ज्यूस को शरीर के लिए

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ज्यूस को शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इसीलिए प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है और बीमारियों का इलाज किया जाता है।इसमें अलग-अलग फलों और सब्जियों का रस दिया जाता है। करेला जामुन या लौकी के ज्यूस में स्वाद नहीं होता है लेकिन इनका ज्यूस पीने के बहुत फायदे हैं। आइए जानते हैं ज्यूस थेरेपी के कुछ स्पेशल राज जिनसे कर सकते हैं आप इन बीमारियों का इलाज....

खून की कमी- पालक के पत्तों का रस, मौसम्मी, अंगूर, सेब, टमाटर और गाजर का रस लिया जा सकता है।

भूख की कमी- नींबू, टमाटर का रस लें।

फ्लू और बुखार- मौसम्मी, गाजर, संतरे का रस लेना चाहिए।

एसीडिटी- मौसम्मी, संतरा, नींबू, अनानास का रस लें।

कृमि रोगों में- लहसुन और मूली का रस पेट के कीड़ों को मार देता हैं।

मुहांसों में- गाजर, तरबूज, और प्याज का रस लें।

पीलिया- गन्ने का रस, मौसम्मी और अंगूर का रस दिन में कई बार लेना चाहिए।

पथरी- खीरे का रस लें।

मधुमेह- इस रोग में गाजर, करेला, जामुन, टमाटर, पत्तागोभी एवं पालक का रस लिया जा सकता है।

अल्सर में- गाजर, अंगूर का रस ले सकते हैं। कच्चे नारियल का पानी भी अल्सर ठीक करता है।

मासिकधर्म की पीड़ा में- अनानास का रस लें।

बदहजमी -अपच में नींबू का रस, अनानास का रस लें, आराम मिलेगा।
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अरबी, घुईया के औषधीय गुण


अरबी, घुईया के औषधीय गुण -

जलना- जले हुए स्थान पर अरबी पीसकर लगाने से फेफोले नही पड़ते और जलन भी समाप्त हो जाती है।
सूखी खासी- सूखी खासी में अरबी की सब्जी खाने से कफ पतला होकर बाहर निकल जाता है।
हृदय रोग- बड़ी इलायची, काली मिर्च, काला जीरा, अदरक आदि से तैयार अरबी की सब्जी कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने रहने से हृदय दौर्बय, रक्ताल्पाता (खून की कमी) व अन्य हृदय रोग जाते रहते है।
बर्र या ततैया का काटना- दंशित स्थान पर अरबी काटकर तथा घिसकर लगा देनी चाहिए। इससे विष कम हो जायेगा और सुजन भी कम हो जायेगी।
वायु का गोला- अरबी के पौधे के डन्ठल को पत्तों सहित वाष्प (भाप) पर उबालकर निचोंड लें और उसमें ताजा घी मिला 3-4 दिन तक पिलाते रहने से वात गुल्म में लाभ होता है।
गंजापन- अरबी (घुईया काली) के रस का कुछ दिनों तक नियमित सिर पर मर्दन करने से केशों का गिरना रूक जाता है। तथा नयें केश भी उग आतें है।
रक्तार्श- अरबी का रस कुछ दिनों तक पिलाना हितकर रहता है।


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भोजन सम्बन्धी कुछ नियम some rules related to food

भोजन सम्बन्धी कुछ नियम
१ पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूट...े फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल , वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !
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मोटापे का इलाज -कच्चा पपीता Obesity treatment - raw papaya

