My Followers

Sunday, September 11, 2011

आत्मा का विकास ही सच्चा धर्म... सभी बंधनों से मुक्त हैं ईश्वर Development of soul is the true religion... God is free from all bondages.


हम सबके मन में कभी न कभी यह प्रश्न आता होगा कि वास्तव में धर्म क्या है? हमारे जीवन में धर्म धारण करने का क्या उपाय है? क्या किसी मन में दीक्षित हो जाना धार्मिक बनने की पहचान है? आमतौर पर धर्म को मत-मतांतरों से जोड़ दिया गया है।

असल में धर्म बाहर की वस्तु नहीं यह भीतर का विकास है, उसे समाज में नहीं, व्यक्ति के अंतराल में ढूंढ़ा जाना चाहिए। धर्म व्यक्ति और व्यष्टि के बीच में तादाम्य की फलश्रुति है, जब कि व्यक्ति और समाज के मध्य का संबंध संप्रदाय कहलाता है। धर्म और संप्रदायवाद में उतना ही अंतर है जितना जीवन और मृत्यु। जहां धर्म होगा, वहां सर्वत्र सुगंधि बिखरती रहेगी, जहां संप्रदायवाद होगा, वहां सड़न और दुर्गंध होगी। करुणा उदारता, सेवा सहकारिता, यह तो जीवन की सहचरी और चैतन्यता के लक्षण हैं।

धर्म और संप्रदाय में यदि कोई अंतर है तो उसे उतना ही विशाल होना चाहिए जितना कि आकाश और पाताल क्योंकि धर्म हमें ऊंचाइयों के प्रति श्रद्धावान बनाता है और इस बात की प्रेरणा देता है कि हमारा अंतराल अहंकारपूर्ण नहीं अहंशून्य होना चाहिए। जहां अहमन्यता होगी, विवाद और विग्रह वहीं पैदा होंगे। जहां सरलता होगी वहां सात्विकता पनपेगी। सरल और सात्विक होना दैवी विभूतियां हैं। जो इन्हें जितने अंशों में धारण करता है, उनके बारे में यह कहा जा सकता है कि वे उस अनुपात में धार्मिक हैं।

इसलिए यह कहना अत्युक्तिपूर्ण न होगा कि धर्म हमें देवत्व की ओर ले चलता है, जबकि संप्रदाय अधोगामी भी बनाता है। कट्टरवाद, उग्रवाद यह सभी संप्रदायवाद की देन है। सांप्रादायिक होने का मतलब है कूपमंडूक होना, केवल अपने वर्ग एवं समूह की ही चिंता करना। इसके अतिरिक्त धर्म अधिक उदार बनाता तथा आत्मविस्तार का उपदेश देता है। 'आत्मवत सर्वभुतेषु एवं वसुधैव कुटुम्कबम' यह इसी की शिक्षा है।


संप्रदाय असहिष्णु होता है। वह उन्माद और आतंक फैलाता है। जाति, भाषा, लिंग, क्षेत्र आदि के आधार पर विभेद करना यह संप्रदाय का काम है। धर्म तो ईश्वर की तरह समदष्टा है वह कहता है कि हम सब को परमात्मा की रक्षा करनी चाहिए। हम इसी ऊहापोह में फंसे रहते हैं कि कहीं कोई शूद्र मंदिर के ईश विग्रह को अपवित्र न कर दे, किसी तनखैये को गुरुद्वारे में क्या काम, कोई काफिर मस्जिद में न घुसे।

हमारे मनीषियों का कहना है, ' धर्म एवं हतो हन्ति रक्षति रक्षतः' अर्थात्‌ मरा हुआ धर्म मार डालता है, रक्षा किया हुआ धर्म रक्षा करता है। आज की सामाजिक परिस्थिति के इस सत्य के प्रमाण रूप में देखा जा सकता है। धर्म को खतरा अधर्म से नहीं, नकली धर्म से होता है। अधर्म तो प्रत्यक्ष है, इसमें दुराव- छुपाव जैसी कोई बात तो होती नहीं, खतरनाक वे है जो धर्म की आड़ लेकर काम करते हैं, क्योंकि वहां असली आवरण में नकली व्यक्ति होता है।

हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की मान्यता है देवताओं की संख्या तैंतीस कोटि बताई जाती है। देवताओं की इतनी बड़ी संख्या एक सत्य शोधक को बड़ी उलझन में डाल देती है। इन देवताओं में अनेक की तो ईश्वर से समता मानी जाने लगी है इस प्रकार 'बहुईश्वरवाद' उपज खड़ा होता है।

संसार के प्रायः सभी प्रमुख धर्म एक ईश्वरवाद को मानते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी अनेक अभिवचन एक ईश्वर होने के समर्थन में भरे पड़े हैं। फिर यह अनेक ईश्वर कैसे? ईश्वर की ईश्वरता में साझेदारी का होना कुछ बुद्धिसंगत प्रतीत नहीं होता। अनेक देवताओं का अपनी-अपनी मर्जी से मनुष्यों पर शासन करना, शाप-वरदान देना आदि ईश्वर जगत की अराजकता है।

एक शास्त्र वचन है-
उत्तमो ब्रह्म, सद्भावो ध्यानभावस्तु मध्यमः
सतुर्तिजपोऽधमो भावो बहिः पूजाऽधमाधमा।

अर्थात्‌ बाह्यपूजा या मूर्ति पूजा सब से नीचे की अवस्था है। आगे बढ़ने, ऊंचा उठने का प्रयास करते समय मानसिक प्रार्थना साधना की दूसरी अवस्था है। सबसे उच्च अवस्था वह है जब परमेश्वर का साक्षात्कार हो जाए।

वेद भी कहते हैं न 'तस्य प्रतिमा अस्ति' अर्थात्‌ ईश्वर तेरी कोई प्रतिमा नहीं है। अध्यात्म विज्ञान में महान वैज्ञानिक महर्षि पतंजलि ईश्वर को बड़ा स्पष्ट रीति से परिभाषित करते हैं। यह परिभाषा साधनों के लिए आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है, क्योंकि यह ऐसा शब्द है, ऐसा सत्य है जिसके बारे में ज्यादातर लोग भ्रमित हैं।

शास्त्र पुराण धर्म, महजब सबने मिलकर ईश्वर की अनेक धारणाएं गढ़ी हैं कोई तो उसे सातवें आसमान में खोजता है तो कोई मंदिरों पूजाग्रहों में योगेश्वर पतंजलि ने सभी तरह का सत्यनिराकरण किया है। वे कहते हैं कि पहले तो ईश्वर को किसी व्यक्तित्व में न बांधो। वह सभी बंधनों से मुक्त हैं।
0 0

No comments:

Post a Comment

Thanks to visit this blog, if you like than join us to get in touch continue. Thank You

Feetured Post

मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा - Defense of humanity, sociality and nationality

मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा - Defense of humanity, sociality and nationality 1. **मानवता, सामाजिकता और राष्ट्रीयता की रक्षा मे...