उन्हें बस थोड़ा सा प्यार चाहिए all they need is a little love


कहने को तो वो समाज की रीढ़ हैं, हंसते-खेलते परिवार की नींव है, उनके कंधों पर आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी है लेकिन ना जाने यह कैसी विडंबना है कि जिस समाज को वो अपने आदर्शों, अपने तरीकों और अपनी उम्मीदों से सींचते हैं वहीं समाज एक समय बाद उनकी अवहेलना करने लगता है, उनपर हंसने लगता है, उन्हें महत्व देना भूल जाता है.

एक दौर था जब समाज अपने बुजुर्गों को सिर आंखों पर बैठा कर रखता था, परिवार के भीतर भी उन्हें हर वो आदर-सम्मान दिया जाता था जिसके वो हकदार होते थे, उन्हें सुना जाता था, उनकी बातों का मान रखा जाता था. लेकिन अफसोस पहले जैसी ये परिस्थितियां अब न्यूनतम स्तर पर ही दिखाई देती हैं, यह कहना भी गलत नहीं होगा अब परिवार में बुजुर्ग का सम्मान होते देखना कम से कम आज की युवा पीढ़ी को तो नसीब हो रहा. हर घर के यही हालात है जहां बच्चे अपने ही माता-पिता द्वारा उनके अभिभावकों का असम्मान होते देखते हैं, उनपर चिल्लाते देखते हैं, उन्हें दुत्कारते दिखते हैं.

युवाओं द्वारा बुजुर्गों का अपमान होते देखना आज कोई बड़ी बात नहीं रह गई है, गली-मोहल्लों और घर में भी पीठ-पीछे या उन्हीं के सामने उनका अपमान कर दिया जाता है जिन्होंने कभी हर दुख सहकर अपने परिवार को मुश्किलों से बचाने की कोशिश की थी. घर में अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों और युवाओं के बीच एक और पीढ़ी मौजूद होती हैं वो हैं, जिसके कंधों पर पीढ़ी के इस अंतर को समाप्त कर परिवार में सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी होती हैं लेकिन दुख की बात यह है कि जब अपने ही माता-पिता को लोग बोझ समझने लगते हैं तो सामंजस्य बैठाने की परेशानी भी कोई नहीं उठाना चाहता.

आज अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के दिन हर ओर बुजुर्गों को सम्मान देने जैसी बातें, टी.वी और समाचार पत्रों में उन्हें समर्पित विज्ञापन दिखाई दे जाते हैं, अब जबकि सोशल मीडिया का चलन भी बहुत लोकप्रिय हो गया है तो वहां भी परिवार और आस पड़ोस के बुजुर्गों के प्रति आदरपूर्ण व्यवहार करने से जुड़े स्टेटस और पोस्ट किए जा रहे होंगे लेकिन कल हर कोई, सब कुछ भूलकर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा जिसपर अभी तक चला जाता रहा है.

नहीं जिनको है घुल जाने की चाह

ऐसा नहीं है कि हर परिवार और हर परिस्थितियों में गलती युवाओं या उन लोगों की होती हैं जो अपने वृद्ध हो चुके माता-पिता के साथ बात-बात पर उलझ जाते हैं. कई बार हालात परिवार के बुजुर्गों द्वारा भी बिगड़ जाते हैं लेकिन ऐसे हालातों में उनसे बहस करने की बजाय अगर उनकी कथनी को नजरअंदाज कर दिया जाए तो परिवार में खुशहाली का माहौल कायम रखा जा सकता है.



आप अपने बचपन को ही याद कीजिए, जब आप बीमार होते थे तो किस तरह रातभर आपकी मां आपके बिस्तर के पास ही बैठी रहती थी, आपकी परीक्षाओं के दिनों में वह अपना चैन भूल जाती थी. आपके पिता आपकी एक ख्वाहिश पूरी करने के लिए अपनी दवाइयां तक नहीं लाते थे. उन्होंने वो सब किया जो आपके लिए जरूरी था, किसी भी मुश्किल में आपको अकेला नहीं छोड़ा आपकी हर जरूरत में आपके साथ रहते थे, लेकिन आज जब उन्हें आपकी जरूरत हैं तो आप कैसे उन्हें जीवन के सबसे कठिन पड़ाव में अकेला छोड़ सकते हैं?
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आपकी पत्नी आपसे क्या चाहती है? What does your wife want from you?


