27 February 2013

अनमोल वचन

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सत्यसाई बाबा

चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा
बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो, उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। - सत्यसाई बाबा
मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। - सत्यसाईं बाबा
मन इच्‍छाओं की गठरी है, जब तक इच्‍छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्‍ट करने की आशा व्‍यर्थ होगी। - श्री सत्‍यसाईं
रामकृष्ण परमहंस

जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। - रामकृष्ण परमहंस
नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। - रामकृष्ण परमहंस
महात्मा गांधी

आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए. मानवता एक सागर की तरह है, यदि सागर की कुछ बूंदे ख़राब हैं तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है। - मोहनदास गांधी
आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। - महात्मा गांधी
अपने उसूलों के लिये, मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ, लेकिन किसी को मारने के लिये, बिल्कुल नहीं। - महात्मा गाँधी
अपने लक्ष्य के प्रति अदम्य विश्वास से प्रेरित दृढ़ संकल्पी लोगों का एक छोटा सा समूह भी इतिहास का प्रवाह बदल सकता है। - गांधी
‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती। - महात्मा गांधी
आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्‍फल नहीं होती। - महात्‍मा गांधी
आत्‍मसंयम, अनुशासन और बलिदान के बिना राहत या मुक्ति की आशा नहीं की जा सकती। - महात्‍मा गांधी
आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्‍फल नहीं होती। - महात्‍मा गांधी
अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्‍मा गांधी
अंधा वह नहीं जिसकी आँख फूट गई है, अंधा वह जो अपने दोष ढंकता है। - महात्मा गांधी
जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी
जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है, कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। - महात्मा गांधी
जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर ख़राब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है। - महात्मा गांधी
जो जीना नहीं जानता है वह मरना कैसे जाने? - महात्मा गांधी
जो कला आत्‍मा को आत्‍मदर्शन की शिक्षा नहीं देती, वह कला नहीं है। - महात्‍मा गांधी
जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्‍यता नहीं है, जिनमें योग्‍यता है उनका ध्‍यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्‍मा गांधी
जिसे पुस्‍तकें पढ़ने का शौक़ है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्‍मा गांधी
मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। — महात्मा गाँधी
मैं हिंसा पर आपत्ति उठाता हूँ क्योंकि जब लगता है कि इसमें कोई भलाई है, तो ऐसी भलाई अस्थाई होती है; लेकिन इससे जो हानि होती है वह स्थायी होती है। - मोहनदास करमचंद गांधी (1869-1948)
मन ज्‍यों-ज्‍यों हिंसा से दूर हटता है, त्‍यों-त्‍यों दुख शांत हो जाता है। - महात्‍मा बुद्ध
मौन सर्वोत्‍तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्‍द से काम चले तो दो नहीं। - महात्‍मा गांधी
सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी
सारा हिन्दुस्तान ग़ुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही ग़ुलामी में घिरे हुए हैं। - महात्मा गांधी
सुन्‍दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्‍मा गांधी
किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके विचारों का समूह होता है; जो वह सोचता है, वैसा वह बन जाता है। - महात्मा गांधी
क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है। – महात्मा गांधी
काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्‍मा गांधी
कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्‍यथा हानि होती है। - महात्‍मा गांधी
वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। - महात्मा गांधी
व्यक्ति अपने विचारों का ही परिणाम है - जैसा वह सोचता है, वैसा वह बनता है। - गांधी
विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्‍मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्‍मा गांधी
हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। — महात्मा गाँधी
हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्‍हारे मन की भी। - महात्‍मा गांधी
हृदय की सच्‍ची प्रार्थना से ही हमें सच्‍चे कर्तव्‍य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्‍य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्‍मा गांधी
गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी
गाली सह लेने के असली मायने हैं गाली देने वाले के वश मे न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना. यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी
ग्राहक हमारे लिए एक विशिष्ट अतिथि है। वह हम पर निर्भर नहीं है। हम ग्राहक पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में व्यवधान नहीं है - बल्कि वह इसका उद्देश्य है। हम ग्राहक की सेवा कर कोई उपकार नहीं कर रहे। वह सेवा का मौक़ा देकर हम पर उपकार कर रहा है। - महात्मा गांधी
पाप से नफरत करो, पापी से प्यार। - महात्मा गान्धी (1869-1948)
प्रेम करने वाला व्‍यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्‍याचारी और स्‍वार्थी नहीं होता। - महात्‍मा गांधी
पराजय से सत्‍याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्‍मा गांधी
पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी
शरीर-बल से प्राप्‍त सत्‍ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्‍मबल से प्राप्‍त सत्‍ता अजर-अमर। - महात्‍मा गांधी
चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। - महात्मा गांधी
दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
इच्‍छा से दुख आता है, इच्‍छा से भय, आता है, जो इच्‍छाओं से मुक्‍त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्‍मा गांधी
ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है। – महात्मा गांधी
भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छिपाने में उससे भी बड़ा पाप है। - महात्मा गांधी
नम्रता का ढोंग नहीं चलता, न सादगी का। - महात्मा गांधी
स्वामी विवेकानंद

सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद
भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं। - स्वामी विवेकानंद
पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहयक होता है। - स्वामी विवेकानंद
कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते। - स्वामी विवेकानंद
जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - स्वामी विवेकानंद
जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है। – स्वामी विवेकानन्द
‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। - स्वामी विवेकानंद
मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है। - स्वामी विवेकानन्द
अभय-दान सबसे बडा दान है। — स्वामी विवेकानन्द
कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता? - स्वामी विवेकानन्द
मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। — स्वामी विवेकानन्द
महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं। — स्वामी विवेकानन्द
धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इंसान और फिर भगवान बनाने का सामर्थय रखती है। - स्वामी विवेकांनंद
इच्‍छा रूपी समुद्र सदा अतृप्‍त रहता है उसकी मांगे ज्‍यों-ज्‍यों पूरी की जाती हैं, त्‍यों-त्‍यों और गर्जन करता है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्‍त्र बार, आगे बढ़ों और यदि फिर भी असफल, हो जाओ तो एकबार नया प्रयास, अवश्‍य करो। - स्‍वामी विवे‍कानन्‍द
लक्ष्‍य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर, समय उसका चिंतन करो उसी का स्‍वप्‍न, देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
जितनी हम दूसरों की भलाई करते हैं, उतना ही हमारा ह़दय शुद्ध होता है और उसमें ईश्‍वर निवास करता है। - विवेकानन्‍द
धन से नहीं, संतान से भी नहीं अमृत स्थिति की प्राप्ति केवल त्‍याग से ही होती है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
इस संसार में जो अपने आप पर, भरोसा नहीं करता वह नास्तिक है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
आप ईश्‍वर में तब तक विश्‍वास नहीं, कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्‍वास नहीं करते। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
हमारे व्‍यक्तित्‍व की उत्‍पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्‍यान रखें कि आप क्‍या विचारते हैं, शब्‍द गौण हैं, विचार मुख्‍य हैं और उनका, असर दूर तक होता है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
जिसने अकेले रहकर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। - विवेकानन्‍द
श्रद्धा का अर्थ अंधविश्‍वास नहीं है। किसी ग्रंथ में कुछ लिखा हुआ या किसी व्‍यक्ति का कुछ कहा हुआ अपने अनुभव बिना सच मानना श्रद्धा नहीं है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
जब हर मनुष्‍य अपने आप पर व एक - दूसरे पर विश्‍वास करने लगेगा, आस्‍थावान बन जाएगा तो यह धरती ही स्‍वर्ग बन जाएगी। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
पीछे मत देखो आगे देखो, अनंत उर्जा, अनंत उत्‍साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य तभी महान कार्य, किये जा सकते हैं। - विवेकानन्‍द
अपने सामने एक ही साध्‍य रखना चाहिए, जब तक वह सिद्ध न हो तब तक उसी की, धुन में मगन रहो, तभी सफलता मिलती है। - स्‍वामी विवेकानन्‍द
आपकी सफलता के लिएँ कईं लोग ज़िम्मेदार होंगे मगर निष्फलता के लिएँ सिर्फ आप ही ज़िम्मेदार है। - स्वामी विवेकानंद
उन लोगों के पास न बैठो और उन लोगों को अपने पास न बिठाओ जिनकी बातों से तुम्‍हारे चित्‍त को उद्विग्‍नता और अशान्ति होती है – स्‍वामी विवेकानन्‍द, राजयोग
हर अच्‍छे, श्रेष्‍ठ और महान कार्य में तीन चरण होते हैं, प्रथम उसका उपहास उड़ाया जाता है, दूसरा चरण उसे समाप्‍त या नष्‍ट करने की हद तक विरोध किया जाता है और तीसरा चरण है स्‍वीकृति और मान्‍यता, जो इन तीनों चरणों में बिना विचलित हुये अडिग रहता है वह श्रेष्‍ठ बन जाता है और उसका कार्य सर्व स्‍वीकृत होकर अनुकरणीय बन जाता है। – स्‍वामी विवेकानन्‍द
जागें, उठें और न रुकें जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाएं। - स्वामी विवेकानंद
सुभाष चंद्र बोस

जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस
बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ। - सुभाष चंद्र बोस
तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आज़ादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस
जिस व्‍यक्ति के हृदय में संगीत का स्‍पंदन नहीं है वह व्‍यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्‍द्र बोस
जयशंकर प्रसाद



जयशंकर प्रसाद
पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। - जयशंकर प्रसाद
नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। - जयशंकर प्रसाद
संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है उतनी कटार नहीं। - जयशंकर प्रसाद
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद
मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद
दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद
मनुष्‍यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्‍य, मनुष्‍य के लिए प्‍यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद
कहावत

अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत
वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर मौन दिव्य। - कहावत
जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है। - कहावत
भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती है। - कहावत
धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे स्वयं उड़ते हैं और कभी-कभी अधिक धन लाने के लिए उन्हें उड़ाना पड़ता है। - कहावत
समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी कम कर देते हैं। - कहावत
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है - कहावत
मनुष्‍य के पूर्व कर्मों से प्रारब्‍ध का निर्माण होता है और प्रारब्‍ध से भाग्‍य बनता है, मनुष्‍य के वर्तमान कर्म उसके भविष्‍य का निर्धारण करते हैं। अत: प्राप्ति जितनी सहज हो उसे सहेजना उससे कई गुना दुष्‍कर होता है। - संस्‍कृत की प्राचीन कहावत
तपेश्‍वरी सो राजेश्‍वरी और राजेश्‍वरी सो नरकेश्‍वरी। अर्थात तपस्‍या से राज्‍य अर्थात शासकीय पद प्राप्‍त होता है और राजकीय पद या राज्‍य से नरक की प्राप्ति होती है – एक प्राचीन भारतीय कहावत
समय की रेत पर कदमों के निशान बैठकर नहीं बनाये जा सकते। ~ कहावत
क्रोध की अति तो कटार से भी विनाशकारी है। ~ भारत की कहावत
उच्च खेती, मध्यम व्यापार और नीच नौकरी। ~ भारत की कहावत
वेदव्यास

जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते। - वेदव्यास
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। - वेदव्यास
दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना। - वेदव्यास
सत्‍य से सूर्य तपता है, सत्‍य से आग जलती है,सत्‍य से वायु बहती है सब कुछ सत्‍य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्‍यास
बैर के कारण उत्‍पन्‍न होने वाली आग एक पक्ष को स्‍वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। - वेदव्‍यास
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। - वेदव्यास
जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते। - वेदव्यास
सत्य बोलना श्रेष्ठ है (लेकिन) सत्य क्या है, यही जानाना कठिन है। जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। - वेदव्यास
मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है। - वेदव्यास
ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो। – वेदव्यास
जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। — वेदव्यास
क्षमा असमर्थ मानवी का लक्षण और असमर्थों का आभूषण है। - वेदव्यास
सुदर्शन

मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है। - सुदर्शन
जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। - सुदर्शन
अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ झूठ पहुँच जाता है वहाँ अधर्म-राज्य की विजय-दुंदुभी अवश्य बजती है। - सुदर्शन
धन तो वापस किया जा सकता है परंतु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन
लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। - सुदर्शन
जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। - सुदर्शन
कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन
करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। - सुदर्शन
कालिदास

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास
यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। - कालिदास
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में एकरूपता होती है। - कालिदास
काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास
सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं। - कालिदास
सब प्राचीन अच्छा और सब नया बुरा नहीं होता। बुद्धिमान पुरुष स्वयं परीक्षा द्वारा गुण-दोषों का विवेचन करते हैं। - कालिदास
जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता वे ही सच्चे धीर पुरुष होते हैं। - कालिदास
सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों की आशा पूरी कर देते है जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर जाकर प्रकाश फैला देता है। - कालिदास
दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। - कालिदास
अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास
गोस्वामी तुलसीदास

फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास
वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास
स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके। - तुलसी
कीरति भनिति भूति भलि सो, सुरसरि सम सबकँह हित होई॥ - तुलसीदास
गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास
ईश्‍वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्‍य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्‍त होता है।। - गोस्‍वामी तुलसीदास
वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास
अवसर आने पर मनुष्‍य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रुपया देने से क्‍या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्‍या होगा? - तुलसीदास
रहीम

उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। - रहीम
थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - रहीम
कबीर

साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर
कष्ट पड़ने पर भी साधु पुरुष मलिन नहीं होते, जैसे सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही निखरता है। - कबीर
जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है। – कबीर
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर। आशा तृष्ना ना मरी, कह गये दास कबीर॥ - कबीर
कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय॥ - कबीर
कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय॥ - कबीर
यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। - कबीरदास
केवल ज्ञान की कथनी से क्‍या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे काग़ज़ का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्‍य शीघ्र पतित होता है। - कबीर
खेत और बीज उत्‍तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्‍यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्‍य उत्‍तम होने पर भी गुरुओं की भिन्‍न-भिन्‍न शैली होने पर भी शिष्‍यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्‍यों का क्‍या दोष। - संत कबीर
जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। - कबीर
पं. रामप्रताप त्रिपाठी

आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
कौटिल्य

ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य
सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र
संत तिरुवल्लुवर

नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। - संत तिरुवल्लुर
सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर
उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर
जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्‍लुवर
आलस्‍य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्‍यक्ति आलस्‍य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्‍मी का निवास होता है। - तिरूवल्‍लुर
बड़प्‍पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्‍लुवर
माघ

मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ
कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ
जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र
आचार्य श्रीराम शर्मा



आचार्य श्रीराम शर्मा
इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा
संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। - आचार्य श्रीराम शर्मा
मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। - आचार्य श्रीराम शर्मा
मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य
शारीरिक ग़ुलामी से बौद्धिक ग़ुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य
नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, ज़िम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य
उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य
विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
जब तक व्‍यक्ति असत्‍य को ही सत्‍य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्‍य को जानने की जिज्ञासा उत्‍पन्‍न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा
अवसर तो सभी को जिन्‍दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्‍त पर सही तरीके से इस्‍तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा
आचार्य रामचंद्र शुक्ल

बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल
चितवन से जो रुखाई प्रकट की जाती है, वह भी क्रोध से भरे हुए कटु वचनों से कम नहीं होती। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल
दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। ~ आचार्य रामचंद्र शुक्ल
डॉ. रामकुमार वर्मा

दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
भगवान महावीर

जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर
भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर
पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर
आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। - भगवान महावीर
वह पुरूष धन्‍य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्‍यलक्ष्‍मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर
दूसरों को दण्‍ड देना सहज है, किन्‍तु उन्‍हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्‍यधिक कठिन कार्य है। – भगवान महावीर स्‍वामी
लोकमान्य तिलक

कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक
शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! - लोकमान्य तिलक
अन्‍याय और अत्‍याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक

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