विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
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फ्रांस और अमेरिका में मिट्टी-स्नान बहुत पहले से ही प्रचलन में है। वहां कम से कम महीने में एक बार स्वस्थ व्यक्ति मिट्टी-स्नान आज भी लेता है। भारत में यह प्रयोग अति प्राचीनकाल से होता चला आ रहा है। पृथ्वी पंच तत्वों में पांचवां और अंतिम तत्व है। यह अन्य चार तत्वों- आकाश, वायु, अग्नि तथा जल का रस है।
'एषां भूतानां पृथ्वी रस'
उपनिषद : श्रुति में पृथ्वी को अन्न भी कहा गया है। उपनिषद में वर्णन मिलता है कि आत्मा से आकाश की उत्पति हुई, आकाश से वायु की, वायु से अग्नि की, अग्नि से जल की, जल से पृथ्वी की, पृथ्वी से औषधि-वनस्पतियों की, औषधि से अन्न की और अन्न से मनुष्य की उत्पत्ति हुई है।
मिट्टी के गुण
मिट्टी जितनी सर्वसुलभ एवं नगण्य समझी जाती है, उसके गुण-गरिमा उतनी ही महान है। इसके प्रमुख गुण निम्नानुसार हैं
सब प्रकार के दुर्गंध को मिटाने में सक्षम।
सर्दी व गर्मी रोकने की शक्ति।
जल को निर्मल करने की अद्भुत शक्ति।
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बड़े से बड़े घाव (फोड़े) को पकाने व भरने की शक्ति।
सांप, बिच्छू आदि के काटने पर विषादि को शोषण करने की शक्ति।
खाद्य पदार्थों को उनमें भिन्न-भिन्न रसों की प्रधानता के साथ उत्पन्न करने की शक्ति।
अग्नि की उष्णता को शांत करने की शक्ति।
रोगों को दूर करने की अपूर्व शक्ति।
विलक्षण विद्युत शक्ति होने से जीवन-शक्ति का संचार।
मिट्टी के बर्तनों में रखा भोजन अधिक समय तक खराब नहीं होता।
नेत्र ज्योति बढ़ाने की अद्भुत शक्ति (नंगे पांव चलने से)।
* प्रातः काल सूर्योदय से एक घंटा पहले उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर 15-20 मिनट व्यायाम या योगासनों का अभ्यास करने से सुस्ती व शिथिलता मिट जाती है और शरीर में चुस्ती-फुर्ती तथा तबीयत में ताजगी आ जाती है, जिससे पढ़ाई में मन लगता है और पाठ अच्छी तरह याद होता है।
* सूर्योदय से पहले नित्यकर्मों से निवृत्त होने का उद्देश्य यह है कि वातावरण में सूर्य की गरमी फैले इससे पहले ही शौच क्रिया द्वारा मल शरीर से बाहर हो जाए और शीतल जल से स्नान करने से रात को सोने के कारण शरीर में बढ़ी गरमी दूर हो जाए, ताकि मलाशय, अमाशय, पाकाशय, मूत्राशय, शुक्राशय आदि पर व्याप्त हो जाने वाली अतिरिक्त उष्णता कम हो जाए।
* शरीर में अतिरिक्त उष्णता का होना या बढ़ना शरीर और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। सूर्योदय के बाद तक भी जो सोए रहते हैं, उनके शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग बढ़ी हुई गरमी से ग्रस्त तो होते ही हैं, ऊपर से वातावरण में व्याप्त सूर्य की गरमी उसमें और वृद्धि कर देती है, इससे कई व्याधियां उत्पन्न होती हैं।
* नित्यकर्म (मुख धोना (दन्त-मंजन करना), शौच जाना और स्नान करना) तथा व्यायाम से निवृत्त होकर पानी में भिगोए हुए चनों को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। यह अत्यन्त पौष्टिक और बलवर्द्धक नाश्ता है।