पत्नी नई नवेली या बरसों बरस की साथी। अक्सर किसी पहेली से कम नहीं होती। समझ में नहीं आता उसे क्या अच्छा लगता है, कब अच्छा लगता है, कब बुरा लगता है और कब वह कुछ खास आपसे सुनना या पाना चाहती है। आइए जानते हैं इस प्रश्नावली के माध्यम से कि आखिर आप अपनी पत्नी को कितना जानते हैं? 

1-आपकी पत्नी आपसे क्या चाहती है?
क. ढेर सारे उपहार
ख. दांपत्य जीवन के प्रति प्रतिबद्धता
ग. आप उसे पहले नंबर की प्राथमिकता दें

2- आपकी पत्नी चाहती है कि आप-
क. उसके ड्यूटी आने से पहले घर के कामकाज शुरू कर दें
ख. उसका इंतजार करें
ग. यह उसकी ड्यूटी है यह मानें

3- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसके साथ भावुक क्षणों में हों
ख. आप उसे ऐसे क्षणों में अकेला छोड़ दें
ग. आप अपने में मस्त रहें

4- आपकी पत्नी चाहती है कि आप उसे-
क. उपहार में रसोई की चीजें दें
ख. कपड़े और गहने दें
ग. यादगार चीजें दें जिन पर औरतों की पारंपरिक छवि न जुड़ी हो

5- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसे जींस में मोटी न कहें
ख. आप उसे मनपसंद कपड़े पहनने दें
ग. आप अपने मन के कपड़े पहनाएं

6- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप उसे जानें
ख. बच्चों से ज्यादा उसका खयाल रखें
ग. आप उससे अंतरंग हों

7- आपकी पत्नी चाहती है कि-
क. आप बच्चों के प्रति जिम्मेदार बनें
ख. बच्चों से ज्यादा उसका खयाल रखें


ग. पूरे परिवार के लिए अपना खयाल रखें
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जीवन जीने की कला art of living life


मनुष्य  हमेशा अपने भविष्य के लिए चिंतित रहता है।  वह  अतीत की सोचता है, भविष्य की सोचता है, क्योंकि डरता है वर्तमान से , वर्तमान के क्षण में जीवन भी है और मृत्यु भी। वर्तमान में ही दोनों है एक साथ है क्योंकि वह वर्तमान में ही मरेगा  और वर्तमान में ही जियेगा । न तो कोई भविष्य में मर सकता है और न भविष्य में जी सकता है।
क्या तुम भविष्य में मर सकते हो?  जब मरोगे, तब अभी और यहीं, वर्तमान के क्षण में ही मरोगे। आज ही मरोगे। कल तो कोई भी नहीं मरता। कल मरोगे भी तो कैसे?  कल क्या आता है कभी?  कल तो आता ही नहीं है। जब मर नहीं सकते कल में तो जियोगे कैसे?  कल का कोई आगमन ही नहीं होता। कल तो है ही नहीं। जो है वह अभी है और यहाँ है हमारे वर्तमान में , फिर कल की बात ही क्यों ? लेकिन फिर भी वह भविष्य में ही जीना चाहता है, भविष्य के लिए ही चिंतित है ; जबकि सत्य यही है की वह वर्तमान में जी रहा है।
हमें अपने अतीत से  प्रेरणा लेनी चाहिए , भविष्य की योजनाएं बनाना चाहिए एवं वर्तमान का आनंद लेना चाहिए।  हम वर्तमान में जी रहे हैं इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही हमें जीवन जीने की कला सीखा सकता है।  अतीत की भटकन से दूर , भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है , उसके लिए जिज्ञासा न कर , वर्तमान को आनन्दमय बनाये।  यही है जीवन जीने की कला।

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रिश्ते अपनी जगह अनमोल हैं. Relationships are precious in their own place.

रिश्ते अपनी जगह अनमोल हैं.

