16 September 2011

कबीर के दोहे


माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय। 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥ 

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । 
कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥ 

तिनका कबहुं ना निंदए, जो पांव तले होए। 
कबहुं उड़ अंखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥ 

गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय। 
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥ 

साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। 
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥ 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ 

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और। 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥ 

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। 
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥ 

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। 
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥ 

दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥

नाभि स्पंदन से रोग की पहचान प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धति


डॉ.ए.ए. शर्मा 
नाभि स्पंदन से रोग की पहचान
आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं। नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके।

कैसे होती है नाभि स्पंदन से रोगों की पहचान : 

यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं। बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं। 

यदि यह ज्यादा दिनों तक रहेगी तो स्थायी रूप से बीमारियाँ घर कर लेती हैं। दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा।

नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएँ कम हो जाती हैं। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहते है। यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर सकतीं। 

अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया। 

उपचार पद्धति आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में पूर्व से ही विद्यमान रही है। नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़बड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है। नाभि-नाड़ियों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है। 

यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकता है। इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए। क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।

पैर स्नान : एक श्रेष्ठतम प्रयोग प्राकृतिक चिकित्सा : अनमोल चिकित्सा


डॉ. सुनिता जोशी 
आयुर्वेदिक मसाज
प्राकृतिक चिकित्सा एक अनमोल चिकित्सा है जो रोग के मूल कारणों को दूर करती है। प्राकृतिक चिकित्सा में मौसम व रोगी प्रकृति के अनुसार ठंडे व गर्म प्रयोग को करके आशातीत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गर्म प्रयोगों में गर्म पानी का पैर स्नान है, उक्त प्रयोग कफ जनित रोगों में चमत्कारिक लाभ नहीं देता है, वरन श्रेष्ठ स्वास्थ्य प्रदान करता है। पैर स्नान वाष्प स्नान का श्रेष्ठ विकल्प है। 

सामान्य अवस्था में शरीर से प्रतिदिन 650 मिली पसीना निकलता है, किंतु व्यायाम नहीं करने व कुछ रोम छिद्रों के बंद होने की वजह से शरीर से पूर्ण क्षमता से पसीना नहीं निकलता है व शरीर में निरंतर गंदगी इकट्ठा होती रहती है, इससे विजातीय द्रव्यों के शरीर में अत्यधिक जमाव होने से रोगी हो जाता है। 

प्राकृतिक चिकित्सा मतानुसार मनुष्य शरीर रोगी तभी होता है जब उसमें विजातीय द्रव्यों का जमाव हो जाता है व परिणामस्वरूप मनुष्य अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। गर्म पैर स्नान से शरीर के विजातीय द्रव्यों के निष्कासन में सहायता मिलती है और शरीर रोगमुक्त होने लगता है। 

पैर स्नान के द्वारा शरीर में पसीना आता है जिससे शरीर के रोम छिद्र खुल जाते हैं व पसीने के माध्यम से विजातीय द्रव्य शरीर के बाहर होने लगते हैं। पैर स्नान के प्रयोग के द्वारा शरीर के निचले भाग आँतें, मूत्राशय व पेडु व अन्य कटि प्रदेश के अंगों में रक्त का तेज प्रवाह होता है व पेट के ऊपरी शारीरिक अंगों फेफड़े, हृदय व मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम होता है, गर्म पानी का पैर स्नान करने से हृदय, मस्तिष्क व फेफड़ों में रक्त का प्रवाह कम होता है व शरीर आराम का अनुभव करता है। 

beauty care tips
ND
वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ व आहार-विहार (विचारों) में संयम रखते हुए गर्म पानी का पैर स्नान करते हैं तो चमत्कारिक लाभ मिलता है। यदि रोगी की नाक बहती है और उसे गर्म पानी का पैर स्नान करा दिया जाए तो बहती नाक कुछ ही समय में बहना बंद हो जाती है। तीव्र सर्दी, माइग्रेन, अस्थमा, हृदय रोग व थकान की अवस्था में गर्म पानी का पैर स्नान जादू सा असर करता है। सामान्य अवस्था में इस प्रयोग को करने से शरीर स्फूर्ति का अनुभव करता है। 