पपीता एक फल है। कच्ची अवस्था में यह हरे रंग का होता है और पकने पर पीले रंग का हो जाता है।
यह अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का मूल निवासी है. और Mesoamerican क्लासिक संस्कृतियों के उद्भव से पहले मेक्सिको कई सदियों में खेती की जाती थी. यह कभी कभी एक 'बड़ा तरबूज "कहा जाता है या एक" Paw Paw "लेकिन उत्तर अमेरिकी गंदा एक अलग प्रजाति है, जीनस Asimina में. यह एक बड़ा पेड़ है पौधे की तरह, एक स्टेम 5 से 10 मीटर लंबा से बढ़ रहा है, spirally की व्यवस्था के साथ ट्रंक के ऊपर तक ही सीमित है, कम ट्रंक conspicuously जख्म जहां पत्तों और फलों का वहन किया गया है छोड़ता है. पत्ते हैं बड़े, 50-70 सेमी व्यास, गहरी palmately 7 lobes के साथ lobed. पेड़ आम तौर पर unbranched अगर unlopped है. फूलों के आकार में Plumeria के फूल के समान हैं, लेकिन बहुत छोटे हैं और मोम की तरह. वे पत्ते के axils पर दिखाई देते हैं, बड़े 15-45 सेमी में लंबे समय परिपक्व, 10-30 सेमी व्यास फल. पका फल जब यह लगता है नरम (एक पका हुआ या avocado एक नरम थोड़ी सी) और उसकी त्वचा नारंगी रंग के लिए एक एम्बर उपलब्ध हो जाता है की तरह है. है फल स्वाद थोड़ा अनानास और आड़ू के समान है, यद्यपि बहुत tartness बिना मामूली. यह पहला फल वृक्ष को अपनी जीनोम है deciphered

पपीता ,बहुत घरेलू सा फल है ,अक्सर लोग खाना पसंद करते हैं ,किसी से पूछिये कि क्यों खाते हो ,तो जवाब मिलेगा कि डाक्टर बताते हैं या बस यूं ही खा लेते हैं .पपीता न सिर्फ़ एक फ़ल है बल्कि औषधिय गुणों का खजाना है। आपको जानकारी होनी चाहिए कि इसके फल में विटामिन ए, बी , सी ,डी, प्रोटीन ,शर्करा , बीटा-केरोटीन, थायमीन, रीबोफ्लेविन, एस्कोर्बिक एसिड ,कार्पेसमाइन जैसे तत्व पाए जाते हैं ,जो आपके शरीर को कई सारे लाभ पहुंचाते हैं

शरीर को चमकदार बनाने के लिए -- पके पपीते को हाथ से खूब मसल कर चटनी जैसा बना लीजिये ,अब इस चटनी की पूरे शरीर पर खूब अच्छे तरीके से मालिश कीजिये ,आधे घंटे बाद नहा लीजिये ,पूरा शरीर आभायुक्त हो जाएगा ,कील ,मुंहासे ,घमौरियों तथा यदा कदा पड़ जाने वाले दाग धब्बों से मुक्ति ,त्वचा चमकदार एवं मुलायम हो जायेगी ,चर्मरोग से मुक्ति मिल जायेगी . ये क्रिया अगर सप्ताह में दो बार कर ली जाए तो ब्यूटीपार्लर जाने से मुक्ति मिल जायेगी .

पपीता को पेट के लिए वरदान माना गया है। कहते हैं पेट के रोगों को दूर करने के लिए पपीते का सेवन करना लाभकारी होता है। पपीते के सेवन से पाचनतंत्र ठीक होता है। पपीते का रस अरूचि, अनिद्रा (नींद का न आना), सिर दर्द, कब्ज व आंवदस्त आदि रोगों को ठीक करता है। पपीते का रस सेवन करने से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। पपीता पेट रोग, हृदय रोग, आंतों की कमजोरी आदि को दूर करता है। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बनाकर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।

पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की धड़कन नियमित होती है। पपीता में विटामिन ए, बी, डी, प्रोटिन, कैल्सियम, लौह तत्व आदि सभी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।पपीता वीर्य को बढ़ाता है, पागलपन को दूर करता है एवं वात दोषों को नष्ट करता है। इसके सेवन से जख्म भरता है और दस्त व पेशाब की रुकावट दूर होती है। कच्चे पपीते का दूध त्वचा रोग के लिए बहुत लाभ करता है। पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता, पेशाब अधिक लाता है, मूत्राशय के रोगों को नष्ट करता है, पथरी को लगाता है और मोटापे को दूर करता है। पपीता कफ के साथ आने वाले खून को रोकता है एवं खूनी बवासीर को ठीक करता है।

इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता हैं। जो भोजन को पचाने में मदद करता है। पपीता का सेवन रोज करने से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। चूंकि सारे रोगों का कारण पेट के सही ना होने के कारण होता है इसलिए पपीते का सेवन रोज करना चाहिए। पपीता खाने से वजन कम हो जाता है। पपीते का प्रयोग लोग फेस पैक में करते हैं। पपीता त्वचा को ठंडक पहुंचाता है। पपीते के कारण आंखो के नीचे के काले घेरे दूर होते हैं।कच्चे पपीते के गूदे को शहद में मिलाकर चेहरे पर लगाने से कील-मुंहांसो का अंत होता है।

कच्चे पपीते की सब्जी खाने से याददाश्त बढ़ती है। जबकि पपीते का जूस पीने से मनुष्य में यौन शक्ति की वृद्धि हो जाती है। पपीता ऐसा फल है जो ना तो काफी महंगा होता है और ना ही मुश्किल से मिलता है इसलिए पपीते का सेवन हर व्यक्ति को रोज करना चाहिए। सिर्फ एक महीने नियमित रूप से आप पपीता खाइये फर्क आप खुद ही महसूस करेगें और सबसे कहेगें कि पपीता खाओ और काम पर जाओ। समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें। हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है।
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गायत्री मंत्र व उसका अर्थ

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गायत्री मंत्र व उसका अर्थ 
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। 
अर्थ - उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप,
श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप
परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह
परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित
करे। अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान
परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत्
की ओर) प्रेरित करें। विचार "गायत्री मंत्र का निरन्तर जप
रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं
की उन्नति के लिए उपयोगी है।
गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से
किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर
करने का प्रभाव रखता है।"
- महात्मा गाँधी "ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से
एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र
होती है।"
- मदन मोहन मालवीय "भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह
इतना सरल है कि ऐक ही श्वास में
उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है
गायत्री मंत्र।"
- रबीन्द्रनाथ टैगोर "गायत्री में ऐसी शक्ति सन्निहित है,
जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है।"
- अरविंद "गायत्री का जप करने से बडी
- बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र
छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है।"
- रामकृष्ण
परमहंस "गायत्री सदबुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे
मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।"
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नुस्खे- लहसुन से

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सदियों पुराने आदिवासी नुस्खे, लहसुन से आज भी करते हैं बड़ी बीमारियों का इलाज ...

हमारे किचन में सब्जियों के साथ उपयोग में लाया जाने वाला लहसुन का वानस्पतिक नाम एलियम सटाईवम है। सब्जी-दाल में डाले जाने वाला लहसुन सिर्फ एक मसाला नहीं अपितु औषधीय़ गुणों का एक खजाना भी है। आदिवासी आंचलों में इसे वात और दिल की बीमारियों के लिए लहसुन को उपयोगी माना जाता है।
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि मध्यप्रदेश के सुदूर अंचलों में बसे आदिवासियों के बीच लहसुन किस तरह से औषधि के तौर पर उपयोग में लाया जाता है..

दिल के रोगों में है रामबाण
सूखे लहसुन की 15 कलियाँ, 1/2 लीटर दूध और 4 लीटर पानी को एक साथ उबालकर आधा बाकि रह जाए तब तक उबालें।
इस पाक को गैस्टिक ट्रबल और दिल के रोगों से ग्रस्त रोगियों को दिया जाता है।एसिडिटी की शिकायत में भी इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक होता है।

पाचन शक्ति बढ़ाता है
- लहसुन को दाल, सब्जियों और अन्य व्यंजनों में मसाले के तौर पर उपयोग में लाने से भोज्य पदार्थों के पाचन में मदद में मिलती है।लहसुन का रोजाना सेवन वायु विकारों को दूर करता है।
जिनका ब्लडप्रेशर कंट्रोल में नहीं रहता उन्हें प्रतिदिन सुबह लहसुन की कच्ची कली चबाना चाहिए।

कृमि को खत्म कर देता है

आदिवासियों के अनुसार जिन्हे जोड़ो का दर्द, आमवात जैसी शिकायतें हो, लहसुन की कच्ची कलियाँ चबाना उनके लिए बेहद फायदेमंद होता है। प्रतिदिन सुबह लहसुन की एक कच्ची कली चबाना इन रोगों के लिए हितकर माना जाता है।
बच्चों को यदि कृमि (पेट के कीड़े) की शिकायत हो तो लहसुन की कच्ची कलियों का 20- 30बूँद रस एक गिलास दूध में मिलाकर इन बच्चों को देने से पेट के कृमि मर कर शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।