* अपनी पढ़ाई करके स्कूल या कॉलेज का जो भी समय हो, उसके अनुसार सुबह-शाम के भोजन का समय निश्चित कर लें और निश्चित समय पर ही भोजन किया करें। भोजन करते समय मन को भोजन पर ही एकाग्र रखें, ताकि प्रत्येक कौर खूब अच्छी तरह से चबा-चबाकर निगल सकें।
* भोजन करते समय बातचीत करना इसीलिए वर्जित किया गया है, ताकि ध्यान भोजन पर और खाई जा रही तथा चबाई जा रही वस्तु पर ही केन्द्रित रहे। इस विधि से भोजन करने से पाचन ठीक होता है, अपच और कब्ज नहीं होती और गैसेज की शिकायत भी उत्पन्न नहीं होती। खाय-पिया अंग लगता है, जिससे शरीर पुष्ट, सुडौल और बलवान होता है।
* शाम को थोड़ा समय खेलकूद और मनोरंजन के लिए निश्चित रखें। टी.वी. ज्यादा न देखें, सिर्फ ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम ही देखें, ताकि नेत्र ज्योति खराब न हो और व्यर्थ समय नष्ट न हो। शाम का भोजन सोने से तीन घंटे पहले कर लिया करें, ताकि ठीक से हजम हो सके। सोते समय एक गिलास ठंडा किया हुआ दूध पी सकें तो अवश्य पिया करें। यदि आपका शरीर दुबला हो तो इसमें 1-2 चम्मच शहद घोलकर पिया करें। सोने से पहले कुल्ले (दन्त मंजन) करके मुंह साफ करना जरूरी है।
* शाम को 2-3 घंटे पढ़ाई करके 10 से 11 बजे के बीच सो जाया करें। सोते समय दिमाग से सोच-विचार हटाने के लिए अपनी सांस आने-जाने पर ध्यान लगाया करें। इससे नींद जल्दी और गहरी आती है। सोने से पहले हाथ, पैर, मुंह धो लिया करें। सोते समय यह संकल्प करें कि सुबह इतने बजे उठना है। इससे बिना अलार्म के भी ठीक उसी वक्त आपकी नींद खुल जाया करेगी, जितने बजे उठने का संकल्प करेंगे।
* यह कार्यक्रम मोटे तौर पर छात्र-छात्राओं के लिए विद्यार्थी के रूप में तो उपयोगी है ही, जो छात्र-छात्रा नहीं हैं, ऐसे युवक-युवती भी अपने-अपने दैनिक कार्य करते हुए इस कार्यक्रम पर अमल कर सकते हैं, क्योंकि इतना अमल करना सभी के लिए सांझे रूप से उपयोगी एवं स्वास्थ्यरक्षक सिद्ध होगा।
द्वंद्व का सामान्य अर्थ होता है दिमाग में दो तरह के विचार के बीच निर्णय नहीं ले पाना। जैसे उदाहरण के तौर पर कभी ईश्वर के अस्तित्व को मानना और कभी नहीं। कभी किसी को या खुद को गलत समझना और कभी नहीं। अनिर्णय की स्थिति में चले जाना या सही व गलत को समझ नहीं पाना। यदि इस तरह की स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो यह मस्तिष्क विकार का कारण बन जाती है। द्वंद्व का जितना असर मस्तिष्क पर पड़ता है उससे कहीं ज्यादा असर शरीर पर पड़ता है। द्वंद्व हमारी सेहत के लिए खतरनाक है।
जिनके दिमाग में द्वंद्व है, वह हमेशा चिंता, भय और संशय में ही जीते रहते हैं। प्यार में भय, परीक्षा का भय, नौकरी का भय, दुनिया का भय और खुद से भी भयभीत रहने की आदत से जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है, आनंद नहीं। इनसे दिमाग में द्वंद्व का विकास होता है जो निर्णय लेने की क्षमता को खतम कर देता है। इस द्वंद्व की स्थिति से निजात पाई जा सकती है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए द्वंद्व से मुक्त होना आवश्यक है।
*कैसे जन्मता है द्वंद्व : बचपन में आपके ऊपर प्रत्येक तरह के संस्कार लादे गए हैं, आप खुद भी लाद लेते हैं। फिर थोड़े बढ़े हुए तो सोचने लगे, तब संस्कारों के खिलाफ भी सोचने लगे, क्योंकि आधुनिक युग कुछ और ही शिक्षा देता है, लेकिन फिर डर के मारे संस्कारों के पक्ष में तर्क जुटाने लगे। इससे आप तर्कबाज हो गए। अब दिमाग में दो चीज हो गई- संस्कार और विचार।
