विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
आज के इस आधुनिक युग में,
जहाँ तकनीक ने तरक्की की है,
वहीं फैशन की आड़ में शर्म और मर्यादा को
छोड़ देना एक नया चलन बन गया है।
हर उम्र की महिलाएँ,
अक्सर तंग, कटे-फटे कपड़ों में,
बिना आँचल या चूनरी के,
अपने शरीर की हर रेखा को
सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करती हुई नज़र आती हैं।
प्रश्न उठता है –
इसका उद्देश्य क्या है?
कौन-सी आज़ादी है जो शरीर के प्रदर्शन से जुड़ी है?
भारतीय संस्कृति ने कभी स्त्री को दबा कर नहीं रखा,
बल्कि उसे 'माँ', 'बहन', 'लक्ष्मी' और 'शक्ति' के रूप में पूजा है।
लेकिन जब वही स्त्री शालीनता की जगह अश्लीलता चुनती है,
तो समाज में कामुकता, अपराध और अव्यवस्था को जन्म देती है।
इतिहास गवाह है –
जब-जब सदाचार की सीमा टूटी है,
तब-तब कामुक भेड़ियों ने इंसानियत को नोच डाला है।
किसी को फ्रिज में बंद किया गया,
किसी को जला दिया गया,
किसी को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया।
👉 क्या यह सब उस स्त्री का दोष था?
नहीं!
लेकिन क्या हम यह नकार सकते हैं कि कुछ हद तक उत्तेजक कपड़े, उकसावे और नजरों का कारण बनते हैं?
🚨 सिर्फ पुरुष ही नहीं – स्त्रियों को भी आत्ममंथन करना होगा।
शादी से पहले शील और मर्यादा में रहना,
भारतीय परंपरा का मूल रहा है।
यह पाबंदी नहीं, सुरक्षा है –
मान, सम्मान और भविष्य की रक्षा है।
बिना आँचल या मर्यादा के
अगर कोई स्त्री अपने शरीर को ‘प्रदर्शन’ बनाती है,
तो वह अनजाने में ही कई कमजोर मानसिकता वाले पुरुषों को भटकाती है।
फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री – दोष दोनों का है।
चरित्रहीनता स्त्री या पुरुष में नहीं –
चरित्र में होती है।
शादी से पहले "इच्छा",
शादी के बाद "असंतोष",
क्या यही आज़ादी है?
भगवान ने जो दिया,
उसमें संतुष्ट रहना ही सच्चा जीवन है।
पर जब हम वासनाओं के पीछे भागते हैं,
तो सिर्फ खुद नहीं,
पूरा परिवार, समाज और पीढ़ियाँ तबाह हो जाती हैं।
सुपर्णखा ने अपनी इच्छाओं में मर्यादा लांघी –
नाक कटी और कुटुंब खत्म हुआ।
विश्वामित्र जैसे तपस्वी भी मोहिनी रूप में बहके –
तो आम पुरुष कौन सा अपवाद है?
🌼 अब समय है – चरित्र और संस्कारों की ओर लौटने का।
सशक्त बनो, लेकिन शालीन भी।
आज़ाद बनो, पर मर्यादा के भीतर।
फैशन ऐसा हो जो आत्मसम्मान बढ़ाए,
ना कि दूसरों की नीयत बिगाड़े।
स्त्री और पुरुष दोनों की ज़िम्मेदारी है –
कि वो चरित्रवान बनें,
समाज को बिगाड़ें नहीं।
👉 आधुनिकता में डूबकर संस्कृति को मत भूलो।
क्योंकि देश सभ्यता से बनता है, केवल विकास से नहीं।
🙏 आपका शुभचिंतक – एक सजग, संवेदनशील और संस्कारित नागरिक।
🚩 क्या माता-पिता अपनी बेटियों और बेटों को अनजाने में बर्बादी के रास्ते पर धकेल रहे हैं? 🚩
आजकल माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल-कॉलेज भेजने के नाम पर पूरी आज़ादी दे रहे हैं – सज-संवरकर, क्रीम-पाउडर, लिपस्टिक लगाकर और छोटे, तंग व शरीर दिखाने वाले फैशनेबल कपड़े पहनकर बाहर जाने की खुली छूट दी जा रही है। लेकिन क्या माता-पिता ने कभी यह सोचा कि बेटी की यह ‘मॉडर्न’ सोच उसे प्रेमजाल, लव जिहाद और अपराध के अंधेरे में धकेल रही है?
