अनमोल-वचन

महापुरुषों की पहली पहचान उनकी विनम्रता है .• कोई कार्य तुच्छ नहीं होता। यदि मनपसन्द कार्य मिल जाए, तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता हैं, किंतु बुद्धिमान इंसान वही हैं, जो प्रत्येक कार्य को अपने लिए रुचिकर बना ले। 

• प्रसन्नता अनमोल खजाना हैं। छोटी-छोटी बातों पर उसे लुटने न दें। 

• जिसे अपने में विश्वास नहीं, उसे भगवान में विश्वास कभी नहीं हो सकता। 

• सत्य के लिए हर वस्तु की बलि दी जा सकती हैं, किन्तु सत्य की बलि किसी भी वस्तु के लिए नहीं दी जा सकती हैं। 

• अगर आपने किसी जरुरतमंद की सेवा की तो धन्यवाद के पात्र आप नहीं वह जरुरतमंद व्यक्ति हैं, क्योंकि उसने आपको सेवा का मौका दिया। 

• असंतुष्ट व्यक्ति किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता, उसके लिए सभी कर्तव्य नीरस होते हैं। फलस्वरुप उसका जीवन असफल होना स्वाभाविक हैं। 

• क्रियाशीलता ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र मार्ग हैं। 

• अपवित्र कल्पना भी उतनी बुरी होती हैं जितना कि अपवित्र कर्म होता हैं। 

• कामना सागर की भांति अतॄप्त हैं, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढता हैं। 

• लोभ से बुद्धि नष्ट होती हैं, बुद्धि नष्ट होने से लज्जा, लज्जा नष्ट होने से धर्म तथा धर्म नष्ट होने से मनुष्य का सर्वत्र नष्ट हो जाता हैं। 
• कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ? 

• जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। 

• पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।

• यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। 

• आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। 

अच्छी बात किसी ने भी कही हो, वह अच्छी है, उसे ध्यान से सुनो। गोताखोर की हीनता से मोती के मूल्य में कोई कमी नहीं आ सकती। 

हमें अपनी प्रार्थनाओं से सामान्य मंगलकामना करनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ही भली-भांति जानता हैं कि हमारी किस में भलाई हैं? 

उन्हें स्वामिभक्त न समझो, जो तुम्हारे शब्दों और कामों की प्रंशसा करें, अपितु उन पर कॄपा करो, जो तुम्हारे दोषों पर झिडकें। 

शेक्सपीयर के अनमोल वचन

प्रत्येक का उपदेश सुनो पर अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तिओं को दो। 

अपने शत्रु के लिए अपनी भट्टी को इतना गरम न करो कि वह तुम्हें ही भून कर रख दे। 

जो हानि हो चुकी हैं उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना हैं। 

वीर केवल एक ही बार मरता हैं। कायर जीते जी बार-बार मरते हैं। 

सुनो अधिक से अधिक, बोलो कम से कम। 

जो लुटने पर भी मुस्कुराता हैं, वह चोर का कुछ चुरा लेता हैं। 

अपराधी मन संदेह का अड्डा हैं,चोर को हर झाडी में पुलिस का भय बना रहता हैं। 

जो एक बार विश्वासघात कर चुका हो, उसका विश्वास मत करो। 

कर्म को वचन के अनुरुप और वचन को कर्म के अनुरुप बनाओ। 

जिसमें सोचने की शक्ति खत्म हो गई हैं, समझ लीजिए वह व्यक्ति बर्बाद हो चुका हैं। 

विवेक बहादुरी का उत्तम भाग हैं। 

चिंता जीवन के सुख की शत्रु हैं। 
• संसार मे जो परिवर्तन तुम देखना चाहते हो, उसकी शुरुवात स्वयं को उस परिवर्तन मे ढाल के करो।
• शुद्ध ह्रदय से निकला हुआ वचन कभी निष्फल नहीं होता। 
• यदि आदमी सीखना चाहे तो उसकी हरेक भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती हैं। 