इस प्रयोग को अस्थमा रोग की तीव्र अवस्था में भी कराया जाए तो अस्थमा रोगी को तुरंत लाभ मिलता है। अस्थमा रोगी वर्तमान चल रही चिकित्सा को बंद न करें। माइग्रेन (आधाशीशी) दर्द की प्रारंभिक स्थिति में इस प्रयोग को किया जाए तो आशातीत लाभ मिलता है। शारीरिक रूप से थकने पर यदि पैर स्नान किया जाए तो थकान में बहुत राहत मिलती है। 

आयुर्वेदिक मसाज
विधि : दो से ढाई फुट ऊँचाई वाले स्टूल पर बैठ जाएँ व पिंडली की ऊँचाई तक गुनगुने पानी की बाल्टी में पैर रखें। ध्यान रहे कि पानी अत्यधिक गर्म नहीं होना चाहिए, पानी इतना गर्म होना चाहिए कि पैर उसे आसानी से सहन कर सकें, अर्थात पानी का तापमान सामान्य से थोड़ा अधिक होना चाहिए। गर्दन के निचले भाग को कंबल से ठीक प्रकार से लपेट लें, शरीर को इस प्रकार से लपेटें कि गर्दन के निचले हिस्से के अंगों में हवा का प्रवेश न हो सके। सिर पर ठंडे पानी का नैपकीन अवश्य रखें। 

गर्म पानी का पैर स्नान करते समय पास में तेज गर्म पानी रखें व पैर की सहने की क्षमतानुसार धीरे-धीरे पानी बढ़ाते रहें, ताकि शरीर का तापमान बढ़ता रहे व पसीना पर्याप्त मात्रा में आए। इस प्रकार 15 से 30 मिनट तक गर्म पानी में पैर रखें, यदि इसके पूर्व भी जी घबराने लगे व अच्छा न लगे तो तुरंत गर्म पानी पैर से हटा दें। कंबल व नैपकीन हटा दें व 3 मिनट ठंडे पानी में पैर को पिंडली के स्तर तक रखें। 3 मिनट बाद ठंडे पानी के नैपकीन से संपूर्ण शरीर को पोंछ लें। इस क्रिया को करने के बाद 45 मिनट तक हवा में न जाएँ। 

सावधानी : अत्यधिक सर्दी की अवस्था में सिर पर गीला नैपकीन न रखें। उक्त प्रयोग को किसी चिकित्सा विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में करना चाहिए। अत्यधिक रक्तचाप बढ़ा होने, बुखार की अवस्था में, खाली पेट ही इसे करें। भोजन करने के 3-4 घंटे बाद इस प्रयोग को कर सकते हैं। अत्यधिक सर्दी व ठंडक की अवस्था में सिर पर गीले पानी से भीगा नैपकीन न रखें। 

लाभ :इस क्रिया को करने से रक्त संचार पैरों की ओर होने से हृदय व फेफड़ों व मस्तिष्क की ओर रक्त प्रवाह कम होता है और शरीर रोगों से मुक्त हो जाता है। पैर स्नान करने से पैरों का रक्त संचार पर्याप्त होता है व पैरों का दर्द व थकान भी दूर होती है।