इसी के साथ लड़कों की भी बुरी आदतें बढ़ती जा रही हैं। माता-पिता यह सोचकर निश्चिंत हो जाते हैं कि "लड़का तो लड़का है, उसे कौन फंसा सकता है?" लेकिन क्या वे यह देख रहे हैं कि लड़के मोबाइल, शराब, सिगरेट, नशा, पॉर्न, आवारागर्दी और चरित्रहीनता की ओर बढ़ रहे हैं?
❗ माता-पिता ज़रा सोचिए ❗
🔴 क्या बेटी सच में स्कूल-कॉलेज जा रही है या किसी और बहाने से बाहर निकल रही है?
🔴 वह किसके साथ बाहर जा रही है और किसके साथ लौट रही है?
🔴 घर से बाहर या अकेले में मोबाइल पर किससे घंटों बात कर रही है?
🔴 क्या वह स्कूल-कॉलेज के नाम पर किसी और दिशा में तो नहीं जा रही?
🔴 जिसे आप गाड़ी चलाना सिखा रहे हैं, क्या वह इसका सही इस्तेमाल कर रही है या कोई और उसे प्रेमजाल में फंसा कर ‘ड्राइविंग सिखाने’ के बहाने कहीं और तो नहीं ले जा रहा?
🔴 क्या आपके सिखाए गए ‘आज़ादी’ और ‘विश्वास’ का कोई गलत फायदा उठा रहा है?
🔴 क्या बेटी संस्कारी और सादगीपूर्ण पहनावा अपना रही है, या छोटे, तंग और अंग प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनकर अनजान खतरों को बुलावा दे रही है?
🔴 क्या माता-पिता अपने कामों में इतने व्यस्त हैं कि बच्चों की परवरिश पर ध्यान ही नहीं दे पा रहे, या फिर लापरवाही में उन्हें ऐसी खुली छूट दे रहे हैं कि वे खुद को प्रेमजाल में फंसाने के लिए पूरी तरह तैयार कर रही हैं?
🚨 लड़कों की बुरी आदतें भी बना रही हैं उन्हें अपराधी!
⚠️ क्या आपका बेटा मोबाइल में गलत संगत में फंस रहा है?
⚠️ क्या वह सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट देख रहा है और ग़लत संगत में पड़ रहा है?
⚠️ क्या वह दोस्तों के नाम पर बिगड़ रहा है और नशे का शिकार हो रहा है?
⚠️ क्या वह आवारागर्दी कर रहा है और घर पर झूठ बोलकर बाहर घूम रहा है?
⚠️ क्या वह लड़कियों को गलत नजर से देख रहा है और चरित्रहीन बनता जा रहा है?
⚠️ क्या माता-पिता उसे संस्कार नहीं दे रहे, बस उसकी गलतियों पर पर्दा डाल रहे हैं?
🚨 अगर अभी ध्यान नहीं दिया, तो इतिहास गवाह है कि:
✔️ घर के अंदर घुसकर बाबर लूटेगा।
✔️ देश में अपराध और महिला शोषण बढ़ेगा।
✔️ लव जिहाद के मामले बढ़ेंगे और बेटियों के 35 टुकड़े होने की खबरें आती रहेंगी।
✔️ लड़के नशे, पॉर्न, अपराध और गलत आदतों में फंसकर अपना भविष्य बर्बाद कर लेंगे।
✔️ हर दिन नई घटनाएं सामने आएंगी, और माता-पिता रोते रह जाएंगे।
⚠️ आज जो माता-पिता सोचते हैं कि "हमारा बच्चा समझदार है, उसे सब पता है," वे असल में सबसे ज्यादा खतरे में हैं!
