जीवन मैं अकेले रहो और मौन रहना शुरू कर दो- Be alone in life and start being silent


 

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परिवार में कलह-क्लेश मचा हो तो क्या करें-What to do if there is discord in the family


 

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अकेले रहो खुद पे काम करो : अकेलेपन की ताकत || Be alone, work on yourself: the power of loneliness


 

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जब एक संत माता जी बोली कि इसका उत्तर उन्हें 24 साल से कहीं नहीं मिला ? Bhajan Marg-When a saint mother said that she could not find the answer anywhere for 24 years


 

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माँ और बेटे के बीच के संवाद-dialogue between mother and son

 आधी रात का समय था, जब निर्मला की नींद अचानक टूट गई। वह अनायास ही अपने बेटे की चिंता में घिर गई। जब उसने देखा कि उसका बेटा, जो अब एक जिम्मेदार और वयस्क पुरुष था, अपनी पत्नी के साथ कमरे में सोने की बजाय, उसी की तरह अपने पुराने बिस्तर पर आड़ा-तिरछा लेटा हुआ है, तो उसकी ममता भरी आँखों में एक अनजाना सा भय तैरने लगा।

माँ और बेटे के बीच के संवाद-dialogue between mother and son

निर्मला के दिल में चिंता की लहरें उठने लगीं। उसने धीरे से बेटे के माथे पर हाथ फेरा और धीमी आवाज़ में पूछा, "बेटा, तू कुछ परेशान सा लगता है...?"

बेटे, जिसका नाम विवेक था, हल्की नींद में ही था। उसने अपनी मां की आवाज़ को पहचानते हुए कहा, "नहीं, मां...," और फिर करवट लेते हुए, माँ के और भी करीब आ गया।

पिछले महीने निर्मला के पति, यानी विवेक के पिता का निधन हो गया था। उस दिन के बाद से निर्मला की नींद में स्थायी हल्कापन आ गया था। वह रातों को बस यूँ ही करवटें बदलती रहती थी। लेकिन इन दिनों, उसे बेटे की बढ़ती बेचैनी ने और भी चिंतित कर दिया था।

निर्मला ने विवेक की ओर फिर से सवाल उछाला, "आजकल तू मेरे पास क्यों आकर सो जाता है? क्या बहू से कोई बात हो गई है?"

विवेक ने इस सवाल को भी टालने की कोशिश करते हुए कहा, "नहीं, माँ... ऐसा कुछ नहीं है।"

निर्मला ने महसूस किया कि बेटा कुछ छिपा रहा है। उसने पास ही रखे तांबे के लोटे से एक घूंट पानी पिया और बिस्तर पर सीधा लेटने की बजाय एक तकिया अपने पीछे रख दीवार का सहारा ले कर बैठ गई। वह बेटे से एकदम साफ-साफ बात करना चाहती थी।

"फिर क्या बात है, बेटा? मुझे बता, तुझे क्या परेशान कर रहा है?" माँ का यह सवाल इस बार एक माँ के आदेश जैसा लगा।

विवेक को मां की घबराहट का अहसास हुआ। उसने अब और कोई बहाना नहीं बनाया और मां के हाथों को अपने सीने पर रखकर बोला, "मां, आपको याद है, जब मैं बड़ा हो रहा था, पापा ने मेरा कमरा अलग कर दिया था?"

"हाँ, बेटा, तुम्हीं ने तो जिद की थी अलग कमरे की," निर्मला ने हल्की मुस्कान के साथ याद दिलाया।

"हां मां, लेकिन फिर भी, जब मैं सो जाता था, आप अक्सर मेरे कमरे में आकर मेरे माथे को सहलातीं और वहीं मेरे बिस्तर पर सो जाती थीं," विवेक ने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी नर्मी और पुरानी यादों की मिठास थी।

"हां, और फिर सुबह तुम मुझसे एक सवाल पूछते थे, याद है?" निर्मला ने बेटे की स्मृतियों को कुरेदने की कोशिश की।

विवेक ने हंसते हुए कहा, "हां मां, याद है। मैं हमेशा आपसे पूछता था, 'क्या आप पापा से नाराज हो?'"

निर्मला की आँखों में एक पुरानी याद की चमक उभर आई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "बिल्कुल सही, बेटा। लेकिन तुझे ऐसा क्यों लगता था कि मैं पापा से नाराज़ हूं?"

आज इतने सालों बाद, शायद निर्मला भी जानना चाहती थी कि उसके बेटे के मन में उस समय क्या चलता था।

विवेक ने माँ के हाथों को और भी मजबूती से पकड़ते हुए कहा, "क्योंकि, मां, मैं आपको हमेशा पापा के साथ देखना चाहता था।"

निर्मला के चेहरे पर इस जवाब ने एक हल्की सी उदासी और सुकून की मुस्कान बिखेर दी। उसने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली, "बेटा, जैसे तुम मुझे और पापा को साथ देखना चाहते थे, वैसे ही मैं भी तुझे और तेरी पत्नी को हमेशा साथ देखना चाहती हूं।"

विवेक ने मां की गोद में सिर रखते हुए कहा, "मां, तब आप पापा को अकेले छोड़कर मेरे पास क्यों आ जाती थीं?"