कैंसर में राहत पहुचाता है
कैंसर को एक लाइलाज बीमारी माना जाता है। लेकिन शायद आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आयुर्वेद के अनुसार रोजाना थोड़ी मात्रा में लहसुन का सेवन करने से कैंसर होने की संभावना अस्सी प्रतिशत तक कम हो जाती है।कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं।

यह शरीर में कैंसर बढऩे से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

बुखार भी ठीक करता है
- सरसों के तेल में लहसुन की कलियों को पीसकर उबाला जाए और घावों पर लेप किया जाए, घाव तुरंत ठीक होना शुरू हो जाते है।
घुटनों के छिल जाने, हल्के फ़ुल्की चोट या रक्त प्रवाह होने पर लह्सुन की कच्ची कलियों को पीसकर घाव पर लेपित करें, घाव पकेंगे नहीं और इन पर किसी तरह का इंफ़ेक्शन भी नही होगा। लहसून के एण्टीबैक्टिरियल गुणों को आधुनिक विज्ञान भी मानता है, लहसून का सेवन बैक्टिरिया जनित रोगों, दस्त, घावों, सर्दी-खाँसी और बुखार आदि में बहुत फायदा करता है।

प्लेटलेट्स हो जाती है संतुलित

-नमक और लहसुन का सीधा सेवन रक्त शुद्ध करता है, जिन्हे रक्त में प्लेटलेट की कमी होती है उन्हे भी नमक और लहसून की समान मात्रा सेवन में लेनी चाहिए।
ऐसा दिन में कम से कम एक बार किया जाना चाहिए। एक माह के भीतर ही परिणाम दिखने लगते हैं।

अस्थमा ठीक हो जाता है
लहसुन की 2 कच्ची कलियां सुबह खाली पेट चबाने के बाद आधे घण्टे से मुलेठी नामक जड़ी-बूटी का आधा चम्म्च सेवन दो महीने तक लगातार करने से दमा जैसी घातक बीमारी से सदैव की छुट्टी मिल जाती है
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अमृत है बेलफ़ल Belphal is nectar


गर्मी के मौसम में गर्मी से राहत देने वाले फलों में बेल का फल प्रकृति मां द्वारा दी गई किसी सौगात से कम नहीं है | कहा गया है- 'रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व ।' अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है ।बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग जहाँ इस फल के शरबत का सेवन कर गर्मी से राहत पा अपने आप को स्वस्थ्य बनाए रखते है वहीँ भक्तगण इस फल को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर संतुष्ट होते है |

औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है।

बेल व बिल्व पत्र के नाम से जाने जाना वाला यह स्वास्थ्यवर्धक फल उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।

बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

*ये पेय गर्मियों में जहां आपको राहत देते हैं, वहीं इनका सेवन शरीर के लिए लाभप्रद भी है। बेल में शरीर को ताकतवर रखने के गुणकारी तत्व विद्यमान हैं। इसके सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह रोगों को दूर भगा कर नई स्फूर्ति प्रदान करता है।
*गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

*पुराने से पुराने आँव रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन अधकच्चे बेलफल का सेवन करें।

*पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।

*पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।

*आँख में दर्द होने पर बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से काफी आराम मिलता है।

*कई मर्तबा गर्मियों में आँखें लाल-लाल हो जाती हैं तथा जलने लगती हैं। ऐसी स्थिति में बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँख में डालना चाहिए। लाली व जलन शीघ्र दूर हो जाएगी।

*बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।

*बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।

*इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।

*बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।

*पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है।

*बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।

*गर्मियों में गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ का काढ़ा दो चम्मच पिलाना चाहिए।

*पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से आवाज भी सुरीली होती है।

*छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
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अस्थमा आयुर्वेद चिकित्सा asthma ayurveda medicine