🚩 समाधान क्या है? 🚩
✔️ बेटियों और बेटों दोनों को संस्कारों की शिक्षा दें, सादगी और मर्यादा का महत्व समझाएं।
✔️ उनकी गतिविधियों पर नजर रखें – वे किससे मिलते हैं, किससे बातें करते हैं, यह माता-पिता की जिम्मेदारी है।
✔️ आने-जाने के समय का अनुशासन तय करें, देर रात तक बाहर रहने की अनुमति न दें।
✔️ सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों पर नजर रखें, गलत संगत से बचने के लिए उन्हें मार्गदर्शन दें।
✔️ बेटियों को आत्मरक्षा, शस्त्र-विद्या और सनातन संस्कृति की शिक्षा दें, ताकि वे किसी भी तरह के छल-कपट का सामना कर सकें।
✔️ बेटियों को अंग प्रदर्शन करने वाले, छोटे और तंग कपड़े पहनने से रोकें, ताकि वे अनचाहे खतरों से बच सकें।
✔️ लड़कों को नशा, मोबाइल की लत और गलत संगत से बचाएं, ताकि वे चरित्रवान बन सकें।
✔️ बच्चों को यह समझाएं कि सादगी और मर्यादा ही नारी और पुरुष दोनों का सबसे बड़ा आभूषण है।
🚩 अब भी समय है, अपनी बेटियों और बेटों को जागरूक करें, उन पर ध्यान दें, उनके संस्कार और दिनचर्या को नियंत्रित करें, वरना पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 🚩
**होली: वास्तविक महत्व, वर्तमान स्थिति और समाज पर नकारात्मक प्रभाव**
होली केवल रंगों और उमंग का पर्व नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, प्रेम, सामाजिक समरसता और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। यह त्योहार हमें भारतीय संस्कृति की गहराई से जोड़ता है और हमें जीवन में आनंद, त्याग और प्रेम के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है। लेकिन वर्तमान समय में, होली का स्वरूप बदल रहा है और इसके कारण समाज में कई नकारात्मक प्रवृत्तियाँ जन्म ले रही हैं।
**होली का वास्तविक महत्व**
**1. आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व**
- **प्रह्लाद और होलिका की कथा** – बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश।
- **राधा-कृष्ण की होली** – प्रेम और माधुर्य का प्रतीक।
- **कामदेव की कथा** – त्याग और पुनर्जन्म की सीख।
**2. सामाजिक महत्व**
- जात-पात, ऊँच-नीच भेदभाव मिटाकर समानता का भाव उत्पन्न करना।
- परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों के बीच प्रेम और एकता बढ़ाना।
**वर्तमान स्थिति में होली का स्वरूप और नकारात्मक प्रभाव**
आज के समय में होली का पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व कहीं पीछे छूटता जा रहा है। यह त्योहार अब भोगवाद, असंयमित व्यवहार और समाज में बढ़ती अनैतिक प्रवृत्तियों का माध्यम बनता जा रहा है।
**1. सामाजिक मूल्यों का पतन**
**(क) युवाओं का असामाजिक और संवेदनहीन होना**
- पहले लोग आपसी मेल-मिलाप और रिश्तों को मजबूत करने के लिए होली खेलते थे, लेकिन अब यह सिर्फ एक दिखावा बनकर रह गया है।
- सोशल मीडिया और वर्चुअल दुनिया में डूबे युवा असली होली की भावना से दूर होते जा रहे हैं।
- मोहल्लों और परिवारों में त्योहारों का जोश कम हो रहा है क्योंकि लोग अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त रहते हैं।
**(ख) रिश्तों में दूरियाँ और संवेदनहीनता**
- पहले परिवार और समाज के लोग एक-दूसरे के घर जाकर होली की बधाई देते थे, लेकिन अब एक मैसेज भेजकर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है।
- होली जैसे त्योहारों में भी लोग जातिवाद और सांप्रदायिक भेदभाव के कारण बंटने लगे हैं।
**2. नशे और असंयम का बढ़ता प्रभाव**
- होली के अवसर पर शराब, भांग और अन्य नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन किया जाता है।
- युवा वर्ग नशे में धुत होकर बेकाबू हो जाता है, जिससे दुर्घटनाएँ और अपराध बढ़ते हैं।
- सड़क पर हुड़दंग और असामाजिक गतिविधियाँ सामान्य बात हो गई हैं।
