हम प्यार क्यों करते हैं? Why do we love?

‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि हम प्यार क्यों करते हैं? इतना जरुर जानते हैं कि कोई रिश्ता ऐसा है जो हमें दिख नहीं पाता और हम प्यार करते हैं। 

कई लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ हम अलग-अलग तरह से प्रेम करते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, आदि प्यार के बंधन में जकड़े हैं और हम उनके। यह प्यार ही तो है जो हमें अपनों से जोड़े रहता है।

प्यार एक अनजाना, न दिखने वाला एहसास है जो हमें बांधे रखता है।’’ इतना कहकर बूढ़ी काकी चुप हो गयी।

मैंने कहा,‘वाकई यह अजीब होता है, कि हम प्यार करते हैं और फिर उसका एहसास करते हैं। खुशी मिलती है आंतरिक तौर से। कई बार दर्द का भी एहसास होता है। खुशी और गम दोनों से ही प्रेम आगे बढ़ता है.’

’मैंने किसी से प्यार नहीं किया। मगर मुझे ऐसा कई बार लगा कि मैं प्यार करने लगा हूं। जब सब बिखर गया, तब मुझे एहसास हुआ कि अरे! वह तो प्रेम था। मैं फिर क्यों अनजान रहा? मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि एहसास बहुत अच्छा था। एक अजीब तरह का एहसास। मुझे इसका अध्ययन करने का समय ही नहीं मिला काकी। मैं अपने कामों में ही उलझा रहा। मैं प्यार करना चाहता था, मगर कर न सका। जब सोची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन मैंने खुद को समझा लिया और मना भी लिया कि प्यार उन से किया जा सकता है जो हमेशा आपके पास रहें। मेरा परिवार है, कुछ स्पेशल लोग हैं जिन्हें मैं चाहता हूं। पर काकी मुझे नहीं लगता कि हमें कहीं दूसरी जगह प्यार तलाशने की आवश्यकता है क्योंकि इतना कुछ तो हमारे पास है।’

इसपर काकी बोली,‘तुम ठीक कहते हो। मगर बेटा प्यार का रहस्य बड़ा ही गहरा है। इसे शायद भगवान भी समझकर और समझने की कोशिश करे। यह तो कहीं भी, किसी को भी, किसे से भी हो सकता है। हां, हमारा परिवार हमें चाहता है, हम उन्हें और कुछ अहम लोग भी हमें चाहते हैं। इस तरह हम एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। भाव बहते रहते हैं, हम प्यार करते रहते हैं।’

‘तुम्हें पता है हम प्यार जाने-अनजाने में भी कर लेते हैं। वह प्यार कई बार इतना गहरा हो जाता है कि हम समझ नहीं पाते कि अब क्या करें? पशोपेश आड़े आता है और इंसान को बिखरने पर मजबूर भी कर देता है। तब अपने ही होते हैं हमें संभालने के लिए। यह विषय इतना व्यापक है कि मैं खुद उलझन में हूं कि कहां से शुरु करुं। खैर, तुमने कभी किसी अनजाने से प्यार किया हो तो इसका मतलब शायद समझ जाओ।’

मैंने कहा,‘मुझे नहीं लगता कि मैं कभी प्रेम-पाश में पड़ा हूं, मगर ऐसा कई बार लगता भी है। अधिकतर बार हम प्रेम में तब पड़ जाते हैं जैसा मैंने सुना है, जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमें दूसरों से अलग लगता है। मुझे ऐसे कई लोग मिले। मुझे नहीं लगता कि मैंने उनसे प्रेम किया, पर हां, इतना जरुर हुआ कि मैं उनसे हद से अधिक लगाव कर बैठा था। आजतक उनसे दूरी का दर्द मुझे सालता है। इसे प्रेम कहा जाये या कुछ ओर, मैं नहीं जानता।’

‘आकर्षण हुआ जरुर था, लेकिन वह अधिक समय तक नहीं रहा। बाद में शायद मैं उतना घुलमिल नहीं सका, या मैं घबरा गया।’