• गलती स्वीकार कर लेना झाडु बुहारने के समान हैं, दोनों से गंदगी साफ हो जाती हैं। 
• विचार शून्य जीवन पशु जैसा हैं। 
• लगन के बिना किसी में भी महान प्रतिभा पैदा नहीं हो सकती। 

• आदमी अपनी प्रंशसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं हैं। जिसमें योग्यता होती हैं उसका ध्यान उधर नहीं जाता। 
• प्रेम की शक्ति दंड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती हैं। 
• भूल करना मनुष्य का स्वभाव हैं, की गई भूल को स्वीकार करना एवं वैसी भूल फिर न करने का प्रयास करना वीर एवं शूर होने का प्रतीक हैं। 

• अंधा वह नहीं, जिसकी आंख नहीं हैं। अंधा वह हैं, जो अपना दोष छिपाता हैं।
• क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। 
• हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं, कायरता हैं। 

• एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। 
• साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। 
• सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। 

• हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। 
• प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। 
• किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन बेडियों में होती है। 

• यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। 
• यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। 
• आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। 

• यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। 
• धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। 
• किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। 

• स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। 
• मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। 
• जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। 

• अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। 
• पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। 
• मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। 
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क्षमा से सभी कषाय नष्ट - मुनि पुलकसागर



क्षमा कषायों पर फहराई गई विजय पताका है। जहाँ क्षमा होती है वहाँ क्रोध, मान, माया, लोभ सभी कषाय नष्ट हो जाते हैं। यही वजह है कि दसलक्षण धर्म की व्याख्या उत्तम क्षमा से शुरू होती है और क्षमावाणी पर समाप्त होती है। 

ऐसा लगता है जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो जिसमें पहला मनका जहाँ से शुरू होता है अंतिम मनका वहीं आकर समाप्त हो जाता है। पहले और अंतिम मनके के मिलन में तीन मनकों का रास्ता मिलता है जिसमें भगवान महावीर का मुक्ति सूत्र छिपा है।

सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता। क्षमा को क्षमा के अंदाज में जियो। अक्सर आदमी क्षमा को भी क्रोध के अंदाज में जीता है। सचाई तो यह है कि हमेशा क्रोध ने क्षमा के आगे घुटने टेके हैं। 

श्रावक और साधक को जीवन में क्रोध पर विजय पाने के लिए क्षमा का गुण अपनाना चाहिए। यदि आपके प्रति कोई बुरा भाव रखता भी है तो उसे क्षमा करना सीखें और उसके प्रति नेक भावना की आदत डालें। 

क्षमावाणी के पावन व पुनीत अवसर पर हम स्वयं के द्वारा जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा माँगें, शत्रुता को भूलकर क्षमा भाव धारण करें। सुखी रहें सब जीव जगत के इसी भावना के साथ उत्तम क्षमा। 

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खुली रखिए बातचीत की खिड़कियाँ



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वि‍नती गुप्ता

दोनों सास-बहू का प्रेम लोगों के लिए मिसाल हुआ करता था। सास पीछे बैठती व बहू स्कूटर चलाती। सास के चेहरे पर एक आत्मसंतुष्टि का भाव या यूँ कहिए कि इस बात का घमंड था कि उसकी बहू कितनी अच्छी है। जहाँ आज के समय सास-बहू साथ नहीं रहती हैं वहाँ उन दोनों के बीच इतना अच्छा सामंजस्य सचमुच ईर्ष्या की बात थी। 

दोनों से अकेले में भी मिलने पर एक-दूसरे की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं। चाहे कोई कितना ही उनके मन को टटोले एक-दूसरे की बुराई का एक शब्द नहीं सुन पाता था। परंतु कुछ दिनों से दोनों की एक-दूसरे से बोलचाल बंद है। अब दोनों एक-दूसरे की बुराई करने को आतुर है। घर स्वर्ग से नर्क बन गया है। 

पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। बहुत कुरेदने पर बहू ने बताया कि इस अनबन की शुरुआत तब से हुई जब सास की एक सहेली ने बताया कि तुम्हारी सास मुझसे कह रही थी कि जबसे बहू आई है सुबह के समय उनकी दिनचर्या में परिवर्तन आ गया है। 