बढ़ते प्रदूषण से दमा के मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। दमा एक गंभीर बीमारी है,जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। दमा यानी अस्थमा के दौरान खांसी, नाक बंद होना या बहना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ इत्यादि समस्याएं होती है। हालांकि आयुर्वेद में दमा का इलाज संभव है लेकिन दमा के मरीजों को जड़ी-बूटी चिकित्सा से भी बहुत ज्या्दा आराम नहीं मिलता। आइए जानें अस्थमा का आयुर्वेद में इलाज के बारे में।
• दमा का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण जरूर किया जा सकता है।
• दमे के रोगी का दमे का दौरा पड़ने से जान का जोखिम भी रहता है जिसमें उसकी श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है।
• दमा जानलेवा बीमारी है इसीलिए दमे के रोगी को निरंतर अपनी दवाईयां लेते रहना चाहिए और अपने पास इनहेलर जरूर रखना चाहिए।

अस्थमा को कम करने के उपाय

• एक पके केले को छिलके सहित सेंककर बाद में उसका छिलका हटाकर केले के टुकड़ो में पिसी काली मिर्च डालकर गर्म-गर्म दमे रोगी को देनी चाहिए। इससे रोगी को राहत मिलेगी।
• तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी कालीमिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
• दमे का दौरा बार-बार न पड़े इसके लिए हल्दी और शहद मिलाकर चांटना चाहिए।
• तुलसी दमे को नियंत्रि‍त करने में लाभकरी है। तुलसी को पानी के साथ पीसकर उसमें शहद डालकर चाटने से दमे से राहत मिलती है।
• दमे आमतौर पर एलर्जी के कारण भी होता है। ऐसे में एलर्जी को नियंत्रि‍त करने के लिए दूध में हल्दी डालकर पीनी चाहिए।
• शहद की गंध को दमे रोगी को सुधांने से भी आराम मिलता है।
• नींबू पानी दमे के दौरे को नियंत्रि‍त करता है। खाने के साथ प्रतिदिन दमे रोगी को नींबू पानी देना चाहिए।
• आंवला खाना भी ऐसे में अच्छा रहता है। आंवले को शहद के साथ खाना तो और भी अच्छा है।
• गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रि‍त करने में राहत मिलती है।
• अस्थमा रोगी को लहसून की चाय या फिर दूध में लहसून उबालकर पीना भी लाभदायक है।
• सरसों के तेल को गर्म कर छाती पर मालिश करने से दमे के दौरे के दौरान आराम मिलता है।
• मेथी के बीजों को पानी में पकाकर पानी जब काढ़ा बन जाए तो उसे पीना दमें में लाभकारी होता है।
• लौंग को गर्म पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से दमे को नियंत्रि‍त करने में आसानी होती है।
इन टिप्स को अपनाकर निश्चित तौर पर आप दमे को नियंत्रि‍त कर सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही जरूरी है कि रोगी को घूल मिट्टी, घुएं इत्यादि से खासतौर पर दूर रखना चाहिए।
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प्रार्थना का स्थान

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हिंदू मंदिरों में पूजा-पाठ बंद कर देना चाहिए। प्राचीन मंदिर ध्यान या प्रार्थना के लिए होते थे। उन मंदिर के स्तंभों या दीवारों पर ही मूर्तियां आवेष्टित की जाती थी। मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होता था। यदि आप खजुराहो, कोणार्क या दक्षिण के प्राचीन मंदिरों की रचना देखेंगे तो जान जाएंगे कि मंदिर किस तरह के होते हैं।

ध्यान या प्रार्थना करने वाली पूरी जमात जब खतम हो गई है तो मंदिरों पर पूजा-पाठ का प्रचलन बड़ा। पूजा-पाठ के प्रचलन से मध्यकाल के अंत में मनमाने मंदिर बने। मनमाने मंदिर से मनमानी पूजा-आरती आदि कर्मकांडों का जन्म हुआ जो वेदसम्मत नहीं माने जा सकते।

जानकार कहते हैं कि उसी मंदिर का महत्व है जिसमें सामूहिक रूप से दो संधिकाल (प्रात: और संध्या) में ठीक और एक ही वक्त पर ध्यान या प्रार्थना की जाती है।

मंदिरों में यदि मूर्तियों की पूजा होती है तो कोई बात नहीं, लेकिन एक हाल भी होना चाहिए जहां पांच सौ से हजार लोग प्रार्थना कर सके। परमेश्वर की प्रार्थना के लिए वेदों में कुछ ऋचाएं दी गई है, प्रार्थना के लिए उन्हें याद किया जाना चाहिए।
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हिंदू मंदिर की वास्तु रचना

