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‘अहंकारकी अग्निमें, दहत सकल संसार ।’ संत गोस्वामी तुलसीदासजीकी इस उक्तिसे मनुष्यके ‘मैं’पन से हानि स्पष्ट होती है । मनुष्यके ऐहिक एवं पारमार्थिक सुखके मार्गमें अहं एक बहुत बडी बाधा है । अहंका बीज मनुष्यमें जन्मसे ही होता है । इसलिए वह छोटे-बडे, निर्धन-धनवान, सुशिक्षित-अशिक्षित इत्यादि सबमें, न्यूनाधिक मात्रामें अवश्य होता है ।
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