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पोते के स्कूल जाने की वजह से अब वह सबेरे न तो घूमने जा पाती हैं न ही मंदिर। खाना-पीना भी बहू की पसंद का बनता है और भी न जाने क्या-क्या। बस यही सब सुनकर उसका मन कसैला हो गया। सोचा सास, सास ही होती है। 

ऐसा ही कुछ सास के साथ भी हुआ बहू उनके बारे में क्या कहती है, कोई उल्टी-सीधी कह गया और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। अब स्थिति यह है कि दोनों को एक-दूसरे के किए में खोट नजर आती है। 

ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ भी हुआ। मेरी ऑफिस की एक सहकर्मी, जो एक साल पहले नियुक्त हुई थी, हमेशा जब भी मिलती मुस्करा कर अभिवादन अवश्य करती। काम की व्यस्तता के बीच भी वह नमस्ते तो कर ही लेती। परन्तु पिछले कुछ दिनों से वह मुझे नजरंदाज करने लगी। 

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पहले मैंने अपने मन को समझाया कि ऐसा कुछ नहीं है, मैं अत्यधिक संवेदनशील हूँ शायद ऐसा मुझे इसीलिए लगा होगा। किन्तु जब यही क्रम 15-20 दिनों तक जारी रहा तो मेरा मन नहीं माना। मैंने उसे बुलाकर पूछा। पहले तो वह आई नहीं, जब आई तो आवेश में थी। वह भरी हुई थी। उसने मुझे जो बताया वह सुनकर मैं दंग रह गई। उसने कहा- एक अन्य सहकर्मी जो कुछ दिनों पहले ही ट्रांसफर होकर आई थीं, उन्होंने उसे बताया कि मैंने उसके बारे में कुछ बुराई की है और वह बातें जो मैंने कही ही नहीं है वह उसने मुझे बताई। मैं भी आवेश में आ गई। 

मैंने उससे कहा-"चलो, अभी आमने-सामने कर देते हैं। मैंने ऐसा कब कहा? जिससे मैं बात कम ही करती हूँ उससे मैं क्यों कुछ कहूँगी!" यह बात उसे भी समझ आ गई। मैंने कुछ नहीं कहा। परन्तु साथ ही उसे यह समझाया कि यदि किसी ने कुछ कहा तो मुझसे पूछती तो सही कि क्या यह सच है। यूँ हम गलतफहमी का शिकार तो नहीं होते। बातचीत बंद करना किसी समस्या का समाधान तो नहीं। 

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ऊपर जो कुछ उदाहरण थे उनमें भी यही हुआ। किसी ने कुछ कह दिया, हमने उसे मान लिया। हमने उस बात की तह तक जाने की कोशिश नहीं की। न ही हमने अपने अंतरंग मित्र से उस बात को कहा जिससे हमने बातचीत बंद की। जिसने भी हमारे रिश्ते में सेंध लगाई, उसने साथ में यह भी अवश्य कहा होगा कि तुम उससे यह बात मत कहना, बेकार में झगड़ा होगा। परंतु यह क्या हुआ? 

झगड़े में कुछ तो साफ होता। यहाँ तो सब कुछ अंदर ही रह गया और बढ़ती गई गलतफहमी की दीवार। दुश्मनों की चाल कामयाब हो गई। वे उनके सगे हो गए और आप दुश्मन! अब जब हमने बातचीत ही बंद कर दी है तो सुलह कैसे हो सकती है? 