काकी ने मुझे गौर से देखा, फिर बोली,‘ओह! तो तुमने भी प्यार किया है। शायद वह प्यार की तरह था या उसे तुम सच में प्रेम कह सकते हो। आकर्षण हुआ और तुमने उसे सबकुछ मान लिया। ऐसा होता है, क्योंकि शुरुआत अक्सर ऐसे ही होती है। हृदय में उथलपुथल होती है और इंसान में कशमकश। कई बार एक झलक में बहुत कुछ हो जाता है, कई बार वर्षों लग जाते हैं। वैसे प्रेम का भाव काफी मजबूत होता है, यदि उसे ढंग से निभाया जाये।’

’मैं खुद से जूझ रही हूं लेकिन खुद से प्रेम भी कर रही हूं। जीवन से भी तो हम प्रेम कर सकते हैं। बुढ़ापे से भी प्रेम किया जा सकता है। बात सिर्फ नजरिये की है। कोई किसी से भी प्यार कर सकता है। प्यार का मतलब भाव से है, जब भाव से भाव का मिलन होता है तो एक और भाव उत्पन्न होता है। वह है प्यार का भाव जिसका अदृश्य होना उसकी खासियत है। वैसे भाव दिखते ही नहीं, महसूस किये जाते हैं।’
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इंसान और भगवान

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इंसान झंझावातों से बचना चाहता है। पर वह ऐसा कर नहीं पाता क्योंकि वह इंसान है, भगवान नहीं। भगवान को हम पर दया नहीं आती या हमारा उसपर से भरोसा उठ गया है। खैर.......जो भी तो मैं उसे भूलना नहीं चाहता। मेरा भरोसा कम नहीं हो सकता। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मेरा उससे नाता है। वैसे हम सबका उससे जुड़ाव है। जब कोई साथ नहीं होता, तब वह होता है। हर पल उसकी हमपर निगाह रहती है। वह हमारा कितना ख्याल रखता है। हम हैं कि उसका नाम लेने से बचने की कोशिश करते हैं। पर वह बुरा नहीं मानता। कितना भला है वह, बिल्कुल उसे बुरा नहीं लगता, चाहें कोई उसके बारे में किसी तरह की भी सोच क्यों न रखता हो। 

मैं सुबह-शाम भगवान को याद करता हूं। मैं उससे सबकी शांति की दुआ मांगता हूं। मैं अपने परिवार, साथियों और विरोधियों के लिए भी सब ठीक होने की ईश्वर से फरमाईश करता हूं। अपने लिए कहता हूं कि मैं जल्द अपने परिवार, बच्चों को देख सकूं। ईश्वर मुझे शक्ति प्रदान करे कि मैं हालातों के हाथों मजबूर होने के बजाय उनसे कड़ा मुकाबला करुं बिना हताश हुए।

मांगने को हम बहुत भगवान से मांग सकते हैं। उसके दर पर देर हैं, अंधेर नहीं। यह हम अच्छी तरह जानते हैं। उसकी चौखट हर जगह है। वहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। वह किसी भी समय अपनी झोली से हमारी गोद भर सकता है। सच्चे अर्थों में वह महान है। बिना उसकी मर्जी के एक पत्ता तक हिलता नहीं- यह भी हम कहते हैं। उसकी ताकत से इंसान अंजान नहीं है, पर वह अपनी शक्ति का बेमतलब परिचय देता रहता है। यहीं से वह भगवान की नजरों में बहुत छोटा सा बन जाता है।
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Love Story


Now that I have told you two love stories, I’m going to move on to something much greater than anything you have heard of before.  Hold your elephants, this story is going to strike you straight in the heart with my love arrows! The stirring tale I will tell you is about Radha Krishna.  The proper way to say it is Radha and Krishna but they are just so darn in love with each other that both their names have combined into one; now isn’t that just crazy?!
         I’m going to open my book and start from the beginning. As you SHOULD know, Krishna is the eighth incarnation of Vishnu and is the Supreme power behind all the gods.  You would think that a god like Krishna does not have time for love- well, you’re wrong.  He had thousands of wives but his heart was Radha.

