कहने को तो वो समाज की रीढ़ हैं, हंसते-खेलते परिवार की नींव है, उनके कंधों पर आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी है लेकिन ना जाने यह कैसी विडंबना है कि जिस समाज को वो अपने आदर्शों, अपने तरीकों और अपनी उम्मीदों से सींचते हैं वहीं समाज एक समय बाद उनकी अवहेलना करने लगता है, उनपर हंसने लगता है, उन्हें महत्व देना भूल जाता है.
एक दौर था जब समाज अपने बुजुर्गों को सिर आंखों पर बैठा कर रखता था, परिवार के भीतर भी उन्हें हर वो आदर-सम्मान दिया जाता था जिसके वो हकदार होते थे, उन्हें सुना जाता था, उनकी बातों का मान रखा जाता था. लेकिन अफसोस पहले जैसी ये परिस्थितियां अब न्यूनतम स्तर पर ही दिखाई देती हैं, यह कहना भी गलत नहीं होगा अब परिवार में बुजुर्ग का सम्मान होते देखना कम से कम आज की युवा पीढ़ी को तो नसीब हो रहा. हर घर के यही हालात है जहां बच्चे अपने ही माता-पिता द्वारा उनके अभिभावकों का असम्मान होते देखते हैं, उनपर चिल्लाते देखते हैं, उन्हें दुत्कारते दिखते हैं.
युवाओं द्वारा बुजुर्गों का अपमान होते देखना आज कोई बड़ी बात नहीं रह गई है, गली-मोहल्लों और घर में भी पीठ-पीछे या उन्हीं के सामने उनका अपमान कर दिया जाता है जिन्होंने कभी हर दुख सहकर अपने परिवार को मुश्किलों से बचाने की कोशिश की थी. घर में अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों और युवाओं के बीच एक और पीढ़ी मौजूद होती हैं वो हैं, जिसके कंधों पर पीढ़ी के इस अंतर को समाप्त कर परिवार में सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी होती हैं लेकिन दुख की बात यह है कि जब अपने ही माता-पिता को लोग बोझ समझने लगते हैं तो सामंजस्य बैठाने की परेशानी भी कोई नहीं उठाना चाहता.
आज अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के दिन हर ओर बुजुर्गों को सम्मान देने जैसी बातें, टी.वी और समाचार पत्रों में उन्हें समर्पित विज्ञापन दिखाई दे जाते हैं, अब जबकि सोशल मीडिया का चलन भी बहुत लोकप्रिय हो गया है तो वहां भी परिवार और आस पड़ोस के बुजुर्गों के प्रति आदरपूर्ण व्यवहार करने से जुड़े स्टेटस और पोस्ट किए जा रहे होंगे लेकिन कल हर कोई, सब कुछ भूलकर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा जिसपर अभी तक चला जाता रहा है.
नहीं जिनको है घुल जाने की चाह
ऐसा नहीं है कि हर परिवार और हर परिस्थितियों में गलती युवाओं या उन लोगों की होती हैं जो अपने वृद्ध हो चुके माता-पिता के साथ बात-बात पर उलझ जाते हैं. कई बार हालात परिवार के बुजुर्गों द्वारा भी बिगड़ जाते हैं लेकिन ऐसे हालातों में उनसे बहस करने की बजाय अगर उनकी कथनी को नजरअंदाज कर दिया जाए तो परिवार में खुशहाली का माहौल कायम रखा जा सकता है.
आप अपने बचपन को ही याद कीजिए, जब आप बीमार होते थे तो किस तरह रातभर आपकी मां आपके बिस्तर के पास ही बैठी रहती थी, आपकी परीक्षाओं के दिनों में वह अपना चैन भूल जाती थी. आपके पिता आपकी एक ख्वाहिश पूरी करने के लिए अपनी दवाइयां तक नहीं लाते थे. उन्होंने वो सब किया जो आपके लिए जरूरी था, किसी भी मुश्किल में आपको अकेला नहीं छोड़ा आपकी हर जरूरत में आपके साथ रहते थे, लेकिन आज जब उन्हें आपकी जरूरत हैं तो आप कैसे उन्हें जीवन के सबसे कठिन पड़ाव में अकेला छोड़ सकते हैं?
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