कहने का तात्पर्य यही है कि आपके अपनों से कभी भी किसी भी परिस्थिति में बोलना बंद मत कीजिए। क्योंकि जब अबोला लंबा खिंच जाता है, तो रिश्ते रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाते हैं। समय निकल जाता है, हाथ में कुछ नहीं रहता है। सिर्फ रह जाता है दर्द का अहसास। इस दर्द को सहने से तो बेहतर है कि किसी से कोई असहमति या मन में कोई बात होने पर खुलकर बात कर ली जाए ताकि आपके रिश्तों में मिठास बनी रहे।

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वास्तु से जुड़ी हैं घर की खुशियां


आपको लगता है कि आपसे कोई ईर्ष्या करता है। आपके कई दुश्मन हो गए हैं। हमेशा असुरक्षा व भय के माहौल में जी रहे हैं। तो मकान की दक्षिण दिशा में अगर कोई जल का स्थान हो, तो उसे वहां से हटा दें। 

इसके साथ ही एक लाल रंग की मोमबत्ती आग्नेय कोण में तथा एक लाल व पीली मोमबत्ती दक्षिण दिशा में नित्य प्रति जलाना शुरू कर दें।

यदि आपके घर में जवान बेटी है तथा उसकी शादी नहीं हो पा रही है, तो एक उपाय करें। कन्या के पलंग पर पीले रंग की चादर बिछाएं और उस पलंग पर कन्या को सोने के लिए कहें। इसके साथ ही बेडरूम की दीवारों पर हल्का रंग करें। ध्यान रहे कि कन्या का शयन कक्ष वायव्य कोण में स्थित होना चाहिए। 

यदि आपके घर में आपका बेटा या बेटी पढ़ने-लिखने में कमजोर है तो उसे सलाह दें कि वह ईशान कोण की ओर मुख करके अध्ययन करें। पढ़ने के लिए बैठने से पूर्व वह कक्ष में दक्षिण दिशा में एक मोमबत्ती जलाएं, जो लाल रंग की हो। रोजाना स्टडी रूम में ऐसा प्रयोग करने से बच्चों की एकाग्रता बढ़ती है। 

यदि आपके घर में तनाव रहता है तथा आप हर समय किसी न किसी प्रकार की चिंता में घुले रहते हैं तो मानसिक शांति के लिए ड्राइंग रूम में हल्के नीले रंग के सोफासेट का प्रयोग करें। दीवारों पर भी हल्के रंग की शेड करवाएं। फर्क पड़ेगा।

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किस्मत चमकाए, फेंगशुई के उपाय फेंगशुई से संवारें अपना भाग्य



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यदि आपके घर-परिवार में खुशहाली नहीं है तथा आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभुत्व है तो ऐसी दशा में आप चीनी बेम्बू का घर में प्रयोग करें। बेम्बू का वृक्ष आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में वृद्धि लाता है। 

यदि आपका भाग्य जैसे आपसे रूठ गया हो तथा सम्पत्ति व आय बढ़ाने के आपके हर उपाय व्यर्थ हो रहे हों, तो मकान या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार पर चीनी फेंगशुई की पवन घंटियां तथा चीनी सिक्के लगाएं।

फेंगशुई के अनुसार कछुए को घर में रखना आपकी प्रगति व स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ संकेत होता है। 

पानी से भरे एक कटोरे में धातु का बना फेंगशुई कछुआ रखकर इस कटोरे को उत्तर दिशा में रखने से आपके घर में सुख-शांति का वास होता है। 

तीन टांगों वाले मेंढक को भी फेंगशुई में समृद्धि का प्रतीक माना गया है। 

यदि आपको लगता है कि आपकी आय के सारे स्त्रोत बंद हो गए है तो आप तीन रंगों वाले फेंगशुई मेंढक (जिसके मुंह में सिक्के लगे हो) को अपने घर में इस प्रकार रखें कि मेंढक की पूरी दृष्टि आपके घर की ओर हो। ऐसा करने से आपकी भाग्य वृद्धि होंगी तथा आपकी आय बढ़ेगी।

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गणेशजी को गुस्सा क्यों नहीं आता है?