         “Whoa, there Kamadeva! If Radha and Krishna are in love with each other, why is Krishna bringing any lady he can find and marrying her?? That is not acceptable!” one Apsarasa hastily points out.

         Oh shush! Krishna only married them to save their lives, but that’s a different story.  Actually, even Radha was married when she fell in love with Krishna.

         “This story is getting promiscuous, I like it!” another Apsarasa said jokingly.

         You girls will not stop with the jokes! Radha Krishna did have a secret connection going on but I approved of it, and that is all that matters. Now back to my story, Radha and Krishna were one soul; they were soul mates.  However, just like any other love tale, there has to be some juicy conflict! When Krishna was a wee little boy, he would go by the lake, in Gokul, and start playing the flute for the grazing cows. He continued to do this everyday until he became the best flute player in all of Gokul and in the whole world! When Krishna played the flute, everyone and everything was taken into a trance that was absolutely pure and beautiful.  Even the Gopis, or the cowgirls, would stop what they were doing, find Krishna, and start dancing around him in his love.

         “He is absolutely gorgeous when he plays the flute! I cannot keep my eyes or ears off him.  I remember because I dressed up as a Gopi and danced with him, too. I want him to be mine,” an Apsarasa said as she recollected the memories.


         You silly girl! Thousands of gopis would run up to Krishna, while playing the flute, and would try to woo him.  Of course, he was the best-looking man in the world.  He had monsoon-blue skin, almond-shaped eyes, lotus-pink lips, curly black hair, a chiseled body, and a few peacock feathers in his hair to tie up the look.  Krishna was a very naughty boy.  He would flirt back with the Gopis and fulfill their desires.  However, one Gopi, Radha had captivated him.  The whole universe yearned for Krishna but he yearned for Radha.  She was more gorgeous than him, she had the purest heart, and the way she danced when he played the flute made it seem like he was back in Heaven.  You should have seen the love in their eyes for each other, just take a look here!

         The problem was that Radha was married.  The worst barrier that could have risen! She tried to submerge any feelings for Krishna and love her husband but it was no use.  Eventually, she accepted her devotion to Krishna.  Thanks to me and my love potions, she knew that her love for Krishna would not burn out.  She thought about Krishna every second of her life. However, Krishna was a King and had duties to fulfill.  He never married Radha and was not able to meet her after he left Gokul and became King.

         “WHAT? They were not together? They did not get married? They never saw each other again? This is no love story! This is a tragedy!” an Apsarasa yelled.

         You don’t understand.  Love isn’t about being married or being with someone. Love is being connected from the soul.  That’s exactly what

Radha and Krishna had.  They thought about each other every moment of their lives that they became one being in two bodies.  Because Radha’s love was so pure, she achieved God Status! Whenever you hear the flute play or see a dance, Radha and Krishna are there invisibly enjoying themselves, too.  They are in Heaven together now as one entity.  You cannot say Krishna without saying Radha, and you cannot say Radha without thinking of Krishna.  That is how strong their love is.  Any picture you see of Krishna, it is not complete without Radha.  Their love is an undying flame that will continue to burn. Just so beautiful!
Author’s Note: I decided to do the Radha-Krishna love story due to its unconventional aspect.  Their story is purely about love.  They did not get married and they were not with each other at every moment of their lives.  Even though physically they were not connected, mentally they were one.  I think their love story is a refreshing change from the conventional Rama-Sita, Savitri-Satyavan stories.  While growing up, I always heard stories about Radha Krishna and heard a lot of musical numbers about their love.  This is the reason why I thought it would be a good love story.  I have not read anything in our assigned readings about Radha-Krishna so I had to do some outside research on the Internet. I found many different versions of the story, but I found one that was along the same lines as what I heard while growing up.  The typical idea is that Radha is Krishna’s biggest devotee and Radha is Krishna’s energy.  In other words, you cannot have one without the other.  This deeper, more heart felt story should have a different kind of impact to the reader.  I made sure to take note of how the Apsarasas react to all the unlikely events in the love story that the readers might be thinking about as well.
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यात्रा unexpected trip