इस सवाल का जवाब शायद वर्षों से विवेक के मन में कैद था, और आज वह जानना चाहता था कि ऐसा क्यों होता था।

निर्मला ने एक गहरी सांस ली और बोली, "बेटा, मुझे डर लगता था कि अकेले कमरे में तुझे कहीं कोई डर न सताए। मैं तुम्हें सुरक्षित महसूस कराना चाहती थी।"

विवेक की आंखों में हल्की नमी आ गई। उसने धीरे से कहा, "मां, अब जब पापा नहीं रहे, मुझे भी डर लगता है।"

निर्मला को बेटे की इस बात ने भीतर तक झकझोर दिया। उसने बेटे से तुरंत पूछा, "क्यों बेटा, तुझे क्या डर सताता है?"

विवेक की आवाज़ में एक अनकही वेदना थी, "मां, अब मुझे डर लगता है कि कहीं आप अपने अकेलेपन से डर न जाओ। इसलिए मैं आपके पास आ जाता हूं, ताकि आप अकेला महसूस न करें।"

इसके आगे विवेक कुछ कह ही नहीं पाया। उसकी आवाज़ टूट गई और माँ-बेटे एक-दूसरे से लिपट कर रो पड़े। दोनों के आंसुओं में उन सारे अनकहे शब्द और भावनाएं बह गईं, जिन्हें वे शायद कभी कह नहीं पाए थे।

माँ और बेटे के बीच के इस संवाद ने उनकी एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम को और भी गहरा कर दिया था। वे जानते थे कि जीवन के इस मोड़ पर उन्हें एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ना है। और अब, उनके दिलों में बस एक ही ख्याल था—कि वे एक-दूसरे के साथ हमेशा खड़े रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।

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शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?, How appropriate is it to help the daughter after marriage

 "शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?"

शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?, How appropriate is it to help the daughter after marriage

" बेटा ससुराल में सब ठीक है ना दामाद जी का तेरे सास ससुर का सबका व्यवहार कैसा है ?" नवविवाहित बेटी रिया पहली बार मायके आई तो मां साधना जी ने पूछा।

" हां मां सब ठीक है !" बेटी बोली।

" कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकती हो  !" साधना जी फिर बोली।

" वो मम्मी वहां पर ऑटोमेटिक गैस चूल्हा नहीं है वही पुराने फैशन का चूल्हा है मुझसे वहां खाना नही बनता मम्मी जी से बोला था वो बोली भी जल्दी दूसरा मंगा देंगी पर तब तक परेशानी झेलनी होगी ।" रिया मुंह बनाते हुए बोली।

साधना जी उस वक्त चुप रही पर शाम को जब बेटी ससुराल वापिस जाने लगी तो ....

" मेरी बेटी छोटी सी चीज के लिए परेशानी क्यों झेले !" गैस चूल्हा रिया के हाथ में देते हुए साधना जी बोली और बेटी को गले लगा लिया।

रिया भी खुशी खुशी वापिस चली गई। ससुराल में सास के पूछने पर उसने कहा मम्मी ने दिलाया है तो सास चुप हो गई।

कुछ दिन बाद रिया अपने मायके कुछ दिन रहने आई।

" बेटा गैस चूल्हा सही काम कर रहा है ना अब तो कोई परेशानी नहीं ? " साधना जी ने चाय नाश्ते के बाद बेटी से पूछा।

" हां मम्मी ठीक है पर वहां माइक्रोवेव नही है जो खाना झटपट गर्म हो जाए बार बार गर्मी में गैस के आगे खड़े होकर ही सब काम करने पड़ते हैं !" रिया बोली।

" बेटा इस माइक्रोवेव को भी गाड़ी में रखवा लो!" रिया जिस दिन वापिस जा रही थी उस दिन साधना जी बाहर से आई और ऑटो रिक्शा से माइक्रोवेव उतरवाते हुए बोली।

" पर मम्मी ये आपने क्यों खरीदा !" रिया माइक्रोवेव देख बोली।

" कोई बात नही बेटा तुम यहां रहने आई हो कोई उपहार तो देना ही था तो यही सही !" साधना जी बोली और रिया इस बार भी खुशी खुशी वापिस चली गई।

" साधना मुझे लगता है तुम्हे माइक्रोवेव नही लाना चाहिए था !" साधना के पति श्रीकांत बोले।

" अरे अपनी इकलौती बेटी को ऐसे कैसे परेशान होने दे सकती हूं मैं छोटी सी चीज के लिए !" साधना जी ने कहा और अंदर चली गई।

" बेटा दिवाली आ रही है सबके उपहार तो हमने खरीद लिए तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ ?" साधना जी ने बेटी से फोन पर कहा।

" वो मम्मी यहां फ्रिज छोटा है और पुराना भी अगर हो सके तो ...!" रिया ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

