अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
जो ख़ुशक़िस्मत हैं, बादल-बिजलियों पर शेर कहते हैं
लुटे आंगन में मौसम की तबाही, कौन पढ़ता है
कुछ लुटी अस्मत कुछ लूटे तारे इस तरह का ये शहर हो गया
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो
वहा उनको देखने को भी मैं मजबूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया
सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
No comments:
Post a Comment
Thanks to visit this blog, if you like than join us to get in touch continue. Thank You