आवाज़ तन्द्रा और कमजोरी किसी कहानी कविता से नहीं पैदा हुईं थीं उनकी,
उनका न संग पता था न थिर-रूप, पता-ठिकाना था भी और नहीं भी था सरे आम में, 
उल्काएं थीं या थिरकी मुद्राएं शायद परस्पर अनुरोध में या संग्राम में.

जिसके पैर भी न देखे थे, आँखें पीछे ही पीछे लगी रहीं उनके, छोड़ कर मुंह देखना था ज्ञान नहीं था, 
अंधा न था जो विश्वास था, उपहास की उक्तिओं में संदेशा,  अंदेशा मुखकी रगों में पिपिरही थी अनमनी, 
वैसा संगीत था जिसमें नींद थी जागने के बावजूद, कभी-कभी संतुष्ट सोते पुष्ट होते अध्याहास महाधनी,
जामुन के रंग की यात्राएं थी शायद मन-घनी अधबनी. 

जहां कपडे लत्ते साबुन मठरी, कंघी और संदूक और बंधे थे अधमुंदी नींद में,
तेल पानी था या कूचियाँ थीं गठरी में या नहीं / याद नहीं,
क्या फांकते गऐ यह भी हांकते गऐ दिन किसे निशा सांय,
कौन झाँक गया, बुझा चूना, कत्था, तमाखू, उल्टे हाथ ही रखा था बाएँ / दाएँ 
सीधे आगे निकला था नाक सी सीध सा रस्ता, 
मेढ़े से टेढ़ा तेज देसी पत्ता बिदेसी ठाठ बाट अलबत्ता, चहकता रोक सके तो रोक

भाग की झोंक में एक से ज़्यादा एक मौके, नसीबन कुछ एक धोके, 
ऊपर की माया की शीतल छाया और छाया की तपती नोक, 

शौक और धुंए के लंबे कैप्सूल थे, काले फेफड़े थे जैसे रेत में ईंधन, 
धुकधुक की ड्योढ़ी में अंतराल था, ठोड़ी में दाग, टूट में घुटने, नस में वसा रसायन, 
खून में बढ़ती चीनी, कविताओं में दुःख वातायन.

जब दूर (या पास?) बर्फ तह-दबे दबाए-पगे बाण ले आग-धूल निकलते थे उत्तर उत्तरायण, 
उपरस्थ अस्त होते थे व्यस्त हवाईयान बे राग-मूल आयन-पलायन, 
तब भ्रम में शान्ति, शान्ति और दया तेल थे हड्डी की रीढ़ में, 
सोख्ते थे एकालाप बंबई, दिल्ली, दुबई, कलकत्ते वगैरह की भीड़ में, 
समानार्थी थे सन्दर्भ में आखेट, आतंक, दवा, दहन. भोजन, शोषण शमन इत्यादि योजन

एकत्रित थे सभ्य सुसंस्कृत व्यसन / सुशिक्षित, 
तच्छक के इन्तज़ार थे कथा श्रोता होते थे सर्वधाम परीच्छित,
जिनकी परिच्छाओं में पर्चियां थीं, गुपचुप तैरती कदमताल में पर्चियां, 
कदमताल की किस्मत थीं जिनकी पारदंश पारकाल, 