फिर थोड़े और बढ़े हुए तो कुछ खट्टे-मिठे अनुभव भी हुए। आपने सोचा की अनुभव कुछ और, बचपन में सिखाई गई बातें कुछ और है। अब दिमाग में तीन चीज हो गई- संस्कार, विचार और अनुभव। संस्कार कुछ और कहता है, विचार कुछ और और अनुभव कुछ और। इन तीनों के झगड़ने में ज्ञान तो उपज ही नहीं पाता और द्वंद्व बना रहता है।
*द्वंद्ध से मुक्त का उपाय :
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।- योगसूत्र
चित्तवृत्तियों का निरोध करना ही योग है। चित्त अर्थात बुद्धि, अहंकार और मन नामक वृत्ति के क्रियाकलापों से बनने वाला अंत:करण। चाहें तो इसे अचेतन मन कह सकते हैं, लेकिन यह अंत:करण इससे भी सूक्ष्म माना गया है। इस पर बहुत सारी बातें चिपक जाती है।
दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रियाकांड, ग्रह-नक्षत्र, लालच और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। उन्होंने अलग-अलग धार्मिक स्कूल खोल रखें हैं। पातंजलि कहते हैं कि इस चित्त को ही खत्म करो। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
चित्त को राह पर लाने के लिए प्रतिदिन 10 मिनट का प्राणायाम और ध्यान करें। तीन माह तक लगातार ऐसा करते रहने से दिमाग शांत और द्वंद्व रहित होने लगेगा। जब भी कोई विचार आते हैं अच्छे या बुरे दोनों की ही उपेक्षा करना सिखें और व्यावहारिक दृष्टिकोण को अपनाएं अर्थात सत्य समझ और बोध में है विचार में नहीं।
*योगा पैकेज : आहार का शरीर से ज्यादा मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है, तो आप क्या खाते हैं इस पर गौर करें। अच्छा खाएँ और शरीर की इच्छा से खाएँ, मन की इच्छा से नहीं। यौगिक आहार को जानना चाहें तो अवश्य जानें। आहार के बाद आसन के महत्व को समझें और तीसरा प्राणायाम व ध्यान नियमित करें। आसन से शरीर, प्राणायाम-ध्यान से मन-मस्तिष्क और आहार से दोनों का संतुलन बरकरार रहेगा।
1> जब 10 सेकण्ड मुस्कुराने से आपकी तस्वीर सुन्दर आ सकती है,
तो हमेंशा मुस्कुराने से... जीवन सुन्दर क्यों नहीं बन सकता ?
हमेंशा प्रसन्न रहो... दूसरों को सुख दो...
2> आप अच्छे हो.. जब आप अपनी गलतियों को ढूंढ कर उन्हें सुधार लेते हो..
आप और भी अच्छे हो.. जब आप औरों की गलतियों को सहन करके भी उसके प्रति द्वेष नहीं
करते.
3> अपने निर्णयों के संग्रह का नाम ही जीवन है.
भूतकाल के निर्णयों को हम बदल नहीं सकते.. पर भविष्य में योग्य निर्णय ले तो सकते
हैं.
4> किसी भी प्रकार की चिंता आनेवाले कल की समस्या का समाधान नहीं करती.. बल्कि हमारे
आज की शांति को नष्ट कर देती है... इसीलिए केवल चिंतन करो.. चिंता नहीं.
5> जब तक समुद्र का पानी जहाज में प्रवेश नहीं करता.. वो जहाज को नहीं डुबा सकता..
उसी प्रकार... निराशा भी जब तक हमारे भीतर प्रवेश नहीं करती.. वो हमें नष्ट नहीं
कर सकती
6>यदि वाणी मधुर हो तो संसार की किसी को भी वश में किया जा सकता है.. नहीं तो सभी
शत्रु बन जाते है.
7> आईना मेरा सबसे अच्छा मित्र है.
क्योंकि... जब भी मै उसके आगे रोता हूँ, वो मुझे देखकर कभी भी नहीं हँसता.