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प्राचीन काल से ही किसी भी धर्म के लोग सामूहिक रूप से एक ऐसे स्थान पर प्रार्थना करते रहे हैं, जहां पूर्ण रूप से ध्यान लगा सकें, मन एकाग्र हो पाए या ईश्वर के प्रति समर्पण भाव व्यक्त किया जाए। इसीलिए मंदिर निर्माण में वास्तु का बहुत ध्यान रखा जाता था।

यदि हम भारत के प्राचीन मंदिरों पर नजर डाले तो पता चलता है कि सभी का वास्तुशील्प बहुत सुदृड़ था। जहां जाकर आज भी शांति मिलती है। मंदिर की भव्यता का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। घर की वास्तुपूजा के समय जो मंडल बनता है वह मंदिर का मंडल ही तो है?

यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। शुरुआत से ही हमारे धर्मवेत्ताओं ने मंदिर की रचना पिरामिड आकार की ही सोची है। हिंदू मंदिरों की वास्तु रचना में ज्‍योतिषीय और खगोलशास्त्र का ध्यान भी रखा जाता था।

आपने देखा होगा कि हमारे देश के कुछ मंदिर कर्क Rekha के ठीक नीचे बने हुए हैं। उज्जैन और ओंकारेश्वर का मंदिर इसका उदाहरण है। शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग में जहां वास्तुकला का विशेष ध्यान रखा गया वहीं इसकी रचना के आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों की चाल और मौसम को ध्यान में रखकर स्थान चयन और दिशा ज्ञान का भी ध्यान रखा गया है।

जहां तक पिरामिडनुमा रचना की बात करें तो ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी आकार की होती थी। हमारे प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थी। बाद में रोमन, चीन, अरब और युनानी वास्तुकला के प्रभाव के चलते मंदिरों के वास्तु में परिवर्तन होता रहा।

विद्वान मानते हैं कि मंदिर पिरामिडनुमा और पूर्व, उत्तर या ईशानमुखी होता है। कई मंदिर पश्चिम, दक्षिण, आग्नेय या नैरत्यमुखी भी होते हैं, लेकिन क्या हम उन्हें मंदिर कह सकते हैं? वे अन्य कोई पूजा-स्थल हो सकते हैं।

मंदिर का मुख : पहले हिंदुओं के सभी मंदिर काबा की तरह होते थे क्योंकि मक्काह का काबा में शिव का प्रमुख ज्योतिलिंग था इसलिए मंदिर का द्वारा पूर्व में रखा जाता था ताकी प्रार्थना करते वक्त पश्चिम में मुख हो। आज भी ऐसा ही है। हालांकि उत्तर या ईशानमुखी होने के पीछे कारण यह कि ईशान से आने वाली उर्जा का प्रभाव ध्यान-प्रार्थना के लिए अति उत्तम माहौल निर्मित करता है। मंदिर पूर्वमुखी भी हो सकता है किंतु फिर उसके द्वार और गुंबद की रचना पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

प्राचीन मंदिर ध्यान या प्रार्थना के लिए होते थे। उन मंदिर के स्तंभों या दीवारों पर ही मूर्तियां आवेष्टित की जाती थी। मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होता था। यदि आप खजुराहो, कोणार्क या दक्षिण के प्राचीन मंदिरों की रचना देखेंगे तो जान जाएंगे कि मंदिर किस तरह के होते हैं।

ध्यान या प्रार्थना करने वाली पूरी जमात जब खतम हो गई है तो इन जैसे मंदिरों पर पूजा-पाठ का प्रचलन बड़ा। पूजा-पाठ के प्रचलन से मध्यकाल के अंत में मनमाने मंदिर बने। मनमाने मंदिर से मनमानी पूजा-आरती आदि कर्मकांडों का जन्म हुआ जो वेदसम्मत नहीं माने जा सकते। अब देखिए सती माता का मंदिर, पालिया भैरव का मंदिर और न जाने कौन कौन े मंदिर। जरा इनका इतिहास जानें।
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