" चलो बेटा मिलते है दिवाली पर!" साधना जी ने ये कह फोन काट दिया। दिवाली के तोहफों के साथ एक डबल डोर फ्रीज लेकर साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के घर पहुंच गए थे।

ऐसे ही वक्त गुजरता गया और रिया अपने घर में कुछ न कुछ चीज की कमी का रोना रोती और साधना जी तुरंत वो चीज उपलब्ध करवा देती। श्रीकांत जी पत्नी को बहुत समझाते पर वो बेटी के मामले में उनकी एक न सुनती।

आज रिया की शादी की दूसरी सालगिरह है साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के ससुराल जाने की तैयारी कर ही रहे थे की रिया वहां आ गई।

" मम्मी पापा पुलकित ( रिया के पति ) को एक गाड़ी खरीदनी है जो दस लाख की है उसके पास पांच लाख तो है क्या पांच लाख आप दे सकते है हम जल्दी ही पैसा लौटा देंगे !" रिया बोली।

" पर बेटा गाड़ी तो हमने दी थी तुम्हारी शादी में फिर अब दूसरी क्यों ?" श्रीकांत जी बोले।

" पापा वो तो सस्ती वाली है पुलकित को लेटेस्ट मॉडल लेना है !" रिया चहकती हुई बोली।

" लेकिन बेटा इतनी बड़ी रकम का इंतजाम तो मुश्किल है 40-50 हजार की बात होती तो अलग बात थी अब तुम्हारे पापा भी रिटायर हो गए हैं !" साधना जी बोली।

रिया नाराज हो घर से चली गई उसे लगा उसके मम्मी पापा पैसा देना नही चाह रहे पापा को रिटायरमेंट का पैसा तो मिला होगा जबकि वो नही जानती थी रिटायरमेंट के पैसे उसकी शादी के कर्ज में चले गए हैं।

" रिया बेटा तुम वापिस क्यों आ गई हो सब ठीक तो है?" दो दिन बाद बेटी को दरवाजे पर देख साधना जी चौंक पड़ी ।

" वो मम्मी पुलकित नाराज है बोलते है गाड़ी में तुम भी तो घूमोगी आधे पैसे का जुगाड मेने कर लिया आधा तुम नही ला सकती क्या अपने मां बाप से वैसे तो वो तुम्हारी सहूलियत को हर चीज देते थे आज मैने बोला तो नखरे दिखा रहे हैं। अपने घर जाओ और पैसे लेकर लौटना!" रिया ने रोते हुए सारी बात बताई।

" बेटा ये तो दामाद जी ने बहुत गलत किया 10-20 हजार की चीज और 5 लाख रुपए में जमीन आसमान का अंतर है !" साधना जी तनिक रोष में बोली।

" पर मम्मी वो बाद में लौटा देंगे ना आप प्लीज अभी दे दो पैसा !" रिया बोली।

" बेटा पैसा है कहां सब तो तुम्हारी शादी के कर्ज चुकाने में खत्म हो गया। हम खुद अपना गुजारा पेंशन से कर रहे हैं ... मैं अभी दामाद जी से बात करता हूं इस बारे में !" श्रीकांत जी वहां आकर बोले और दामाद को फोन लगाया पर उसने उठाया नहीं कई बार कोशिश करने पर भी फोन नही उठा।

" पापा वो नाराज़ है अगर पैसे नही मिले तो वो मुझे घर में नही घुसने देंगे !" रिया रोते हुए बोली।

साधना जी और श्रीकांत जी ने बेटी को दिलासा दिया और शाम को बेटी को लेकर उसके ससुराल पहुंचे पर वहां ताला था। रिया की सास तो बेटे के पास गांव गई हुई थी और पुलकित ऑफिस के काम से दूसरे शहर गया था।

घर वापिस आकर रिया अपने कमरे में जाकर रोने लगी क्योंकि पुलकित ने उसे शहर से बाहर जाने का नही बताया था और अब वो फोन भी नही उठा रहा था। काफी दिन बीत गए पर पुलकित ने उसे फोन नही किया उसे ऐसा लग रहा था वो अकेली है उसका कोई नही हैं। क्योंकि पति ने पैसों के लिए उसकी सुध नहीं ली और उसे लगता था मां बाप पैसा देना नही चाहते।

" साधना ये सब तुम्हारा किया धरा है मैं तुम्हे पहले ही कहता था यूं हर बार बेटी की मदद करना ठीक नहीं तुम्हारे बार बार बेटी को जरूरत का सामान देने से बेटी और दामाद जी को ये लगने लगा है हम कैसे भी करके उन्हे पैसे देंगे ही आज जो तुम्हारी बेटी यूं घर बैठी है उसमे गलती तुम्हारी ही है क्या हो जाता अगर वो साधारण चूल्हा इस्तेमाल करती , छोटा फ्रीज इस्तेमाल करती या बाकी चीजे ना इस्तेमाल करती !" श्रीकांत जी पत्नी से गुस्से में बोले।