लू के होम्योपैथी उपचार चिकित्सा पद्धति


गर्मियों में सबसे बड़ा खतरा लू लगने का होता है। इससे बचाव ही इसका उपचार है। खाली पेट न रहें। पानी अधिक पिएँ। सिर में टोपी पहनें, कान बंद रखें। ककड़ी, प्याज, मौसंबी, मूली, बरबटी, दही, मठा, पुदीना, चना का उपयोग करें। धूप से आकर तुरन्त पानी पीना, नहाना खतरनाक है। मौसम का तापमान बढ़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। इस बिगाड़ का शरीर पर आंतरिक दुष्प्रभाव है लू। तेज बुखार, बेचैनी, असहनीय सिर दर्द, पेशाब न होना, शरीर में जलन, मुँह और गले में सूखापन, तीव्र अवस्था में बेहोशी इसके मुख्य लक्षण हैं। अगर लू लग ही जाए तो होम्योपैथी में इसके असरकारी उपाय हैं। 

होम्योपैथी उपचार 
नैट्रम म्यूर-200- 
शरीर में पानी की व्यवस्था कायम रखना ही इस दवा का काम है। पानी कम होने पर मुँह सूखना, सिर दर्द, चक्कर आना, बुखार, बेहोशी आदि में 5 गोली हर एक घंटे में दें, जब तक कि आराम न हो। रोकथाम के लिए दिन में दो खुराक काफी है। धूप में काम करने वाले मजदूर लोगों के लिए यह दवा अमूल्य है। 

अलियम सेप्पा-200 
शरीर के तापमान की स्थिति बनाए रखना ही इस दवा का मुख्य काम है। रोकथाम के लिए 5 गोली दिन में 2 बार लें। लू लगने पर जैसे तेज बुखार, शरीर में जलन, बेहोशी आदि में 5 गोली हर एक घंटे में दें, जब तक तकलीफ कम न हो। 

नेट्रम म्यूर, अलियम सेप्पा 200 की उक्त खुराक के अलावा अन्य बीमारियाँ होने पर ग्लोनाइन 200, बैलाडोना 200, ब्रायोनिया 200, का उपयोग करें।

सिंगर्स की पहचान, सुरीली आवाज


Health tips in Hindi
अच्छी आवाज व्यक्तित्व का एक हिस्सा होती है। इस संचार के युग में अच्छी वाणी हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। वाणी की मधुरता एवं देखभाल हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी एवं महत्वपूर्ण हो गया है, खासकर व्यावसायिक दृष्टि से वाणी प्रयोग करने वालों को। आवाज ही जिनका व्यवसाय है, आवाज से ही जो अपने प्रोफेशन में प्रसिद्ध हैं और जो आवाज को अपना रोजगार बनाने की चाह रखते हैं, वे यहां दी जा रही बातों पर अमल करें- 

* धूल एवं धूलयुक्त वातावरण से यथासंभव बचें, धूम्रपान न करें। यदि मंच पर धुआं हो तो वेंटीलेशन सिस्टम या धुआं अवशोषित करने वाला यंत्र लगाएं। 

* तेज सर्दी, एक्यूट एलर्जी, नाक-गले या संवेगी संक्रमण के दौरान गायन कार्यक्रम न दें।

* नाक की एलर्जी से ग्रसित लोग धूल, धुएं, माइट्स, फफूंद एवं पराग कण आदि एलर्जन्स को नियंत्रित करने हेतु उपाय करें।

* अधिक मेकअप, बालों के या फिक्सिंग या अन्य प्रकार के स्प्रे बहुत साधवानी से एवं कम उपयोग में लाएं।

* शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही तनाव आवाज को दुष्प्रभावित करते हैं। किसी भी कार्यक्रम प्रस्तुति से पहले पूरी नींद, आराम एवं रिहर्सल जरूर करें। खासकर लंबी हवाई यात्रा के बाद थकान को दूर करना चाहिए।

* गायन, भजन, व्याख्यान एवं बातचीत के दौरान गला न सूखने दें। बीच-बीच में पानी के घूंट पिएं। हल्का, गुनगुना, शहदयुक्त पानी कार्यक्रम के दौरान निरंतर पीते रहें। एक ही समय पर लगातार 45 मिनट से ज्यादा आवाज का प्रयोग न करें।

