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Wednesday, September 7, 2011

ताकि शब्द दर्द न बनें !


आपा खोकर कही गई बातें अक्सर दिल में गहरा घाव बना जाती हैं। ये घाव जब अपनों के दिए हुए हों, तब तो पीड़ा और भी सालती है। खासकर जब कोई दिल से आपके लिए कुछ करता है और बदले में आप उसे कुछ भी उलटा-सीधा कह जाते हैं। कभी सालों-साल वो शब्द मन को सालते रहते हैं तो कभी ऐसे शब्द दिलों में दूरियाँ आने का कारण भी बन जाते हैं। 

सोच-समझकर बोलना केवल दूसरों से आपके रिश्तों को प्रगाढ़ ही नहीं करता बल्कि उनके मन में आपके लिए सम्मान भी पैदा करता है। इतना ही नहीं इससे आपको एक और फायदा यह होता है कि आप किसी का दिल दुखाने से बच जाते हैं। गुस्से या अहंकारवश कहे गए शब्द भले ही उस समय आपके लिए मायने न रखते हों, लेकिन जब अकेले में आप उन पर मनन करें तो पाएँगे कि ऐसे शब्द आपने कैसे इस्तेमाल कर लिए? या फिर अगर ऐसे शब्द आपके साथ प्रयोग में लाए जाते तो? इसलिए किसी भी स्थिति में तौलकर बोलना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी होती है। जो लोग इस बात को समझते हैं वे सभी की प्रशंसा के पात्र बनते हैं। 

शादी के बाद पहली बार अरुणा ने अपने पति विनय को एक स्वेटर गिफ्ट किया। उसकी पैकिंग भी खुद अरुणा ने ही की, जिसे देखकर विनय काफी प्रभावित हुआ। उसने तुरंत अरुणा की रचनात्मकता की तारीफ कर डाली। अभी इस तारीफ से अरुणा के होठों पर मुस्कान आई ही थी कि विनय ने गिफ्ट पैक खोलकर उसमें रखा शर्ट देखा। 

आव देखा न ताव, उसने गुस्से से अरुणा से कहा 'तुम जानती ही हो कि मैं ब्रांडेड कपड़े पहनता हूँ। यह सस्ती शर्ट कहाँ से उठाकर ले आई हो। तुम्हें कपड़े खरीदने का सेंस नहीं है तो मुझसे पूछा होता।' पहली बार बहुत भावनाओं के साथ दिया गया अरुणा का वह गिफ्ट बेरहमी से ठुकरा दिया गया। यह बात अरुणा आज शादी के दो साल बाद भी नहीं भूलती। 

शब्दों के बाण किसी को भी भीतर तक लहूलुहान कर देते हैं। शब्दों की ताकत से हममें से हर कोई वाकिफ है। शब्द हमारे संबंधों को निर्धारित करते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही यह कथा प्रचलित है कि अभिमन्यु ने अपने पिता अर्जुन से गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख ली थी। आज चिकित्सक भी इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि गर्भ में भी बच्चा शब्दों के प्रभाव से अछूता नहीं रहता। 

बोले गए शब्दों के घाव तलवार से भी गंभीर होते हैं। जीवन की जटिल राहों में शब्द धूप-छाँव दोनों का काम करते हैं। इसलिए सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल करके हम अपनी ही नहीं, दूसरों की भी राहों को आसान बना सकते हैं। अक्सर लोग अपनी स्पष्टता और साफगोई को अपने व्यक्तित्व की एक बड़ी खासियत मानते हैं। 

यह अच्छी बात है। लेकिन सीधे व सपाट शब्दों में अगर किसी को उसकी गलती बताई जाए तो वह गलती करने वाले आदमी को बदला लेने के लिए उकसाती है। ऐसे में ऐसी परिस्थितियों से निपटने का एक तरीका है कि उसे उसकी कुछ खासियतों के साथ गलती को इस ढंग से बताएँ कि उसे वह गलती अपमान की तरह न लगे। तो बस मौके को समझें और उस हिसाब से शब्दों का प्रयोग करें।
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