जिंदगी की दौड़ में रिश्ते एनर्जी बूस्टर्स से कम नहीं. हर रिश्ते अपनी जगह अनमोल हैं. कुछ अनमोल कहलाने से भी कहीं ज्यादा खास होते हैं. मां-बाप, दादा-दादी, बूआ-मासी, चाचा-चाची जैसे ये रिश्ते बचपन की गली से आगे बढ़ने के बाद भी हमेशा खास होते हैं क्योंकि जिंदगी की जंग में आगे बढ़ पाने के लिए अंगुली थामकर मजबूत कदमों से चलना यही सिखाते हैं हमें. उस बचपन में जब हम उन्हें अपने लिए तकलीफें उठाते, हमारी खुशियों के लिए अपनी छोटी-बड़ी खुशियां कुर्बान करते फिर भी हमारे लिए खुश होते देखते हैं तो अक्सर हम सोचते हैं कि बड़े होकर हम इनकी झोली ढेर सारी खुशियों से भर देंगे. हर वो पल उन्होंने हमारी खुशी के लिए कुर्बान किए उससे दोगुने खुशनुमा पल उनके कदमों में रख देंगे लेकिन भीड़ में आगे बढ़ सकने की धुन में जब वक्त आता है उनके लिए कुछ करने का तो हम क्या करते हैं? शायद ऐसा ही जो इस वीडियो में दिखाया गया है:

जो बोवोगे वही पाओगे. क्या हम अपनी भावी पीढ़ी को यही सीख देना चाहते हैं? कल यही हमारा अतीत भी होगा और आज यह अतीत कल का हमारा भविष्य भी बनेगा. क्या आप अपना ऐसा भविष्य देखना चाहेंगे? अगर नहीं, तो अपनी खुशियों से इनके लिए हम थोड़ा वक्त क्यों नहीं निकाल सकते? सवाल खुद से पूछिए.
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एक मासूम कहानी..(Sad Story in Hindi)

एक मासूम कहानी..(Sad Story in Hindi)

एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका-हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका छोटा सा बेटा सोने की बजाय उसका इंतज़ार कर रहा है . अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?” “ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा . बेटा – “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?” “ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया . बेटा – “ मैं बस यूँ ही जाननाचाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , नहीं बताऊंगा , तुम जाकर सो जाओ “यह सुन बेटा दुखी हो गया …और वह अपने कमरे में चला गया . व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे ने ऐसा क्यों पूछा ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “ क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया . “ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया।

जब पत्नी ने कहा पति से ‘अभी घर जाने का करो इंतजार


दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा. सारी बेटा “…….मै एक घंटे में १०० रूपया कमा लेता हूँ……. थैंक यूं पापा ” बेटे ने ख़ुशी से बोला और तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने अपने गोल्लक तोड़े और ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा . “ पापा मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपसे आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .” दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा अहमयित रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी भरी जिंदगी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया…
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रोज खाना खाते समय ध्यान रखेंगे ये बातें तो नहीं होंगी ऐसी परेशानियां If you keep these things in mind while eating food every day, you will not have such problems.