श्री गणेशाय नम: 
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यूं तो छत्तीस करोड़ हिन्दू देवी देवताओं की बहुत बड़ी रेंज है हमारे पास। फिर भी हम हर तरह के काम लेकर सीधे गणेशजी के पास ही जाते हैं। शायद इसलिए कि अन्य भगवानों की तरह उनका कोई प्रोटोकॉल नहीं है। जिसे फॉलो करना पड़े। यही एकमात्र देवता हैं जिनसे हर भक्त अपनत्व महसूस करता है। ऐसा ही कुछ दोस्ताना रिश्ता मेरा भी है, गणेश जी के साथ। इसे सबके साथ साझा करना भी मेरे लिए प्रथमेश की पूजा समान है। - आइए श्रीगणेश करें। 

लगभग डेढ़-दो दशक बाद जब गजानन घर पधारे तब उन्हें इस बात से कोई नाराजी नहीं थी कि हमने उनकी स्थापना इतने लंबे अंतराल के बाद की। उनकी इस फ्लेक्सिबिलिटी की अदा ने मुझे काफी आकृष्ट किया। बचपन से सुनते आए हैं कि जब शिव-पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय को तीनों लोकों की परिक्रमा करने के लिए कहा तो गणेशजी ने फटाफट अपने माता-पिता के चारों ओर परिक्रमा लगा ली। और भाईसाहब तीनों लोकों का चक्कर लगाते रहे। बस तभी से उन्हें ये आशीर्वाद मिला कि हर शुभ कार्य से पहले उन्हें पूजा जाएगा और वे प्रथमेश कहलाएंगे। 

गणेशजी के व्यक्तित्व का सबसे लोकप्रिय तत्व, यही है कि वे लकीर के फकीर नहीं हैं। समय और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेते हैं। इसीलिए वे बुद्धि के देवता हैं। लोकप्रिय होने के लिए मनुष्यों में भी सबसे आवश्यक योग्यता है सरलता और सहजता। इस पैमाने पर गणेशजी सबसे ज्यादा खरे उतरते हैं। पानी की तरह रवानीदार है उनका स्वभाव। उनकी पूजा करने के लिए पारंपरिक, धार्मिक रीति रिवाजों का बहुत ज्ञान होना भी जरूरी नहीं है। इसीलिए धार्मिक रूझान ज्यादा ना होने पर भी लंबोदर भगवान मुझे हमेशा से प्रिय हैं। 

गणपति बप्पा से मेरा प्रथम परिचय बचपन में हुआ था जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सब गणेशजी की आरती के लिए इकट्ठे हुए थे। जैसे ही कानों में जयदेव-जयदेव जयमंगलमूर्ति के ओजपूर्ण स्वर सुनाई दिए मन में उत्साह का संचार होने लगा यों भी सुखकर्ता-दुखहर्ता श्री गणेश से भक्ति और पूजा के माध्यम से नहीं बल्कि संगीत के माध्यम से लगाव पैदा हुआ। वैसे इस लगाव का एक कारण मोदक भी हैं, जो गणेशजी की बदौलत ही हमें आजतक सतत मिलते आ रहे हैं। 

हमें लोकमान्य तिलक को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने गणेशजी की स्थापना और पूजा को सार्वजनिक मंच प्रदान किया। संगीत के माध्यम से गणेशजी की आराधना करने के लिए लता मंगेशकर (गणपति अथर्वशीष) और अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन ( गाइए गणपति जगवंदन) की प्रशंसा भी हमें जरूर करना चाहिए। 

मंगलमूर्ति भगवान को कलाकारों ने भी कई रूपों में चित्रित किया और मूर्तियों में ढाला। इसकी वजह है। गणेशजी का मोहक स्वरूप और लचीला स्वभाव। इन्हें कला और विज्ञान का संरक्षक माना गया है। इसलिए कलाकरों को हर तरह के प्रयोग की छूट भी इन्होंने उदारतापूर्वक दी है। 

यदि कंप्यूटर के माउस के साथ गणेशजी हैं तो गुडहल के फूल में भी इनकी छवि देखी गई है। कुछ लोग मानते हैं कि गणेश जी ब्रम्हचारी हैं मगर प्रचलित मान्यता के अनुसार रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी उनकी पत्नियां हैं। जनश्रुति है कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को लिपिबद्ध करने का अनुरोध श्रेगणेश से ही किया था। खैर इतिहास में गोते लगाने के स्थान पर आज की बात करें। 

