"शादी के बाद बेटी की मदद कितनी सही ?"
" बेटा ससुराल में सब ठीक है ना दामाद जी का तेरे सास ससुर का सबका व्यवहार कैसा है ?" नवविवाहित बेटी रिया पहली बार मायके आई तो मां साधना जी ने पूछा।
" हां मां सब ठीक है !" बेटी बोली।
" कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकती हो !" साधना जी फिर बोली।
" वो मम्मी वहां पर ऑटोमेटिक गैस चूल्हा नहीं है वही पुराने फैशन का चूल्हा है मुझसे वहां खाना नही बनता मम्मी जी से बोला था वो बोली भी जल्दी दूसरा मंगा देंगी पर तब तक परेशानी झेलनी होगी ।" रिया मुंह बनाते हुए बोली।
साधना जी उस वक्त चुप रही पर शाम को जब बेटी ससुराल वापिस जाने लगी तो ....
" मेरी बेटी छोटी सी चीज के लिए परेशानी क्यों झेले !" गैस चूल्हा रिया के हाथ में देते हुए साधना जी बोली और बेटी को गले लगा लिया।
रिया भी खुशी खुशी वापिस चली गई। ससुराल में सास के पूछने पर उसने कहा मम्मी ने दिलाया है तो सास चुप हो गई।
कुछ दिन बाद रिया अपने मायके कुछ दिन रहने आई।
" बेटा गैस चूल्हा सही काम कर रहा है ना अब तो कोई परेशानी नहीं ? " साधना जी ने चाय नाश्ते के बाद बेटी से पूछा।
" हां मम्मी ठीक है पर वहां माइक्रोवेव नही है जो खाना झटपट गर्म हो जाए बार बार गर्मी में गैस के आगे खड़े होकर ही सब काम करने पड़ते हैं !" रिया बोली।
" बेटा इस माइक्रोवेव को भी गाड़ी में रखवा लो!" रिया जिस दिन वापिस जा रही थी उस दिन साधना जी बाहर से आई और ऑटो रिक्शा से माइक्रोवेव उतरवाते हुए बोली।
" पर मम्मी ये आपने क्यों खरीदा !" रिया माइक्रोवेव देख बोली।
" कोई बात नही बेटा तुम यहां रहने आई हो कोई उपहार तो देना ही था तो यही सही !" साधना जी बोली और रिया इस बार भी खुशी खुशी वापिस चली गई।
" साधना मुझे लगता है तुम्हे माइक्रोवेव नही लाना चाहिए था !" साधना के पति श्रीकांत बोले।
" अरे अपनी इकलौती बेटी को ऐसे कैसे परेशान होने दे सकती हूं मैं छोटी सी चीज के लिए !" साधना जी ने कहा और अंदर चली गई।
" बेटा दिवाली आ रही है सबके उपहार तो हमने खरीद लिए तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ ?" साधना जी ने बेटी से फोन पर कहा।
" वो मम्मी यहां फ्रिज छोटा है और पुराना भी अगर हो सके तो ...!" रिया ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
" चलो बेटा मिलते है दिवाली पर!" साधना जी ने ये कह फोन काट दिया। दिवाली के तोहफों के साथ एक डबल डोर फ्रीज लेकर साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के घर पहुंच गए थे।
ऐसे ही वक्त गुजरता गया और रिया अपने घर में कुछ न कुछ चीज की कमी का रोना रोती और साधना जी तुरंत वो चीज उपलब्ध करवा देती। श्रीकांत जी पत्नी को बहुत समझाते पर वो बेटी के मामले में उनकी एक न सुनती।
आज रिया की शादी की दूसरी सालगिरह है साधना जी और श्रीकांत जी बेटी के ससुराल जाने की तैयारी कर ही रहे थे की रिया वहां आ गई।
" मम्मी पापा पुलकित ( रिया के पति ) को एक गाड़ी खरीदनी है जो दस लाख की है उसके पास पांच लाख तो है क्या पांच लाख आप दे सकते है हम जल्दी ही पैसा लौटा देंगे !" रिया बोली।
" पर बेटा गाड़ी तो हमने दी थी तुम्हारी शादी में फिर अब दूसरी क्यों ?" श्रीकांत जी बोले।
" पापा वो तो सस्ती वाली है पुलकित को लेटेस्ट मॉडल लेना है !" रिया चहकती हुई बोली।
" लेकिन बेटा इतनी बड़ी रकम का इंतजाम तो मुश्किल है 40-50 हजार की बात होती तो अलग बात थी अब तुम्हारे पापा भी रिटायर हो गए हैं !" साधना जी बोली।
रिया नाराज हो घर से चली गई उसे लगा उसके मम्मी पापा पैसा देना नही चाह रहे पापा को रिटायरमेंट का पैसा तो मिला होगा जबकि वो नही जानती थी रिटायरमेंट के पैसे उसकी शादी के कर्ज में चले गए हैं।
" रिया बेटा तुम वापिस क्यों आ गई हो सब ठीक तो है?" दो दिन बाद बेटी को दरवाजे पर देख साधना जी चौंक पड़ी ।