" सही कहा आपने मुझे लगा था मैं अपनी इकलौती बेटी की मदद कर रही हूं पर नहीं जानती थी मैं तो उसे पंगु बना रही हूं।  बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे पर अब इसे किसी तरह सुधारिए !" साधना जी दुखी हो बोली।

" चलते है कल समधनजी के पास मुझे यकीन है वो पुलकित को जरूर समझाएंगी !" श्रीकांत जी बोले।

अगले दिन सुबह ही वो रिया को लेकर पुलकित के भाई के घर चले गए । वहां रिया की सास से बात हुई उन्हे नही पता था रिया को पुलकित ने मायके भेज दिया है । हालांकि उन्होंने भी साधना जी और श्रीकांत जी से कहा की आज जो हुआ उसमे कही न कही वो दोनो जिम्मेदार हैं बेटी की शादी की है तो उसे थोड़ा खुद भी संघर्ष करने दीजिए जरूरी नहीं जो पीहर में हो वही ससुराल में भी हो। फिर उन्होंने तुरंत पुलकित को फोन करके आने को कहा शाम तक पुलकित आया और मां की डांट पड़ने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वो रिया को साथ ले गया। साधना जी और श्रीकांत जी अपनी समधन का शुक्रिया अदा करते नही थक रहे थे उनकी समझदारी ने बेटी का घर फिर से बसा दिया।

दोस्तों ऐसा अक्सर होता है बेटी को ससुराल में थोड़ी भी परेशानी हो या किसी चीज की कमी हो माता पिता तुरंत दिला देते हैं । जरूरत बाद में आदत बन जाती है और बेटी दामाद अनावश्यक मांगें करने लगते है जिनको पूरा न करने की दशा में बेटी को परेशानी भी झेलनी पड़ जाती या रिश्तों में खटास आ जाती है। बेटी को उपहार देना गलत नही पर हर बार उसकी छोटी छोटी जरूरतें पूरी करना बच्चों को पंगु बना देता है और उन्हें सहारे की आदत पड़ जाती है। आपने बेटी की शादी की है अब उसका सुख दुख में साथ दीजिए पर कुछ परेशानियों का सामना खुद भी करने दीजिए।

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शुद्धता की जाँच करें-check purity

शुद्धता की जाँच करें-check purity
 

1. जीरा (Cumin seeds)

✨जीरे की परख करने के ल‍िए थोड़ा सा जीरा हाथ में लीजि‍ए और दोनों हथेल‍ियों के बीच रगड़‍िए। 

✨अगर हथेली में रंग छूटे तो समझ जाइए क‍ि जीरा म‍िलावटी है क्‍योंक‍ि जीरा रंग नही छोड़ता। 


👉🏻2. हींग (Hing)

✨हींग की गुणवत्‍ता जांचने के ल‍िए उसे पानी में घोल‍िए। 

✨अगर घोल दूध‍िया रंग का हो जाए तो समझ‍िए क‍ि हींग असली है।

✨ दूसरा तरीका है हींग का एक टुकड़ा जीभ पर रखें अगर हींग असली होगी तो कड़वापन या चरपराहट का अहसास होगा।


👉🏻3. लाल मि‍र्च पाउडर (Red chilli powder)

✨लाल म‍िर्च पाउडर में सबसे ज्‍यादा म‍िलावट की जाती है।

✨ इसकी जांच करने के ल‍िए पाउडर को पानी में डालिए, अगर रंग पानी में घुले और बुरादा जैसा तैरने लगे तो मान ल‍ीज‍िए की म‍िर्च पाउडर नकली है।


👉🏻4. सौंफ और धन‍िया (Fennel & Coriander)

✨इन द‍िनों मार्केट में ऐसी सौंफ और धन‍िया म‍िलता है जिस पर हरे रंग की पॉल‍िश होती है ये नकली पदार्थ होते हैं, 

✨इसकी जांच करने के ल‍िए धन‍िए में आयोडीन म‍िलाएं, 

✨अगर रंग काला हो जाए तो समझ जाइए क‍ि धन‍िया नकली है। 


👉🏻5. काली म‍िर्च (Black pepper)

✨काली म‍िर्च पपीते के बीज जैसी ही द‍िखती है इसल‍िए कई बार म‍िलावटी काली म‍िर्च में पपीते के बीज भी होते हैं। 

✨इसको परखने के ल‍िए एक ग‍िलास पानी में काली म‍िर्च के दानें डालें।

✨ अगर दानें तैरते हैं तो मतलब वो दानें पपीते के हैं और काली म‍िर्च असली नहीं है। 


👉🏻6. शहद (Honey)

✨शहद में भी खूब म‍िलावट होती है। 

✨शहद में चीनी म‍िला दी जाती है, इसकी गुणवत्‍ता जांचने के ल‍िए शहद की बूंदों को ग‍िलास में डालें,

✨ अगर शहद तली पर बैठ रहा है तो इसका मतलब वो असली है नहीं तो नकली है। 


👉🏻7. देसी घी (Ghee)

✨घी में म‍िलावट की जांच करने के लिए दो चम्‍मच हाइट्रोक्‍लोर‍िक एस‍िड और दो चम्‍मच चीनी लें और उसमें एक चम्‍मच घी म‍िलाएं। 