परादेश भरे खाली कैनवास थे बर्फ और धूप के सीमाबद्ध बयान में थे आशा और आस्था सखेद, 
झक सफ़ेद थी उम्मीद यों कि कहते हैं ऐसा सब रंग मिल बनाते हैं जब इन्द्रधनुष लोपता है शून्य में, 
कोई यहीं खोता है जब बारिश होती है रोती बाढ़ में बहता है सब नया आने के लिए जिस दिन, 
पुराना गुज़रता है ठक ठकाता जागते रहो ख्वाब है दूर हरी घास का मैदान पास बेफसल,
बड़ी सारी लाल चींटियाँ हैं अंतस्, काटती हैं लाल होता हैं, यहां बाँबियाँ हैं बाँबियों में 

क्यारियों के सामर्थ्य पर, चिंगारियों पर, गीले-सीले शिकवे छाते हैं मानसून के बादल और समय का संकोच,
कोंचती किताबें यहीं बनती हैं हादसों और सब्जबागों के साथ बंट खप गए जंगल पहाड़ सपनों और आशंकाओं में,
संभावनाओं के दिए तले यही उगते हैं मदार, बबूल / रेत में
बादशाह बचे जाते हैं बच्चों के पढ़ने और चारण और कठपुतलियों के खेल के लिए सर्वांग प्रफुल्ल.

घेरे चाक चौबंद कभी तोड़ कर बढते हैं कभी घोर में घेरते हैं अकथित अमूल्य, 
अतुल्य निशाचरों के एकांत की उपासनाएं हैं जहां जिन्हें पहचानते नहीं थे कुछ जानने लगे हैं, 
उनके एकांत में बाम हैं, पीठ में धप्पियाँ हैं, बिसरे उमस की हवा बिखरे हैं भूले पर चलते हैं चलाचल,
एक लंबी ऊंघी मशीन हैं भूरे कबाड़ी कागज़ किताबें, लंगड़, लट्ठे-पट्ठे निगलती, निकालती/ दखल
आत्मीय एकांत, बुलबुले खुल बंद खुले, वही सब अन्तोपरांत 

सीमान्त दीप्त दीमकों का रचा प्रिय भूगोल- दीवालों के इतिहास में धूर मात्रा,
ऐसे अनायास की यात्रा में अनेक में एक में अनेक की यात्रा है एकी यात्रा.
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इतने दिनों के बाद रात ...

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बात सपनों की  ये  बारात,  रात  जग अफ़सरी  जगमगाई  है
कुछ  हैं  ख़्वाबों  से  बदर,  उधर  जल  जलपरी  नींद  आई  है

जीव की  जान  गड़ी हूक,   मूक  में  गुमशुदा  ख़्वाबों की भूख
जबर  ये  भूख  है  शाइस्ता,  आहिस्ता   ये  हूक  भी  सौदाई है 

ये थके हाथ उफ़ थके पैर,  गैर  के  द्वार  थके जज़्बात की सैर 
थकी सिलवट है खुली आँख,   झाँक  कहती  वो  सुबह छाई है 

यूं कैसे मान लूं बयानात,  हालात कि ढल चली  है  महल रात
फकत क़ानून के तहत, तखत बताए  किस पाए पे सुनवाई है 

देख ली  नाम  से  निकली,  वली  बड़ों  की  यूं नीयत छिछली
ये  ताकत है ता क़यामत,  नियामत है कमज़ोर में अच्छाई है 

कौन  अच्छा है  क्या  बुरा,  चुरा  सुकूं  अगर वो चारागर चरा
ये हो न हो  नहीं खबर,  गर जो  खुद से जीत लें  लड़ी लड़ाई है 

जिन्हें इस इल्म का इरफ़ान, फ़रमान पे जिनके मुरीद कुर्बान 
क्या  उन्हें  इल्म है  गाफ़िल, हासिल  ये जो इल्म में रुस्वाई है 

कभी  पहले  भी  थे  यहाँ  जवां, जुबां के दायरे हसरत के मकां
वो   भर तारीख  में  नहीं,  यहीं  महफ़िल  में आलमे तन्हाई है

भूल जा  भूलते जाना,  माना सर न  सहारा  है  भरम  ज़माना
रेत शहतीर में है  चाह है गुम,  तुम-हम के  टेक  हैं  परछाई है