प्रबन्धन के बढ़ते महत्व के इस दौर में गणेशजी की प्रासंगिकता बढ़ गई है। इन्हें प्रबंधन का प्रतीक माना गया है। यदि इनके बड़े सिर से कुछ नया और विचारशील करने की प्रेरणा मिलती है तो छोटी आंखें एकाग्रतापूर्ण कार्य करने की प्रतीक हैं। छोटा मुंह इसलिए हैं कि कम बोलें और बड़े कान ज्यादा सुनने के लिए हैं। सबसे महत्वपूर्ण है इनका छोटा चपल वाहन यानि चूहा। जिसे पौराणिक ग्रंथों में तमो गुणों और कामनाओं का सूचक माना गया है (जिन पर श्री गणेश ने विजय पाई इसीलिए इसे उसे चरणों में बैठा बताया गया है)। 

लेकिन प्रबंधन के लिहाज से चूहे को सुनियोजित, बुद्धिमत्तापूर्ण और चपल निर्णयों के प्रतीक स्वरूप देखा जाता है। गणेश जी के छोटे कदम लक्ष्य की ओर धीमे किंतु सधे हुए कदम बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। इस एकदंत चारभुजाधारी देवता के बारे में विभिन्न व्याख्याएं हैं। खैर भुजाएं चार हों या सोलह ये अपने सीमित संसाधनों से भी असीमित परिणाम देने का सामर्थ्य रखते हैं। इसीलिए परीक्षा के दिनों में गणेशजी के दरबार में लंबी कतारें देखी जा सकती हैं।

इतनी सारी योग्यताओं और विशेषताओं से पूर्ण कोई देवता हों तो उनका लोकप्रिय होना लाजमी है। इन्हीं कारणों से गजानन भगवान के भक्त भारत के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में हैं। कंबोडिया हिन्द चीन बर्मा और थाईलैड से लेकर नेपाल, अफगानिस्तान और कई पश्चिमी देशों में भी गणेशजी की पूजा की जाती रही है।

इन्हें ज्ञान और बुद्धि का देवता माना जाता है। इसीलिए इन्हें क्रोध नहीं आता। क्रोध वहीं है जहां अज्ञान है। ऐसे हैं हमारे प्रिय गणपति बप्पा.. और एक हैं इनके पप्पा शिवजी, जिन्हें गुस्सा आ जाए तो अपने तांडव नृत्य से धरती अंबर हिला दें। गणेशजी को पानी के लोटे में डुबोए रखने पर भी वो उफ नहीं करते (मान्यता है कि ऐसा करने से संकट टल जाता है)। उनकी मूर्ति को हर साल विसर्जित कर देने पर भी वे हर बरस हंसते हुए विराजित होने आते हैं। इसी धैर्य और सहनशीलता के कारण वे विघ्नेश्वर और विघ्नहर्ता कहलाते हैं। 

हर तरह की पूजा में गणेशजी की उपस्थिति अपरिहार्य है। अपने नाम की सुपारी रख कर पूजा किए जाने पर भी वो नाराज नहीं होते, बल्कि मदद ही करते हैं। कार्य की शुरुआत गणेशजी का स्मरण एक दूसरे का पर्याय ही हैं। ऐसे हमेशा अपने से लगने वाले श्री गणेश को बारंबार नमन और अगले बरस जल्दी आने का आग्रह।

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भगवान कृष्ण का दिवस है अनंत चर्तुदशी



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गणेश चतुर्थी से गणेशजी का दस दिवसीय उत्सव अनंत चर्तुदशी पर समाप्त होता है। अनंत स्वयं भगवान कृष्ण रूप है। भगवान कृष्ण से युधिष्ठिर पूछते है- श्रीकृष्ण ये अनं‍त कौन है? क्या शेष नाग हैं, क्या तक्षक सर्प है अथवा परमात्मा को कहते है। 