✨अगर म‍िश्रण लाल रंग का हो जाता है तो समझ जाइए क‍ि घी में म‍िलावट है। 


👉🏻8. दूध (Milk)

✨दूध में पानी, म‍िल्‍क पाउडर, कैम‍िकल की म‍िलावट की जाती है।

✨ जांच करने के ल‍िए दूध में उंगली डालकर बाहर न‍िकाल‍ लीज‍िए। 

✨अगर उंगली में दूध च‍िपकता है तो समझ जाइए दूध शुद्ध है। अगर दूध न च‍िपके तो मतलब दूध में म‍िलावट है।

 

👉🏻9. चाय की पत्‍ती (Tea)

✨चाय की जांच करने के ल‍िए सफेद कागज को हल्‍का भ‍िगोकर उस पर चाय के दाने ब‍िखेर दीज‍िए।

✨ अगर कागज में रंग लग जाए तो समझ जाइए चाय नकली है क्‍योंक‍ि असली चाय की पत्‍ती ब‍िना गरम पानी के रंग नहीं छोड़ती। 


👉🏻10. कॉफी (Coffee)

✨कॉफी की शुद्धता जांचने के ल‍िए उसे पानी में घोल‍िए। 

✨शुद्ध कॉफी पानी में घुल जाती है, लेक‍िन अगर घुलने के बाद कॉफी तली में च‍िपक जाए तो वो नकली है।🙋‍♂

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problems in relationships #बेड_टच_गुड_टच

 problems in relationships#बेड_टच_गुड_टच

problems in relationships #बेड_टच_गुड_टच

यदि आपने गौर किया हो तो देखा होगा घर में छोटे बच्चों में जो लड़की है वो अपने रहन सहन खास तौर पर कपड़ो को लेकर बेहद चौकन्नी होती है।

जिन घरो में छोटी लड़कियों को फ्राक पहनाई जाती है वे अबोध बच्चियाँ जब बैठती है तो बड़े सलीके से अपनी फ्राक को ठीक करके बैठती है जबकि उसी आयु का लड़का कपड़ो को लेकर लापरवाह होता है।

फ्राक ठीक करके बैठना उसे किसीने सिखाया नही पर  मर्यादा और लज्जा का गुण उसे जन्मजात मिला होता है जो इस कार्य के लिए उसे प्रेरित करता है।  पर आजकल होता यह है की "नारी स्वातन्त्र्य" के मारे माता पिता उसे छोटे और जगह जगह से कटे फटे फैशनेबल डिजाइनर कपडे दिलवा कर उसकी नैसर्गिक लज्जा प्रवत्ति को खत्म कर देते है। जब बाल्यकाल में ही स्पर्श की उसकी नैसर्गिक अनुभूति को  क्षीण कर दिया जाएगा तो निश्चित ही किशोरावस्था तक आते आते उसे अस्वीकार्य माने जाने वाला किसी भी तरह का स्पर्श उसको असहजता पैदा नही करेगा।

पहले किसी लड़की के कंधे को हाथ लगाना भी सम्भव नही था, खुली जांघ पर हाथ मारने के परिणाम की तो आप कल्पना भी नही कर सकते। पर चूँकि योजना बद्ध ढंग से इसी तरह के कपड़े फैशन में आ रहे जो ख़ास तौर पर शरीर के इन्ही संवेदन शील हिस्सों को विपरीत लिंगी स्पर्श का मौक़ा देते है जो एक समय बाद लड़की के अंतर्मन में निर्लज्जता की अवस्था को पैदा कर देते है। जब कोई पुरुष किसी स्त्री के वक्ष पर दृष्टिपात करता है तो स्त्री के हाथ यंत्रवत स्वयमेव अपनी साड़ी के पल्लू या चुनरी को ठीक करने के लिए सक्रिय हो जाते है उसके हाथो को ये आदेश उसके अंतर्मन से सीधे प्रसारित होते है उसे इसके लिए सोचने की आवश्यकता नही पड़ती।

अगर आपके घर में गाय या बैल हो तो आपको पता ही होगा की कोई अपरिचित अगर गाय के कंधो या पुट्ठों को छु ले तो वो गुस्सा हो जाती है! 

आखिर  क्यों ?

......... ...... ......... ...... ......... ...... ..... ..... .....

इसीलिए क्योंकि गाय के वे अंग सबसे संवेदनशील और ऊर्जा भरे होते है जो उसके पानीदार होने का प्रमाण देते है।  अच्छा होगा की हम नादान बच्चियों को  स्कुल में "गुड टच बेड टच" का ज्ञान देकर आत्मसम्मान की रक्षा का पाठ पढ़ाने के बजाय उसे नैसर्गिक रूप से मिले शील लज्जा और मर्यादा के पवित्र भावो को विकसित करने पर ध्यान दें

ताकि विवाहित अवस्था में उसे शीलवती विशेषण के साथ सम्मानजनक जीवन का आनंद मिल सके।

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बहू के साथ किए गए व्यवहार-treatment done to daughter-in-law

 नई नवेली बहू के साथ किए गए व्यवहार, चाहे अच्छा हो या बुरा बहू या पत्नी जिंदगी भर नहीं भूल पाती.....