भूल कर फिर से  मैं जो  याद करूं,  भरूं जो याद की भरपाई है 
रात गुम ख्वाब है  बातों की बात,  बात रंग स्याह से रंगवाई है
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बेचैनियाँ

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आरे आज के चिरते, गुज़ारे कल नहीं जाते
जले रस्से तमाशों में, हमारे बल नहीं जाते

ये चिपकी राख है बेढब, जो उड़ने भी नहीं पाती
हवा में दम भी ना इतना, शरारे जल नहीं जाते

तपिश ले जा रही कितने, समंदर लहर पारों से
नदिया क्या कहूँ तुमसे, ये खारे गल नहीं जाते

तेरी मिट्टी का साया हूँ, वो सौंधी है मेरी नस में
दश्त दम तेज सूरज हो, तेरे बादल नहीं जाते 

बड़ी मायूस गलियां हैं, कोई किस्से नहीं सुनता
फ़साने अजनबी के राज़, प्यारे छल नहीं जाते 

ये सब टलते हुए अंजाम, सुबहो शाम कहते है
सवालों को सम्हालो गर, संवारे हल नहीं जाते 

न मैं हूँ वो न वो तुम हो, ये हम जैसे यहाँ बदले
काश रुखसत की घड़ियों से, उजाड़े पल नहीं जाते 

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मिर्च की बातें

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बात का मानें बुरा  क्या, बात होती जाएगी
बहस फंसती सुबह, कारी रात होती जाएगी

रुसना  रूसे  मनाना,  रोज़ रुकती  रेल  है
फ़िक्र के चक्के छुड़ाना,  चल पड़े फिर खेल है
मैदान से ना भागिए, ये आप की ही बात थी
जीत हारें दुःख चले,  बचता मनों का मेल है

कुछ दिनों में यह गई, बारात होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

ये हम पढ़े वो तुम पढ़े, सुनने कहे का माल ये
नाली में थोड़ी जाएगा, संचित क्षुधा का थाल ये
इस भोग का परशाद तो, मीठा कभी खट्टा कहीं
कुछ मिर्च भी मिलवाइए, अपना बने वाचाल ये   

बे-तीत के बीते में फीकी, याद होती जाएगी
बात का  मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

यह लाज़मी  कैसे है, केवल आपकी  ही सब सुने
ये तुम सुनो वो हम सुने, बकताल  के बक्से भरें
ऐसा  खजाना हो महाशय, राज तक को रश्क हो
दौलत  दिलों की जोत, भूलें  रात के  झगड़े बड़े

धौं देखिये दीपक ये जो, सौगात होती जाएगी
बात  का  मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

अब सब  अगर हो जाएँ, अपने आप से, अटपट अजब
कुछ नया  कैसे हो, अगर,  बस एक सा हो सब सबब
बेहतर  है  थोड़ा  दर्द  लो,  दिलफोड़ बातें  भींच कर
सर्वांग आकुल विकल हों, ज्यों जब अलग की हो तलब


सबके अलग को सींच कर, ऋतु साथ होती जाएगी
बात  का  मानें  बुरा  क्या,  बात  होती  जाएगी

चूंकी  धरा   अलबेल  है,  सच के कई अपवाद हैं  
कितने  मिलेंगे  जहां  ऊपर,  कर्कटों  की खाद हैं
उनका कहा सुनना गया इस कान से उस कान तक
आगे चलो  प्रिय  प्रेम से, कविता भरे सब स्वाद हैं

तुक काफ़िये महफ़िल,  कहे आबाद होती जाएगी  
बात  का  मानें  बुरा  क्या, बात  होती जाएगी

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अहंकारकी अग्निमें, दहत सकल संसार

