चाणक्य Chanakya

संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य
जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां? - चाणक्य
हमें न अतीत पर कुढ़ना चाहिए और न ही हमें भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए; विवेकी व्यक्ति केवल वर्तमान क्षण में ही जीते हैं। - चाणक्य
व्यक्ति कर्मों से महान बनता है, जन्म से नहीं। - चाणक्य
एक बार काम शुरू कर लें तो असफलता का डर नहीं रखें और न ही काम को छोड़ें। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं। - चाणक्य
संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं - एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति। - चाणक्य
उत्‍तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्‍य नीति
गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्‍च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्‍य
जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्‍य में पछताना पड़ता है। - चाणक्‍य


मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता। - चाणक्य
आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य
प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। - चाणक्य
वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो। - चाणक्य
तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। - चाणक्य
धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती। - चाणक्य
पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता। - चाणक्य
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। - चाणक्य
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है। – चाणक्य
कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य
आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।) - चाणक्य

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