बहू के साथ किए गए व्यवहार-treatment done to daughter-in-law

बुरे व्यवहार की चोट इतनी गहरी होती है बाद में किए गए अच्छे से अच्छा व्यवहार उस चोट को भर नहीं पाते
और अच्छे किए व्यवहार का कर्ज जीवन भर उतारती है......
मेरी सोसाइटी में एक आंटी है उनके बहु बेटे भी हैं जो कि
बाहर रहते हैं....
कहने को पढ़े लिखे एक रिटायर्ड अधिकारी की पत्नी हैं खुद भी डबल M A हैं आज की स्थिति ये है वो क्या हैं??
उनका अस्तित्व क्या है उनका वजूद क्या है यहां तक कि उनकी पहचान उनके नाम से भी है भूल चुकी होती हैं
हम लोग आपस में बातें करते हैं हंसते हैं और वो अपने बंद गेट की घर की खिड़कियों से देखती रहती है
उनके अंदर की एक अच्छी खासी जिन्दगी खत्म सी नज़र आती है.....
मुझे लगता है एक पत्नी की जिंदगी बनाने और खत्म करने में पति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है .......!!
आइये जानें कुछ भावनात्मक बातें नई नवेली बहू की.......
कुछ सहमी सी,सिमटी सी,सकुचाई सी
नए घर में,नए लोग के बीच प्रवेश करती है
ये जानते हुए,आगे का जीवन
इसी घर में ,इन्ही लोगो के बीच बिताना है
बचपन से बताया गया घर जो उसका है,उसे छोड़
बड़े अरमानों के साथ बड़े सालों बाद
अपने (ख़ुद) घर में प्रवेश करती है.....
अपना घर कौन सा अपना घर
यहां तो पराए घर से आई हो!!
ये बता दिया जाता है.....
रोज का निवाला भी किराए का हो जाता है
सारे अरमान,सारे सपने,बंद पड़े किसी अंधेरे
कमरे में,दिल के किसी,छोटे से कोने में दफन
कर दिया जाता है,
कुछ भी अपना नहीं रह जाता है,कपड़े,गहने,
पति भी अपना नहीं हो पाता है.....
गहने ससुर के लॉकर में,कपड़े सास की अरमारी में,
और पति मां के पल्लू में.....
पूछती हूं उस पति से क्यूं ब्याह के लाते हो ????
जब संभाल नहीं पाते,सामंजस्य बिठा नहीं पाते
जब स्थान,अधिकार,दिला नहीं पाते ??
बड़े जिम्मेदारी से,किसी का जीवन तुम्हे सौंपा जाता है
अपने ही घर में पत्नी को सम्मान दिला नहीं पाते हो!
अपनत्व दे नहीं पाते,घर की लक्ष्मी तो दूर
एक इंसान की भी अहमियत दिला नहीं पाते हो !!
जब उसे (बहू)महसूस होता है मेरी आवाज मुझे ही बनना होगा,
मेरा सम्मान,स्थान,मुझे ही पाना होगा,मेरे अधिकारों को
खुद ही पाना होगा.......
तो उसे आधुनिक महिला होने का कटाक्ष
उसके चरित्र का वर्णन,उसके मायके में
मां के चरित्र का वर्णन कर कर के,घर में और अकेला
कर दिया जाता है
और इस तरह एक अच्छी खासी हंसती खेलती जिंदगी
को खत्म करने का,
जिम्मेदार ससुराल में सिर्फ और सिर्फ पति होता है ।।
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भारत में ‘गुरुकुल शिक्षा पद्धति’ - Gurukul education system in India

 

भारत में ‘गुरुकुल शिक्षा पद्धति’ - Gurukul education system in India

गुरुकुल शिक्षा प्रणाली  रेजिडेंशियल (residential) शिक्षा प्रणाली का रूप थी, जहां छात्र टीचर या आचार्य के घर यानी गुरुकुल में रहते थे, जो शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। इस शिक्षा प्रणाली का आधार अनुशासन और मेहनत थे। छात्रों से अपेक्षा की जाती थी कि वो अपने गुरुओं से सीखें और इस जानकारी को जीवन में इस्तेमाल भी करें। इसमें छात्र और टीचर का रिश्ता बहुत पवित्र होता था और अकसर इसमें किसी तरह का भुगतान नहीं किया जाता था। हालांकि छात्र टीचर को उनके सहयोग के लिए गुरुदक्षिणा जरूर दिया करते थे। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की शुरुआत वैदिक काल में हुई जब किसी भी तरह की शिक्षा प्रणाली नहीं हुआ करती थी। लेकिन स्किल बेस्ड (skill-based) शिक्षा के साथ वेद, पुराण आदि से सीखने का चलन जरूर था। ये अध्यात्मिक किताबें छात्रों को उनकी जानकारी बढ़ाने में मदद करती थीं।

