क्षमा कषायों पर फहराई गई विजय पताका है। जहाँ क्षमा होती है वहाँ क्रोध, मान, माया, लोभ सभी कषाय नष्ट हो जाते हैं। यही वजह है कि दसलक्षण धर्म की व्याख्या उत्तम क्षमा से शुरू होती है और क्षमावाणी पर समाप्त होती है।
ऐसा लगता है जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो जिसमें पहला मनका जहाँ से शुरू होता है अंतिम मनका वहीं आकर समाप्त हो जाता है। पहले और अंतिम मनके के मिलन में तीन मनकों का रास्ता मिलता है जिसमें भगवान महावीर का मुक्ति सूत्र छिपा है।
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता। क्षमा को क्षमा के अंदाज में जियो। अक्सर आदमी क्षमा को भी क्रोध के अंदाज में जीता है। सचाई तो यह है कि हमेशा क्रोध ने क्षमा के आगे घुटने टेके हैं।
क्षमावाणी के पावन व पुनीत अवसर पर हम स्वयं के द्वारा जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा माँगें, शत्रुता को भूलकर क्षमा भाव धारण करें। सुखी रहें सब जीव जगत के इसी भावना के साथ उत्तम क्षमा।
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