तब श्रीकृष्ण कहते हैं मैं वहीं कृष्ण हूं जो (अनंत रूप मेरा ही है) सूर्यादि ग्रह और यह आत्मा जो कहे जाते हैं। और पल-विपुल-दिन-रात-मास-ऋतु-वर्ष-युग यह सब काल कहे जाते हैं। जो काल कहे जाते है, वहीं अनंत कहा जाता है। क्योंकि ये निरंतर चलता रहता है। 

मैं वहीं कृष्ण हूं जो पृथ्वी का भार उतारने के लिए बार-बार अवतार लेता हूं। आदि, मध्य, अंत कृष्ण, विष्णु, हरि, शिव, वैकुंठ, सूर्य-चंद्र, सर्वव्यापी ईश्वर तथा सृष्टि को नाश करने वाले विश्व रूप महाकाल इत्यादि रूपों को मैंने अर्जुन के ज्ञान के लिए दिखलाया था। अनंत चर्तुदशी पर प्रभु की ये प्रार्थना अत्यंत लाभदायक है। 

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण- 
स्त्वमस्य विश्वस्य परं विधानम् 
वेन्तासि वेधं च परं च धाम 
त्वया तवं विश्वमनंतरूपं। 

अर्थात् आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं। आप इस जगत के आश्रयदाता, जानने योग्य और परम धाम है। हे अनंत रूप आपसे ही यह सब जगत व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है। 

वायुर्यमोदग्निर्वरूण: शशांक: 
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च। 
नमो नमस्तेस्तु सहस्त्रकृत्व: 
पुनश्च भुयोपि नमो नमस्ते।। 

अर्थात् आप वायु,यमराज, अग्नि, वरूण,चंद्रमा, प्रजा के स्वा‍मी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता है। आपके लिए हजारों बार नमस्कार है-नमस्कार है। आपके लिए पुन: बारंबार नमस्कार है। 

हे अनंत सामर्थ्यवाले देव, आपको चारों दिशाओं से नमस्कार है। आपको आगे और पीछे से भी नमस्कार है, क्योंकि अनंत पराक्रमशाली आप, समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं।। अत: आप ही सर्वरूप है। 

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अनंत चतुर्दशी के दिन इस प्रकार प्रभु से प्रार्थना करके देखिए, अनंत देव आपके सारे कार्य संपन्न कर देंगे और प्रसन्न होंगे। जैसे, कौंडिल्य के अपराध को क्षमा कर प्रसन्न हुए थे। 

अनंत चतुर्दशी की कथा : 
सतयुग में एक सुमंत नाम का ब्राह्मण था। उसने अपनी कन्या शीला का विवाह विधि-विधानपूर्वक कौंडिल्य ऋषि से कर दिया। शीला ने अनंत चर्तुदशी पर पूजन कर कौंडिल्य को चौदह गांठ वाला (धागा) अनंत भुजा में बांध दिया, परंतु कौंडिल्य ने उस धागे का अपमान कर उसे आग में जला दिया। परिणामस्वरूप उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ा। 

पूरे ब्रह्मांड में भटकने के बाद भी शरण नहीं मिली। अंत में बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर थोड़ा होश आने पर ह्रदय से अनंत देव को- हे अनंत! कहकर आवाज लगाई। तभी शंख चक्रधारी श्री भगवान ने स्वयं प्रकट होकर आशीर्वाद दिया, ऐसे हैं दयालु प्रभु। 

उस अनंत भगवान के शरण में जाने से सर्वकार्य मनोरथ पूर्ण हो जा‍ते हैं। अनंत चर्तुदशी अपने आपमें भगवान स्वयं कृष्ण का दिवस है। 
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लज्जतदार दाल सलाद


सामग्री :
1 कटोरी साबुत अंकुरित मूंग, 1 कटोरी अंकुरित मोठ, 1/2 कटोरी अंकुरित लाल चना, 1/2 चम्मच सिंका हुआ जीरा, 1 प्याज, 1 टमाटर, 1 ककड़ी, 1 उबला आलू, नमक व चाट मसाला स्वादानुसार।

