वराह कल्प का पहला मानव 'स्वायंभुव' :भारतीय कुल का इतिहास भाग-2

अभगच्छत राजेन्द्र देविकां विश्रुताम्।
प्रसूर्तित्र विप्राणां श्रूयते भरतर्षभ॥- महाभारत

अर्थात्- सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई।

स्वायंभुव 'मनु' को आदि भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं।

संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री थी शतरूपा। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाए।

मानव उसे कहते हैं जिसमें जड़ और प्राण से कहीं ज्यादा सक्रिय है- मन। मनुष्य में मन की ताकत है, विचार करने की ताकत है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। चूँकि यह सभी 'मनु' की संतानें हैं इसीलिए मनुष्‍य को मानव भी कहा जाता है।

हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल क्रमश: 14 मनु हुए। महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख मिलता है। श्वेतवराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। इन चौदह मनुओं को ही जैन धर्म में कुलकर कहा गया है।

चौदह मनुओं के नाम: 1. स्वायम्भु 2. स्वरोचिष 3. औत्तमी 4. तामस मनु 5. रैवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत 8. सावर्णि 9. दक्ष सावर्णि 10. ब्रह्म सावर्णि 11. धर्म सावर्णि 12. रुद्र सावर्णि 13. रौच्य या देव सावर्णि 14. भौत या इन्द्र सावर्णि।

स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।

दो पुत्र- प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिससे उनको दस पुत्र हुए थे।

महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने 'मनु स्मृति' की रचना की थी जो आज मूल रूप में नहीं मिलती। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ रंग होता था और आज जाति।

प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही।

स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य, और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।
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