भारत में ‘गुरुकुल शिक्षा पद्धति’ की बहुत लंबी परंपरा रही है । गुरुकुल में विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे । तपोस्थली में सभा, सम्मेलन और प्रवचन होते थे जबकि परिषद में विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी । गुरु के समीप्य में रहनेवाला विद्यार्थी उनके कुल के सदस्य के समान ही रहता था तथा गुरु भी उससे पुत्रवत स्नेह करते थे । गुरुकुल का विद्यार्थी ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हुए शिक्षा ग्रहण करता था । गुरु की सेवा उसका परम कर्तव्य होता था । उसकी निष्ठा के बदले में गुरु भी प्रत्येक शिष्य पर व्यक्तिगत ध्यान देते थे तथा पूरी लगन के साथ उसे विविध विद्याओं और कलाओं की शिक्षा प्रदान करते थे ।

प्राचीन मनीषियों ने गुरु के साथ विद्यार्थी के सानिध्य को समझा और गुरुकुल पद्धति पर बल दिया । गुरु के चरित्र तथा आचरण का विद्यार्थी के मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता था तथा वह उसका अनुकरण करता था । पारिवारिक वातावरण से दूर रहने के कारण उसमें आत्मनिर्भरता विकसित होती थी तथा वह संसार की गतिविधियों से अधिक अच्छा ज्ञान प्राप्त करता था । उससे आत्मानुशासन की प्रवृत्ति का भी विकास होता था । महाभारत में गुरुकुल शिक्षा को गृहशिक्षा से अधिक प्रशंसनीय बताया गया है ।

प्राचीन भारत में शिक्षा पद्धति की सफलता का मुख्य आधार गुरुकुल ही थे जो किसी न किसी महान तपधारी ऋषि की तपोभूमि तथा विद्यार्जन के स्थल थे । प्राचीन काल में गुरुकुल और समाज के मध्य पृथक्करण नहीं था जिसके कारण से तत्कालीन समाज में इस शिक्षा प्रणाली तथा गुरुजनों के प्रति अगाध श्रद्धा थी । गुरु का कार्यक्षेत्र केवल गुरुकुल तक ही सीमित नहीं था अपितु उनके तेजोमय ज्ञान का प्रसार राष्ट्र के सभी क्षेत्रों में था । उनकी विद्वता और उत्तम चरित्र तथा व्यापक मानव सहानुभूति की भावना के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली होती थी । गुरु के आचार-विचार में भेद नहीं होता था । गुरुकुल में प्रवेश पानेवाले शिक्षार्थी के अन्तर्मन में झाँककर गुरु उसकी योग्यता, आवश्यकता एवं कठिनाइयों को भलीभांति समझते थे । गुरुकुलों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में उत्तम मानस का निर्माण करना था । वे विद्यार्थियों में स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति तथा आत्मानुशासन को प्रेरित करते थे । वस्तुतः स्वयं गुरु ही विद्यार्थियों के आदर्श थे जिनसे प्रेरित होकर वे उनका अनुसरण करते थे और संयमी, गम्भीर तथा अनुशासनयुक्त जीवन का निर्माण करते थे । इस कारण से तत्कालीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अत्यन्त प्रशंसनीय और आदरयुक्त थी ।

प्राचीन काल में धौम्य, च्यवन ऋषि, द्रोणाचार्य, सांदीपनि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, गौतम, भारद्वाज आदि ऋषियों के आश्रम प्रसिद्ध रहे । बौद्धकाल में बुद्ध, महावीर और शंकराचार्य की परंपरा से जुड़े गुरुकुल जगप्रसिद्ध थे, जहाँ विश्वभर से मुमुक्षु ज्ञान प्राप्त करने आते थे और जहाँ गणित, ज्योतिष, खगोल, विज्ञान, भौतिक आदि सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी । प्रत्येक गुरुकुल अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध था । कोई धनुर्विद्या सिखाने में कुशल था तो कोई वैदिक ज्ञान देने में, कोई अस्त्र-शस्त्र सिखाने में तो कोई ज्योतिष और खगोल विज्ञान की शिक्षा देने में दक्ष था ।


वेद से प्रारम्भ होकर पुराणोतिहास पर्यन्त भारतीय तत्व चिन्तन चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) पर ही आश्रित दृष्टिगोचर होता है । भारत का समग्र प्राचीन चिन्तन क्रम मानवीय कर्तव्यों तथा उसकी आवश्यकताओं की आध्यात्मिक व्याख्या ही प्रतीत होता है । यह आध्यात्मिकता चार पुरुषार्थों और उसमें भी चरम पुरुषार्थ अर्थात् मोक्ष को ही पाने के लिए उद्वत दिखाई देती है । भारतीय संस्कृति में कहा गया है – सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वही है जो हमें सब बन्धनों से मुक्त कर दे । वस्तुतः मोक्ष की प्राप्ति ही भारतीय जीवन पद्धति की सहज अवधारणा मानी जा सकती है । पौराणिक युग की शिक्षा में यह अवधारणा मानव मात्र के लिए है । किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित अथवा प्रतिबन्धित नहीं दिखाई देती ।