* भीड़ या अधिक श्रोताओं के समक्ष भाषण देते वक्त माइक्रोफोन का प्रयोग करें। सभागृह की एकोस्टिक्स उपयुक्त हो, इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

* गायकों या व्यावसायिक वाणी प्रयोग करने वालों को भी भीड़ भरी, शोरगुल वाली पार्टियों से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगहों पर जोर-जोर से बात करनी पड़ती है, जिससे स्वर यंत्र पर तनाव आता है। 

* बार-बार गला साफ करने की आदत न डालें, उपयुक्त इलाज लें। जोर-जोर से बोलने, चीखने-चिल्लाने एवं तनावपूर्ण ढंग से आवाज निकालने से बचें। ख्याल रखें कि खेल-खेल में बच्चे अधिक चीखें-चिल्लाएं नहीं। 

* हमेशा तनावरहित, रिलैक्स होकर धीरे-धीरे बात करें। सिर एवं गर्दन को गायन या बोलचाल के दौरान सीधा रखें। यदि गर्दन की मांसपेंशियों में दर्द या ऐंठन है तो मालिश करें।

* हमेशा दो फीट की दूरी से बात करें। फुसफुसाएं नहीं। पेट एवं श्वसन की कसरतें नियमित करें। गाने या बोलने से पूर्व श्वास न रोकें। वजन नियंत्रित रखें, वजन ज्यादा कम करने से आवाज प्रभावित हो जाती है।

Health tips in Hindi
* जब कभी आपकी आवाज कर्कश होती है या फटापन आता है तो बातचीत बिल्कुल कम करें, अतिआवश्यक होने पर धीरे-धीरे बोलें।

* बढ़ती उम्र के कारण आवाज प्रभावित न हो, इस हेतु शारीरिक एवं श्वसन तंत्र की कसरत नियमित करना चाहिए। खान-पान नियमित हो, आवाज का नियमित अभ्यास करें व दांत गिरने का उपयुक्त इलाज करें। 

* व्यावसायिक रूप से वाणी प्रयोग करने वाले हर व्यक्ति खासकर पॉप सिंगर्स को नियमित ईएनटी चेकअप करवाते रहना चाहिए। आवाज-नाक-सायनस-गले एवं दांतों की पीड़ाओं के लिए परामर्श एवं उपयुक्त इलाज कराएं, नाक की एलर्जी है तो रोकथाम के उपाय करें।

यह हानिकारक है 
अनियमित दिनचर्या, खलबली पूर्ण सामाजिक मेल-जोल, फुसफुसाना, चीखना-चिल्लाना, तनावपूर्ण ढंग से आवाज निकालना, बार-बार गला साफ करना। अचानक वजन कम करना, मुंह से श्वास लेना, पंखे के सीधे नीचे या सामने सोना। अधिक मिर्च-मसाले एवं तेलयुक्त खाना, अधिक चाय-कॉफी-शीतलपेय। ज्यादा भूखा रहना।

लाभदायक क्या है 
* दो से अधिक बार खाना (एक समय में भरपेट न खाएं), प्रत्येक बार खान-पान के पश्चात कुल्लें करें, शुद्ध पानी हमेशा साथ रखना, नीबू का रस एवं हर्बल चाय, वातानुकूलित वातावरण, धूल-धुएं से बचना, पेट एवं श्वसन की नियमित कसरत।

फेंगशुई स्पेशल बैम्बू स्टिक



Hindi feng shui tips
फेंगशुई को मानने वालों के अनुसार पेड़ों से आप अपनी किस्मत संवार सकते हैं। सुनने में यह अजीब लगता है, लेकिन इसमें कुछ हद तक सच्चाई है। यह सही है और वास्तव में इससे फायदा होता है। खैर सच्चाई चाहे जो भी हो, इससे आपकी किस्मत सजे या नहीं सजे आपका घर जरूर सजेगा और बेहद खूबसूरत लगेगा। आप ज्यादा मत सोचिए यहां पर किसी दैवीय पेड़ की बात नहीं हो रही है, बल्कि आकर्षक लगने वाले पेड़ बैम्बू स्टिक की बात हो रही है।