आज विश्व की आबादी के 90 प्रतिशत व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित है जो अनियमित भोजन, अनियमित दिनचर्या के साथ फास्ट फूड अत्यधिक प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से एसिडिटी, गैस, उच्च रक्तचाप, मोटापा तथा मधुमेह जैसे रोग के साथ हृदय रोग की उत्पत्ति करता है, जिसमें एंजायना पेन, हार्ट अटैक, आर्टी चोक, ब्लडप्रेशर जैसे प्रमुख रोग हैं।
प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से कोलस्ट्रॉल की उत्पत्ति होती है जो रक्तवाहिनी के शिराओं में मोम की तरह जमा होकर रक्त के प्रवाह में बाधा उत्पन्न कर साँस लेने में कठिनाई पैदाकर एंजायना पेन को जन्म देता है। इसमें यकृत (लीवर) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जो प्रोटीन, ग्लूकोज आदि पदार्थों को घुलनशील बनाकर स्वास्थ्य के उपयोगी बनाती है। आर्टी चोक में 60 से 85 प्रतिशत रोगी आयुर्वेद के उपचार तथा खानपान को नियंत्रित कर बिना किसी शल्यक्रिया के आजीवन स्वास्थ्य रह सकते हैं।
अनियमित खानपान तथा लंबे समय तक कब्ज की स्थिति में जब भोजन का पाचन नहीं होता और भोजन आमाशय तथा अन्य पाचन अंगों में एकत्र होकर सड़न पैदा कर देता है जिससे एक प्रकार के विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है और वह रक्त के साथ यूरिन एसिड में परिवर्तित होकर गुर्दों में जाकर छनन क्रिया में बाधा उत्पन्न कर देता है।
जब किडनी से छनन क्रिया भरपूर ढंग से नहीं हो पाती तो यूरिया, प्रोटीन तथा अन्य द्रव्य रक्त के साथ हृदय में पहुँच जाते हैं जिससे रक्त में गाढ़ापन आ जाता है। नतीजतन आँखों के नीचे, पैरों में तथा घुटनों में सूजन के साथ-साथ संधिवात तथा उच्चरक्त चाप की वृद्धि हो जाती है।
ऐसी स्थिति में एलोपैथी चिकित्सक लेसिक्स तथा अन्य हाई डोज दवाएँ देते हैं जिससे रोगी में पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है। इससे प्रोटीन कैल्सियम जैसे आवश्यक तत्व शरीर से बाहर हो जाते हैं और रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है और तब रोगी को प्रोटीनयुक्त पदार्थ तथा इंजेक्शन देना पड़ता है।
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किंतु आयुर्वेद में सामान्य रूप से अरंड तेल की 25 एमएल की मात्रा से उसकी स्थिति ठीक हो जाती है और सारे लक्षण स्वतः समाप्त हो जाते हैं। इसी तरह लंबे समय तक बढ़ा हुआ रक्तचाप हृदयवृति या हृदय प्रसार को जन्म देता है जिससे हृदय का निचला हिस्सा बढ़ जाता है।
परिणाम यह होता है कि शुद्ध रक्त फेफड़ों तथा मस्तिष्क में भेजने वाले वॉल्व जल्दी नहीं खुल पाते जिससे रोगी साँस लेने में कठिनाई का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में रोगी को धीरे-धीरे तथा लंबी साँस के साथ दोनों हाथ ऊपर-नीचे करने चाहिए जिससे वॉल्व खुल जाते हैं तथा रक्त का संचार होने लगता है और रोगी राहत महसूस करता है। खानपान भोजन के साथ अदरख, लहसुन, सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग, तेजपत्ता, सेंधा नमक का उपयोग करें। रात्रि में दूध में उबलते समय छोटी पीपल, जायफल तथा हल्दी का चूर्ण 2-2 ग्राम केशर के साथ डालकर सोने से पूर्व प्रयोग करें। खानपान में पुराना गेहूँ, जौ, चना (देशी) अंकुरित दालें, मूँग की दाल, मसूर की दाल, सेम, मटर की फली, बींस, फलों में पपीता, अनार, मुनक्का, अँगूर आदि पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं।
ये घुलनशील रेशेदार खाद्य पदार्थ ग्लूकोज, कोलस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं। वहीं प्रातः-रात्रि अर्जुन नाग केशर, दालचीनी, पुष्कर मूल, जटामाँसी तथा गुगलू (शुद्ध) शिलाजीत युक्त औषधि रोगी को रोग मुक्त कर दीर्घजीवी बनाते हैं। परहेज हृदयरोगी मांसाहार, धूम्रपान, शराब, अत्यधिक चाय, कॉफी, फास्ट फूड, जंकफूड, सॉस, तली सब्जियाँ, चिप्स, डिब्बाबंद भोजन, चीज, खोया, मलाई, मक्खन तथा अंडे की जर्दी, नारियल का तेल, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि से बचें। अपने को हृदय रोग से बचाने हेतु तनाव मुक्त प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। शाकाहार, योग तथा प्राणायाम के जरिए निरोग रह सकते हैं।