आज के समय में हमारी दिनचर्या में कई बड़े-बड़े परिवर्तन हो गए हैं। इन परिवर्तनों का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर हुआ है। आज अधिकांश लोग मोटापे की समस्या से त्रस्त हैं। बढ़ते वजन को रोकने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए जाते हैं, फिर भी बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो मोटापे की गिरफ्त से आजाद हो पाते हैं।
मोटापे से बचने के लिए योग-व्यायाम सबसे अच्छा उपाय हैं, लेकिन इसके साथ ही खान-पान के तरीके में भी कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। पुराने समय से ही ऐसी परेशानियों से बचने के लिए कई प्रकार की परंपराएं बनाई गई हैं। जो लोग इन परंपराओं का पालन करते हैं, उन्हें स्वास्थ्य संबंधी लाभ के साथ ही धर्म लाभ भी प्राप्त होता है।
यहां जानिए खाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे मोटापे की समस्या और पेट से जुड़ी कई छोटी-छोटी बीमारियों का सामना नहीं करना पड़ता है।
जमीन पर बैठकर करें भोजन
प्राचीन परंपरा है कि हमें खाना जमीन पर बैठकर ही खाना चाहिए, लेकिन आज इस परंपरा का निर्वाह बहुत कम लोग करते हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं की लालसा में व्यक्ति ने प्राचीन परंपराओं को भुला दिया है। काफी लोग जीवन स्तर को उच्च बनाए रखने और दिखाने के लिए टेबल-कुर्सी पर भोजन करने लगे हैं। जबकि पुराने समय में बड़े-बड़े राजा-महाराजा तक जमीन पर बैठकर भोजन किया करते थे। जमीन पर बैठकर भोजन करना स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है।
जब जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं, तब हम एक विशेष योगासन की अवस्था में बैठते हैं। इस आसन को सुखासन कहा जाता है। सुखासन, पद्मासन का ही एक रूप है। सुखासन से वे सभी स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त होते हैं जो पद्मासन से प्राप्त होते हैं। टेबल पर बैठकर भोजन करने से ये सभी लाभ प्राप्त नहीं हो पाते हैं, इसी वजह से मोटापा भी बढ़ता है और कब्ज, गैस, अपच की समस्या होती है।
सुखासन में भोजन करने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं...
सुखासन में बैठने से हमारा मन शांत रहता है, एकाग्रता बढ़ती है। किसी भी कार्य को करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा मिलती है। जब हम सुखासन में बैठकर भोजन करते हैं तो पैरों के साथ ही पूरे शरीर का रक्त संचार व्यवस्थित होता है।
इस प्रकार बैठकर भोजन करने से खाना पचने में आसानी होती है। पाचनतंत्र व्यस्थित होता है। पेट से जुड़े छोटे-छोटे रोग, जैसे मोटापा, कब्ज, गैस, अपच आदि दूर होते हैं। यदि कोई व्यक्ति हमेशा इस आसन में बैठकर भोजन ग्रहण करता है तो निश्चित ही उसे काफी लाभ स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं।
यदि व्यक्ति को किसी परेशानी के कारण डॉक्टर्स ने बैठकर भोजन करने से मना किया है तो इस आसन में बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए।
ऐसे भोजन करने से देवी-देवता भी होते हैं प्रसन्न
शास्त्रों के अनुसार यदि हम इस प्रकार शांति से और पारंपरिक तरीके से भोजन करते हैं तो देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। अन्न देवता भी तृप्त होते हैं। ऐसे खाना खाने से हमारे शरीर को अधिक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। खाने के बाद आलस्य नहीं होता है। खाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जितनी भूख हो उतना भी भोजन करें। आवश्यकता से अधिक भोजन आलस्य बढ़ाता है, मोटापा बढ़ाता है और कब्ज आदि परेशानियां पैदा करता है।
भोजन शुरू करने से पहले हमें अपने इष्टदेव का ध्यान भी करना चाहिए। परमात्मा को भोजन के धन्यवाद कहते हुए भोजन ग्रहण करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा। भोजन से पूर्व किसी भी मंत्र का जप करना शुभ रहता है। मंत्र, जैसे ऊँ नम: शिवाय, सीताराम, ऊँ रामदूताय नम: आदि।
भोजन के बाद कुछ देर ऐसे बैठें
भोजन के बाद कुछ देर वज्रासन में भी बैठना चाहिए। इस आसन में बैठने के लिए घुटनों को पीछे मोड़कर इस तरह से बैठें कि नितंब दोनों एड़ियों के बीच में आ जाएं। दोनों पैरों के अंगूठे आपस में मिले रहें और एड़ियों में दूरी भी रहे। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। शरीर को सीधा रखें। हाथों और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें और कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद कर लें। भोजन के बाद कुछ देर ऐसे ही बैठें। यह आसन खाने के बाद करने से आपका पाचन बहुत अच्छा हो जाएगा। मोटापा, गैस, कब्ज और अपच जैसी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
ध्यान रखें कि भोजन के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। जो लोग खाना खाने के तुरंत बाद सोते हैं, वे तेजी से मोटापा का शिकार हो जाते हैं।
आगे जानिए महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार भोजन के संबंध में बताए गए महत्वपूर्ण नियम... इन नियमों में बताया गया है कि हमें कैसा भोजन नहीं करना चाहिए...
- महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार जिस खाने को किसी व्यक्ति द्वारा लांघ दिया गया हो, वह खाना ग्रहण नहीं करना चाहिए। ऐसा खाना अपवित्र हो जाता है।
- यदि भोजन को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चाट लिया गया हो, जूंठा कर दिया गया हो तो वह भोजन नहीं खाना चाहिए।
-जो खाना लड़ाई-झगड़ा करके हासिल किया गया हो, उस खाने को भी नहीं खाना चाहिए।
- यदि खाने पर किसी रजस्वला स्त्री की परछाई पड़ जाए या ऐसी स्त्री खाने को देख भी ले तो वह खाना दूषित हो जाता है। ऐसा खाना नहीं खाना चाहिए।
- यदि खाने को किसी कुत्ते ने छू लिया हो या खाने पर कुत्ते की नजर पड़ गई हो तो वह खाना भी अपवित्र हो जाता है।
- यदि खाने में बाल निकल जाए तो खाना भी अपवित्र हो जाता है। ऐसा खाना नहीं खाना चाहिए।
- यदि खाने में कीड़े गिर जाएं तो वह खाना अशुद्ध हो जाता है। ऐसा खाना खाने से हमारे स्वास्थ्य को बीमारी का खतरा हो सकता है।
- यदि खाना किसी व्यक्ति की छींक या आंसू से दूषित हो जाए तो वह खाना नहीं खाना चाहिए।
- यदि किसी दुराचारी व्यक्ति द्वारा हमारे भोजन में से कुछ खाना खा लिया गया हो तो वह भोजन भी नहीं खाना चाहिए। ऐसा खाना राक्षसों का भाग हो जाता है।
- देवता, पितर, अतिथि एवं बालक को दिए बिना ही भोजन करना वर्जित किया गया है। अत: खाना खाने से पहले देवी-देवताओं और पितर को भोग लगाना चाहिए। यदि घर में कोई अतिथि है या कोई छोटा बच्चा है तो पहले उन्हें भोजन दें।
रोज खाना खाते समय ध्यान रखेंगे ये बातें तो नहीं होंगी ऐसी परेशानियां