पिछले कुछ समय से बाजारों में बैम्बू स्टिक की जमकर बिक्री हो रही है। फेंगशुई के मानने वाले भी इसे खरीद रहे हैं और नहीं मानने वाले भी अपने घरों में इसे रख रहे हैं। यह देखने में बेहद खूबसूरत और आकर्षक लगता है, साथ ही इसकी खासियत है कि रूम के अंदर छोटे से जगह में भी यह सालों तक हरा और ताजा रहता है। लम्बे समय तक हरा और ताजा रखने के लिए सप्ताह में एक बार पानी बदलना जरूरी है। 

फेंगशुई के अनुसार इसे घर के किसी कोने में आप सजा सकते हैं। छोटे वाले बैम्बू स्टिक को टेबल पर रखना ज्यादा पसंद करते हैं, जबकि बड़े वाले को घर के अन्दर कहीं भी रखा जाए, वह खूबसूरत ही लगेगा। वास्तु के हिसाब से बैम्बू स्टिक शुभ होता है, इसलिए लोग अपने घरों में इस पेड़ को रखते हैं। बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस स्टिक को किसी को गिफ्ट देने के लिए भी अच्छा विकल्प है, इस पेड़ को आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को किसी भी मौके पर गिफ्ट कर सकते हैं, क्योंकि यह सस्ता भी है और आकर्षक भी है। तो देर मत कीजिए, बैम्बू स्टिक से अपना घर सजाइए और फेंगशुई से होने वाले फायदों का लाभ उठाइए। 

आजकल अधिकांश लोग अपने कमरों में फूल के पौधे या किसी और सजावटी पेड़ों को लगाने के बजाए बैम्बू स्टिक को लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यह तीन तरह के साइज में मिल रहा है। छोटे वाले बैम्बू स्टिक पॉट की कीमत 50 रुपए, मीडियम साइज वाला 70से 150 रुपए और बड़े 500 से 700 रुपए में मिलता है। 

Hindi feng shui tips
बैम्बू स्टिक के उपयोग में ध्यान रखने योग्य बातें...

खरीदते समय मोलभाव करके खरीदें। 

पेड़ को घर के अन्दर ठंडे जगह पर ही रखें। 

पेड़ को कभी भी धूप न लगने दें। 

पॉट में पानी रखकर ही पेड़ को रखें। 

3-4 दिनों पर पानी बदल दिया करें। 

पॉट में हमेशा ठंडा पानी ही रखें। 

इन कुछेक बातों को ध्यान में रखकर आप बैम्बू स्टिक को अपने लिए उपयोगी बना सकते हैं।

स्वादिष्ट बादाम की शक्तियां बादाम के गुण और प्रयोग


बादाम तेल से कब्ज दूर होती है और यह शरीर को ताकतवर बनाता है।

पूरे परिवार के लिए आदर्श टॉनिक बादाम तेल का सेवन फूड एडिटिव के तौर पर किया जा सकता है।

यह पेट की तकलीफों को दूर करने के साथ आंत की कैंसर में भी उपचारी है।

बादाम तेल के नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल कम होता है। यानी यह दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है।

बादाम मस्तिष्क और स्नायु प्रणालियों के लिए पोषक तत्व है। 

यह बौद्धिक ऊर्जा बढ़ाने वाला, दीर्घायु बनाने वाला है।

मीठे बादाम तेल के सेवन से माँसपेशियों में दर्द जैसी तकलीफ से तत्काल आराम मिलता है।

