महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि डाकू नहीं बल्कि ऋषियों के ऋषि, योगियों के योगी तथा संगीतज्ञों के संगीतज्ञ थे। उनके नाम का अन्य कोई व्यक्ति डाकू या अपराधी हो सकता है। वाल्मीकि वेदों के ज्ञाता थे। उन्होंने चारों वेदों की शिक्षा रामायण में निहित कर दी थी। 

महर्षि वाल्मीकि ने संप्रदाय और जाति से दूर सभ्य समाज की परिकल्पना दी है। योग और यज्ञ एक ही है तथा इनसे विनाश को टालने के साथ शरीर को विकार मुक्त किया जा सकता है। पुरुषार्थ से देह को ऊपर उठाया जा सकता है। जिस व्यक्ति में पुरुषार्थ होगा, वह क्रियाशील, अनुशासित व परोपकार करने वाला व्यक्ति होगा। 

विश्व का निर्माता एक ही ईश्वर है। उसी एक ईश्वर को अनेक नामों से जाना व पुकारा जाता है। ऐसे ही ऋषि वाल्मीकि ने सभ्य समाज की परिकल्पना हमारे रूबरू साकार की है। 

महाकाव्य रामायण के रचयिता वाल्मीकि अपराधी नहीं बल्कि संतत्व को प्राप्त रचनाकार हैं। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन मूल्यों को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। 

ऐसे महान आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण की रचना करके राम के जीवन, आदर्शों, सिद्घांतों व नीतियों का वर्णन किया है। 

युवा पीढ़ी रामायण जैसे विश्व प्रसिद्घ महाकाव्य पढ़कर समाज की दिशा बदल सकती है।
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