ति के रास्तों पर पहला क़दम धरता है।



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