अनार एक ऐसा फल है जिसके नियमित सेवन से हमें अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। ऐसा माना जाता है कि अनार का जन्मस्थल अरब देश है। अनार खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पाचक और हमारे शरीर में रक्त वृद्धि करने वाला भी होता है। इस फल के दाने लाल मोती जैसे चमकते हैं। ये फल खट्टा मीठा स्वाद लिए होता है। अनुपम गुणों वाला अनार स्वास्थ्यवर्धक फल है। जिसका नियमित सेवन करने से बीमारी पड़ने की संभावना कम हो जाती है और इसके चूर्ण से बीमारियां हमसे कोसों दूर भागती हैं। इसके लगातार सेवन से हम बहुत सी बीमारियों को दूर कर सकते हैं। जैसे- अतिसार- अनार के रस के साथ सौंफ, धनिया और जीरा इनको बराबर मात्रा में पीस कर इनका चूर्ण बनाकर सेवन करें। अथवा अनार के रस में पका हुआ केला मथकर इसका सेवन करें। शरीर में खून की कमी- एनीमिया शीघ्र दूर करने के लिए अनार का रस और मूली का रस समान मात्रा में मिलाकर पीएँ। कब्जीयत (कब्ज) - अनार के पत्तों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से कब्ज से पीछा छुड़ाया जा सकता है। अजवायन का चूर्ण फाँक कर फिर अनार का रस पीएँ। तो कब्ज से मुक्ति मिलेगी। एसीडिटी (अम्ल पित्त)- अनार रस और मूली का रस समान मात्रा में लेकर उसमें अजवायन, सैंधा नमक चुटकी भर मिलाकर सेवन करने से अम्ल पित्त बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है।
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यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें।
प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है। दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है। दमा/खाँसी में : जवाखार आधा तौला, कालीमिर्च एक तौला, पीपल दो तौला, अनारदाना चार तौला, इन सबका चूर्ण बना लें। फिर आठ तौला गुड़ में मिलाकर चटनी बना लें। चार-चार रत्ती की गोलियाँ बना लें। गरम पानी से सुबह, दोपहर, शाम एक-एक गोली लें। इस प्रयोग से दुःसाध्य खाँसी मिट जाती है, दमा रोग में राहत मिलती है। बच्चों की खाँसी, अनार के छिलकों का चूर्ण आधा-आधा छोटा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से मिट जाती है।
शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें। मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
कत्था, मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए।
अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखने से अथवा केवल गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
अमरूद के कोमल पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में ओंटाकर चतुर्थांश शेष बचे क्वाथ से कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटना चाहिए।
नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
कहने-सुनने में भले ही 'कद्दू' शब्द का प्रयोग व्यंग्यात्मक रूप में किया जाता हो, लेकिन 'व्यंजनात्मक' रूप में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। स्वाद के लिए भी और सेहत के लिए भी। प्रकृति ने अपनी इस 'बड़ी' देन में कई तरह के औषधीय गुण समेटे हैं। इसका सेवन स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इस सब्जी में 'पेट' से लेकर 'दिल' तक की कई बीमारियों के इलाज की क्षमता है। जहां यह हृदयरोगियों के लिए बहुत लाभदायक होती है, वहीं कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक होती है।
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कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है।
कद्दू का रस भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह मूत्रवर्धक होता है और पेट संबंधी गड़बड़ियों में भी लाभकारी रहताहै। यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।
कद्दू के बीज भी बहुत गुणकारी होते हैं। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। यह बलवर्धक, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। शायद इन्हीं खूबियों की वजह से कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है।
हमारे पूर्वजों ने भी कद्दू के इन औषधीय गुणों को बहुत पहले ही पहचान लिया था और यही कारण है कि हमारे देश में, खासतौर पर उत्तर भारत के खान-पान में, इसे विशेष महत्व दिया जाता है। कद्दू को सीताफल, कुम्हड़ा, काशीफल, मीठा कद्दू, चपन कद्दू आदि कई नामों से जाना जाता है।