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स्वाभिमानी बालक proud boy

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।
उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।
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सिकंदर का अंहकार Alexander's arrogance

अंहकार

सिकंदर ने ईरान के राजा दारा को पराजित कर दिया और विश्वविजेता कहलाने लगा। विजय केउपरांत उसने बहुत भव्य जुलूस निकाला। मीलों दूर तक उसके राज्य के निवासी उसके स्वागत मेंसर झुकाकर उसका अभिवादन करने के लिए खड़े हुए थे। सिकंदर की ओर देखने का साहस मात्र किसी में कहीं था।
मार्ग के दूसरी ओर से सिकंदर ने कुछ फकीरों को सामने से आते हुए देखा। सिकंदर को लगा कि वे फ़कीर भी रूककर उसका अभिवादन करेंगे। लेकिन किसी भी फ़कीर ने तो सिकंदर की तरफ़ देखा तक नहीं।
अपनी ऐसी अवमानना से सिकंदर क्रोधित हो गया। उसने अपने सैनिकों से उन फकीरों को पकड़ कर लाने के लिए कहा। सिकंदर ने फकीरों से पूछा – “तुम लोग नहीं जानते कि मैं विश्वविजेता सिकंदर हूँ? मेरा अपमान करने का दुस्साहस तुमने कैसे किया?”
उन फकीरों में एक वृद्ध महात्मा भी था। वह बोला – “किस मिथ्या वैभव पर तुम इतना अभिमान कर रहे हो, सिकंदर? हमारे लिए तो तुम एक साधारण आदमी ही हो।”
यह सुनकर सिकंदर का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। महात्मा ने पुनः कहा – “तुम उस तृष्णा के वश में होकर यहाँ-वहां मारे-मारे फ़िर रहे हो जिसे हम वस्त्रों की तरह त्याग चुके हैं। जो अंहकार तुम्हारे सर पर सवार है वह हमारे चरणों का गुलाम है। हमारे गुलाम का भी गुलाम होकर तुम हमारी बराबरी की बात कैसे करते हो? हमारे आगे तुम्हारी कैसी प्रभुता?”
सिकंदर का अंहकार मोम की तरह पिघल गया। उस महात्मा के बोल उसे शूल की तरह चुभ गए। उसे अपनी तुच्छता का बोध हो गया। उन फकीरों की प्रभुता के आगे उसका समस्त वैभव फीका था। उसने उन सभी को आदर सहित रिहा कर दिया।
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वासना की उम्र age of lust