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‘अहंकारकी अग्निमें, दहत सकल संसार ।’ संत गोस्वामी तुलसीदासजीकी इस उक्तिसे मनुष्यके ‘मैं’पन से हानि स्पष्ट होती है । मनुष्यके ऐहिक एवं पारमार्थिक सुखके मार्गमें अहं एक बहुत बडी बाधा है । अहंका बीज मनुष्यमें जन्मसे ही होता है । इसलिए वह छोटे-बडे, निर्धन-धनवान, सुशिक्षित-अशिक्षित इत्यादि सबमें, न्यूनाधिक मात्रामें अवश्य होता है ।
अहं जितना अधिक होगा, व्यक्ति उतना ही दुःखी होगा । मानसिक रोगियोंका अहं सामान्य व्यक्तिकी तुलनामें अधिक होता है; इसलिए वे अधिक दुःखी होते हैं । मेरी संपत्ति, मेरा शरीर; ऐसे विचार करनेवाले व्यक्तिको संपत्तिकी हानि हो अथवा कोई रोग हो, तो वह दुःखी होता है । ऐसा व्यक्ति अन्य किसीकी संपत्तिकी हानिसे, रोगसे दुःखी नहीं होता । अहंके कारण मनको होनेवाला दुःख अनेक बार शारीरिक वेदनासे कहीं अधिक कष्टप्रद होता है । इसके विपरीत, संत मानते हैं कि सबकुछ परमेश्वरका है, किसीपर भी अपना अधिकार नहीं है, इसलिए वे कभी दुःखी नहीं होते, सदैव आनंदमें रहते हैं ।
अपने अहंका नाश करने हेतु सर्वोत्तम मार्ग है साधना करना । ईश्वरसे एकरूपता पाने हेतु प्रतिदिन जो प्रयत्न किए जाते हैं, उन्हें साधना कहते हैं । संक्षेपमें, दिनभरमें जितना समय हम अधिकाधिक साधना करेंगे, उतनी शीघ्रतासे हमारा अहं अल्प होगा । अहंको घटानेके दृष्टिकोणसे साधनामें महत्त्वपूर्ण चरण हैं - सेवा, त्याग, प्रीति (निरपेक्ष प्रेम) तथा नामजप । 

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ओ... रिक्शे वाले

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‎'ओ... रिक्शे वाले, आजाद नगर चलोगे?' सज्जन व्यक्ति जोर से चिल्लाया।

'हाँ-हाँ क्यों नहीं?' रिक्शे वाला बोला।

'कितने पैसे लोगे?'

'बाबू जी दस रुपए।'

'अरे दस रुपए बहुत ज्यादा हैं मैं पाँच रुपए दूँगा।'

रिक्शे वाला बोला, 'साहब चलो आठ...'

'अरे नहीं मैं पाँच रुपए ही दूँगा।' रिक्शेवाला सोचने लगा, दोपहर हो रही है जेब में केवल बीस रुपए हैं, इनसे बच्चों के लिए एक समय का भरपेट खाना भी पूरा नहीं होगा।

मजबूर होकर बोला ठीक है साब बैठो। रास्ते में रिक्शेवाला सोचता जा रहा था, आज का इंसान दूसरे इंसान को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं समझता। ये भी नहीं सोचा यहाँ से आजाद नगर कितनी दूर है, पाँच रुपए कितने कम हैं। मैं भी क्या करूँ? मुझे भी रुपयों की जरूरत है इसलिए इसे पाँच रुपए में पहियों की गति के साथ उसका दिमाग भी गतिशील था।

आजाद नगर पहुँचने के बाद जैसे ही वह रिक्शे से नीचे उतरा। एक भिखारी उसके सामने आ गया। सज्जन व्यक्ति ने अपने पर्स से दस रुपए उस भिखारी को दे दिए और पाँच रुपए रिक्शे वाले को।

रिक्शेवाला बोला, साहब मेरे से अच्छा तो यह भिखारी रहा जिसे आपने दस रुपए दिए। मैं इतनी दूर से लेकर आया और मेरी मेहनत के सिर्फ पाँच रुपए?'
सज्जन व्यक्ति बोला, 'भिखारी को देना पुण्य है। मैंने उसे अधिक रुपए देकर पुण्य कमाया है।'