भारत में कद्दू की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें उनके आकार-प्रकार और गूदे के आधार पर मुख्य रूप से सीताफल, चपन कद्दू और विलायती कद्दू के वर्गों में बांटा जाता है। हमारे यहां विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर कद्दू की सब्जी और हलवा आदि बनाना-खाना शुभ माना जाता है। उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है।
विभिन्न तरीकों से सबको लुभाने वाला कद्दू अंटार्कटिका के अलावा दूसरे सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। माना जाता है कि कद्दू की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में हुई होगी। इसके सबसे पुराने बीज 7000 से 5000 ईसा पूर्व के हैं। पश्चिमी एशिया में इसका इस्तेमाल मीठे व्यंजन बनाने में किया जाता है। आगरा की प्रसिद्ध मिठाई 'पेठा' भी इसी की प्रजाति की सब्जी से बनाई जाती है। अमेरिका, मेक्सिको, चीन और भारत इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं।
आधा पानी रहने पर छान कर स्वाद के अनुसार मीठा मिला कर पी कर करवट लेकर सो जाएं। दिन भर में ऐसी चार मात्रा लें। उल्टियां बंद हो जाएंगी।
चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है। आंत्र ज्वर में लौंग का पानी पिलाएं।
पांच लौंग दो किलो पानी में उबालकर आधा पानी रहने पर छान लें। इस पानी को नित्य बार-बार पिलाएं। केवल पानी भी उबाल कर ठंडा करके पिलाएं।
एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। इस प्रकार तीन बार लेने से सामान्य ज्वर दूर हो जाएगा।
लौंग अग्नि को जगाने वाली, पाचक है। नेत्रों के लिए हितकारी, क्षय रोग का नाश करने वाली है। लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।
खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह, शाम खाने से या शर्बत में लेने से अम्लपित्त से होने वाले सभी रोगों में लाभ होता है और अम्लपित्त ठीक हो जाता है।
15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं।
ऐसी तीन मात्रा सुबह, दोपहर, रात को सोते समय पिलाएं। कुछ ही दिनों में आशातीत लाभ होगा।
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दो लौंग पीस कर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें, फिर कुछ ठंडा होने पर पी जाएं। इस प्रकार तीन बार नित्य करें।
लौंग में अर्क निकाली हुई लौंग मिला देते हैं। यदि लौंग में झुर्रियाँ पड़ी हों तो समझें कि यह अर्क निकाली हुई लौंग है। अच्छी लौंग में झुर्रियां नहीं होतीं।
सावधानी : लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अधिक मात्रा में लौंग का सेवन हानिकारक होता है।
अक्सर हमें या परिवार के सदस्यों को रोजमर्रा के जीवन में स्वास्थ्य-संबंधी छोटी-मोटी समस्याएं घेरे रहती हैं, जिनकी वजह से कई बार तो हमारी रोज जीवनचर्या भी उथल-पुथल हो जाती है। आमतौर पर पाचन, नेत्र, दांत, सिरदर्द, बुखार, त्वचा या मौसम परिवर्तन से संबंधित स्वास्थ्य तकलीफें ऐसी होती हैं, जिनके लिए बार-बार, समय-असमय डॉक्टर के पास जाना या एलोपैथी के गोली-कैप्सूल का प्रयोग करना उचित नहीं होता है। इसलिए दादी-नानी के जमाने से चले आ रहे घरेलू नुस्खों और इलाजों का सहारा लेना सुरक्षित है। रसोई घर में रखी कई चीजें जैसे मसाले, खाद्यान्न, फल-सब्जी, शहद, घी-तेल आदि औषधि का काम भी करते हैं। अतः रसोई घर को 'औषधि का भंडार' कहना गलत नहीं होगा। पेट दर्द- अजवायन, सौंफ और थोड़ा-सा काला नमक मिलाकर चूर्ण बनाकर खाएं। आराम मिलेगा। पेटदर्द गायब हो जाएगा। सिर दर्द- एक कप दूध में पिसी इलायची डालकर पीने से सिरदर्द ठीक हो जाएगा। दांत दर्द- एक चम्मच सरसों के तेल में एक चुटकी हल्दी और नमक मिलाकर दांतों पर लगाने या हलके-हलके मालिश करने से दांत का दर्द दस से पंद्रह मिनट में ठीक हो जाता है।
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घुटनों का दर्द- पानी में अजवायन उबालकर इस अजवायन वाले पानी की भाप घुटनों पर देने से दर्द ठीक होता है। अजवायन के पानी में तौलिया भिगोकर और हलका निचोड़कर उसे घुटनों पर रखकर गर्म सेंक देने से भी दर्द में राहत मिलती है। माइग्रेन- रात में सोने से पहले नाक में गाय के दूध से बने घी की दो-दो बूंदें डालें। इसके अलावा सिर पर गाय के घी की मालिश हलके हाथ से करें। कब्ज- आंवले का चूर्ण बनाकर सुबह-शाम गरम पानी के साथ फांक लें। इसके अलावा कच्चे टमाटर खाएं। संतरे का रस प्रतिदिन पिएं। पिसी हुई अजवायन और सौंफ का मिश्रण भोजन के बाद खाएं। रात को सोते समय गुनगुना पानी पीकर सोएं। सुबह उठकर तांबे के पात्र में रातभर से रखा पानी ही पिएं, लाभ मिलेगा।