ईसबगोल का मूल उत्त्पत्ति स्थान ईरान है और यहीं से इसका भारत में आयात किया जाता है | इसका उल्लेख प्राचीन वैद्यक शास्त्रों व निघण्टुओं में अल्प मात्रा में पाया जाता है| 10वीं शताब्दी पूर्व के अरबी और ईरान के अलहवीं और इब्नसीना नामक हकीमों ने अपने ग्रंथों में औषधि द्रव्य के रूप में ईसबगोल का निर्देश किया था | तत्पश्चात कई यूनानी निघण्टुकारों ने इसका खूब विस्तृत विवेचन किया | फारस में मुगलों के शासनकाल में इसका प्रारम्भिक प्रचार यूनानी हकीमों ने इसे ईरान से यहां मंगाकर किया | तब से जीर्ण प्रवाहिका और आंत के मरोड़ों पर सुविख्यात औषधोपचार रूप में इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा और आज भी यह आंत्र विकारों की कई उत्तमोत्तम औषधियों में अपना खास दर्जा रखती है |इनके बीजों का कुछ आकार प्रकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोल या इसबगोल कहा जाने लगा | आजकल भारत में भी इसकी खेती गुजरात,उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा में की जाती है| औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी प्रयुक्त की जाती है | बीजों के ऊपर सफ़ेद भूसी होती है | भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुआव बना लेती है जो गंधरहित और स्वादहीन होती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल दिसम्बर से मार्च तक होता है |
ईसबगोल के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव -
१- ईसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |
ईसबगोल के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव -
१- ईसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |
२- ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से आंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है |
३- एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी सुबह भिगोई हुई शाम को तथा शाम की भिगोई हुई सुबह सेवन करने से सूखी खांसी में पूरा लाभ मिलता है |
४- चार चम्मच ईसबगोल भूसी को एक गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |
५- ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं |




![Photo: अरुचि [ भूख न लगना ]
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती | यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाय तो वह अरुचिकर लगता है | रोगी 1 या 2 ग्रास ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये -पिये खट्टी डकारें आने लगती हैं | इस तरह भूक न लगने अरुचि कहते हैं |
आमाशय या पाचनतंत्र में कमी होने के कारण भूख लगनी कम हो जाती है | ऐसे में यदि कुछ दिनों तक इस बात पर ध्यान न दिया जाये तो भूख लगनी बिलकुल ही बंद हो जाती है | अधिक चिंता, क्रोध , भय और घबराहट के कारण भी यकृत की ख़राबी के कारण भी भूख नहीं लगती |
विभिन्न औषधियों द्वारा अरुचि का उपचार --------
१-गेंहू के चोकर में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भूख तेज़ होती है |
२-एक सेब या सेब के रस के प्रतिदिन सेवन से खून साफ़ होता है और भूख भी लगती है |
३-एक गिलास पानी में 3 ग्राम जीरा , हींग , पुदीना , कालीमिर्च और नमक डालकर पीने से अरुचि दूर होती है |
४-अजवायन में स्वाद के अनुसार कालानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अरुचि दूर होती है |
५-प्रतिदिन मेथी में छौंकी गई दाल या सब्ज़ी के सेवन से भूख बढ़ती है |
६-नींबू को काटकर इसमें सेंधा नमक डालकर भोजन से पहले चूसने से कब्ज़ दूर होकर पाचनक्रिया तेज़ हो जाती है |](https://scontent-b-sin.xx.fbcdn.net/hphotos-xpf1/t1.0-9/10409316_776345639076684_6611757385950066295_n.jpg)