'और जो मेरी मेहनत की पूरी मजदूरी नहीं दी ऐसा करके क्या तुम पाप के भागीदार नहीं?' रिक्शेवाले ने कहा। उसकी बात सुनते ही सज्जन व्यक्ति को क्रोध आ गया। वह बोला - 'तुम लोगों से मुँह लगाना ही फिजूल है।'
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पृथ्वी का सारा क्रियाकलाप अथवा सञ्चालन सूर्य से

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सूर्य के सम्बन्ध में हम सभी लोग सोचते हैं की यह कोई निष्क्रिय प्रचंड अग्नि का गोला मात्र है।सूर्य निर्जीव अग्निपिण्ड मात्र नहीं है जैसा की भौतिक विज्ञान की दृष्टी से माना जाता है | ये समस्त संसार का प्राण है। अत्यंत सक्रिय , जीवंत अग्नि संगठन है। हर क्षण सूर्य की तरंगों में विशेष प्रकार के रूपांतरण होते रहते हैं। सूर्य पर होने वाला तनिक सा भी रूपांतरण या विस्फोट पृथ्वी और समस्त वातावरण को प्रभावित करता है।
पृथ्वी का सारा क्रियाकलाप अथवा सञ्चालन सूर्य से मिले प्रकाश, गर्मी और आकर्षण बल द्वारा होता है। प्रकाश के बिना सारी पृथ्वी अंधकार में डूब जाएगी , ताप के भाव में यह बर्फ से अधिक ठंडी हो जाएगी ,उस दिशा में जीवन नाम की कोई वस्तु उस पर नहीं रहेगी, साथ ही किसी अन्य ग्रह की आकर्षण शक्ति से खिंच कर अन्यंत्र चली जाएगी |
जिस प्रकार आत्मा के निकल जाने से शरीर सड -गल जाता है उसी प्रकार सूर्य की दी हुई आकर्षण शक्ति के ना रहने से भूमंडल का कण-कण बिखर जायेगा और प्रलय की स्थिति बन जाएगी। सूर्य के कारण ही यह संगठित रूप मैं है। पदार्थों में जो विशेषताएं पाई हैं वे सब सूर्य की किरणों से अभिभूत है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
सूर्य के सम्बन्ध में हम सभी लोग सोचते हैं की यह कोई निष्क्रिय प्रचंड अग्नि का गोला मात्र है।सूर्य निर्जीव अग्निपिण्ड मात्र नहीं है जैसा की भौतिक विज्ञान की दृष्टी से माना जाता है | ये समस्त संसार का प्राण है। अत्यंत सक्रिय , जीवंत अग्नि संगठन है। हर क्षण सूर्य की तरंगों में विशेष प्रकार के रूपांतरण होते रहते हैं। सूर्य पर होने वाला तनिक सा भी रूपांतरण या विस्फोट पृथ्वी और समस्त वातावरण को प्रभावित करता है।
पृथ्वी का सारा क्रियाकलाप अथवा सञ्चालन सूर्य से मिले प्रकाश, गर्मी और आकर्षण बल द्वारा होता है। प्रकाश के बिना सारी पृथ्वी अंधकार में डूब जाएगी , ताप के भाव में यह बर्फ से अधिक ठंडी हो जाएगी ,उस दिशा में जीवन नाम की कोई वस्तु उस पर नहीं रहेगी, साथ ही किसी अन्य ग्रह की आकर्षण शक्ति से खिंच कर अन्यंत्र चली जाएगी |
जिस प्रकार आत्मा के निकल जाने से शरीर सड -गल जाता है उसी प्रकार सूर्य की दी हुई आकर्षण शक्ति के ना रहने से भूमंडल का कण-कण बिखर जायेगा और प्रलय की स्थिति बन जाएगी। सूर्य के कारण ही यह संगठित रूप मैं है। पदार्थों में जो विशेषताएं पाई हैं वे सब सूर्य की किरणों से अभिभूत है।

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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...