" वो मम्मी पुलकित नाराज है बोलते है गाड़ी में तुम भी तो घूमोगी आधे पैसे का जुगाड मेने कर लिया आधा तुम नही ला सकती क्या अपने मां बाप से वैसे तो वो तुम्हारी सहूलियत को हर चीज देते थे आज मैने बोला तो नखरे दिखा रहे हैं। अपने घर जाओ और पैसे लेकर लौटना!" रिया ने रोते हुए सारी बात बताई।
" बेटा ये तो दामाद जी ने बहुत गलत किया 10-20 हजार की चीज और 5 लाख रुपए में जमीन आसमान का अंतर है !" साधना जी तनिक रोष में बोली।
" पर मम्मी वो बाद में लौटा देंगे ना आप प्लीज अभी दे दो पैसा !" रिया बोली।
" बेटा पैसा है कहां सब तो तुम्हारी शादी के कर्ज चुकाने में खत्म हो गया। हम खुद अपना गुजारा पेंशन से कर रहे हैं ... मैं अभी दामाद जी से बात करता हूं इस बारे में !" श्रीकांत जी वहां आकर बोले और दामाद को फोन लगाया पर उसने उठाया नहीं कई बार कोशिश करने पर भी फोन नही उठा।
" पापा वो नाराज़ है अगर पैसे नही मिले तो वो मुझे घर में नही घुसने देंगे !" रिया रोते हुए बोली।
साधना जी और श्रीकांत जी ने बेटी को दिलासा दिया और शाम को बेटी को लेकर उसके ससुराल पहुंचे पर वहां ताला था। रिया की सास तो बेटे के पास गांव गई हुई थी और पुलकित ऑफिस के काम से दूसरे शहर गया था।
घर वापिस आकर रिया अपने कमरे में जाकर रोने लगी क्योंकि पुलकित ने उसे शहर से बाहर जाने का नही बताया था और अब वो फोन भी नही उठा रहा था। काफी दिन बीत गए पर पुलकित ने उसे फोन नही किया उसे ऐसा लग रहा था वो अकेली है उसका कोई नही हैं। क्योंकि पति ने पैसों के लिए उसकी सुध नहीं ली और उसे लगता था मां बाप पैसा देना नही चाहते।
" साधना ये सब तुम्हारा किया धरा है मैं तुम्हे पहले ही कहता था यूं हर बार बेटी की मदद करना ठीक नहीं तुम्हारे बार बार बेटी को जरूरत का सामान देने से बेटी और दामाद जी को ये लगने लगा है हम कैसे भी करके उन्हे पैसे देंगे ही आज जो तुम्हारी बेटी यूं घर बैठी है उसमे गलती तुम्हारी ही है क्या हो जाता अगर वो साधारण चूल्हा इस्तेमाल करती , छोटा फ्रीज इस्तेमाल करती या बाकी चीजे ना इस्तेमाल करती !" श्रीकांत जी पत्नी से गुस्से में बोले।
" सही कहा आपने मुझे लगा था मैं अपनी इकलौती बेटी की मदद कर रही हूं पर नहीं जानती थी मैं तो उसे पंगु बना रही हूं। बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे पर अब इसे किसी तरह सुधारिए !" साधना जी दुखी हो बोली।
" चलते है कल समधनजी के पास मुझे यकीन है वो पुलकित को जरूर समझाएंगी !" श्रीकांत जी बोले।
अगले दिन सुबह ही वो रिया को लेकर पुलकित के भाई के घर चले गए । वहां रिया की सास से बात हुई उन्हे नही पता था रिया को पुलकित ने मायके भेज दिया है । हालांकि उन्होंने भी साधना जी और श्रीकांत जी से कहा की आज जो हुआ उसमे कही न कही वो दोनो जिम्मेदार हैं बेटी की शादी की है तो उसे थोड़ा खुद भी संघर्ष करने दीजिए जरूरी नहीं जो पीहर में हो वही ससुराल में भी हो। फिर उन्होंने तुरंत पुलकित को फोन करके आने को कहा शाम तक पुलकित आया और मां की डांट पड़ने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वो रिया को साथ ले गया। साधना जी और श्रीकांत जी अपनी समधन का शुक्रिया अदा करते नही थक रहे थे उनकी समझदारी ने बेटी का घर फिर से बसा दिया।
दोस्तों ऐसा अक्सर होता है बेटी को ससुराल में थोड़ी भी परेशानी हो या किसी चीज की कमी हो माता पिता तुरंत दिला देते हैं । जरूरत बाद में आदत बन जाती है और बेटी दामाद अनावश्यक मांगें करने लगते है जिनको पूरा न करने की दशा में बेटी को परेशानी भी झेलनी पड़ जाती या रिश्तों में खटास आ जाती है। बेटी को उपहार देना गलत नही पर हर बार उसकी छोटी छोटी जरूरतें पूरी करना बच्चों को पंगु बना देता है और उन्हें सहारे की आदत पड़ जाती है। आपने बेटी की शादी की है अब उसका सुख दुख में साथ दीजिए पर कुछ परेशानियों का सामना खुद भी करने दीजिए।