**3. महिलाओं के प्रति अपराध और यौन विकृति**
**(क) छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार**
- "बुरा न मानो होली है" का गलत अर्थ निकालकर लड़कियों और महिलाओं के साथ बदतमीजी की जाती है।
- कई बार महिलाएँ इस त्योहार में शामिल होने से डरती हैं क्योंकि कुछ लोग जबरदस्ती रंग लगाने, छूने और अश्लील हरकतें करने लगते हैं।
- भीड़ का फायदा उठाकर अपराधी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं।
**(ख) अश्लीलता और अनैतिक गतिविधियाँ**
- कुछ स्थानों पर होली के नाम पर अश्लील डांस, गंदे गाने और बेशर्मी भरे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- होली की रात कई जगहों पर लड़कियों और महिलाओं के साथ यौन शोषण और दुष्कर्म जैसी घटनाएँ होती हैं।
- नशे में धुत लोग अनैतिक और गैर-कानूनी हरकतें करते हैं।
**4. पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव**
**(क) जल संकट और बर्बादी**
- होली के दिन हजारों लीटर पानी व्यर्थ बहाया जाता है, जबकि देश के कई हिस्सों में लोग पानी के लिए तरसते हैं।
- वाटर बैलून और वाटर गन के अंधाधुंध इस्तेमाल से जल की बर्बादी होती है।
**(ख) रासायनिक रंगों से स्वास्थ्य पर खतरा**
- बाजार में बिकने वाले अधिकतर रंगों में हानिकारक केमिकल होते हैं, जो त्वचा, आँखों और बालों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- कुछ रंगों में कैंसरकारी तत्व होते हैं, जो लंबे समय तक शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
**(ग) प्रदूषण और होलिका दहन का नकारात्मक प्रभाव**
- होलिका दहन के लिए हजारों पेड़ काटे जाते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है।
- वायु प्रदूषण बढ़ता है और सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
**5. अपराधों में वृद्धि**
- होली के दिन सड़क दुर्घटनाएँ, लड़ाई-झगड़े और हिंसक घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
- चोरी, लूटपाट और दंगे जैसी घटनाएँ भी होली के मौके पर बढ़ जाती हैं।
- कुछ असामाजिक तत्व इस मौके का फायदा उठाकर सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश करते हैं।
**सच्चे अर्थों में होली कैसे मनाएँ?**
1. **संस्कृति और परंपरा को जीवित रखें** – परिवार और समाज के साथ मिलकर भजन, कीर्तन और सत्संग करें।
2. **नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दें** – होली को प्रेम, सम्मान और सद्भावना से मनाएँ, न कि अनुशासनहीनता से।
3. **युवाओं को जागरूक करें** – उन्हें समझाएँ कि त्योहारों का मतलब भक्ति, आनंद और सामाजिक मेलजोल होता है, न कि अश्लीलता और अनैतिकता।
4. **महिलाओं और कमजोर वर्गों का सम्मान करें** – जबरदस्ती रंग लगाने या दुर्व्यवहार करने की बजाय एक स्वस्थ और सुरक्षित माहौल बनाएँ।
5. **प्राकृतिक रंगों और जल संरक्षण का ध्यान रखें** – केमिकल रंगों और पानी की बर्बादी से बचें।
6. **नशे और अपराध से दूर रहें** – होली को एक पवित्र त्योहार की तरह मनाएँ और किसी भी नशे या अनैतिक कार्यों से बचें।
7. **पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें** – होलिका दहन में अधिक लकड़ी जलाने से बचें और वायु प्रदूषण न बढ़ाएँ।
**निष्कर्ष**
होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। इसे सही तरीके से मनाने की ज़रूरत है ताकि समाज में नैतिकता बनी रहे और युवा भोगवाद के बजाय आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित हों। अगर हम सही दिशा में प्रयास करें, तो होली पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौट सकती है – जहाँ प्रेम, भक्ति और सामाजिक समरसता का संदेश होगा, न कि असंयम, अश्लीलता और नैतिक पतन।
**आपको और आपके परिवार को पावन होली की मंगलकामनाएँ!** 🎨🔥🙏