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सबसे ” उत्तम धन ” की व्याख्या क्या है ? दो मूल सिद्धांत के कारण ही धन की उत्तमता की व्याख्या संभव है |
पहला सिद्धांत – वही उत्तम धन जो सब जगह चले ( जैसे यूरो प्राय: सभी यूरोपियन देशो में चलता है | इसलिए यूरोप के किसी एक देश की मुद्रा के बजाय यूरो उत्तम क्योंकि वह उस देश के अलावा अन्य यूरोपियन देशो में भी चलता है ) |
दूसरा सिद्धांत – वही उत्तम धन जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके |
संसारी धन की ताकत को इन दोनों सिद्धांतो की कसौटी पर तोला जाये तो वह बहुत कमजोर साबित होता है |
पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) पर तोले तो पायेंगे की अगर हमने संसारी धन की विश्वमुद्रा ( पुरे विश्व में चलने वाली एक मुद्रा ) भी बना दी तो भी वह अन्य ग्रहों में नहीं चलेगा | अन्य ग्रहों की बात छोड़ दे , वह तो पृथ्वी में भी हर जगह नहीं चलेगी | उद्धरण स्वरुप अगर हम सागर में डूब रहे है और हमारी जेब में खूब सारी विश्वमुद्रा भरी है और एक मगरमच्छ हमें निगलने हेतु सामने है तो क्या हम सागर के मध्य में मगरमच्छ को विश्वमुद्रा देकर यह कह सकते हैं की हमें निगलो मत और अपनी पीठ पर बैठाकर हमें सागर के किनारे छोड़ दो | हमारा संसारी धन पृथ्वीलोक में मगरमच्छ से हमारी रक्षा तक नहीं कर सकता | संसारी धन की ताकत नहीं की वह अगले जन्म में हमारे काम आ सके | क्या इस जन्म का संसारी धन हमारे अगले जन्म में हमें मानव देह और एक सुसंपन्न परिवार में जन्म दिला सकता है? कदापि नहीं |
दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) पर तोले तो पायेंगे की हमारे संसारी धन से चाहे वह रूपया हो , सोना हो , जमीन जायदाद हो या कोई भी अन्य सम्पति हो , उससे हम जीवन की एक श्वास – जीवन का एक पल तक नहीं खरीद सकते | जीवन की एक श्वास भी भूल जाइए, क्या हम संसारी धन से स्वास्थ की गारंटी खरीद सकते हैं की हमें एक भी रोग, बीमारी, शारीरिक प्रतिकूलता नहीं हो | क्या हम संसारी धन से “आनंद” और उससे भी आगे “परमानन्द” की अनुभूति मात्र भी कर सकते हैं | हम मात्र सांसारिक सुख के तुच्छ्य साधन खरीद सकते हैं | ” परमानन्द ” एक शिखर का नाम है जबकि सांसारिक सुख उस शिखर के सबसे निचले पायेदान का नाम है |
सांसारिक धन की चर्चा करके हमने उसकी गुणवत्ता को देखा | अब चर्चा करते हैं प्रभु नामरूपी उस श्रेष्ठत्तम परमधन की | सांसारिक धन के सन्दर्भ में चर्चा किये दोनों सिद्धांत इस परमधन में लबालब डुबे नजर आयेंगे |
पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) – यह परमधन पृथ्वी के हर कोने में, पृथ्वी के हर कण में, सभी ग्रहों, सभी लोक (इहलोक , परलोक ) में स्थाई रूप से चलता है | इस परमधन की कमाई इस जन्म, अगले जन्म, जन्मोजन्म तक काम आती है | {अर्जुन जी ने मेरे प्रभु से पुछा कि अगर किसी ने पुरे जीवन आपकी भक्ति नहीं की और जीवन के अंतिम चरण में ही आपका स्मरण किया और फिर उसकी निर्धारित मृत्यु ने उसे आ दबोचा तो क्या उसका यह शुभकर्म व्यर्थ चला जाता है | उत्तर में मेरे प्रभु ने स्वयं श्रीमदगीताजी में अपने श्रीवचन में कहा कि अर्जुन मेरा स्मरण, मेरी भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती ( चाहे जीवन के अंतिम अवस्था में भी की गई हो ) क्योंकि मैं (प्रभु) उसे संजोये रखता हूँ और अगले जन्म में उस जीव को वह प्रदान करता हूँ | }
दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) -ऐसा कुछ भी नहीं जो यह परमधन उपलब्ध नहीं करा सकता | यह डूबते हुये हमारी सागर में, मगरमच्छ के सामने भी रक्षा करता है | गजेन्द्र मोक्ष की श्रीकथा इसका जीवंत उद्धाहरण है | क्योंकि जिन परमपिता परमेश्वर का यह नामधन है, संसार की, भूमंडल की, भूमंडल के बाहर की भी हर चीज उन्ही परमपिता परमेश्वर के आधीन है | इसलिय परमपिता का नामरूपी महाधन हर युग में, हर चीज पर बेखटक चलता ही नहीं दौडता है | उद्धाहरण स्वरुप आप नामरत्न के पुण्यो से अपने पूर्व जन्मों के कठिन से कठिन पापकर्म भी धो सकते हैं | आप नामरत्न के बल पर अपनी भाग्यरेखा भी बदल सकते हैं |
जरा सोचे ऐसा क्या है जो प्रभु नामरूपी धन से अर्जित नहीं किया जा सकता और जरा सोचे की ऐसी कौन सी जगह है जहा पर यह प्रभु नामरूपी नहीं चलता | यह महाधन यमलोक, नर्क में भी चलता है क्योंकि इसी नामरूपी धन के बल पर ही वहाँ से हमारी मुक्ति संभव होती है |
अब अंत में इतना जरुर सोचे की हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता कही ” सांसारिक धन ” कमाने तक तो सीमित होकर नहीं रह गई है | अगर ऐसा है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य मानव जन्म लेकर और कुछ नहीं | अगर ऐसा है तो हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता को तत्काल प्रभु नामरूपी परमधन कमाने की तरफ अविलम्ब मोड़ना चाहिये नहीं तो यह मानव जीवन बेकार चला जायेगा | ठीक वैसे ही जैसे इंजिनियर बनकर एक व्यक्ति बेलदारी करे या सर्जन बनकर एक व्यक्ति अस्पताल में वार्डबॉय का काम करे |
सबसे ” उत्तम धन ” की व्याख्या क्या है ? दो मूल सिद्धांत के कारण ही धन की उत्तमता की व्याख्या संभव है |
पहला सिद्धांत – वही उत्तम धन जो सब जगह चले ( जैसे यूरो प्राय: सभी यूरोपियन देशो में चलता है | इसलिए यूरोप के किसी एक देश की मुद्रा के बजाय यूरो उत्तम क्योंकि वह उस देश के अलावा अन्य यूरोपियन देशो में भी चलता है ) |
दूसरा सिद्धांत – वही उत्तम धन जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके |
संसारी धन की ताकत को इन दोनों सिद्धांतो की कसौटी पर तोला जाये तो वह बहुत कमजोर साबित होता है |
पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) पर तोले तो पायेंगे की अगर हमने संसारी धन की विश्वमुद्रा ( पुरे विश्व में चलने वाली एक मुद्रा ) भी बना दी तो भी वह अन्य ग्रहों में नहीं चलेगा | अन्य ग्रहों की बात छोड़ दे , वह तो पृथ्वी में भी हर जगह नहीं चलेगी | उद्धरण स्वरुप अगर हम सागर में डूब रहे है और हमारी जेब में खूब सारी विश्वमुद्रा भरी है और एक मगरमच्छ हमें निगलने हेतु सामने है तो क्या हम सागर के मध्य में मगरमच्छ को विश्वमुद्रा देकर यह कह सकते हैं की हमें निगलो मत और अपनी पीठ पर बैठाकर हमें सागर के किनारे छोड़ दो | हमारा संसारी धन पृथ्वीलोक में मगरमच्छ से हमारी रक्षा तक नहीं कर सकता | संसारी धन की ताकत नहीं की वह अगले जन्म में हमारे काम आ सके | क्या इस जन्म का संसारी धन हमारे अगले जन्म में हमें मानव देह और एक सुसंपन्न परिवार में जन्म दिला सकता है? कदापि नहीं |
दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) पर तोले तो पायेंगे की हमारे संसारी धन से चाहे वह रूपया हो , सोना हो , जमीन जायदाद हो या कोई भी अन्य सम्पति हो , उससे हम जीवन की एक श्वास – जीवन का एक पल तक नहीं खरीद सकते | जीवन की एक श्वास भी भूल जाइए, क्या हम संसारी धन से स्वास्थ की गारंटी खरीद सकते हैं की हमें एक भी रोग, बीमारी, शारीरिक प्रतिकूलता नहीं हो | क्या हम संसारी धन से “आनंद” और उससे भी आगे “परमानन्द” की अनुभूति मात्र भी कर सकते हैं | हम मात्र सांसारिक सुख के तुच्छ्य साधन खरीद सकते हैं | ” परमानन्द ” एक शिखर का नाम है जबकि सांसारिक सुख उस शिखर के सबसे निचले पायेदान का नाम है |
सांसारिक धन की चर्चा करके हमने उसकी गुणवत्ता को देखा | अब चर्चा करते हैं प्रभु नामरूपी उस श्रेष्ठत्तम परमधन की | सांसारिक धन के सन्दर्भ में चर्चा किये दोनों सिद्धांत इस परमधन में लबालब डुबे नजर आयेंगे |
पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) – यह परमधन पृथ्वी के हर कोने में, पृथ्वी के हर कण में, सभी ग्रहों, सभी लोक (इहलोक , परलोक ) में स्थाई रूप से चलता है | इस परमधन की कमाई इस जन्म, अगले जन्म, जन्मोजन्म तक काम आती है | {अर्जुन जी ने मेरे प्रभु से पुछा कि अगर किसी ने पुरे जीवन आपकी भक्ति नहीं की और जीवन के अंतिम चरण में ही आपका स्मरण किया और फिर उसकी निर्धारित मृत्यु ने उसे आ दबोचा तो क्या उसका यह शुभकर्म व्यर्थ चला जाता है | उत्तर में मेरे प्रभु ने स्वयं श्रीमदगीताजी में अपने श्रीवचन में कहा कि अर्जुन मेरा स्मरण, मेरी भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती ( चाहे जीवन के अंतिम अवस्था में भी की गई हो ) क्योंकि मैं (प्रभु) उसे संजोये रखता हूँ और अगले जन्म में उस जीव को वह प्रदान करता हूँ | }
दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) -ऐसा कुछ भी नहीं जो यह परमधन उपलब्ध नहीं करा सकता | यह डूबते हुये हमारी सागर में, मगरमच्छ के सामने भी रक्षा करता है | गजेन्द्र मोक्ष की श्रीकथा इसका जीवंत उद्धाहरण है | क्योंकि जिन परमपिता परमेश्वर का यह नामधन है, संसार की, भूमंडल की, भूमंडल के बाहर की भी हर चीज उन्ही परमपिता परमेश्वर के आधीन है | इसलिय परमपिता का नामरूपी महाधन हर युग में, हर चीज पर बेखटक चलता ही नहीं दौडता है | उद्धाहरण स्वरुप आप नामरत्न के पुण्यो से अपने पूर्व जन्मों के कठिन से कठिन पापकर्म भी धो सकते हैं | आप नामरत्न के बल पर अपनी भाग्यरेखा भी बदल सकते हैं |
जरा सोचे ऐसा क्या है जो प्रभु नामरूपी धन से अर्जित नहीं किया जा सकता और जरा सोचे की ऐसी कौन सी जगह है जहा पर यह प्रभु नामरूपी नहीं चलता | यह महाधन यमलोक, नर्क में भी चलता है क्योंकि इसी नामरूपी धन के बल पर ही वहाँ से हमारी मुक्ति संभव होती है |
अब अंत में इतना जरुर सोचे की हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता कही ” सांसारिक धन ” कमाने तक तो सीमित होकर नहीं रह गई है | अगर ऐसा है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य मानव जन्म लेकर और कुछ नहीं | अगर ऐसा है तो हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता को तत्काल प्रभु नामरूपी परमधन कमाने की तरफ अविलम्ब मोड़ना चाहिये नहीं तो यह मानव जीवन बेकार चला जायेगा | ठीक वैसे ही जैसे इंजिनियर बनकर एक व्यक्ति बेलदारी करे या सर्जन बनकर एक व्यक्ति अस्पताल में वार्डबॉय का काम करे |
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