गुरुकुल का अर्थ

गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है। प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था। गुरुकुल के छात्रों को लिए आठ साल का होना अनिवार्य था और पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।


अहम विशेषताएं (Salient Features)

गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अपनी खूबियों के चलते वर्षों से दुनिया को प्रेरित कर रही है। इस सेक्शन में इस शिक्षा प्रणाली की खासियतों और काम करने के तरीके  के बारे में भी बताया गया है। 


शिक्षा संस्कृति और धर्म से प्रभावित थी जो प्राचीन भारतीय समाज के अहम तत्व थे। 

प्रोफेशनल, सोशल, धार्मिक और अध्यात्मिक शिक्षा पर फोकस करते हुए इसमें समग्र (Holistic) शिक्षा पर जोर दिया जाता था। 

गुरुकुल में चुने जाने का आधार बच्चों का ऐटिट्यूड यानी रवैया और मॉरल स्ट्रैंथ यानी नैतिक मजबूती थे जो छात्रों के कंडक्ट या आचरण में नजर आते थे

कला, साहित्य, शास्त्र और दर्शन की जानकारी के साथ छात्रों को व्यावहारिक हुनर भी सिखाए जाते थे और उन्हें अलग-अलग कामों के लिए तैयार किया जाता था। 

गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से छात्र का पूरी तरह से विकास होता था और जोर शिक्षण के साइकोलॉजिकल या मनोवैज्ञानिक तरीके पर होता था। 

गुरुकुल शिक्षा के उद्देश्य

Gurukul Education System कई उद्देश्य पर आधारित थी। यहाँ का मुख्य उद्देश्य ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता है। सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता है। इस शिक्षा प्रणाली से मिले निर्देश छात्रों को अपनी तरह की लाइफ बनाने में मदद करते थे। इस तरह से छात्र को जीवन के कठिन समय में भी खुद को दृढ़ता से खड़े रखने में मदद मिलती थी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के कुछ खास उद्देश्य ये रहे- 

सम्पूर्ण विकास (Holistic Development)

व्यक्तित्व विकास (Personality growth)

आध्यात्मिक जाग्रति (Spiritual Awakening)

प्रकृति और समाज के प्रति जागरूकता (Awareness about nature and society)

पीढ़ी-दर पीढ़ी ज्ञान और कल्चर को आगे बढ़ाना (Passing on of knowledge and culture through generations)

जीवन में सेल्फ कंट्रोल और अनुशासन (Self-control and discipline in life)

अनमोल शिक्षा

यहां पर धर्मशास्त्र की पढ़ाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती है। योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है। यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था। उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !


गुरु के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:| अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।


प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति क्या थी?

प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति में पढ़ने वाले बच्चों को गुरु के यहां जाना होता था। यहां वो गुरू के यहां रह कर ही अपनी पढ़ाई करते थे। वहां जाने वाले बच्चों की आयु 8 से 10 साल होती थी। विद्यार्थी वहीं रह कर गुरु की आज्ञा का पालन करते थे और उनके दिए निर्देशों के अनुसार अपनी शिक्षा लेते थे। गुरुकुल में बच्चों को दिनचर्या के सभी कार्य करने होते थे।

गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की अहमियत (Importance of the Gurukul Education System)

तकनीक के लगातार बदलते आयामों के साथ दुनिया ने फॉरमल एजुकेशन (formal educational) की तरफ थोड़ा और आगे बढ़ा है, जो गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से काफी अलग है। इस प्रणाली का भारतीय क्षेत्र पर एकाधिकार हुआ करता था। इस प्रणाली की अहमियत कई गुना ज्यादा थी। इससे मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम बहुत कुछ सीख सकता है। यहां गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की उन खासियतों की लिस्ट दी जा रही है जिनको बिलकुल भी इग्नोर नहीं किया जा सकता है-


प्राकृतिक वातावरण में अहम जानकारी जिसमें सहायक जानकारी दी जाती थी और इसका समाज पर कोई गलत प्रभाव भी नहीं पड़ता था। 

एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी (extra-curricular ) जैसे खेल, योग और चहलकदमी पर फोकस जिससे छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता था। 

लर्निंग स्किल (learning skills) जैसे क्राफ्ट, डांसिंग या सिंगिंग पर जोर और हर छात्र को उनके पैशन को पहचानने के लिए उत्साहित करना। साथ में उनके स्किल को और विकसित करना। 

छात्रों को अपने रोजमर्रा के काम खुद ही करने होते थे, जिसकी वजह से वह आत्मनिर्भर बनते थे। इस तरह से उन्हें जीवन निर्वाह के लिए जरूरी स्किल सीखने में मदद मिलती थी। 

पर्सनालिटी डेवलपमेंट, बौद्धिकता और आत्म विश्वास पर काम किया जाता था। छात्र अपने विकास के लिए सोचने की योग्यता भी विकसित कर लेते थे। 

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