विधि :
अंकुरित दालों को एक बर्तन में डालकर 1 गिलास पानी और नमक के साथ 5 मिनट गर्म करें। टमाटर, प्याज व ककड़ी को बारीक काट लें। फिर इन सबको दाल में डालकर मिक्स करें।

आलू को मसलकर डाल दें। अब चाट मसाला, जीरा और 1/2 चम्मच नींबू का रस मिलाएं। सबको अच्छी तरह मिक्स करें। आप इसमें हरी चटनी या सॉस भी मिला सकते हैं।
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श्रीमद्‍भगवद्‍गीत


कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ।

स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।

गीताजी का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करें--

अथ ध्यानम्
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्‍गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्‍गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।
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कैसे जानें साप्ताहिक राशिफल विविध भाव में चंद्रमा का भ्रमण


आप हर सप्ताह अखबार या न्यूज चैनलों में अपनी राशि का भविष्य-फल देखते-पढ़ते हैं। आइए जानते हैं कि सप्ताह का राशिफल कैसे निकाला जाता है? सप्ताह का फलादेश मुख्यत: चंद्रमा के भ्रमण पर निर्भर रहता है। चंद्रमा सप्ताह भर में लग्न या राशि से जिस भाव में भ्रमण करता है, उस तरह से दैनिक/साप्ताहिक राशिफल निर्धारित किया जाता है।

चंद्रमा का विविध भाव में गोचर का फल :

1. प्रथम भाव : भाग्योदय, उपहार प्राप्ति, धन लाभ, उत्तम भोजन, कार्य की सफलता।
2. द्वितीय भाव : मन में अस्थिरता, असंतोष, नेत्र विकार, व्यर्थ भागदौड़, अपव्यय।
3. तृतीय भाव : पराक्रम वृद्धि, धन लाभ, प्रसन्नता, सम्मान, उन्नति के अवसर मिलना
4. चतुर्थ भाव : दिनचर्या अस्तव्यस्त होना, व्यर्थ की भागदौड़ परिवार में विवाद, अनिद्रा
5. पंचम भाव : शोक, संतान से कष्ट, वायु विकार, धन हानि
6. षष्ठ भाव : धन लाभ, शत्रुओं पर विजय, पारिवारिक सुख-शांति, स्वास्थ्‍य लाभ
7. सप्तम भाव : धन लाभ, यश, स्त्री व वाहन सुख, समस्या समाधान
8. अष्टम भाव : कष्ट, कार्य में बाधाएँ, धन ह‍ानि, अस्वस्थता
9. नवम भाव : अपयश, राज्य भय, व्यर्थ प्रवास, व्यापार में असफलता
10. दशम भाव : कार्य सिद्धि, सुख व लाभ की प्राप्ति, निरोगी काया
11. एकादश भाव : प्रसन्नता, धन लाभ, उत्तम भोजन व द्रव्य की प्राप्ति, परिजनों का सुख
12. द्वादश भाव : धन हानि, रोग, अपव्यय, दुर्घटना, वाद-विवाद


ND


यदि चंद्रमा कुंडली में बलशाली हो तो उसके 2, 5, 8, 9, 12 में गोचर होने पर भी अशुभता कम होती है। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा बली माना जाता है, कृष्ण पक्ष में भी नवमी तिथि तक चंद्रमा शुभ होता है। क्षीण या अस्त चंद्रमा दुख कारक माना जाता है।

कैसे जानें ‍राशिफल : चंद्रमा से प्राय: दैनिक कार्यों की शुभता देखी जाती है। माना कि आपकी राशि मेष है और सप्ताह भर में चंद्रमा कर्क, सिंह व कन्या राशि में भ्रमण कर रहा है, तो यह आपकी राशि से क्रमश: चौथे, पाँचवें व छठे भाव में भ्रमण करेगा। दिए गए भाव फलों के अनुसार फल की गणना करें व ‍इच्छित कार्य सफल होगा या नहीं, निर्धारित करें।

विशेष : यदि उक्त सप्ताह में कोई अन्य ग्रह अपनी राशि बदल रहा है तो उसका तात्कालिक प्रभाव भी राशिफल में गिना जाएगा।
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