वासना की उम्र

एक दिन सम्राट अकबर ने दरबार में अपने मंत्रियों से पूछा कि मनुष्य में काम-वासना कब तक रहती है। कुछ ने कहा ३० वर्ष तक, कुछ ने कहा ६० वर्ष तक। बीरबल ने उत्तर दिया – “मरते दम तक”।
अकबर को इस पर यकीन नहीं आया। वह बीरबल से बोला – मैं इसे नहीं मानता। तुम्हें यह सिद्ध करना होगा की इंसान में काम-वासना मरते दम तक रहती है”।
बीरबल ने अकबर से कहा कि वे समय आने पर अपनी बात को सही साबित करके दिखा देंगे।
एक दिन बीरबल सम्राट के पास भागे-भागे आए और कहा – “आप इसी वक़्त राजकुमारी को साथ लेकर मेरे साथ चलें”।
अकबर जानते थे कि बीरबल की हर बात में कुछ प्रयोजन रहता था। वे उसी समय अपनी बेहद खूबसूरत युवा राजकुमारी को अपने साथ लेकर बीरबल के पीछे चल दिए।
बीरबल उन दोनों को एक व्यक्ति के घर ले गया। वह व्यक्ति बहुत बीमार था और बिल्कुल मरने ही वाला था।
बीरबल ने सम्राट से कहा – “आप इस व्यक्ति के पास खड़े हो जायें और इसके चेहरे को गौर से देखते रहें”।
इसके बाद बीरबल ने राजकुमारी को कमरे में बुलाया। मरणासन्न व्यक्ति ने राजकुमारी को इस दृष्टि से देखा कि अकबर के समझ में सब कुछ आ गया।
बाद में अकबर ने बीरबल से कहा – “तुम सही कहते थे। मरते-मरते भी एक सुंदर जवान लडकी के चेहरे की एक झलक आदमी के भीतर हलचल मचा देती है”।
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श्री राम के दरबार में कुत्ता dog in shri ram's court

श्री राम के दरबार में कुत्ता

एक दिन एक कुत्ता श्रीराम के दरबार में आया और उसने प्रभु से शिकायत की – “राजन, कितने दुख की बात है कि जिस राज्य की कीर्ति चहुंओर रामराज्य के रूप में फैली हुई है वहीं लोग हिंसा और अन्याय का सहारा लेते हैं. मैं आपके महल के पास ही एक गली में लेटा हुआ था जब एक साधू आया और उसने मुझे पत्थर मारकर घायल कर दिया. देखिए मेरे सिर पर लगे घाव से अभी भी रक्त बह रहा है. वह साधू अभी भी गली में ही होगा. कृपया मेरे साथ न्याय कीजिए और अन्यायी को उसके दुष्कर्म का दंड दीजिए.”
श्रीराम के आदेश पर साधु को दरबार में लिवा लाया गया. साधू ने कहा – “यह कुत्ता गली में पूरा मार्ग रोककर लेटा हुआ था. मैंने इसे उठाने के लिए आवाज़ें दीं और ताली बजाई लेकिन यह नहीं उठा. मुझे गली के पार जाना था इसलिए मैंने इसे एक पत्थर मारकर भगा दिया.”
श्रीराम ने साधु से कहा – “एक साधू होने के नाते तो तुम्हें किंचित भी हिंसा नहीं करनी चाहिए थी. तुमने गंभीर अपराध किया है और इसके लिए दंड के भागी हो.” श्रीराम ने साधू को दंड देने के विषय पर दरबारियों से चर्चा की. दरबारियों ने एकमत होकर निर्णय लिया – “चूंकि इस बुद्धिमान कुत्ते ने यह वाद प्रस्तुत किया है अतएव दंड के विषय पर भी इसका मत ले लिया जाए.”
कुत्ते ने कहा – “राजन, इस नगरी से पचास योजन दूर एक अत्यंत समृद्ध और संपन्न मठ है जिसके महंत की दो वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है. कृपया इस साधू को उस मठ का महंत नियुक्त कर दें.”
श्रीराम और सभी दरबारियों को ऐसा विचित्र दंड सुनकर बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने कुत्ते से ऐसा दंड सुनाने का कारण पूछा.
कुत्ते ने कहा – “मैं ही दो वर्ष पूर्व उस मठ का महंत था. ऐसा कोई सुख, प्रमाद, या दुर्गुण नहीं है जो मैंने वहां रहते हुए नहीं भोगा हो. इसी कारण इस जन्म में मैं कुत्ता बनकर पैदा हुआ हूं. अब शायद आप मेरे दंड का भेद जान गए होंगे.”
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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...