बादाम तेल का प्रयोग रंगत में निखार लाता है और बेजान त्वचा को रौनक प्रदान करता है। त्वचा की खोई नमी लौटाने में भी बादाम तेल सर्वोत्तम माना गया है।

बादाम के गुण और प्रयोग
शुद्ध बादाम तेल तनाव को दूर करता है। दृष्टि पैनी करता है और स्नायु के दर्द में भी राहत दिलाता है।

विटामिन डी से भरपूर बादाम तेल बच्चों की हड्डियों के विकास में भी योगदान करता है। 

बादाम तेल से रूसी दूर होती है और बालों की साज-सँभाल में भी यह कारगर है। इसमें मौजूद विटामिन तथा खनिज पदार्थ बालों को चमकदार और सेहतमंद बनाते हैं। 


बादाम तेल का इस्तेमाल बाहर से किया जाए या फिर इसका सेवन किया जाए, यह हर लिहाज से उपचारी और उपयोगी साबित होता है। 

बादाम के गुण और प्रयोग
हर रोज रात को 250 मिग्रा गुनगुने दूध में 5-10 मिली बादाम तेल मिलाकर सेवन करना लाभदायक होता है। 

त्वचा को नरम, मुलायम बनाने के लिए भी आप इसे लगा सकते हैं। 

नहाने से 2-3 घंटे पहले इसे लगाना आदर्श रहता है। बादाम तेल की मालिश न सिर्फ बालों के लिए अच्छी होती है, बल्कि मस्तिष्क के विकास में भी फायदेमंद होती है। हफ्ते में एक बार बादाम तेल की मालिश गुणकारी है।

"झगड़े क़ी जड़ हांसी और बीमारी क़ी जड़ खांसी

कहते हैं "झगड़े क़ी जड़ हांसी और बीमारी क़ी जड़ खांसी"। खांसी एक ऐसा लक्षण है, जो एक सामान्य ज्वर से लेकर तपेदिक जैसी बीमारियों में एक लक्षण के रूप में देखा जाता है। यह सूखी और गीली दो प्रकार क़ी हो सकती है। सूखी में रोगी आवाज करता हुआ खांसता है जबकि गीली खांसी में खांसने के साथ कफ निकलता है। कई बार रोगी का खांस-खांस कर इतना बुरा हाल होता है, क़ि खुद के अलावा पड़ोसी क़ी नींद भी दूभर हो जाती है।
कई बार खांसी के रूप में निकलने वाले ड्रॉपलेट्स दूसरों में भी संक्रमण फैला सकते हैं कुछ ऐसे सरल आयुर्वेदिक नुस्खे हैं, जिनसे रोगों क़ी जड़ खांसी को दूर भगाया जा सकता है :-
- शुद्ध घी यदि गाय का हो तो अच्छा को 15-20 ग्राम के मात्रा में लेकर, काली मिर्च के 15-20 नग़ लेकर एक कटोरी में आग पर गर्म करें, जब काली मिर्च कड़कडाने लगे और ऊपर आ जाय तब उतारकर थोड़ा ठंडा कर 20 ग्राम पिसी मिश्री या शक्कर मिला लें ,तक़रीबन आधे मिनट के बाद उतार लें अब थोड़ा गर्म रहने पर ही चीनी या मिश्री के साथ मिलाकर काली मिर्च चबा-चबा कर खा लें, इसके एक घंटे बाद तक कुछ न लें, इस प्रयोग को सोते समय तीन-चार दिन तक लगातार करने से पुरानी से पुरानी खांसी ठीक हो जाती है।
- मिश्री,वंशलोचन, पिप्पली, बड़ीइलाइची, तेजपत्र इन सबको सम मात्रा में शहद या गुनगुने पानी से लेना खांसी को जड़ से मिटाता है।
- वासा क़ी ताज़ी पत्तियों को छोटा-छोटा काटकर इसे निचोड़कर रस निकालकर प्रयोग बलगमयुक्त खांसी के रोगी में अत्यंत लाभकारी है।
- आयुर्वेद में वर्णित सितोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश, वासापुटपक्व स्वरस, तालिशादी चूर्ण आदि कुछ ऐसे नुस्खे हैं जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग कर रोगी खांसी से राहत पा सकता है। बस इतना ध्यान रखें क़ि खांसी की अनदेखी न हो और समय रहते इसके लिए उपाय किये जांय।

कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्ति वान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है।

अपनी कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्ति वान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है। अनेक लोगों ने इसका प्रयोग कर सफलता पाई है। नुस्खा निम्न प्रकार है:

मिश्रण: 50 ग्राम मेथी$ 20 ग्राम अजवाइन$10 ग्राम काली जीरीबनाने की विधिः- मेथी, अजवाइन तथा काली जीरी को इस मात्रा में खरीद कर साफ कर लें। तत्पश्चात् प्रत्येक वस्तु को धीमी आंच में तवे के उपर हल्का सेकें। सेकने के बाद प्रत्येक को मिक्सर-ग्राइंडर मंे पीसकर पाउडर बनालें। तीनों के पाउडर को मिला कर पारदर्शक डिब्बे में भर लेवें। आपकी अमूल्य दवाई तैयार है।

दवाई लेने की विधिः- तैयार दवाई को रात्रि को खाना खाने के बाद सोते समय 1 चम्मच गर्म पानी के साथ लेवें। याद रखें इसे गर्म पानी के साथ ही लेना है। इस दवाई को रोज लेने से शरीर के किसी भी कोने मंे अनावश्यक चर्बी/ गंदा मैल मल मुत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, तथा शरीर सुन्दर स्वरूपमान बन जाता है। मरीज को दवाई 30 दिन से 90 दिन तक लेनी होगी।
लाभः- इस दवाई को लेने से न केवल शरीर मंे अनावश्यक चर्बी दूर हो जाती है बल्किः-

•शरीर में रक्त का परिसंचरण तीव्र होता है। ह्नदय रोग से बचाव होता है तथा कोलेस्ट्रोल घटता है।
•पुरानी कब्जी से होेने वाले रोग दूर होते है। पाचन शक्ति बढ़ती है।
•गठिया वादी हमेशा के लिए समाप्त होती है।
•दांत मजबूत बनते है। हडिंया मजबूत होगी।
•आॅख का तेज बढ़ता है कानों से सम्बन्धित रोग व बहरापन दूर होता है।
•शरीर में अनावश्यक कफ नहीं बनता है।
•कार्य क्षमता बढ़ती है, शरीर स्फूर्तिवान बनता है। घोड़े के समान तीव्र चाल बनती है।
•चर्म रोग दूर होते है, शरीर की त्वचा की सलवटें दूर होती है, टमाटर जैसी लालिमा लिये शरीर क्रांति-ओज मय बनता है।
•स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा कदम आयु भी बढ़ती है, यौवन चिरकाल तक बना रहता है।
•पहले ली गई एलोपेथिक दवाईयां के साइड इफेक्ट को कम करती है।
•इस दवा को लेने से शुगर (डायबिटिज) नियंत्रित रहती है।
•बालों की वृद्धि तेजी से होती है।
•शरीर सुडौल, रोग मुक्त बनता है।
स्वामी रामदेवजी के योग करने से दवाई का जल्दी लाभ होता है।
परहेजः- 1. इस दवाई को लेने के बाद रात्रि मंे कोई दूसरी खाद्य-सामग्री नहीं खाएं।

2. यदि कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है, तम्बाकू-गुटखा खाता या मांसाहार करता है तो उसे यह चीजे छोड़ने पर ही दवा फायदा पहुचाएंगी।

3. शाम का भोजन करने के कम-से-कम दो घण्टे बाद दवाई लें।

(आभारः मानव सेवा केन्द्र, सादड़ी जिला पाली

Feetured Post

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